नेहा का परिवार 16

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शानू ने अपनी बड़ी बहन के सूजे भग-शिश्न को कस कर चूसते हुए तीन उँगलियाँ उनकी योनि की सुरंग में घुसा कर उनकी चूत का ऊँगली-चोदन दिया। मैंने आपा के चौड़े भारी मुलायम नितिम्बों और उनकी गुलाबी संकरी गुदा के सिकुड़े छेद को अपनी आँखों से सहलाया और मेरा सब्र टूट गया। मैंने नसीम आपा के चूतड़ों को चूमते हुए कई बार अपने दांतों से काटा।

" अरे चुड़ैल क्या मुझे जाएगी? हआांंंंन ... नेहा आआआ। ... और ज़ोर से काट चुड़ैल हाय। ... शानू तू भी मेरी चूत कट खायेगी क्या? उन्न्नन्नन्नन ... रब्बा मेरा जिस्म जल रहा है ... और ज़ोर से आआआआआण्ण्ण्ण्ण्ण्ण ," नसीम आपा वासना की उत्तेजना से कराहीं।

मैंने अपने जीभ से उनकी गुदा-द्वार को कुरेदना शुरू कर दिया। उनकी आनंद भरी कराहटें कमरे में गूंजने लगीं। शानू और मैं उनकी चूत और गांड और भी ज़ोरों से चूसने , चाटने और चोदने लगे।

मेरी जीभ आखिर कार नसीम आपा के तंग सिकुड़ी गांड के ऊपर हावी हो गयी। मेरी जीभ की नोक उनकी ढीली होती गुदा के छेद के अंदर दाखिल हो गयी। नसीम आपा की गांड के सुगन्धित गांड को मैं अपनी जीभ से चोदते हुए उनके गदराए चूतड़ों को मसलने लगी।

शानू के तीन उँगलियाँ अब तेज़ी से नसीम आपा की चूत चोद रहीं थी। उसने अपनी बड़ी बहन के सूजे मोठे लम्बे भग-शिश्न को एक क्षण के लिए भी अपने मुंह से नहीं निकलने दिया। शानू नसीम आपा की चूत के दाने को लगातार ज़ोर से चूस रही थी।

नसीम आपा सिस्कारते हुए कई बार झड़ चुकीं थीं।

अचानक उनका बदन फिर से धनुष की तरह तन गया, " हआआआ ... उन्न्नन्नन्नन ...हम्म्म्म्म्म्म ... मर गयी रब्बा मेरे ...उन्न्नन्नन। "

हमें लगा कि नसीम आपा के अगले चरम - आनंद बहुत ही तीव्र और ज़ोरदार होगा और वो ज़रूर थक जाएंगी।

मैंने उनकी थूक से सनी गांड में एक और फिर उँगलियाँ जोड़ तक बेदर्दी से ठूंस दीं। शानू और मैं नसीम आपा की चूत और गांड बेदर्दी से और तेज़ी से अपनी उँगलियों से चोद रहे थे।

नसीम आपा ने एक घुटी - घुटी चीख मारी। उनका बदन तन गया और उनकी सिसकारियाँ बिलकुल बंद हो गयीं। कुछ देर बाद के मुंह से एक लम्बी सीकरी निकली और उनका बदन बिलकुल शिथिल हो कर बिस्तर पर पस्त हो गया।

शानू और मैंने एक दुसरे को ख़ामोशी से शानदार चुदाई के लिए बधाई दी।

हम दोनों ने नसीम आपा के थके निश्चेत बदन को बाँहों में भर कर उनके दोनों ओर लेट गए।

शानू ने मेरी नसीम आपा की गांड से ताज़ी-ताज़ी निकली रास से लिसी उँगलियाँ अपने मुंह में भर ली। बदले में मुझे उसकी नसीम आप के चूत - रस से लिसी उँगलियों का स्वाद मिल गया।

नसीम आपा काफी देर बाद होश में आयीं और फिर उनके आनंद भरी थकी मुस्कराहट से दमके चेहरे को देख कर हम दोनों ने उन्हें चूम-चूम कर गीला कर दिया।

" नेहा अब आज रात के बारे में भी सोचो? " शानू दादी-अम्मा की तरह बोली।

" आज रात के बारे में क्या सोचना है शानू? " मैंने शानू को कुरेदा , " आज रात नसीम आपा की चूत और गांड की तौबा बोलने वाली है चाचू के लण्ड से। "

" अरे उसके लिए तो आपा वैसे ही बेचैन हैं सालों से अब्बू के लण्ड खाने के लिए। मैं तो पूछ रही थी कि आपा क्या पहनेंगीं?" शानू ने अपना सवाल साफ़ किया।

" अरे वो तो मैंने पहले ही सोच रखा है। अकबर चाचू ने मुझे बताया था और सुशी बुआ ने भी कहा था। चाचू की पसंदीदा पोषल लहंगा और चोली है। नसीम आपा बहुत खूबसूरत लगेंगी रज्जो चाची की चोली लहंगे में। " मैंने खुलासा दिया।

"लगता है तुम दोनों ने मेरे लये कुछ भी नहीं छोड़ा ," नसीम आपा ने प्यार से हम दोनों को चूमा।

" अरे आपा सबसे ज़िम्मेदारी का काम तो आपके लिए ही छोड़ा है। ज़ोर से चाचू से चुदने का काम," मैंने खिलखिलाते हुए कहा।

शानू और नसीम आपा भी खिलखिला कर हंस दीं। नसीम आपा की आँखों में प्यार और वासना का मिलाजुला खुमार छा गया।

***

१३३

***

हम तीनों नहाने चल दीं। स्नानघर में भी हम तीनों की चुहल बजी बंद नहीं हुई। नसीम आपा को ज़ोर से पेशाब आया था। शानू और मैंने हंस कर कहा " अरे आपा कमोड पर बैठने की क्या ज़रुरत है यहीं शावर में कर लीजिए। "

नसीम आपा ने अपनी नन्ही छोटी बहिन से पूछा , " यह तो बता मुझे कि तूने अपने जीजू का सुनहरा शरबत का स्वाद लिया या नहीं?"

" आपा अवाद ही नहीं लिया बल्कि पिया है मैंने। आपको तो जीजू रोज़ शर्बत पिलतए होंगे? ," शानू की बात सुन कर नसीम आपा की आँखें चमक उठी।

" तेरे जीजू का शर्बत तो दिल चाहे मिल जाता है। मुझे तो नेहा से रश्क हो रहा है कि उसने हंस सबसे पहले अब्बू का का सुनहरी शर्बत गटक लिया ," नसीम आपा ने मेरे साबुन के झांगों ढके चूचियों को मसलते हुए ताना मारा।

" अब आपको मौका है जितना मन उतना पी लेना आज रात ," मैंने नसीम आपा के चूचुकों को मसलते हुआ जवाब दिया।

" आपा नेहा और मैंने भी एक दुसरे का सुनहरी शर्बत खूब पेट और दिल भर पिया था कल ," शानू ने अपनी बड़ी बहन के गुदाज़ गोल उभरे पेट को सहलाते हुए कहा।

" किसी को अपनी आपा का शर्बत पीना है या उसे बर्बाद कर दूँ फर्श पर मूत के? " नसीम आपा ने भारी सी आवाज़ में पूछा।

" नेकी और पूछ पूछ। चल शानू अब आपा का शर्बत घोटने का मौका है ," मैं और शानू नीचे बैठ गए।

नसीम आपा के हाथों ने अपनी घुंघराले झाटों से ढके योनि की फाकों को चौड़ा कर अपनी गुलाबी चूत को खोल दिया। जल्दी ही सरसराती सुनहरी शर्बत की धार हम दोनों के चेहरों के ऊपर बरसात करने लगी। शानू और मैंने दिल लगा कर नसीम आपा के खारे / मीठे शर्बत से नहाने के अलावा कई बार मुंह भर कर उनके सुनहरे शर्बत को गटक लिया।

जब नसीम आपा की बुँदे भी निकालना बंद हो गयीं तभी हम दोनों रुके।

अब नसीम आपा की बारी थी अपनी छोटी बहनों के शरबत का स्वाद लेने की। थोड़ी देर में शानू और मेरी झरने की आवाज़ निकालती दो धारें नसीम आपा को नहलाने लगीं। नसीम आपा नादीदेपन से कई बार अपना मुंह भर हमारा शर्बत गतक लिया।

फिर हम तीनों खिलखिला कर संतुष्टि भरी हंसी से स्नानघर गूंजते हुए नहाने का कार्यक्रम लगीं।

नसीम आपा ने मेरे उरोजों को साबुन से झागों से सहलाते हुए पूछा , " नेहा , यह तो बता कि अब्बू से गांड मरवाते हुए यदि मैं उनका लण्ड गन्दा कर दूँ तो उन्हें बहुत बुरा लगेगा?"

शानू लपक कर बोली , " आपा आप अब्बू से एक ही रात में गांड भी चुदवा लोगी?"

"छोटी रंडी मैंने इसी दिन के लिए तो अपनी गांड कुंवारी बचा रक्खी है। वर्ना तो तेरे जीजू मेरे गांड फाड़ने में एक लम्हा देर नहीं लगाते। " नसीम आपा ने शानू को चुप कर दिया , " तो बता ना नेहा अब्बू का लण्ड गंदा होने से बचने के करूँ?"

मैंने अपनी छोटी सी ज़िंदगी में भयंकर चुदाइयों को याद करके कहा, " नसीम आपा भरोसा रखिये चाचू के ऊपर अपना आपकी गांड से निकला लिसा लिप्त गन्दा लण्ड आपसे चुसवाने के ख्याल से ही आपको चोदने का नशा तारी हो जायेगा। नम्रता चाची कह रहीं थीं कि मर्दों को हलवे से भरी गांड मारने से गांड-चुदाई का मज़ा दुगना-तिगना हो जाता है। जीजू ने मेरी भरी गांड कितने चाव से मारी थी कल। नहीं शानू?"

"हाँ आपा जीजू का लण्ड जब नेहा की गांड के रस से लिस गया तो उनके धक्कों में और भी ज़ोर आ गया था," शानू ने मेरा समर्थन किया और फिर शरमाते हुए बोली , " जीजू ने अपना नेहा की गांड से निकला लिस फूटा लण्ड मेरे मुंह में ठूंस दिया था। मैंने तो लपक कर उनके लण्ड को चूस चाट कर साफ़ कर दिया। "

शानू ने फख्र से आपा को मेरी गांड-चुदाई के रस का स्वाद का खुला ब्यौरा दिया।

" ठीक है तुम दोनों के ऊपर भरोसा कर रहीं हूँ मैं। लेकिन ख्याल रखना यदि अब्बू को मेरी गांड से निकले लण्ड को देख कर उनका दिल खट्टा हो गया तो मैं तुम दोनों की गांड में अपना कोहनी तक हाथ ठूंस कर तुम दोनों की गांड फाड़ दूंगीं ," नसीम आपा ने धमकी दी।

" उस की नौबत नहीं आएगी आपा। पर यदि मौका मिले तो अपनी गांड में अब्बू का मक्खन बचा कर ले आईयेगा। शानू बेचारी को उस प्रसाद का स्वाद तो मिल जायेगा। मेरी अंजू भाभी ने मुझे एक सुबह नरेश भैया से गांड चुदवाने के बाद अपनी गांड का रस मुझे पिलाया था। सच में आपा उनकी गांड के रस में नरेश भैया की मलाई का मिश्रण बहुत ही मीठा था। शानू की तो लाटरी निकल जाएगी। " मैंने नसीम आपा के दिल में यदि कोई शक बचा हुआ था तो मेरी अंजू भाभी के किस्से से ज़रूर दूर हो गया होगा।

हम तीनों तैयार हो कर फिल्म देखने और बहार लंच करने के लिए निकल पड़े। शानू और मैं नसीम आपा को मशगूल रखना छह रहे थे। जिस से उनका ध्यान अब्बू के साथ पहली रात बिताने के ख्याल से उपजे डर से दूर ही रहे। हम तीनों वाकई तीसरे दर्ज़ की मसाला फिल्म देख और फिर पसंदीदा रेस्तौरांत में खाने खाते सब कुछ भूल गए या हमारे दिमाग ने उन ख्यालों को जागरूक दिमाग के पीछे धकेल दिया। जो भी हो नसीम आपा ने हमारे साथ मिल कर फिल्म के हर सस्ते दृश्य के ऊपर सीटी मार कर ज़ोर ज़ोर के कटाक्ष मारे।

हँसते हँसते हम तीनों के पेट में दर्द हो गया

***

१३४

***

शाम होते ही हमने तैयार होना शुरू कर दिया। मैंने और शानू ने रज्जो चाची के सावधानी से बचा कर संजोये कपड़ों में से हल्की सरसों के रंग की बसंती चोली और हलके नीले लहंगे को चुना। नसीम आपा के बहुत ना ना करते हुए उनको जबरन मना लिया। चोली के नीचे कोई भी ब्रा या शमीज नहीं थी। ना ही लहंगे के नीचे कोइ कच्छी पहनने दी हमने नसीम आपा को। नसीम आपा के बड़े-बड़े भारी उरोज चोली को फाड़ते से लग रहे थे। उनकी हर सांस और हर क्रिया से उनके विशाल उरोज मादक मनमोहक अंदाज़ से हिल पड़ते। शानू और मैं नसीम आपा के अप्सरा जैसे रूप को देख कर खुद भी उत्तेजित हो गए। नसीम आपा के बदन से चन्दन से साबुन मोहक सुगंध आ रही थी। अब्बू और जीजू के ऊपर हमें तरस आने लगा। अब्बू जब अपनी बड़ी बेटी का रूप उसकी अम्मी के वस्त्रों में देखेंगे तो उनकी हर झिझक और हिचक एक लम्हे में मिट जाएंगीं।

शानू को मैंने उसकी बचपने की फूलों वाली फ्रॉक पहनायी बिना कच्छी के। उसकी फ्रॉक जरा सी भी ऊँची उठेगी तो उसके गोल गोल चूतड़ों हो जायेंगे। और जब वो थोड़ी सी भी टाँगे चौड़ा कर बैठेगी तो उसकी गोल गोल जांघों के बीच छुपे गुलाबी ख़ज़ाने की गुफा की कमसिन द्वार के दरवाज़ों का दर्शन जो भी उसकी तरफ देख रहा होगा उसे बहुत आसानी से हो जायेगा।

मैंने भी नसीम आपा की पुरानी स्कूल की हलके आसमानी रंग की फ्रॉक पहन ली। मैंने भी कोइ कच्छी पहनने की कोशिश नहीं की।

आदिल भैया अकबर चाचू से आधा घंटे पहले ही आ गए। उनकी आँखे नसीम आपा के नैसर्गिक सौंदर्य को देख कर खुली की खुली रह गयीं।

" जीजू, आज रात तो नसीम आपा अब्बू की दुल्हन हैं। आपको आज रात तो अपनी सलियों से ही संतुष्टि करनी होगी ," मैंने मटक कर आदिल भैया को झंझोड़ा।

" हाँ जीजू नेहा सही कह रही है ," शानू ने भी मेरी ताल में ताल मिला दी।

" अरे हम सिर्फ अपनी जोरू के हुस्न से अपनी आँखें ही तो सेक रहे थे। हमें अपनी दोनों सालियों को एक साथ रोंदने का मौका मिले तो भला हम क्यों सवाल-जवाब करेंगें ," आदिल भैया वाकई राजनैतिक चातुर्य से भरे थे।

आदिल भैया ने अपनी बात को साबित करते हुए शानू को दबोच लिया अपने शक्तिशाली भजन में। उनके फावड़े जैसे विशाल हाथों ने बेचारी कमसिन शानू के उगते उरोजों को कास क्र मसलते हुए उसके सिसकारी मारते अधखुले मुंह के ऊपर अपने होंठों को दबा दिया।

" अरे जीजू जरा शानू की फ्रॉक के नीचे की तो जांच-पड़ताल कर लीजिए। पता नहीं इस पुरानी फ्रॉक के अंदर कोइ चींटी या कीड़ा ना छुपा हो?" मैंने आदिल भैया को बढ़ावा दिया।

आदिल भैया ने तुरंत एक हाथ खली कर शानू के झांगों के बीच में फांस दिया। शानू चिहुंक कर अपने पंजों पर उचक गयी। उसके खुले पर जीजू के मुंह में दबे, मुंह से एक लम्बी सिसकारी उबल गयी। जीजू की उँगलियों ने ज़रूर शानू के किशोर ख़ज़ाने की पंखुड़ियों के बीच में छुपी सुरंग के दरवाज़े को ढूँढ लिया था।

शानू ज़ोर से बुदबुदाई , " जीजू इतनी ज़ोर से क्यों दबा रहे हैं। " आदिल भैया का दूसरा हाथ बेदर्दी से शानू के कच्चे उरोज को मसल रहा था।

" अरे रांड कहीं की। किसी बाहर वाले से दबवा रही होती अपनी चूचियाँ तो कुछ नहीं बोलती। पर अपने जीजू से कितनी शिकायत कर रही है?" नसीम आपा ने भी जीजू-साली के मज़े में टांग अड़ा दी, " देख नेहा आज रात इस साली के चुदाई खूब हचक कर करवाना इसके जीजा से। चाहो तो इसकी गांड भी खलवा देना आज रात। "

सिसकारी मारती हुई शानू से चुप ना रहा गया , "नहीं आपा गांड तो मैं अब्बू के लिए बचा कर रखूंगीं। जीजू ने मेरी कुंवारी चूत तो खोल दी है। जीजू को मैंने नेहा की गांड तो पहले से ही सौंप रखी है। "

यह सुन कर नसीम आपा को आने वाली रात के ख्याल से दिमाग गरम हो गया। उनके पहले से ही लाज की लालिमा से सजे सुंदर चेहरा और भी लाल हो गया।

शुक्र है कि तभी अकबर चाचू हाल में दाखिल हो गए।

***

१३५

***

जीजू ने शानू की चूत को एक बार ज़ोर से कुरेदा और उसकी चूची को बेदर्दी से मसला और फिर अपने ससुर मामू का लिहाज़ दिखते हुए अपनी मर्दानी गिरफ्त से आज़ाद कर दिया।

अकबर चाचू जीजा-साली के उन्मुक्त कामुक प्रदर्शनी के ऊपर मुस्कराए। फिर उनकी निगाहें अपनी बड़ी बेटी के हुस्न से उलझ गयीं। चाचू भी युरन्त आने वाली रात के ख्याल से थोड़े हिचकते हुए लगने लगे।

चालाक शानू ने तुरंत पैंतरा फेंका , " अब्बू देखिये ना जीजू कितने बेदर्द हैं? कितनी बेदर्दी से पेश आते हैं मेरी तरफ? और आपा भी उनको बढ़ावा देती हैं। "

चाचू ने अपनी छोटे नन्ही बेटी को गॉड में उठा लिया छोटे बच्चे की तरह और शानू की दोनों बाहें अपने अब्बू के गले का हार बन गयीं।

" शानू बीटा जीजा -साली के बीच में मैं नहीं आने वाला। वैसे भी बड़ी बहन को तुम्हारे जीजू का पूरा ख्याल रखने की ज़िम्मेदारी भी तो संभालनी है। याद है कल रात की कहानी। तुम्हारी अम्मी ने भी तो तुम्हारी शन्नो मौसी को जीजू के लिए तैयार किया था। " अकबर चाचू की बात सुन कर शानू जो से मुस्करायी।

"आप सही कह रह हैं अब्बू, " और फिर ज़ोर से उसने अब्बू के होंठों के ऊपर अपने कमल की पंखुड़ियों जैसे गुलाबी होंठ रख दिए।

मैं शानू के ऊपर फ़िदा हो गयी। एक ही बाण से उसने एक नहीं तीन-तीन चिड़िया गिरा दीं।

नसीम आपा ने तुरंत उत्सुक हो कर पूछा , " अब्बू यह शन्नो मौसी की कौनसी कहानी है?"

" अब्बू इस बार मैं सुनाऊंगी यह कहानी। पर पहले आप कपडे बदल कर ताज़े हो जाइये ," कौन सा बाप उस ख़ूबसूरत मुश्किल से किशोरावस्था के पहले साल को फांदती बेटी को नज़रअंदाज़ कर सकता है।

" बिलकुल ठीक अब्बू , आप तरोताज़ा हो जाइए फिर इस शैतान से वो कहानी सुनते है। पर आप इसकी कहानी पर नज़र रखिएगा। हमारी नन्ही शानू की मनघरन्त बातें बनाने की क़ाबलियत से आप पूरे वाकिफ हैं ," नसीम आपा ने किसी बीवी की तरक अब्बू के पास जा कर उनका हाथ थाम कर शानू को नीचे उतरने में मदद की।

अकबर चाचू पहले तो झिझके फिर हिम्मत जोड़ कर अपने बड़ी बेटी को बाँहों में भर कर उसके शर्म से लाल गाल को चूम लिया , " मैं जल्दी ही नीचे वापस आता हूँ। "

" चलिए आदिल आप भी ताज़ा हो जाइए। हम सब तब तक ड्रिंक्स तैयार कर देंगें," आदिल भैया से ऑंखें मिला नहीं पा रहीं थीं।

" नसीम मेरी जान, आज रात तो फ़रिश्ते भी तुम्हारे ऊपर फ़िदा हो जाएंगें। मामू की आँखें तुम्हारे ऊपर से हट ही नहीं पा रहीं थीं। मुझे तुम पर बहुत फख्र है नूसी। " आदिल भैया ने आपा के होंठों को प्यार से चुम कर कहा।

हम सब प्यार से नसीम आपा को नूसी बुलाते थे बचपन में। लगता है कि वो नाम अब उन पर पूरा टिक गया था।

"हाय रब्बा मेरे। आदिल मेरा दिल देखो कैसे धड़क रहा है। मेरी तो जान निकली जा रही सिर्फ सोच सोच के। कैसे मैं हिम्मत जुटाऊँगी?" नसीम आपा ने अपने दिल का डर ज़ाहिर किया।

" जानम सब ऊपरवाले के ऊपर छोड़ दो। सिर्फ जैसा सोचा है वैसा करो सब ठीक हो जायेगा ," आदिल भैया ने अपनी ममेरी बहिन और बीवी को प्यार से जकड कर तस्सली दी।

आदिल भैया और चाचू के जाते ही हम सब शाम के ड्रिंक्स तैयार करने में मशगूल हो गए।

चाचू की पसंदीदा स्कॉच , तीस साल पुरानी ग्लेनमोरांजी। आदिल भैया के लिए लाल मदिरा , इटली की बरोलो। हम लड़कियों के लिए सफ़ेद फ़्रांस की सौविंयों - ब्लाँक।

एक घंटे में हम सब पारिवारिक हॉल में अपने गिलासों को ससम्भाले फिर से इकट्ठे हो गए। मैं होशियारी से चाचू के दोनों ओर अपने आप और नसीम आपा को बैठा कर घेर लिया।

अकबर चाचू ने सफ़ेद कुरता और पायजामा पहना था। आदिल भैया ने शॉर्ट्स और टी शर्ट। नसीम आपा और मैं एक नज़र में समझ गए किादिल भैया के शॉर्ट्स ने नीचे कच्छा नहीं पहना था। दोनों छह फुट से ऊँचे चौड़े बलशाली मर्द बहुत ही कामकरषक और हैंडसम लग रहे थे।

शानू ने मटकते हुए बच्चों जैसे ज़िद का नाटक करते हुए अपने जीजू की गॉड में बैठ गयी। हम तीनों को शानू की ऊपर उठी फ्रॉक के भीतर का उत्तेजक नज़ारा साफ़ साफ़ दिख रहा था। उस कामुक नज़ारे को और भी परवान चढ़ाते हुए आदिल भैया ने शानू को अपनी गॉड में सँभालने की ओट में उसके दोनों चूचियों को अपने हाथों से ढक दिया।

" चल शानू अब कहानी सुना ना नूसी को ," मैंने चाचू की भारी मज़बूत बाज़ू उठा कर अपने कन्धों पर रख उनके सीने पर सर रख कर अपनी मदिरा [ वाइन ] का घूँट भरा। मेरी आँख का इशारा समझ कर नूसी आपा ने भी अपने अब्बू के मज़बूत मर्दाने बाज़ू के अंदर आ कर उनके कंधे पर सर टिका दिया।

***

१३६

***

शानू ने चाचू की सालियों की कहानी और भी उत्तेजक बना दी थी। नूसी आपा के शर्म से लाल गाल हज़ारो वाट के बल्बों जैसे दमक रहे थे। मेरा एक हाथ धीरे धीरे फिसलता हुआ चाचू की उभरती तोंद के ऊपर टिक गया। नसीम आपा का ध्यान मेरे हाथ की तरफ था।

शानू अब अपनी दादी अम्मा, अब्बू और ईशा मौसी का वार्तालाप खूब खुलासे से दोहरा रही थी। हालाँकि आदिल भैया और मैंने यह किस्सा पहले सुन रखा था पर शानू की बच्चों जैसे मधुर आवाज़ और दो दो सालियों और जीजू के बीच में बढ़ते सम्भोग के विचारों से मैं और नसीम आपा बहुत जल्दी वासना के आनंद में गोते लगने लगीं।

जैसे जैसे शानू ईशा मौसी के पहले सम्भोग का खुला बहुत विस्तार ब्यौरा देने लगी मैंने चाचू, नसीम आपा और आदिल भैया के गिलास भरने में कोइ देर नहीं लगाई। मेरा हाथ अब चुपके से चाचू के ढीले कुर्ते के नीचे चला गया। जैसा मैंने सोचा था चाचू पिछली रात की तरह पायजामे के नीचे कच्छा नहीं पहने थे। मैंने होले से अपने नन्हे कोमल हाथ को उनके भारी-भरकम लण्ड के ऊपर पायजामे के ऊपर से रख दिया। चाचू ने मर्द की तरह कोइ निशान अपने चेहरे पर नहीं आने दिया कि मेरा हाथ उनके लण्ड के ऊपर तैनात था।

मैंने दूसरे हाथ से उनकी हथेली कसमसाने का नाटक करते हुए अपनी बाईं चूची के ऊपर टिका दी।

कहानी, स्कॉच और मेरे हाथ की गर्मी से चाचू थोड़ा बहक गए और उनका दूसरा हाथ बिना सोचे उनकी बड़ी बेटी के दाएं ुरोक्स के ऊपर फिसल गया।

हम सब थोड़े से नशे की खुमारी में थे। शानू की कहानी लम्बी होती जा रही थी। उसने खाने के ऊपर भी किस्सा जारी रखा। अब वो शन्नो मौसी के कुंवारेपन के भांग वाले हिस्से पर थी। नसीम आपा मेरे खाने की मेज़ के नीचे वाले हाथ के बारे में पूरी वाकिफ थीं। मैं अब खुल कर अकबर चाचू का लण्ड सहला रही थी।

नूसी आपा ने भी मेरी तरह अपने अब्बू का गिलास भरने में बहुत दिलचस्पी दिखाई।

मीठे का वक़्त आते आते चाचू और नूसी आपा खुले खुले हलके से नशे में मस्त थे। हम सब के ऊपर नशा तारी होता जा रहा था।

मीठा ख़त्म होते होते शानू ने अपनी शन्नो मौसी की गांड का मर्दन का किस्सा के खात्मे पर थी।

जैसी ही शानू के किस्सा खत्म किया चाचू ने ज़ोर से उबासी भर कर माफ़ी माँगी , " भाई अब आप मुझे तो माफ़ करों। लगता है शानू की कहानी और नूसी के लाज़वाब खाने से इतना पेट भर गया की आँख खुल ही नहीं पा रहीं।

शानू तुरंत चहक कर बोली ," हाँ अब्बू आप बिस्तर जा कर आराम कीजिये। "

चाचू ने गहरी नज़रों से अपनी बड़ी बेटी की और देखा और नसीम आपा शर्म से लाल हो गयीं। अकबर चाचू सबको चुम कर भारी भारी क़दमों अपने शयन कक्ष की ओर बाद चले।

जैसे ही उन्होंने अपने कमरे में दाखिल हो गए होंगे वैसे ही शानू और मैं जल्दी से का हाथ पकड़ कर उन्हें उनके अब्बू के कमरे की तरफ खींचने लगे , "आपा किस बात का इन्तिज़ार कर रहीं अब आप। जाइए अपने अब्बू के कमरे में। उन्हें कितना इन्तिज़ार करवाएंगी आप। "

"मुझे बहुत डर लग रहा है नेहा ," नसीम आपा के हिचकिचाहट ने शानू को पागल सा कर दिया।

" अरे आप तो इतनी डरपोक है आपा। यदि आप को नहीं जाना तो मैं चली जातीं हूँ हमारे अब्बू का ख्याल रखने के लिए," शानू ने छाती फैला कर बड़ी बहन को ताना मारा।

इस तरकीब ने जादू का असर किया नूसी आपा के ऊपर , "अरे चुड़ैल मैंने तुझे तेरे जीजू को सौंप दिया और अब तू अब हमारे अब्बू को मुझसे पहले घूँटना चाहती है। तुझे मेरी कब्र के ऊपर चलना पड़ेगा मुझसे पहले अब्बू को पाने के लिए। नेहा चल इस रंडी को इसके जीजू से तब तक छुड़वाना जब तक इसकी चूत न फैट जाये। " नसीम आपा ने वैसे तो गुस्सा दिखाया पर तुरंत माँ के प्यार से भरे चुम्बन से शानू का मुंह गीला कर दिया।

हम सब सांस रोक कर नसीम आपा के हलके क़दमों से उनके अब्बू के कमरे के और के सफर को आँखे फाड़ कर देख रहे थे।

रास्ता सिर्फ कुछ क़दमों का था पर प्यार और सामाजिक रुकावटों का ख्याल आते ही इस सफर की लम्बी मुश्किल और परेशानियां समझ आने लगतीं हैं। जैसे ही हमने पक्का भरोसा कर लिया कि नसीम आपा अपने अब्बू के कमरे में दाखिल हो कर उन्होंने हलके से दरवाज़ा बंद कर लिया वैसे ही आदिल भैया ने शानू और मुझे अपनी एक एक बाज़ुओं में हमारी कमर से उठा कर दानव जैसे गुर्राते हुए अपने कमरे की ओर दौड़ पड़े।

हमारी किलकारियां मोतियों की तरह हमारे पद-चिन्हों जैसे हमारे पीछे कालीन पर फ़ैल गयीं।

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