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Click hereजब अक्कू दुबारा मम्मी की चूत में झाड़ा तब तक मम्मी अनगिनत अविरत चरमानंद के अतिरेक से अभिभूत हो बिस्तर पर निष्चल ढलक गयीं।
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मैं अपने अनगिनत चरम-आनन्दों की बौछारों से विचलित हो कर पापा से लिपट गयी। पापा ने दोनों उभरते उरोज़ों को अपने विशाल हाथों में भर कर मसलते हुए मुझे प्यार से चूमा। मेरे दमकते चेहरे पर पसीने की बूँदें फ़ैल गयीं थीं। रात की रानी की सुगंध हौले से कमरे में समा कर हमारे अगम्यगमनी सम्भोग के रस के महक से मिल गयी।
अक्कू ने मम्मी के पसीने से चमकते सुंदर मुंह को चूम चूम कर और कर दिया।
मम्मी ने मुस्करा कर कहा ,"मेरे लाडले का मूसल लंड अभी भी अपनी माँ की चूत में तनतना रहा है। अब अक्कू तू मेरे कर मुझे और चोद। "
मम्मी ने पलट कर अपना मांसल गदराया दैव्य सैंदर्य से भरा शरीर अक्कू के लिए पूरा खोल दिया।
अक्कू ने मम्मी के गदराई जांघों को फैला कर अपना लंड मम्मी के मलाशय के छोटे से छेद पर लगा कर एक ज़ोर का धक्का मारा ।
"ह्ह्ह्य अक्कू कितने बेदर्दी से तुमने मेरी गांड में अपना मोटा लंड घुसा दिया?" मम्मी के उल्हने में वात्सल्य, वासना की उमंग और अक्कू के सम्भोग-कौशल के लिए गर्व भी।
अक्कू ने मुस्करा कर मम्मी के अध-खुले मीठे मुंह के ऊपर अपना मुंह दबा लिया और भीषण धक्कों से अपना पूरा लंड मम्मी के में जड़ तक ठूंस दिया।
मम्मी बिलबिला उठीं पर उनकी चीखें अक्कू के मुंह में दब गयीं।
मैंने तड़प कर पापा से कहा ,"पापा, अब मुझसे नहीं रहा जाता। प्लीज़ मुझे अब चोदिये। "
पापा ने मुझे प्यार से पलंग पर लिटा दिया और पलंग के पास की मेज पर राखी शीशी से द्रव्य अपने महाकाय लंड के ऊपर बूँद बूँद टपका कर उसे गोले के तेल से नहला दिया। मेरे शरीर और मन में सन्निकट पापा के विकराल लंड के आक्रमण के विचार से सनसनी फ़ैल गयी।
ना चाहते हुए भी मेरे होंठों से मेरे मस्तिष्क में मचलते शब्द निकल गए ," पापा क्या मैं आपका इतना अपने चूत में ले पाऊंगीं? "
पापा ने मेरी गोल मांसल जांघों को पूरा फैला कर अपना लंड का अविश्विसनीय महाकाय सुपाड़ा मेरी कुंवारी अक्षतयोनी के तंग रति रस से लबलबाये संकरे द्वार के ऊपर टिका कर कोमलता से मुझे सान्तवना दी ," सुशी बेटा जितना लंड तुम आराम से ले पाओगी उतने से ही तुम्हे चोदूंगा। "
मेरे हृदय में हलचल मच उठी। मैंने अपने डर को दिखा कर पापा को मुझे मम्मी की तरह चोदने से संकुचित कर दिया। मैंने मन ही मन अपने को प्रतारणा दी और जल्दी से बोल उठी, "पापा मेरा वो मतलब नहीं था। मैं तो आपके आनंद के बारे में सोच रही थी। यदि आप मुझे मम्मी के समान नहीं चोद पाये तो मुझे बहुत बुरा लगेगा। आप मुझे अपने पूरे लंड से चोदियेगा पापा, प्लीज़। यदि आपने अपना पूरा लंड मेरी चूत में नहीं डाला तो मैं आपसे कभी भी बात नहीं करूंगीं।
पापा ने हलके से हंस कर मुझे कस कर चूमा , "मैं अपनी प्यारी बेटी को क्या कभी नाराज़ कर सकता हूँ। पर बेटा जब मैं लंड अंदर डालूँगा तो तुम्हे दर्द होगा। सुशी तुम अपने पापा को क्षमा कर दोगी न तुम्हे दर्द करने के लिए। "
"पापा, आप मुझे लड़की से स्त्री बना रहे हैं। पहली बार की चुदाई में दर्द तो होगा ही। उस दर्द में आपका मेरे लिए प्रेम भी तो मिश्रित होगा। आप मेरे दर्द की बिलकुल फ़िक्र न करें। " मैंने पापा के सुन्दर मुंह को चुम कर उन्हें उत्साहना दी।
पापा ने अपना भारी विशाल शरीर से मेरा नन्हा अविकसित मुश्किल से किशोरावस्था के पहले वर्ष के विकास से भरा शरीर को धक दिया।
पापा ने मेरे मुंह को अपने मुंह से दबा कर कर अपना महाकाय लंड का सुपाड़ा मेरी नन्ही कमसिन अविकसित चूत में दबाने लगे। मैं अपनी चूत को फैलता हुआ महसूस कर बिलबिला उठी।
पापा ने मुझे अपने नीचे दबा कर निस्सहाय कर दिया था। मेरी चूत का संकरा गलियारा पापा के विकराल लंड के सुपाड़े के प्रभाव से फैलने लगा। पापा ने एक बेदर्द धक्के से पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में धकेल दिया। मेरी चीख मेरे रुआंसे मुंह से उबल पड़ी।
मेरे नाख़ून पापा के बलशाली बाज़ुओं की त्वचा में गढ़ गए। पापा ने मुझे नन्ही बकरी के तरह दबोच कर एक और भीषण धक्का मारा। उनका विशाल अमानुषिक लंड के कुछ इंच मेरी चूत में उस तरह प्रवेश हो गए जैसे मस्त हाथी गन्ने के खेत में घुस जाता है। मैं दर्द के अधिकाय से बिलबिला उठी। मेरी आँखों में गरम आंसू भर गए। मेरी चीख पापा ने मुंह में भर गयी। पापा का भीमकाय सुपाड़ा मेरे कौमार्य के यौनिच्छिद के ऊपर ठोकर मार रहा था। पापा ने मुझे कस कर दबा कर एक और दानवीय धक्का मारा और मैं दर्द के आधिक्य से लगभग मूर्छित हो गयी। मुझे लगा मानो मेरी नन्ही चूत में किसी ने एक तपता हुआ लोहे का खम्बा घुसा दिया हो।
मेरे शरीर में दर्द से भरी अकड़न ने मेरे कौमार्य-भांग की पीड़ा को और भी उन्नत कर दिया।
मैं खुल कर दर्द से चीख भी नहीं पा रही थी। पापा ने मेरे कौमार्य की धज्जियां उड़ा दी। मैं दर्द से बिलबिला रही थी और मुझे पता भी नहीं चला और पापा ने निरंतर निर्दयी धक्कों से अपना आधे से भी ज़्यादा लंड मेरी नहीं चूत में ठूंस दिया था। पापा ने मुझे उतने लंड से ही चोदना शुरू कर दिया। मेरी आँखे दो नदियों की तरह बह रहीं थीं। मेरे सुबकाईयां पापा के मुंह में थिरक रहीं थीं। मुझे लगा की पापा का लंड मेरी जान ले लेगा।
पापा ने मुझे निर्ममता से अपने विशाल शरीर के नीचे दबा कर अपने अमानुषिक लंड के प्रहारों से बोझिल कर दिया। पापा का लंड मेरी तड़पती चूत को छोड़ने के लिए व्याकुल था। पापा ने अपने लंड को बाहर खींच कर फिर से मेरी चूत के ऊपर आक्रमण किया। मेरा सारा शरीर मेरे कौमार्य-भंग की पीड़ा से पसीने से नहा गया। मेरा मस्तिष्क मेरी योनि में से उपजे अविश्विसनीय पीड़ा से लस्त हो उठा। मेरे आँखों से अविरत गरम आंसूओं की धारायें बह रहीं थी।
पापा ने दृढ़ संकल्प से एक भीषण धक्के के बाद दुसरे निर्मम धक्कों से मेरी चूत में अपना सम्पूर्ण विकराल लंड जड़ तक ठूंस दिया। मेरे सुबकाईयां मेरे दर्द की गवाही दे रहीं थीं। मेरी उम्र की कई लडकियां तो लंड के मारे में सोच भी पातीं जबकि मैं अपने पापा के महाकाय लंड के ऊपर फांसी तड़प रही थी।
पापा ने मेरे आंसुओं की उपेक्षा कर अपने विशाल लंड से मुझे चोदने लगे।
मेरी चूत में मानों आग जल उठी। मेरी नहीं चूत अभी भी पापा के महाकाय लंड को सँभालने में असमर्थ थी। पर पापा संकल्प से अपने लंड से मेरी चूत को खोलने के प्रयत्न में सलग्न हो गए। पापा ने मेरे तड़पने को अनदेखा कर अपने लंड को धीरे धीरे पर दृढ़ता से मेरी चूत में से बाहर निकाल कर उसे फिर से मेरी संतप्त योनि में जड़ तक घुसेड़ रहे थे।
न जाने कितने समय के बाद अचानक पापा का लंड मेरी चूत में बहुत आराम से आवागमन करने लगा। मेरी चूत में अब भीषण दर्द की जगह अब बर्दाश्त करने जैसा दर्द हो रहा था जिसमे एक मीठापन भी मिश्रित हो गया था।
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पापा ने मेरे लाल वासना और दर्द से दमकते चेहरे को अपने विशाल हाथों में भर कर मेरे अधखुले सुबकते मुंह को अपने मुंह में भर लिया। उनके भारी मीठे होंठ मेरे फड़कते नाज़ुक होंठों को चूसने लगे। मैंने सुबकते हुए पापा को वापस चूमा।
पापा ने अपना वृहत लंड मेरी चूत से निकाला। उनका विशाल लंड मेरे कौमार्य-भांग के प्रमाण के रस से लाल हो गया था। पापा ने एक लम्बे धक्के से अपना लंड एक बार फिर से मेरी संकरी कुछ क्षणों पहले कुंवारी योनि में जड़ तक ठूंस दिया। मैं बिलबिला कर फिर से सुबक उठी। मेरी नन्ही बाहें पापा के गले का हार बन गयीं।
पापा ने अब बिना रुके मेरी चूत का मर्दन प्रारम्भ कर दिया। उनका अमानुषिक विकराल लंड मेरी चूत को मथने लगा। पापा के भारी कूल्हे हर धक्के के बाद और भी प्रयत्न और तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगे। उनके कूल्हों की ताकत उनके प्रचंड लंड को मेरी चूत में अविरल क्षमता से गूंद रही थी।
"पापा ... हाय ... बहुत ... आअन्न्न्न्ह्ह्ह्ह ...पाआआ ... पाआआ उउउन्न्न्न ... मर्र्र्र्र गयीईई ... पाआआ ...पाआआ ," मैं वासना, पीड़ा और पापा की ओर आदर के मिश्रण से बिलखती चीख उठी।
पापा ने मेरी अपरिपक्व अभिभावों की उपेक्ष्ा कर मेरी चूत का मर्दन और भी भीषण धक्कों से करने लगे।
मेरी सुबकाईयां शीघ्र सिस्कारियों में बदल गयीं। मेरी चूत में अब अनोखा दर्द हो रहा था। ऐसे दर्द का अनुभव मुझे मेरी गांड में भी हुआ था जब अक्कू ने मेरी कुंवारी गांड का लतमर्दन किया था।
मेरी आँखे मम्मी और अक्कू की सिस्कारियों को सुन कर उनकी तरफ मुड़ गयीं। अक्कू मम्मी की मांसल भारी जांघों को उनके कन्धों की ओर मोड़ कर उनकी गांड भीषण निर्मम धक्कों से मर्दन कर रहा था। अक्कू के हर धक्के से मम्मी का सारा गदराया शरीर हिल उठता था। उनके भारी विशाल स्तन हर धक्के से हिल उठते थे। जब तक मम्मी के उरोज़ स्थिर हो पाते अक्कू का दूसरा धक्का उनको फिर से इतनी ज़ोर से हिला देता था मानों वो उड़ान के लिए तैयार थे।
मम्मी की सिस्कारियां संगीत के स्वरों की तरह रजनीगंधा की सुगंध की तरह कमरे में फ़ैल गयीं।
मम्मी सिसक कर चरम आनंद के प्रभाव से विहल हो कर चीखीं ,"अक्कू और ज़ोर से मेरी गांड चोदो। मैं फिर से झड़ने वालीं हूँ। अक्कू ...ऊ... ऊ... ऊ। आआह... बेटाआआ...। "
मेरा ध्यान मेरे अपने रति-निष्पति के अतिरेक से अपनी चूत पर केंद्रित हो गया। मेरी बाहें पापा की गर्दन पे जकड़ गयीं, "पापाआआआ आआअह उउउन्न्न्न्न्न मैं आआअह पापाआआ। "
पापा का लंड अब फचक फचक की आवाज़ें बनाता हुआ मेरे चूत को रेल के इंजिन के पिस्टन की तरह रौंद रहा था।
मम्मी पापा का कक्ष मेरी और मम्मी की सिाकारियों से गूँज उठा। हम दोनों की सिस्ज्कारियों में कभी कभी पापा और अक्कू की गुरगुराहट भी संगीत के सांगत की तरह शामिल हो जातीं थीं।
अगले घंटे तक तक मेरी सिस्कारियां और आनंद भरे दर्द के सुबकाइयों ने मेरे कानों को भर दिया। जब अक्कू ने मम्मी की गांड में अपना लंड खोला तो उनकी चीख निकल उठी और वो एक बात फिर से झड़ गयीं।
पापा ने मुझे कहने के बाद अपने अमानवीय लंड के गाढ़े सफ़ेद जननक्षम वीर्य के बारिश से मेरी अविकसित चूत गर्भाशय को सराबोर कर दिया।
मैं अचानक फिर से झड़ गयी और इस बार के रति-निष्पति के आधिक्य से मैं लगभग मूर्छित हो गयी।
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उस रात पापा ने मेरी गांड बड़ी देदर्दी से मारी। मैं पहले दर्द सी बिलबिला गयी पर वो मीठी आग में बदल गया। मम्मी ने अक्कू और पापा के लंड इकट्ठे लिए, एक गांड दूसरा चूत में। उनके उफ़्फ़नते आनंद को देख कर मुझे जूनून चढ़ गया। जब पापा का वृहत लंड मेरी चूत में समां गया तो अक्कू ने अपना लंड निर्ममता से मेरी गांड में जड़ तक ठूंस दिया। मैं दर्द से चीख उठी पर पहले की तरह कुछ देर में मेरे दर्द की लहर आनंद की बौछार में बदल गयी।
उस रात पापा और अक्कू ने मम्मी मुझे सारी रात चोदा ।
उस दिन के बाद से शाम को स्कूल से आने के बाद जब हम दोनों स्कूल का कार्य निबटा लेते थे तब पापा मुझे जम कर चोदते और मम्मी अक्कू से चुदवातीं थीं। रात को भोजन के बाद हमेशा की तरह अक्कू और मैं रात सोने से पहले घनघोर चुदाई करते थे।
कुछ सालों में स्कूल हमारी दोस्ती इन महाशय से गयी, बुआ ने छोटे मामा को प्यार से चूम कहा , और फिर हमें पता चला कि हमारी तरह एक और परिवार समाज के तंग प्रतिबंधों से मुक्त था। सुनी ( सुनीता, मेरी मम्मी), रवि भैया और आप अपने मम्मी और डैडी के साथ पूर्ण रूप से हर आनंद में सलंग्न थे।
उसके बाद कहानी तो आप दोनों को खूब अच्छे से पता है।
मैं दरवाज़े से लगी संस्मरण सुन कर न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। मेरी उँगलियों ने मानों अपने आप बिना मेरे निरणय के मेरी चूत को सारे समय मठ दिया था। मैंने बिना सोचे अपने रति सराबोर लिसलिसी उँगलियों को अपने मुंह में डाल लिया और मेरा मुंह मेरे रस की मिठास से भर गया। मैं मानसिक और शारीरिक शिथिलता से ग्रस्त हो चली थी। मैं व्यग्रता से अपने कमरे की ओर भाग गयी। कमरे में पहुँचते ही मैंने अपने वस्त्र उत्तर कर बिस्तर में निढाल लुढ़क गयी। बिना एक क्षण बीते मैं निंद्रा देवी गहन गोड में समा गयी।
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सारी रात मुझे एक के बाद एक वासना में लिप्त सपनों ने घेरे रखा। सारे स्वप्नों में मैं परिवार के एक या दुसरे सदस्य के साथ सम्भोग में सलंग्न थी। आखिर के सपने में सुशी बुआ ने मुझे अपनी बाँहों में जकड रखा था और वो भी निवस्त्र थीं।
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"अरे प्यारी भतीजी जी अपनी बुआ के लिए अब तो ज़रा से अपने चक्षुओं को खोल दीजिये ," बुआ वास्तव में निवस्त्र मुझे अपनी बाँहों में भरे हुए मुझे प्यार से चूम रहीं थीं।
मैंने शर्म से अपने लाल जलता हुआ मुंह बुआ के विशल मुलायम स्तनों के बीच छुपा लिया। बुआ ने मेरा मुंह ऊपर उठा कर मेरे जलते होंठों पर अपने कोमल होंठ रख कर हौले से कहा , "अच्छा यह बताओ कल हमारे परिवारों की घनिष्ठता की कहानी सुन कर तुम कितनी बार झड़ी थीं। "
मेरे आश्चर्य से खुले मुंह का लाभ बुआ ने उठाया और उनकी मीठी जीभ मेरे सुबह सवेरे के मुंह में प्रविष्ट हो गयी।
मेरी बाँहों ने भी स्वतः बुआ को घेर लिया। मैंने भी बुआ के जीभ से अपनी जीभ भिड़ा दी। बुआ की मीठी लार जैसे ही मेरा मुंह भर देती मैं उसे सटक जाती। बुआ और मैं गहन भावुक चुम्बन में पूर्णतया सलंग्न हो कर हलके हलके 'उम' 'उम' की आवाज़ें बनाते हुए एक दुसरे के सुबह के अनधुले मुंह के स्वाद के लिए
तड़प रहे थे।
आखिर बुआ ने मेरे पूरे मुंह को अपनी जीभ से तलाश कर संतुष्टि से मुझे हलके से चूमा।
"बुई आपको कैसे पता चला कि मैं दरवाज़े पर थी?" मैंने बुआ पीठ हांथों से सहलाया।
"अपने बच्चों के लिए माँ की छठी इंद्री बहुत तीक्षण होती है ," बुआ ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए मुझे और भी कास कर पकड़ लिया, "नेहा अब तो मुझे तुम्हारे सुबह के मीठे मुंह के स्वाद की आदत पड़ जाएगी। "
मैंने शरमाते हुए बुआ से कहा , "आप जब चाहें," फिर मुझे रात की एक बात याद आयी , "बुआ क्या दोनों मामा ने आपको एक साथ उम... चो... चोदा?" आखिर में 'च' शब्द मेरे मुंह से निकल ही गया।
"नेहा एक बार नहीं तीन बार। मेरी चूत और गांड दोनों के वीर्य से है। तुम्हारा मन हो तो मैं ... ," बुआ के अधूरे प्रस्ताव से ही मेरी चमकती आँखे और अधखुले लालची मुंह ने मेरी तीव्र इच्छा का विवरण बुआ को दे दिया।
बुआ अंजू भाभी की तरह अपने दोनों घुटने मेरे दोनों ओर रख कर पहले रेशमी झांटों ढकी मेरे दोनों मामाओं सनी चूत तो खोल कर मेरे खुले मुंह के ऊपर रख दिया। धीरे धीरे उनकी महकती चूत से लिसलिसी गाढ़ी धार मेरे खुले मुंह में टपकने लगी। मैंने भी बुआ के चूत के कोमल सूजे भगोष्ठों को चूम कर उनके मोटे लम्बे भगशिश्न को जीभ से कुरेद दिया। जब मैंने बुआ की चूत से सारा खज़ाना चाट लिया तो उन्होंने अपनी दूसरी गुफा के को मेरे मुंह के ऊपर। बुआ के भारी विशाल गोरे नितिम्बों के बीच उनकी नन्ही सी गुदा का छिद्र उनके ज़ोर लगाने से खुल गया। उनकी अनोखी मनमोहक सुगंध ने मुझे भावविभोर कर दिया। बुआ ज़ोर लगा कर अपनी मलाशय से गाढ़े वीर्य की लिसलिसी धार आखिर में मेरे मुंह की ओर प्रवाहित करने में सफल हो गयीं। दोनों मामा के वीर्य का रंग और सुगंध बुआ की गांड के रंग और सुगंध से मिल कर और भी मोहक हो गया था।
मैंने जितना भी खज़ाना बुआ की गांड से मिल सकता था उसे लपक कर चाट लिया और धन्यवाद के रूप में गांड को अपनी जीभ लगी। बुआ की सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया कर दिया ।
बुआ जल्दी से मुड़ीं और शीघ्र वो मेरे ऊपर लेती हुईं थीं। अब उनका मुंह मेरी गीली चूत के ऊपर था। मैंने दोनों हाथों से बुआ के प्रचुर नितिम्बों को जकड कर उनकी रसीली चूत ऊपर अपना मुंह दबा दिया। बुआ ने अपने होंठों में मेरे कोमल छोटे भगोष्ठों को कस कर पकड़ कर चूसने लगीं। उनके मीठा दर्द हुआ और मैंने भी उनके बड़े मोटे भग-शिश्न को हौले से दाँतों से चुभलाने लगी। हम दोनों की सिस्कारियां एक दुसरे को प्रोत्साहन सा दें रहीं थीं। मैंने अपने दोनों घुटने मोड़ कर फैला दिए जिस से बुआ को मेरी चूत और गांड और भी आमंत्रित कर रही थी। मैं अब बुआ के चूत की संकरी गुफा को चोदने लगी। बुआ ने भी अपने एक गीली उंगली हलके से मेरी तंग गांड में सरका दी और ज़ोर से मेरे भग -शिश्न को चूसने, चूमने और अपनी जीभ से चुभलाने लगीं।
उनकी देखा देखी अपनी तर्जनी बुआ की गांड में जोड़ तक डाल दी। अब हम दोनों एक दुसरे की गांड अपनी उंगली से मार रहे थे और अपने मुंह से एक दुसरे मठ थे।
हम दोनों पहले से ही बहुत उत्तेजित थे। कुछ मिनटों में हम लगभग इक्कट्ठे हल्की से चीख मार झड़ने लगीं। बुआ कुछ अपनी साँसे सँभालते हुए फिर से मुड़ कर मुझे बाँहों में ले कर लेट गयीं।
"नेहा बिटिया , अब तो तुम्हारा सारा परिवार तुम्हारे प्यारे सौंदर्य के प्रसाद के लिए उत्सुक है ," बुआ ने मेरे मुंह को चूमते हुए कहा। हम दोनों का रति रस एक दुसरे के मुंह के ऊपर लिसड़ गया।
"बुआ , मुझे शर्म आती है ," मारी लज्जा अभी भी मुझे रोक रही थी।
"अरे बड़े मामा के हल्लवी लंड को तो कूद कूद के लेने से नहीं हिचकिचाई अब शर्म किस बात की?" बुआ ने मेरी सारी नाक अपने मुंह में ले कर उसे चूमने और काटने लगीं।
"बुआ मैं बड़े मामा के बाद किस के पास जाऊं?" मैंने आखिर अपनी ईच्छाओं के लिए अपनी लज्जा को समर्पित करने का निर्णय ले लिया।
"नेहा बेटी निर्णय तो तुम्हारा है पर जब तुमने पूछा है शायद नानाजी को तुम्हारा इंतज़ार बहुत दिनों से है ," बुआ ने मेरे दोनों कस कर कहा।
मैं ने शरमाते हुए सर हिला दिया।
"पर अभी सिर्फ मेरी हो ," बुआ ने प्यार से दांत किचकिचाते हुए मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया।
हम दोनों कुछ शयन कक्ष से लगे स्नानगृह में। गुसलखाने में बुआ ने फुसफुसा कर कहा , "नेहा बिटिया अपने बुआ को अपना मीठा प्रसाद नहीं दोगी जिसके स्वाद के तुम्हारे बड़े मामा पुजारी बन गए हैं। "
मैं बुआ का तात्पर्य शर्मा गयी , "जरूर बुआ पर मुझे बिना रोके-टोके पूरा प्रसाद देंगीं। " मैं हल्की से मुस्कान शर्त रख दी।
बुआ ने भी मुस्करा कर हामी भर दी। पहले मेरी बारी थी। बुआ ने बिना एक बूँद खोये मेरी पूरी सारा सुनहरी गर्म भेंट सटक ली। उनके चेहरे पर एक अनोखी संतुष्टी थी। मैंने भी नदीदेपन से बुआ की गीली खुली चूत पर मुंह लगा कर उनका मोहक सुनहरा प्रदार्थ बिना हिचके घूंट घूंट लिया।
फिर हम दोनों ने एक दुसरे को नहलाया। बुआ ने एक बार फिर से अपनी उँगलियों से मुझे झाड़ दिया।