छाया - भाग 03

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पार्टी फिर शुरू हो चुकी थी मैंने और सीमा ने वाइन का एक एक गिलास और ले लिया. मैंने यह अनुभव किया कि अधिकतर लड़कियां लहंगा स्कर्ट मिनी स्कर्ट आदि पहने हुई थी. हो सकता है सभी लड़कियों ने मिलकर यह निर्धारित किया हो. कुछ ही समय में हम सभी डांस फ्लोर पर थे.

अपनी प्रेयसी को आलिंगन में लिए हुए नृत्य करने का सुख हम सभी उठा रहे थे. छाया मेरे होठों को तेजी से चूस रही थी तथा मुझे अपनी और खींच रही थी. उसके हाथ मेरे राजकुमार को बीच-बीच में सहला दे रहे थे. अचानक मोना

की आवाज फिर से गूंजी उसने कहा..

"दोस्तों आज हमारी पल्लवी अपना कौमार्य खोने जा रही है. आप सब भी बेसब्र हो रहे होंगे इसी उम्मीद के साथ मैं इस पार्टी की समाप्ति की घोषणा करती हूं."

छाया, मैं और वो यादगार रात

पल्लवी के प्रेमी ने उसे बाहों में उठा लिया और सीढ़ियों की तरफ बढ़ चला. हब सब भी अपनी प्रेमिकाओं के साथ अपने कमरों की तरफ चल पड़े. छाया के कदम थोडे डगमगा रहे थे. मैं उसे अपनी गोद में उठा लिया वह मुझे लगातार चूमती जा रही थी.

कमरा खुला हुआ था हम दोनों के अंदर आने के बाद. छाया को बिस्तर पर उतार कर मैं बाथरूम चला गया. बाहर आने के बाद मैंने देखा की छाया बिस्तर पर नग्न लेटी हुई थी. सफेद चादर पर उसकी लाल रंग की पैंटी और ब्रा उसके शरीर के दोनों तरफ अड़हुल के फूल की की तरह दिखाई पड़ रहे थे. अत्यंत मोहक दृश्य था. छाया की आंखें बंद थी. उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे. उसमें स्वयं अपनी ब्रा और पैंटी उतारी थी यह इस बात का परिचायक थी कि वह कामोत्तेजित थी और मेरा साथ चाहती थी. शायद बाथरूम में हुई देरी की वजह से उसकी आंख लग गई थी. उस पर वाइन का नशा पहले से ही था. मुझे लगा वह सो गई.

मैं सोच नहीं पा रहा था कि क्या करूं. मैंने उसके स्तनों की तरफ देखा उन्होंने अपना तनाव कायम रखा हुआ था परंतु गुरुत्वाकर्षण के कारण थोड़ा चपटे हो गए थे पर उसके निप्पल अभी भी अपना तनाव बनाए हुए थे. स्तनों के बीच मेरा दिया हुआ नीले नग वाला पेंडेंट लटक रहा था. उसके कानों के कुंडल भी पेंडेंट से मिलते जुलते थे. उस लगा हुआ नीला नग अत्यंत खूबसूरत लग रहा था. छाया के चेहरे पर लालिमा अभी भी कायम थी लगता था उसे सोए हुए अभी दो-तीन मिनट ही बीते थे. पिछले कुछ महीनों में छाया "१९४२ एक लव स्टोरी" फ़िल्म की नायिका मनीषा कोइराला के जैसी लगाने लगी थी. .

मेरा ध्यान उसकी राजकुमारी की तरफ गया जिस तरह छोटे बच्चे दूध पीने के बाद अपनी लार बाहर गिरा देते हैं उसी प्रकार राजकुमारी की लार एक पतले धागे की तरह उसके होंठो से गिरते हुए चादर को छू रही थी.

यह एक अत्यंत उत्तेजित करने वाला दृश्य था. मुझे गांव के मवेशी याद आ गए. सम्भोग की आशा में खूंटे से बंधी मादा मवेशी अपनी योनि से लार टपकाती रहती है. समझदार गृहस्थ यह बात समझते हैं और उन्हें तुरंत गर्भधारण के लिए ले जाते हैं. यहां पर भी मेरी प्यारी छाया उसी स्थिति में पड़ी हुई थी. मुझे अपनी सोच पर हंसी भी आई. मैं भी पूर्ण नग्न होकर छाया के बगल में आ गया. कमरे में ठंड होने की वजह से मैंने चादर खींच ली. अब हम दोनों चादर के अंदर थे. मैं छाया के साथ इस अवस्था में कुछ नहीं करना चाहता था. मैं उसके साथ बिताए पलों को याद करने लगा अचानक मेरे राजकुमार पर उसके हाथों का स्पर्श महसूस हुआ और मैं छाया की तरफ पलट गया. वह भी मेरी तरफ पलट चुकी थी. उसने मुझसे मादक अंदाज में कहा "मानस भैया आज मेरा भी कौमार्य भेदन कर दीजिए मुझसे अब बर्दाश्त नहीं होता" इतना कहकर वह मेरे आलिंगन में आ गई. मैंने उसे अपने आगोश में ले लिया. वाइन के हल्के नशे में वह थोड़ी मदमस्त हो गई थी. उसने अपना एक पैर मेरे ऊपर चढ़ा लिया था. मैं उसके नितंबों को सहलाते सहलाते गलती से उसकी दासी को छू लिया.

उसने आँखे खोली, शरारत भरी नजरों से मेरी तरफ देखा और बोली

" दासी की तरफ नजरें मत बढ़ाइए अभी तो राजकुमारी ही कुंवारी बैठी है" इतना कह कर हंस पड़ी और मेरे होंठ चूसने लगी. मेरा राजकुमार अब राजकुमारी के मुंह पर दस्तक दे रहा था प्रेम रस से भीगी हुई राजकुमारी राजकुमार को अपने आगोश में लेने के लिए पूरी तरह से तैयार थी. राजकुमार भी मुंह से लार टपकाते हुए राजकुमारी के मुख पर ठोकर मार रहा था उसे सिर्फ मेरे एक इशारे की प्रतीक्षा थी.

छाया के हल्के नशे में होने के कारण कौमार्य भेदन का यह उपयुक्त समय था. उसे दर्द की अनुभूति भी शायद कम ही होती. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सारी कायनात ने साजिश कर उसका कौमार्य भेदन सुनिश्चित किया था.

पर मुझे मेरे दिए वचन की याद आ गई मैंने भगवान को साक्षी मानकर उसे वचन दिया था जब तक उसका विवाह नहीं हो जाता मैं उसका कौमार्य भेदन नहीं करूंगा.

इस वचन की याद आते ही मेरा राजकुमार थोड़ा शिथिल पड़ गया. मैंने छाया के माथे पर चुंबन जड़ा और बोला...

"मैं कल ही माया जी से अपनी शादी की बात करता हूं. पर मैं अपने दिए वचन को नहीं तोड़ पाऊंगा."

"मैं उस पल के लिए हमेशा इंतजार करुँगी" इतना कहकर वह मुझसे जोर से लिपट गई राजकुमार एक बार फिर राजकुमारी को चूमने लगा. मैं पहली बार छाया के ऊपर आ चुका था छाया ने अपनी जांघें फैला कर मेरे राजकुमार के लिए कार्य आसान कर दिया था. राजकुमार अब

राजकुमारी के होंठों के एक सिरे से दूसरे तक प्रेम रस में भीगते हुए यात्रा करने लगा. जब वो राजकुमारी के मुख तक पहुंचता तो एक उसके मुखमे एक डुबकी मार ही लेता था. उसका सफर राजकुमारी के मुकुट {भग्नासा} पर खत्म होता. यह प्रक्रिया राजकुमार लगातार कर रहा था. मैं छाया के दोनों स्तन अपने हाथों से दबा रहा था. उनके निप्पलों को छूने पर छाया अपनी जीभ अपने ही दांतों से काटने लगाती. स्खलित होने का समय करीब आ चुका था. मैं छाया के ऊपर और झुक गया तथा उसके स्तनों को अपने होठों से छूने लगा. बीच-बीच में मैं उसके निप्पलों को अपने मुंह में लेता. छाया की राजकुमारी राजकुमारी को तंग करने का एक अच्छा उपाय मिल गया था. उसके कठोर निप्पलों को मुंह में लेने पर मेरे राजकुमार में भी हलचल हो रही थी.

अचानक मुझे राजकुमारी में कंपन महसूस होने लगा. छाया मुझसे तेजी से लिपट गइ और एक बार फिर उसकी कोमल आवाज "मानस भैया..." मेरे कानों तक आई.

राजकुमारी अपना प्रेम रस छोड़ने लगी मेरा राजकुमार भी जैसे राजकुमारी के कंपन का इंतजार कर रहा था वह भी ताल में ताल मिलाते हुए वीर्य वर्षा करने लगा.

मैंने छाया के स्तनों से अपना मुंह हटा लिया था. वीर्य की धार छाया के गालों, स्तनों राजकुमारी और उसकी जांघों को भिगोती रही. मैं छाया से लिपट गया. हमारे स्तनों ने मेरे वीर्य को आपस में साझा कर लिया. छाया की गालों पर लगे वीर्य रस को मेरी जीभ छाया के होठों तक ले आई हम दोनों ने फिर से एक दूसरे के होठ चुसे. मैंने मुस्कुराते हुए छाया से कहा...

"कौमार्य भेदन के दिन भी 'मानस भैया..." ही बोलोगी

क्या?" वो हँस पड़ी मेरे गालों पर चुम्बन दिया और मेरे आलिंगन में आ गयी. हम दोनी इसी अवस्था में सो गए. सुबह मेरी नींद खुलने पर मैंने पाया की छाया मेरे ऊपर लेटी हुई है उसकी दोनों जांघे मेरी कमर के दोनों तरफ है और वह मेरे राजकुमार को अपने राजकुमारी से दबाई हुए थी. वह अपनी कमर की हल्के हल्के आगे पीछे करती हुई मेरे राजकुमार को उत्तेजित कर रही थी. राजकुमारी का रस एक बार फिर से बह रहा था. मेरी नींद खुलते ही मुझ में भी उत्तेजना आ गयी. और हम दोनों एक दुसरे को कुछ देर प्यार करते रहे "मानस भैया ..." कि आवाज आते ही उसके स्तन भीग रहे थे ... कुछ देर बाद उठकर हम साथ में नहाने चले गए. हमनेरात एक साथ अपनी पहली रात गुजार ली थी.

साथी पर अटूट विश्वास लड़कियों में साहस भर देता है, छाया ने आज वाइन पीने के बाद बिस्तर पर नग्न लेटकर मुझे खुला आमंत्रण दिया था, पर वो मेरी छाया थी. मैं उसे धीरे धीरे जवान होते देख रहा था बल्कि अपने हांथों से जवान कर रहा था.

दोपहर में घर आने के पश्चात हम दोनों काफी थके हुए थे. माया जी ने हमें खाना खिलाया और हम दोनों सोने चले गए छाया गलती से मेरे कमरे में घुस गइ शायद उसे आभास ही नहीं था कि हम घर वापस आ चुके हैं. माया जी थोड़ा आश्चर्यचकित थी. छाया मेरे कमरे के अंदर आकर अपनी एक पुस्तक हाथ में उठाई मेरी तरफ देख कर अपनी इस गलती पर मुस्कुरायी और हंसते हुए वापस अपने कमरे में चली गइ. मेरी छाया अब समझदार हो गयी थी.

छाया प्रेयसी से मंगेतर तक.

नज़रों के नीचे

समय तेजी से बीत रहा था. मैं और छाया एक ही छत के नीचे प्रेमी प्रेमिका का खेल खेल रहे थे. अपनी मां की उपस्थिति में भी छाया इतने कामुक और बिंदास तरीके से रहती थी जैसे उसे किसी बात का डर ही ना हो. वह अपनी मां की नजर बचाकर मेरे पास आती मुझे उत्तेजित करती और हट जाती. कई बार तो उसने अपनी माया जी की उपस्थिति में ही उनकी पीठ पीछे मेरे राजकुमार को सहला दिया था.

एक बार खाना खाते समय अपने पैरों को मेरे पैरों से रगड़ रही थी. मेरा राजकुमार उत्तेजित हो रहा था. कुछ देर बाद उसके हाँथ से एक चम्मच गिरी. वह टेबल के नीचे झुकी और मेरे राजकुमार को मेरे पायजामा से बाहर कर दिया और चम्मच उठाकर उपर आ गयी. कुछ ही देर में खाना खाते- खाते उसने अपने पैरों से मेरे राजकुमार को छूना शुरु कर दिया. बड़ा अद्भुत आनंद था माया जी बगल में बैठी थी. हम सब खाना खा रहे थे, और नीचे छाया के पैर रासलीला कर रहे थे.

खाना खाते खाते मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई. खाना खत्म करने के बाद जैसे ही माया जी बर्तन साफ करने किचन की ओर गयीं छाया मेरे कमरे में आई और अगले 2 मिनटों में ही मुझे स्खलित कर मेरा सारा वीर्य अपने हाथ से अपने स्तनों पर लगा लिया. मुझे इस बात से बहुत खुशी मिलती थी यह उसे पता था.

कभी-कभी वह मेरी गोद में आकर बैठ जाया करती. वह भी एक अलग तरह का आनंद होता. एक बार हम सब सोफे पर बैठकर फिल्म देख रहे थे. ठण्ड की वजह से हमने अपने ऊपर रजाई डाल रखी थी. नायिका की सुहागरात देखकर छाया उत्तेजित हो गई उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी पैंटी में डाल दिया. मैं उसकी मंशा समझ चुका था. बगल में माया जी बैठी थी फिर भी मैंने हिम्मत करके उसके राजकुमारी को सहलाया. कुछ ही देर में उसकी राजकुमारी कांपने लगी उसने मेरे हाथ को अपनी दोनों जांघों से दबा दिया. राजकुमारी के कंपन यह बता रहे थे कि वह स्खलित हो रही थी.

उसने पिछले कुछ महीनों में कई प्रकार की परिस्थितियां बनाकर सेक्स को रोमांचक बना दिया था. कभी कभी वह स्कर्ट के नीचे पैंटी नहीं पहनती और मुझे इस बात का एहसास भी करा देती. हम दोनों दिन भर एक दुसरे से माया जी उपस्थिति में ही छेड़खानी करते. एक बार मैंने उसकी जांघो और राजकुमारी से खेलते हुए पेन से एक बिल्ली की आकृति बना दी. राजकुमारी का मुख बिल्ली के मुख की जगह आ गया था. वह आईने में देखकर बहुत खुस हो गयी थी.

एक दिन छाया ने मुझसे पूछा

"आप मम्मी से शादी की बात कब करेंगे?"

"तुम्हारे कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद."

"कोई हमें भाई बहन तो नहीं मानेगा न?"

"तुम किसी भी तरीके से मेरी बहन नहीं हो . मेरे पापा और तुम्हारी मां की मजबूरियों की वजह से हम सब एक ही छत के नीचे आ गए. मैं खुद नहीं समझ पा रहा हूं कि हम दोनों के एक होने में क्या दिक्कत आएगी. हम भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे विवाह में आने वाली अड़चनों को दूर करें."

डर तो मुझे भी था पर मैं उसे समझा रहा था.

माया जी के नए साथी.

हमारी सोसाइटी में रहने वाले शर्मा जी एक प्राइवेट बैंक में मैनेजर थे. वह बहुत ही मिलनसार थे. जब भी वह देखते मुस्कुरा देते कुछ महीने पहले एक दिन उनकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. लिफ्ट में जाते समय उन्होंने मुझसे कहा ...

"मानस क्या आप मेरी एक मदद करोगे? मेरे लिए कुछ दवाएं ला दो"

उनके चेहरे से पसीना निकल रहा था. मैं उन्हें उनके फ्लैट में जो ठीक हमारे ऊपर था छोड़कर दवा लेने चला गया. लौटकर मैं देखता हूं कि वह अपने बिस्तर पर बेसुध पड़े हुए थे. मैं घबरा गया मैं नीचे जा कर माया आंटी को बुला लाया. माया आंटी को उनके पास छोड़कर मैं डॉक्टर को फोन करने लगा. माया आंटी ने उनके चेहरे पर पानी के छींटे मारे थोड़ी देर में उन्होंने अपनी आंखें खोली वह माया आंटी को अपने पास देख कर आश्चर्यचकित थे. माया आंटी उनके सर को हल्के हल्के दबा रहीं थीं. कुछ ही देर में पास में रहने वाले डॉक्टर वहां आ गए और उन्होंने शर्मा जी का चेकअप किया. उन्होंने माया आंटी की तरफ देखते हुए बोला ..

"आपके पति बिल्कुल ठीक-ठाक है. लगता है इनका ब्लड प्रेशर ज्यादा बढ़ गया था . चिंता की कोई विशेष बात नहीं है."

फिर वह शर्मा की की तरफ मुखातिब हुआ...

"आप घर पर आराम करिए और तेल मसाला वाला खाना मत खाइए. कुछ ही दिनों में आपका ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाएगा" मैं एक बार फिर डॉक्टर की बताई दवा लेने गया तब तक माया आंटी वही बैठी थी. वहां से आने के बाद माया आंटी खाना बनाने चली गई और मैं शर्मा अंकल का ध्यान रख रहा था. माया आंटी ने अगले तीन-चार दिनों तक शर्मा अंकल का खूब ख्याल रखा और उन दोनों में दोस्ती हो गई. हम और छाया कभी-कभी यह बात करते कि माया आंटी ने अपने जीवन में कितने कष्ट सहे हैं. लगभग सत्ताईस वर्ष की अवस्था में उनके पति का देहांत हो गया था. तब से वह अकेली ही थीं. मेरे पापा के साथ आकर उन्होंने अपने और अपनी बेटी छाया के लिए एक छत तलाश ली थी पर शारीरिक सुख की बात असंभव थी. तीन-चार दिन शर्मा अंकल की सेवा करने के बाद माया आंटी की उनसे दोस्ती हो गई थी.

माया जी का शक

छाया पर इक्कीसवां साल लग चुका था. मैंने और छाया ने पिछले कुछ महीनों में एक दूसरे के साथ इतनी कुछ किया था पर माया जी को इसकी भनक न लगी हो यह बड़ा आश्चर्य लगता था. हमने घर के हर कोने में अपनी कामुकता को अंजाम दिया था. मुझे तो लगता है कि यदि किसी फॉरेंसिक एक्सपर्ट को घर की जांच करने को दे दी जाए तो उसे हर जगह मेरे या छाया के प्रेम रस के सबूत मिल जाएंगे.

हमने घर की लगभग हर जगह पर अलग-अलग प्रकार से अपनी कामुकता को जिया था. घर का सोफा, डाइनिंग टेबल, किचन टॉप, बालकनी, बाथरूम आदि मेरे और छाया के प्रेम के गवाह थे.

माया जी ने हमारे कपड़ों पर भी उसके दाग जरूर देखे होंगे पर व हमेशा शांत रहती थी. मुझे नहीं पता कि उनको इसकी भनक लग चुकी थी या नहीं पर उनका व्यवहार सामान्य रहता था .

परंतु एक दिन मैं और छाया अपनी प्रेम लीला समाप्त करके उठे ही थे और अपने वस्त्र पहन रहे थे तभी माया जी के आने की आहट हुई वो बाज़ार से वापस जल्दी आ गयीं थी. इस जल्दबाजी में छाया अपने गालों पर लगा मेरा वीर्य पोछना भूल गई. माया जी की निगाहों ने उसके गाल पर लगा सफेद द्रव्य देख लिया उन्होंने अपनी उंगलियों से उसे पोछते हुए बोला यह क्या लगा रखा है. सीमा घबरा सी गई वह कुछ बोल नहीं पाइ. उसने अपने हाथों से अपना गाल पोछा और बोला "कुछ लग गया होगा"

माया जी ने चलते चलते अपना हाथ अपनी साड़ी के पल्लू में पोछा और अपनी उंगलियों को अपनी नाक के पास ले गयीं जैसे वह उसे सूंघ कर पता करना चाहती हो की वह क्या था.

[ मैं माया ]

अपनी उंगलियों को अपनी नाक के पास ले जाते ही मुझे अपनी उंगलियों में लगे चिपचिपे पदार्थ पहचानने में कोई वक्त नहीं लगा मैं समझ गई कि मेरा शक सही था. छाया और मानस के बीच बढ़ती हुई नजदीकियां इतनी जल्दी ऐसा रूप ले लेगी यह मैंने नहीं सोचा था. इन दोनों का साथ में हंसना मुस्कुराना एक दूसरे के साथ घूमना और कई बार देर रात तक वापस लौटना हमेशा से शक पैदा करता था पर मानस को देखकर ऐसा लगता नहीं था कि वह छाया को इस कार्य के लिए मना लेगा.

मैंने छाया के कपड़ों पर अलग तरह के दाग देखे थे पर मैं यह यकीन नहीं कर सकती थी कि वह अपने कपड़ों पर किसी पुरुष का वीर्य लगाए घूम रही होगी. छाया जब भी मानव के कमरे से निकलती थी उसके कपड़े की सलवटे यह बताती थी जैसे किसी ने उसके स्तनों को अपने दोनों हाथों से खूब मसला हो. आज यह देखने के बाद कि यह वीर्य मानस का है मैं सच में चिंतित थी.

मुझे अब छाया पर निगाह रखना आवश्यक हो गया था. मैंने मन ही छाया को रंगे हाथ पकड़ने का निश्चय कर लिया. छाया भी शायद अब सतर्क हो गई थी. मैंने तीन चार दिनों तक उस पर पैनी निगाह रखी पर उसने मुझे कोई मौका नहीं दिया. कई बार मुझे लगता जैसे मैंने इन दोनों पर नाहक ही शक किया हो. मानस एक निहायती शरीफ और जिम्मेदार लड़का था उसने छाया की बहुत मदद की थी. आज उसकी बदौलत ही छाया ने इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया था और वह अपनी पढ़ाई अच्छे से कर रही थी. वह छाया को इन गलत कामों के लिए प्रेरित करेगा ऐसा यकीन करना मुश्किल था.

परंतु ये छोटी छोटी घटनाएं मुझे हमेशा शक में डालती थी. छाया के गाल पर वह चिपचिपा पदार्थ देखकर मुझे आज से लगभग 3 वर्ष पहले मानस के गाल पर लगा द्रव्य याद आ गया. इन दोनों घटनाओं में एक ही संबंध था वह था मानस.

मेरे पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था मैंने अपनी निगाहें चौकस रखनी शुरू कर दी और वक्त का इंतजार कर रही थी. मैंने घर से बाहर जाना लगभग बंद कर दिया. मैं घर से तभी बाहर निकलती जब मानस या छाया में से कोई एक घर के बाहर होता. मानस कभी-कभी छाया को बाहर ले जाना चाहता पर मैं किसी ना किसी बहाने उसे टाल देती.

दिन बीतते जा रहे थे और मेरा सब्र अब जवाब दे रहा था. बाहर न निकल पाने के कारण मैं भी अब तनाव में रहने लगी थी. मेरी शर्मा जी से भी मुलाक़ात नहीं हो पा रही थी. पर अपनी बेटी को इन गलत कार्यों से बचाने के लिए और इन दोनों के बीच बन रहे इस नए रिश्ते को रोकने के लिए मेरी निगरानी जरूरी थी..

एक ही छत के नीचे जवान लड़की और लड़का दिया और फूस की तरह होते हैं.

छाया अब २१ वर्ष की हो चुकी थी एवं मानस लगभग २5 वर्ष का. इनके बीच में कामुकता का जन्म लेना यह साबित कर रहा था की इन दोनों ने अपने बीच भाई बहन के रिश्ते को अभी तक स्वीकार नहीं किया था.

सतर्क छाया

[मैं छाया]

मां के द्वारा मेरे गालों से मानस का वीर्य पोछना मुझे बहुत शर्मनाक लगा. मुझे यह डर भी लगा कि कहीं मां ने उसे पहचान लिया तो? अभी तक मैं उनकी रानी बिटिया थी उनके लिए मेरा यह रूप बिल्कुल अचंभा होता. मैंने मानस को भी इसकी जानकारी दे दी. वह भी काफी चिंतित हो गए थे अब हम सतर्क रहने लगे , पर कितने दिन? हमें एक दूसरे की आदत पड़ गई थी. राजकुमारी बिना राजकुमार के एक दिन भी नहीं रह सकती थी. हमारी रासलीला में रुकावट हमें बर्दाश्त नहीं थी.

मैंने भी जैसे अपनी मां की आंखों में धूल झोंकने का बीड़ा उठा लिया था. अब इस काम में मुझे और मजा आने लगा.

कामवासना पर लगी रोक उसमे और उत्तेजना पैदा कर देती है.

एक बार हम ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ कर फिल्म देख रहे थे. ठंड का समय था मैं जाकर रजाई ले आई. मैंने भी अपने पैर रजाई में डाल दिए. हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे माया जी किचन से हम दोनों को देख रही थी. रजाई लाने से बाद मैंने बाथरूम गयी और अपनी पेंटी उतार कर बाथरूम में फेक आई. सोफे पर बैठते समय मैंने मानस का हाथ पकड़ा और उसे सोफे पर रखा और अपनी स्कर्ट ऊपर करके उनकी हथेली पर बैठ गई. उनकी उंगलियां अब मेरी राजकुमारी के संपर्क में थी. मैं मानस से सामान्य रूप से बात कर रही थी तथा बीच-बीच में मां को आवाज भी लगा रही थी. मेरी आवाज पर मां बार-बार कुछ न कुछ जवाब देती हमारे संवादों के बीच में शक की गुंजाइश खत्म हो गई थी.

मेरी राजकुमारी मानस की उंगलियों से लगातार बातें कर रही थी. मानस की उंगलियां मेरी राजकुमारी के होंठों पर घूमतीं कभी राजकुमारी के मुख पर दस्तक देती. उनकी उंगलियां मेरे रस से सराबोर हो गई थी. उंगलियों से बहता हुआ प्रेम रस मेरी जांघों यहां तक कि मेरी दासी को भी गीला कर गया था. उनका हाथ अब मुझे बहुत चिपचिपा लग रहा था मेरी उत्तेजना अब चरम पर पहुंच गई थी. मानस ने भी जैसे मुझे सताने की ठान ली थी. जब भी मां मुझसे कुछ पूछती वह अपनी उंगलियों का कंपन बढ़ा देते. कम्पन से मेरी आवाज लहराने लगती. मां किचन से बोलती

"क्या हुआ ऐसे क्यों बोल रही है?"

मेरे पास कोई उत्तर नहीं होता. कुछ ही देर में राजकुमारी ने अपना प्रेम रस उगल दिया. मानस ने अपने हाँथ साफ किये और हम दोनों खाना खाने बैठ गए.

एकांत पाने के लिए मैं और मानस अपनी सोसाइटी की छत पर रासलीला करने लगे. हम दोनों छत पर ही एक दूसरे से मिलते और अपनी काम पिपासा को शांत करते. लिफ्ट भी हमारा एक पसंदीदा स्थल था। हमेशा एक बात का ही दुख रहता था कि हमें अपना कार्य बड़ी शीघ्रता से करना पड़ता.

"जल्दबाजी में किया हुआ सेक्स कभी-कभी तो अच्छा लगता है पर यह हमेशा उतना आनंददायक नहीं रहता"

हम कुछ ही दिनों में अपने मिलन के लिए उचित समय का इंतज़ार करने लगे.

रंगे हाँथ

[मैं माया]

मानस और छाया पर निगरानी रखते रखते मैं भी अब थक चुकी थी. पिछले १५ दिनों से हम सभी एक दूसरे को शक की निगाहों से देखते. मैंने अपने मन में इन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने की सोची. इसके लिए एक उपयुक्त मौके की तलाश थी.

एक दिन मैंने जानबूझकर यह बताया कि बुधवार शाम को मुझे सोसाइटी की एक महिला के साथ उसकी बेटी के लिए शादी के कपड़े खरीदने जाना है और इस कार्य में चार-पांच घंटे का वक्त लग सकता है. मैंने मानस से कहा...

"मानस तुम अपनी चाबी जरूर लिए जाना और वापस आते समय छाया को भी लेते आना।"

मेरी बातें सुनकर उन दोनों के चेहरे पर चमक आ गई थी. पर उन्होंने इसे व्यक्त नहीं होने दिया. बुधवार को छाया अपने कॉलेज और मानस ऑफिस जाने की तैयारी करने लगा. कुछ ही देर में दोनों निकल गए.

घर का मुख्य दरवाजा अंदर से भी बंद किया जा सकता था. जिसे बाहर से चाभी से खोला जा सकता था. शाम होते ही मैं उन दोनों के घर आने का इंतजार करने लगी. लगभग पांच बजे घर के मुख्य दरवाजे पर चाबी लगाये जाने की आवाज हुई. निश्चय ही मानस घर आ चुका था और चाबी से दरवाजा खोल रहा था. उसके साथ छाया थी या नहीं यह तो मुझे नहीं पता पर मुझे अब छिप जाना था. मैं भागकर अपने बाथरूम में गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

मेरे बाथरूम की खिड़की और मानस के बाथरूम की खिड़की अगल-बगल थी. इन खिड़कियों से बाथरूम में देखा तो नहीं जा सकता था पर ध्यान से सुनने पर वहां की आवाज सुनाई देती थी. मुझे सिर्फ एक बात का डर था कहीं गलती से छाया मेरे कमरे में ना आ जाए और मुझे बाथरूम में देख ले. यदि वह मेरे कमरे में आ जाती तो उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने का मौका छूट जाता. मैं सांसे रोक कर इंतजार करने लगी. अचानक मानस के बाथरूम से मानस की आवाज आई

"छाया यहीं पर आ जा"

"नहीं मेरे कपड़े बगल वाले रूम में है. पहले कपड़े तो ले आऊँ"

"अरे अभी कपड़ों की कहां जरूरत है कपड़े तो बाद में पहनने हैं"

अचानक झरना चलने की आवाज आई और छाया ने कहा

'मेरे कपड़े भींग जाएंगे पहले उन्हें उतार तो लेने दो"

फिर उन दोनों की हंसी ठिठोली और चुंबनो की आवाज आने लगी मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि मैं अपनी बेटी को इस तरह की रासलीला करते हुए सुन रही थी. पर उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ना जरूरी था. मैंने कुछ देर और इंतजार किया उनके हंसी मजाक चालू थी. मानस कभी-कभी राजकुमारी और राजकुमार का नाम ले रहा था मुझे नहीं पता वह किनकी बातें कर रहे थे पर इतना विश्वास जरूर हो चलाता कि वह दोनों रासलीला में मगन थे. कुछ देर बाद झरने की आवाज बंद हुई. मानस की आवाज सुनाई थी

"आज पूरे बीस दिन हो गए. आज अपनी हसरत मिटा ले" .

उन दोनों की आवाज आना बंद हो गई. मैं अब हॉल में आ चुकी थी . मैंने देखा कि मानस के कमरे का दरवाजा खुला हुआ है. वह दोनों शायद बिस्तर पर आ चुके थे. इन दोनों की हल्की हल्की आवाजें आ रही थी और बीच-बीच में चुंबनों की भी आवाज आ रही थी. मैंने कुछ देर और इंतजार किया और एक ही झटके में दरवाजा खोल दिया.

मानस बिस्तर पर लेटा हुआ था वह पूरी तरह नग्न था मेरी बेटी छाया उसकी जांघों पर बैठी हुई थी. छाया का चेहरा मानस की तरफ था. वह भी पूर्णतया नंगी थी. मुझे देखते ही मानस घबरा गया. छाया ने भी पलट कर मुझे देखा और मानस की जांघों से उतर गई. उन दोनों के सारे कपड़े बिस्तर से नीचे थे. बिस्तर पर उन दोनों के अलावा दो तकिए पड़े थे. दोनों ने एक एक तकिया अपने गुप्तांगों पर रखा. पर सीमा के तने हुए स्तन अभी भी खुले थे. उसने अपने दोनों हाथों से उसे छुपाने की नाकाम कोशिश की. मैंने भी इस प्रेमी युगल की जो तस्वीर देखी यह मैंने जीवन में कल्पना भी नहीं की थी. दोनों अत्यंत खूबसूरत थे भगवान ने इन दोनों की काया को बड़ी फुर्सत से गढ़ा था. वो साक्षात् कामदेव और रति के अवतार लग रहे थे. छाया एक अप्सरा की तरह लग रही थी उसके शरीर का नूर मंत्रमुग्ध करने वाला था. मेरा ध्यान दूसरी तरफ चला गया एक बार के लिए मेरा क्रोध जाने कहां गायब हो गया था. मैं इस पल को कुछ देर तक यूँ ही निहारती रही. दोनों अपनी गर्दन नीचे झुकाए बैठे थे. मैं वापस अपनी कल्पना से हकीकत में आइ और डांटते हुए बोली