छाया - भाग 17

Story Info
छाया और मानस के प्यार का नया रूप. कामुकता उफान पर.
5.3k words
4.11
938
0
Story does not have any tags

Part 17 of the 19 part series

Updated 06/10/2023
Created 12/14/2020
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

माया आंटी और शर्मा जी.

[ मैं माया]

छाया को लेने मैं और शर्मा जी निकल चुके थे. रास्ते में मैं पुरानी यादों में चली गयी.

छाया का विवाह संपन्न हो जाने के बाद मैं बहुत खुश थी. छाया का विवाह मेरे उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छी तरह से हुआ था. मैं मानस की शुक्रगुजार थी कि उसने छाया की शादी में कोई कमी नहीं छोड़ रखी थी. यदि मानस हमारे जीवन मे नही आता तो हमारा जीवन गुमनामी के अंधेरों में खो जाता। वो हम दोनो का चहेता था।

शर्मा जी भी शादी की व्यवस्थाओं में पूरी तरह संलग्न थे. उन्होंने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी.

छाया , सीमा और मानस के यूरोप जाने से घर पूरी तरह खाली हो गया था. अब इतने बड़े घर में मैं और शर्मा जी ही अकेले रह गए थे। मैं थोड़ा दुखी थी पर शाम को शर्मा जी ने आकर मुझे बना लिया और हम दोनों ने एकांत का पूर्ण फायदा उठाना शुरू कर दिया। वह मुझसे सेक्सी नाइटी पहनने की जिद करने लगे। मुझे उनकी यह उत्तेजना अच्छी लगती थी। छाया की अलमारी मैं कई सारे कामुक वस्त्र थे जो मुझ पर पूरी तरह फिट आते थे। मैंने एक बार फिर उनके मन की मुराद पूरी कर दी।

उस रात हम दोनों फिर करीब आए और एक बार फिर हम दोनों ने संभोग रस का आनंद लिया। जब तक मानस और छाया घर से बाहर थे तब तक शर्मा जी की अद्भुत उत्तेजना ने मुझे भी युवा बना दिया था।

मैंने और शर्मा जी ने अपनी युवावस्था को याद कर तरह तरह से संभोग सुख का आनंद लिया। उम्र ने हम दोनों के शरीर पर अपना प्रभाव जरूर डाला था पर हमारी उत्तेजना आज भी उतनी ही जवान थी।

मानस से मेरा कोई रिश्ता नहीं था। कुछ समय के लिए ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे वह मेरा दामाद बन जाएगा पर नियति को वह मंजूर नहीं था। ऐसा लगता था जैसे मानस मेरे लिए एक आदर्श युवा पुरुष ही रहेगा। वह बीच में मुझे माया आंटी कहता था पर छाया से बिछोह के बाद मैं उसके लिए फिर माया जी बन चुकी थी। मुझे उस पर कभी बच्चों जैसा प्यार आता कभी उसके पुरुष रूप का आकर्षण।

मैं स्वयं उससे अपने रिश्ते को परिभाषित नहीं कर पा रही थी। मैंने जब भावावेश में उसका हस्तमैथुन किया था उस दिन मुझे लगा मैंने मानस के साथ प्यार के रिश्ते में उत्तेजना भर दी थी पर वह शांत था उसने अपनी कामुकता को मुझ पर जाहिर नहीं किया। पर कभी न कभी किसी न किसी रूप में वह मुझे उत्तेजित करने लगा था।

मुझे महर्षि कि वह बात याद आ रही थी जिसमें उन्होंने कहा था कि

"छाया ने अपना प्रथम संभोग कामदेव के साथ किया है" मुझे मानस कामदेव का रूप दिखाई पड़ने लगा था।

एक दिन उसके बिस्तर पर शर्मा जी से संभोग करते समय कुछ देर मेरे मन में मानस का चेहरा ही घूम रहा था। मैं उसके अद्भुत और पवित्र लिंग को अपनी योनि में महसूस कर रही थी मैने उस दिन जिस चरमसुख को प्राप्त किया था वह अद्भुत था। यह वासना का अतिरेक मेरे और मेरी अंतरात्मा के बीच की बात थी।

मैं इस बात का जिक्र न किसी से कर सकती थी और न हीं करना मेरे लिए उचित होता। मानस को उस रूप में याद करना ही मेरी उत्तेजना को चरम पर ले जाने के लिए काफी था। शर्मा जी का मजबूत लिंग मेरी योनि को तृप्त करने में सक्षम था।

इस घर में रहने वाले सभी लोग पूर्ण वयस्क थे तथा मुझे और छाया को छोड़कर कोई भी किसी खून के रिश्ते में नहीं था। सभी रिश्ते परिस्थितिजन्य थे पर उन सभी में अद्भुत प्यार, उत्तेजना और कामुकता प्रबल थी।

मैं अब शर्मा जी से पूरी तरह प्रेम करने लगी थी और उनके साथ संभोग करते समय मुझे आत्म तृप्ति मिलती. मैंने अपने स्वर्गीय प्रति से क्षमा याचना कर ली थी. शायद वह भी मेरे आनंद से आनंदित हो रहे होते ऐसा मेरा दृढ़ विश्वाश था। वो मुझे बहुत प्यार करते थे।

मैंने और शर्मा जी ने प्रौढ़ावस्था में ही सही एक बार फिर से अपने जीवन में खुशियां ले आयीं थीं।. मेरे विचारों में नग्नता अवश्य थी पर क्रियाकलाप में नहीं मैं छाया और मानस को बहुत प्यार करती थी।

गाड़ी रुकने पर मुझे अपने कंधे पर शर्मा जी हाँथ महसूस हुआ. एयरपोर्ट आ चूका था. कुछ देर बाद मानस, सोमिल, सीमा और छाया आते दिखे. चारों बहुत खुस थे. उन्हें लेकर हम घर आ चुके थे. अगले दिन छाया को अपने ससुराल जाना था.

छाया की विदाई

[मैं छाया]

अपने घर से सोमिल के घर जाते समय उस दिन मुझे पहली बार रोना आ रहा था. अभी तक मैं मानस सीमा और अपनी मां के साथ थी पर अब सब बदल चुका था. मुझे सोमिल के साथ उसके घर पर रहना था. हालांकि वह बेंगलुरु में ही था पर फिर भी रोज सुबह मुझे मानस का चेहरा देखने की आदत पड़ चुकी थी. मेरी प्यारी सहेली सीमा भी मुझे बहुत पसंद थी. अपने प्रियजनो को छोड़कर मुझे सोमिल के घर जाना था. बड़ी मुश्किल घड़ी थी. सोमिल भी मेरा बहुत ख्याल रखते थे. काश हम चारों साथ रह पाते पर यह संभव नहीं था. जैसे-जैसे लिफ्ट नीचे उतर रही थी मेरी आंसू भी नीचे आ रहे थे. हृदय की धड़कन बढ़ रही थी. सभी के चेहरे गमगीन थे. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरी असली विदाई आज हो रही थी.

अंततः हम सब नीचे आ चुके थे. मैंने मां के पैर छुए मैंने मानस के भी पैर छुए. उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और मेरे माथे पर चूम लिया. इतना तो वह माँ के सामने भी कर लेते थे. मानस भैया की आंखों में आंसू थे. माँ को हमारे वर्तमान संबंधों की जानकारी नहीं थी. सीमा ने भी मुझे गले लगाया और कान में बोली.

"एक्सरसाइज करते रहना वरना सोमिल रानी साहिबा को फुला देगा" हम दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी . गाड़ी में बैठे हुए अपने प्रिय जनों को अपनी आंखों से ओझल होते हुए देख रही थी.

समय के साथ सोमिल मेरे नजदीक आ गए । उनके साथ वक्त बिताने में मुझे अच्छा लगने लगा था. उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आ चुका था जिस तरह से सीमा बताती थी कि वह पहले सेक्स में अधीर थे पर मुझे ऐसा महसूस नही हो रहा था . उन्हें कपड़ों के साथ सेक्स करने में भी बहुत अच्छा लगता था. वह कभी भी संभोग के दौरान आक्रामक नहीं होते थे. वह यह बात जानते थे की मैं कोमल थी. संभोग के दौरान स्खलित होते समय मेरे मुंह से स्वाभाविक रूप से "मानस भैया ...." निकल जाता था वो मुस्कुराते और कहते मेरी मेहनत का श्रेय मानस को.

मैने उन्हें चूम लेती और सर झुका कर उनके सीने से सट जाती वो प्यार से मुझे सहलाने लगते। वो मुझे समझने लगे थे .

मेरी कोमलता उनके लिए आश्चर्य का विषय थी.वह मेरे एक एक अंग को छूते और महसूस करते थे की कितने दबाव पर उस पर निशान पड़ रहे हैं. स्तनों और जांघों को चूसते समय उनके होठों के निशान वहां छूट जाते थे. वह उन्हें देखकर दुखी हो जाते थे. मैं उन्हें चुंबन देती और कहती कुछ ही देर में हट जाएंगे.

मेरी रानी के दाहिने होंठ पर एक लाल तिल को देखकर वह बहुत खुश थे वह उसे होंठों से चुम कर निकालना चाहते पर उनकी यह क्रिया सिर्फ सिर्फ मेरी रानी को प्रेमरस उत्सर्जन पर विवश कर देती।

मैं इस तिल को लेकर खुद आश्चर्यचकित थी। मानस भैया और सीमा दीदी ने इस तिल को क्यों नही देखा था यह मेरे समझ मे नहीं आ रही थी। मेरी सुहागरात के बाद से अपने हनीमून के दौरान मैंने मुखमैथुन का आनद नही लिया था न उसकी जरूरत महसूस की थी। राजकुमारी को राजकुमार की प्रतीक्षा थी जो उसे एक के बदले दो - दो राजकुमार मिल रहे थे उसे मुखमैथुन की याद भी नहीं आ रही थी। निश्चय ही यह तिल मेरी सुहागरात के बाद ही आया था मुझे भी उसे देखने की बड़ी इच्छा थी पर लाख प्रयासों के बावजूद मैं उसे स्वयं देख पाने में अक्षम थी।

मानस की तरह इन्हें भी मुझे तेल मालिश करना बहुत अच्छा लगता था। इस दौरान वह मेरे बदन को घंटों सहलाते और पूरे समय अपने राजकुमार को मेरे शरीर के हर हिस्से पर रगड़ते रहते. वैवाहिक जीवन शानदार तरीके से बीतने लगा था. अगले चार-पांच महीनों में हम मानस और सीमा से कई बार मिले पर मुलाकातों में एक दूसरे के पास आने का कोई मौका नहीं मिला. मैंने और सीमा ने अपने अनुभव जरूर साझा किये. मैंने सीमा से पूछा

"अब तो मानस मुझे भूल गए होंगे" उसने कहा

"मैं अब उनके लिए सीमा नहीं छाया बन गई हूँ. वह तुम्हें कैसे भूल सकते हैं तुम उनकी जान हो और मेरी भी "

सोमिल ने आश्चर्यजनक रूप से पिछले चार-पांच महीनों में सीमा का नाम सेक्स के दौरान नहीं लिया था. मुझे लगता था जैसे वह मुझे पाकर संतुष्ट हो गए थे. उन्हें नारी शरीर से जो कुछ भी चाहिए था मुझसे प्राप्त हो रहा था . इन 5 महीनों में मैं स्वयं आदर्श पत्नी की भूमिका में आ चुकी थी. मेरी कामुकता में ठहराव आ गया था. मुझे मानस भैया से मिलने का बहुत मन कर रहा था. अपने उस प्यारे राजकुमार को अपने हाथों में लेने के लिए मैं बेचैन हो रही थी और मैं भगवान से प्रार्थना करने लगी की हमें वह पुनः मिलाएं .

सीमा का जन्मदिन और छाया का आगमन

[मैं मानस ]

छाया के घर से जाने के बाद मेरे और सीमा के बीच में भी एक खालीपन आ गया था. पिछले पांच-छह महीनों में छाया हमेशा हम दोनों के साथ थी यहां तक कि संभोग करते समय भी. अब बिस्तर पर हम और सीमा दोनों ही बचे थे. हम दोनों उसे याद करते और एक दूसरे को प्यार करते हुए सो जाते. वक्त बीतने लगा.

इस बीच छाया से तीन चार मुलाकाते हुई जब भी मिलती वह साड़ी पहनी हुई रहती. उसकी खूबसूरती निखरती जा रही थी. नवविवाहिता वाली लालिमा चेहरे उसकी खूबसूरती को बढ़ाते और शारीरिक उभार उसकी सुंदरता पर चार चांद लगा रहे थे. उसके पास जाने का मुझे कोई मौका नहीं मिल पाया था. पर उसे देखते ही मेरा राजकुमार उछलने लगता और अपनी रानी की गोद में जाने के लिए तड़प उठता.

मैं और सीमा दोनों छाया से मिलने के लिए अधीर हो उठे थे. अंततः सीमा के जन्मदिन के अवसर पर हमें छाया का सानिध्य एक बार फिर प्राप्त हुआ.

शर्मा जी माया आंटी के साथ 2 दिनों के लिए बाहर गए हुए थे वह सीमा के जन्मदिन के अवसर पर बेंगलुरु आने वाले थे. मैंने और सीमा ने सोमिल से बात कर उसे अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर बुला लिया था ताकि रात्रि के 12:00 बजे सीमा को जन्मदिन की शुभकामनाएं दे सकें.

माया आंटी वाले बेडरूम को हमने आज रात के लिए छाया और सोमिल का रूम बना दिया था. सोमिल और छाया दोनों बहुत खुश थे.

मैं इन दोनों के आगमन की खुशी में मैंने वाइन ले आया था. शाम को डाइनिंग टेबल पर हम सब आ चुके थे सीमा और छाया को देखकर मन बाग बाग हो रहा था. दोनों आपस में बातें कर रहीं थीं और मुस्कुरा रहीं थीं .

सीमा ने हरे रंग की पारदर्शी नाइटी पहनी हुई थी और ऊपर एक गाउन डाला हुआ था जिससे उसकी नग्नता कुछ समय के लिए छुपी हुई लग रही थी पर मादकता में कोई कमी नहीं थी. मेरी छाया ने भी मैरून रंग की नाइटी पहनी हुई थी. दोनों अप्सराओं जैसी प्रतीत हो रहीं थीं . दोनों के स्तन उभरकर बाहर आ रहे थे. मेरी छाया के स्तन अब सीमा से थोड़े बड़े हो चले थे. वह कोमल तो थी ही पर पंजाबी परिवार में पिछले 6 महीनों से रहने के कारण उसमें पंजाबी कुड़ी वाले असर दिखाई पड़ रहे थे. उसका वजन भी मुझे लगता है कुछ किलो बढ़ गया होगा पर मादकता कई गुनी बढ़ गई थी.

एक तो मैं उसे इस तरह नाइटी पहने कई महीनों बाद देख रहा था. मैंने वाइन की बोतल खोली और हम सब बातें करते करते इस रंगीन शाम का आनंद लेने लगे.

सोमिल भी थे वह बीच-बीच में सीमा को देख कर आनंदित हो रहे थे. उनका पसंदीदा रंग उनकी पूर्व प्रेमिका पर देख कर वो खुश थे. वाइन खत्म होने के पश्चात मैं और सोमिल अपने-अपने कमरों में चले गए अभी बारह बजने में काफी समय था।

कुछ ही देर छाया मेरे कमरे में आयी उसके दरवाजा बंद करने के बाद मुझे समझ आ गया कि सीमा सोमिल के साथ है. छाया मुस्कुराते हुए मेरी तरफ आ रही थी मैं उठ कर खड़ा हो गया और उसे अपने दोनों हाथों से पकड़ कर लाकर बिस्तर पर बैठा दिया.

उसके कोमल हाथों को अपने हाथों में लेने के बाद मैं उसे प्यार से सहलाने लगा और उससे उसका हाल चाल पूछने लगा. वह बहुत खुश हो रही थी.

उसने मुझे ढेर सारी बातें बताई उसने यह भी बताया कि सोमिल उसका बहुत ख्याल रखता है।

मुझे बहुत खुशी हो रही थी धीरे-धीरे मेरे हाथ ऊपर की तरफ बढ़ने लगे. वो इसकी प्रतीक्षा में थी. कुछ ही देर में मैंने उसकी नाइटी का ऊपरी भाग हटा दिया. अब एक पारदर्शी नाइटी में थी उसका अंग प्रत्यंग दिखाई पड़ने लगा. छाया ने ब्रा और पेंटी नही पहनी थी . उस पारदर्शी नाइटी से उसके स्तन स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे. स्तनों में कसाव अभी भी था पर उनका आकार बढ़ चुका था. उसके निप्पल गहरा गए थे. नाभि अभी भी सुंदर थी। थोड़ा वजन बढ़ने के बावजूद उसके शरीर में उभार उसी प्रकार थे. कमर भी थोड़ा मोटी हो गई थी पर आकार में थी.

उसने अपने पेट पर काबू करके रखा था. पेट पूरी तरह सपाट था और जांघों के जोड़ पर एक सुनहरा दृश्य था. मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया मुझे एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे वह पूरी तरह नग्न थी.

नाइटी बहुत ही पतली थी मैं उसकी पीठ और नितंबों को सहलाने लगा. एक अद्भुत सुख मिल रहा था. आज पांच छः महीने बाद मेरी छाया मेरे आगोश में थी उसकी उंगलियां अपने राजकुमार पर महसूस कर मैं खुश हो गया.

मैंने उसकी पतली नाइटी खोलकर अलग कर दी. कुछ ही देर में हम दोनों पूर्ण नग्न हो गए मेरी नजरे छाया से मिलते हैं वह मुस्कुरा उठी और बोली

"आप तो मुझे भूल ही गए."

मैंने उसे होठों पर किस किया और बोला

"तुम मेरी आत्मा हो मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूं"

मैंने उसे फिर अपनी गोद में उठा लिया मेरा राजकुमार उसके नितंबों से छूने लगा. मुझे उसके वजन का एहसास भी हुआ पर ज्यादा नहीं मैंने उसे फिर आईने में दिखाया वह खुश हो गयी. इस उत्तेजक अवस्था में हम सब पहले खुश हो जाया करते थे. मैं और छाया बिस्तर पर आ चुके थे.

मैं उसके स्तनों को लेकर हाथों से सहलाया उसके बड़े से आकार को महसूस करते हुए मैंने छाया की तरफ देखा उसने भी इस अंतर को महसूस किया हुआ था वह मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी .

उसकी मुस्कुराहट मुझमें हमेशा उत्तेजना भर देती थी . मै उसके सपाट पेट और नाभि को चूमता हुआ रानी तक आ गया.

राजकुमारी अब पूर्ण रूप से रानी बन चुकी थी तथा अपनी पूरी गरिमा और शौर्य के साथ साथ मेरे समक्ष थी .

रानी का मुख स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था रानी का रंग भी थोड़ा गहरा गया था उसके पतले होंठ कुछ मोटे हो चले थे. उनकी चमक भी अलग हो गई थी. जांघों के आसपास का हिस्सा भरा हुआ लग रहा था. छाया एक वयस्क नायिका की तरह दिखाई पड़ रही थी . उसकी जाँघे अभी भी उतनी ही सुंदर थी. पैरों में उसने पायल पहनी हुई थी मुझे लगता है सीमा ने उसे आज ही उसे आलता भी लगा दिया था. सीमा को भी पता चल चुका था कि मुझे पैरों में लगा हुआ आलता बहुत पसंद है.

मैंने छाया से कहा

"अंततः तुम्हारी राजकुमारी रानी बन ही गई."

उसने पूछा

"क्या कोई विशेष अंतर दिखाई दे रहा है "

"मैंने कहा हां. ठीक वैसे ही जैसे गुलाब की कली और फूल में दिखाई देता है"

वह हंस पड़ी. मैंने अपने होठों से रानी को चूम लिया यह जानते हुए भी कि उस खिले हुए गुलाब पर मेरे अलावा भी किसी और ने भी पानी दिया है. पर वह गुलाब मेरी छाया का था जिसको कली भी मैंने बनाया था और फूल भी. मैं उसे बेतहाशा चूम रहा था छाया के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई दे रही थी. उसकी दोनों जाँघे उसी तरह फैली थी जैसे राजकुमारी दर्शन के लिए थीं. पर अब वह एक वयस्क नारी थी और वह भी शादीशुदा.

माथे पर लगा हुआ सिंदूर उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था. उसके बाल अब और घुंघराले हो चुके थे चेहरे पर मादकता भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी. गालों पर ज्यादा लालिमा थी की आंखों में या कहना मुश्किल था.

मैंने अपने हाथ उसके बड़े बड़े स्तनों की तरफ बढ़ा दिए जो अब मुश्किल से मेरे हाँथ में आ रहे थे. मैने अंगूठे और तर्जनी के बीच में निप्पलों को लेकर सहलाना शुरू कर दिया. रानी प्रेम रस बहाना शुरू कर चुकी थी . मैं अपनी जीभ को जितना अंदर ले जा सकता था ले जा रहा था. उसे रोकने वाला कोई नहीं था जो दीवार थी वह मैंने सुहागरात के दिन खुद ही गिरा दी थी और रही सही कसर निश्चय ही सोमिल ने पूरी कर दी होगी. हम कुछ देर इसी अवस्था में रहे.

छाया ने मुझे ऊपर खींच लिया मैं उसके होठों को चूमने लगा. उसके स्तन मेरे सीने से टकरा रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे दो मुलायम गेंदें मेरे सीने के नीचे रखी हुई थीं . राजकुमार बिना मेरी आज्ञा के रानी में विलुप्त हो रहा था.

यह रानी उसे सर्वाधिक प्रिय थी. इसके साथ वो बचपन से खेला था. राजकुमार ने उछलना शुरू कर दिया छाया की रानी एक विशेषता थी वह सोमिल के राजकुमार को पिछले 6 महीनों तक लेने के बावजूद आज मेरे राजकुमार को उसी जोशो खरोश के साथ अपने अंदर समाहित की हुई थी तथा उस पर प्यार भरा दबाव बनाए हुए थी.

राजकुमार को अभी भी गहराइयों में उतरने में मेहनत करनी पड़ रही थी. यही दबाव तो राजकुमार को सबसे ज्यादा प्रिय था. मैं धीरे-धीरे अपनी रफ्तार बढ़ाने लगा जब भी मैं उसके चेहरे को देखता मुझे उस पर बहुत प्यार आता.

छाया को मैं बचपन से देख रहा था उसकी राजकुमारी को मैं धीरे-धीरे जवान होते देखा था बल्कि यूं कहें तो मैंने स्वयं अपने हाथों से धीरे-धीरे उसे बड़ा किया था .

सुहागरात और हनीमून के समय जब जब मैंने उसके साथ संभोग किया मुझे वह छोटी सी प्यारी सी छाया ही लगी. उस समय छाया से संभोग करते समय प्यार हमेशा प्रधान रहा था कामुकता थी तो जरूर पर दूसरे स्थान पर पर आज स्थिति कुछ अलग रही थी.

आज छाया एक अलग रूप में दिखाई पड़ रही थी. वह स्त्रीत्व के चरम पर थी. वह पूर्ण नारी बन चुकी थी. संभोग के लिए मनुष्य जिस नारी की कल्पना करता है छाया उसे पूरी तरह साकार कर रही थी गोरी मांसल जांघें फूली हुई राजकुमारी बड़े नितंब और उभरे हुए कोमल स्तन चमकदार मुख्य मंडल और भरा पूरा शरीर कोई भी मनुष्य अपनी सारी कामुकता छाया पर उतार सकता था.

आप छाया को प्यार करें ना करें पर उसे भोगने की लालसा हर व्यक्ति में आ जाती इतनी सुंदर हो गई थी छाया.

मैं अपने कमर की गति को बढ़ाता चला जा रहा था छाया के मुख मंडल पर चुंबन की बजाए अब मैंने दोनों हाथों से उसके स्तन पकड़ लिए थे. और अपने कमर को लगातार आगे पीछे कर रहा था छाया खुलकर उस का आनंद ले रही थी.

पहले हम दोनों एक दूसरे पर चुम्बनों की बारिश कर रहे होते तथा हमारे राजकुमार और राजकुमारी आपस में प्रेम कर रहे होते और हम दोनों इसी अवस्था में स्खलित हो जाते थे पर आज हम एक दूसरे को चूम कम रहे थे और अपनी कमर पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे.

छाया अपने होंठ काट रही थी और अपनी कमर को मेरे साथ साथ हिला रही थी. उसकी आंखों में एक अलग किस्म का नशा दिखाई दे रहा था.

पता नहीं मुझे क्या सूझी मैंने अपने राजकुमार को रानी से बाहर निकाला और छाया को पलट जाने का इशारा किया. मैंने उसके नितंब के नीचे हाथ लगाकर उसे घूमने में मदद की .

छाया एक पल में समझ गई मैं क्या चाह रहा हूं वह तुरंत ही अपने घुटनों के बल आ चुकी थी उसने अपनी कमर पीछे की तरफ कर ली . उसके स्तन चादर को छू रहे थे उसने अपना चेहरा दोनों हथेलियों के ऊपर रखा हुआ था. उसके हाथ की दोनों कोहनियां बाहर की तरफ थी. जैसे उसने अपने आप को उनकी मदद से व्यवस्थित किया हुआ था. उसका चेहरा सामने की तरफ था बाल पीठ पर फैले हुए थ.

छाया जाने मेरे मन की बात जाने कैसे पढ़ ली थी. वह आज पहली बार डॉगी स्टाइल में मेरे सामने उपस्थित थी. अपने राजकुमार को उसके रानी के मुख पर रखते ही एक अजीब स आकर्षण पैदा हुआ और वह बिना किसी विशेष प्रयास के अपनी जगह पर चला गया. मुझे छाया का चेहरा नहीं दिखाई दे रहा था पर मैं उसे चूमना चाह रहा था. मैंने अपने राजकुमार को आगे पीछे करना शुरू कर दिया.

उसके गोल गोल नितम्ब मेरी आंखों के सामने थे उन्हें थोड़ा सा ही फैलाने पर मुझे दासी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. इतना सुंदर और कामुक दृश्य था. छाया के गोल गोल नितंब उसके पतली कमर पर अत्यंत खूबसूरत लग रहे थे. छाया की गोरी और नंगी पीठ मादक थी. उसके काले केश उसकी पीठ पर बहुत सुंदर लग रहे थे.

मेरी मासूम छाया आज डॉगी स्टाइल में मेरे सामने उपस्थित थी. उसकी कमर अब धीरे धीरे आगे पीछे हो रही थी निश्चय ही वह भी इसका आनंद ले रही थी.

मैंने हाथ बढ़ा कर उसके दोनों स्तनों को पकड़ लिया और उसे प्यार से मसलते हुए (सच आज मैं छाया के स्तनों को सहला कम रहा था मसल ज्यादा रहा था) राजकुमार को आगे पीछे करने लगा छाया बहुत खुश थी. उसने अपना चेहरा मेरी तरफ करने की कोशिश की उसकी आंखों में प्रश्न था तुरंत होठों पर मुस्कान थी शायद वो अपने स्तनों को मसले जाने की शिकायत करना चाह रही थी।

मैं अपना एक हाथ उसके चेहरे की तरफ ले गया होठों पर रखते ही वह मेरी उंगलियो को चूमने लगी. आज पहली बार मुझे महसूस हो रहा था जैसे मैं छाया को प्यार नहीं कर रहा था बल्कि चो...... रहा था.

मेरा ध्यान उसके चेहरे और होठों की तरफ कम तथा उसके स्तनों और रानी की तरफ ज्यादा था. मैं उसके दोनों स्तन बारी-बारी से मसलते हुए कमर की रफ्तार को पूरी तरह बढ़ा दिया. इस उद्वेग में हमारे कमरे में आवाजें बढ़ने लगीं. थप थप थप ...की आवाज लगातार हो रही थी हम दोनों ने उस आवाज को नजरअंदाज कर दिया और अपनी गति को बढ़ाएं रखा. कुछ ही देर में रानी की कंपकाहट मुझे महसूस होने लगी आज कई महीनों बाद छाया के मुख से आ रही "मानस भैया......." की मधुर आवाज ने मुझे अभिभूत कर दिया.

मैं अपने राजकुमार को पूरी गति से तब तक हिलाता रहा जब तक कि उसकी आवाज धीमी नहीं पड़ गई और रानी के कम्पन शांत नहीं हो गए। इसी दौरान मेरे राजकुमार ने छाया की रानी को अपने वीर्य से पूरी तरह भर दिया. मेरे राजकुमार को बाहर निकालते ही मेरा वीर्य उसकी रानी से निकलता हुआ उसकी जांघों पर आने लगा. पता नहीं मुझे क्या सूझी मैंने अपने हाथ रानी पर रख दिए जैसे मैं प्रयास कर रहा था कि मेरा वीर्य उसके अंदर ही रहे वह मुस्कुरा रही थी.

वह उठी और मुझे चूमते हुए बोली बोली

"लगता है मैं आपके लिए बदल गई हूँ"

मैंने पूछा

"तुम्हें ऐसा क्यों लगा"

उसने कहा

"आज आपका ध्यान मुझे प्यार करने पर कम संभोग पर ज्यादा था "

मैंने उसे फिर चूम लिया और कहा

" छाया अब तुम एक पूर्ण नारी बन चुकी हो तुम्हारा यह रूप अत्यंत मादक है. मैं एक पल के लिए सच मे भूल चुका था कि तुम मेरी वही पुरानी प्रेमिका हो जिसे में दिलो जान से प्यार करता हूं उम्मीद करता हूं तुम मुझे माफ कर दोगी"

वह खुश ही गयी और मुस्कराते हुए बोली

"सच कहूं तो मुझे भी बहुत मज़ा आया"

आप हर रूप में मुझे प्यारे हैं कहती हुई वह बाथरूम में चली गयी.

छाया का यह रूप आने वाले समय में मेरे लिए एक नई मिसाल बनने वाला था.

घड़ी में 11:30 बज चुके थे. हम सीमा का जन्मदिन मनाने हॉल में आ गए. छाया नाइटी का ऊपर वाला भाग पहनना भूल गई थी वह पारदर्शी नाइटी में ही हाल में आ गई थी. सीमा ने उसे देखते ही छेड़ा

"अरे ननद जी अपनी नाइटी कहां उतार दी इतनी सेक्सी बन के घूमोगी तो जन्मदिन आपकी रानी का ही मनेगा." छाया शर्मा गयी वह भागकर मेरे कमरे में गई और नाइटी का ऊपरी भाग पहन कर आ गयी.

वह मुस्कुरा रही थी और सोमिल के सामने शर्म से पानी पानी हो रही थी. सीमा और छाया ने केक काटने के बाद ही मिलन का समय निर्धारित किया था. पर छाया एक कदम आगे बढ़कर मेरे साथ संभोग सुख ले चुकी थी.

सीमा उसे इसी बात पर छेड़ रही थी. कुछ ही देर में सीमा के जन्मदिन पर हम केक काट रहे थे और सीमा को बधाई दे रहे थे. मैंने और छाया ने सीमा को अपने आलिंगन में लेकर होठों पर चुंबन दिया और उसे शुभकामनाएं दी। सोमिल ने तो सीमा को अपनी गोद में उठाया और हाथ हिलाते हुए हम लोगों से विदा लिया।

वह अपने कमरे की तरफ जा रहा था हमें पता था कि आज सीमा को जन्मदिन का उपहार वह अपने तरीके से ही देगा मैं और छाया भी मुस्कुराते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ रहे थे हमारी रात आज गुलजार होने वाली थी।

(मैं छाया)

मैं मानस भैया के साथ कमरे में आ चुकी थी. हम दोनों कुछ ही देर में एक दूसरे की बाहों में थे। अभी कुछ समय पहले ही मैंने और मानस भैया ने एक अद्भुत संभोग किया था जो निश्चय ही नया था । मानव भैया की उत्तेजना का मैंने यह रूप पिछले चार-पांच वर्षों में पहली बार था।

12