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Click hereइससे पहले वो मुझे आलिंगन में लेते मेरे स्तनों को सहलाते, मेरी राजकुमारी के साथ खेलते परंतु हमेशा उनके हाथों और उनके स्पर्श में एक कोमलता रहती थी। वह कोमलता उनके प्यार की प्रतीक थी। वह बड़ी ही आत्मीयता से मेरे अंगों को छूते पर आज उन्हें इस रूप में देखकर मैं खुद आश्चर्यचकित थी।
जब वह मेरे स्तनों को मसल रहे थे मुझे थोड़ा दर्द भी हो रहा था यह अलग बात थी कि उनकी यह क्रिया मेरी उत्तेजना को बढ़ा रही थी।
उनका मेरे नितंबों को छूने का अंदाज और मुझसे संभोग करने का अंदाज विशेषकर तब जब मैं डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी निश्चय ही नया था। उसमें प्रेम की जगह उन्माद ज्यादा था। मैने मानस भैया को छोड़ने की सोची। मैं उन के आगोश में थी मैंने अपना चेहरा उनके चेहरे से थोड़ा दूर किया और कहा
"एक बात पूछूं?" आज आप संभोग करते समय अलग प्रतीत हो रहे थे। आज आपका संभोग करने का अंदाज अलग था।"
"नहीं छाया, ऐसी कोई बात नहीं"
"क्या सच में? मुझे तो आपके संभोग का अंदाज बिल्कुल अलग लग रहा था?"
"क्यों? तुम्हें क्यों लगा?"
"यह तो आपको ही बताना पड़ेगा" वह मुस्कुराने लगे उनके पास इस बात का जवाब नहीं था. शर्म तो उन्हें भी आ रही थी. उन्होंने हिम्मत जुटा कर कहा
"छाया, आज तुम्हें इस रूप में देख कर मेरी उत्तेजना बढ़ गई थी"
"किस रूप में देखकर?"वह फिर चुप हो गए।
जब तक मैं उनसे बातें कर रही थी मेरी हथेलियां अपने राजकुमार को सहला रही थीं। वह तना हुआ बातें सुन रहा था और उछल उछल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। उसे हमेशा से ही रानी से संघर्ष करने में मजा आता था। जाने उसे कौन सी दिव्य शक्ति प्राप्त थी वह कभी नहीं थकता ठीक उसी प्रकार जैसे छोटे बच्चे दिनभर खेलने के बाद भी उसी तरह ऊर्जा से भरे रहते हैं। मैंने फिर कहा
"बताइये ना..."
उन्होंने कहा
"छाया इन चार-पांच महीनों में तुम एक विवाहिता स्त्री की तरह दिखाई पड़ने लगी हो। तुम्हारे स्तनों और नितंबों में एक अद्भुत आकर्षण आ गया है तुम कोमल कली से पूर्ण विकसित फूल की तरह परिवर्तित हो गयी हो" संभोग के लिए तुम्हारी अवस्था इस समय आदर्श है। तुम्हारे जैसे युवती से संभोग करना एक सुखद और कामुक अनुभव है और वह भी पूरे उद्वेग और पूर्ण कामुक अंदाज में"
"पर वह तो आप पहले भी करते थे"
"हां छाया मैं तो तुम्हें शुरू से ही प्यार करता रहा और तुम्हारे कोमल अंगों से खेलता रहा पर आज मैं बहक गया था"
"तो क्या आज आप मुझे प्यार नहीं कर रहे थे?
"हट पगली, मैंने तो तुम्हें हमेशा खुद से ज्यादा प्यार किया है" वह मेरे होंठो को चूमते हुए मेरे स्तनों को प्यार से सहलाने लगे।
"मुझे बहकाईये मत आज आपका अंदाज अलग था"
"प्यार ही था हां, पर उसमे उत्तेजना ज्यादा थी" उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश की।
"पर इस अनोखे प्यार..... नाम तो होगा" मैं हँसने लगी।
"हां है..."
"तो बताइए ना..? मैने मासूम बनते हुए पूछा।
"बताऊंगा पर पहले तुम एक बात बताओ"
"क्या?"
"राजकुमारी का असली नाम क्या है?"
मैं शर्म से पानी पानी हो गयी। मैने उनके सामने आज तक अपनी राजकुमारी को समाज मे प्रचलित नाम से नहीं पुकारा था।
"बताओ ना?" उन्होंने उसी मासूमियत से पूछा।
मैं फस चुकी थी। मैने बात टालने के लिए कहा "योनि"
वो मुस्कुराने लगे। और कहा
"तो मैं भी उस समय श्वान सम्भोग ( श्वान -कुत्ता-डॉगी) कर रहा था"
मैं खिलखिला कर हंसः पड़ी। वो हमेशा से मुझसे ज्यादा हाजिर जबाब थे। मैं उत्तेजना से भर चुकी थी। मैने आखिरी दाव खेला..
"आप राजकुमार का बताइये तो मैं भी बता दूंगी" उन्होंने मुझे अपने पास खींच लिया और मुझे चूमते हुए मेरे कान के पास आकर धीरे से कहा
"लं...ड" मैं सिहर गयी। राजकुमार को उसके नाम से पुकारने पर वह भी उछल पड़ा। मानस भैया मुझे बेतहाशा चूमने लगे। उनकी उंगलियां रानी के होंठों पर आ चुकीं थी। उन्होंने उसपर दबाव बनाते हुए पूछा
"और ये क्या है?"
मैं स्वयं उत्तेजित थी। मैन उन्हें कानो पर चूम लिया और कहा
"आपकी बू...." मैंने "र" को आंग्लभाषा की तरह ध्वनिविहीन कर दिया।
वह मुझे चूमते हुए मेरी दोनों जाँघों के बीच आ चुके थे। राजकुमार रानी के मुख पर खड़ा था रानी की लार टपक रही थी। मानस भैया और मैं दोनों मुस्कुरा रहे थे उन्होंने मुझे होठों पर चुंबन दिया और मेरी आंखों में देखते हुए बोले..
"अब मैं अपनी प्यारी छाया की बू....र को अपने लं.....ड से चो...**...ने जा रहा हूँ"
मेरी आँखें उनके चेहरे के भाव नहीं देख पायीं पर उनके कहे शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे। मैं शब्दो के मायाजाल में खोयी हुई थी उधर राजकुमार रानी के मुख् में प्रवेश कर गया और उसके साथ खेलने लगा था। वह भी अब जैसे बड़ा हो गया था उसे अब शायद मार्गदर्शन की जरूरत नहीं थी.
रानी के साथ उसके बर्ताव में थोड़ा बदलाव आ गया था परंतु मेरी रानी को यह बदलाव भी उतना ही प्यारा था।
मेरी सांसे तेज चल रही थी। मैं स्वतः डॉगी स्टाइल में आने को लालायित हो रही थी।
मानस भैया ने मेरे मन की बात पढ़ ली। उन्होंने मेरे नितंबों को सहारा देकर मुझे पलटा दिया। वे एक बार फिर मुझे चो..** रहे थे।
मैं मानस भैया से और खुल रही थी और मन ही मन खुश हो रही थी।
"मैं मानस"
अगली सुबह सीमा चाय पीने के बाद मेरे कमरे में आयी. मैने अपनी पत्नी को जन्मदिन की एक बार और बधाई दी. उसकी रानी भी अपने राजकुमार से बधाई लेने की पात्र थी. सीमा के वस्र उत्तर रहे थे...उनका मिलन स्वतः प्रारम्भ हो रहा था.
आज दोपहर में माया आंटी और शर्मा जी आने वाले थे.