नेहा का परिवार 11

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बड़े मामा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और मेरे गरम जलते हुए होंठों को कस कर लगे। सुरेश चाचा ने भी अपनी नव-वधु को अपनी बलशाली बाँहों में उठा कर सुहागरात के गद्दे की और चल पड़े। सब दर्शकों को दोनों गद्दों पर होने वाले कार्यकलाप का अबाधित दृष्टिकोण था। नम्रता चाची ने सारा रंगमंच सोचसमझ कर व्यस्थित किया था।

सुरेश चाचा ने अपनी अपरिपक्व 'दुल्हन' को गद्दे पर लिटा कर उसके होंठों के रसपान करने लगे। उँगलियाँ मीनू के जलते यौवन से खेलेने लगीं। मीनू के भगोष्ठ वासना के अतिरेक से सूज से गए थे। मेरी चूत बड़े मामा के दानवीय विकराल लंड की प्यासी हो चली थी।

हम दोनों की चूतें हमारे रति रस से सराबोर थीं।

नम्रता चाची ने पुकार लगायी , "अरे दुल्हे राजाओं यह दुल्हने तो पूरी तैयार हैं। इन्हे और गरम करने की ज़रुरत नहीं है। आप तो यह सोचो कि चीखें निकलवाओगे और कैसे इनकी छूट फाड़ कर अपने लंड पर विजय का प्रतीक लाल रंग दिखाओगे। "

मीनू और की तरफ देखा। वो बेचारी भी लंड लेने के लिए उत्सुक थी।

नम्रता चाची ने दोनों दूल्हों को हमारी फ़ैली टांगों के बीच में स्थापित करने के बाद उनके तनतनाते हुए लंडों को चूस कर और भी खूंटे जैसे सख्त कर दिया।

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"यदि इन कुंवारी कन्याओं की चीखों से हमारे कान न भरें और आप दोनों के लंडों पर इनके कौमार्यभंग का खून न दिखे तो बहुत शर्मिन्दगी की बात होगी चलिए मैं आप दोनों की थोड़ी सी मदद कर देतीं हूँ।" नम्रता चाची ने कोमल सूती चादर से मेरी और मीनू की चूतों का सारा रस सुखा दिया।

"अब इस से पहली इन दोनों कामुक कुंवारियों की चूतें फिर से गीली हो जाएँ आप दोनों किला फतह कर लीजिये। " नम्रता चाची ने बड़े मामा और अपने पति को सलाह दी।

बड़े मामा और सुरेश चाचा के चेहरों पर नम्रता चाची के शब्दों को वास्तविक रूप देने का ढृढ़ संकल्प साफ़ झलक रहा था।

बड़े मामा ने मेरी भरी भरी जांघों पूरा चौड़ा कर अपना दानवीय लंड मेरी सूखी छूट पर टिका दिया। मैं उनके अगले प्रयत्न के अनुमान से रोमांचित हो उठी।

बड़े मामा का लंड मेरी सूखी चूत की धज्जियाँ उड़ा देगा।

बड़े मामा ने अपने बड़े सेब जैसे सुपाड़े को मेरी चूत में बेदर्दी से ठूंस दिया। यदि मैं इस दर्द से बिलबिला उठी तो आगे होने वाले क्रिया से तो मर ही जाऊंगी।

बड़े मामा ने मुझे नन्ही बकरी के तरह अपने नीचे दबा कर अपने विशाल शरीर के पूूरी ताकत से अपना अमानवीय लंड मेरी लगभग सूखी चूत में निर्ममता से ठूंस दिया।

मेरी चीख ने सरे हॉल को गूंजा दिया।

"हाय, बड़े मामा मेरी चूत फाड़ दी आपने। अऊऊ उउउन्न्नन्न नहीईईईइ ," मैं चीखी। मेरी चीख अभी भी उन्नत हो रही थी कि मीनू के दर्द भरी चीख भी हॉल में गूँज उठी।

दोनों दूल्हों ने बेदर्दी से अपने विकराल लंड को अपनी शक्तिशाली शरीर के ज़ोर से हम दोनों कमसिन अविकसित दुलहनों की 'कुंवारी' चूत में जड़ तक ठूंसने के बाद ही सांस ली। मीनू औए मेरी चीखों से सबके कान दर्द कर उठे होंगें। जब बड़े मामा का लंड मेरी दर्द से बिलबिलाती चूत से बाहर आया तो पूरा का पूरा लाल हो गया था। बड़े मामा ने मेरी चूत की कोमल दीवारों को फाड़ कर मेरे कुंवारेपन को फिर से जीवन दे दिया।

नम्रता चाची ने हौसला बढ़ाया ,"शाबास दुल्हे राजाओं। इसी तरह इन दोनों की चूतों का लतमर्दन करते रहो। क्याचीखें निकलवाई हैं आप दोनों ने। "

बड़े मामा और सुरेश चाचा ने मुझे और मीनू को निर्ममता से चोदना शुरू कर दिया। अगले पन्द्र्ह मिनटों तक हम दोनों ने चीख चीख कर अपना गला बिठा लिया।

जान लेवा दर्द के बावज़ूद हम दोनों की चूतें मोटे लंडों के तड़प रहीं थीं।

बड़े मामा की निर्मम चुदाई से मैं सुबक सुबक कर और भी चुदने की दुहाई देने लगी।

वासना का पागलपन ने मेरे मस्तिष्क को अभिभूत कर लिया।

मुझे तो पता ही नहीं चला कि हॉल में क्या हो रहा था। नम्रता चाची ने पूरा हंगामा का अगले दिन मुझे और मीनू को विस्तार से विवरण दिया था।

राज ने जमुना दीदी को अपने डैडी के लंड पर पटक दिया। जैसे ही नानाजी का लंड जमुना दीदी की चूत में समा गया राज ने उनकी गांड में अपना वृहत लंड चार धक्कों से जड़ तक ठूंस दिया। दोनों पुरुषों ने जमुना दीदी के उरोज़ों को मसल कर लाल कर दिया। जमुना दीदी की चीखें शीघ्र ही सीसकारियों में बदल गयीं।

ऋतू दीदी भी गरम हो गयीं थी। उन्होंने गंगा बाबा के लंड से अपनी चूत भर कर संजू को अपनी गांड मरने का आदेश दिया।

हाल में में सिस्कारियों और चीखों की बाड़ आ गयी।

मेरे जलती हुई चूत में रस की नदी बह उठी। मेरी चूत में बड़े मामा ने उतना हे दर्द उपजाया था जितना उन्होंने मेरे कौमार्यभंग करते हुए किया था। उस एतहासिक घटना को सिर्फ तीन दिन हे तो हुए थे।

नम्रता चाची हम दोनों को चुदते हुए देख कर अपनी चूत को चार उंगलीओं से बेसब्री से चोद रहीं थीं।

मैं अचानक निर्मम चुदाई के प्रभाव से विचलित हॉट हुए भी चरम-आनंद के कगार पर जा पहुँची,"बड़े मामा मैं झड़ने वाले हूँ। मेरी चूत और मारिये। "

बड़े मामा को किसी भी उत्साहन की आवश्यकता नहीं थी। उनका अमानवीय विकराल लंड अब रेल के इंजन के पिस्टन की तरह मेरी फटी चूत में अंदर बाहर जा रहा था।

मीनू भी चीख मर कर झड़ गयी।

बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अब लम्बी चुदाई की रफ़्तार पकड़ ली।

जमुना दीदी और ऋतू मौसी की सिस्कारियां और भी ऊंची और तेज हो चलीं थीं।

उनके रति-स्खलन के बारे में कोई भ्रम नहीं रहा।

अगले एक घंटे तक हॉल में घुटी घुटते और हलक फाड़ सिस्कारियां गूँज रहीं थीं।सारे वातावरण में सम्भोग के मादक सुगंध व्याप्त हो गयी थी।

मेरे रति-निष्पति कि तो कोई गिनती ही नहीं थी। मैं न जाने कितनी बार झाड़ चुकी थी पर बड़े मामा तो मानो चुदाई के देवता बन गए थे। न वो रुकेंगे और न वो थकेंगें ।

जब बड़े मामा के महाकाय लंड ने उनके गरम जननक्षम वीर्य की बौछार मेरे गर्भाशय पर की तो मैं कामोन्माद के अतिरेक से थकी बेहोश सी हो गयी। उसके बाद के लम्बे क्षणों से मेरा सम्बन्ध टूट गया।

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55

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जब हम सब लोगों की कामाग्नि कम से कम कुछ क्षणों के लिए शांत हो गयी तब नम्रता चाची ने खाने की घोषणा कर दी।

"उब सारे पुरुषों के लंडों को थोडा भी है। आखिर इन विशाल हाथी जैसे लण्डों को मेरी बहिन के रन्डीपने की समस्या तो भी सुलझानी है। " नम्रता चाची ने बड़े मामा और सुरेश चाचा के लंडों को मेरी और मीनू की चोलियों से पोंछ कर हमें इनाम की तरह पेश किया, "देखो तुम दोनों के कौमार्यहरण की साक्षीण हैं खून से सनी तुम्हारी चोलिया। इन्हें सम्भाल कर रखना। "

मीनू और मैं दर्द के मारे टांगें चौड़ा कर चल रहे थे।

भोजन वाकई स्वादिष्ट था। सब पुरुष बियर और वाइन पी रहे थे। स्त्रियों ने शैम्पेन का रसा स्वाद कर रहीं थीं।

मीनू और मैंने भी उस क्षणों की मादकता में तीन गिलास पी लिए और थोड़ी मतवाली हो उठीं।

नम्रता चाची अपनी अश्लील टिप्प्णियों से अविरत ऋतू मौसी को अविरत भोजन के बीच चिढ़ाती रही।

" अरे,देखते रहो। आज इस रंडी की चूत और गांड फट कर ही रहेगी। मैंने सब महाकाय लंडों को सेहला कर फुसला दिया है। सारे लंडों ने मेरे कान में फुसफुसा कर घोषणा कर दी है कि आज शाम वो मेरी के भेष में चुद्दक्कड़ रंडी के हर चुदाई के छेदों को विदीर्ण कर भिन्न-भीं करने के लिए उत्सुक हैं। आज के बाद मेरी छोटी बहिन की चूत में रेल गाड़ी भी चली जाएंगीं और गांड में तो बस का गैराज बन जायेगा। " नम्रता चाची ने खिलखिला कर ऋतू को चिड़ाया।

हम सब पहले तो खूब हंसें फिर ऋतू मौसी तो नम्रता चाची को उचित उतना ही श्लील सरोत्कर के लिए उत्साहित करने लगे।

"थोड़ी देर में ऋतू मौसी ने मनमोहक मुस्कान के साथ जवाब दिया , "नम्मो दीदी, आप क्या बक-शक रहीं हैं। अरे जब क़ुतुब मीनार खो गयी थी तो दिल्ली की पुलिस ने उसे आपकी चूत से ही तो बरामद किया था। " मुश्किल से रुक पा रही थी।

लेकिन अभी ऋतू मौसी का सरोत्कर समाप्त नहीं हुआ था , "और पिताजी के लंड से सालों से चुद कर आपकी गांड और चूत इतनी फ़ैल गयीं हैं कि जब बस-चालक रास्ता भूल कर इन गहरायों में खों जाते है तो उन्हें महीनों लगते हैं वापस बहार आने में। "

हम सब ने तालियां बजा कर ऋतू मौसी के लाजवाब टिप्पिणि की कर प्रंशसा की।

नम्रता चाची भी अपने प्यारी बेटी जैसे छोटी बहिन के उत्तर से कुछ क्षणों के लिए लाजवाब हो गयीं पर फिर भी खूब ज़ोरों से हंसीं।

दोनों का इसी तरह का अश्लील आदान प्रदान चलता रहा। सारे पुरुष भी इसका आनंद उठाने लगी.

जब सब लोगों केई उदर-संतुष्टी हो गयी तो सबकी उदर के नीचे की भूख फिर से जाग उठी।

हम सब ऋतू मौसी को तैयार करने के लिए शयन-कक्ष में ले गए। जैसे जैसे उनके वस्त्र उतरे वैसे ही उनके दैव्य-सौंदर्य की उज्जवल धुप से हम सब चका-चौंध हो गए। ऋतू मौसी के बालकपन लिए चेहरे का अवर्णनीय सौंदर्य उनके देवी जैसे गदराये सुडौल घुमावों से भरे शरीर के स्त्री जनन मादकता से इंद्र भी उन्मुक्त नहीं रह पाते।

ऋतू मौसी ने सिर्फ चोली और लहंगा पहनने का निश्चय किया। उन्होंने न तो कंचुकी पहनी और न कोई झाँगिया।

उनका प्राकृतिक रूप से दमकता माखन जैसा कोमल शरीर और चेहरे को किसी भी श्रृंगार की आवश्यकता नहीं थी।

हम सब कुछ क्षणों के लिए ऋतू मौसी के अकथ्य सौंदर्य से अभीभूत हो चुप हो गए।

"अरे मैं इतनी बुरी लग रहीं तो बोल दो। चुप होने से तो काम नहीं चलेगा ना ," ऋतू मौसी लज्जा से लाल हो गयीं और उनके सौंदर्य में और भी निखार आ गया।

नम्रता चाची ने जल्दी से अपनी छोटी बहिन को अपने आलिंगन में ले कर उनका माथा चूम लिया, "अरे मेरी बिटिया को किसी की नज़र न लग जाये।" नम्रता चाची के प्यार की कोई सीमा नहीं थी।

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56

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अगले घंटे में हम सब फिर 'रस-वभन' में एक बार फिर से इकट्ठे हो गए। इस बार सारे मर्द दूसरी तरफ थे। हमारा प्यारा संजू लम्बे भारी भरकम पुरुषों के बीच में उसके बालकों जैसे चहरे से वो और भी नन्हा लग रहा था। पर उसके लोहे के खम्बे जैसे खड़े लंड में कोई भी नन्हापन नहीं था।

नम्रता चाची ने सब पुरुषों के लिए गिलासों को फिर से भर दिया। संजू उस दिन व्यक्त मर्दों में शामिल हो गया था। सही मात्र में मदिरा पान कामुकता को बड़ा सकता है। उसके प्रभाव से पुरुष यदि कोई अवरोधन हों भी तो मुक्त हो चलेंगें।

नम्रता चाची अपनी बहिन के लिए सारे पुरुषों की निर्दयी चुदाई के चाहत से विव्हल थीं।

नम्रता चाची ने सारे पुरुषों के बचे-कुचे न्यूनतम वस्त्रों को उत्तर दिया। छः महाकार के लंडों को देख कर हम सब नारियों की योनियों में रति-रस का सैलाब आ गया।

नम्रता चाची ने नाटकीय अंदाज़ में घोषणा की ,"अब आपके उपभोग के लिए आज रात की रंडी को अर्पण करने का समय आ गया है। आप सब मोटे, लम्बे, विकराल लंडों के स्वामियों से अनुरोध है कि इस रंडी की वासना की प्यास को पूरी तरह से भुझा दें। इस रंडी के हर चुदाई के छिद्र को अपने घोड़े जैसे लंडों से फाड़ दें। इसकी गांड की अपने हाथी जैसे वृहत्काय लंडों से धज्जियां उड़ा दें। उसकी गाड़ आज इतनी फट जानी चाहिये कि अगले तीन हफ़्तों तक इस रंडी को मलोत्सर्ग में होते दर्द से यह बिलबिला उठे।"

हम सब नम्रता चाची के अश्लील उद्घोषण से हसने की बजाय कामोन्माद से गरम हो गए। छह पुरुषों के पहले से ही थरकते लंडों में और भी उठान आ गया। मेरा तो छः महाकाय लंडों को इकठ्ठा देख कर हलक सूख गया। मुझे ऋतू मौसी के फ़िक्र होने लगी।

हम सब नम्रता चाची के अश्लील उद्घोषण से हसने की बजाय कामोन्माद से गरम हो गए। छह पुरुषों के पहले से ही थरकते लंडों में और भी उठान आ गया। मेरा तो छः महाकाय लंडों को इकठ्ठा देख कर हलक सूख गया। मुझे ऋतू मौसी के फ़िक्र होने लगी।

नम्रता चाची अभी पूर्ण रूप से संतुष नहीं थीं, "जो भी स्त्री इस सामूहिक सम्भोग के लिए रंडी बनने का सौभाग्य प्राप्त करती है वो इस लिए कि आप सब सब मर्यादा भूल कर अपने भीमकाय लंडों से उसकी हर वासनामयी क्षुदा की पूर्ण संतुष्टि करेंगें। और उसकी हार्दिक अपेक्षा कि आप सब उसे निम्न कोटि की सस्ती रंडी से भी निकृष्टतर मान कर उसे उसी तरह बर्ताव करें। "

नम्रता चाची ने अपने कोमल हाथों से बारी-बारी छः उन्नत विशाल लंडों को सहला कर अपनी छोटी सी घोषणा को समापन की और मोड़ा ," अंत में इस रंडी की हार्दिक चाहत है कि आज रात इसे आप निम्न कोटी की रंडी की तरह समझ कर इसे शौचालय की तरह इस्तेमाल करें। "

नम्रता चाची ने ऋतू मौसी का हाथ पकड़ कर एक बकरी की तरह खींच कर उन्हें छः निर्मम कठोर लंडों के हवाले कर दिया।

मनोहर नानाजी ने अपनी छोटी बेटी की चोली के बटन खोल कर उनके विशाल पर गोल उन्नत स्तनों को मुक्त कर दिया। ऋतू मौसी के भारी, कोमल, मलायी जैसे गोर उरोज़ अपने ही भार से थोड़े ढलक गए।

इनके होल होल हिलते मादक उरोज़ों ओ देख कर सारे लंड और भी थिरकने लगे। राज मौसा ने अपनी छोटी बहिन के लहंगे का नाड़ा खोल दिया और ऋतू मौसी का लहंगा लहरा कर उनके फुले गदराये भरे-भरे गोल उन्नत नीतिम्बो के मनमोहक घुमाव को और भी बड़ा-चढ़ा दिया।

ऋतू मौसी की गोल भरी-पूरी झाँगों के बीच में घघुंघराली झांटों से ढके ख़ज़ाने की ओर सब की नज़र टिक गयी। ऋतू मौसी की झांटें उनके रतिरस से भीग गयीं थीं। और उनसे एक हल्की सी मादक सुगंध रजनीगंधा और चमेली के फूलों की महक से मिल सारे पुरुषों की इंद्रियों पर धावा बोल दिया।

ऋतु मौसी के मोहक रति रस की सौंदाहटके प्रभाव से सब पुरुषों के नाममात्र के संयम के बाँध टूट गए।

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57

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छः अमानवीय विशाल लंडों के बीच में निरीह मृगनी की तरह घिरी ऋतु

मौसी को सब पुस्रुषों में मिल कर चूमना चाटना शुरू कर दिया। अनेक हाथ उनके थिरकते मादक विशाल उरोज़ों को मसलने मडोड़ने लगे। कई उंगलियां उनकी रेशमी घुंघराली झांटों को भाग कर उनकी कोमल योनि-पंखुण्डियों को खोल कर उनकी रति रस से भरे छूट की तंग गलियारे में घूंस गयीं।

ऋतू मौसी की ऊंची पहली सिकारी ने रात की रासलीला की माप-दंड को और भी उत्तर दिशा की और प्रगतिशील कर दिया।

"मम्मी, हमारे पास तो एक भे लंड नहीं है," मीनू कुनमुनाई। उसकी नन्ही गुलाबी चूत मादक रतिरस से भर उठी थी।

मीनू परेशान नहीं हो, हमने सारा इंतिज़ाम कर रखा है ," जमुना दीदी लपक कर भागीं और शीघ्र दो दो-मुहें बड़े मोटे ठोस नम्र रबड़ के बने लिंग के प्रतिरूप डिल्डो को विजय-पताका की तरह हिलाती हुईं वापस आयीं।

एक डिल्डो नम्रता चाची को दे कर उन्होंने दुसरे डिल्डो के बहुत मोटे पर थोड़े छोटे नकली लंड को सिसक कर अपनी योनि में घुसा कर डिल्डो की पत्तियां अपने झांघों और कमर पे बाँध कर एक मर्द की तरह लम्बे मोटे 'लंड' को अपने हाथ से सहलाती हुईं बोलीं ,"आजा मीनू रानी। तुम्हारे लिए लंड खड़ा है। यह लंड हमेश सख्त रहेगा। चाहे जितनी देर तक चाहो यह चोदने के लिए तैयार है।

नम्रता चाची भी तैयार थीं। उन्होंने सोफे पर बैठ कर मुझे अपनी और। खींचा मैं उनकी तरफ कमर करके धीरे धीरे उनके लम्बे मोटे लंड पर अपनी मुलायम चूत को टिका कर नीचे लगी। मैंने अपना निचला होंठ दबा कर थोड़े दर्द को दबाने का निष्फल प्रयास किया। बड़े मामा के निर्मम 'कौमार्यभंग' से फटी मेरी चूत जैसे जैसे नम्रता चाची के 'लंड' को भीतर लेने लगी उसमे उपजे दर्द से मैं बिलबिला उठी।

"नेहा बेटी, बड़े मामा के लंड को तो बड़े लपक के अपनी चूत में निगल रहीं थीं। क्या चाची के लंड आया और इतना बिलबुला रही हो?" नमृता चाची ने मेरे दोनों फड़कते स्तनों को कस कर मसल दिया।

चाची ने अपने भारी चूतड़ों को कास ऊपर धकेला और मेरे कमसिन चूचियों को को कस कर मसलते हुए मुझे नीच दबाते हुए अपना नकली लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा जड़ तक ढूंस दिया। मेरी सिसकती चीख के बिना नम्रता चाची मर्दों की तरह बेदर्दी से मेरे उरोज़ों को मसल कर बोलीं, "नेहा बेटी आज आई है बकरी ऊँट के नीचे। अपनी चूत और गांड को घर के हर लंड से चुदवा चुकी अब चाची की बारी है। मैं नहीं छोड़ने वाले अपने प्यारी बेटी को बिना चूत और गांड फाड़े। "

मैं भी वासना के ज्वार से भभक उठी , "चाची आप भी चोद लीजिये मेरी चूत। "

जमुना दीदी भी मीनू को भीच कर अपने लंड पे बिठा रहीं थी ,"ठीक है मीनू यदि तुम्हारी चूत अभी दर्दीली है तो गांड मरवाओ। पर आज रात तुम्हारी मस्तानी चूत मारे बिना तुम्हे नहीं छोड़ने वाले तुम्हारी जमुना दीदी। "

जमुना दीदी अपने थूक और मीनू के चूत के रस से सने चिकने भरी रबड़ के लंड को इंच इंच करके मीनू की गांड में डालने लंगी। मीनू ने होंठों को दबा कर गांड में उपजे दर्द को घूंट कर पी जाने का प्रयास किया। पर जमुना दीदी भी खेली-खाईं थीं। उन्होंने डिल्डो की सात इंच मीनू की गांड में ठूंस उसकी गोल कमर को मज़बूती से पकड़ कर नीचे खींचते हुए अपने 'लंड' को पूरी ताकत से ऊपर धकेला।

"ऊईईईई दीदी मैं मर गयी। मेरी गांड फाड़ दी आपने तो।" मीनू बिलबिलायी।

"मीनू रानी अभी कहाँ फटी है आपकी गांड। आपकी गांड तो अभी मुझे फाड़नी है। वैसे भी अपने डैडी से गांड फड़वाने में आपको कोई तकलीफ नहीं होती?" जमुना दीदी ने मीनू के सीने पे तने चूचुकों को कस कर निचोड़ कर उसे अपने 'लंड' पे बेदर्दी से दबा लिया।

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58

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छः मर्दों ने ऋतु मौसी को घुटनों पे बिठा कर उनके पुनः को बारी-बारी अपने विकराल लंड से चोदना शुरू कर दिया था। ऋतु मौसी घूम कर घूम कर सबके लंड की बराबर आवभगत कर रहीं थीं। उनके गोरे मुलायम छोटे छोटे नाज़ुक हाथ मर्दों के बालों से भरे भरी चूतड़ों को सहला रहे थे। जब संजू की बारी आते थी तो ऋतु मौसी उसके चिकने मखमली चूतड़ों को औए भी प्यार से मसल देंतीं।

छहों अपने लंड को बेदारी से ऋतू मौसी के मुंह में धकेलने लगे। ऋतु मौसी की उबकाई की जैसी 'गों गों' की निसहाय गला घोंटू आवाज़ें हॉल में गूंज उठीं। उनकी भूरी आँखें आंसुओं से भर उठीं।

उनकी लार उनकी थोड़ी से होती हुई उनके फड़कते नाचते उरोज़ों को नहलाने लगी। जितनी ज़ोर से ऋतु मौसी की 'गों गों' होती जातीं उतनी ज़ोर से ही हर लंड उनका मुँह चोदने लगता। ऋतू मौसी का मनमोहक सीना उनके अपने थूक से सराबोर हो गया।

ऋतु मौसी जो लंड भी उनके मुँह को बेदर्दी से चोद रहा होता उसके चूतड़ों को कस कर दबा कर और भी उसके लंड को अपने हलक में घोंटने की कोशिश करतीं।

लगातार गला घोंटू चुदाई की वजह से ऋतु मौसी की आँखे बरसने लगीं। उनके आँसूं उनकी सुंदर नासिका में बह चले।

बारी बारी से मुँह चोदने के प्रकिर्या से हर लंड झड़ने से मीलों दूर था।

जितना अधिक ऋतु मौसी सिसकती हुई गों गों करती उतनी और निर्ममता से हर एक लंड उनका गला चोदता।

उनका सुंदर चेहरा उनके आंसुओ, थूक और बहती नाक से मलीन हो गया। मुझे विश्वास था कि हर पुरुष उनके दैव्य सौंदर्य को मलिन कर और भी सुंदर बना रहा था।

ऋतू मौसी बेदर्दी से होती अपने लिंग चूषण से इतनी उत्तेजित हो गयी कि हर दस मिनट पर वो झड़ने लगीं।

जब उनका रति-स्खलन होता तो उनका सारा शरीर उठता जैसे कि उन्हें तीव्र ज्वर ने जकड़ लिया हो।

उनके आखिरी चरम-आनंद ने उन्हें बहुत शिथिल कर दिया और वो फर्श पर ढलक गयीं।

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नम्रता चाची ने मुझे अपने नकली लंड पर ऊपर नीचे होने में मदद कर पूरे घंटे से चोद रहीं थीं। मैं अनगिनत बार झड़ चुकी थी। मेरी चूत बड़े मामा की बेदर्द और चाची की बेदर्द चुदाई से रिरयाने लगी। उनके छूट में फांसे लंड ने उन्हें भी मेरी तरह बार बार झाड़ दिया था।

नम्रता चाची ने मेरे दोनों उरोज़ों का लतमर्दन कर उन्हें लाल कर दिया था। मेरे चूचुक तो उनके मसलने और खींचने से सूज गए थे।

उनके पर्वत से विशाल भारी स्तन मेरे पीठ को रगड़ कर मेरे वासना के उन्माद को हर क्षण बढ़ावा दे रहे थे।

उधर जमुना दीदी ने थकी मांदी मीनू को घोड़ी बना कर उसे पीछे से मर्द की तरह लम्बे ज़ोरदार धक्कों से उसकी गांड की हालत ख़राब कर रहीं थीं। मीनू ज़ोरों से सिसक रही थी। उसके हिलते शरीर के कम्पन से साफ़ प्रत्यक्ष था कि उसके रति-निष्पत्ति अब एक लगातार लहर में हो रही थी।

"मीनू रानी तुम्हारी मखमली गांड की चुदाई करते हुए मैं तो न जाने कितनी बार आ चुकीं हूँ। हाय मेरे पास पापाजी जैसा वास्तविक लंड होता। " जमुना दीदी सिसक कर फिर से झड़ते हुए मीनू की गांड में नकली लंड को लम्बी ज़ोरदार ठोकरों से रेल के पिस्टन की तरह अंदर बाहर धकेल रहीं थीं।

मीनू की महकभरी की गांड की सुगंध से वातावरण की हवा सुगन्धित हो चली थी।

जमुना दीदी के रबड़ के लंड पर मीनू की गांड का महक भरा रस सन चूका था, "मीनू देख मेरे लंड पर तेरी गांड का रस कैसे चमक रहा है। जब चुदाई से मैं संतुष हो जाऊंगीं तो मेरे लंड को चाट कर साफ़ करेगी। गांड की चुदाई का प्रशाद चाहिये ना?" जमुना दीदी कामोन्माद से जलती हुईं घुटी घुटी आवाज़ से सिसक कर बोल रहीं थीं।

"हाँ दीदी, मैं आपका लंड कर चमका दूंगी। मेरी गांड से निकले आपके लंड को मुझे ज़रूर चुस्वाना।" मीनू बिलबिलाते हुए सिस्कारियां मार कर अपनी गांड जमुना दीदी के मोटे लंड के ऊपर पटक रही थी।

जमुना दीदी ने अपने रति-निष्पत्ति से सुलगते हुए मीनू के थरकते चूतड़ों पर ज़ोर से तीन चार थप्पड़ तड़ाक से जमा दिए। मीनू की घुटी चीखों में दर्द थोड़ा कामोन्माद अधिक था।

जमुना दीदी की मीनू की गांड की चुदाई घर के किसी भी पुरुष की चुदाई तुलना में बीस से बहुत दूर नहीं थी।

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59

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नानाजी गुर्रा कर बोले, " इस रंडी की की मुंह-चुदाई से तो हम में से एक भी नहीं झड़ा। देखें इसकी चूत कुछ बेहतर हो शायद?"

उन्होंने अपनी सुंदर बेटी का गदराया लज्जत भरा शरीर को उठा कर घोड़ी बना सोफे पर टिका दिया। उस ऊंचाई से लम्बे मर्दों को झुकने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

उनका अपनी बेटी पर प्राकृतिक अधिकार था और उन्होंने अपने घोड़े जैसे वृहत ऋतु मौसी के थूक, आंसुओं से सने लंड को उनकी रति-रस से भरी चूत में तीन षण -पंजर हिला धक्के से धक्कों से मोटी जड़ तक ठूंस दिया। सुरेश चाचा ने उनके मौंग के आगे बैठ कर अपना लंड ऋतू मौसी के सिसकते हाँफते खुले मुँह में ठूंस दिया। दोनों ने ठीक शुरूआत से ही ऋतू की चुदाई जानलेवा धक्कों से करनी शुरू कर दी। ऋतु मौसी के हलक से एक बार फिर से घुटने की गों गों आवाज़ें उबलने लगीं।

राज मौसा और बड़े मामा ने ऋतु मौसी के एक एक हिलते मनमोहक स्तनों को मसलना रगड़ना शुरू कर दिया। संजू और गंगा बाबा ने ऋतु मौसी के नाजुक हाथों को अपने भूखे लंडों को सहलाने के लिए उनके ऊपर रख दिया। ऋतु मौसी का सर सुरेश चाचा अपने लंड पर दबा रहे थे।

मनोहर नानू ऋतु मौसी के थिरकते चूतड़ों को जकड़ कर अपने लंड से उनकी चूत लतमर्दन निर्मम धक्कों से करने लगे। ऋतु मौसी वासना की आग में जलती रिरिया रहीं थीं। उनकी सिस्कारियां उनके घुटते गले से और भी मादक हो गयीं।

जैसे ही ऋतू मौसी मचल कर झड़ने लगीं तो सुरेश चाचा और नानू ने अपने लंड निकाल कर बड़े मामा और गंगा बाबा को चोदने का मौका दिया।

गंगा बाबा ने ऋतु मौसी की चूत हथिया ली। बड़े मामा ने ऋतू मौसी के सुंदर मलिन चेहरे को और भी बेदर्दी से छोड़ना प्रारम्भ कर दिया।

गंगा बाबा ने अपना लंड जैसे ही ऋतू मौसी का शरीर उनकी रति -निष्पत्ति से कपकपाने लगा भर निकल लिया। राज मौसा ने अपनी बहन की चूत में अपना लंड दो विध्वंसक धक्कों से ढूंस कर ऋतू मौसी की भीषण चुदाई की लहर को निरंतर कायम रखा। संजू ने अपनी प्यारी देवी सामान मौसी के मलिन सुबकते चेहरे को उठा कर पहले प्यार से चाट कर साफ़ कर लिया। ऋतू मौसी के सुंदर नथुने उनकी वासना के अतिरेक से हांफने से फड़क रहे थे। संजू ने अपनी जीभ की नोक से ऋतु मौसी के दोनों फड़कते नथुनों को चोदने लगा।

ऋतु मौसी की सिस्कारियों में अनुनासिक ध्वनि मिल गयी।

संजू ने कुछ देर बाद अपने मुँह को अपने थूक से भर कर ऋतु मौसी के खुले हाँफते मुँह को भर दिया। मौसी ने सिसक कर सटकने की कोशिश की पर संजू के बेसब्र लंड ने उनके मुँह एक बार फिर से चोदने के लिए ठूंस दिया।