छाया - भाग 15

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हम दोनों एक दूसरे से काफी देर तक प्यार करते रहे. रानी भी जैसे राजकुमार को हराने में लगी हुई थी. कोई पहले स्खलित नहीं होना चाह रहा था. और अंततः राजकुमार का उछलना बढ़ गया. मैं अपने राजकुमार को पराजित होता नहीं देख सकती थी. सोमिल की सांसे फूलने लगी थीं. मैंने अपने स्तनों की तरफ इशारा किया वह तुरंत ही मेरे स्तन चूसने लगा. स्तनों का चुसना रानी को स्खलित होने पर मजबूर कर दिया.

मैंने खुद ही अपनी रानी को हरा दिया था. मैं स्खलित हो रही थी. रानी के कंपन राजकुमार ने महसूस किए होंगे और वह भी स्खलित होना प्रारंभ हो गया. किसके कंपन ज्यादा थे यह समझ पाना बड़ा कठिन था. जब तक मेरी राजकुमारी स्खलित होती रही उसका राजकुमार उछलता रहा. रानी में उसके उछलने लायक जगह तो नहीं थी फिर भी वह अपनी उछाल का अनुभव मुझे दे रहा था. सोमिल ने अपने सारा वीर्य मेरी रानी के अंदर उड़ेल दिया था. उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वह मुझे गर्भवती कर सकता है. मैंने भी उसे नहीं रोका आखिर मैं विवाहिता थी. वह बहुत खुश दिखाई पड़ रहा था. मैंने उसके होठों पर फिर चुंबन लिया.

कुछ देर बाद वह मुझसे अलग हुआ और मेरे बगल में लेट गया. हम दोनों अभी भी एक दूसरे की बाहों में थे. मुझे मेरी जांघों से सोमिल का वीर्य बहता हुआ महसूस हो रहा था पर मैंने उसे यथास्थिति में छोड़ दिया.

कुछ ही देर में हम दोनों फिर से पुरानी बातें करने लगे. उसने अचानक मुझसे पूछा

"छाया कहाँ है?"

"वह भी संभोग में लिप्त होगी."

"पर किसके साथ?"

"अपने प्यारे मानस भैया के साथ"

उसकी आँखे फटी रह गयीं.

"परेशान मत हो तुम्हारे वचन ने ही उन्हें यह मौका दिया है। छाया अपनी सुहॉगरात के दिन तक कुवारी थी। मैंने तुम्हे ये बात बतायी भी थी" वह पुरानी बाते सोचने लगा.

मैंने उसे छाया और मानस के प्रेम संबंधों के बारे में विस्तार पूर्वक बता दिया. वह बड़े आश्चर्य से यह बात सुन रहा था और अपने मन ही मन उन परिस्थितियों की कल्पना कर रहा था.

यह जानने के बाद की छाया के साथ मानस ने सुहागरात मनाई हैं सोमिल के मन में साहस आ गया और वह एक बार फिर से अपने राजा बन चुके राजकुमार को मेरी रानी में प्रवेश कराने को उत्सुक था. मैं उसका इशारा समझ चुकी थी. इस बार मैंने कमान संभाल रखी थी. सोमिल नीचे लेटा हुआ था और मैं उसके ऊपर थी. मै राजकुमार को मैं अपनी स्वेच्छा से अपने अंदर ले सकती थी. मैंने पिछले कुछ महीनों में मानस के साथ संभोग करते हुए अपनी कमर को हिलाने में दक्षता प्राप्त कर ली थी. सोमिल को आज रात मैं सारे सुख दे देना चाहती थी जिसकी तलाश में वह कई दिनों से भटक रहा था. उसकी रात को यादगार बनाने के लिए मैंने अपनी सारी कुशलता का प्रयोग कर दिया था. हम दोनों एक बार फिर स्खलित हो चुके थे.

तुम्हारा वचन पूरा हो गया है. वह कुछ बोला नहीं सिर्फ मुस्कुराता रहा. हम दोनों ने कुल 5 बार संभोग किया वह खुश था और मैं भी. मैंने उसकी सुहागरात यादगार बना दी थी.

मानस के कमरे में

(मैं छाया)

मुझे अपनी तकदीर पर गर्व हो रहा था. मैंने हमेशा भगवान से यही मांगा था कि मेरा कौमार्य भेदन मानस के हाथों ही हो पिछले रविवार मेरी सुहागरात के दिन मुझे वह सुख प्राप्त हो चुका था. मैं भगवान की शुक्रगुजार थी . मेरा विवाह अवश्य सोमिल से हुआ था पर मेरे मन में मानस की छवि बसी हुई थी. पिछले दिनों जिन परिस्थितियों का निर्माण हुआ था और जिस तरह मानस और सीमा ने उसे संभाला था यह एक करिश्मा ही था.

सीमा के सोमिल के कमरे में चले जाने के बाद मैं और मानस भैया अपने कमरे में आ गए थे। सीमा दीदी ने आज मुझे जबरदस्ती सजवा दिया था। मेरी सुहागरात तो पहले ही पूरी हो गई थी और हमने उसका जी भर कर आनंद भी उठाया था पर सीमा शायद इतने से संतुष्ट नहीं थी।

आज उसे हमें पास लाने का एक और मौका मिल गया था। पिछले छह दिनों में जो मानसिक दंश मैंने झेला था शायद वह उसे मुझे मानस की बाहों में सौंप कर उसे मिटाना चाहती थी।

मैं और मानस भैया बिस्तर पर लेटे सीमा को ही याद कर रहे थे। हमारे संभोग में अब पहले मिलन वाली बात नहीं थी। हम उसके पश्चात भी संभोग कर चुके थे। सीमा की बातें करते करते मानस भैया के लिंग में उत्तेजना बढ़ने लगी।

मानस भैया के साथ संभोग करना हर दिन एक नया अनुभव देता था। वह मेरे कामदेव थे और मैं उनकी रति। आज भी हम दोनों अपने कौशल के साथ पुनः संभोग रत हो गए थे। आज मुझे मानस भैया के लिंग में अद्भुत तनाव महसूस हो रहा था। इतना तनाव मैंने पहली बार महसूस किया था। उनका राजकुमार फूल कर थोड़ा मोटा भी हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर खून का अद्भुत प्रवाह हो रहा था। मेरी रानी इस बदलाव को महसूस कर रही थी।

संभोग करते समय यह पहली बार हुआ था कि मैं स्खलित हो चुकी थी पर राजकुमार का तनाव जस का तस था। वह अपने राजकुमार को लगातार हिलाये जा रहे थे अंत में मुझे हार माननी पड़ी। मैं उनके उत्तेजित लिंग को स्खलित नहीं करा पायी थी।

मैं मानस भैया की बहुत इज्जत करती थी पर कामकला में उनसे हारना मेरी फितरत में नहीं था। हम दोनों ने कामकला एक साथ सीखी थी।

मैं पुनः अपनी थकी हुई रानी को लेकर उनके ऊपर आ गई थी। मैं अपने छोटे अनुभव और कौशल से उन्हें स्खलित करने का प्रयास करने लगी। परंतु जाने आज उसे कौन सी विशेष शक्ति प्राप्त थी। मेरे जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी मैं मानस भैया को स्खलित नही कर पायी। राजकुमार उद्दंड बालक की तरह तन कर खड़ा था मेरी मान मुनहार और आलिंगन का उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा था मैं थक चुक्की थी मेरी रानी स्खलित होकर दूसरी बार पराजित हो चुकी थी।

मानस भैया अपनी विजय पर आनंदित थे वह मुझे बच्चे की तरह प्यार कर रहे थे उनका राजकुमार मेरी हथेलियों के स्पर्श से उछल तो जरूर रहा था पर अपना वीर्य त्याग करने को तैयार नहीं था मैं पशोपेश में थी।

मैंने अब मैंने राजकुमार को अपने होठों के बीच ले लिया और अपनी जीह्वा के प्रहार से उसे उत्तेजित कर दिया उसकी उछाल लगातार बढ़ रही थी। इसी अवस्था में मैंने मानस भैया को संभोग के लिए आमंत्रित कर दिया। मैं पीठ के बल लेट गई और अपनी जांघो को फैला दिया अपनी सुंदर रानी के दोनों होठ मैंने स्वयं ही अपनी उंगलियों से अलग कर दिया। मानस भैया इस कामुक आमंत्रण से बेचैन हो उठे। वह पूरे उद्वेग से अपने राजकुमार को मेरी रानी में प्रवेश करा कर प्रेमयुद्ध में कूद पड़े। उनकी कमर अद्भुत तेजी के साथ हिलने लगी। उनका राजकुमार द्रुतगति से मेरी रानी के अंदर बाहर होने लगा। मेरी रानी पहले ही दो बार स्खलित हो चुकी थी और आकार में फूल गई थी जिससे राजकुमार पर उसका दबाव और भी बढ़ गया था। मुझे मीठा मीठा दर्द का एहसास भी हो रहा था। उस अद्भुत दबाव से अंततः मानस भैया का राजकुमार स्खलित होने के लिए तैयार हो गया था। मानस भैया की आंखें लाल थी उन्होंने जैसे ही मेरे होठों को छू कर मुझे प्यार किया। राजकुमार ने अपना लावा उगल दिया। मैं अपने अंदर एक बार फिर अपने राजकुमार को फूलते और पिचकते हुए महसूस कर रही थी।

मैं थक कर चूर हो चुकी थी। मानस भैया ने मुझे ढेर सारे चुंबन लिए और अपनी गोद में लेकर प्यार करते हुए मुझे सुलाने लगे। वह मुझसे इतना प्यार क्यों करते थे यही सोचते हुए मैं सो गयी।

दोनो सहेलियों का मिलन

[मैं सीमा]

मैंने देखा घड़ी में 7:00 बज चुके थे. हम लोग खुद सुबह 4:30 बजे तक संभोगरत थे. मुझे पूरी उम्मीद थी छाया और मानस भी लगभग ऐसे ही जगे होंगे मेरी वियाग्रा ने छाया को सोने नही दिया होगा।. घर जाना आवश्यक था. मैंने छाया के दरवाजे पर अपनी हथेली से दस्तक दी. वह उठी और पास आकर पूछा कौन है? उसे पूरी उम्मीद थी मैं ही होंउगी क्योंकि हमने पहले ही निश्चित कर लिया था कि सुबह 7:00 बजे उठ जाएंगे. छाया सफेद चादर में लिपटी हुई थी दरवाजा खोलने आई थी. उसे सफेद चादर में लिपटा हुआ देखकर मुझ से रहा न गया मैं अंदर आ गई. बिस्तर पर मानस पेट के बल सोये हुए थे. कमरे में हल्की रोशनी थी. मैंने रूम की एक लाइट जला दी. मैंने छाया की तरफ देखा. वह मुस्कुरा दी. मैंने अपनी नाइटी पहनी हुई थी मैंने छाया की चादर हटाने की कोशिश की. वह शर्मा रही थी पर मैने उसकी चादर हटा दी. वह आकर मुझसे लिपट गई वह पूर्णता नग्न थी. मैंने उससे कहा "मुझे राजकुमारी माफ करना रानी साहिबां के दर्शन करने हैं." वह हंसने लगी. पास पड़ी टेबल पर अपने नितम्बों को सहारा देकर उसने अपनी जांघे फैला दीं. उसकी रानी फूली फूली दिख रही थी. मैंने अपनी हथेली से उसे छूना चाहा पर छाया ने कहा

"दीदी अभी नहीं"

मैं समझ गइ की रानी पर एक साथ हुये प्रहारों ने उसे संवेदनशील बना दिया था. मैंने फिर से उसे चूम लिया. छाया भी कहां मानने वाली थी. उसे मेरी वह बात याद थी कि सोमिल का लिंग मानस से अपेक्षाकृत बड़ा है. उसने मुझसे बिना पूछे मेरी नाइटी उठा दी. और झुककर मेरी रानी साहिबा को देखा. जो स्थिति छाया की थी लगभग वही स्थिति मेरी थी.

हम दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा दिए. एक बार फिर गले लग कर मैंने उसे तुरंत तैयार होने के लिए कहा और वापस अपने कमरे में आ गयी. हम दोनों ननद भाभी ने आज फिर अद्भुत सुख को प्राप्त किया था और आज हम सभी की मनोकामना पूर्ण हो गयी थी.

छाया के हनीमून की तैयारी शुरू हो गयी थी।।।।

छाया का उसके पति से मिलन बाकी था....

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