घर की कहानी -(भाग-1)

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शोभा ने दीप्ति को अपने ऊपर से हटने का इशारा दिया । दीप्ति अचंभित सी जब खड़ी हुई तो शोभा ने उसकी अधखुली साड़ी को खींच कर उसके शरीर से अलग कर दिया । उसके सामने खड़ी औरत के चूचें उत्तेजना के मारे पत्थर की तरह कठोर हो गये थे । दोनों निप्पल भी बिचारी तने रह कर दुख रहे होंगे । दीप्ति ने अपने बाल खोल दिये । उसका ये रुप क्या औरत क्या मर्द, सभी को पागल करने के लिये काफ़ी था । शोभा ने पेटीकोट के ऊपर से ही दोनों हथेलियों से जेठानी की चौडी गांड को दबोचा । थोङा उचक कर उसके होठों को अपने होठों की गिरफ़्त में ले लिया और अपनी जीभ को उसके मुहं मे अन्दर बाहर करने लगी । "लेट जाओ, मैं तुम्हारा बदला चुकाना चाहती हूँ. मैं भी तुम्हें जी भर के प्यार करना चाहती हूं." शोभा की इच्छा सुनकर दीप्ति टेबिल और सोफ़े के बीच में अपनी खुली हुई साड़ी को बिछा उसी पर लेट गय़ी । ""पता नहीं जितना तुम जानती हो उतना मैं कर पाऊंगी या नहीं लेकिन मुझे एक बार ट्राई करने दो" शोभा उसके ऊपर आती हुई बोली ।

पहले की भांति शोभा ने फ़िर से अपने स्तनों को दीप्ति के चेहरे के सामने नचाकर उसे सताना शुरु कर दिया । दीप्ति ने गर्दन उठा उसके स्तनों को होठों से छुने की असफ़ल कोशिश की तो शोभा खिलखिला कर हँस पड़ी । पीछे सरकते हुये शोभा अब दीप्ति की जांघों पर बैठ गय़ी और उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया । दोनों हाथों से पकड़ कर पहले पेटिकोट को पैंटी की इलास्टिक तक खींचा और फ़िर पैंटी को भी पेटीकोट के साथ ही उतारने लगी । दीप्ति ने तुरन्त ही कमर उठा कर दोनों वस्त्रों को अपने भारी नितम्बों से नीचे सरकाने में मदद की । पैन्टी लंड के पास पूरी गीली हो चुकी थी तो उतरते समय चप्प की आवाज के साथ सरकी । अब सिर्फ़ कन्धों पर झूलते खुले हुए ब्रा और ब्लाऊज के अलावा दीप्ति भी पूरी तरह नन्गी थी । शोभा ने प्यार से जेठानी की नाभी के नीचे काले घने बाल रहित मूषल लंड को निहारा जो करीब 8 इंच का था और निचे दो बडे अंडे जैसे अँडकोष । अपनी बहन जैसी जेठानी के सेक्सी औरती बदन पे ये पुरुषांग. . .जो एक लडके की माँ भी है, ये विचार मन मेँ आते ही शोभा के मुहं में ढेर सारी लार आने लगी । हाय राम ये कैसी औरत बनाई है? धीरे से शोभा ने दीप्ति की एक टांग को उठा कर टेबिल पर रख दिया और दूसरी को सोफ़े पर ।

शोभा तो उन दो उठी हुई टांगों के बीच में घुस कर उस बिचारी लंड पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी । शोभा का अनुभव भले ही कम था परन्तु तीव्र इच्छाशक्ति के कारण अपनी प्यारी जेठानी की लंड को जी भर के चाट सहला रही थी । अब किसी को प्यार करने के लिये कोई कायदा कानून तो होता नहीं भाई और फ़िर ये तो खेल ही अवैध संबंधों का चल रहा था । शोभा के इस जोश भरे धावे को अपनी तने लंड पर सहना दीप्ति के लिये जरा मुश्किल हो रहा था । लेकिन शोभा जो जैसे जानवर हो गयी थी । बलपूर्वक दीप्ति को लिटाये रख कर क्या जांघ, क्या लंड, क्या अंडकोष, क्या गांड सब जगह अपनी बेरहमी के निशान छोड़ रही थी । "शोभा, जरा आराम से, प्लीज" । दीप्ति ने याचना की । पर शोभा के कान तो बन्द हो गये थे । मुहं से गुर्राहट का स्वर निकल रहा था और लपलपाती जीभ जेठानी की लाल सुपाडे पर फिरा रही थी । अपने दांतों का भी भरपूर इस्तेमाल कर रही थी लेटी पड़ी दीप्ति पर । पहले जेठानी की अन्दरुनी जांघ के चर्बीदार हिस्से को जी भर के खाया । फ़िर काले झाँटो से भरी लंड को मुठियाती हुई बडे-बडे अंडोँ को चाटने लगी । और तुरन्त ही घांव पर मरहम लगाने के उद्देश्य से अपनी मुंह मेँ दीप्ति का पूरा का पूरा अंडकोष मुंह में भर लिया ।

दीप्ति का दर्द और उत्तेजना के मारे बुरा हाल था । शोभा अगर ऐसे ही करती रही तो उसकी लंड अगले दो दिन तक किसी बुर चोदने के काबिल नहीं रहेगा । होंठों से थूक बहकर कान तक आ गया था । दीप्ति ने दोनों हाथों को ऊपर उठा, एक से टेबिल और दूसरे से सोफ़े का किनारा थाम लिया । उधर शोभा भी तरक्की पर थी । शोभा ने तो एक उन्गलि गांड के अन्दर डाली थी । शोभा ने एक साथ दो उन्गलियां दीप्ति की छेद घुसा दी तो उसकी मुहं से जोर से आह निकली । लेकिन शोभा ने इस सब की परवाह किये बगैर अपना दुसरी हाथ से जेठानी की विशाल लंड को ऊपर-निचे करना जारी रखा । दीप्ति का शरीर भी इस हस्त चुदाई की ताल के साथ ऊपर नीचे होने लगा । तभी शोभा को याद आया की कैसे उसने अजय की सुपाडा को चूसा था और फ़िर वो किस तरह से झड़ रहा था ।

शोभा के होठों ने उसकी उन्गलियों का साथ पकड़ा और लगे दीप्ति कि लंड के सुपाडे को सहलाने । थोड़ी ही देर में सुपाडी फुल कर लाल हो गया । हाथ से जेठानी की लंड चोदन जारी रख कर शोभा की जीभ उस लाल सुपाडी पर सरकी । दीप्ति के मुहं से चीख फ़ूट पड़ी "शोभा. . ईईईईईई, चुसो जोर से, मारो मेरी लंड.....", "माई गॉड, तुम सच में, सच में...ओह्ह्ह मां" । "क्या सच में? हां? क्या? क्या हूं मैं? बोलो?" शोभा ने दीप्ति के ऊपर चढ़ते हुये अपना रस से सना मुखड़ा जेठानी के चेहरे के सामने किया । हरेक क्या-क्या के साथ उसने जेठानी की लंड को कस के मुठ्ठी मेँ भर उपर-निचे कर रही थी । "रंडी हो तुम शोभा, रंडीईईई...", "ओह ईईई, और चूसो ना प्लीईईईज, मुझे तुम्हारी पूरी जीभ चाहिये अपनी सुपाडी पर ..." दीप्ति मस्ती में कराही । "और मेरी हथेली? ये नहीं चाहिये आपको?" एक झटके में अपना हाथ जेठानी की फुंकार मारती लंड में से खींच लिया ।

दीप्ति ने हाथ बढ़ा शोभा की कलाई को थाम लिया। "नहीं शोभा ऐसा मत करो । मुझे सब कुछ चाहिये । सब कुछ जो तुम्हारे पास है । वासना और वास्तविकता के बीच फ़र्क करना बहुत जरुरी था । खुले हॉल मेँ किसी भी वक्त किसी के अन्दर आने का जोखिम तो था ही । पर देह की सुलगती प्यास में दोनों दीन दुनिया से बेखबर हो चुके थे । दीप्ति पूरी तरह से शोभा के ऊपर आ चुकी थीं । शोभा तो बस जैसे इसी मौके की तलाश में थी । तुरन्त ही उसके हाथों ने आगे बढ़कर जेठानी के विशाल थनों को दबोच लिया । एक चूचें की निप्पल को होठों मे दबा वो जेठानी की जवानी का रस पीने में मश्गूल हो गई तो दूसरी तरफ़ दीप्ति ने भी खुद को देवरनी के ऊपर ठीक से व्यवस्थित करती हुई अपनी विशाल हथौड़े जैसे लंड को शोभा की झांटेदार बुर की गुलाबी छेद मेँ दबाया । जैसे ही चूत की मुलायम पन्खुड़ियों ने दीप्ति के पौरुष को अन्दर समाया, दीप्ति हुंकारी "आह!. बहुत गरम है छोटी तेरी चूत, मैं झड़ जाऊंगी" । दीप्ति ने देवरानी की विशाल उभरी गांड को हथेली मेँ दबाने के साथ-साथ अपनी गांड को उछालती हुई अपनी पूरी लंड शोभा की रिसती चूत में अन्दर बाहर करने लगी । आह! आह! हाय! मां!" दीप्ति चीख पड़ी । शोभा समझ गयी कि जेठानी की इन आवाजों से कोई न कोई जाग जायेगा । चाची ने तुरन्त ही अपने रसीले होंठ दीप्ति के होठों पर रख दिये । "म्ममह" दीप्ति शोभा के मुंह मे कराह रही थी । "खट खट" अचानक ही किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया "माँ, सब ठीक तो है ना?" अजय का स्वर सुनाई दिया । शायद उसे कुछ आवाजें सुनाय़ी दे गई थी और चिन्तावश वो मम्मी को देखने उसके कमरे के दरवाजे तक चला आया था । कमरे के अन्दर आना अजय ने दो महीने पहले ही छोड़ दिया था ।

"हां - बेटा, सब - ठीक - है" हर शब्द के बीच में विराम का कारण दीप्ति की उछलती गांड थी जो शोभा को रुकने ही नहीं दे रही थी और उसकी चुत मेँ अंदर बाहर कर रही थी । दीप्ति के दिमाग में हर सम्भावित खतरे की तस्वीर मौजूद थी पर वो तो अपनी लंड के हाथों लाचार थी । दो क्षण रुकने के बाद दीप्ति फ़िर से शोभा को चोदने मेँ लिप्त हो गयीं । पूरे हॉल मेँ फच...फच...की आवाज गुंज रहा था । दीप्ति अभी तक झड़ी नहीं थी । शोभा ने तो सोचा था कि औरत की लंड है जल्दी ही पानी निकाल देगा लेकिन दीप्ति तो पहले ही एक बार लंड का विर्य निकाल चुकी थी । पहली बार शोभा के हाथों से । अपनी चिकनी चूत के भीतर तक भरा हुआ जेठानी की 10 इंच का लंड अन्दर गहराईयों को अच्छे से नाप रहा था । दोनों ने ही कामासन में बिना कोई परिवर्तन किये एक दूसरे को चोदना बदस्तूर जारी रखा । फ़िर तीसरी बार दीप्ति को अपनी लंड में एक सैलाब उठता महसूस हुआ । दोनोँ के मुहं से घुटी घुटी आवाजें निकल रही थी । ये निषिद्ध सेक्स के आनन्द की परम सीमा थी । शोभा जिस जेठानी को वह बडी बहन माना है आज उस औरत ने अपनी लंड से उसे चोदी जा रही थी । और क्या पुरुष के बराबर थी उनकी जेठानी । अचानक हॉल का दरवाजा खुला । अजय दरवाजे की आड़ लेकर ही खड़ा हुआ था । "मम्मी, सबकुछ ठीक है ना, दीप्ति को फ़िर से आवाजें सुनायी दी थी ।" शायद अजय ने सब कुछ देखा लिया था । "कुछ नहीं बेटा". दीप्ति ने हांफती हुई आवाज लगाई । उसको तो सिर्फ़ अपनी देवरानी की पनीयाई चूत से मतलब थी । शोभा को बिस्तर पर पटक कर दीप्ति फिर उसके ऊपर आ गई । "रुको, दीदी" शोभा ने जेठानी को रोका । शोभा ने पैर के पास पड़ी अपनी पैन्टी को उठाकर पहले दीप्ति की लंड को पोंछा और फ़िर अपनी चूत से रिस रहे रस को भी साफ़ किया । काफ़ी देर हो गयी थी गीली चुदाई करते हुये । शोभा अब जेठानी की सुखे लंड को अपनी चूत में महसूस करना चाहती थी ।

दुसरे ही क्षण दिप्ती ने एक ही झटके में अपना पूरा का पूरा लंड शोभा की चूत में घुसेड़ा तो वो जैसे चूत के सारे टान्के खोलता चला गया । दस इन्च लम्बे और चार इन्च मोटे लंड से और क्या उम्मीद की जा सकती है । उसे समझ में आ गया कि वास्तव में वो चिकना द्रव्य कितना जरूरी था, उसने आँखेँ बन्द कर ली । दिप्ती की लंड किसी मोटर पिस्टन की भांति शोभा कि चूत मेँ अंदर-बाहर हो रहा था । शोभा ने जेठानी को बाहोँ मेँ कस के भर लिया और दोनोँ पैर उसकी कमर मेँ लपेट लिया । दोनोँ के स्तन एक दुसरे से रगड खा रहे थे । पिछे ड्रेसिँ-टेबल पर एक बडा शीशा था । शोभा जब आँखेँ खोल सामने पडे शीशे मेँ नजर गडाई तो जेठानी की फैली हुई विशाल गांड साफ दिखाई पडा जो तेजी से हवा मेँ उछल रहा था । दीप्ति के भारी गांड के दरार के निचे बडी सी लंड उसकी बुर मेँ अंदर बाहर हो रहा था साथ मेँ दो बडे अंडे लहरा रहे थे । दीप्ति के हर धक्के के साथ ही शोभा की जान सी निकल रही थी । दिप्ती की तेजी और ताकत का मुकाबला नहीं था । नाखूनों को जेठानी के कन्धों पर गड़ा कर आखें बन्द कर ली । हर एक मिनट पर आते आर्गैसम से चूत में सैलाब सा आ गया था । कई बार जेठानी के स्तनोँ पर दांत गड़ाए । लेकिन इससे तो दीप्ति की उत्तेजना में और वृद्धि हो गई । चन्द वहशी ठेलों के पश्चात दिप्ती ने भी चरम शिखर को प्राप्त कर ली ।

"शोभा,शोभा..हां शोभा, मेरी पानी निकल रही है । मैं अपना वीर्य तुम्हारी बुर में ही खाली कर रही हूं. आह ।" कहती हुई दीप्ति एक बार जोर से अपनी भारी गांड हवा मेँ उछाली और शोभा की बुर मेँ जड तक लंड पेल दी । शुरुआती स्खलन तीव्र किन्तु छोटा था । लेकिन उसके बाद तो जैसे वीर्य की बाढ़ ही आ गयी । शोभा ने दिप्ती को अपने बदन से चिपका लिया । वीर्य की हर पिचकारी के बाद वो अपनी देवरानी के नितम्बों को निचोड़ती । कभी जेठानी की भारी गांड को मसलती कभी उसकी पीठ पर थपकी देती । दिप्ती का बदन अभी तक झटके ले रही थी उसने शोभा के दोनो स्तनों के बीच अपना सिर छुपा लिया । दोनों शांत हुये, इस समय अपने ही देवरानी की बुर चोदने के बाद दीप्ति के अंग अंग में एक मीठा सा दर्द हो रहा था, लेकिन अब वहां से जाना जरुरी था ।

शोभा को धकेल कर साइड से सुलाया और दीप्ति अपने कपड़े ढूढने लगीं । बिस्तर के पास पड़ा हुया अपना पेटीकोट उठा कर कमर तक चढ़ाया, साड़ी को इकठ्ठा कर के बदन के चारों तरफ़ शॉल की तरह लपेट लिया । ब्लाऊज को वैसे ही एक हाथ से साड़ी पकड़े और दुसरे से ब्रा, पैंटी और पेटीकोट का नाड़ा दबाये दीप्ति कमरे से बाहर निकल गईं । शोभा भी अपने कमरे मेँ चली गई । अपने कमरे का दरवाजा बन्द करते वक्त दीप्ति को अजय के कमरे के दरवाजे के धीरे से बन्द होने की आवाज सुनाई दी । दीप्ति के मन मेँ अजीब शंका जाग उठा, कहीँ उनका बेटा ये सब देख न लिया हो ! कहीँ उसकी भेद न देख लिया हो । लेकिन ये सब सोचने का समय कहां था । उसकी लंड तो शोभा की रसीली बुर की याद मेँ अब तक आधा तन कर ही था । आज की चुदाई ये साबित करने के लिये काफ़ी थी कि 40 की उमर में भी उसकी लंड की ताकत ढली नहीँ थी । दीप्ति ने सारे कपड़े दरवाजे के पास ही छोड़ दिये और पेटीकोट से अपनी जांघों और लंड को पोंछा और झट से नाईटी पहन कर गोपाल के साथ बिस्तर में घुस गयीं । गोपाल पूरी तरह से सो नहीं रहा था, बीवी के कमरे में आने की आहट पाकर वो जाग गया "कुछ सुना तुमने, दीप्ति". "कुमार और शोभा इस उमर में भी कितने जोश से एक दूसरे को चोद रहे थे ।" वो तो मैने सुना, काफ़ी देर हो गई ना उनको खत्म करके तो." दीप्ति ने धड़कते दिल से पूछा । कहीं शोभा और उसकी चुदाई का शोर उसके पति ने ना सुन लिया हो । अपनी और शोभा की जन्गली चुदाई ने दोनों को ही दीन दुनिया भूला दी थी । "कहां बहुत देर पहले? अभी दो मिनट पहले ही तो खत्म किया है । दो घन्टे से चल रही थी चुदाई ।

कल दोनों शायद देर से ही उठेंगे । दीप्ति के तो होश ही गुम हो गये । वास्तव में उसके पति ने उन दोनोँ की चुदाई की आवाजें सुनी थी, किस्मत ही अच्छी है कि गोपाल उन आवाजों को शोभा और कुमार की मान बैठा था । तभी गोपाल का हाथ उसकी गांड पर आ गया । "बड़ी देर कर दी जानेमन, सो गयीं थीं क्या?" दीप्ति की नाईटी को ऊपर करते हुए कमर तक नंगा किया । "आज उस फ़िल्म में देखा, दीप्ति चाहकर भी गोपाल को रोक नहीं सकती थी । गोपाल ने दोनो हाथों से अपनी पत्नी की फ़ूली हूई गांड को दबोचा और एक ही झटके में अपना चार इंच का लंड उसकी गांड के छेद में पेल दिया । शायद उस फ़िल्म का ही असर है" ।

दीप्ति ने अपने मुरझे लंड को हाथ मेँ लेकर सहलाने लगी । गोपाल बिना रुके ताबड़ तोड़ धक्के लगाने लगा । दीप्ति भी फ़िर से उत्तेजित हो चली थीं । गोपाल ने अब गांड को छोड़ दीप्ति के ऊपर झुकते हुये उनके मुम्मे एक हाथ में भर लिये और दुसरे हाथ से अपनी पत्नी की लंड को मुठियाने लगा । दीप्ति की गांड को अपनी कमर से चिपका कर कुमार जोर जोर से मुठियाने लगा । "पता है, शोभा कितना चीख चिल्ला रही थी । शर्म और उत्तेजना की मिली जुली भावना ने दीप्ति के दिलोदिमाग को अपने काबू में कर लिया था । कुछ ही क्षणों में गोपाल के लंड ने उलटी कर दी.. दीप्ति की गांड में से सिकुड़ा हुआ लंड अपने आप बाहर निकल आया और व तुरन्त ही दूसरी तरफ़ करवट बदल कर सो गया । खैर, एक ही रात मेँ इतनी चोदाई के कारण दीप्ति का जिस्म थक कर चूर हो चुकी थी । लेकिन ये भी सच है कि आज जीवन में पहली बार उनको मालूम हुआ था कि चुदाई में तृप्ति किसे कहते हैं । दीप्ति ने करवट बदला और सोने की कोशिश करने लगी ।

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AnonymousAnonymous8 months ago

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