फंसाया जाल में

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“मैं तो तुम्हे दिखा रहा हूं कि मैं तुम्हारा शौहर होता तो क्या करता,” मैंने उसे और पास खींच कर कहा. “इसके लिए मुझे कुछ देर के लिए तुम्हे अपनी बेग़म समझना होगा. और आज मैं अपनी बेग़म की ख़िदमत पैरों से नहीं बल्कि अपने हाथों से करूंगा.”

मेरा एक हाथ वहीदा की कमर के गिर्द था और दूसरे हाथ से मैं उसके कंधे को सहला रहा था. पैरों की बात छेड़ कर मैंने उसे पिछली रात की याद दिला दी थी. और पिछली रात जो हुआ था वो तो उसके शौहर की मौजूदगी में हुआ था. जब उसने अपने शौहर के होते हुए कोई विरोध नहीं किया तो उसका आज का विरोध तो बेमानी था. लेकिन वो इतनी जल्दी हथियार डालने को तैयार नहीं थी. उसने कहा, “एहसान साहब, कल जो हुआ वो सिर्फ एक बेगुनाह छेड़छाड़ थी.”

“वो बेगुनाह थी तो इसमें कौन सा गुनाह है?” मेरा हाथ वहीदा के कंधे से फिसल कर उसके नंगे बाजू पर आ चुका था. “वो बेगुनाह छेड़छाड़ थी तो ये बेगुनाह इबादत है! बस तुम मुझे थोड़ी और इबादत करने का मौका दे दो.”

“कल की बात अलग थी,” वहीदा ने जवाब दिया. “कल मेरे शौहर साथ में थे.”

“इसीलिए तो तुमने मुझे कहा था कि मैं कभी भी दिन में यहाँ आ सकता हूं,” मैंने सोचा कि अब शर्म-ओ-लिहाज छोड़ने का वक़्त आ गया है. “तुम्हे पता था कि दिन में तुम्हारे शौहर यहाँ नहीं होंगे. क्या तुम मुझ से अकेले में नहीं मिलना चाहती थीं?”

अब वहीदा के लिए जवाब देना मुश्किल था. फिर भी उसने कोशिश की, “हां, लेकिन मेरा मकसद ...”

मैंने उसकी बात काटते हुए कहा, “तुम्हारा और मेरा मकसद एक ही है. तुम्हारा शौहर तुम्हारी अहमियत समझे या न समझे पर मैं समझता हूं. तुम्हारा हुस्न बेशक इबादत के काबिल है. तुमने मुझे अकेले में यहाँ आने के लिए कह कर बहुत हिम्मत की है. अब थोड़ी हिम्मत और करो. मुझे अपनी इबादत करने का मौका दे दो.”

मुझे लगा कि मैंने बहुत सधे हुए अल्फाज़ में अपनी बात कही थी. उसका असर भी देखने को मिला. वहीदा न तो कल रात जो हुआ उससे इंकार कर सकती थी और न ही इस बात से मुकर सकती थी कि उसने मुझे दिन में आने के लिए कहा था. उसने धीमी आवाज में कहा, “एहसान साहब, आप सचमुच ऐसा समझते हैं? कहीं आप मुझे बना तो नहीं रहे हैं?”

मेरी नज़र उसके मम्मों पर थी जो उसकी कमीज़ के महीन कपडे से झाँक रहे थे. वहीदा ने जब देखा कि मेरी नज़र कहाँ थी तो उसने शर्मा कर अपनी गर्दन झुका ली. मैं समझ गया कि उसने मेरे सामने समर्पण कर दिया है. मैंने कहा, “मैं क्या समझता हूं यह मैं बोल कर नहीं बल्कि कर के दिखाऊंगा.”

मैंने वहीदा का एक हाथ अपने हाथ में लिया और उसे उठा कर अपने होंठ उस पर रख दिये. जैसे ही मेरे होंठों ने उसके हाथ को छुआ, वो सिहर उठी. उसका जिस्म मेरे जिस्म से सट गया. उसके मम्मे मेरे सीने से लग गए. मैं उसके नर्म हाथ को चूमने लगा. मेरा मुंह रफ्ता-रफ्ता उसकी बांह और कंधे पर फिसलते हुए उसकी सुराहीदार गर्दन पर पहुँच गया. मेरी जीभ उसकी गर्दन पर फिसल रही थी तो मेरा हाथ उसकी कमर पर. मुझे अपनी खुशकिस्मती पर यकीन नहीं हो रहा था. जिस वहीदा को हासिल करने के सपने मैं सालों से देख रहा था वो आज मेरे हाथों में कठपुतली बनी हुई थी. मेरे होंठ उसके गालों पर पहुँच गए. उसके नर्म और रेशमी गालों की लज्जत नाकाबिले-बयां थी. मेरे होंठ उसके एक गाल का जायजा ले कर उसके गले के रास्ते दुसरे गाल पर पहुँच गए. एक गाल से दूसरे गाल का सफ़र चलता रहा और साथ ही मेरा हाथ उसकी कमर से उसके सीने पर पहुँच गया.

जैसे ही मेरी मुट्ठी वहीदा के मम्मे पर भिंची, उसका जिस्म तड़प उठा. उसकी आँखें बरबस मेरी आँखों से मिलीं. उसका चेहरा मेरे चेहरे के सामने था. मैने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये. मैने अपने होंठों से उसके होंठ खोलते हुए उसका निचला होंठ अपने होंठों के बीच दबाया और उसका रस पीने लगा. अब वहीदा की शर्म जा चुकी थी. उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थीं. उसने अपना मुंह खोल कर अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए. जैसे ही मेरी जीभ उसके मुंह में पहुंची, उसने उसका स्वागत अपनी जीभ से किया. जीभ से जीभ का मिलन जितना रोमांचकारी मेरे लिए था उतना ही वहीदा के लिए भी था. वो पूरे जोश से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी. मैं भी उसकी जीभ का रसपान करते हुए उसकी चून्ची को मसलने लगा।

मेरा हाथ वहीदा के मम्मे को छोड़ कर उसके मांसल चूतड़ पर पहुँच गया. कुछ देर चूतड़ को सहलाने और दबाने के बाद मेरा हाथ उसकी सलवार के नाड़े पर पहुंचा तो वो थोड़ा कसमसा कर बोली, “नहीं, एहसान साहब.”

मैं जैसे ओंधे मुंह ज़मीन पर गिरा. मंजिल मेरी पहुँच में आने के बाद वहीदा मुझे रोक रही थी. मैंने इल्तजा भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा. उसने अपनी बात पूरी की, “दरवाजा बंद नहीं है!”

उसकी बात सुन कर मेरी नज़र दरवाजे पर गई. डोर क्लोजर से किवाड़ बंद तो हो गया था पर चिटकनी नहीं लगी हुई थी. मुझे अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आया कि किवाड़ को धकेल कर कोई भी अन्दर आ सकता था. मैं चिटकनी लगाने के लिए उठा पर वहीदा मेरे से पहले दरवाजे तक पहुँच गई. जैसे ही वो चिटकनी लगा कर पलटी, मैंने उसे अपनी बाँहों में भींच लिया. मैने उसे दरवाजे से सटा कर उसकी दोनों चूचियों पर अपने हाथ रख दिये. मेरे होंठ एक बार फिर उसके होंठों पर काबिज हो गए. साथ ही मैं उसकी दोनों चूचियों को मसलने लगा. अब बिला-शक वहीदा पूरी तरह मेरे काबू में थी और मैं जान गया था कि मेरी बरसों की मुराद पूरी होने वाली है. मैं कभी उसकी चून्चियों को कमीज़ के ऊपर से मसलता था तो कभी अपनी अंगुलियों से उसके निप्पल को मसल देता था. वहीदा चुपचाप आँखें मूंदे अपनी चून्चियां दबवा रही थी. उसका लरजता जिस्म और उसकी तेज़ होती सांसे उसकी उत्तेजना की गवाही दे रही थीं. उसकी जीभ फिर मेरी जीभ से टकरा रही थी. अब अगली पायदान पर चढ़ने का वक़्त आ गया था.

मैं अपना हाथ वहीदा की कमीज़ के ज़िप पर ले गया. वो कुछ बोलती उससे पहले मैंने ज़िप को पूरा नीचे खिसका दिया. ज़िप खुलते ही उसने अपना मुंह मेरे मुंह से अलग किया. उसने मुझे सवालिया नज़रों से देखा. उसकी नज़रों में शर्म भी थी. मैं जानता था कि किसी भी औरत के लिए यह लम्हा बहुत मुश्किल होता है, मेरा मतलब है एक नए मर्द के सामने पहली बार अपने जिस्म को बेपर्दा करना. मैंने वहीदा को बहुत प्यार से कहा, “वहीदा, प्लीज़ मुझे इस नज़ारे से महरूम मत करो. मैंने इस लम्हे का सालों इंतजार किया है. तुम चाहो तो अपनी आँखें बंद कर लो.”

वहीदा ने मुझे निराश नहीं किया. उसने मौन स्वीकृति में अपनी आंखें बंद कर लीं. मैंने धीरे से उसके दुपट्टे को उसके जिस्म से अलग किया. मैंने उसकी कमीज़ को नीचे से ऊपर उठाया. जब वह उसके सीने तक पहुँच गई तो उसने अपनी बाँहें ऊपर उठा कर कमीज़ उतारने में मेरा सहयोग किया. अब उसके सीने पर ब्रा के अलावा कुछ नहीं था. काले रंग के महीन कपडे की ब्रा उसके मम्मों की खूबसूरती छुपाने में नाकामयाब साबित हो रही थी. मैंने उसे पीछे घुमा कर उसकी ब्रा के हुक खोले. जब मैंने ब्रा को उसके जिस्म से हटाया तो मैं उसकी नंगी सुडौल पीठ के हुस्न में खो गया. मैं बेसाख्ता अपने हाथ उसकी पीठ पर फिराने लगा. वहीदा ने अपना जिस्म किवाड़ से सटा दिया. मुझे लगा कि मैं उसके बाकी कपडे भी पीछे से उतारूं तो उसे कम झिझक होगी. मैंने अपने हाथ आगे ले जा कर उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया. इस बार उसने कोई एतराज़ नहीं किया. जब मैंने सलवार नीचे खिसकाई तो वहीदा ने अपने पैर उठा कर सलवार उतारने में मेरी मदद की. मेरी नज़र उसकी चड्डी से झांकते मांसल कसे हुए नितम्बों पर अटक गई. मैंने हौले-हौले उसकी चड्डी को नीचे खिसकाया. जैसे ही उसके नंगे नितम्ब नुमाया हुए, मैं बे-अख्तियार हो कर उन्हें चूमने लगा. चड्डी को उसके जिस्म से अलग कर के मैं उसकी नंगी रानों को सहलाने लगा. मेरी जीभ उसके लज़ीज़ चूतड़ों के एक-एक इंच का जायका ले रही थी. चूतड़ों को चाटते-चाटते मैंने अपने कपडे भी उतार दिये.

मैं खड़ा हो गया. वहीदा की पीठ मेरी तरफ थी. मैं पीछे से उसके नंगे जिस्म का दिलकश नज़ारा देख रहा था. उसे पता नहीं था कि उसकी तरह मैं भी मादरजात नंगा था. मैंने उससे चिपक कर अपने हाथ उसकी चून्चियों पर रख दिए. मेरा बेकाबू लंड उसके चूतड़ों के बीच की खाई में धंस गया. शायद लंड के स्पर्श से उसे मेरे नंगेपन का एहसास हुआ. वह उत्तेजना से कांप उठी. मैं भी उसकी नंगी चून्चियों के स्पर्श से पागल सा हो गया था. मैंने अपना मुंह उसके गाल पर रख दिया और उसे मज़े से चूसने लगा. यह मन्ज़र मेरी कल्पना से भी ज्यादा दिलकश था – वहीदा का नंगा जिस्म मेरे सामने, उसकी नंगी चून्चियां मेरी मुट्ठियों में और मेरे होंठ उसके लज़ीज़ रुखसार पर. मेरा मुंह उसके गाल से उसके कान पर पहुँच गया और मैं अपनी जीभ से उसके कान को सहलाने लगा. साथ ही मेरा जिस्म अपने आप आगे-पीछे होने लगा. मेरा लंड उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से से रगड़ने लगा. मेरी हरकतों से वहीदा की गर्मी बढ़ने लगी. उसकी सिसकारियां निकलने लगीं और उसके चूतड़ लरजने लगे.

वहीदा पर गर्मी चढ़ते देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गई. अब तक मैंने उसकी चून्चियों का नंगापन सिर्फ अपने हाथों से महसूस किया था. अब मैं उनका नज़ारा पाने को बेक़रार हो गया. मैं उसकी चून्चियों को दबाते हुए बोला, “वहीदा, आज तक मैंने इन्हें सिर्फ सपनों में देखा है. आज तुम मुझे इनका दीदार हक़ीक़त में करवा दो तो मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.” यह कह कर मैंने उसे अपनी तरफ घुमा दिया.

वहीदा ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा, “ये क्या कर रहे हैं, एहसान साहब?” शर्म से उसकी गर्दन झुक गई.

“प्लीज़ देखने दो, वहीदा.” मैंने उसके हाथ हटाते हुए कहा. वहीदा की हालत तो ऐसी थी जैसे वो शर्म से जमीन में गड़ जाना चाहती हो.

मैंने कहा, “इतना हसीन नज़ारा शायद फिर कभी मुझे देखने को नहीं मिलेगा. ... ओह! इतने प्यारे मम्मे! इन्हें देख कर तो मैं अपने होश खो बैठा हूँ!”

अब तारीफ का औरत पर असर न हो, यह तो नामुमकिन है. वहीदा भी अपने मम्मों की तारीफ सुन कर यकीनन खुश हुई. वह शर्माते हुए बोली, “यह क्या कह रहे हैं आप! आपको तो झूठी तारीफ करने की आदत है.”

“झूठी तारीफ करने वाले और होंगे,” मैंने हैरत का दिखावा करते हुए कहा (मेरा इशारा युसूफ की तरफ था जो आम शौहरों की तरह अपनी बीवी की चून्चियों की तारीफ अब शायद ही कभी करता होगा). मैंने आगे कहा, “तुम्हारी कसम, ऐसे हसीन मम्मे मैंने आज तक नहीं देखे. अगर मेरी बात झूठ हो तो अल्लाह मुझे अभी अँधा कर दे!”

यह सुनते ही वहीदा ने कहा, “अंधे हों आपके दुश्मन! मेरा मतलब कुछ और था.”

“तुम्हारा मतलब है कि युसूफ इनकी झूठी तारीफ करता है,” मैंने एक चूंची हाथ में ले कर कहा.

वहीदा ने शर्मा कर मेरे हाथ की तरफ देखा जो उसकी एक चूंची पर काबिज़ हो चुका था. उसने कहा, “उनके पास कहाँ वक़्त है इन्हें देखने के लिए!” उसकी आवाज में थोड़ी मायूसी थी पर वो मेरी बातें सुन कर थोड़ी खुश भी लग रही थी.

मैंने सोचा कि अब आगे बढ़ने का वक़्त आ गया है. मैं वहीदा को अपनी एक बांह के घेरे में ले कर दीवान की तरफ बढ़ा. उसने कोई एतराज़ नहीं किया. लगता था कि आगे जो होने वाला था उसके लिए वो दिमागी और जिस्मानी तौर पर तैयार हो चुकी थी. मैंने उसे दीवान पर लिटाया और खुद भी उसके पास लेट गया. मैंने उसकी तरफ करवट ले कर उसे अपनी तरफ घुमाया. हमारे चेहरे एक-दूसरे के सामने थे. वो पहली बार मेरे जिस्म को पूरा नंगा देख रही थी. उसने शरमा कर अपना चेहरा मेरी छाती में छुपा लिया. हमारे जिस्म एक-दूसरे से चिपक गए थे. मैंने उसके चेहरे को उठा कर अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए. जब चुम्बन का आगाज़ हुआ तो वहीदा पीछे नहीं रही. उसने शर्म त्याग कर चुम्बन में मेरा पूरा साथ दिया. एक बार फिर जीभ से जीभ मिली और हम दोनों एक नशीले एहसास में खो गए. मुझे पहली बार पता चला कि होंठों से होंठों और जीभ से जीभ का मिलन इतना मज़ेदार हो सकता है. मज़ा शायद वहीदा को भी आ रहा था. तभी वो पूरी तन्मयता से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी.

मेरा हाथ फिर से वहीदा के जिस्म का जायजा लेने में लगा था. इस बार उसका हाथ भी निष्क्रिय नहीं था. वो भी मेरे जिस्म को टटोल रही थी और सहला रही थी. हमारा चुम्बन ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. न मैं पीछे हटने को तैयार था और न वहीदा. हमारी जीभ एक-दूसरे के मुंह के हर कोने को टटोल रही थी. कुछ देर बाद वहीदा ने सांस लेने के लिए अपने मुंह को मेरे मुंह से अलग किया तो मेरी नज़र उसके सीने पर गई. ओह, क्या दिलफरेब मम्मे थे! गोरे-गोरे, एकदम अर्ध-गोलाकार और गर्व से उठे हुए! साइज़ में नारंगियों के बराबर और वैसे ही रसीले भी! उनके मध्य में उत्तेजना से तने हुए निप्पल! मेरी नज़र उन पर अटक सी गई. और फिर मेरा मुंह अपने आप एक मम्मे पर पहुँच गया. मेरी जीभ उस पर फिसलने लगी. उसका सफर मम्मे की बाहरी सीमा से शुरू होता था और निप्पल से थोडा पहले ख़त्म हो जाता था. एक मम्मे को नापने के बाद मेरा मुंह दूसरे मम्मे पर पहुँच गया, फिर वही खेल खेलने.

शुरू में तो लगा कि वहीदा भी इस खेल का मज़ा ले रही थी पर फिर वो बेचैन दिखने लगी. उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपना निप्पल मेरे मुंह में घुसा दिया. मैंने अपनी जीभ से निप्पल को सहलाना शुरू किया तो उसका शरीर रोमांच से लहराने लगा. मैंने उसके दूसरे मम्मे को अपने हाथ में ले लिया और उसे मसलने और दबाने लगा. इस दोहरे हमले से वहीदा पगला सी गयी. उसका जिस्म बेकाबू हो कर मचलने लगा. उसकी गर्मी बढ़ती देख कर मैं भी जोश में आ गया. मेरे मुंह और हाथ का दबाव बढ़ गया. मैं उसकी चूंची को चूसने के साथ-साथ उसके निप्पल को अपने दांतों के बीच दबाने लगा. मेरी मुट्ठी उसकी दूसरी चूंची पर भिंची हुई थी. दोनों चून्चियों का जी भर कर मज़ा लेने के बाद मैंने नीचे की ज़ानिब रुख किया. मेरा मुंह उसके सुडौल और सपाट पेट और उसके मध्य में स्थित नाभि की सैर करने लगा.

वहीदा अब बुरी तरह मचलने और फुदकने लगी थी. मेरा मुंह उसकी पुष्ट और दिलकश जाँघों पर पहुँच गया. मैं उसकी पूरी जाँघों पर अपनी जीभ फिराने लगा, पहले एक जांघ पर और फिर दूसरी पर. उसकी जाँघों का मनमोहक संधि-स्थल मेरे मुंह को निमंत्रण देता प्रतीत हो रहा था मानो कह रहा हो कि आओ, मेरा भी स्वाद चखो. जाँघों के मध्य एक पतली सी दरार थी, कोई तीन इंच लम्बी और बालरहित. मेरी जीभ जाँघों के मध्य पहुंची तो वहीदा ने उन्हें जोर से भींच लिया. मैंने यत्न कर के उसकी जाँघों को चौड़ा किया और अपनी जीभ उसके तने हुए क्लाइटोरिस पर रख दी. जब मेरी जीभ ने उसे सहलाना और चुभलाना शुरू किया तो वहीदा का शरीर बेतहाशा फुदकने लगा. उसने मेरे सर को पकड़ कर जबरदस्ती ऊपर उठाया और हाँफते हुए बोली, “ये क्या कर रहे हैं, एहसान साहब? प्लीज़, ऐसा मत कीजिये.”

मैंने वहीदा को ताज्जुब से देखा. वो उठने की कोशिश कर रही थी. मैंने उसे कहा, “वहीदा, मेरी जान! मैं तो तुम्हे खुश करने की कोशिश कर रहा हूँ. मैंने सोचा था कि तुम्हे ये अच्छा लगेगा.”

“अच्छा तो लग रहा है,” वहीदा ने जवाब में कहा. “पर ऐसा भी कोई करता है!’

अब मुझे एहसास हुआ कि युसूफ शायद ऐसा नहीं करता होगा इसलिए वहीदा को यह अजीब लग रहा था. कुछ भी हो, उसने यह तो मान लिया था कि उसे यह अच्छा लग रहा था. मैंने सोचा कि मैं उसे चुदाई का पूरा मज़ा दे दूं तो यह चिड़िया लम्बे अरसे तक मेरे जाल में फंसी रह सकती है. मैंने उसे प्यार से कहा, “मैं तो ऐसा करता हूं और करूंगा. तुम बस आराम से लेट कर इसका लुत्फ़ उठाओ.”

मैंने वहीदा को फिर से लिटाया और इस बार मैंने उसकी चूत को अपने निशाने पर लिया. मैं उसकी रसीली चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा. वहीदा ने अब अपने आप को पूरी तरह मेरे हवाले कर दिया था. एक कहावत है कि अगर बलात्कार अवश्यम्भावी है तो लेट कर उसका मज़ा लेना चाहिए. शायद वहीदा ने मान लिया था कि अगर चूत-चुम्बन अवश्यम्भावी है तो लेट कर उसका मज़ा लेना चाहिए. मैं चाटने के साथ-साथ अपनी जीभ उसकी चूत के अन्दर बाहर करने लगा. अपनी चूत में जीभ घुसते ही वहीदा बेसाख्ता फुदकने लगी. लगता था कि अब वो खुल कर मज़ा ले रही थी. वो मेरे सर को अपनी चूत पर दबा कर अपनी कमर तेज़ी से ऊपर-नीचे करने लगी. अचानक उसके मुंह से एक चीख निकली और उसका बदन कांप उठा. उसकी सिसकारियों और उसके शरीर के कम्पन से जाहिर था कि वो झड़ रही थी. मुझे ख़ुशी हुई कि मैं वहीदा को चोदने से पहले ही उसे ओर्गज्म पर पहुँचाने में कामयाब हो गया था. अब चिड़िया पर मेरे जाल की पकड़ मजबूत हो गई थी.

जब वहीदा अपने ओर्गज्म से उबरी तो उसने प्यार से मुझे देखा. उसके चेहरे पर शर्म की लाली थी पर शर्म से ज्यादा उस पर ख़ुशी नज़र आ रही थी. उसने मुझे ऊपर की तरफ खींचा. ऊपर बढ़ते हुए मैंने फिर उसके शरीर को चूमना और चाटना शुरू कर दिया, पहले उसका पेडू, फिर नाभि और फिर चून्चियां. एक बार फिर उसकी एक चूंची मेरे मुंह में थी और दूसरी मेरी मुट्ठी में. वहीदा फिर मचल रही थी और तड़प रही थी. उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं और चूंची के नीचे से मैं उसके दिल की धडकनों को महसूस कर रहा था. मैं अपना एक हाथ नीचे ले गया और उससे टटोल कर मैंने उसकी चूत को ढूँढा. चूत उत्तेजना से भीग चुकी थी. मैंने अपनी ऊँगली उसमें घुसा दी. ऊँगली अन्दर घुसते ही वहीदा सिसक उठी. मैंने उसकी चूंची से अपना मुंह उठाया और उसके चेहरे का रुख किया. एक बार फिर मैं उसके गालों को चूसने और चाटने लगा. फिर मेरा मुंह उसके कान पर पहुंचा. मैं अपनी जीभ से उसके कान को अन्दर से गुदगुदाने करने लगा. गुदगुदी से वहीदा कुलबुलाने लगी. मैंने फिर से अपना मुंह उसके होंठों से लगा दिया और अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी. उसने भी खुल कर जवाब दिया और हमारी जीभें एक फिर मुक़ाबिल हो गईं. उनमे एक-दूसरी को पछाड़ने की होड़ लग गई. उधर मेरी ऊँगली अपने काम में जुटी हुई थी.

वहीदा का जिस्म बुरी तरह मचल रहा था. जाहिर था कि उसकी जांघों के बीच आग लग चुकी थी. मैं अभी उसे और तडपाना चाहता था मगर उसने बड़े इसरार से कहा, “बस एहसान साहब, उंगली से नहीं! अब ऊपर आ जाइए.”

जब वहीदा ने मुझे अपने ऊपर आने की दावत दी तो मैं अपने आप को नहीं रोक पाया. आखिर इसी लम्हे का तो मैं बरसों से इंतजार कर रहा था. मेरा लंड भी अब उत्तेजना से बेकाबू हो चला था. मैंने वहीदा के ऊपर अपनी पोजीशन ली. उसने भी अपनी टांगें चौड़ी कर दीं. मैं अपने लंड से उसकी चूत को ढूँढने लगा. अपने तमाम तजुर्बे के बावजूद मैं अपना निशाना ढूंढने में नाकामयाब रहा. वहीदा मेरी मुश्किल समझ गई. या शायद वो चुदने के लिए बेताब थी. उसने मेरे लंड को अपनी उंगलियों के बीच थाम कर उसे सही जगह पर रखा और मुझे एक मौन इशारा किया. मैंने अपने चूतडों को आगे धकेला तो चूत के लब खिंच कर फैल गए. उनमे कहाँ कुव्वत थी एक हठीले लंड को रोकने की. सुपाड़ा चूत में प्रवेश पा गया. मैंने एक सधा हुआ धक्का लगाया तो एक चौथाई लंड चूत में दाखिल हो गया. वहीदा हल्के-हल्के कराहती मुझे और गहराई में उतरने की दावत दे रही थी. मैं लंड को थोड़ा बाहर खींचता और फिर उसे थोड़ा और अंदर ठेल देता. आहिस्ता आहिस्ता लंड अपना रास्ता बनाता गया. वहीदा भी पूरा सहयोग कर रही थी और जल्द ही उसकी चूत ने मेरे लंड को जड़ तक अपने अंदर जज्ब कर लिया. उसकी चूत मेरी बेग़म जैसी चुस्त नहीं थी पर थी बड़ी लज्ज़तदार, अन्दर से मखमल जैसी मुलायम. मुझे इल्म था कि मर्दों को हर नई चूत लज्ज़तदार लगती है और जब चूत की मालकिन वहीदा जैसी हसीन औरत हो तो लज्जत का कहना ही क्या! मैंने उसकी तारीफ करने में कंजूसी नहीं की, “कसम से वहीदा, ऐसी मस्त चूत आज पहली बार मिली है!”

वहीदा ने शर्मा कर अपनी आँखें बंद कर लीं. मैं उसकी चूत की गिरफ्त का लुत्फ़ लेते हुए नीचे झुक कर उसके कानों, गले और कंधे को चूमने लगा. मेरा हाथ उसके मम्मे को सहला रहा था और उसके निप्पल को मसल रहा था. मैं किसी तरह अपनी उत्तेजना पर काबू पाना चाहता था ताकि मैं जल्दी न झड़ जाऊं. जो नायाब मौका मुझे आज मिला था मैं उसे लम्बे से लम्बा खींचना चाहता था. मैने अपनी कोहनियों को वहीदा की बगलों के नीचे जमाया और अपने मस्ताये हुए लंड से हलके-हलके धक्के देने लगा. वहीदा की आँखें बंद थीं पर वो खुश दिख रही थी. शायद वो भी चुदाई का लुत्फ़ ले रही थी. मैं भी उसे चोदने का पूरा मज़ा ले रहा था. जब मेरी उत्तेजना ज्यादा बढ़ जाती, मैं अपने धक्के रोक कर वहीदा के गालों और होंठों को चूमने लगता. इससे उसका मज़ा बरकरार रहता और मैं अपनी उत्तेजना पर काबू पा लेता.

जब मैं वहीदा की चूत के कसाव का अभ्यस्त हो गया तो मैंने अपने धक्कों की ताक़त बढ़ा दी. मैं अब लंड को लगभग पूरा निकाल कर अन्दर पेल रहा था. ताक़त के साथ-साथ मेरे धक्कों की रफ़्तार भी बढ़ रही थी. वहीदा ने मुझे कस कर पकड़ लिया था और वो भी नीचे से धक्के लगा रही थी. जल्दी ही मेरे अंदर फुलझड़ियाँ सी छूटने लगीं. मेरे गले से आनंद की सिसकारियां निकल रही थीं, ‘आऽऽऽऽह…! ओऽऽऽऽह…! ऊऽऽऽऽह…!’

सिसकने वाला मैं अकेला नहीं था. मेरे साथ वहीदा भी सिसक रही थी. ... उसे लुत्फ़-अन्दोज़ पा कर मेरा हमला तेज़ हो गया - फचाक, धचाक, फचाक - मेरा लंड उसकी चूत को तहस-नहस करने पर आमादा था! वो चूत के अन्दर गहराई तक मार कर रहा था. ऐसा जबरदस्त हमला चूत कब तक झेलती! वहीदा का शरीर अकड़ा और एक लम्बी ‘आऽऽऽऽह!’ के साथ उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया. उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया. उसका जिस्म बुरी तरह कांप रहा था. मुझे लगा कि बिजलियाँ कड़क रही हैं और बरसात होने वाली है पर अपनी पूरी विल पॉवर लगा कर मैंने किसी तरह अपने आप को झड़ने से रोक लिया.

जब वहीदा का होश लौटा तो उसने मुझे बार-बार चूम कर मुझे मूक धन्यवाद दिया. मुझे फख्र महसूस हुआ कि मैं उसे इतना मजा दे पाया. इससे भी ज्यादा फख्र मुझे इस बात पर था कि मैं अभी तक नहीं झड़ा था. वहीदा जरूर मेरी मर्दानगी की कायल हो गई होगी. मैं यही चाहता था. उसे और खुश करने के लिए मैंने कहा, “वहीदा, तुम्हारे हुस्न की तरह तुम्हारी चूत भी लाजवाब है. मुझे ख़ुशी है कि मैं उसकी थोड़ी इबादत कर पाया.”

मेरी बात सुन कर उसके चेहरे पर हया की लाली छा गई. उसने नज़रें झुका कर कहा, “लाजवाब तो आप हैं! मुझे अफ़सोस है कि मैं आपको मंजिल तक नहीं पहुंचा सकी. काश मैं भी आपकी खिदमत कर पाती.”

“मुझे कौन सी जल्दी पड़ी है,” मैंने कहा. “हाँ, तुम्हे जल्दी हो तो और बात है.”

“जल्दी कैसी, मैं तो सिर्फ आपको खुश करना चाहती हूँ,” वहीदा ने कहा. “आप जो करना चाहें, कीजिये और मुझ से कुछ करवाना हो तो हुक्म दीजिये.”

मेरा मन तो कर रहा था कि मैं वहीदा को अपना लंड चूसने को कहूं पर इसमें जल्दी झड़ने का जोखिम था. बहरहाल मैं वहीदा में आये बदलाव से बहुत खुश था. अब वो पूरी तरह मेरे काबू में लग रही थी. मैंने उसके ऊपर से उतरते हुए कहा, “क्या तुम घोड़ी बन सकती हो?”

वहीदा समझ गई कि मैं उसे पीछे से चोदना चाहता हूँ. वो फ़ौरन पलट कर घोड़ी बन गई. उसके मांसल और सुडौल चूतड़ मेरी आंखों के सामने नुमाया हो गये. मेरी सहूलियत के लिए उसने अपनी टांगों को थोडा फैला दिया. अब जो मंज़र मेरी नज़रों के सामने था वो बहुत ही दिलकश था. एक तरफ वहीदा की चुस्त गुलाबी गांड मेरे लंड को दावत दे रही थी तो दूसरी तरफ उसकी फड़कती हुई चूत कह रही थी कि आओ और मेरे अन्दर समा जाओ. लेकिन मुझे अपने बेकरार लंड को थोडा आराम देना था ताकि वो जल्दी निपट कर मुझे शर्मिंदा न कर दे.

मैंने आगे झुक कर अपना मुंह वहीदा के चूतड़ों के बीच रख दिया. जैसे ही मेरी जीभ का स्पर्श उसकी गांड से हुआ, वहीदा चिहुंक उठी. लेकिन वो मेरे मुंह से दूर होती उससे पहले ही मैंने उसकी रानों को पकड़ लिया. मैं अपनी जीभ कभी उसके एक चूतड़ पर फिराता तो कभी दूसरे पर. बीच-बीच में मेरी जीभ उसकी गांड और चूत का जायजा भी ले लेती. वहीदा एक बार फिर मस्ती से सराबोर होने लगी. उसका जिस्म मचलने लगा. मैंने अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसा दी और अपनी जीभ उसकी गांड पर जमा दी. जब ऊँगली और जीभ का दोहरा हमला हुआ तो वहीदा बेसाख्ता बोल उठी, “बस एहसान साहब, अब आ जाइए!”

अब वहीदा को और मुन्तजिर रखना बे-अदबी होती. इसलिए मैं एक बार फिर पोजीशन में आ गया, इस दफा उसके चूतड़ों के पीछे. उसकी गांड और चूत दोनों मेरी पहुँच में थीं. गांड के आकर्षण पर काबू पाना आसान न था पर मुझे इल्म था कि गांड मारने में जल्दबाजी मुझे उसकी चूत से भी महरूम कर सकती थी. इसलिए फ़िलहाल मैंने उसकी चूत को ही अपना निशाना बनाया. मैंने अपना लंड उनकी चूत के मुहाने पर रख कर उसे आगे धकेला. उसने अपनी चूत को ढीला छोड़ दिया था इसलिए लंड चूत के अंदर धंसने लगा. चूत में काफी चिकनाई भी थी इसलिये मेरे लंड को उसके अंदर दाखिल होने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया और उनकी चूत में धक्के मारने लगा. मुझे अपना लंड उसके हसीन चूतड़ों के बीच चूत के अंदर-बाहर होता नज़र आ रहा था. यह एक बहुत ही दिलकश नज़ारा था! मैं उसकी चूत में मुसलसल धक्के मार रहा था और वो अपनी कमर को पीछे धकेल कर मेरा पूरा साथ दे रही थीं. उसके मुंह से बेसाख्ता आहें निकल रही थीं, “आह! आsssह! ओह! ओsssह! उंह…! हाय अल्लाह!”