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Click hereअफ़सराये तो बहोत देखि होंगी आपने, तो ये कहानी भी एक खुबसुरत्त अफ़सरासे शुरू होती है. एक ऐसी अफसरा जिसका मादक बदन देख मर्दोंका काम-उत्तेजनासे रोम-रोम खिल उठे, उसके बदनकि कामुक महेकसे हर मर्दको उस अफ़सराके बदनका रसपान करनेका दिल करे ऐसी ही अफ़सराकी कहानी है ये. ये कहानी एक अफसरा याने एक बेटी,एक माँ,एक पत्नी,एक बहु की है जो एक लड़ाकू स्वभावकी महिला है.
हमारी अफ़सराकी कहानी शुरू होती है मुंबई के जुहू बीचके समंदरके किनारे बने एक बड़े आलीशान बँगलेसे जिसका नाम है राधा-कुंज. इस बंगले की खूबसूरती देख कर ही बनती है क्योके जिसनेभी इस बँगलेको बनाया है वो यक़ीनन अमेरिका के वाइट हाउस का दीवाना ही होगा क्योके ये बंगला हूबहू अमेरिकी वाइट हाउस जैसा ही है, फर्क ये है के ये आलीशान बंगला मुम्बईके जुहू बिचके नजदीक समंदरके किनारे बसा हुवा है. इस बँगलेको हम इंडिया का वाइट हाउस भी कहे सकते है. इसी आलीशान बंगलेसे जुडी है हमारे कहानीकी अफ़सरा.
राधा-कुंज बंगलेकी नीव पड़ी कोल्हापुर के सावर्डे गावसे. वो वक़्त था साल १९८६ का. उस समय सावर्डे गांव १०००० लोगोंका निवास्थान था. ये गांव बड़े जंगलसे घिरा हुवा है इस कारन कोल्हापुरके बड़े शहरोंसे ये जरा कटा-कटासा है, लेकिन है बड़ा खुबसुरत्त, चारो ओर हरियाली ही हरियाली. वैसे तो इस गावका वातावरण शांत ही होता है लेकिन इस साल इस गावमे अशांति फैली हुवी है, वो भी दो जानी दुश्मनोंकी वजहसे. कहते है ना के एक मियाँनमे २ तलवारे रहे नहीं सकती, उसी तरह इस गावमे भी दो जिगरी दोस्त कब्ब इस गावकी सत्ता पानेके चक्करमें दुश्मन बनगए उन्हें भी पता नहीं चला. उनमेसे एक का नाम है प्रताप सिंह कट्टर ब्राह्मण जातिका इस गावके मंदिरके पुजारिका बेटा जिसका कद है ५.९ फिट, तगड़े शरीरका मालिक. इस वक़्त उसकी उम्र है ४६ साल जो पिछले ४ सालसे इस गावके लोगोंसे मिलजुलकर रहनेके कारण इस गावका सरपंच बनता आरहा है. उसके पिता केशव सिंह अपनी पत्नीके ७९ उम्र में हुवे हार्ट अटैक की वजहसे निधनके कुछ सालोंबाद ८० की उम्र में उनका भी लम्बी बीमारिकी वजहसे निधन हुवा.
प्रताप सिंह के परिवारमे उसकी ३७ सालकी पत्नी गंगा और २० सालका बेटा तेज प्रताप, तो बेटी १८ सालकी लक्ष्मी है. प्रताप सिंह पुराने ख़यालोंका इंसान था वो लडकियोंको सिर्फ घरके काम करनेवाली तो लडकोंको अपने वंश को आगे बढ़ाने वाला दिया समज़ने वालो मेसे था. इसी वजहसे उसने अपने बेटे पर बहोत खर्च किया और पढ़ने लिखने के लिए दिल्ही के जवाहरलाल महाविद्यालय में दाखिला करवाया, इस्सकारन तेज प्रताप पिछले २ सालसे वही नजदीक बने होस्टलमे रहता है और हर महीने छुटियोंमे अपने गांव परिवारके पास आता है.
प्रताप सिंह का खानदान कोई रईस नहीं बल्कि वो तो सीधे-साधे गावके पुजारिका बेटा था जिसको उसके पिताके रुतबे और गावमे घुलने मिलनेकी वजहसे गावके लोगोंका साथ मिलता गया और आज पिछले ४ सालसे अपने दुश्मन प्रतिद्वंदी विक्रम सूर्यवंशी को हराकर सरपंच बनता आरहा है. ४५ सालके विक्रम सूर्यवंशी के पिता पृथ्वीराज सूर्यवंशी और प्रताप सिंह के पिता केशव सिंह दोनोमे पहले खानदानी दोस्ती थी. दोस्ती इतनी गहरी थी के उन् दोनोने मिलकर गावके बीचो बिच २० साल पहले २ एकर की जमीन ख़रीदली और १-१ एकर बाटकर उन्ह दोनोने अगल बगल घर बांधलिये और अपने परिवार बसाकर दोनों परिवार हसी-ख़ुशी रहते थे. उस समय गावके सरपंच हुवा करते थे पृथ्वीराज सूर्यवंशी जो खानदानी जमींदार और गावमे सबसे अमीर पैसे वाले थे. पैसे वाले होनेके बावजूद गावके लोगोंसे जुड़े हुवे थे इसी कारन वो हरबार सरपंचका चुनाव अपने दोस्त केशव सिंह से जित जाते जो इस गावके मंदिर के पुजारी थे. सावर्डे गावके ज्यादातर लोग पृथ्वीराज सूर्यवंशी से डरके रहते थे इस कारन उनके विरुद्ध सरपंचके चुनावमे कोई खड़ा ही नहीं होता था तो इस कारन एक दिन पृथ्वीराजने अपने दोस्त केशव से अपने विरुद्ध सरपंचके चुनावमे उतरनेकी सिफ़ारीश्कि जो केशवने हस्सी-ख़ुशी मानली. क्योके उसे पता था के वो पृथ्वीराजके आगे तो कभी जित ही नहीं सकता, तो उस दिनसे आजतक केशव सिंह का परिवार सरपंचके चुनाव लड़ता आरहा है.
६५ सालकी उम्र में पृथ्वीराज सूर्यवंशी की एक ट्रैन हादसे में जान चली गयी उस दिन गांव में १-२ महीने तक मातम पसरा रहा लेकिन उसके बाद गांव वाले लोगोंको एक मुखिया की जरुरत थी जो हर्र साल विक्रम सूर्यवंशी के विरुद्ध उतरनेवाले केशव सिंह के रूपमे पूरी हुवी और यहांसे ही शुरू होती है इस फॅमिली की दुश्मनी, क्योके गांव वालोंका केशव सिंह को मुखिया बनानेके फैसलेके खिलाफ पृथ्वीराज की विधवा पत्नी थी जिन्हका नाम है यशोदा. यशोदा ६३ सालकी थी जोकि गावमे एक औरतका सरपंच बनना अभिशाप था तो उसी कारन उसने अपने २५ सालके बेटे विक्रम को ५९ सालके केशवके विरुद्ध सरपंचके चुनावके लिए उतारा.
पृथ्वीराजका बेटा विक्रम अपने पिताकी धनदौलतकी गर्मी में इतना डूबा था के वो गावके लोगोंसे जुड़ा हुवा नहीं था, तो होना क्या था वो हर्र बार हर्र साल केशव सिंह के आगे हारजाता और उसके २१ साल बाद उसके बेटे से वो हारता आरहा था, ये हारहि थी जो विक्रम पचा नहीं सका और अपने खानदानी दोस्ती को उसने दुशमनीमे बदलदिया. दुश्मनी भी ऐसी थी के आज उसने केशव सिंह के बेटे को नीचा दिखाने के लिए २ एकर की जमीनके अपने १ एकर के हिस्से पर बगलके प्रताप सिंह के घरसे १ मंजिल बड़ा 2 मंजिला अपना घर बनाया था.
१९८७ ये साल ही था जिसमे प्रताप सिंह के परिवारमे भूकंप आने वाला था उस पारिवारिक भूकंप की पहली खबर लगी प्रताप सिंह की खुबसुरत्त गोरे बदनकि मालकिन उसकी पत्नी ३७ सालकी गंगा को.
सोमवार का दिन और ओक्टोबेर महीना था. श्यामके ५ बजे गंगा नीली रंगकी साड़ी में १ एकर में फैले ५ रूम वाले आलीशान घरमे किचेन में खाना बना रही थी. गावके सरपंचकी पत्नी होनेके बावजूद गंगा को घरका काम खुद करनेमे ही आनंद आता था इस कारन प्रताप सिंह के आलीशान घरमे काम-काज सँभालने के लिए कोई नौकर नहीं थे.
गंगा एक मस्त मादक बदनकि मालकिन है. उसके बदनका हर्र हिसा कामुक है. उसकी शादी बहोत छोटी उम्र में केशवसे हुवी और उस कारन वो १७ सालकी थी तब ही उसने तेज प्रताप को जन्म दिया और फिर १-२ साल बाद लक्ष्मीको. २ बच्चोंकी माँ होनेके बावजूद घरके सारे काम करनेके कारण उसका ५.६ फ़ीट कद का गोरा रसीला बदन अभीतक परफेक्ट था. अपनी कामुक पत्नी केलिए प्रताप सिंह ने अपने पिताके बनाये इस घरमे बहोत बद्लावकिये, ऐसे बदलाव जो उसकी पत्नीकेलिए और परिवारके लिए सुविधाजनक हो. जैसे के उसने घरके सब ४ बेडरूम्स, एक हॉल और किचनमे फैन लगवादिए, पानीका कनेक्शन अपने घरपर लगवादिया. ये कुछ सुविधाएं इस गावमे सिर्फ कुछ गिने चुने बड़े लोगोंके पास ही थी. केशवने अपने बचपनमे उसे खुद नामिली हुवी सुविधाएं अपने परिवारको शहरसे दुर्र इस गावमे देने केलिए वो तत्पर था. उसी के कारण उसकी खुबसुरत्त पत्नीका बदन रसीले गुलाबजामुंकी तरह रसीला और कोमल बनचुका था जिसका रस पिनेकेलिए इस गावके हर्र मर्द का दिल जोरोंसे धक्-धक् करता है. गंगाकी खूबसूरती के चर्चे गावके चारो ओर फैले हुवे है. जब्ब वो साड़ी में किसी कामके लिए गावकी किसीभी सड़क से चलती, तो नजारा देखते ही बनता था. मस्त चलते वक़्त साडीमे मटकती उसकी गद्देदार मोटी ३६ साइज की गांड, उपर २९ की पतली कटीली लचकती गोरी कमर चलते वक़्त जैसे ही थिरकती तो उस सडकसे चलने वाले हर मर्द का लंड तनकर खड़ा होजाता और उस बदनको पानेकी चाह में तड़पता. तो कमर से ऊपर उसकी ३५ साइज की दूधसे भरी चूचिया मानो कामुक जल-जला ही था क्योके जभी कोई गंगा को रास्तेसे या कही बहार साडी में देखता तो पहले उस मर्द की नजरे उसके साडी के पलू के साइड से दिखती उसकी गोरी नंगी कमर और उपर उसके दोनों अनमोल रत्नोंको देख उस मर्द का तो उन्ह ब्लाउज़ से ढके सांतरोंको हाथमे थामकर मसलनेका जी करता, उस कामुक बदनको छेड़ने का दिल करता. लेकिन साला बीवी सरपंचकी थी तो गावके हवसके पुजारी मर्द उस मादक बलासे जैसे तैसे दुरी बनाये हुवे थे (लेकिन कबतक?). काली आँखे रसीले गुलाबी होंठ, नकचढ़ी नुकीली नाक, लम्बे घने काले बालोंको देख मानो लगता है के भगवान ने गंगा को बहोतही इत्मिनानसे बनाया हो. उस भगवान्की एक दम कामुक रचना थी गंगा और अपनी खुबसुरत्त माँ की ही परछाई थी १८ सालकी लक्ष्मी जिसका परिचय हम आगे देखेंगे.
सोमवारका दिन श्यामके ५ बजे हुवे है.
गंगा नीली साडीमे किचनमे फर्शपर बैठकर एक बड़े से बर्तनमे आंटा गोदरहि थी, लेकिन उसका पूरा ध्यान हाथकी कलाई पर बंधी घडी पर था जिसमे श्यामके ५ बजेथे. वो फर्शपर बैठकर आंटा गूंधते हुवे मन ही मन बोली, "हे भगवान् ये लड़की भी ना. रोज तो स्कूल्से ४ बजे आती है. आज कहा रहे गयी.?". जैसे जैसे वक़्त बित्ता गया वैसे वैसे गंगाके माथे पर अपनी लाड़ली बेटिकेलिए चिंता की लकीरे बढ़ने लगी. गंगाने किचनका काम आधा अधूरा रख वो बेसिंग में हाथ धोकर उसी नीली सिल्क साडीको ठीक-ठाक कर घरके पिछले दरवाजे की तरफ गयी. क्योके लक्ष्मीका स्कूल घरके पीछेवाली साइड से घने जंगलके रास्तेसे गुजरकर कुछ 1 KM दुर्र था. लक्ष्मी हमेशा कुछ गावकी सहेलियोंके साथ उस जंगलके रास्तेसे स्कूल जाती और घर लौटती. लेकिन आज कुछ ज्यादा ही देर होरही थी उसकी कामुक मादक माँ की परछाई लक्ष्मीको स्कूल्से घर लौटने केलिए.
प्रताप सिंह आज किसी काम के सील-सिलेमे बहार शहरमे गए थे, इस कारन गंगा अपनी प्यारी बिटिया को स्कूल्से लेने केलिए घरके दोनों द्वार लॉक करनेके बाद जंगलके रास्ते अपना मदमस्त गोरा बदन नीली साडी में मटकाते हुवे सुन-सान जंगलके रास्ते लक्ष्मी के स्कूलकी तरफ अपने कदम बढाती गयी.
गंगा अपनी प्यारी बेटी लक्ष्मीको स्कूलसे घर ना लौटनेसे परेशान होकर वो अब्ब खुद जंगलके रास्तेसे अपनी बेटीके स्कूलकी तरफ बढ़ रही थी. लक्ष्मी का स्कूल १२वी तक है और खुद १८ सालकी लक्ष्मी ११वी में पढ़रही है और वो काफी पढ़ाई लिखाई में अव्वल है. लक्ष्मी संस्कारोंमे पूरी अपनी माँ पर ही गयी है, और दीखनेमे तो पूरी पटाखा है लक्ष्मी. अगर गंगा एक खुबसुरत्त अफसरा है तो उसकी बेटी लक्ष्मी एक साक्षात् कामदेवी है. लक्ष्मी का प्यारा गोरा मुखड़ा एसा है के किसीभी कठोरसे कठोर इन्सानका दिल पिघल्जाये उसे देख कर और कटीला मादक बदन ऐसा है के किसीभी बूढ़े मर्द का लंड एकदमसे खड़ा करदे. उस मादक कामदेवीके बदनकि हर्र रचना आपको आगे पता चलेगी.
गंगा घने जंगल से घिरे रास्तेसे स्कूल की तरफ बढ़ते हुवे अब घरसे काफी दुर्र आचुकी थी, पुरे ५०० मीटर आधा रास्ता चल चुकी थी. बिच रास्तेमे उसे कुछ बूढ़े मजदुर भी दिखे जिन्होंने सरपंचकी पत्नीको सर झुकाकर अभिवादन किया और जैसे ही गंगा आगे बढ़ि तब्ब उन्ही बुढोने पीछे मुड -मुड़कर गंगा की सारिसे उभरकर दिखती चलते वक़्त हर कदमपर मटकती ३६ की भराव्दार गांड को देख उन्ह बुढोने हवसभरी आहे भी भरी थी. अह्ह्ह्हह!
कुछ समय अपना नशीला बदन मटकाते हुवे जंगलसे घिरे कच्चे रास्तेसे चलने के बाद गंगाको कुछ १०० मीटर दूर एक लड़का स्कूलकी कपडोमे रास्तेके किनारे पेशाब करता हुवा दिखा. जब गंगा रास्तेसे चलते हुवे ५० मीटर आगे बढ़ी तो वो लड़केका चेहरा साफ़ देख सकती थी और उसके साथ निचे उसकी ब्लू फुल पैंटकी पोस्टर्से बहार झूलते हुवे पेशाब छोड़ता हुवा काला मोटा लंड भी गंगा नाचाहते हुवे देखगयी. वो लंड अभी खड़ा नहीं था क्योके उस लड़के की नजरे गंगा पर नहीं गयी थी, वो तो मस्त मगन अपने काले लंड से निकलती पिली पानी की धारको ही देख रहा था और अपनी ही धुनमें था.
दूसरीतरफ गंगा जो जंगलसे घिरे रास्तेके किनारेसे अपने मादक कदम आगे बढ़ा रही थी उसने उस सड़क किनारे पेशाब कर रहे लड़केको कबका पहचान लिया था, वो था गावके धोबिका २० सालका बेटा कालू. नामकी तरह ही एक दम काला-कलूटा है और जिगरी यार है गंगाके दुश्मन घरके पडोसी जमींदार विक्रम सूर्यवंशी के बेटे करनका जिसका परिचय हम थोड़ी देर में देखेंगे. अभी अब्ब इस काले-कलूटे कालू का परिचय करता हु.
२० सालका कालू यही इस घने जंगलमे नजदीक ही एक बड़ी झोपड़ी में अपने ४० सालके पिता तुकाराम के साथ रहता है. उसकी माँ तो कालुको जन्म देते समय ही चलबसि थी इस कारन उसके पिता तुकारामने गांव के बड़े लोगोंके कपडे धोकर ही अपने बेटे को स्कूलमे दाखिला करवादिया, लेकिन उसका बेटा है के पिछले २ सालसे स्कूलमे फेल होकर ११वी में ही अटका हुवा था और उसका कारणथा उसकी किशोरी अवस्था जिसको तराशने और सँभालने वाला कोई नहीं था. उसके पिता का सारा दिन गावके बड़े लोगोंके दिए कपडोंको सावर्डे गावकी गुंटा नदीके किनारे धोने में ही चला जाता उस कारन किशोरी अवस्था में पहुंचे कालू पर ध्यान देनेवाला कोई नहीं था. उसकी किशोरी अवस्था ने उसे एक हवसके समंदरमे फेंक दिया था, वो हमेशा औरतोंके बारेमे ही सोचता उन्हके हर कामुक हिस्सोंके बारेमें सोचकर हस्थमैथुन में ही लगा रहता. कभी मौका मिलने पर भीड़ भाड़का फायदा उठाकर औरतोंके निजी अंगोंको छेड़ता, इन्ही हवसभरी कामोंमें वो लगा रहता लेकिन अभीतक उसे संभोगका सुख नहीं मिला था. लेकिन उसने गावके कई मर्दोंको खेतमे और जंगलमे औरतोंकी ठुकाई करते हुवे छिपकर बहोतबार देखा था, उसी के कारन औरतोंके साथ संभोगकी कल्पना कर कालू हमेशा हवसमे पगला जाता. कालूका कद है ५.४ फ़ीट, शरीर पूरा गठीला है और पूरा काला सुवर है कालू. उस बेचारेने बहोतबार स्कूलकी लडकियोंको पटानेकी कोशिश की लेकिन उसका भद्दा बद्सूरत काला चेहरा इतना कुरप था के सब लड़किया उस्से डरती और रक्षाबन्धनपे राखी बांधकर उसको अपना भाई बना लेती. कालुके बारेमे बोलनेकेलिए बहुतकुछ है लेकिन अभी इस वक़्त यही हवसका प्यासा कालू आज सरपंचकी मादक पत्नी गंगा के सामने सड़क किनारे पेशाब कर रहा है.
एक भूके को अगर सामने खाना दिखे तो उसका मन उस खानेको खाने केलिए ललचाएगा ही, वैसेही यहाँ प्रताप सिंह २ बच्चे होनेके बाद काम में इतने व्यस्त रहने लगे के अपनी मादक बिवीके कोमल बदनकि काम-पीड़ा पिछले १४ दिनसे उन्होंने शांत नहीं की थी, इसी वजहसे कामुक ३७ सालकी गंगा को सड़क किनारे एक २० सालके नौजवान को पेशाब करते हुवे उसकी पैंट की पोस्टर्से बहार झूलते उसके मोटे केले को देख गंगा का कामुक गरम बदन काम वासना की चाह में तड़पने लगा. वो एक टक उस काले मोटे लंड को ललचायी नजरसे देख रही थी और सड़क किनारेसे चलते हुवे धीरे धीरे आगे अपनी मस्त गोरी गांड साडी में मटकाते हुवे अपनी पायलकी छम-छम की आवाजके साथ आगे बढ़ रही थी. वो एक पलके लिए भुलसी गयी थी के वो एक सरपंचकी बीवी है और श्यामके वक़्त एक सुन-सांन जंगलसे घिरे रास्ते पर अकेली है. ये गंगाके जीवनका पहला अनुभव था के जिसमे उसकी काम-पीड़ा उसके संस्कारोंपर हावी हो रही थी.
दूसरी तरफ कालू जो हाफ शर्ट और फुल ब्लू पैंटमे सड़क किनारे पेशाब कर रहा था उसको एक औरतके पायलकी छम -छम की आवाज सड़क से नजदीक आती हुवी सुनाई दी थी. जब उसने सड़क किनारे पेशाब करते हुवे उस आवाज की ओर देखा तब वो डरके मारे एक पलकेलिए थर-थर कांपा था क्योके साक्षात् गावके सरपंचकी कामुक पत्नी दूर सडकसे चलते हुवे आगे बढ़रही थी और ये यहाँ गावकी ठकुराइन के सामने मस्त होकर पैंटकी पोस्टर्से अपना काला मोटा लंड बहार निकालकर मूत रहा था. लेकिन कालूका डर हवासमे तब बदला जब्ब उसका हवसका कीड़ा मन ही मन बोला, "अबे देख ठकुराइन कैसे तेरे काले लंड को देख रही है. लगता है पूरी दीवानी होगयी तेरे इस मुन्ना की. यही मौका है कालू, पता है तेरी औकात नहीं ठकुराइन के सामने लेकिन ज़रा ठकुराइन को तो देख कैसे ललचायी नजरसे तेरे मुन्ना को निहार रही है. जरासी मस्ती करलोगे तो क्या बिगड़ेगा?"
सड़क के किनारे खड़े कालूने अपने हवसके कीड़े की बात सुनी और दुर्र सड़कसे छम -छम की पायलकी आवाजसे कदम आगे बढ़ाते हुवे उसके काले लंड की ओर काम-अग्नि में बहेक कर देख रही गंगाके कामुक रसीले बदनके कामुक अंगोंको देखते हुवे कालू अब्ब अपने लंड को एक हाथसे मसलने लगा. उसका काला काली झाँटोंसे घिरा लंड कबका गंगा के साड़ी में कैद कामुक अंगोंको चलते वक़्त लचकते-मटकते देख ८ इंचतक पूरा ३ इंच मोटा काला बंबू खड़ा होचुका था.
कालूका पेशाब कबका होचुका था. फिरभी जानबूजकर वो दूर सड़कसे ब्लू साडी में चलरही गंगाके मादक हरे भरे बदनको देखते हुवे अपना ८ इंच लंबा पॅन्टकी पोस्टर्से बहार झूलरहा हथियार एक हाथसे मसल रहा था जिसे सडकसे आगे कदम बढाती गंगा भी देख रही थी, और जोभी हरकते कालू इस वक्त अपने काले लंड के साथ कर रहा था उसे देख गंगा के बदनमे काम-उत्तेजनाकि आग तो लगी लेकिन दुसरेही पल अपने कामुक बदनको काबू कर उसने ज़ैसे ही अपनी नशीली आँखे उपर कालू की ओर की तो कालू की नजरोंको अपने ब्लाउज़ मे कैद सारि के पलुसे उभरी और चलते वक़्त हर कदमपर हिलती चूचियोंपर टिकी हुवी दिखी. लेकिन दूसरे ही पल कालुकी नजरे भी गावकी ठकुराइन से मिली, फिर होना क्या था सालेकि डरके मारे फटी और उसने झटसे अपने लंड्को एक हाथसे मसलना बंदकर पैंटके अंदर डाला, और वही सुनसान सड़क किनारे चुप-चाप कंधेपर एक फटा पुराना स्कुल का बैग लिए सर झुका कर खड़ा रहा, और ठकुराइन के सडकसे गुज़रनेका इंतजार करने लगा.
जो कुछभी किशोरी अवस्थामे बहेक कर कालूने ठकुराइन को चक्षु-चोदन कर छेड़ा था उस वजहसे कालू अब्ब बहोत डरा हुवा था. उसे लग्ग रहा था के कब्ब ठकुराइन सडकसे गुजरकर दूर चली जाए और वो राहतकी सासले. लेकिन हुवा उसका उलटा.
भाग १ समाप्त