नेहा का परिवार 18

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यह कहानी नेहा के किशोरावस्था से परिपक्व होने की सुनहरी दास्तान है।
7.8k words
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Part 18 of the 22 part series

Updated 06/08/2023
Created 11/03/2016
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CHAPTER 18

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१४४

***************

*********

नसीम आपा और अब्बू १

*********

मैं जब तक अब्बू के कमरे के दरवाज़े पर पहुंची तब तक मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से शर्म और डर से धक् धक् कर रहा था। मेरे कदम यकायक एक एक टन जैसे भारी भारी हो गए। पर जैसे वायदा किया था । उसे निभाते हुए मैं डरती डरती अब्बू के कमरे में दाखिल हो गयी। अपने पीछे मैंने उनके कमरे का दरवाज़ा फिर से बन्द कर दिया। अब्बू ने कमरे की रौशनी बहुत फीकी धीमी कर रखी थी।

जैसे जैसे मेरी आँखें बेहद हल्की रौशनी की आदी हुईं तो मैं शर्म से लाल हो गयी और रोमांच से मेरा बदन काँप उठा। अब्बू पूरे नंगे खड़े थे और मेरी ओर देख रहे थे। शायद मेरी शर्म और मेरे डर को कम करने के लिए। उन्होंने अपनी बाहें मेरी ओर फैला दीं।

मैं हौले हौले उनकी अब्बू की ओर बढ़ रही थी। उनकी खुली बाहों को देखा कर मेरे कदम खुद-ब -खुद तेज़ हो चले। न जाने कब मैं अपने अब्बू की बाहों में समां गयी। अब्बू ने ने अपनी मुड़ी तर्जनी से मेरी थोड़ी ऊपर उठाई और अपने तपते होँठ मेरे जलते होंठों के ऊपर रख दिए। अब्बू मुझसे लगभग फुट भर लंबे हैं। मैंने पंजों पे खड़े हो अपने हाथ उनकी गर्दन के इर्द गिर्द पहना दिए।

जैसे ही अब्बू ने मेरे होंठों को अपने होंठों से दबाया मुझसे रुका नहीं गया। मैं ज़ोरों से फुसफुसाई, "अब्बू , अब्बू अब्बू।"

माफ़ करना नेहा मैं भूल गयी कि मुझे कुछ देर तक नाटक करना था की मैं, तू थी।

( मैंने जल्दी से नूसी आपा को चुम कर बिना बोले कहा कि वो सब तो अकबर चाचू और उनके शर्म और हिचकिचाहट को ढकने भर का नाटक था। दोनों को खूब अच्छे से पता था कि कौन कौन था। नसीम आपा ने मेरे चुम्बन को स्वीकार कर मुस्कुरा दीं और आगे कहानी बढ़ाने लगीं ।)

मेरा मुंह खुद-ब -खुद खुल गया। जैसे ही अब्बू की जीभ मेरे मुंह में घुसी बदन में तहलका मच गया। मैंने भी विलास भरी मस्ती में अपनी जीभ अब्बू की जीभ से भिड़ा दी। कभी मैं अब्बू के मुंह की तलाशी लेती तो कभी अब्बू मेरे मुंह को रालश रहे थ। अब्बू मुझसे इतने ऊँचें है कि उनका मीठा गरम थूक हमारे खुले मूंह में ढलकने लगा। मैं बिना चुम्बन तोड़े उसे गटक कर पी गयी।

अब्बू के हाथ ना जाने कब मेरी चोली के बटनों के ऊपर पहुँच गए थे। और उन्होंने एक एक करके सारे बटन खोल दिए थे। अब्बू ने प्यार से हौले हौले मेरी चोली मेरे कन्धों से खिसक दी मेरी बाहें उनकी चाहत और मर्ज़ी समझ कर खुद नीचें हो गयीं। मेरी चोली मेरे और अब्बू के बीच में फर्श पर लहराती हुई गिर गयी।

जैसे ही अब्बू के फावड़े जैसे हाथों ने मेरे बड़े उरोज़ों को सहलाया मैं ज़ोर से सिसक उठी। अब्बू के हाथों से मेरी चूचियों को छूने भर से मेरी चूत गनगना उठी। ऐसा असर किसी लड़की के ऊपर सिर्फ उसके अब्बा ही ढा सकतें हैं। इसीलिए तो बाप और बेटी के बीच में विलासपन या संसर्ग वर्जित और नाजायज़ है , इसमें इतना मज़ा है सिर्फ सोचने भर में। जब असलियत में अब्बू ने मेरे नंगें उरोज़ों को सहलाया तो उस विलासता का कोई ब्योरा सीधे लफ़्ज़ों में नहीं हो सकता।

मैं रोमांच से हिल उठी और सिवाय हलके से 'अब्बू अब्बू' फुसफुसाने के कुछ और सोचने, करने में बिलकुल बेकार थी।

अब्बू ने फिर से अपना मुंह मेरे सिसकते मुंह के ऊपर डगक दिया और धीरे धीरे मेरे दोनों स्तनों को सहलाने लगे। मेरे घुटने जैसे तेल से चिकने फर्श पर फिसलने जैसे हो गए।

अब्बू अपने हाथों से कभी मेरी चूचियों को सहलाते, कभी मेरी कमर को। कभी उनके हाथ मेरे सख्त तन्नाए मम्मों को अपनी हथेली से सहलाया तो मैं इतने ज़ोर से काँप उठी कि यदि अब्बू ने मुझे नहीं पकड़ा होता तो मैं फर्श पर गिर जाती।

अब्बू ने मुझे गुड़िया की तरह बाहों में उठाया और बिस्तर पे इतने प्यार से लिटाया जैसे मैं कांच से बनी नाजुक गुड़िया थी। जैसे ही उनके हाथ मेरे लहँगे के नाड़े पे पहुंचे तो मेरे बदन की कम्पन और भी तेज़ हो गयी। अब उस रात बाप-बेटी के बीच में बनायीं हर दीवार के गिरने का वक़्त आ गया था। अब्बू ने धीरे धीरे मेरे लहँगे का नाड़ा खोल कर मेरे लहँगे को प्यार से हलके हलके खींच कर उतार दिया।

अब्बू ने ना जाने कितनी बार मुझे स्कूल के लिए या सोने करते हुए मेरे कपड़े उतरे थे। लेकिन उनका बचपन में मेरे कपडे उतारने में और उस रात मेरी चोली और लहँगे को उतारने में ज़मीन आसमान का फर्क था। उस रात मैं उनकी बेटी और औरत दोनों थी। और इस असलियत के अहसास भर से मेरे बदन में वासना की बिजली कौंध गयी।

वाकई नेहा तूने अपने बड़े मामा तो चुदाई तो की है पर देखना जब तू अक्कू चाचू हमबिस्तर होगी तो तू पागल हो जाएगी।

अब मैं अब को तेज़ रौशनी में देखना चाह रही थी। मैं उस रात का हर लम्हा अपने दिमाग पे सारी ज़िन्दगी के लिये छापना चाहती थी।

"अब्बू कमरे की रौशनी बड़ा दीजिये। आपकी बेटी आज सारी रात को खुल के देखना चाहती है," मैंने हलके से शरमाते हुए अब्बू से कहा।

"नूसी बेटा मैं भी यही चाह रहा था। पर तुम्हारी शर्म की वजह से हिचक रहा था," अब्बू ने प्यार से मेरे खुले मुंह को चूमा ।

"अब्बू शर्म तो आ रही है पर अपने अब्बू के साथ हमबिस्तर होने का पहला मौका तो किसी भी बेटी के लिए सुहागरात की तरह होता है। आज की रात को तो आप मेरी यादगार रात बनाने वाले हैं। आज रात मुझे अपने अब्बू का सुंदर चेहरा खूब तेज़ रौशनी में देखना है। आज की रात के बारे में तो जबसे तेरह की थी तबसे सोच रही हूँ। छह साल की दबी चाह है अब्बू आपकी बेटी की।" मैं अब यकायक खुलने लगी।

जब अब्बू ने भी खुल कर जवाब दिया तो मेरी सारी शरमोलिहाज़ और सारा डर अब्बू की चाहत में बदल गया, "नूसी बेटी मैं भी छह साल से अपनी बड़ी बेटी की चाहत में जल रहा हूँ। यह रात ठीक तुम्हारी मम्मी के साथ पहली रात की तरह यादगार बन जाएगी मेरे लिए भी। "

अब्बू ने कमरे की रौशनी पूरी तेज़ कर दी। मैंने अपने अब्बू का साढ़े छह फुट ऊँचा एकसौ तीस किलो भारी मांसल घने बालों से भरा बदन देखा तो मेरी चूत में जैसे रस की बाढ़ आ गयी। अब्बू की तोड़ उनके मर्दाने बदन को और भी परवान चढ़ा रही थी। उनकी पेड़ के मोटे तने जैसी जांघों के बीच में हाथी की तरह झूलता हाथ भर लंबा बोतल जैसा मोटा लन्ड। उफ़ रब्बा मेरी तो सांस मेरे गले में ही अटक गयी। अब्बू भी मेरे नंगे बदन को एकटक घूर रहे थे।

अब्बू ने मेरे चहरे को अपने हांथों में बाहर कर कहा," नूसी बेटी तुम तो जन्नत की अप्सरा जैसी खूबसूरत हो। "

"अब्बू , यह बदन ,यह शक्ल जैसी भी है आपकी और अम्मी की देन है," मैं फुसफुसा कर बोली, "मैं तो अल्लाह की शुक्रगुज़ार हूँ कि मुझे और शानू को आपके जैसा मरदाना प्यारा सुंदर अब्बू और हूर जैसी सुंदर अम्मी से पैदाइश मिली है।" मैंने बिना हीचक अपने दिल का राज़ खोल दिया।

अब्बू ने धीरे धीरे मेरे बिस्तर पर फैले बदन के ऊपर अपना भारी बदन पूरे वज़न से डालते हुए मेरे चेहरे को चूम कर कहा, "तो नूसी बेटी आज रात तुम अपने अब्बू की बेटी के अलावा उनकी औरत बनने का वायदा कर रही हो," अब्बू ने प्यार से मुझसे खुल कर कहलवाने के लिए पूछा।

"अब्बू, यह तो आपका प्यार है कि आप जैसा मर्द अपनी इस बेटी को अपनी औरत का दराज़ देने को तैयार हैं। आपकी बेटी मरते दम तक आपकी बेटी और औरत बन कर आपके प्यार और आपकी इज़्ज़त को अपनी जान से भी ज़्यादा ऊँचा दर्ज़ा देगी।" मैंने अपनी बाहों को अब्बू की गर्दन का हार बना दिया।

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१४५

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नसीम आपा और अब्बू २

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अब्बू के होंठों में मेरे होंठों को कस कर चूमते हुए एक बार फिर से मेरा मुंह अपनी जीभ से खोल कर मेरा मुंह का हर कोना दिल खोल कर चूसने लगे। मैं भी पगला कर उनके दीवाने गीले चुम्बन का जवाब उतने ही ज़ोर से देने लगी। मेरे मुंह में जैसी ही अब्बू की मीठी गरम लार इकट्ठे हो जाती मैं उसे स्टॉक लेती पर बिना चुम्बन तोड़े।

मेरी चूचियां अब्बू के मर्दाने बालों भरे सीने के नीचे कुचलीं हुईं थीं। उनके सीने की रगड़ से मेरे दोनों चुचुक गनगना रहे थे। मैं बिना सोचे अपनी चूत को अब्बू पेट से रगड़ रही थी।

अब्बू ने चुम्बन तोड़ कर मेरे माथे, पलकों को चूमा। फिर उनका गरम मुंह मेरे कानों के मुलायम लोंको को चूसने लगा तो मेरा दिल धकधक करने लगा। अब्बू जैसे मेरे बदन के सारे वासना को उकसाने वाले हिस्सों को जानते थे। उनकी जीभ की नोक ने मेरे कान की सुरंग को भी नहीं छोड़ा। फिर उनकी जीभ ने मेरी गर्दन को कामुक चुम्बनों से ढक दिया। उनकी जीभ ने मेरी गर्दन को सहलाया और होंठों से खाल को चूसा। मेरे चूत से रस की धार बह चली थी।

फिर उनकी जीभ की नोक ने मेरी फड़कती नाक की पूरे नक़्शे को धीरे धीरे सहलाया। फिर अब्बू ने मेरी पूरी नाक को अपने मुंह में भर कर अपनी जीभ की नोक को कभी एक नथुने में या फिर दुसरे नथुने में घुसेड़ कर उसे चूत की तरह चोदने लगते। मैं अब वासना से जल रही थी। और हलके हलके सिसक रही थी।

अब्बू ने हलके हलके अपने चुम्बन मेरे बदन के नीचे हिसों की तरफ बड़ा दिए। अब्बू ने मेरे सीने को चूम और फिर एक हाथ से मेरे एक स्तन को सहलाते हुए दुसरे चूचुक को जीभ से हिलाते हुए उसे अपने मुंह ने भर कर चूसने लगे। उनका दूसरा हाथ मेरे दूसरे चूचुक को सहलाते, कभी ऊँगली और अंगूठे के बीच में हलके हलके दबाते। मैं अब खुल कर सिसक रही थी। अब्बू अपनी बेटी को अपने अब्बू और मर्दाने प्यार से पागल बना रहे थे। मेरे बदन में आग लग रही थी और उसे बुझाने की चाभी अब्बू के पास थी।

अब्बू ने मेरे दोनों चूचियों और चूचुकों को खूब क्षुमा, चूसा और सहलाया। मैं तो छह रही थी कि अब्बू अपने फावड़े जैसे बड़े हाथों से मेरे दोनों चूचियों को मसल मसल कर सूज दें। पर अब अपनी बेटी के साथ पहला संसर्ग अपने ही तरीके से करने वाले थे। मैं तो जो अब्बू करते उस से इतनी ही पागल हो जाती।

अब अब्बू के चुम्बन मेरे उभरे गोल पेट के ऊपर छाने लगे। उन्होंने अपनी जीभ से मेरी गहरी नाभि को खूब कुरेदा चूमा। जब अब्बू के चुम्बन जाँघों के ऊपर पहुंचें तो मैं भरभरा कर झड़ने के लिए तैयार थी। बस अब्बू को मेरी जलती चूत की ऊपर एक बार ही अपना मुंह लगाना भर था।

अपर अब्बू ने अपनी बेटी की वासना की आग को और परवान चढ़ाने के लिए मेरी चूत को अकेला छोड़ कर मेरे मांसल गुदाज़ जाघों को चूमते हुए नीचे जाने लगे। अब्बू ने मेरी सीधी जांघ और टांग की एक एक इंच को चूमा। जब उनके चुम्बन मेरे घुटने के पीछे की नाज़ुक संवेदनशील खाल को चुम रहे थे तो मैं तो मस्ती से बौखला गयी।

मेरा सारा बदन गनगना उठा था। मैं अब बिलकुल तैयार थी। यदि उस वक़्त अब्बू ने एक धक्के में अपना घोड़े जैसा लन्ड मेरी चूत में ठूंस दिया होता तो मैं एक लम्हे में झड़ जाती। पर अब्बू मेरे बदन को सारंगी के तारों की तरह बजा रहे थे।

आखिर में अब्बू ने मेरे दाएं पैर को गीले चुम्बनों से भर कर मेरे अंगूठे को अपने मुंह में भर लिया। उन्होंने मेरे दाएं पैर के अंगूठे को चूस चूस कर मुझे पागल। मुझे उस रात पता चला कि मेरे पैर की उँगलियों और अंगूठे भी मेरे वासना के बटन हैं। अब्बू ने मेरे पैर की सारी उंगलीयों को उतने प्यार चूस चूस आकर मुझे दीवानी कर दिया। फिर अब्बू ने मेरे बाएं पैर को भी वैसे ही प्यार से चूम चूस। उनके चुम्बन फिर मेरे बाएं टांग और जांघ के ऊपर कहर ढाते हुए मेरे पेंडू की ऊपर पहुँच गये।

इस बार अब्बू ने अपनी जीभ से मेरी घनी घुंघराली झांटों को फैला कर मेरे भगोष्ठों को गुलाब की पंखुड़ियों की तरह अलग अलग कर दिया। अब्बू के जीभ की नोक ने मेरी चूत की गुलाबी सुरंग के मुहाने को सहलाया। मैं हलके से चीख उठी मस्ती में ,"अब्बू अब्बू हाय रब्बा अब्बू ...।"

अब्बू ने मेरी गुदाज़ जांघों को मोड़ कर फैला दिया। अब मेरी रस से भरी चूत अब्बू के मुंह के लिए पुरी खुली थी। अब्बू ने मेरी जांघों को सहलाते हुए मेरी चूत को अपनी जीभ से कुरेद प्यार से हलके से। उन्होंने मेरे दाने को बिलकुल अकेला चूड़ दिया था। मैं तड़प रही थी झड़ने के लिए। मैं झड़ने के कगार पे थी बस अब्बू की जीभ को एक बार मेरे भग-नासे को कुरेदने भर था। पर अब्बू ने अपनी बेटी की वासना को ऐसी आसानी से नहीं खड़ने देने वाले थे उस रात।

अब्बू ने जब मेरी वासना की आग को बेकाबू होते देखा तो अपनी जीभ से मेरी जांघें चूमने लगे। मैं तपड़ रही थी। पर मेरे झड़ने की चाहत और अब्बू का प्यारा सितम मुझे और भी जला रहा था।

अब्बू ने एक बार फिर से मेरी चूत चूमने चाटने लगे। उन्होंने मेरी चूत की सुरंग को अपनी गोल गोल मोड़ी जीभ से चोदा। फिर उन्होंने मेरे तन्नाए दाने को चूसा चाटा। जैसे ही मैं झड़ने वाली थी ना जाने कैसे अब्बू जान गए और उन्होंने मेरी चूत को अकेला छोड़ दिया।

मैं अब झड़ने की चाहत से जल रही थी। अब्बू ने कई बार मुझे झड़ने के कगार पे ले कर प्यासा छोड़ दिया।

"अब्बू मेरे अब्बू, अब नहीं रहा जाता अब्बू। अब अपनी बेटी के ऊपर इतना प्यारा सितम बन्द कीजिये और झाड़ दीजिये मुझे अब्बू ... ," मैं बिलबिला उठी थी।

अब्बू ने एक बार फिर से अपना पूरा भारी भरकम बदन मेरे ऊपर डाल दिया। उन्होंने मेरे पसीने की बूंदों से सजे मुंह को जी भर कर चूमा। उन्होंने ममेरी बगलों को भी खूब चटखारे मारते हुए चूसा। मैं अब्बू के चूमने से मस्त पड़ी थी और मुझे पता ही नहीं चला। ना जाने किस लम्हे में अब्बू मोटे सेब जैसे सुपाड़े को मेरी चूत के दरवाज़े के ऊपर टिका दिया।

मेरी वासना से भरी आँखें अब्बू की आँखों से अटक गयीं।

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१४६

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नसीम आपा और अब्बू ३

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अब्बू ने प्यार से धीरे से अपना हाथी जैसा लन्ड अपनी बेटी की चूत में ऐसे घुसाया जैसे मेरी चूत इतनी नाज़ुक है की थोड़े से भी ज़ोर से फट जाएगी।

वो लम्हा मुझे और अब्बू को हमेशा याद रहेगा। अब्बू बहुत धीरे धीरे एक एक इंच करके अपना लन्ड मेरी चूत के बहुत प्यार से डालने लगे। हम दोनों बाप-बेटी की आँखें एक लम्हे के लिए भी जुदा नहीं हुईं। मेरी चूत अब्बू के बोतल जैसे मोटे लन्ड के ऊपर फैलने लगी। उनका मोटा सूपड़ा अपनी बेटी की चूत में घुसने लगा। अब्बू के घोड़े जैसे हाथ भर लंबे लन्ड को बहुत देर लगी एक एक इंच करके जड़ तक मेरी चूत को भरने में। अब्बू के सुपाड़े ने मेरे उपजाऊ गर्भाशय को अंदर धकेलते हुए उनके महालन्ड के लिए जगह बनायीं।

मेरा दिमाग़ वासना से तो जल ही रहा था। पर अब इस ख्याल से कि मेरी चूत को भरता फैलता हुआ लन्ड मेरे अब्बू का है। उस अब्बू का जिसके लन्ड के लन्ड के बीज से मैं अपनी अम्मी के गर्भ में बनी थी। अब वोही लन्ड मेरे उपजाऊ गर्भाशय को अपने उसी बीज से सींचेगा। मैं इन ख्यालों से और भी गरम हो गयी।

अब्बू का लन्ड आखिर जड़ तक मेरी चूत में थंस गया था। मैं इस ख्याल से ख़ुशी से पागल हो गयी।

"अब्बू मैं अब आपकी औरत बन गयी हूँ। आपका लन्ड आपकी बेटी की चूत में पूरा घुस गया है। हाय अब्बू क्यों हमने इतने साल बर्बाद किये?" मैं ख़ुशी और वासना के बुखार से जलते हुए बुदबुदाई।

"बेटी जो खुद की मर्ज़ी उसे हमें मानना पड़ेगा। अब मेरी बेटी वाकई मेरी बेटी और औरत बन गयी है ," अब्बू ने मेरे माथे के ऊपर चमकती पसीनों की बूंदों को प्यार से चाट लिया।

"अब्बू अब अपनी बेटी और औरत को खूब चोदिये अपने लन्ड से। अब्बू क्या पता अल्लाह की मर्ज़ी से आपके वीर्य से मेरा गर्भ भर जाए?" मैं अब हर आने वाली मुमकिन घटना के ख्याल से ख़ुशी से भर उठी।

"बेटी क्या आदिल को यह अच्छा लगेगा?"अब्बू भी इस ख्याल से खुश हो गए थे।

"अब्बू अब आप मुझे चोदिये। आदिल आपको अपने अब्बू की तरह प्यार करतें हैं। और फिर नेहा है ना अपना जादू चलाने के लिए," मैं अब अब्बू से चुदने के लिए तड़प रही थी।

"बेटी आज रात तो मैं तुम्हें सारी रात चोदूंगां,"अब्बू ने उनका लन्ड एक एक इंच करके मेरी चूत से बाहर निकलने लगा। मेरी फट पड़ने जैसी फ़ैली चूत खली खली महसूस करने लगी। मेरी चूत में जब सिर्फ अब्बू का सूपड़ा भर रह गया था तब उन्होंने पहले की तरह एक एक इंच करके अपना लन्ड एक बार फिर से मेरी चूत में डालने लगे। जैसे ही उनकी झांटें मेरे दाने से रगड़ीं मैं भरभरा कर झड़ गयी।

"अब्बू ... ऊ ... ऊ ... ऊ मैं झड़ गयी ... ई ... ई ... ई ...ई अब्बू ... ऊ ... ऊ ... ऊ ... ऊ," मैं झड़ने की ख़ुशी और विलासता से चीख उठी।

"नूसी बेटी अभी तो तुम कई बार झड़ोगी," अब्बू ने मेरी फड़कती नाक को अपने मुंह में भर लिया और मेरी चूत को उसी धीमी लंबी चुदाई से चोदने लगे। अब्बू का लन्ड मेरी चूत की हर नन्हे हिस्से को अपने लन्ड से रगड़ रहा था।

मैं वासना से पागल हो गयी। मेरे अब्बू का लन्ड आखिर चूत में था यह ख्याल ही दीवाना करने के लिए। पर अब्बू का लन्ड जिस तरीके से मुझे चोद रहा था वो बहुत अनोखा था। धीमा पर ज़ोरदार। धीमा पर हर धक्के से मेरा गर्भाशय और भी पीछे धंस जाता।

मैं अब बिना रुके झाड़ रही थी। मेरे झड़ने की लड़ी बन चली थी। और अब्बू ने मेरी वासना की आग के ऊपर तेल डालने के कई तरीके ढूंड। जब उनका मुंह और जीभ जब मेरी नथुनों को नहीं चोद रहा था तो मेरी पसीने से भीगी बगलों को चूस रहा था। जब मेरी बंगलें उनके थूक से गीली हो जातीं तो अब्बू का मुंह मेरे दोनों चूचियों और चूचुकों को चुम और चूस रहा था।

सबसे ऊपर उनका लन्ड बिना रुके उसी दिमाग़ को पागल कर देने वाली धीमी रफ़्तार से मेरी चूत चोद रहा था। और मैं झरने की तरह लगातार झड़ रही थी।

"अब्बू ... अब्बू ... अब्बू ... आह ... आनन्नन ... आनह चो ... दी ... ये ... अब्बू ... ऊ ," मैं झड़ते हुए चीखी।

आखिर मैं इतनी बार झड़ चुकी थी कि मैं गाफिल होने लगी। अब अब्बू ने यकायक चुदाई की रफ़्तार बदल दी। उन्होंने मेरी जांघें अपनी ताक़तवर बाँहों के ऊपर डाल कर पीछे धकेल दीं। उन्होंने अपना लन्ड सुपाड़े तक निकाल कर एक डरावने धक्के से जड़ तक ठूंस दिया। यदि मैं अनेकों बार झड़ने से पहले ही थकी नहीं होती तो मेरे चीख़ तुम लोगों के कमरे में भी गूँज उठती।

अब्बू ने इस बार जो बेदर्दी सी चोदना शुरू किया तो धीमे ही नहीं हुए। उनका मेरी रस से लबालब चूत को रेल के से इंजन के पिस्टन की रफ़्तार से चोद रहा था। मेरी चूत से फच फच की आवाज़ें मेरे अब्बू की भयंकर चुदाई का गाना गया रहीं थीं।

मैं अब और भी ज़ोर से सिसकने लगी और मेरे झड़ने की लड़ी और भी तेज़ हो गयी।

अब अब्बू मेरी नथुनों को पागलों की तरह अपनी जीभ से चोद रहे थे और मेरी चूत बेरहमी से अपने घोड़े जैसे लन्ड से। और मैं हर कुछ लम्हों में बार बार झड़ रही थी। मैं इतनी वासना के हमले से पगला रही थी। मेरा बदन अब्बू के बदन-तोड़ धक्कों से तूफ़ान में पत्तों की तरह हिल रहा था।

ना जाने कितनी देर तक अब्बू ने मुझे चोदा उसी बेरहम रफ़्तार से। जब अब्बू ने अपने लन्ड से अपने गरम उपजाऊ वीर्य की बारिश मेरे उपजाऊ गर्भाशय के ऊपर शुरू की तो मैं इतनी थक चुकी थी कि अब्बू के वीर्य और मेरे अण्डों की शादी का ख्याल भर ने मुझे गाफिल कर दिया। ना मालूम कितने फव्वारे मारे अब्बू के लन्ड ने मेरे गर्भाशय के ऊपर मैं लगभग बेहोश हो गयी थी।

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१४७

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नसीम आपा और अब्बू ४

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जब मैं जगी तो अब्बू के भारी प्यारे बदन ने मुझे बिस्तर के ऊपर दबा रखा था। मैंने पागलों की तरह अब्बू के मुंह को चूम चूम कर गीला कर दिया।

"अब्बू माफ़ कर दीजिये मैं तो आपकी चुदाई से गाफिल हो गयी," मैंने अब्बू की मर्दानी नाक की नोक को चूमते हुए कहा।

"बेटी आज रात कौन सोने देगा मेरी बेटी को," अब्बू ने प्यार से कहा।

मैं तो यह ही सुनना चाहती थी। आखिर यह मेरी और अब्बू की ' सुहागरात 'थी।

"अब्बू अब मेरी बारी है आपको प्यार करने की," मैंने अब्बू से दरख्वास्त की।

अब्बू ने जब अपना लन्ड मेरी मेरे रस और उनके वीर्य से भरी चूत से निकाला तो एक लंबी धार बिस्तर पर फ़ैल गयी।

मैंने अब्बू को चित्त लिटा दिया। मैं उनके भारी-भरकम शरीर के ऊपर चढ़ गयी। पहले मैंने उनके मर्दाने चेहरे को अपने नन्हें हाथों में भर कर दिल भर कर चूमा। मैंने उनकी पलकें , उनका चौड़ा माथा , उनकी छोटी दाढ़ी से ढकी गर्दन को गीले मीठे चुम्बनों से इंच इंच गीला कर दिया। फिर उनके कानों के लोलकियों [इअरलोब्स ] को दिल भर कर चूसा। उनके कान के अंदर मैंने जीभ दाल उन्हें अपने गरम थूके से गीला कर दिया। अब्बू मेरे बेटी का अपने अब्बू की तरफ अपने प्यार का पागलपन से इज़हार करते देख आकर मर्दानी हल्की हल्की मुस्कान फेंकतें मुझे प्यार से देखते रहे।

मैंने उनकी मर्दानी सुंदर नाक के शक्ल को अपनी जीभ की नोक नापने के बाद उसे अपने मूंह में भर लिया। फिर अपनी जीभ की नोक से मन भर कर उनके एक नथुने के बाद दुसरे नथुने को खूब प्यार से चोदा। मेरे थूक से उनकी नाक गीली हो गयी।

मैं फिर उनकी मर्दानी चौड़ी बालों से भरी छाती को चुम्बनों से गीला करने के बाद उनकी बालों से भरी बगलों को भी चूस चूम कर खूब प्यार किया। उनके बदन से मेरी चुदाई की महनत से पसीने की मंद मंद खुशबू मेरे नथुनों में भर गयी। फिर बारी थी मेरे अब्बो की तोंद की। मैंने उनकी पूरी बालों से भरी तोंद को खूब चूमा और उनकी गहरी नाभि को जीभ से कुरेदने के साथ साथ उसे थूक से भर दिया।

मैंने अब्बू की मोटे के पेड़ के तने जैसी भारी भारी चौड़ी जाँघों को चूमते हुए उनके पैरों की हर ऊँगली को दिल खोल कर मूंह में भर कर चूसा।

और फिर मैं अब्बू के जाँघों को चूमते चूमते उनकी जांघों के बीच लटके घोड़े जैसे लंबे मोटे मूसल के ऊपर पहुँच गयी। मैंने उसे प्यार से थाम के हौले हौले मीठे चुम्बनों से उनके ख़ौफ़नाक पर प्यारे लन्ड के डंडे की पूरी लंबाई चूम ली। अब मैंने अब्बू के लन्ड का मोटा सेब जैसा सुपाड़ा अपने मूंह में भर कर हलके हलके चूसने लगी। अब्बू का लन्ड सिर्फ आधा खड़ा था फिर भी मुश्किल से मेरे दोनों हाथ उसे घेर पा रहे थे। जैसे जैसे उनका लन्ड तनतनाने लगा मेरा मूंह और भी खुल गया। मैंने अपनी जीभ की नोक से उनके पेशाब के छेद को कुरेदने लगी। मेरे नन्हें हाथ अब्बू के घोड़े जैसे लन्ड के तने को सहला रहे थे।

मैंने एक हाथ से उनके बड़े अण्डों जैसे मोटे घने घुंगराले झांटों से ढके फोतों को सहलाने लगी। मैंने अब्बू के लन्ड को चूसना बन्द कर उनके फोटों के नीचे की मुलायम खाल को चूमने लगी। उनके जांघों और चूतड़ों से उठती मर्दानी खुशबु मेरे नथुनों में भर गयी और मैं उनके मर्दाने शरीर के नमकीन खारे स्वाद के लिए बैचैन हो गयी। मैंने अब्बू को पलटने के लिए दरख्वास्त की। अब्बू अब पेट के बल लेते थे। मैंने उनके ऊपर लेट कर अपने फड़कते चूचियों से उनकी बालों भरी कमर की मालिश करने लगी। अब्बू के मुँह से निकली हलकी सिसकारी ने मेरे दिल और दिमाग़ में ख़ुशी की बिजली सी कौंधा दी। मेरे बड़े भारो उरोज़ उनके कमर और चूतड़ों के ऊपर रगड़ रगड़ कर उन्हें अनोखा मज़ा दे रहे थे।

मैंने उनके मज़बूत भारी बालों से भरे चूतड़ों को फैला कर अपने तन्नाए हुए चुचुकों से उनकी गांड की दरार सहलाने लगी। मैंने अपने एक चूचुक से उनकी गांड के फड़कते छेद को कुरेदा तो उनके दोनों मांसल चूतड़ फड़क उठे। अब मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उनके फैले हुए चूतड़ों के बीच में अपना मूंह दबा दिया।

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नसीम आपा और अब्बू ५

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अब्बू की गांड की दरार से उठती खुशबु ने मुझे पागल सा कर दिया। मैंने उनके चूतड़ों के बीच की दरार को अपने जीभ से चूम चाट कर अपनी लार से नहला दिया। फिर मैंने अब्बू की गांड के छेद को अपनी जीभ से कुरेदने लगी। अब्बू की गांड का मांसल तंग छेद इतना कसा हुआ था की मैं जितनी भी कोशिश करती फिर भी मेरी जीभ की नोक उसमे नहीं घुस पायी।

लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मेरी जीभ बिना थके और निरुत्साहित हुए अब्बू की गांड के छल्ले को कुरेदती रही। आखिर कार बेटी के प्यार ने अब्बू की गांड के छेद की बढ़ को निरुत्तर कर दिया।

अब्बू की गांड का छल्ला धीरे धीरे खुलने लगा और मेरी नदीदी जीभ की नोक उनकी गांड के अंदर घुस गयी। अब की गांड की सुगंध नेमेरे दिमाग में तूफ़ान उठा दिया। मैंने उनकी गांड के कसैले पर मेरे लिए मीठे स्वाद को अपनी जीभ से खोदने लगी।

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