छाया - भाग 15

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छाया का भविष्य और सोमिल के वचन की लाज
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Part 15 of the 19 part series

Updated 06/10/2023
Created 12/14/2020
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त्रिकालदर्शी महर्षि

(मैं माया)

सोमिल को देखने के बाद मेरी बेटी छाया के चेहरे पर भी सुकून देने वाली मुस्कान थी। वह अत्यधिक प्रसन्न दिखाई पड़ रही थी और मैं भी। मैंने भगवान के प्रति कृतज्ञता जाहिर की। सोमिल अपने घरवालों से मिलने चला गया।

मैंने मानस से स्वामीनाथन मंदिर चलने के लिए कहा। मैं भगवान के दर्शन कर अपनी कृतज्ञता जाहिर करना चाहती थी। वहां पर एक नए महर्षि आए हुए थे जो त्रिकालदर्शी थे। वे हाथों की लकीरों को पढ़कर वह भूत भविष्य दोनों के बारे में स्पष्ट रूप से बता देते थे। मेरी सहेलियों ने उनकी दिव्य दृष्टि की बहुत प्रशंसा की थी। मेरे मन में भी उनसे मिलने की इच्छा जागृत हो चली थी।

मैंने मानस और छाया से मंदिर चलने के लिए कहा। वह दोनों सहर्ष तैयार हो गए। वह दोनों भी भगवान के प्रति कृतज्ञ थे। सीमा हमारे साथ नहीं चल रही थी क्योंकि वह रजस्वला थी। सोमिल अपने घर जा चुके थे।

हम तीनों मंदिर के लिए निकल गए। छाया और मानस को अपने अगल-बगल बैठा देखकर मुझे अपने पुराने दिन याद आने लगे। जब मैं पहली बार मानस के घर आई थी तब से अब तक कितना कुछ बदल गया था। मानस और छाया की प्रेम लीला में कई उतार-चढ़ाव आए थे और अब वह दोनों शादीशुदा थे पर उनके जीवन साथी अलग थे। छाया के विवाह के बाद आए सैलाब में हमें हिला कर रख दिया था पर कुछ ही दिनों में भगवान ने एक बार फिर सबकुछ ठीक कर दिया था। छाया और मानस के चेहरे पर अब मुस्कान थी उन दोनों का सौंदर्य देखने लायक था।

आज से 2 -3 वर्ष पूर्व जब मैंने इन दोनों को नग्न अवस्था में एक दूसरे की बाहों में देखा था तो वो मुझे कामदेव और रति के रूप मैं दिखाई पड़े थे। मैं उनकी वह छवि कभी भी नहीं भूल पाती हूं। मुझमे कई वर्षों बाद कामवासना जगाने में भी इन दोनों के नग्न दर्शन का ही योगदान था। मानस के लिंग को तो मैंने भावावेश में आकर स्खलित भी किया था।

नियति के खेल ने उन दोनों को एक नहीं होने दिया था इसका दुख मुझे और निश्चय ही इन दोनों को भी रहा होगा। परन्तु इस कामदेव व रति की जोड़ी ने हमारे घर को अद्भुत प्रेम से भर दिया था और हम सभी के मन मे कामेच्छा भी भर दी थी।

कुछ ही देर में हम मंदिर के पास आ चुके थे। मंदिर में सामान्य भीड़भाड़ थी। वहां का मनोरम वातावरण सुकून देने वाला था। मानस और छाया हाथों में हाथ डाले मंदिर दर्शन करने मेरे साथ साथ चल पड़े। उन दोनों को देखकर कोई भी उन्हें प्रेमी युगल ही समझता उन दोनों में गजब की आत्मीयता थी।

मंदिर दर्शन करने के पश्चात हम वापस आ रहे थे। महर्षि की कुटिया की तरफ बढ़ चले. महर्षि अपनी साधना में थे मैं उनकी साधना पूरी होने की प्रतीक्षा करने लगी। मानस और छाया मंदिर के आसपास का मनोरम दृश्य देखने निकल पड़े। महर्षि के जाग्रत होने पर मैंने छाया को फोन कर दिया और कुछ ही देर में हम तीनों महर्षि के सामने थे।

महर्षि 50- 55 वर्ष के एक तेजस्वी महात्मा थे उनके चेहरे पर अद्भुत तेज था. गोरा दमकता हुआ चेहरा ऐसा लगता था जैसे प्रकृति ने सूर्य का तेज उनके मुख मंडल में भर दिया था पर उनकी नजरों में चंद्रमा की शीतलता थी। वह हम तीनों को कुछ देर यूं ही देखते रहे।

"प्रणाम" छाया की मधुर आवाज स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ी मानस और मेरी आवाज भी छाया की आवाज के अंदर समाहित हो गई लगती थी.

"आयुष्मान भव" महात्मा ने कहा

मानस आधुनिक युग का लड़का था उसे ऋषि-मुनियों पर इतना विश्वास नहीं था उसने महर्षि के साथ विशेष आत्मीयता नहीं दिखाई वह अपनी उधेड़बुन में इधर उधर देखता रहा। महर्षि ने यह बात अपने संज्ञान में ले ली थी उन्होंने मानस से कहा

"पुत्र अब तो तुम्हारी सारी परेशानियां खत्म हो चुकी है अब तुम्हें किस बात का तनाव है"

"जी नहीं, है मैं ठीक हूं" मानस ने आदर पूर्वक जवाब दिया तभी उसके फोन की घंटी बज गई और वह महर्षि से क्षमा मांगते हुए बाहर आ गया।

मैंने महर्षि से छाया के बारे में जानना चाहा। उन्होंने छाया से अपना हाथ आगे करने के लिए कहा। छाया ने अपने कोमल हाथ उनके सामने कर दिए। वह मंत्र मुग्ध होकर उसकी कोमल हथेलियों को देखते रहे पर उन्होंने उसे अपने हाथों से नहीं छूआ।

महर्षि ने अपनी आंखें बंद कर ली उन्होंने कहा...

पुत्री मेरी बात ध्यान से सुनना तुम्हें शायद यह आभास नहीं होगा पर तुम इस धरती प्रेम और कामुकता का प्रतीक हो। तुम्हें प्रकृति ने अद्भुत कामवासना देकर इस धरती पर भेजा है। तुम्हारा विवाह हो चुका है और प्रथम संभोग भी। निश्चय ही यह संभोग एक अद्भुत पुरुष के साथ ही संपन्न हुआ है। मुझे तुम्हारे चेहरे उस अद्भुत और कामुक संभोग से आया हुआ हर्ष स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। पुत्री मुझे तुम्हारे भविष्य में पंचरत्न योग दिखाई पड़ रहा है।

यह योग अद्भुत कामवासना का प्रतीक है। तुम्हें आने वाले समय में चार अन्य पुरुषों से संभोग करना होगा। यह संयोग आने वाले समय में स्वतः ही सम्पन्न होता जाएगा निश्चय ही इसमें तुम्हारी इच्छा समाहित रहेगी। प्रकृति द्वारा प्रदत्त कामवासना तुम्हें स्वयं ही उस दिशा में ले जाएगी।

तुम धरती पर प्रेम, समर्पण और कामवासना का उदाहरण बनोगी। तुमने अपने अंदर प्रकृति की कामेच्छा को समेटा हुआ है परंतु तुम्हारा शरीर नश्वर है तुम्हारा अद्भुत यौवन भी समय के साथ ढलने लगेगा परंतु एक अद्भुत व्यक्ति से संभोग के पश्चात तुम्हारी कामेच्छा और यौनांग पुनः युवा हो जाएंगे हो सकता है तुम्हें अपने जीवन के उत्तरार्ध में एक बार फिर किसी कुंवारे पुरुष से संभोग का अवसर प्राप्त होगा उस दिन तुम्हारी कामेच्छा कुवारी एवं युवा कन्या की तरह जागृत होगी और तुम्हारे यौनांग भी उसी कुँवारी और युवा कन्या की तरह बर्ताव करेंगें.

प्रकृति के नियमानुसार वीर्य धारण करने वाले सभी पुरुष एक ही श्रेणी में आते हैं उनमें उम्र का कोई स्थान नहीं होता इस बात का विशेष ध्यान रखना और नियति द्वारा नियोजित संभोग से अपने मन में कोई ग्लानि मत आने देना । यह प्रकृति की इच्छा है। तुम युवा हो और प्रेम वासना की प्रतीक हो मैं अपनी आंखों से तुम्हें दोबारा नहीं देख सकता मेरा ब्रह्मचर्य भंग हो सकता है। पुत्री अब तुम जा सकती हो" इतना कहकर महर्षि ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए ।

छाया निरुत्तर थी। उसने प्रत्युत्तर में उसने अपने हाथ जोड़े और मन में कई सारे प्रश्न लिए बाहर निकल गई।

महर्षि ने छाया के बारे में एक साथ इतनी सारी बातें बता दी थीं जिसे सुनकर मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गई थीं. विशेषकर वह बात की छाया ने संभोग कर लिया है मेरा मन नहीं मान रहा था. सुहागरात के दिन ही सोमिल गायब हुआ था। मानस ने बचन दिया था कि वह छाया का कौमार्य विवाह पूर्व भंग नही होगा फिर यह कैसे हुआ। मेरे मन में संदेह पैदा हो गया। महर्षि की यह बात मेरे समझ के परे थी।

उन्होंने अब अपनी आंखें खोल लीं थीं। मैंने अपना हाथ उनके आगे कर दिया।

उन्होंने मेरे अतीत की सारी बातें हूबहू बता दीं। भविष्य के बारे में भी उन्होंने मुझे कई बातें बतायीं। मेरे जीवन में आए दूसरे पुरुष के बारे में भी उन्होंने स्पष्ट तौर पर बताया। मुझे उनकी बातों से विश्वास हो चला था पर छाया के बारे में जो उन्होंने कहा था उस पर मेरा कौतूहल विद्यमान था।

मैंने एक बार फिर छाया का नाम लिया और बोलना चाहा. उन्होंने कहा

"देवी मैं आप की पुत्री के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कह सकता । अपने कौतुहल को शांत करने के लिए आप अपनी पुत्री की योनि के दाहिने होठ पर एक लाल तिल का निशान देख सकती हैं, आपका संशय दूर हो जाएगा। देवी अब आप भी प्रस्थान कर सकती है"

इतना कहकर महर्षि में अपनी आंखें बंद कर ली मैंने उन्हें प्रणाम किया और बाहर आ गई छाया और मानस आपस में बातें कर रहे थे मेरे मन में छाया और उसके आने वाले जीवन के बारे में कई सारे प्रश्न थे।

जब तक मानस पार्किंग से ड्राइवर को बुला कर लाता मैंने छाया से महर्षि द्वारा बोली गई प्रथम संभोग की बात को पूछा छाया ने अपनी गर्दन झुका ली और कहा

"हां मां महर्षि की बात सही है."

"पर मानस का वचन?"

"माँ उस रात मेरा विवाह हो चुका था उन्होंने अपना वचन नहीं तोड़ा है."

मुझे यह समझते देर नहीं लगी की छाया ने अपना कौमार्य मानस को ही समर्पित किया था वह इसका हकदार भी था. मुझे महर्षि की बातों पर यकीन हो चला था. छाया को आने वाले दिनों में कई उतार-चढ़ाव देखने थे . नियति के खेल को प्रभावित करने की मेरी हैसियत नहीं थी. मैंने मन ही मन महर्षि और भगवान को प्रणाम किया। छाया की योनि के होंठ पर तिल का निशान यह आश्चयर्जनक था उसे देखने की बात छाया से नहीं कर पाई आखिर मैं उसकी मां थी।

इतना सब सोचते हुए मेरी रानी लार टपकाने लगी और मैं शर्मा जी से अपने मिलन का इंतजार करने लगी।

(मैं सीमा)

सोमिल अपने घरवालों से मिलने के पश्चात देर शाम हमारे घर पर ही आ गए थे। हम सब उनके आने से बहुत खुश थे। हम चारों मेरे घर में पिछले दिनों हुई घटनाओं के बारे में बातें कर रहे थे। सोमिल मुझे बार-बार कातर निगाहों से देख रहा था। उसके वजन की लाज मुझे रखनी थी। चूंकि आज हम सब थके हुए थे मैंने यह कार्यक्रम कल के लिए निर्धारित कर दिया। वैसे भी मेरी रानी अभी रजस्वला थी वह युद्ध के लिए तैयार नहीं थी।

यह एक संयोग ही था उस दिन भी रविवार था और कल भी रविवार ही था। मैं और मेरी रानी भी रजस्वला होने के बाद नई ऊर्जा और स्फूर्ति के साथ संभोग के लिए तैयार हो रही थी।

छाया रविवार का दिन सुनकर थोड़ा घबरा गई पर हम सब ने उसे समझा लिया था।

रात को बालकनी में मुझे सोमिल ने शांति के बारे में खुलकर बताया। मुझे सोमिल पर बहुत प्यार आ रहा था। उसने मुझे दिए वचन की खातिर उस सुंदरी से संभोग सुख का परित्याग कर दिया था। मुझे लगता था वह निश्चय ही मुझे प्यार करता था। मैं भी खुशी खुशी उसे उसके प्रथम संभोग का आनंद देना चाहती थी। बातों ही बातों में उसने शांति द्वारा दिये गए वियाग्रा का भी जिक्र कर दिया था। मेरे मन में शैतानी आ गयी।

रविवार

(मैं छाया)

स्नान करने के बाद मैं स्वयं को आईने में निहार रही थी आज एक बार फिर हमारी सुहाग रात थी. सीमा भाभी भी अपने कमरे में तैयार हो रही थी. हमें पार्लर जाना था. प्रकृति ने यह कैसा संयोग बनाया था हम सभी अपने अपने साथी का इंतजार कर रहे थे. सोमिल के दिए हुए वचन ने मुझे भी उस दिन मेरी सुहागरात का तोहफा दे दिया था। उनके वचन की वजह से ही मेरा मानस भैया से मिलन हो पाया था. मुझे नहीं पता सीमा भाभी अपने मन में क्या सोचती थी पर यह तय था कि मैं मानस और सोमिल अपनी अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर रहे थे. ऐसा कतई नहीं था कि मैं सोमिल से प्यार नहीं करती थी. सोमिल अब मेरे दिलो-दिमाग पर छा चुके थे उस रात मैं मानस भैया को भूलकर पूर्ण समर्पण के साथ सुहागरात के लिए निकली थी पर भगवान ने मेरे दिल का साथ दिया था.

मानस भैया ने मेरे शरीर और दिलोदिमाग में ऐसी जगह बनाई थी जिसे मिटाया नहीं जा सकता. वह मेरी आत्मा में रच बस गए थे. मेरा ध्यान अपने स्तनों पर गया यह वही स्तन थे जो पहले मेरी छोटी हथेलियों में आ जाया करते थे. मानस भैया ने अपनी हथेलियों से जाने कितनी बार इनकी मालिश की और इन्हें इस आकार में लाया जो अब स्पष्ट रूप से वस्त्रों का आवरण भेदकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं तथा मेरे नारी सुलभ सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं. जब वह स्तनों को अपने हाथों से मालिश किया करते वह बार-बार कहते थे "मेरी छाया के स्तन इस दुनिया के सबसे खूबसूरत स्तन बनेंगे." वह अपनी दोनों हथेलियों से उनका नाप लेते उनके निप्पलों को सहलाते अपनी उंगलियों से गोल-गोल घुमाते और ऊपर की तरफ खींचते. उधर मेरी राजकुमारी उनके प्रेम रस में लार टपकाते हुए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही होती. उनके हाथों ने मेरे शरीर के हर अंग को संवारा था मेरे नितंबों को मालिश करते वक्त भी वह उनके आकार पर विशेष ध्यान देते. मेरी जाँघों और मेरे पैरों को भी आकार में लाने का श्रेय उनको ही है. अपने जिम में ट्रेनिंग करते वक्त वह मेरा विशेष ध्यान रखते तथा मेरे शरीर को एक सुडौलआकार में बनाए रखने के लिए सदैव प्रोत्साहित करते.

वह स्वयं भी एक आदर्श पुरुष की भांति रहते. मेरी राजकुमारी को उन्होंने हमेशा फूल की तरह रखा अपनी उंगलियों के स्पर्श से ज्यादा भरोसा उन्हें अपनी जिह्वा पर था वह कभी भी मेरी राजकुमारी को अत्यधिक दबाव से नहीं छूते थे कभी-कभी मैं खुद इसकी प्रतीक्षारत रहती की वह दबाव बढ़ाएं परंतु वो हमेशा उसे कोमलता से ही छूते. मेरे स्खलन मैं लगने वाला समय बढ़ जाता पर वह अपना दबाव नहीं बढ़ाते वह बार-बार कहते "छाया तुम्हारी राजकुमारी तुम्हारे दिल की तरह पवित्र और कोमल है"

उस दिन मुझे इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था की सीमा दीदी उस दिन मेरी और मानस भैया की सुहागरात होगी. उस दिन भगवान स्वयं सीमा भाभी के रूप में आए थे और मेरे अंतर्मन की इच्छा को पूर्ण किया था.

मुझे महर्षि की बातें याद आ गई। मैं व्यभिचारिणी नहीं थी फिर पंचरत्न योग???

मेरा ध्यान आईने पर गया, आज मुझे अपनी रात मानस की बांहों में गुजारनी है यह निश्चित था. मैं अपने कामदेव के लिए तन मन से तैयार हो रही थी. रानी के होठों पर आए प्रेम रस को मैंने अपनी उंगलियों से महसूस किया और उसे शाम तक प्रतीक्षारत रहने के लिए थपथपाया और नाइटी पहन कर बाहर आ गई.

मेरा रोम रोम खिला हुआ था मैं बहुत खुश थी. सीमा भाभी के लिए मेरे दिल में अथाह सम्मान और प्रेम उमड़ आया था. मैं उनके प्रति कृतज्ञ थी मैंने मन ही मन में उन्हें हमेशा खुश रखने की ठान ली थी. वह भी मेरा जी जान से ख्याल रखतीं थीं मैं सच में उनकी छोटी बहन थी.

यही बातें सोचते हुए मैं खयालों में गुम थी तभी सीमा दीदी मेरे कमरे में आ गयीं और मुझे अपने आलिंगन में ले लिया.

"अरे छाया आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो सोमिल तो खुश हो जाएगा?"

"सोमिल?"

"क्यों सोमिल के पास नहीं जाना है?"

"पर उनके वचन का क्या?"

वह मेरी मंशा पढ़ चुकी थीं वह मुस्कुराने लगी.

उन्होंने एक बार फिर मुझे आलिंगन में लिया और कहा

"मैंने मेरी प्यारी छाया की इच्छा जान ली है. वचन का पालन आधी रात में ही होगा कह कर हंसने लगी"

उन्होंने मुझे शीघ्र तैयार होने के लिए कहा और हंसते हुए कमरे से बाहर चली गई मेरे मन में अचानक आया संशय गायब हो गया था और मैं फिर से मुस्कुराने लगी थी.

(मैं सीमा)

रविवार को हमने दूसरा होटल बुक किया था। छाया ने सिर्फ हमारा कमरा विशेष रूप से सजाया था. हम चारों के बीच सिर्फ सोमिल ही ऐसा था जिसने आज तक संभोग सुख नहीं लिया था छाया अपने पति का संभोग सुख सुहागरात की तरह मनाना चाहती थी. सोमिल को उसकी सुहागरात के दिन दूसरे कमरे में हुई मानस और छाया के मिलन की जानकारी नहीं थी। उसे यह बताना उचित भी नही था।

मैं और छाया एक बार फिर उसी तरह सज धज कर होटल पहुंच गए थे। पार्लर वाली महिला हम दोनों को इस तरह दोबारा सजते हुए देख कर मुस्कुरा रही थी। उसे शायद यह हमारी कामुकता का प्रतीक लग रहा था। उसे हमारे साथ हुयी घटना की कोई जानकारी नहीं थी.

इस बार मानस स्वयं सोमिल को लेकर उस होटल में आए थे। मैं और छाया सोमिल के कमरे में बैठकर बातें कर रहे थे। मानस और सोमिल कमरे में आ चुके थे हमने उन्हें बिस्तर पर बैठा दिया और वापस दूसरे कमरे में आ गए। छाया भी हमारे पीछे पीछे चली आई थी सोमिल अपने सुहागरात के दिन की घटनाओं को एक बार फिर होते हुए महसूस कर रहे थे।

मानस और छाया के कमरे में आने के बाद उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया। मैंने भी अपने मिशन पर जाने की तैयारी कर ली थी। जाते समय मैंने मानस और छाया के साथ थोड़ा-थोड़ा पेप्सी पी और सोमिल के वचन की लाज रखने निकल पड़ी । छाया ने मुझे आलिंगन में लेकर मेरी रानी को अपनी हथेलियों से सहलाया और मेरे कान में बोला

"सीमा भाभी अपने मुझे और मानस को अपनाया है अब सोमिल को भी अपना लीजिए वह भी अब अपना ही है."

मैंने उसे गालों पर चुम लिया पर मैंने अपनी शैतानी कर दी थी। मानस की ग्लास में मैंने वियाग्रा की एक गोली डाल दी थी।

मैं भी चाहती थी कि मेरी प्यारी ननद और सहेली छाया रात भर मेरे साथ साथ जागती रहे। आखिर मै उसके वैवाहिक सुख के लिए ही सोमिल के पास जा रही थी....।

मैं मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर आ गयी वह दोनों मुझे सोमिल के कमरे में जाते देख रहे थे और मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

सोमिल के वचन की लाज

(मैं सीमा)

सोमिल बिस्तर पर बैठा इंतजार कर रहा था. मैं मानस और छाया को छोड़कर वापस आई और दरवाजे की सिटकनी लगा दी. वह यह देख कर बहुत खुश हुआ. उसे पूरी उम्मीद हो गई कि आज ही उसके वचन का पालन हो जाएगा. वह उठकर मेरे पास आ गया. मैं जानबूझकर उससे चिपक गई. मैंने उसके राजकुमार को अपने हाथों से सहलाया और बोला

"आज मैं आपकी हूं. अपने वचन का पालन कीजीए."

सोमिल खुश हो गया था. और उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया. मैंने उसके पसंद की हल्के हरे रंग की साड़ी पहनी हुई थी. उसने मुझे माथे पर चुंबन दिया धीरे-धीरे उसके चुंबन मेरे गालों तक पहुंच चुके थे. पर वह मेरे होठों को नहीं चूम रहा था शायद उसे इसकी अहमियत पता थी. मैं अब किसी और की पत्नी थी. कुछ ही देर में मैंने उसके कपड़े खोलने शुरू कर दिए उसकी पजामी निकल कर बाहर आ चुकी थी. और राजकुमार मेरे हाथों में खेल रहा था . मैं अभी तक राजकुमार को देख नहीं रही थी क्योंकि वह मुझे अपने से चिपकाए हुए था और मेरे गालों जो चूमे जा रहा था. राजकुमार को हाथों में लेकर एक अलग प्रकार की अनुभूति हो रही थी. इस राजकुमार को मैंने अपनी किशोरावस्था में दो-तीन वर्ष तक खिलाया था और जाने कितनी बार इसका वीर्य प्रवाह कराया था.

पर आज इसकी कद काठी कुछ अलग ही लग रहा थी. ऐसा लगता था जैसे पिछले दो-तीन वर्षों में सोमिल का राजकुमार और जवान हो गया था. मैं अभी भी उसे देख नहीं पाई थी.

मुझे अपनी पीठ पर सोमिल की उंगलियां महसूस हुयीं. वह मेरे वस्त्रों को खोलने के लिए व्याकुल था पर खोल नहीं रहा था. मैं अब उसकी प्रेमिका नहीं बल्कि सलहज थी. शायद वह शर्मा रहा था. मैंने उसके कान में बोला

"आज कपड़ों में ही अपना वचन पूरा करोगे क्या?" वह हंस पड़ा. उसकी उसकी उंगलियां अब उसकी पसंदीदा साड़ी को मेरे शरीर से अलग कर रही थीं. कुछ ही देर में मैं गहरे हरे रंग का पेटीकोट और सजे धजे ब्लाउज में उसके सामने थी. मेरे सीने पर मंगलसूत्र ठीक वैसा ही था जैसा छाया के पास था. मैंने भी आज अपनी नथ दुबारा पहन ली थी. ब्लाउज हटाते ही उसकी नजर स्तनों पर की गई मेहंदी की सजावट पर गयी. उसे देखकर वह अत्यंत खुश हो गया वह स्तनों को चूमने लगा. उसे इस बात की उम्मीद नहीं थी की मैं इस तरह सज धज कर आउंगी . मेरे पास उसकी खुशी के लिए अभी और भी बहुत कुछ बाकी था.

वह मेरी नाभि को चुमता हुआ वह नीचे आया और मेरे पेटीकोट का नाडा खोल दिया. मेरी जांघों और राजकुमारी के ऊपर की गई मेहंदी से सजावट देख कर बहुत खुशी से झूम उठा. उसने अपना चेहरा मेरी राजकुमारी के पास रख दिया. और उसे बेतहाशा चूमने लगा. वह घुटनों के बल आ चुका था. मैं अभी भी खड़ी थी उसके हाथ मुझे आलिंगन में लिए हुए थे. उसके हाँथ मेरी जाँघों को पकडे हुए थे और उसका गाल मेरी रानी पर सटा था. वह अपने गालो और होंठों से मेरी जाँघों और पेट को चूमे जा रहा था. मैं खुद भी उसके बालों पर उंगलियाँ फिरा रही थी. आज हम दोनों जल्दी में नहीं थे. कुछ देर के बाद वह वापस उठ खड़ा उसकी आँख में खुसी के आंसू थे.

मेरी नजर उसके राजकुमार पर पड़ी वह पहले से ज्यादा बलिष्ठ और मजबूत लग रहा था. उसे देख कर मुझे एक अजीब तरह की सनसनी हुयी. यह मानस से अपेक्षाकृत काफी बड़ा था. मुझे मानस का लिंग लेने की आदत पड़ चुकी थी वह मेरी गहराइयों के हिसाब से उपयुक्त हो गया था परंतु सोमिल के राजकुमार की कद काठी देखकर मैं खुद दंग थी. एक बार के लिए मैं डर गई. कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे सुहागरात में अनुभव किया गया दर्द आज मुझे दोबारा मिलने वाला था. मैं थोड़ा डरी हुई थी. मेरा डर उसने पहचान लिया और मुझे चूम लिया.

कुछ ही देर में हम दोनों बिस्तर पर थे. मैंने बिस्तर पर पड़ा हुआ लाल तकिया अपनी रानी पर रख लिया था. शर्म तो मुझे भी आ रही थी. अपने पति को छोड़कर मैं अपने पुराने प्रेमी के सामने इस तरह सज धज कर नंगी लेटी हुयी थी.

वह मेरी रानी के दर्शन करना चाहता था. उसने कहा

"सीमा मैंने तुम्हारी योनि को याद कर हमेशा से अपना वीर्य बहाया है मैं उसके दर्शन करना चाहता हूँ" वह मासूम सा लग रहा था.

मैंने उसे प्यार से अपने पैरों के बीच ले लिया और अपनी जांघें फैला दी. पर तकिया अपनी जगह पर ही था.

मैंने कहा

"लो कर लो अपने वचन का पालन" यह कहकर मैंने तकिया हटा दिया.

वह ध्यान से मेरी राजकुमारी को देखने लगा. रानी के ऊपर लिखे आई लव यू से उसे बहुत खुशी हुई. उसने उसे चूम लिया. वो अपनी उंगलियों से मेरी रानी के होठों को छू रहा था. उसकी उंगलिया मेरे प्रेम रस से भीग रहीं थीं. वह उसकी खूबसूरती से हतप्रभ था. उसने धीरे से अपना चेहरा मेरी रानी के समीप लाया और उसे चूम लिया.

कुछ ही देर में वह अपनी जानकारी के आधार पर योनि को खुश करने लगा. मुझे उसकी इस अदा पर बहुत प्यार आ रहा था. पहले का अधीर सोमिल अब काफी परिवर्तित हो गया था. पहले वह इन सब गतिविधियों के दौरान खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाता था पर अभी वह बिल्कुल बदला बदला सा लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे उसमें मानस के कुछ गुण आ गए थे. वह मेरी राजकुमारी जो अब रानी बन चुकी थी को प्यार से चूम रहा था था तथा रानी से निकलने वाला प्रेम रस के अद्भुत स्वाद का आनंद भी ले रहा था. कुछ देर बाद मैंने उससे ऊपर की तरफ बुलाया मेरी रानी भी अब अधीर हो चुकी थी. अब तक उसके होंठ मेरे होंठों से नहीं मिले थे. मेरे दोनों स्तनों के बीच मंगलसूत्र देखकर वह थोड़ी देर के लिए रुका पर कुछ सोच कर आगे बढ़ गया. मैं उसकी मनोस्थिति समझ रही थी. मैंने उससे यही कहा आज के दिन में तुम्हारी वधू हूं मुझे ही अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करो. ऐसा कह कर मैंने उसके होठों पर अपना चुंबन जड़ दिया. मुझे उस पर एक बार फिर प्यार आ गया था.

वह अत्यंत खुश हो गया. उसे इस बात की उम्मीद नहीं थी. वह मेरे होंठों को अपने होंठों के अंदर लेकर चूसने लगा. कुछ ही देर में हम दो जिस्म एक जान हो चुके थे. सिर्फ उसके राजकुमार का मेरी रानी में प्रवेश का इंतज़ार था.

बहती नदी अपना रास्ता खुद खोज लेती है. इसी प्रकार राजकुमार ने रानी का मुख खोज लिया था. बहता हुआ प्रेमरस राजकुमार को रानी के मुख तक ले आया था. राजकुमार उस पर बार-बार दस्तक दे रहा था. होठों के चुंबन के दौरान मैंने उसकी पीठ पर अपने हाथों का दबाव बढ़ाया यह एक इशारा था. कुछ ही देर में सोमिल ने अपना राजकुमार मेरी रानी के मुख में उतार दिया. मुझे अपनी रानी में एक अद्भुत कसाव महसूस हो रहा था परंतु प्रेम रस के कारण राजकुमार अंदर घुसता ही चला जा रहा था मैंने अपनी जांघे पूरी तरह फैला लीं थीं ताकि दर्द कम हो. कुछ ही देर में मुझे लगा जैसे मैं भर चुकी हूं. राजकुमार के लिए आगे कोई जगह नहीं बची थी. मैंने अपनी रानी को देखने की कोशिश की परंतु देख ना सकी क्योंकि सोमिल पूरी तरह मेरे था. उसने अपने सीने को मुझ से थोड़ा अलग किया तब जाकर मैं अपनी रानी को देख पायी. राजकुमार अभी भी लगभग 1 इंच के आसपास बाहर ही था. मुझे पता था लिंग के बिना पूरा प्रवेश हुए सोमिल को आनंद नहीं आएगा. मैंने एक बार फिर हिम्मत करके उसे अपनी तरफ खींचा. सोमिल ने अब अपना लिंग पूरी तरह मेरे अंदर उतार दिया था. मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे राजकुमार का मुख मेरे गर्भाशय से टकरा रहा था. मुझे थोड़ा दर्द की अनुभूति भी हुई फिर भी मैंने उसे बर्दाश्त कर लिया. मुझे लगा जैसे मेरी सात नंबर की जूती में कोई आठ नंबर का पैर डाल दिया हो.

धीरे- धीरे सोमिल ने अपने राजकुमार को अंदर बाहर करना शुरू किया. रानी के सारे कष्ट अब खत्म हो गए थे. राजकुमार का आवागमन उसे प्रफुल्लित कर रहा था और मैं आनंद के सागर में डूब रही थी. सोमिल के चेहरे पर तृप्ति का भाव था. उसने अपना वचन पूरा कर लिया था. धीरे- धीरे उसकी गति बढ़ती चली गई. मैंने भी आज उसके इस उद्वेग को रोकने की कोशिश नहीं की. जब सोमिल अपने राजकुमार को पूरी तरह अन्दर कर देता तो मुझे कभी-कभी हल्का दर्द महसूस होता पर उसी समय मेरी भग्नासा पर रगड़ होती थी. यह रगड़ मुझे बहुत पसंद थी. सुख और दुःख साथ साथ मिल रहे थे. सुख ज्यादा था.

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