छाया - भाग 03

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"तुम दोनों हाल में तुरंत आओ."

यह कहकर मैं हॉल में आ गइ कुछ ही देर में दोनों हॉल में मेरे सामने सर झुकाए खड़े थे.

समाज से बगावत

[मैं माया]

मैंने छाया से पूछा

"तुम्हारा मानस भैया के साथ यह सब कब से चल रहा है."

"मां मानस मेरे भैया नहीं है."

"तो फिर क्या हैं?"

"यह मुझे नहीं पता परंतु मेरे भाई तो कतई नहीं"

"मानस क्या तुम भी यही सोचते हो?"

"हां बिल्कुल, छाया मेरी बहन तो नहीं है. और आप मेरे लिए माया जी थी और माया जी ही रहेंगी."

"इसका मतलब हम मां- बेटी तुम्हारे कोई नहीं लगते?"

"यह मुझे नहीं पता पर मेरा संबंध अभी सिर्फ छाया से है. मैं उससे प्रेम करता हूं."

मानस द्वारा बोली गई यह बात मुझे निरुत्तर कर गइ कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा गांव में सब लोग यही जानते हैं कि तुम और छाया भाई बहन हो.

"जब हमारी मां एक नहीं हमारे पिता एक नहीं तो हम भाई-बहन कैसे होते हैं?"

"आप मेरे पिताजी के साथ आयी थीं इसका मतलब यह नहीं कि आप मेरी मां है. आप छाया की मां है और छाया मेरी प्रेमिका मुझे इतना ही पता है"

"पर हम गांव वालों को क्या बताएंगे यदि मैं तुम्हारे प्रेम संबंधों को स्वीकार भी कर लूं फिर भी तब भी जब हम गांव जाएंगे तो हमारे पास क्या उत्तर होगा? तुम पर भी कलंक लगेगा."

"मुझे गांव वालों की चिंता नहीं मैं अब वयस्क हो चुका मैं छाया से प्रेम करता हूं और मैं उससे ही शादी करना चाहता हूं. वह मेरी बहन नहीं है यह बात मैं पहले ही बता चुका हूं मुझे सिर्फ आपकी इजाजत की आवश्यकता है बाकी मुझे समाज से कोई लेना देना नहीं "

मानस की यह बाते सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे वह समाज से बगावत करने का इच्छुक है. मैं उसकी बात एक बार के लिए मान भी लूं तो क्या हम आज के बाद कभी गांव वालों से या मानस के रिश्तेदारों से या अपने बचे खुचे रिश्तेदारों से कभी नहीं मिलेंगे? यदि हम उनसे मिलते हैं तो छाया और मानस के बीच बने इस नए रिश्ते को कैसे बताएंगे? उनकी निगाह में तो यह दोनों अभी भी भाई बहन जैसे ही हैं. यह कौन जानता था कि यह दोनों आपस में एक दूसरे को भाई-बहन नहीं मानते और एक दूसरे से प्रेम करने लगे हैं. मेरे लिए विषम स्थिति थी. मैं समझ नहीं पा रही थी कि किस रास्ते से जाऊं.

मैंने उन दोनों को अपने अपने कमरे में जाने के लिए कहा और खुद इन सब घटनाओं के बारे में सोचने लगी. छाया मेरी बेटी के लिए मानस से अच्छा लड़का नहीं मिल सकता था. मानस छाया का बहुत ख्याल रखता था. मानस को अपने दामाद के रूप में सोच कर मेरे दिमाग में भी समाज से बगावत करने की इच्छा ने जगह बनाना शुरू कर दिया. मुझे बार-बार यही लगा यह समाज ने हमें क्या दिया है जो हमें इस कार्य के लिए रोकेगा. मैंने खुद भी मानस के पिता से कभी भी शारीरिक संबंध नहीं बनाया. हमारी शादी एक समझौता मात्र थी. इस प्रकार मैं किसी भी तरह से उनकी पत्नी ना हुई थी. हम दोनों सिर्फ नाम के पति पत्नी थे. धीरे-धीरे मेरा मन भी मानस और छाया के इस नए रिश्ते रिश्ते को स्वीकार करने लगा था.

कभी-कभी मुझे लगता था की लोग इस रिश्ते में मेरा और मेरी बेटी का स्वार्थ देखेंगे और हमें लालची समझेंगे. यही बात मुझे कभी-कभी खटकती कि समाज के सभी लोग यही बात कहेंगे कि इन मां बेटी ने मानस को अपने कब्जे में कर लिया. बिना भाई बहन के रिश्ते की परवाह किए मां ने अपनी बेटी को मानस पर डोरे डालना सिखाया होगा और अपनी बेटी के इस्तेमाल से अपना भविष्य सुरक्षित कर लिया होगा.

इस बात को सोचते ही मेरा विचार बदल जाता मैं यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती थी कि मैं और मेरी बेटी जीवन भर इस कलंक का सामना करें. हम लोग गरीब जरूरत थे पर अपने सम्मान के साथ कभी समझौता नहीं किया. छाया को एक प्यार करने वाला पति मिलता मुझे एक अच्छा दामाद यही मेरे लिए एक उपलब्धि होती.

आज तक मेरे पूर्व पति के अलावा किसी ने मेरे शरीर को हाथ भी नहीं लगाया था. मानव के पिता से विवाह करते समय यह बात सर्वविदित थी कि यह विवाह पति-पत्नी के हिसाब से नहीं किया गया था अपितु दो जरूरतमंद लोगों को एक साथ एक ही छत के नीचे लाया गया था ताकि दोनों का परिवार संभल जाए. इसी उधेड़बुन में अंततः मैंने छाया और मानस के इस नए संबंध को पूरे मन से स्वीकार कर लिया. मैंने समाज से उठने वाली आवाजों को अपने मन में कई बातें सोच कर दबा दिया.

मानव मन परिस्थितियों को अपने मनमुताबिक सोचते हुए उसका हल अपने पक्ष में ही निकालता है.

शाम को मैंने छाया को अपने पास बुलाया और पूछा...

"छाया तुम दोनों के बीच में कब से चल रहा है?"

"जब से मैं अठारह वर्ष की हुई थी"

"इसका मतलब क्या तुम्हारा कौमार्य सुरक्षित नहीं है"

"नहीं, मैं अभी भी एक अक्षत यौवना हूं."

"पर तुम तो मानस के साथ नग्न अवस्था में थी"

हाँ मैं जरूर नग्न थी और अक्सर हम इसी तरह साथ में होते हैं. हम दोनों ने एक दूसरे से वचन लिया है कि जब मेरा विवाह नहीं हो जाता मैं अपना कौमार्य सुरक्षित रखूंगी. हम दोनों सिर्फ एक दूसरे के साथ वक्त गुजारते हैं तथा जिस तरह बाकी लडके- लड़कियां हस्तमैथुन करते हैं उस तरह हम दोनों भी करते हैं फर्क सिर्फ इतना है कि इस कार्य में हम दोनों एक दूसरे का साथ देते हैं."

छाया द्वारा इतना बेबाक उत्तर सुनकर मैं स्वयं निरुत्तर हो गइ. मैं क्या बोलूं मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था मैंने मानस को भी बुला लिया. मैंने उसकी तरफ देखा और पूछा

"तुम्हें भी कुछ कहना है"

"आंटी में छाया से बहुत प्यार करता हूं. हमने आज तक जो भी किया है एक दूसरे को खुश करने के लिए किया है. जब तक छाया का विवाह नहीं हो जाता उसका कौमार्य सुरक्षित रहेगा यह मैं आपको वचन देता हूं. मैं छाया से शादी करने के लिए पूरी तरह इच्छुक हूं. बस मैं उसके कॉलेज की पढ़ाई पूरा होने का इंतजार कर रहा था. इसके बाद हम दोनों विवाह कर लेंगे."

दोनों की बातें सुनकर उनके रिश्ते को स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था. दोनों युवा पूरी तरह साथ रहने का मन बना चुके थे. उन्हें समाज का बिल्कुल डर नहीं था. मैंने भी अपनी पुत्री की खुशी देखते हुए उनके इस नए रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

अब छाया मानस की प्रेयसी थी. मानस ने छाया का कौमार्य सुरक्षित रखने का जो वचन दिया था उससे मेरी सारी चिंताएं खत्म हो गई थी. यदि किसी वजह से यह शादी नहीं भी हो पाती तो भी छाया का कौमार्य उसके साथ था.

मैंने उन दोनों को आशीर्वाद दिया और मानस से कहा आज से छाया तुम्हारी प्रेयसी नहीं मंगेतर है. तुम जब चाहे इससे मिल सकते हो. अपने वचन का पालन करते हुए तुम दोनों एक दूसरे को खुश रखो यही मेरी कामना है. मानस और छाया ने मेरे पैर छुए. मानस ने कहा

"थैंक यु माया आंटी" मैं मुस्करा दीं. "आंटी" शब्द मुझे अच्छा लगा था. मानस के मेरे भी एक रिश्ता जुड़ रहा था.

मैंने छाया को बताया की हम नए रिश्ते की नयी शुरुवात नवरात्रि की बाद करेंगे. वो खुश थी.

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