ननद और भाभी की चुदाई

Story Info
Deenu fucks his land-lady and her sister-in-law too.
5.4k words
4.17
116.2k
10
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here
deenu
deenu
25 Followers

ननद और भाभी की चुदाई
लेखक: दीनू
************************

मेरी उम्र छब्बीस साल है और मैं सरकारी दफ़्तर में ऑडिटिंग ऑफिसर हूँ और हमारे दफ़्तर की शाखायें पूरे देश में हैं और अक्सर मुझे काम के सिलसिले में दूसरे शहरों की शाखाओं में कुछ महीनों के लिये जाना पड़ता है। मैं शादीशुदा नहीं हूँ इसलिये मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं होती है। अपनी पिछली कहानी (प्रमोशन की मजबूरी) में जैसे कि मैंने आपको बताया था कि कैसे लखनऊ पोस्टिंग के दौरान मैंने अपनी सहकर्मी रूबिना को चोदा।

इस बार दफ़्तर के काम से मेरी पोस्टिंग चंडीगढ़ हुई थी। वहाँ मैंने अपने सह-कर्मचारी की मदद से एक जगह पेइंग-गेस्ट के तौर पे कमरा किराये पर ले लिया। उस मकान में मकान मालिक रशीद अहमद थे जो कि चालीस वर्षीय थे और सेना में मेजर थे। फिलहाल वो एक महीने के लिये छुट्टी पर आये थे। उनकी बीवी नज़ीला करीब पैंतीस के ऊपर थीं और स्कूल में टीचर थीं। नज़ीला भाभी का जिस्म काफी मस्त और सुडौल था। उनकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ और गोल-गोल चूतड़ थे। जब वो ऊँची हील के सैंडल पहन कर गाँड मटका कर चलती थी तो उन्हें देख कर किसी का भी लंड अपने आप खड़ा हो जाता था। उनकी कोई औलाद नहीं थी। रशीद जी और नज़ीला भाभी दोनों बहुत मिलनसार थे और खुले विचारों वाले थे। मियाँ-बीवी में खूब जमती थी। वो लोग मुझसे घर के सदस्य की तरह ही बर्ताव करते थे, कभी मुझे पराया नहीं समझते थे। जब तक रशीद जी की छुट्टी रही हम दोनों हर शुक्रवार और शनिवार को जम कर पीते थे और नज़ीला भाभी भी हमारा साथ देती थी। उस वक्त उनकी अदा काफी सैक्सी और अलग लगती थी।

एक बार रशीद जी और नज़ीला भाभी सुबह सो रहे थे। मैंने नहा-धोकर सोचा की काम वाली नौकरानी तो आयी नहीं है और नज़ीला भाभी भी अभी उठी नहीं है तो चाय कौन पिलायेगा। इसलिये मैं खुद ही रसोई में केवल टॉवल लपेट कर चाय बनाने चला गया। जब चाय बन कर तैयार हो गयी तो देखा नज़ीला भाभी रसोई में खड़ी-खड़ी मुझे देख रही थी।

वो बोली, “दीनू! मुझे उठा लिया होता तो मैं ही चाय बना देती।”

मैंने कहा, “आप लोगों की नींद खराब ना हो इसलिये मैंने आप को नहीं जगाया और सोचा जब चाय बन जायेगी तो आप लोगों को जगा दुँगा।”

इतने में वो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। तब मैं चाय को छलनी से छान रहा था कि पता नहीं कैसे मेरा टॉवल खुल कर नीचे गिरा और मैं बिल्कुल नंगा हो गया क्योंकि अंदर कुछ भी नहीं पहना था। मुझे नंगा देख कर वो अवाक रह गयी और सिर झुका कर खड़ी हो गयी। मैंने तुरंत चाय का बर्तन नीचे रखा और टॉवल उठा कर लपेट लिया। जब तक मैंने नंगे जिस्म को टॉवल में कैद नहीं किया वो तिरछी नज़र से मेरे मोटे और लंबे लौड़े को घूर रही थी।

मैंने कहा, “सॉरी भाभी!”

वो बोली, “कोई बात नहीं… तुमने जानबूझ कर तो नहीं किया… ये सब अचानक हो गया!”

फिर वो चाय की ट्रे लेकर अपने कमरे में चली गयी। मैं भी तैयार होकर दफ़्तर चला गया। शाम को जब सात बजे घर आया तो साथ में व्हिस्की लेकर आया क्योंकि शुक्रवार था और शनिवार और रविवार को मेरी छुट्टी रहती है।

घर आकर फ्रैश होके करीब पौने-नौ बजे रशीद जी और मैं पीने बैठे। अभी हमारा एक पैग भी खतम नहीं हुआ था की रशीद जी ने नज़ीला भाभी को बुलाया और कहा, “डार्लिंग तुम भी आ जाओ और हमें कंपनी दो।”

नज़ीला भाभी भी एक ग्लास लेकर आयी और पैग बना कर रशीद जी के बगल में बैठ कर पीने लगी। मैं और रशीद जी बरमुडा और टी-शर्ट पहने हुए थे और नज़ीला भाभी ने पारदर्शी नाइटी पहनी थी जिस में से उनकी काली रंग की ब्रा और पैंटी साफ़ दिख रही थी। दो पैग पीते ही हम तीनों को थोड़ा-थोड़ा नशा होने लगा।

अपना जाम उठा कर पीते हुए रशीद जी बोले, “यार दीनू! मेरी छुट्टी तो खतम हो रही है, और मंडे की सुबह मुझे आसाम के लिये रवाना होना है। अब मैं छः महीने बाद आऊँगा… तुम घर का और नज़ीला का खयाल रखना।”

मैंने कहा, “डोंट वरी मेजर साहब! ऑय विल टेक केयर! मैं भी यहाँ करीब छः महीने के लिये ही हूँ!”

वो बोले, “यार अब दो दिन बचे हैं… जम कर मौज करेंगे!”

फिर उन्होंने नज़ीला भाभी के कंधे पर हाथ रख दिया। हम सब बातों में मशगूल थे की अचानक मेरी नज़र नज़ीला भाभी पर पड़ी। मैंने देखा कि रशीद जी जाम पीते-पीते नज़ीला भाभी की बायीं चूची को दबा रहे थे। ये देख कर मेरा लंड अपनी हर्कत में आ गया लेकिन मैं अंजान बना रहा। फिर भी मेरी नज़र बार-बार नज़ीला भाभी की चूचियों पर जा रही थी। जब मेरी और नज़ीला भाभी की नज़र चार हुई तो वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगी।

खैर पीने का प्रोग्राम खतम करके हम लोगों ने खाना खाया और अपने कमरों में सोने के लिये चले गये। मुझे नींद नहीं आ रही थी। करीब साढ़े-बारह बजे मैं उठ कर पेशाब करने गया और वापस आते हुए देखा कि रशीद जी के कमरे की लाईट जल रही थी। मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि खिड़की से झाँक कर देखूँ कि वो क्या कर रहे हैं। मैंने खिड़की से झाँख कर देखा तो वो दोनों बिल्कुल नंगे थे और रशीद जी नज़ीला भाभी की चूत चटाई कर रहे थे। नज़ीला भाभी उनका सिर पकड़ कर उनका चेहरा अपनी चूत में दबा रही थी।

तभी नज़ीला भाभी बोली, “डार्लिंग मैंने दीनू का लंड देखा है… उसका लंड बहुत मोटा और लंबा है!”

रशीद जी बोले, “जानू! क्या तुम उसके लंड से चुदवाना चाहती हो?”

वो बोली, “डार्लिंग! क्यों नहीं? जबसे पिछला पेईंग-गेस्ट छोड़ कर तंज़ानिया वापस गया है तबसे कोई नया लंड नहीं लिया… दीनू का लंड तो उस नीग्रो से भी ज्यादा मोटा और लंबा है… उसे सिड्यूस करके उसके लंड से ज़रूर चुदवाऊँगी!”

रशीद जी बोले, “तुम बाज़ नहीं आओगी डार्लिंग! उस नीग्रो लड़के के साथ भी खूब ऐश करी थी तुमने… चलो ऑल द बेस्ट!”

फिर रशीद जी उठ कर उनकी चूत में लंड डाल कर फचाफच चोदने लगे। उनकी ये बातें सुन कर मैं हैरान हो गया और जब उनकी चुदाई खतम हुई तो मैं अपने कमरे में आकर सो गया लेकिन मेरे दिमाग में बार-बार उनकी बातें और चुदाई का खयाल घूम रहा था।

खैर सुबह करीब दस बजे मैं उठा और नहा धोकर जब नाश्ता करने लगा तो देखा रशीद जी घर पर नहीं थे। मैंने नज़ीला भाभी से पूछा, “भाभी! मेजर सहाब कहाँ हैं?”

नज़ीला भाभी बोली, “अपने दोस्त के घर गये है और दोपहर को करीब एक बजे आयेंगे।”

जब मैं नाश्ता कर रहा था तो देखा नज़ीला भाभी की नज़र बार-बार मेरे बरमूडे पर जा रही थी। जब हमारी नज़र चार हुई तो मैंने नज़ीला भाभी से पूछा, “भाभी क्या देख रही हो?”

नज़ीला भाभी बोली, “दीनू जब से मैंने तुम्हारा देखा है मैं हैरान हूँ… क्योंकि ऐसा मैंने आज तक किसी का ही देखा!”

मैं बोला, “क्या नहीं देखा भाभी?”

वो बोली, “दीनू ज्यादा अंजान मत बनो… कल जब तुम्हारा टॉवल गिरा तो मैंने तुम्हारी कमर के नीचे का हिस्सा नंगा देखा और दोनों टाँगों के बीच जो वो लटक रहा था… उसे देख कर मैं हैरत-अंगेज़ हूँ।”

नज़ीला भाभी की ये बातें सुन कर मैं उत्तेजित हो गया और हिम्मत कर के अपना लंड बरमूडे से निकाल कर उन्हें दिखाते हुए बोला, “नज़ीला भाभी… आप इसकी बत कर रही हो?”

वो बोली, “हाँ.. बिल्कुल इसी की बात कर रही हूँ!”

मैं बोला, “कल तो आपने दूर से देखा था… आज करीब से देख लो!” और उनका हाथ पकड़ कर अपना लंड उसके हाथ में दे दिया।

नज़ीला भाभी मेरे लंड को हाथ में पकड़ कर बोली, “हाय अल्लाह! कितना मोटा और लंबा है!” और लंड की चमड़ी को पीछे करके सुपाड़े पर एक चुम्मा दे दिया।

फिर मैंने कहा, “नज़ीला भाभी अब आपकी भी तो दिखा दो!” तो वो मेरे लंड को बरमूडे में डाल कर बोली, “दीनू आज नहीं! मेजर साहब के जाने के बाद दिखा दुँगी।”

फिर हम दोनों उठ कर खड़े हो गये। वो अपने काम में लग गयी और मैं टीवी देखने लगा। रविवार रात तक हम तीनों ने खूब जाम कर शराब पी और सोमवार की सुबह रशीद जी टैक्सी लेकर रेलवे स्टेशन चले गये। मैं उठा तो सुबह के करीब सात बज रहे थे। नज़ीला भाभी भी स्कूल जाने के लिये तैयार हो चुकी थी। मैंने नज़ीला भाभी से कहा, “भाभी! अब तो मेजर सहाब चले गये… अब तो आपकी दिखा दो!”

नज़ीला भाभी ने अदा से मुस्कुराते हुए तुरंत अपनी सलवार नीचे खिसका कर अपनी चूत दिखा दी। उनकी चूत पर एक भी बाल नहीं था, लगता है की हेयर रिमूवर से नियमित अपनी चूत साफ करती थी। मैं उनकी चूत पर हाथ रख कर थोड़ी देर सहलाया और फिर उनकी चूत पर चुम्मा लिया।

वो बोली, “अब बस दीनू! रात को और दिखा दुँगी। अभी स्कूल के लिये लेट हो रहा है!” फिर वो स्कूल चली गयी और उसके बाद मैं भी नहाकर दफ़्तर चला गया। दफ़्तर में मेरा मन नहीं लग रहा था और शाम होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।

शाम को जब घर पहुँचा तो नज़ीला भाभी को देखकर बस देखता ही रह गया। उन्होंने घुटनों तक की छोटी सी मैरून रंग की नाइटी पहनी हुई थी। उनकी नाइटी इतनी पारदर्शी थी कि काली ब्रा और पैंटी में उनका पूरा हुस्न मेरी आँखों के सामने नंगा था। साथ में काले रंग के ही ऊँची हील वाले सैंडल पहने हुए थे जो उनके सैक्सी फिगर में चार चाँद लगा रहे थे। खुली ज़ुल्फें और मैरून लिपस्टिक लगे होंठों पर कातिलाना मुस्कुराहट कयामत ढा रही थी। मैंने नज़ीला भाभी को बाँहों में लेना चाहा तो वो बोली, “इतनी भी क्या बेसब्री है... पहले फ्रेश तो हो जाओ… मैं कहीं भगी तो नहीं जा रही हूँ… फिर जी भर के मेरे हुस्न का जाम पीना!”

फिर मैं बाथरूम में जा कर नहाया और बरमूडा और टी-शर्ट पहन कर बाहर आया तो कमरे में रोमैन्टिक संगीत बज रहा था और नज़ीला भाभी हम दोनों के लिये पैग बना रही थी। हम दोनों बैठ कर शराब पीने लगे और बातें करने लगे। नज़ीला भाभी के होंठों पर वही शरारती मुस्कुराहट थी।

नज़ीला भाभी मुझे छेड़ते हुए बोली, “तो जनाब और कितनों के हुस्न का मज़ा ले चुके हैं!”

“आप से झूठ नहीं बोलुँगा भाभी… मैंने कईयों के साथ ऐश की है…!” मैं बोला।

“सुभान अल्लाह! दिखते तो बड़े सीधे हो!” नज़ीला भाभी आँखें नचाते हुए बोली।

“वैसे भाभी कम तो आप भी नहीं हो… क्यों सही कह रहा हूँ ना?” मैंने भी वापस उन्हें छेड़ा।

“तुम्हें कैसे पता?” नज़ीला भाभी आँख मारते हुए बोली।

“बस ऐसे ही अंदाज़ा लगा लिया… बताओ ना भाभी सच है कि नहीं?” मैं ज़ोर देते हुए बोला।

हम दोनों इसी तरह शराब पीते हुए बातें करते रहे। नज़ीला भाभी ने बताया कि वो बेहद चुदासी हैं और ज़िंदगी में पचासियों लौड़े अपनी चूत में ले चुकी हैं। पेईंग-गेस्ट भी इसी मक्सद से रखती हैं ताकि मेजर-साहब की गैर-हाज़री में भी उनकी चूत प्यासी ना रहे। बातें करते-करते हमने काफी शराब पी ली थी और नज़ीला भाभी की तो आवाज़ भी बहकने लगी थी।

फिर वो बोली, “दीनू अपने कमरे में चलो… मैं भी दो मिनट में आती हूँ!”

मैंने पहले बाथरूम में जा कर पेशाब किया और फिर अपने कमरे में चला गया। नज़ीला भाभी भी नशे में झुमती हुई मेरे कमरे में आयी और आते ही अपनी नाइटी उतार कर कर बोली, “दीनू देख लो दिल भर कर मेरा शबाब!”

नज़ीला भाभी अब काली ब्रा-पैंटी और हाई हील के सैंडल पहने हुस्न की परी की तरह मेरे सामने खड़ी थीं। मैंने उन्हें अपनी बाँहों में भरते हुए कहा, “सिर्फ देखने से दिल नहीं भरेगा भाभी!”

“तो फिर कैसे…?” वो शरारती अंदज़ में बोली।

“अब तो आपके हुस्न की झील में डूब के ही करार मिलेगा!” कहते हुए मैं अपने कपड़े उतार कर नंगा हो गया। फिर मैंने उनकी ब्रा और पैंटी भी उतार दी और उन्हें बेड पर लिटा कर उनकी गीली चूत को चाटने लगा और वो भी मेरा लंड पकड़ कर सहलाने लगी। जब मेरा लंड चुदाई के लिये तैयार हो गया तो मैं नज़िला भाभी टाँगें फैला कर लंड के सुपाड़े को उनकी चूत पर रगड़ने लगा।

मेरे लंड की रगड़न से वो उतेजित हो कर मुँह से सिसकरी भरने लगी और कुछ ही देर में उनका जिस्म अकड़ने लगा और वो पहले चूत चटाई से अब लौड़े की रगड़न से झड़ गयी। फिर मैंने अपने सुपाड़े पर थूक लगा कर नज़िला भाभी की चूत पर रख कर एक कस के धक्का मरा तो आधे से ज्यादा लंड उनकी चूत में घुस गया। लंड घुसते ही उनके मुँह से “ऊऊऊईईईई ऊफ़फ़फ़” सिसकरियाँ निकलने लगी और वो लंबी-लंबी साँसें लेने लगी। नज़ीला भाभी सिसकते हुए बोली, “दीनू ऐसे ही डाले रहो कुछ करना नहीं!”

मैं कुछ देर तक बिना हिले-डुले आधे से ज्यादा लंड उनकी चूत में फसाये पड़ा रहा और उनकी दोनों चूचियों को अंगूठे और उंगली के बीच पकड़ कर मसलता रहा। कुछ ही देर में वो ज़रा नॉर्मल हुई तो मैंने कमर उठा कर थोड़ा लंड चूत से बाहर निकाल कर एक जोरदार धक्का मारा। मेरा लंड पूरा का पूरा उनकी चूत की गहरायी में घुस कर उनकी बच्चेदानी पर छू गया।

नज़ीला भाभी फिर चिल्ला पड़ीं, “ऊऊऊऊईईईई अल्लाहहऽऽऽ मार डाला रे तेरे ज़ालिम लंड ने… प्लीज़ दीनू… हिलना डुलना नहीं!”

मैं ऐसे ही लंड डाले पड़ा रहा। मेरे लंड पर उनकी चूत की दिवारें कस कर जकड़ी हुई थी। जब वो फिर नॉर्मल हुई तो मैं धीरे-धीरे अपना लंड नज़ीला भाभी की चूत के अंदर-बाहर करने लगा। जब मेरा लंड उनकी चूत के दाने को रगड़ता हुआ अंदर-बाहर होने लगा तो नज़ीला भाभी को भी जोश आ गया और बोली, “दीनू मॉय डार्लिंग! कीप फकिंग हार्ड… बेहद मज़ा आ रहा है! आआआहहह आआआईईई!”

फिर उन्होंने अपनी टाँगें और फ़ैला दीं और मेरी कमर पर कस दीं। नज़ीला भाभी की सिसकारियों से मुझे भी जोश आ गया और मैं तेजी के साथ कस-कस कर चुदाई करते हुए लंड को अंदर-बाहर करने लगा। कुछ ही देर में उनकी चूत की सिकुड़न मुझे अपने लंड पर महसूस हुई। मैं समझ गया की वो झड़ रही थी लेकिन मैंने अपनी स्पीड नहीं रोकी बल्कि और बढ़ा दी। नज़िला भाभी की चूत गीली होने से अब मेरा लौड़ा आसानी से ‘पुच-पुच’ की आवाजें करता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था और पूरे कमरे में चुदाई की आवाजें गूँजने लगी।

उनके झड़ने के बाद मैं करीब पंद्रह -मिनट तक चोदता रहा। फिर मेरा लंड भी नज़ीला भाभी की चूत में झड़ गया। लंड का पानी जब पूरा उनकी चूत में गिर गया तो मैंने लंड को बाहर निकाला। उनकी चूत खुल कर अंदर की गहरायी दिखा रही थी। हम दोनों जोर-जोर से साँसें ले रहे थे। फिर हम दोनों लिपट कर सो गये।

करीब तीन बजे मेरी आँख खुली तो नज़ीला भाभी सिर्फ सैंडल पहने बिल्कुल नंगी मुझसे लिपटी हुई सो रही थीं। मैंने फिर से उनकी चुदाई की और सुबह भी दफ़्तर जाने से पहले उनकी चुदाई की।

अब तो ये रोज़ का सिलसिला हो गया। हम रोज रात को शराब के एक-दो पैग पी कर चुदाई करने लगे। नज़ीला भाभी तो मेरे लंड पर फ़िदा हो चुकी थी और वो बेहद चुदासी थीं। हर वक्त चुदाई के मूड में रहती थीं। हम दोनों हर रात एक ही बिस्तर पर नंगे सोते और अलग-अलग तरह से चुदाई करते। कईं बार तो स्कूल के लिये निकलने वाली होती तो जाते-जाते भी अपनी सलवार और पैंटी नीचे खिसका कर झटपट चोदने को कहतीं। हर दूसरे दीन मैं उनकी गाँड भी मारता था। जब भी हम दोनों में से किसी को चुदाई का मन होता, घर के किसी भी हिस्से जैसे कि किचन, बाथरूम, ड्राइंग रूम में कहीं भी चुदाई शुरू हो जाती। शुक्रवार और शनिवार को तो हम जम कर शराब पीते और नशे में धुत्त होकर खूब चुदाई करते।

एक दिन नज़ीला भाभी की चचेरी ननद ज़हरा कुछ दिनो के लिये आयी। ज़हरा बत्तीस साल की थी और बेवा थी। वो अजमेर में किसी कॉलेज में प्रोफेसर थी और चंडीगढ़ में किसी वर्कशॉप के लिये महीने भर के लिये आयी थी। वो करीब पाँच फुट चार इंच लंबी थी और उसका जिस्म ज्यादा मोटा भी नहीं था और ज्यादा पतला भी नहीं था। ज़हरा बेहद खुबसूरत थी और ज्यादातर जींस और कुर्ता-टॉप पहनती थी। आधुनिक कपड़ों के बावजूद बाहर जाते वक्त ज़हरा सिर पे स्कार्फ जैसा हिजाब बाँधती थी। सब से ज्यादा आकर्षक उसकी गाँड थी। ऊँची हील की सैंडल पहन कर जब वो चलती थी तो टाईट जींस में उसकी गाँड मटकती देख कर मेरा लंड भी नाचने लगता था।

ज़हरा भी सुबह यूनिवर्सिटी जाती थी और शाम को करीब मेरे साथ-साथ ही घर वापस आती थी। उसकी और नज़ीला भाभी की बहुत पटती थी लेकिन शुरू-शुरू में थोड़ी शरम की वजह से ज़हरा मुझसे दूर रहती थी और ज्यादा बात भी नहीं करती थी। कभी-कभी शाम को खाने से पहले ड्रिंक्स में ज़हरा हमारा साथ देती थी लेकिन औपचारिक बातें ही करती थी। ज़हरा के आने से अब मैं और नज़ीला भाभी पहले की तरह खुल कर कभी भी या कहीं भी चुदाई नहीं कर सकते थे। लेकिन रात तो को नज़ीला भाभी मेरे कमरे में ही सोती थी और हम खूब चुदाई करते।

एक दिन मुझे दफ्तर पहुँच कर एक घंटा ही हुआ था कि नज़ीला भाभी का फोन आया। मुझे थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि नज़ीला भाभी ने पहले कभी इस तरह दफ्तर के वक्त फोन नहीं किया था और वो भी तो सुबह मेरे सामने ही तो स्कूल जाने के लिये निकली थीं। जब मैंने फोन उठाया तो उन्होंने बताया कि किसी वजह से उनके स्कूल में छुट्टी हो गयी है और वो घर वापस जा रही हैं। नज़ीला भाभी ने मुझे भी दफ्तर से छुट्टी लेकर घर आने को कहा क्योंकि ज़हरा कि गैर-मौजूदगी में शाम तक ऐश करने का ये अच्छा मौका था। मैंने कहा, “ठीक है भाभी… लेकिन मुझे घर पहुँचने में दो घंटे लगेंगे क्योंकि मुझे एक रिपोर्ट पुरी करनी है।”

नज़ीला भाभी बोली, “मैं रास्ते में आर्मी कैंटीन से घर का कुछ सामान और व्हिस्की वगैरह खरीदते हुए जाऊँगी… जल्दी आना दीनू… मुश्किल से ऐसा मौका मिला है!”

मैं साढ़े ग्यारह तक घर पहुँच गया तो देखा कि नज़ीला भाभी पूरे मूड में थीं। एम-टी-वी चैनल पर कोई भड़कता हुआ म्यूज़िक एलबम देखते हुए नज़ीला भाभी सोफे पर बैठी शराब पी रही थीं। उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि आते ही पीने बैठ गयी थीं क्योंकि नजीला भाभी ने सुबह जो सलवार-सूट पहना था, इस वक्त भी वही सुबह वाली कमीज़ और ऊँची पेन्सिल हील की बारीक पट्टियों वाली सैंडल पहनी हुई थी जबकि उनकी सलवार इस वक्त सोफे के पास फर्श पर पड़ी थी।

मैंने अंदर आते ही कहा, “ये कया भाभी... आप तो सुबह ही शराब पीने बैठ गयीं और मेरा भी इंतज़ार भी नहीं किया!”

नज़ीला भाभी बोलीं, “दीनू! पिछले वीकेंड भी ज़ोहरा की वजह से ना तो दिल खोल कर शराब पी और ना ही जम कर चुदाई की और अगले तीन-चार हफ्ते हमें एहतियात बरतनी पड़ेगी। इसलिये आज सारी कसर निकालने का इरादा है...!”

ये कहते हुए वो सोफे से उठ कर झूमती हुई मेरे नज़दीक आयी और मेरे गले में बाँहें डाल कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। ऊँची हील के सैंडलों में नज़ीला भाभी के लड़खड़ाते कदमों और बहकती ज़ुबान से साफ था कि वो काफी शराब पी चुकी थीं और नशे में धुत्त थीं। मैं जब भी नज़ीला भाभी को ऊँची हील की सैंडल पहने इस तरह नशे में लड़खड़ाते हुए देखता था तो मेरा लंड बेकाबू हो जाता था।

मैंने उन्हें चूमते हुए सोफे पर वापस बिठाया और खुद एक पैग पीने के बाद अपने कपड़े उतार कर नंगा हो गया। इतने में नज़ीला भाभी ने भी अपनी कमीज़ और ब्रा उतार कर एक तरफ फेंक दी और पैरों में सैंडलों के अलावा मादरजात नंगी हो कर फिर मुझसे लिपट गयीं। फिर हमारी चुदाई सोफ़े पर ही शुरू हो गयी। मैं सोफे पर पीछे टिक कर लेटा था और मेरे पैर ज़मीन पर थे। नज़ीला भाभी मुझ पर सवार हो गयी थी। मेरा ज़ालिम लंड उनकी चूत में घुस कर फंसा हुआ था। वो कुल्हे उठा-गिरा कर मेरा लंड अपनी चूत में अंदर-बाहर कर रही थी। उनकी चूचियाँ मेरे मुँह के ऊपर थीं और मैं उनके निप्पल चूस रहा था। शराब के नशे और चुदाई की मस्ती में नज़ीला भाभी जोर-जोर से सिसकारियाँ भर रही थीं।

इतने में मेरी नज़र दरवाज़े की तरफ पड़ी तो देखा ज़हरा वहाँ खड़ी-खड़ी हैरानी से स्तंभित सी हमें देख रही थी। मैंने चुदाई नहीं रोकी और बोला, “अरे ज़हरा जी... आप कब आयीं?”

नज़ीला भाभी ने भी उसे देखा तो चुदाई चालू रखते हुए कहा, “आजा ज़हरा... शरमा मत!”

हमारी बात सुनकर ज़हरा जैसे अचानक होश में आयी और भाग कर उसके कमरे में चली गयी। हमने अपनी चुदाई ज़ारी रखी और शाम तक ऐश करते रहे। इस दौरान ज़हरा अपने कमरे से नहीं निकली। फिर बाद में हम दोनों मेरे कमरे में जाकर नंगे ही सो गये।

अगले दिन सुबह जब हम उठे तो नज़ीला भाभी बोली कि वो ज़हरा को समझा देंगी। फिर हम तीनों अपने-अपने दफ्तर, स्कूल ओर यूनिवर्सिटी निकल गये। उस दिन मुझे दफ्तर में देर तक रुकना पड़ा। शाम को जब नज़ीला भाभी और ज़हरा अकेले थे तो नज़ीला भाभी और ज़हरा साथ बैठ कर एक-एक पैग पीने लगीं। तब ज़हरा ने नज़ीला भाभी से कहा, “भाभी जान! मुझे माफ़ कर देना, मैं अंजाने में जल्दी आ गयी थी... मुझे मालूम नहीं था कि आप और वो...!”

नज़ीला भाभी बीच में ही बोली, “देख, ज़हरा! सैक्स के मामले में मैं और तेरे भाईजान बिल्कुल खुले ख्यालात के हैं। चोदने-चुदवाने में हम शरम-हया नहीं रखते हैं। हम दोनों के बीच अंडरस्टैंडिंग भी है कि तेरे भाईजान किसी और को चोद सकते हैं और मैं भी किसी भी मनचाहे मर्द से चुदवा सकती हूँ! लेकिन हम किसी एरे-गैरे के साथ चुदाई नहीं करते!”

ज़हरा बोली, “दीनू कैसा है? आप दोनों क्या रोज़-रोज़...!”

नज़ीला भाभी ने तपाक से कहा, “हाँ! रोज़ रोज़! दीनू मुझे रोज़ चोदता है और वो भी कईं कईं दफा। तू बता कि तू चुदवाती है कि नहीं या सूखी ज़िंदगी गुज़ार रही है?”

ज़हरा बोली, “नहीं भाभी जान! नसीर को गुज़रे हुए छः साल हो गये... तब से बस ऐसे ही... दिल तो बहुत करता है... पर हिम्मत नहीं हुई कभी... जब कभी दिल ज्यादा ही मचलता है तो... यू नो.. केला या बैंगन वगैराह डाल कर अपनी प्यास बुझा लेती हूँ!”

नज़ीला भाभी बोली, “छोड़ ये बेकार की बातें! कब तक सोसायटी की बेकार की पाबंदियों से डर-डर के जवानी बर्बाद करती रहेगी... जस्ट टेल मी क्लियरली... चुदवाना है दीनू से?”

“दिल तो करता है मगर...” ज़हरा ने हिचकिचाते हुए कहा तो नज़ीला भाभी फिर बोली, “ये अगर मगर कुछ नहीं... जस्ट से येस ओर नो...!” ज़हरा ने सिर हिला कर हाँ कह दिया।

उस दिन मैं दफ्तर से काफी लेट आया था। रात को सोते वक्त अपनी और जहरा की बातें नज़ीला भाभी ने मुझे बाद में बतायीं। मैं तो खुद ज़हरा को चोदने के लिये बेकरार था। अगले दिन शाम को दफ्तर से आने के बाद मैं नज़ीला भाभी के साथ बैठ कर शराब पी रहा था तो उन्होंने ज़हरा को भी कंपनी देने के लिये बुला लिया। ज़हरा आयी तो मैं उसके हुस्न को देखता ही रह गया।

जब से ज़हरा चंडीगढ़ आयी थी मैंने तो उसे हमेशा जींस और कुर्ता-टॉप में ही देखा था। आज शायद नज़ीला भाभी की सलाह से उसने हल्के गुलाबी रंग की पतली सी स्लीवलेस नाइटी पहनी हुई थी जिसमें से उसका बेपनाह हुस्न छलक रहा था। होंठों पे लाल लिपस्टिक और गालों पे गुलाबी रूज़ और पैरों में सफेद रंग के ऊँची पेंसिल हील के कातिलाना सैंडल पहने हुए थे। ज़हरा भी हमारे साथ बैठ कर ड्रिंक करने लगी लेकिन ज़हरा मुझसे नज़र नहीं मिला रही थी। मैं और नज़ीला भाभी ही बातें कर रहे थे और ज़हरा चुपचाप अपना पैग पी रही थी। हमने दो-दो पैग खतम किये तो ज़हरा के हावभाव से साफ था कि उसे अच्छा खासा नशा होने लगा। नज़ीला भाभी ने जानबूझ कर ज़हरा के लिये तगड़े पैग बनाये थे। अब ज़हरा हमारी बातों पे खुल कर खिलखिलाते हुए हंस रही थी। मुझे भी हल्का सुरूर था और खुद नज़ीला भाभी भी नशे में झूम रही थीं। कातिलाना मुस्कुराहट के साथ उन्होंने मुझे आँख मार कर इशारा किया तो मैंने बेशरम होकर ज़हरा से पूछा, “क्या खयाल है ज़हरा जी? पसंद आया आपको मेरा लंड? कल तो आप शरमा कर अंदर ही भग गयी थीं!”

ज़हरा ने शरमा कर मुस्कुराते हुए अपनी भाभी की तरफ देखा तो नज़ीला भाभी हंसते हुए बोली, “हाय अल्लाह... देखो कैसे शर्मा रही है...! अरे शरम हया छोड़... नहीं तो बस केले-बैंगन से काम चलाती रहेगी तमाम ज़िंदगी... सच में दीनू! ज़हरा तो बेकरार है तुम्हारा लंड लेने के लिये!”

“हाँ दीनू! छः साल से अपनी तमन्नाओं को दबा रखा था... अब और बर्दाश्त नहीं होता... भाभी जान की तरह प्लीज़ मेरी प्यास भी बुझा दो!” ज़हरा ज़रा खुलते हुए बोली।

मैं बोला, “क्यों शर्मिंदा कर रही हैं मुझे, बेकरार तो मैं हूँ इतने दिनों से आप जैसी ख़ूबसूरत हसीना को चोदने के लिये!”

ये सुनते ही ज़हरा के गालों पर लाली आ गयी। हमने एक-एक पैग और पिया तो नज़ीला भाभी ने उनके बेडरूम में चलने का इशारा किया। मैं बाथरूम में पेशाब करके नज़ीला भाभी के बेडरूम में पहुँचा और दो मिनट के बाद वो दोनों भी सैंडल खटखटती हुई नशे में झुमती कमरे में आयीं। नशे में होने की वजह से ज़हरा की चाल में लड़खड़ाहट साफ नज़र आ रही थी।

दोनों बेड पर बैठ गयीं। मैं उठ कर ज़हरा के पास आया और उसके गालों को चूमने लगा। नशे की मस्ती के बावजूद उसे बहुत शरमा आ रही थी। मैं अपने पैर लंबे करके पलंग पर बैठ गया और ज़हरा को अपनी गोद में खींच लिया और उसका चेहरा घुमा कर उसके होंठों को चूमा। फिर मैंने जीभ से उसके होंठ चाटे और जीभ मुँह में डालने का प्रयास किया लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। “क्या हुआ ज़हरा जी? आपको अच्छा नहीं लग रहा क्या?” मैंने पूछा।

deenu
deenu
25 Followers
12