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Click hereमेरा नाम नीरज (पात्रों के नाम काल्पनिक हैं) है और मै तीस साल का हूं। ये कहानी उस समय की है जब मै कॉलेज की पढ़ाई के लिए दिल्ली में रहता था। उस समय मेरी आयु 22 साल की थी । दिल्ली विश्वविद्यालय से मैं ब.ए की पढ़ाई कर रहा था और एक किराय के मकान में रहता था। मैने एक सिंगल रूम फ़्लैट ले रखी थी।
उस मकान में कुछ 6-7 अलग अलग परिवार रहते थे और केवल मैं ही बैचलर था। मकान के मालिक ने मकान के देख रेख का जिम्मा उसी मकान में रहने वाले एक परिवार को दे रखा था। उस परिवार में एक पुरुष जितेन उनकी पत्नी रेखा और उनके दो बच्चे थे। जितेन ऑटो रिक्शा चलाते थे और रोज बहोत सुबह आटो लेके निकल आते और देर रात को लौटा करते थे। उनकी उम्र 4० के आस पास होगी। वो एक हसमुक इंसान थे।
इस मकान कि रौनक थी उनकी बीवी रेखा जो की दिखने में बहुत सुंदर, हस्मुक चेहरा और बहुत मेल मिलाप वाली महिला थी। रेखा को देख के कोई नहीं कह सकता था कि वो दो बच्चे जो की प्राइमरी स्कूल जाते थे उनकी मां हैं। रेखा का विवाह 18 साल की उम्र हो गया था और अभि उसकी उम्र 30 की होगी। गोरा चेहरा, बड़ी बड़ी आंखें और एक घायल कर देने वाला मुस्कान, क्या गजब की खूसूरती थी। चेहरे से नीचे जाओ तो मानो ऐसा शरीर की बस देख के ही मचल जाए। उसका फिगर 36-30-38 होगा। क्या बड़े बड़े और तने हुए चूचियों थी उसकी। उसकी गान्ड भी बहुत बड़े और सेक्सी थे। ज्यादातर वो सलवार कुर्ता पहनती थीं। जब वो बिना दुपट्टे के करीब खरी हो तो उसके टने हुए निपल का उभार कपड़े से बाहर दिखता था।
शुरुआत में मै रेखा को इतने गौर से नहीं निहारा । उसके प्रति मेरा आक्रसन तब से होने लगा जबसे मुझे महसुस हुआ कि उसका मेरे प्रति झुकाव है। हमारी बात चित निश्चित तौर पे रोज शाम 4 बजे तो होती ही थी। इस समय घर में मुनिसिपल्टी का पानी आता था और रेखा बताने आती थी कि पीने का पानी आ गया है तो भर लो। पानी का नलका मेरे कमरे के ठीक बाहर था। नलके से पानी का आवाज़ ओर लोगों के नल्के के पास आने के आवाज़ से मुझे समझ आ जाता था कि पानी आ गया है पर फिर भी मैं इंतज़ार करता था कि रेखा मेरा दरवाज़ा खटखटा के बताए।
रोज शाम का यह सिलसिला हो गया था। रेखा एक अलग अदा से कहती थी कि "पानी आ गया है तो भर लो" और बोल के मुस्कुराती थी। धीरे धीरे मै महसू किया कि जब वो बोलने आए वो काफी करीब आ जाती थीं।
एक बार उसके बुलाने से जब मै बाहर आया तो वो झुक के पानी को चेक करते हुए मुझे बता रही थी कि देखो ना पानी आज गंदा आ रहा है। झुकने से उसके चूचियां बाहर आने जैसा हो रहे थे। मेरी नजर उसकी चूचियों पर ही टिक गई, वो थोड़ा और झुकती तो उसके निपल भी नजर आ जाते। कुछ सेकंड के लिए मेरा नजर वहीं चिपका था मुझे होश तब आय जब उसने दुबारा बोला "आके देखीये ना पानी गंदा आ रहा है"। मैं एकदम से उसकी तरफ देखा, वो मुस्कुरा रही थी। उसके बोलने से पानी देखने के लिए मैं रेखा के पास गया, वो झुक कर खरी रही और हटी नहीं। मेरा नजर उसके चूचियों पर ही था और बिना पानी को देखे में बोला "पानी गंदा है" । कुछ मिनट के लिए इसी पोजिशन में हम दोनों थे कि किसी की आने कि आवाज़ आई तो रेखा खड़ी हो गई।
उस दिन के बाद से पानी के बहाने उसके चूचियों का आधा दर्शन रोज शाम को मिलने लगा। बिल्कुल साफ जाहिर हो रहा था कि रेखा मुझे खुला निमंत्रण दे रही है और मेरे अगले कदम का इंतजार कर रही है। मैं भी बस मौके कि तलाश में था कि कब उसकी पूरे जिस्म का दर्शन हो और उसके चूत में अपना लन्ड डालूं ।
शाम को अब तो पानी भरने के बाद मेरा मन रेखा के पीछे ही रहता था। उसका कमरा मेरे कमरे के ऊपर वाले फ्लोर पे था। एक दिन शाम को में उसके पीछे चल दिया। उसने मुड़ के पूछा "कहा जा रहा हो" तो मैने बोला कि छत पे जा रहा हूं, उसने एक प्यारी मुस्कुराहट दी।
उस दिन बहुत दिनों के बाद में मकान के छत पे गया था । छत पे कुछ कपड़े सूखने के लिए रखे थे। मैंने देखा एक साइड में काले रंग कि ब्रा और पैंटी भी टंगी है और उसके पास ही एक सलवार कुर्ता रसी पे टंगा था। कुर्ता तो रेखा का ही था क्यूंकि मैंने उसको क्यी बार इस कुर्ते में देखा था। मुझे यकीन हो गया कि वो ब्रा और पेंटी भी रेखा के ही हैं और वो उसको उठाने जल्दी आएगी क्योंकि उसको पता है कि मै छत पे हूं। जहां वो कपरे टंगे थे मैं वही जाके के खरा हो गया और रेखा का इंतजार करने लगा।
कुछ दस मिनट के बाद रेखा छत पे आई। उसने मेरे तरफ देखा और मुस्कुराया। फिर वो अपने कपड़े उठाने लगी। मेरी नजर उसकी ब्रा पे थी। उसने ब्रा को क्लिप से हटा के निकाला और मेरे तरफ देखा और मुस्कुराई। जब वो पैंटी निकल रही थी तो उसका ब्रा जमीन पे गिर गया या शायद उसने जान बूझ के गिराया था। जब वो उसको उठाने के लिए झुकी तो मुझे उसके चूचियों के फिर से दर्शन हो गए। इस बार उसने बड़ी कातिलाना अदा से मेरी ओर देखा। सारे कपड़े उठाने के बाद रेखा मेरे पास आके खड़ी हो गई और बोली "क्या बात है आज छत पे आय हो, पहले देखा नहीं" मैने बोला "बस ऐसे ही आज मन किया लेकिन कल से रोज आऊंगा"।
अगले दिन मैं सुबह नहाने के बाद अपने कपरे छत पे रख आया और उस कोने मे हिं रखा जहां रेखा अपने कपरे सूखती है। इससे पहले मैं अपने कपरे बालकनी में ही सूखता था। जब मै कॉलेज से वापिस आके छत पे गया कपरे लाने तो देखा मेरे अंडर वियर के पास रेखा ने सटा के अपना ब्रा और पैन्टी टांगा है। मेरे दिमाग म एक प्लान सूझा रेखा को बताने का की मै भी बेचैन हो रहा हूं तुमको चोदने के लिए। मैं बस अपने शॉर्ट्स और टी शर्ट उठाया और अंडरवियर वहीं छोड़ दिया।
आज मैं पूरा प्लान कर लिया था कि रेखा को अपना लन्ड आज दिखा के है रहूंगा। शाम को पानी भरने के लिए फिर से रेखा ने आवाज़ लगाई। प्लान के मताबिक अपने लन्ड को पहले थोड़ा गरम किया फिर बिना अंडरवियर के बस तौलिया लपेट बाहर आ गया। मैंने देखा रेखा का नजर सीधा मेरे लन्ड पे था। जब तक मै पानी भर रहा था वो वहीं खरी रही और चुपके से मेरे तौलिया के पिछे छुपे मेरे लन्ड का अंदाज़ा ले रही थी। इस स्थिति में मेरे लन्ड में हलचल हुई और तौलिया के अन्दर खरा होने लगा।
कुछ सेकेंड में ही खड़े लन्ड से तौलिया तम्बू जैसा हो गया। मुझे अहसास हो रहा था कि रेखा का नजर उधर ही है पर मैं उसके तरफ नहीं देखा और उसको नज़ारे का पूरा लुत्फ लेने दिया । जैसे ही पानी का ड्रम भरने को हुए मैने अपना हाथ अपने लन्ड पे रख के उसको बैठने का कोसिस जैसा किया और रेखा की तरफ देखा। उसका चेहरा लाल हो गया था, जैसे ही हमारी नज़ारे मिली वो हस के भाग कर निकल गई।
मेरा प्लान सही चल रहा था। फिर मैं अपने कमरे में चला गया। मन तो कर रहा था कि अभी मुठ मारू रेखा के चूचों को सोंच के लेकिन खुद को कंट्रोल किया। मुझे पता था रेखा फिर से आएगी तो मै अपने प्लान के हिसाब से कमरा खुला छोड़ दिया और बेड पे लेट के अपना लन्ड सहला रहा था। कमरे के दरवाजे के ठीक सामने मेरा बेड है। जैसे मैंने सोंचा था रेखा 15 मिनट बाद आयी और मेरा नाम पुकारा।
मेने अपने लन्ड को खड़ा रखा था जैसे ही उसकी आवाज़ आयी मैंने अपने लिंग के ऊपर तौलिया रख दिया जो कि तम्बू जैसा दिख रहा था। रेखा की आवाज़ सुन के मैंने बोला "हां भाभी बोलिए क्या बात है, दरवाज़ा वैसे खुला है"। ऐसा बोलने से रेखा ने दरवाजे को हल्का धक्का दिया और जैसे ही गेट खुला नज़ारा उसके सामने था। वो कुछ सेकंड के लिए मेरे तम्बू को ही घूरती रही फिर हंस के बोली "आज छत पे नहीं जाओगे ?" तो मैने बोला "भाभी मै बस अभी कॉलेज से आया हूं और थोड़ा थका हुआ हूं आप प्लीज मेरा एक कपड़ा ऊपर रह गया है, सूखा नहीं था इसलिए लाया नहीं क्या आप उसको ला दोगी"? इसपर रेखा ने अपना नजर मेरे लन्ड के तरफ ही रखते हुए एक अलग सी मुस्कुराहट के साथ बोला "बिल्कुल कोई बात नहीं मै लेके आती हूं तुम आराम करो" ये बोल के वो हंसती हुई चली गई।
मुझे पता था इस बार वो बिना आवाज़ दिया सीधा दरवाजे को खोलेगी कपरे को अंदर देने के लिए । लेकीन अगर वो ऐसा ना करे तो मैंने सोचा आगे आज कुछ नहीं करूंगा ।शाम के कुछ 5 बज रहे थे। मैं दरवाजे को बिना कुण्डी लगाए बस सटा दिया और शीशे के पास जाके पहले तौलिए को नीचे गिराया और सर का बाल सैट करने लगा। तौलिया जमीन पे ऐसे पड़ा था जैसे खुद ही गिरा हो ।
और जैसा मैंने सोचा था, थोड़ी देर बाद रेखा सीधा मेरे कमरे के दरवाज़ा को हल्का धक्का दे कर अन्दर घुसी कि उसका नजर मेरे ऊपर गया और आके सीधा मेरे खड़े लन्ड पे गया जो अपनी पूरी लंबाई और मोटाई के साथ खड़ा था। वो मेरा नाम पुकारने जा रही थी कि आधा "नीर..." बोल के ही रुक गई। मैंने उसके तरफ देखा पर वो मेरे लंड के तरफ ही देख रही थी। कुछ सेकंड के लिए मैंने उसको देखने दिया फिर बिल्कुल उसके तरफ अपने लंड को लाके झट से तौलिया ऊपर कर लिया और बोला "सौरी भाभी बिलकुल अभि सरक गया ये तौलिया" इसपर रेखा भाभी ने लाल हुए चेहरे पे हंसी लाके बोला "कोई बात नहीं ये लो आप इसको पेहन लो सुख गया है ये" रेखा ने मेरी अंडरवियर को आगे देते हुए बोला। अंडरवियर को रेखा के हाथ से लेते हुए उसके कलाई को कुछ सेकंड के लिए हल्का दावा के पकड़ा फिर उसके तरफ देखा वो मुस्कुराई और मैंने उसके हाथ को छोड़ा।
अंडरवियर लेने के बाद में झट से उसको पहने को हुआ कि रेखा पलट के जाने लगी। मैंने बोला "रुको ना भाभी एक कप चाय पीकर जाना, मेरे लिए इतना कष्ट उठाया" वो मुझे जवाब देने के लिए मुड़ी कि मै अंडरवियर पहन रहा था, अभि ऊपर तक आया नहीं था कि मैंने तौलिया को साइड से गिरा दिया और भाभी को अपने लन्ड कि फिर से एक झलक दे दिया । रेखा मुस्कुरा कर बोली "कोई बात नहीं इसमें कष्ट कि क्या बात है, आप रेस्ट करो चाय बाद ने पी लेंगे" इस पर मैंने और रिक्वेस्ट करी तो वो मान गई।
मैंने रेखा को बैठने को बोला और खुद किचेन जोकि बेड रूम से लगा ही था उधर चाय बनाने के लिए आया। रेखा ने बैठने से पहले खुद ही कमरे के दरवाजे को सटा दिया था । पहले मैंने पानी गरम करने के लिए पतीले को गैस पे रखा। जब तक पानी गरम हो रहा था मैंने रेखा से कुछ बात करना चाहा । मैंने उस से पूछा कि बच्चे क्या कमरे मै हैं तो उसने बोला कि वे बगल के पार्क में खेलने गए हैं और उधर से ही पड़ोस के एक टीचर के पास पढ़ने जाएंगे। और मुझे पता था उसका पति तो 9 बजे के बाद ही आता है, मतलब मेरा चाल सही चला तो आज ही रेखा को चोदने का मौका मिलेगा। फिर मैंने पूछा "भाभी आपको चाय कैसी पसंद है स्ट्रॉन्ग या हलकी, मै इतना अच्छा कुक नहीं हूं तो आप आके देख लो" रेखा ने बोला "रुको मै उधर ही आती हूं"। रेखा ने अभि मरून रंग की सलवार कुर्ता पहन रखा था और बदन पे कोई दुपट्टा नहीं था ।
किचन में इतना जगह थी नहीं और हमलोग बिल्कुल करीब थे। उसने मुझसे चाय पत्ती पूछा और खुद ही बनाने लगी। में अभि उसके साथ में खरा था और उसकी बदन कि खुशबू मुझे पागल कर रही थी। मैं रेखा को और जगह देने के बहाने उसके पीछे आ गया और बोला "भाभी आप बनाओ मैं देखता हूं सीखने को मिलेगा" बोलकर मै उसके पीछे पर एकदम करीब खड़ा हो गया। मैं इतने करीब था उसके की उसके गर्दन के ऊपर से उसको चुचियों का उभार देख पा रहा था। क्या मस्त नजारा था वो एक तरफ उसकी बदन कि खुशबू और दूसरी तरफ आधा दिखता स्तन ।
मेरा लंड तौलिए कि नीचे फिर से खड़ा हो गया । हम दोनों में से कोई भी थोड़ा भी हिलता तो मेरा लंड उसका गान्ड पे रगड़ मारता। मैं पीछे से रेखा कि जिस्म में खोया ही था कि रेखा ने बोला "देखो इतना पत्ती डालना चाहिए" मै देखने के बहाने आगे आया कि मेरा लंड उसकी गान्ड पे पहेला झटका दिया । मैं लंड को उसकी गान्ड में रगड़ ते हुए थोड़ा साइड आ गया और विधि सीखने का बहाना करने लगा । मेरे लंड के रगड़ से वो पीछे मुड़ के देखना चाहती थी पर फिर उसने मुस्कुराते हुए चाय बनाने का काम जारी रखा।
मुझे पूरा येकीन हो गया था कि ये आज रेखा चुदने के मूड में है। फिर से कम जगह का बहाना दे के मै उसके पीछे आ गया और अपने बदन से कमीज़ निकाल ली और नीचे से तौलिया हटा के रेखा को देते हुए बोला "भाभी बहुत गर्मी है ये लो तौलिया थोड़ा चेहरा पोछ लो पसीना आ रहा है" उसने मेरे तरफ मुड़ के देखा और मुझे बस अंडरवियर में देख के शर्मा के मुस्कुराई और तौलिया लेकर चेहरा साफ किया। मैंने वापिस तौलिया नहीं पहना और साइड में रख दिया और रेखा से बिल्कुल पास खड़ा रहा। वो मेरे कॉलेज के बारे कुछ बात कर रही थी और उसका ध्यान चाय के ऊपर ही था।
मैंने अपना नाक उसके गर्दन के पास ले जाके उसके बदन का एक गहरा खुशबू लिया और बोला "भाभी चाय की बाहोत अच्छी खुशबू आ रही है" मुझे इतना करीब महसूस करके वो थोड़ी सी हिली फिर थोड़ा पीछे होके मुस्कुरा कर मुझे धन्यवाद बोला। उसके थोड़ा पीछे होने से मेरा लंड का उसके गान्ड पे फिर से रगड़ हुई ।
इस बार मैंने लंड को बिल्कुल चिपका दिया रेखा कि गान्ड पे और चाय की विधि देखने का नाटक किया। तिरछी नगाहों से मै रेखा के चेहरे के भाव को देख रहा था, वो बस धीरे से मुस्कुरा रही थी और मजे ले रही थी। धीरे धीरे मै अपने खड़े लन्ड को उसके गांड़ पे रगड़ने लगा, मैं देख रहा था कि रेखा कि सांसे तेज हो रही हैं। उधर चाय का पतीला उबल रहा था शायद चाय तौयार हो चुकी थीं पर रेखा वासना के भाव में सराबोर हो मेरे लन्ड के रगड़ का मजा लेने में व्यस्त थी।
मैंने धीरे से लंड को अंडरवियर से बाहर निकाल ऐसे ही रेखा के चूतड़ पे धक्के देने लगा । रेखा को शायद मेरे लंड के बाहर आने का आभास हो गया और उसने गैस को बंद कर चाय निकले लगी। वह चाय छाण रही थी कि मै बगल से तौलिया उठा लिया और अपने लंड का पूरा दबाव उसके चूतड़ों पे देते हुए हाथ को आगे बढ़ा कर उसके गरदन पे आते पसीने को पोछते हुए बोला, "भाभी आपको बहुत गर्मी लग रही है मैं पसीना पॉछ देता हूं"। उनके उत्तर का बिल्कुल परवाह किया बिना मैं अपना हाथ उसके गरदन से गुजरते हुए उसके छाती तक ले आया और पसीना पोछने का नाटक कर रहा था।
आभास हो रहा था कि वो वासना में सराबोर हो उत्तेजित हो चुकी थीं। मैं अपना हाथ उसके कुर्ते के अंदर से उसकी चूचियों तक ले आया था और धीरे धीरे सहला रहा था। रेखा लड़खड़ाती जवान से बोली "च च चाय बन गई" मैंने अपने होटों को उसके कान के नीचे लाके धीरे से बोला "शुक्रिया भाभी" और बोलते हुए मैंने उसके गर्दन पे एक चुम्मी जड़ दी। वो बिल्कुल स्थिर खड़ी रही और उसके सांसे अब बहुत तेज हो गईं थी।
उसके तरफ से कोई विरोध ना हुआ तो मैंने तौलिया को नीचे गिरने दिया और एक हाथ को उसके कुर्ती के अन्दर डाल के उसके एक चूचे को पूरा दबाने लगा और दूसरे हाथ से उसके पेट को सहला रहा था। साथ साथ अपने होटों से उसके गर्दन को चूम रहा था । वो बिल्कुल मेरे वश में थी। फिर मैंने एक हाथ को उसके सलवार के अन्दर डाल दिया और उसके चूत पर हाथ फेरने लगा। उसके मुंह से अब आवाजें निकलने लगी आह ..आह.. उफ़ ..आह.. इश ... । फिर उसने धीरे से बोला "दरवाज़ा खुला है" मैं उसका हाथ पकड़ के बेड पे बिठा दिया और झट से दरवाजे कि कुण्डी लगा दी। फिर क्या था रेखा को बाहों में भर के उसको चूमने लगा।
चूमते चूमते मैंने रेखा की कुर्ती निकाल दी और एक झटके में उसके ब्रा को उसके बदन से अलग कर दिया । उसको नंगे चूचों को देख मै पागल हो रहा था और उसी धुन में मैंने उसके निपल को मुंह में लेकर चूसने लगा। रेखा सिसकारियां लेते हुए बोली "धीरे धीरे.... दर्द होगा" मैं कहा सुनने वाला था उसकी चूचियों का पूरा लुत्फ उठा रहा था । उधर उसका हाथ मेरे लंड पे था जिसे वो सहला रही थी । मैने लंड को रेखा के मुंह के पास ले आया और पूछा "भाभी मेरा औजार कैसा है" वो बोली "बहुत मोटा है तुम्हारा लगता है रोज मालिश करते ही इसका" रेखा बोल रही थी और अपने हाथ से लंड के सुपाड़े को ऊपर नीचे कर रही थी। मैं बोला "हां भाभी आपने सही कहा, इसका रोज मालिश करता हूं आपको याद करके" रेखा हंसने लगी और बोली "तुम मुझे पहले दीखा देते इसको तो मैं ही मालिश कर देती"
मैं : "सच भाभी... ठीक है अब तो आपने देख ही लिया है तो अब से रोज देनी होगी मालिश"
रेखा : "हां मेरे राजा मिलेगी मालिश जब तुम्हारा मन हो"
अभि रेखा पूरे तेजी से मेरे लंड को ऊपर नीचे कर रही थी और में कभी उसके चूचों को चूस रहा था और कभी उसके होंठों को
मैं : "लेकिन भाभी क्या आपको जितेन भाई से फुर्सत मिलेगी मेरी मालिश के लिए"
रेखा : "उनको अब ये सब में रुचि नहीं रही"
मैं : "ओह.. तो क्या अब आप दोनों रोज सेक्स नहीं करते ?"
रेखा : "कहां रोज। महीने में अब एक दो बार होता है और वो भी ठीक से नहीं"
उसके ये बात सुनते ही मैं उसको और जोर से चूमने लगा और उसके पजामे को खोल दिया।
मैं : "भाभी आप चाहो तो आज से आप मुझसे चुदायी का सुख ले सकती हो जब भी आपका मन करे"
बोलकर मैंने उसको आखिरी वस्त्र जो कि उसकी पैंटी थीं उसको भी निकाल दिया । हम दोनों बिल्कुल नंगे होके बिस्तर पे एक दूसरे में लिपटे थे। मैं थोड़ा उठ के अपने लंड को रेखा कि तरफ ले जाके बोला
मैं : "भाभी मेरा लंड आपके प्यार का प्यास लेके बहुत दिन से तड़प रहा था।"
यह सुनते ही रेखा ने एक झटके में मेरे लंड को अपने मुंह में लेके चूसने लगी । मैं आनन्द से पागल हो रहा था और मेरे मुंह से भी अब आवाजें निकलने लगी । फिर मैंने रेखा की चूत में उंगली डाली और अन्दर बाहर करने लगा। उसकी सिसकारियां तेज़ हो रही थी कि मैंने अपना मुंह भी उसके चूत पे रख दिया। उसके चूत के पानी का स्वाद अद्भुत था, मैं अपनी जीभ को उसके चूत बिल्कुल अन्दर तक धकेला और लगातार चाट रहा था।
फिर रेखा ने उठ मेरे गालों पर हाथ रख के बोली "मेरी जान अन्दर घुसा दे ना लंड मैं पागल हो रही हूं"। ऐसा उसके बोलते ही मैंने देखा को चित लेटा कर मिशनरी पोजिशन में होके अपना लंड उसके चूत के द्वार पे रख के एक धक्के में आधा अन्दर घुसा दिया। उसने धीरे से कराहा और बोली "नीरज धीरे.. बहुत दिन से चूत के अंदर लंड नहीं गया मुझे दर्द होगा" फिर मैं धीरे से एक झ्टके में लंड को पूरा उसके चूत के अंदर कर दिया।
फिर लगतार कभी तेज कभी धीरे उसे उसी पोजीशन में चोदता रहा। फिर थोड़ा रुक के मैंने बोला "भाभी ऊपर आजा ना" रेखा मेरे ऊपर आ गई । मेरा खड़ा लंड उसके चूत में "फस.." कि आवाज़ करता एक झटके में उसके अन्दर घुस गया। उसकी चूत बिल्कुल रसीली हो गई थी और पूरा पानी निकल रहा था मानो कब से जमा हो। मैंने उसके चूचों को हाथ से दबा रहा था और रेखा मेरा लंड के ऊपर चढ़ के चुदायी में लगी थी। जब वो थक गई तो मैंने उसको घूटने के बल कुत्ते कुत्तिया कि पोजीशन में आने को बोला और जैसे में केह रहा था वह करती गई। मुझे रेखा को चोदने में बहुत मजा आ रहा था। उसकी बेतहाशा गीली चूत से लंड मजे से अन्दर बाहर हो रहा था ।
रेखा पूरे जोश से चुदायी का लुत्फ उठा रही थी। फिर एक समय पे वो धीरे पड़ गई और बोली "मेरे राजा मेरी चूत अभि तक २ बार पानी छोड़ चुकी है तुम अपना अब जल्दी से कर को" दोनों पसीने में लोट पोट हो चुदायी के हर कला को आजमाने में लगे थे । फिर मैंने चुदायी की स्पीड और तेज़ कर दी उसके बाद 5 मिनट और लगे मेरे लंड को झरने में। ये चुदायी लगभग 40 मिनट तक चली दोनों एकदम संतुष्ट और बहुत थक गए थे।
5 मिनट की चुप्पी के बाद रेखा बोली "नीरज बहुत मज़ा आया, आगे भी मुझे मज़ा देगा ना?" तो मैंने बोला "भाभी आपका जब मन हो बस इशारा कर देना मैं और मेरा लंड आपका ही है" रेखा मेरी बात सुन के बड़े पयार से मेरे होटों को चूमा और बोली "शुक्रिया मेरी जान, अभि मैं जाती हूं बच्चे आने वाले होंगे बाद में फिर करेंगे" ये बोल के वो उठने को हुई कि मैं खींच के उसको अपने बाहों में ले लिया और चूमने लगा। थोड़ी देर के चुम्बन से ही मेरा लंड फिर खड़ा हो रहा था लेकिन मैं सोचा ज्यादा देर रेखा को अपने कमरे में रोकान ठीक ना होगा तो उसको थोड़ा ढील दिया ।
रेखा उठ के अपने कपडे पहनने लगी और में उसको देख रहा था । फिर उसने मुझे फिर से एक किस दिया और जाने लगी। उस दिन हमरी लंबी चली चुदायी की शुरुआत थी आगे हम दोनों ने बहुत मज़े किए ये सिल सीला जारी रहा।