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Click here"अरे इन्तिज़ार किसका कर रहें हैं कपड़े उतारिये और अंडे आ जाइये," दाद ने दादू को उकसाया।
दादू ने अपना ट्रैक-सूट एक झटके में उतार दिया। उनका भारी भरकम भालू जैसा बालों से भरा शरीर पसीने से भीगा था। मैं कूद कर दादू की गोद में बैठ गयी बिना शर्म के। दादू ने मुझे दिल भर कर चूमा फिर मैंने उनकी बालों भरीं पसीने से लथपथ कांखों को मन भर चूसा। मैंने उनके पसीने की हर बूँद चाट ली उनके बालों बहरे सीने से।
"नेहा बेटा तेरे दादू का लंड तैयार है अपनी पोती के लिए। चढ़ जा अपने दादू के घोड़े पर," दादी के शब्दों के बची-कुची शर्म का पर्दा खींच कर फेंक दिया।
मैं बिना शर्म के दादू के विकराल लंड के ऊपर बैठ गयी ,"मुझसे नहीं डाला जायेगा आपका लंड अपनी चूत में। "
दादी ने मेरे कंधे दबाये दादू के लंड के ऊपर। मेरी चूत दादू के लंड को निगलने लगी धीरे धीरे। दादू ने जड़ तक अपना लंड ठूंस कर मेरी चूत का मीठा मर्दन शुरू कर दिया। जब मैं दस बारह बार झड़ चुकी तो उन्होंने मुझे उठा कर टब में घोड़ी बना कर चोदा। मैं सिसक सिसक कर झड़ती रही। दादू का लंड फचक फचक की आवाज़ें पैदा करता मेरी चूत में पिस्टन की तरह अंदर बाहर आ जा रहा था।
बिना मुझे आगाह किये दादू ने अपना लंड मेरी चूत में से निकाल कर मेरी गांड में ठूंस दिया। मेरी चीखों ने दादू को और भी उत्साहित किया मेरी गांड को बेदर्दी से चोदने के लिए।
लम्बी चुदाई के बाद दादू ने मेरी गांड भर दी अपने गरम वीर्य से। फिर मुझे मिला दादू का सुनहरा शर्बत और दादू को मेरा।
फिर हम तीनो बिस्तर को ओर चल पड़े, मेरे आगे दिन भर की दिन भर की चुदाई थी दादी और दादू के साथ।
अब मेरा परिवार प्रेमग्रस्त था। शायद यह मेरी कल्पना है मेरे परिवार में तो प्रेम की बिमारी सालों से ही थी। बस मुझे ही ही देर से लगी यह जलन। लेकिन अब लग गयी तो बुझने का नाम ही नहीं लेती। सुशी बुआ मुझे चिढ़ातीं कि घर में एक लंड है जिसकी मैंने सेवा नहीं की है। मैं शर्म से लाल हो जाती। बुआ मेरे पापा की ओर इंगित कर रहीं थीं।
फिर अचानक मम्मी ने एक रहस्य खोला तो मेरा जीवन ही बदल गया।
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१७८
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एक शुक्रवार की शाम को जैसे जादू से सारे मर्द इकट्ठे क्लब चले गए। मुझे उस दिन घर में काफी ख़ामोशी सी भी लग रही थी। जब मैं पारिवारिक-कक्ष में गयी तो मम्मी चिंतित लग रहीं थीं। सुशी बुआ उन्हें अपने से लिपटा कर जैसे उन्हें साहस सा दे रहीं लग रहीं थीं। दादी मम्मी के बालों सो सहला रहीं थीं। जैसे बेटी समझ जाती है वैसे मुझे एक क्षण लगा समझने में कि मम्मी की समय हैं यह। मुझे मेरे हँसते मुस्कराते घर में गंभीरता बिलकुल नहीं सुहाई।
मुझे देख कर मम्मी के आँखें नुम हो गयीं। मेरा दिल ज़ोर से धड़कने लगा। "सुन्नी, हमारी नेहा लाखों में एक है। उसे बता को तो देख ,"सुशी बुआ ने मम्मी को उकसाया।
दादी माँ ने सर हिला कर सम्मति दी। मैंने घबराते हुए पूछा ,"मम्मी क्या बात है? मुझे बतिये ना। मैंने क्या कोई गलती की है?"
मैंने कालीन पे बैठ कर मम्मी की गोद में अपना मुंह छुपा लिया।
बुआ ने अब गंभीरता से कहा, "सुन्नी तू नहीं बताएगी तो मैं बता दूंगीं। पर नेहा को तुझसे ही पता चलना चाहिए। "
मम्मी के सुंदर चहरे पे दर्द की छाया मेरे ह्रदय में भले खोंप रही थी। आखिर कार मम्मी ने गहरी सांस ले कर मेरे बालों को चूमा," बेटी यदि तेरी माँ की बात से तू अपनी माँ से नाराज़ हो गयी या उस से घृणा करने लगी तो मैं मर जाऊंगी।"
मुझे रोना आ गया," मम्मी आपकी बेटी कभी आपसे नाराज़ कैसे हो सकती है। और घृणा आपकी ओर उस से पहले अपनी जीभना काट लूंगी मैं।"
मम्मी ने मुझे गले लगा लिया और हम दोनों रोने लगीं। बुआ और दादी ने भी मुश्किल से सुबकियां रोकीं। बुआ ने वातावरण को हकला करने के लिए झूटे गुस्से से कहा,"अभी किसी ने कुछ कहा भी नहीं और देखो हम चारों टसुए बहाने लगीं। चल अब मुँह खोल सुन्नी। वरना मैं तेरी चूत में डाल दूँगी बेलन।" मम्मी और दादीना चाहते हुए भी मुस्कुरा दीं। बुआ की जानबूझ कर फूहड़ सी बात से वातावरण वाकई हल्का हो गया।
"नेहा बेटा जब तू चार साल की थी तब मुझे लिंफोमा जिसमे ल्यूकीमिआ का मिश्रण था हो गया।"
मैं सन्न रह गयी। मेरी प्यारी मम्मी को कैंसर था और मुझे बताया भी नहीं किसीने। बुआ ने तुरंत मेरे चेहरे को देख कर कहा," देख नेहा हत्थे से छूटने मत लग जाना। तेरी मम्मी का कैंसर बहुत ही जल्दी पकड़ लिया था डॉक्टरों ने। सुन्नी ने खून की जांच कराई थी दुबारा गर्भित होने से पहले।"
मम्मी ने बात संभाली, "सुशी बुआ सहीं कह रहीं हैं। इसीलिए हम सबने तुझ से यह बात छुपाई। मेरी स्टेज बहुत शुरुआत की थी और कीमो से सब ख़त्म हो गया। पर हमने घबराहट में एक गलती कर दी," और मम्मी की हिचकियाँ बंध गयीं फिर से।
दादी ने बात संभाली अब,"नेहा बेटा हम सब सुन्नी के स्वास्थ्य के लिए इतने परेशां थे कि सुन्नी के अण्डाणु को बैंक में बचाना भूल गए। तेरी माँ की तबसे इच्छा थी कि तेरे जैसी प्यारी बेटी या वैसा ही प्यारा बेटा की। लेकिन सुन्नी को तेरा बहन या भाई तेरे जैसा ही चाहिए। अंकु का वीर्य तो है पर सुन्नी के अण्डाणु जैसे अंडे तो सिर्फ तेरे पास हैं।"
मैंने लपक चूमा, "मम्मी मैं तैयार हूँ सब करने को पर आप उदास मत हो।"
"नेहा बेटा हम तेरे बचपन को छोटा नहीं करना चाहते पर तुझे सत्य का आभास तो देना ही पड़ेगा हमें। सुन्नी तैयार थी की तेरे अण्डाणु को अंकु के वीर्य से गर्भादान करके सुन्नी के गर्भाशय में स्थापित करने के लिए। पर हार्मोन्स इतने सारे देने पड़ेंगें की सुन्नी की बिमारी वापस आने का खतरा है। सुन्नी तो तैयार है पर हम सब नहीं। अंकु के लिए तेरी मम्मी को एक बार खोने का डर के बाद अंकु सुन्नी को कोई खतरा नहीं लेने देगा ," बुआ ने विस्तार से बताया।
मैंने सुबकते हुए कहा ,"बुआ मैं सब कुछ करूँगीं जो ज़रूरी है। पर मम्मी को खतरा नहीं लेने दूंगीं।आप मुझे बताइये मुझे क्या करना है?"
बुआ बागडोर संभाली, "देक्झ मैं तेरी माँ को हरगिज़ नहीं उसकी ज़िन्दी खतरे में डालने दूँगी। चाहे मुझे उसे बांधना पड़े। सुन्नी मेरी ननद या भाभी ही नहीं मेरी छोटी बहन है।," बुआ भावुक हो गयीं ,"देख नेहा तू हिसाब लगा कि क्या होना चाहिए। तेरे पापा के वीर्य के शुक्राणु तेरे अंडे जो सिर्फ तेरे गर्भ में पल सकते हैं।"
बुआ ने मुझे अध्यापिका की तरह देखा जैसे वो किसी मंदबुद्धि के छात्र का उत्साहन कर रहीं हों। मम्मी का चेहरा शर्म से लाल हो गया पर दादी मंद मंद मुस्कराने लगीं।
बुआ ने झल्ला कर कहा,"अरे मेरी मेधावी नेहा बिटिया सिर्फ एक रास्ता है। तेरी शादी अंकु के साथ और जितने तेरी मम्मी चाहे उतने बेटी-बेटे ,समझी!" मैं भी शर्म से लाल हो गयी पर बुआ कहाँ पीछा छोडने वालीं थीं , "बोल क्या कहती है।"
मैंने मम्मी को ओर देखा फिर शर्म सर झुका कर ज़ोर से हाँ कर दी।
मम्मी ने मुझे गले लगा कर रो पड़ीं। दादी की आँखें भी बहने लगीं। बुआ अब वास्तव में सुबक रहीं थीं पर सुशी बुआ तो सुशी बुआ थीं ,"देख सुन्नी अभी भी सोच ले इस शैतान नेहा को अपनी सौतन बनाने से पहले।"
दादी माँ ने अपनी बेटी तो डांटा, "अरे सुशी सौतन होगी तेरी। मेरी नेहा बिटिया तो अब मेरी बहु की बेटी ही नहीं बहन भी हैं।"
बुआ ने कहा, "देखो सब लोग। यह शादी सिर्फ घर में ही रहेगी पर धूमधाम में कोई कस्र नहीं सहूंगीं मैं। मम्मी देखो नेहा के लिए सारे ज़ेवर नए होने चाहियें।"
मैंने शरमाते हुए कहा, "नहीं बुआ यदि मम्मी को कोई आपत्तिना हो तो मैं उनकी शादी का जोड़ा पहनूंगीं अपनी शादी पे।"
मेरी बात सुनकर तीनों फिर से सुबक उठीं एक दुसरे से लिपट कर । "स्त्रियांना समझी जाएँ,ना संभाली जाएँ," मैंने सोचा और फिर मैं भी सुबकने लगी।
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१७९
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दो दिन में सारे परिवार के लोग इकट्ठे हो गए। नरेश भैया और अंजू भाभी तो उसी शाम आ गए अपनी निजी हवाई-जहाज से। मनु भैया और नीलम भाभी ने अपना मधुमास को तोड़ कर दुसरे दिन आ गए। सुरेश चाचू और नमृता चाची तो जैसे इसी दिन का इन्तिज़ार कर रहे थे। उनके बेटी बेटा , मीनू, संजू, ऋतू मौसी और राजन मामू शाम तक आ गए। घर भरने लगा धीरे धीरे। गंगा बाबा और जानकी दीदी ने संभाला खाने पीने का इंतिज़ाम। नमृता चची के पिता जी साथ साथ आये। अकबर चाचू, शब्बो बुआ , शानू , नसीम आपा , आदिल भैया,, अरे नहीं नहीं, आदिल जीजू और फिर अकबर चाचू की दोनों सालिया शन्नो और ईशा। राजू चाचू , रत्ना चाची, सुकि दीदी , रामु काका, पारो चाची और उनकी नन्ही रज्जो तो घर में ही थे। भूरा को कौन भूल सकता था।
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नमृता चाची, शब्बो बुआ और सुशी बुआ ने संभाला मुझे। यानि की मेरी हर पल हर दिन हालत ख़राब करने की ज़िम्मेदारी ले ली इन दोनों आफत की पूड़ियाओं ने। सब के सब जोड़ियां बना कर रात भर ( दिन में भी) चुदाई करते पर मेरे और पापा के लिए सब बंद था। मम्मी भी ख़ुशी मिल गयीं थीं। हर दिन सुशी बुआ और नमृता चाची मेरी चूत और गांड में सो-टाइट और वी - टाइट खूब मात्रा में लगाती जिस से मैं दस दिनों में कुंवारी होने से भी ज़्यादा कास जाऊं , "देख नेहा अंकु ने यदि सुहागरात की चादर को तेरे गाड़े खून से लाल नहीं किया तो शर्म की बात होगी,"और फिर दोनों खिलखिला कर हंस देतीं।
शादी का दिन तय था मेरे मासिक धर्म से। दस दिनों में मेरा पहला सबसे उर्वर दिन होगा और मेरे अंडे तरस रहे होंगे पापा के वीर्य से मिलने के लिए - यह मेरा नहीं नमृता चाची का विवरण है।
और फिर हर दिन बिना वजह के हल्दी-चन्दन के उबटन और गँवारुं गाने -यह मेरा विवरण है। ज़ोर से नहीं बोलै मैंने। मार थोड़े ही कहानी थी मुझे सुशी बुआ, शब्बो बुआ और नमृता चाची से।
शादी के दिन मुझे सजाया संवारा गया। मम्मी के शादी के जोड़े पहनते हुए साड़ी स्त्रियां रोने लगीं। मैने कहा नहीं था 'स्त्रियां समझ नहीं... वगैरहा... वगैरहा ।
मैं जेवरों के वज़न से झुकने लगी। एक नहीं चार नथें पहनाई गयीं मुझे , मम्मी की शादी , दादी की शादी की , नानी की शादी की और सुशी बुआ की शादी की। मैं अब सबकी बेटी भी तो बन गयी थी। फिर ऋतू मौसी, जानकी दीदी ,पारो चाची, रत्ना चाची, सुकि दीदी, शब्बो बुआ , नसीम दीदी, दादी माँ , सब रोने लगीं मुझे देख कर। सब सुबक सुबक कर मम्मी, दादी को गले लगा कर हँसते हुए रोने लगीं। मम्मी के आंसूं तो रुक ही नहीं रहे थे। ( "कितनी सुंदर है हमारी बेटी "-उन्ह इतने जेवरों में दबाओगे तो कोई भी सुंदर लगेगा नहीं?- पर मैं बोली नहीं। पीटना थोड़े ही था मुझे शादी के दिन। )
सुशी बुआ ने ताना मारा "अरे रो क्यों रही हो रण्डियों। किस माओं को ऐसा सौभाग्य मिलता है की बेटी की शादी के बाद भी बेटी घर में रहे। "
नमृता चाची ने भी तीर छोड़ा ,"और क्या। मेरी रंडी बहन ऋतू किसी गधे से शादी करे तो मैं उस से पीछा छुड़ाऊं पर वो तो मेरे भैया के साथचिपकी रहेगी। "
शब्बो बुआ भी तो वहां थीं ,"सब रोना बंद करो खुदा के वास्ते। मेरी बेटी नेहा को आखों से दूर थोड़े की करूंगी मैं। "
और फिर तीनों औरों से भी ज़्यादा रोने लगीं।
मैं शर्म से लाल घूँघट में से अपने पापा को देखा।सोने की जरदारी की अचकन लखनवी पजामी में इतने सुंदर लग रहे थे कि मेरी सांड रुक सी गयी। अग्नि के सात फेरे। सारी स्त्रियों के बहते आंसूं। मैंने अपने पति के पैर छुए। पापा ने मेरी मांग में सिंदूर भर दिया।
फिर मुझे याद नहीं क्या हुआ। खाना कब खत्म हुआ। कब मुझे सुहागरात के बिस्तर पर बिठा दिया गया।मुझे याद रही तो बुआ की चेतावनी -"देख अंकु मैं दरवाज़े के बाहर ही हूँ। तेरी वधु की चीखेंना सुनायीं दी तो दरवाज़ा तोड़ कर अंदर आ जाऊंगीं "शब्बो बुआ और नमृता चाची ने गंभीरता से समर्थन में सर हिलाया इस महत्वपूर्ण मसले के ऊपर।
पापा ने प्यार से मेरी नथें उतारी और फिर भारी सारी और सारे वस्त्र। पहले मेरे फिर अपने।
"मैंने पापा के चरण छू कर कहा ,"पापा मैं मम्मी जैसी पत्नी की छाया भी नहीं हूँ पर मैं पूरा प्रयास करूँगीं। "पापा ने मुझे अपने से चुपका लिया।
और फिर पापा ने ममेरे 'कौमार्य ' को फिर से तोड़ा उस रात। दादी सही थीं। पापा सबसे बीस नहीं टेइस थे। मेरी चीखें दरवाज़े के बाहर तो क्या सारे कसबे में सुनाई दी होंगीं। दरवाज़ा तो पास था बिस्तर के। किसी को भी शिकायत नहीं हुई सुहगरात की चादर से।
बाकि की कहानी तो अभी भी ज़ारी है पर संक्षेप में :
मधुमास के लिए पापा और मैं चार महीनों के लिए यूरोप में थे। तीसरे हफ्ते में मैं गर्भ से थी। जब हम वापस आये तो शब्बो बुआ हुए नसीम आपा के पेट निकले हुए थे। ऋतू मौसी ने अपने भैया से गन्धर्व विवाह किया और जुड़वां बेटों से फूल गयीं। सुशी बुआ भी गर्भ से थीं सालों की असफलता के बाद। मैं तो इसे अपनी मुट्ठ चुदाई की करामात कहती हूँ पर सब इसे मेरे और मेरी मम्मी पापा के स्वर्गिक प्रेम का प्रभाव कहतें हैं।
जानकी दीदी की कोख भर दी थी गंगा काका ने।
मेरी पढ़ाई थोड़ी धीरी हुई पर मैंने मम्मी को तीन बच्चों से पूरा व्यस्त कर दिया अगले चार सालों में। लंदन स्कूल ऑफ़ इक्नोमिक्स से बीऐ करके पापा की तरह हार्वर्ड में एम बी ऐ में दाखिला मिल गया। पत्नी सही पर पापा की बेटी भी तो थी मैं। उनके पदचिन्हों पर भी तो चलना था मुझे यह अच्छे 'बेटे' की तरह ।
मेरे लम्बे बड़े फैले परिवार में कई कमियां हो शायद पर एक कमीं नहीं हैं औरना होगी कभी - प्यार की।
समाप्त
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I thought I would finish on an even number of chapters.