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Click here27 साल की उम्र में मेरी शादी की बातें चलने लगी तो मुझे दिल में ख़ुशी भी होती थी और मायूसी भी। ख़ुशी शादी की और मायूसी इसलिए क्योंकि मुझे पता था की मुझे कोई ख़ास लड़की नहीं मिलने वाली। 27 साल की उम्र में मेरा शरीर किसी 15 साल के लड़के के बराबर था, सूखी हड्डी, लम्बा ही लम्बा, रंग काला, यहाँ तक कि दाँत भी टेढ़े मेढ़े और आगे को निकले हुए थे।मेरी पेरसोनलिटी भी कोई ख़ास नहीं थी, अपने रंग रूप के कारण मैं शर्मिले स्वभाव का था, गर्ल फ़्रेंड का तो सवाल ही नहीं उठता, इसीलिए मुझे शादी की ख़ुशी भी थी की सेक्स करने को तो मिलेगा कम से कम। ऐसे लड़के को तो उसके जैसी लड़की ही मिलेगी कोई परी तो मिलने से रही पर फिर भी इच्छा तो हर किसी के मन में होती है। पर मैं था कामयाब, मेरा कम्प्यूटर इंजिनयर का करीयर काफ़ी अच्छा चल रहा था क़रीब एक लाख तो मेरी महीने की कमाई थी।
निशा दूसरी लड़की थी जिसको घरवालों ने मेरे लिए देखा और मैं तो देख कर बवला सा हो गया। पच्चीस साल की निशा की लम्बाई आम लड़कीयो से ऊँची थी,रंग एक दम गोरा, चेहरा बहुत ही ख़ूबसूरत, और आम से बड़े आकर के स्तन। वो बढ़ी लिखी भी बहुत थी, इंग्लिश तो ऐसे बोलती थी जैसे अंग्रेज़ की बच्ची हो। वो जॉब भी करती थी, कोई आम नहीं कम्पनी सेक्रेटेरी की सैलरी अस्सी हज़ार। ये सब सुनकर हम तो वहाँ बस formalities सी पूरी करके वापस आ गए। ऐसी लड़की मुझ जैसे लड़के को हामी क्यूँ भरेगी, क्या कमी है उसमें, सुंदर भी, पढ़ी लिखी भी और ऐसा भी तो नहीं की मेरी कमाई पे वो रीझ जाए क्यूँकि वो तो ख़ुद ही अच्छा ख़ासा कमा रही है।
हम सब घर आकर इस बारे में बिना कुछ बात करे सो गए। मुझे पता था की कुछ होने से तो रहा, मैं रात भर उसके साथ सेक्स करने के ख़्वाब देखता रहा।
अगले दिन सुबह सुबह, बीचोलिए ने ख़बर दी की लड़की वालों को मैं पसंद हु और बात आगे बढ़ाए। मेरे साथ साथ सारे घरवाले बिलकुल दंग रह गए। घरवालों ने उनकी खोज बिन चालू की क़रीब एक महीने में वो सब संतुष्ट हो गए की लड़की वाले सही लोग है। फिर भी एक दिन मेरे मामा, चाचा मुझे मिलकर समझने लगे,
"सुन अरुण हमारी बात मान ले और शादी को मना कर दे" मामा बोले।
"वो क्यों भला?" मैंने तुरंत ही पूछा।
"हमें इन सब चीज़ों का तजुरबा है, अगर लड़का लड़की को जोड़ी मेल ना खाती हो तो ऐसी शादी सुख में बिलकुल नहीं कटती" चाचा ने समझाया।
"अरे ऐसा कुछ नहीं है, आजकल बच्चे शक्ल सूरत नहीं बल्कि ये देखते है की इंसान के अंदर क्या है?" मैंने उलटा उन्हें समझाया।
"बेटा, चार दिन तो कट जाते है, पर उम्र नहीं कटती। लोग देखेंगे और बातें बनाएँगे तो तुम्हें ख़ुद ही एहसास होने लगेगा" चाचा बोल पड़े।
"क्या उसके घरवालों को नहीं दिख रहा की जोड़ी कितनी ऊटपटाँग सी है फिर भी इतनी जल्दी मान गए तो इसका मतलब है की कुछ गड़बड़ है लड़की में, हो सकता है किसी के साथ चक्कर हो और भागी जा रही हो इसीलिए वो जल्द से जल्द शादी कर रहे हो उसकी" चाचा ने कहा।
"अरे! पर अपने ही तो खोज ख़बर निकाली है। सब ठीक ही बताया लोगों ने, तो क्या दिक़्क़त है" मैंने कहा, मैं उससे शादी करने को बेताब था, जितनी वो सुंदर थी, उतना तो मैं कभी कल्पना भी नहीं कर पाया था कभी, उसके बारे में सोच सोच कर मेरा दिल हिलोरे मरने लगता था। मैं सच बताऊँ तो उससे ज़्यादा उसके साथ सेक्स करने के बेताब था।
"सुनो! आप चाहे तो जितनी भी खोज निकल लो, अगर कुछ गड़बड़ लगी तो मैं नहीं करूँगा वरना मुझे शादी से बिलकुल भी ऐतराज़ नहीं है" मैंने आख़िर में कहा।
इसके बाद मेरे कज़िन, भाइयों और बहनो ने भी मुझे यही बात बोली और मैंने भी उसको वही कहा जो चाचा को बोला। मुझे रह रह कर लग रहा था की ये लोग जलन के मारे मुझे शादी से मना करने को कह रहे है की मेरी बीवी इतनी सुंदर होगी तो इनको जलन हो रही है।
एक महीने तक और खोज बिन काढ़ने के बाद भी कही से ऐसा सुनने को नहीं आया की लड़की के चाल चलन में कोई कमी थी।
रीति रीवजो की बातें आगे बढ़ी। मैं अब शादी तक का भी इंतेज़ार नहीं कर पा रहा था। हम रोज़ देर रात तक बातें करते, कभी TV कभी Movies तो कभी किसी और ही चीज़ के बारे में।
"दहेज! अरे आप लोग कोनसे ज़माने में जी रहे हो। शादी तो होगी नहीं सब के सब जेल में और चले जाओगे" एक दिन घर में इस बारे में बात उठी तो मैं भन्ना कर बोला उठा। मैं नहीं चाहता था की दहेज जैसी किसी चीज़ के कारण वो लोग शादी से मना कर दे, ऐसी लड़की तो मुझे कभी सपने में भी मिलने से रही फिर तो। मैंने ग़ुस्सा, और ज़िद पे अड़कर घरवालों को दहेज की माँग रखने से रोक दिया था।
इधर हम रात को बातें करते करते और भी frank हो गए थे। हम intimate बातें शेयर करने लगे थे।
"क्या आपकी कोई गर्ल फ़्रेंड थी?" निशा ने अपनी मधुर आवाज़ में पूछा।
"नहीं, मैं बस अपनी पढ़ाई पे ही ध्यान देता रहा। इन सब चीज़ों का टाइम ही नहीं मिला" मैंने जवाब दिया, मैंने ये नहीं कहा की कोई लड़की मुझे चारा नहीं डालती थी बल्कि जताया की मुझे ये सब कभी अच्छा ही नहीं लगा।
"आपका कोई बोय फ़्रेंड था क्या?" मैंने पूछा और मेरा दिल धक़ धक़ करने लगा।
"हम्म, एक था कॉलेज में बस ऐसे ही, कोई सीरीयस बात नहीं थी। मैंने भी जल्दी ब्रेक उप करके अपने करीयर पे ध्यान देना शुरू कर दिया था", उसने थोड़ा सोचने के बाद जवाब दिया। मैंने अपने आप को समझाया की कोई बात नहीं, ये तो आम बात है आजकल, अगर मुझे मौक़ा मिलता तो एक नहीं दस बनता। अगर उसका एक था तो क्या हो गया ।
मैं उससे पूछना चाहता था की क्या उसने कभी सेक्स किया है या नहीं पर डर के मारे नहीं पूछा की अगर उसने हाँ में जवाब दिया तो मैं क्या करूँगा।
"अपनी कोई अच्छी सी फ़ोटो भेजना ज़रा।" मैंने उससे कहा।
"हा बिलकुल" उसने कहा। दो मिनट में ही मेरे ईमेल पे उसकी एक मस्त सी फ़ोटो आ गयी। उसने एक सिंगल पीस ड्रेस पहन रखी थी उसकी एक चिकनी टाँग उसकी ड्रेस से बहरा रही थी और एक फुवारे के सामने आँख बंद करके खड़ी थी।फ़ोटो तो ऐसे लग रही थी मानो किसी मॉडल का फोटोशूट हो।
"वैसे आपके घरवाले मुझे शादी के बाद मेरे पसंद के कपड़े पहन्ने से रोकेंगे तो नहीं" उसने थोड़ी मासूम आवाज़ में पूछा।
"अरे ऐसा कुछ नहीं है", मैंने बोला हालाँकि मुझे पता नहीं था की घरवालों को ऐतराज़ होगा की नहीं।
"सच में! Wow " वो एक दम से ख़ुश हो गयी।
"वैसे भी हम शादी के बाद अलग रहेंगे। जो मन करे पहन्ना और कभी कोई मिलने आए तो साड़ी या सूट डाल लेना थोड़ी देर के लिए" मैंने उसे समझाया।
"हाँ ऐसा तो आराम से हो जाएगा " उसने कहा।
"क्यूँ? तुम्हें साड़ी या सूट अच्छे नहीं लगते?" मैंने पूछा।
"अरे ऐसा कुछ नहीं है, मुझे साड़ी, सूट, लहंगा हर तरह के कपड़े अच्छे लगते है और मैं सब पहनती हु पर जब कोई जबरजसती कहता है ना कि नहीं तुम्हें ये ही पहन्ना पड़ेगा तो मुझे बहुत ग़ुस्सा आता है। वैसे भी मैं ऑफ़िस जाती हु तो वह तो शर्ट और स्कर्ट पहन्नी पड़ती है। उससे भी अगर लोगों को दिक़्क़त होगी तो मैं काम कैसे करूँगी" उसने समझाया और उसकी सारी बातें मुझे बिलकुल सही लगी। पर अभी तक मैंने घरवालों से ये बात नहीं की थी की शादी के बाद वो काम करेगी या नहीं।
अगले दिन से घर में फिर से थोड़ा थोड़ा तनाव बनना शुरू हो गया इस चीज़ को लेकर की हमें निशा से जॉब करनी है या नहीं।
"अरे अगर शादी के बाद घर ही बैठना था तो क्या फ़ायदा इतना पढ़ने लिखने का?" मैंने घरवालों को थोड़ा तेज़ आवाज़ में समझाया। और इसी तरह की बहस रोज़ रोज़ होने लगी।
निशा रोज़ बिना कहें ही फ़ोटो भेजने लगी। उसकी मस्त मस्त फ़ोटो देखकर पहले तो मैं हिलाता और फिर घरवालों से झगड़ता की निशा को जॉब करने दी जाए। मैं हर हालत में उससे शादी करना चाहता था।
हर दिन उसकी फ़ोटो में कपड़े छोटे होने लगे। एक रात उसने अपनी फ़ोटो भेजी जिसमें वो अपने बेड पे बैठी हुई थी, मेरून रंग की ब्रा और चड्डी पहने, साथ में उसने पैरों में उसी रंग की क़रीब दो इंच ऊँची हील पहन रखी थी। उसकी चुच्चिया इतनी बड़ी थी की उसकी ब्रा में आधा ही समा रही थी और आधे से ज़्यादा गुम्बद तो बाहर ही दिख रहे थे। उसकी ब्रा भी कुछ पारदर्शी थी और ज़्यादा गोर से देखने पे उसके निपल दिख रहे थे।
"कैसा लगा? ख़ास आपके लिए ख़रीदे है" इतना सुनकर तो मैं मतवाला हो गया। सच बताऊँ तो मुझे उसी समय सचेत हो जाना चाहिए था और रिश्ता तोड़ देना चाहिए था पर मेरे ऊपर तो सेक्स का भूत सवार था।
"आप भी अपनी तस्वीर भेजो बिना कपड़ों की " उसने मुझसे कहा।
"मैं अभी कपड़े नहीं उतार सकता पर चाहो तो अपने लंड की फ़ोटो भेज सकता हु " मैंने कहा हालाँकि मैं बिना कपड़ों के तस्वीर भेज सकता था पर शर्म के मारे नहीं भेजी की वो मेरी निकलती हड्डियों को देख कर मेरा मज़ाक़ ना उड़ाए या कही शादी से मना ही ना करदे।
"भेजो, पता तो चले की शादी के बाद किसका स्वाद चखना है" उसने कहा तो मेरा लंड वही झड़ गया। मेरे बिना कहे ही वो तो मुँह में लेने की बातें कर रही थी। मैंने उसे अपने लंड की फ़ोटो भेजी। मेरा लंड भी कुछ ख़ास बड़ा नहीं था, क़रीब 4.5"-5", और सामान्य से पतला। मैं नेट पे देखता रहता था की मेरा कितना बड़ा या छोटा है। फ़ोटो भेजने के कुछ मिनट तक तो मैं बस ऐसे ही बैठा रहा।
'WOW! ये तो कही बड़ा है, तुम तो मुझे मार ही डालोगे', उसका ईमेल पे जवाब आया तो मैं फूल नहीं समाया।
अगले दिन मैंने सोच लिया था की चाहे कुछ करना पड़े पर घरवालों को बता दूँगा की शादी निशा से ही होगी और उसका मन होगा तो जॉब करेगी और नहीं करेगा तो नहीं करेगी।
"जिस घर में दो कमाने वाले होंगे उस घर में पैसा ही मिलगा ख़ुशी नहीं" मम्मी ने मुझसे कहा।
"देखो ये हमारा आपसी मामला है, हम अलग रहेंगे और जैसा ठीक लगेगा करेंगे" मैंने आख़िरी फ़ैसला सुना दिया।
उसके बाद किसी ने मुझसे कुछ नहीं कहा, सिर्फ़ जॉब ही नहीं हर मामले में। उन्होंने चुप्पी साध ली वो भी समझ गए की मैं किसी की नहीं सुनूँगा और वो मेरी कही आराम से मानने लगे।
हमारी शादी तय दिन पे हो गयी। हमारे यहाँ आम तोर पे शादियाँ घर के पास वाले पार्कों, धर्मशालाओं, गलियों या फिर हद से हद मैरिज हाउज़ेज़ में होती है। पर हमारी शादी के लिए उन्होंने होटेल बुक कराया था, होटेल कोई बहुत बड़ा नहीं था पर जैसा भी था एक अलग ही शान का प्रतीक बन गया था।
हमें शादी के बाद आराम करने के लिए एक कमरा दे दिया। उस कमरे में मैंने उसे ढंग से देखा, उसने लाल और सुनहेरे रंग का लहंगा पहन रखा था। कानो में झूमके, गले में हार, होंठों पे लाल लीपस्टिक वही सब जो एक नई नवेली दुल्हन पहनती है।
हम दोनो बिस्तर पे लेटे ही थे और मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या कहु। मेरा लंड तो खड़ा हुआ जा रहा था पर पता नहीं की कही निशा बुरा ना मान जाए या मना ही ना करदे की आज बहुत थक गयी है।
निशा ने अपना हाथ अपने आप ही मेरे पजामे के ऊपर से जाँघो पे रखा और सहलाने लगी। मेरा लंड और ज़ोर ज़ोर से झटके लेने लगा।
"बहुत तरस रहे हो। हाँ?" उसने मेरा उतावलापन पढ़ लिया और हाथ मेरे लंड पे रख के सहलाने लगी।
"एक काम करो, तुम कपड़े बदल लो। फिर हम अपना काम शुरू करेंगे " मैंने उसको बोला हालाँकि मेरेसे इंतज़ार तो बिलकुल नहीं हो रहा था पर मैंने ये दिखाने के लिए कह दिया ताकि उसको लगे की मैं ठरक का भूका नहीं बैठा हु बल्कि उसकी परवाह भी करता हु।
"शादी के जोड़े में लड़की और भी ज़्यादा होर्नि हो जाती है। कुछ पता भी है आपको?" वो इतराते हुए बोली। उसने मेरे पजामे का नाड़ा खोला और पजामा नीचे सरकाया। मैं बेड पे सिर के नीचे हाथ रख कर लेता रहा और उसे देखता रहा। उसने मेरे कच्छे को भी नीचे किया। मेरा लंड एकदम सीधा खड़ा हुआ था।
"अपनी झाटे तो काट लेते। फिर मुँह आएँगी।" उसने हँसते हुए मेरे लंड को हाथ में लेकर फेंटा और कहा। उस समय पर भी मेरा दिमाग़ ने ये नहीं सोचा की ये लड़की इतनी तेज़ है, झाट, मुँह में लेना सब जानती है, मैं ना जाने कहा फँस गया। क्यूँकि मेरे सिर पे तो ठरक सवार थी।
उसने मेरे लंड को 2-4 बार फेंटा और मुँह में लेने लगी। उसने मुश्किल से अपने होंठ मेरे लंड की tip पे रखे ही होंगे की मेरा लंड झाड़ गया। थोड़ा सा उसमें मुँह में चला गया और बाक़ी सारा उसके होंठों, नाक पे लग गया उसमें से भी कुछ मेरे लंड पे ही गिर गया।
झड़ने के बाद लंड बिलकुल मार कर नीचे गिर गया। उसके चेहरे पे dissapointment साफ़ साफ़ झलक रही थी। मुझे भी ख़ुद पे ग़ुस्सा आ रहा था।
"क्या करे तुम लग ही इतनी अच्छी रही हो, वैसे भी थकान के कारण भी ये हो जाता है" मैंने उसको बहलाया फुसलाया। हम दोनो ने कपड़े बदले। मैंने अपने रोज़ मर्राह का पजम और शर्ट डाली।
"सुनो! ज़रा मेरी मदद करना" बाथरूम में से निशा की आवाज़ आइ। मैं बाथरूम में गया, उसने अपनी सारे ज़ेवर उतार कर शीशे के सामने रखे हुए थे। उसने मुँह भी पानी से धो लिया था, सारा मेकप धुल चुका था, उसकी आँखो में काजल नहीं था, उसके होंठों ले अब लीपस्टिक का उतरा हुआ गुलाबी रंग था जो की पहले से भी ज़्यादा अच्छा लग रहा था। उसके महंगी में रचे हाथ उसकी कमर के पीछे उसकी कोटि के डोरी तक पहुचने की कोशिश कर रहे थे। उसकी कोटि backless और shoulderless थी, सिर्फ़ एक पतली सी डोरी ही थी जो कि उसकी कोटि सही जगह पे थामे हुए थी। फेरो के टाइम पे चुन्नी की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पर अब मैं ये सोच रहा था की इतनी पतली डोरी तो कभी भी टूट सकती थी या फिर किसी का हाथ ग़लती से भी लग जाता तो पूरी खुल कर गिर जाती। पर मेरा दिल उस समय मुझसे ये कह रहा था की निशा तेरे लिए इतना कब कुछ कर रही है, वो तुझे सच में चाहती है, तेरे में कुछ बात है जिस पर ये मरी जा रही है।
मैं उसकी तरफ़ बस देखता ही जा रहा था, मैं इस scene में बिलकुल ही खो चुका था। मेरा लंड फिर से खड़ा होकर हिलोरे लेने लगा था।
"अरे ज़रा डोरी खोल दो, और भी बहुत कुछ देखने को मिल जाएगा" वो मुझे छेड़ते हुए बोली।
मैं उसकी तरफ़ आगे बढ़ा उसने अपने दोनो हाथ ऊपर कर लिए। मैंने डोरी का एक छोर पकड़ा और आराम से खींच दिया और उसकी कोटि उसके पैरों में गिर गयी। उसकी बड़ी बड़ी चुच्चिया देखकर तो मेरी आँखो को यक़ीन ही नहीं हुआ। इतनी बड़ी चुचिया तो गंदी फ़िल्मों की लड़कीयो की होती है जिन्होंने ऑपरेशन करा रखा हो। उसकी चुचिया बड़ी होने के बावजूद ज़रा भी नहीं लटक रही थी, बहुत ही सुडौल और आकार में थी, उसकी गोरी चमड़ी पे गुलाबी निप्पल किशमिश की तरह खड़े थे। मैंने पीछे से अपने हाथ उसके आगे लाया, और उसकी चुचीयो को हाथ में थाम लिया। मैं अपने हाथो से दोनो स्तनो पे मालिश से करने लगा। मेरा खड़ा लंड उसकी गांड में धक्का मरने लगा।
मैंने शीशे में उसको देखा तो वो आँख बंद करके आनंद ले रही थी। शीशे में हम ऐसे लग रहे थे, जैसे गंदी फ़िल्म में गोरी अंग्रेज़ लड़की, काले अफ़्रीकन बदसूरत लड़के से चूदने को तैयार हो।
वो घूम कर मेरी तरफ़ पलटी तो मैंने देखा की उसकी दोनो चुचीयो के बीचों बीच एक छोटा सा दिल का टैटू गुदा हुआ था।
"ये क्या है?" मैंने ऊँगली से इशारा करते हुए पूछा। वो जल्दी जल्दी से अपना लहंगा खोलने में लगी थी।
"अरे ये कुछ नहीं है, कॉलेज में मेरी फ़्रेंड ने एक dare दिया था। तुम्हें तो पता ही है कॉलेज लाइफ़ में हम कितने भोंदू से होते है" वो लहंगा उतारते हुए बोली। उसने लहंगे के अंदर भी कोई कच्छि नहीं पहन रखी थी। उसकी हल्के गुलाबी रंग की चूत बाक़ी शरीर से थोड़ा अलग ही दिख रही थी, उसकी चूत पर एक भी बाल नही था। इतनी ब्लू फ़िल्म देखने के बाद मुझे ये तो पता चल गया था की लड़की की सील टूट चुकी है। चूत की किनारिया सूखे हुए छिलको की तरह से दिख रही थी। सच बताऊँ तो बिलकुल ऐसा लग रहा था मानो उसने ख़ूब चूदने के बाद महीने भर, चूत को टाइट और गोरा करने की क्रीम रगड़ी हो। पर मुझे क्या, अगर इस्तेमाल की हुई bmw मिले तो क्या मैं लूँगा नहीं? पहले चाहे किसी ने भी चलाई हो अब तो मैं मालिक हूँ।
उसने जल्दी जल्दी से ख़ुद ही मेरे पजामे का नाड़ा खोल कर पजामा नीचे गिरा दिया और बड़ी ही फुर्ती से मेरा कच्छा भी नीचे खींच दिया। मुझसे ज़्यादा तो ठरक उसको चढ़ी हुई थी चुदाई की।
हम दोनो फिर से बेडरूम में भागे भागे गए। वो अपनी टाँग फैला कर मेरे सामने पलंग पे लेट गयी। मैं घुटनो के बल बिस्तर पे चढ़ा और उस तक पहुँचा, उसने अपने हाथ पे थूका और अपनी ही चूत पे मल लिया।
"देखो पहली बार है, कोई tention मत लेना। थोड़ा थोड़ा डर लगेगा पर कोई बात नहीं " उसने मुझको बोला। उसकी बात सही भी थी, मेरा दिल इतना ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था की मुझे साफ़ साफ़ सुनाई दे रहा था और हो सकता है की उसको भी सुनाई दे रहा हो। फ़ुल AC चलने के बावजूद मेरे बालों और माथे पर पसीना आ रहा था। मेरा शरीर हल्का हल्का कांप सा रहा था।
उसने मेरे काँपते हाथ देख कर मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और ठीक अपनी चूत के मुँह पे लगा दिया।
"तुम धक्का मारो!" उसने मेरे लंड को पकड़े ही पकड़े बोला। मैंने ऐसा ही किया और लंड आधा अंदर सरक गया।
"आह!" उसने आह भरी। मेरेको आधा लंड अंदर देते ही ऐसा लग रहा था की ना जाने कोंस बड़ा काम कर लिया हो। पर मैंने एक और झटका मारा तो लंड पूरा अंदर चला गया।
निशा ने आँखे मूँद ली, नीचे वाला हाथ दातों तले दबाया और अपने हाथो से अपने निप्पलो की रगड़ने लगी। मैंने अपनी बाजु उसकी दोनो तरफ़ रखे, लंड बाहर खींचा और फिर से दे मारा अंदर।
"आह" वो फिर से दबी आवाज़ में चिल्लाई।
तीसरे स्ट्रोक में मेरा फिर से झड़ गया। मैं साइड में लेट गया, मेरे माथे, कमर पे पसीना ही पसीना आए जा रहा था, मेरी शरीर में हरारत हो रही थी, लग रहा था जैसे कई दिनो से सिर्फ़ ईंट पत्थर ही ढो रहा हू। मैंने उसको अपनी चूत पे ऊँगली मारते हुए देखा पर मुझे ज़रा भी शर्म महसूस नहि हुई।
"सो जाओ मेरे शेर। दो घंटे में सुबह हो जाएगी और फिर यह से जाना भी है" उसने मेरे बलों में हाथ फेरते हुए कहा। मैं घड़ी में देखा तो तीन बज रहे थे। मैंने करवट ली और मिनट भर में खर्राटे भरने लगा। मुझे ये तो समझ आ चुका था की ये लड़की अच्छे से मज़े लूट चुकी है और लुटवा भी चुकी है पर फिर भी मेरा दिल मुझे कह रहा था की कोई बाद नहीं आज के बाद तो सिर्फ़ ये मेरी ही है। शायद मैं ज़िंदगी में इतना ग़लत कभी भी नहि हुआ जितना उस दिन हुआ। I simply couldn't be more wrong.