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(मैं मानस)
सोमिल के भाई संजय की नौकरी पुणे में लग गई थी सोमिल के माता पिता उसके साथ वहीं शिफ्ट हो रहे थे क्योंकि वह वहां अकेले था। उनके बेंगलुरु वाले घर में सिर्फ सोमिल और छाया ही अकेले थे।
संयोगवश कुछ ही दिन बाद शर्मा जी की पोस्टिंग स्पेन में हो गई थी वह 6 महीने के लिए विदेश जा रहे थे मैंने और सीमा ने माया आंटी को प्रोत्साहित कर उन्हें भी शर्मा जी के साथ जाने के लिए मना लिया।
उनकी स्वयं भी इच्छा यही थी पर हमारा समर्थन पाकर वह खुश हो गई। उनके जाने के पश्चात हमारा घर पूरी तरह से खाली था। सीमा ने छाया और सोमिल से बात की दोनों ने सहर्ष हमारे घर में रहना स्वीकार कर लिया।
कुछ ही दिनों में सोमिल और छाया हमारे घर आ चुके थे. हमने उनके स्वागत की भव्य तैयारियां की थी.
छाया के आने के बाद से हमारे घर के दोनों फ्लैट जो आपस मे जुड़े हुए थे युगल दंपतियों से सजे हुए थे. हमारे बीच का दरवाजा खुला था और यही हमारे रिश्ते में था. हमारे शयनकक्ष एक दूसरे के लिए खुले थे सीमा और छाया फिर से स्वतंत्र हो गयीं थी.
हमारे जीवन का दूसरा हनीमून शुरु हो चुका था और इसका आनंद अलग ही था. हम साथ में खाना बनाते खाते और अपने अपने कमरों में चले जाते कौन किसके साथ जा रहा था इसमें हमारी ओर से कोई नियम नहीं था. हमने छाया को इस व्यवस्था का प्रभारी बना रखा था. छाया जिधर जाती सीमा तुरंत ही दूसरी तरफ मुड़ जाती.
कभी-कभी छाया सीमा को लेकर दूसरे कमरे में चली जाती वो दोनों आपस मे हीं मस्त हो जातीं और हम दोनों भजन करते हुए सो जाते.
पर अगले ही दिन हमें दोनों अप्सराओं के दर्शन एक साथ होते. यह हमारे लिए पिछली रात में मिले एकांत का उपहार होता. जीवन में मिली इन खुशियों के लिए हम भगवान के प्रति कृतज्ञ थे.
इन दोनों अप्सराओं ने हर परिस्थिति में हमारा साथ दिया था. दोनों हीं कामकला में पारंगत हो गयीं थीं घर में उपलब्ध जिम में दोनों जी भर कर एक्सरसाइज करतीं और अपने शरीर को स्वस्थ रखतीं थीं.
सीमा अभी भी शारीरिक बनावट में छाया से आगे थी उसके शरीर में गजब का कसाव था. छाया ने भी एक्सरसाइज कर अपने शरीर में कुछ कसाव लाया था पर वह अत्यंत कोमल थी. फूल हमेशा फूल ही रहता है. इतने वर्षों में उसमें सिर्फ एक परिवर्तन आया था वह कली से फूल बन चुकी थी और पिछले कुछ महीनों से संभोग का नया आनंद लेते लेते हुए उसके चेहरे पर एक अलग सा निखार आ गया था. अब वह कामुक युवती बन चुकी थी. पर मेरे लिए वह अभी भी मासूम ही थी.
अकेली छाया और हम दो
एक बार सीमा अपने ऑफिस के काम से दिल्ली गई हुई थी. उस रात हम तीनों ही घर पर थे. छाया ने हम दोनों के लिए खाना बनाया और हम तीनों ने साथ में खाना खाया. खाना खाने के पश्चात मैं अपने रूम की तरफ चला गया. छाया मुझे जाते हुए देख रही थी. मैं स्थिति की गंभीरता को समझता था. आज छाया के लिए गंभीर घड़ी थी उसकी सहेली उसे अकेला छोड़ कर चली गई थी. और आज उसके लिए अजीबोगरीब स्थिति हो गई थी. वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि कैसे मेरा और सोमिल का ख्याल रख पाएगी. पर छाया तो छाया थी चतुर, निपुण, और विषम स्थितियों में खुशियां ढूंढ लाना उसका स्वभाव था. वह आज की स्थिति में भी कुछ नया करने वाली थी.
[मैं छाया]
मुझे सोमिल और मानस दोनों की आंखों में वासना दिखाई दी थी. कल छुट्टी होने की वजह से वह दोनों संभोग के लिए प्रतीक्षारत थे. मैं यह बात समझ गई थी पर दोनों में से किसी ने मुझसे कुछ नहीं कहा था. उन्होंने यह मुझ पर छोड़ दिया था.
आज तक सोमिल और मानस ने एक साथ कभी सेक्स नहीं किया था. मैंने और सीमा ने कई बार इन दोनों के साथ यह सुख लिया था. आज मेरे पास मौका था इन दोनों को एक साथ लाने का. पर मैं बिना सीमा दीदी के यह नहीं करना चाह रही थी.
खाना खाते समय मैंने प्रश्न किया
"मुझे अपने प्रोजेक्ट में मदद चाहिए मेरी मदद कौन करेगा?" यह खुला प्रश्न था. हम चारों एक ही प्रोफेशन से संबंधित थे तथा एक दूसरे के कार्य के बारे में भली-भांति अवगत थे. सोमिल तो मेरे बॉस ही थे. प्रोजेक्ट में उनसे ज्यादा मदद कौन कर पाता . वह दोनों चुप थे और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे. मैंने मुस्कुराते हुए फिर कहां
"बताइए ना"
मानस ने कहा
"अरे जिसने तुम्हें प्रोजेक्ट दिया है वही तुम्हारी मदद करेगा" दोनों हंसने लगे मैं भी मुस्कुरा रही थी.
"पर कुछ टिप्स तो आपको भी देनी पड़ेगी अपने हमेशा मेरी हेल्प की है"
वो दोनों अपने अपने कमरे में चले गए.
मैंने सुर्ख लाल रंग की सामने से खुलने वाली नाइटी पहनी हुई थी. कुछ ही देर में मैंने सोमिल के कमरे में उसे दूध का गिलास दिया और दूसरा गिलास लेकर मानस के कमरे में जाने लगी. सोमिल ने मुझसे कहा " जल्दी आना "
मैंने उन्हे पलट कर देखा और मुस्कुरा दी
"थोड़ा इंतजार कर लीजिएगा पूरा प्रोजेक्ट आपको ही बनाना है. मैं तो सिर्फ टिप्स लेकर आतीं हूँ." सोमिल मुस्कुरा दिए थे.
मैं बाहर आ गयी. मानस मेरा इंतजार कर रहे थे मेरे पहुंचते ही उन्होंने मुझे अपने आगोश में ले लिया मैंने उनसे कहा
"पहले दूध तो पी लीजिए ठंडा हो जाएगा" उन्होंने गिलास का दूध एक झटके में खत्म कर दिया और अधीर होकर मुझे बेतहाशा चूमने लगे. उन्हें शायद इस बात का अंदाजा था कि सोमिल मेरा इंतजार कर रहे थे. कुछ ही देर में मैं उनके साथ निर्वस्त्र होकर प्रेमालाप कर रही थी. सीमा की अनुपस्थिति में यह एक अलग आनंद दे रहा था ऐसा लग रहा था जैसे मैं सोमिल और सीमा दोनों से नजरे चुरा कर यह कार्य कर रही हूँ. जल्दी के लिए मैंने खुद को डौगी स्टाइल में कर दिया मानस ने मुझे कसकर चो....... और हम दोनों ने एक दूसरों को अपने प्रेम रस से भिगो दिया. मानस ने स्खलन के समय मुझे सीधा कर दिया और अपना सारा वीर्य मेरे स्तनों, गालों और चेहरे पर गिरा दिया मैंने अपनी नाइटी पहनते समय यथासंभव उसे पोछने की कोशिश की पर उनका रंग मेरी आत्मा और शरीर दोनों पर पड़ चुका था. वह पोछने योग्य नहीं था. मैं अपनी नाइटी पहन कर वापस सोमिल के पास आ गई. सोमिल ने मुझे देखते ही बाहों में भर लिया इससे पहले कि वह आगे बढ़ते मैंने उससे हाथ छुड़ाते हुए कहा
"बस मुझे 2 मिनट दीजिए मैं आती हूं" वह जबरदस्ती करने लगे.
मैं उन्हें यह बता नहीं सकती थी कि मैं मानस ने प्रेम रस में भीगी हुई हूँ . पर अंततः मुझे उन्हें बताना पड़ा कि मैंने अभी सीमा दीदी की भूमिका अदा कर दी है मुझे कुछ समय दीजिए मैं आपकी पत्नी बन कर आती हूं. इतना कहकर मैं बाथरूम में भाग गई. सोमिल मुस्कुरा रहे थे. कुछ ही देर में मैं वापस प्रस्तुत थी. मुझे अपने मन ही मन में एक अजीब ख्याल आ रहा था. जैसे मैं दो पुरुषों के साथ संभोग कर रही हूँ.
कभी कभी मेरे मन में वेश्यावृत्ति जैसी भावना आ रही थी पर मैं अपने आप को समझा रही थी. मानस मेरे सर्वकालिक प्रिय मित्र थे और सोमिल मेरे पति मुझे इसमें कोई अपराध बोध नहीं था. पर वेश्यावृत्ति की बात से मेरे मन में एक अलग किस्म की कामुकता जगी. सोमिल के साथ संभोग करते समय मेरे मन में वेश्या वाली बात दिमाग में घूम रही थी. मैंने अपने आप को उसकी जगह रखकर सोमिल के साथ भरपूर संभोग किया. वह मेरे इस उत्साह को देखकर दंग थे. कुछ ही देर पहले मैंने मानस के साथ संभोग किया था और बस 15 मिनट के बाद मैं दुबारा संभोग के लिए प्रस्तुत थी. मेरी रानी तुरंत स्खलित होने के लिए तैयार नहीं थी. मैं यह जानती थी पर मैंने सोमिल की खुशी के लिए अपनी राजकुमारी को सोमिल के राजकुमार पर जी भर कर रगड़ा. सोमिल इस उत्साह को देखकर दंग थे अंततः उन्हें स्खलित होना ही पड़ा. वह राजकुमारी के कंपन महसूस न कर पाए पर मेरे मन में संतुष्टि के भाव थे. मेरी राजकुमारी को जो तृप्ति कुछ समय पहले मानस से मिली थी वह उसमें ही खुश थी. मैं और सोमिल नग्न अवस्था में ऑफिस का प्रोजेक्ट बनाने लगे। प्रोजेक्ट बनते बनते मैं एक बार फिर स्खलित हो चुकी थी और सोमिल के वीर्य से भीग भी गयी थी.
छाया साउथ अफ्रीका में
(मैं मानस)
मुझे साउथ अफ्रीका जाना था वहां पर मेरा तीन दिन का सेमिनार था मैंने जब यह बात छाया को बताई वह बहुत खुश हुई उसने कहा
"मैं भी आपके साथ साउथ अफ्रीका जाना चाहती हूँ। मैंने वहां के बारे में बहुत सुना था"
"यह कैसे संभव होगा? सोमिल से बात कौन करेगा?
"वह मुस्कुराई और बोली सीमा भाभी है ना मैं उनसे बात करती हूं. वह कुछ ना कुछ रास्ता निकाल लेंगीं। आज तक मेरी इन इच्छाओं की पूर्ति उन्होंने ही की है।"
छाया और सीमा एक दूसरे को पूरी तरह समझती थीं। मैंने यह निर्णय उन दोनों पर ही छोड़ दिया था।
संजय के लिए लड़की देखना.
(मैं सोमिल)
संजय (मेरे भाई)की नौकरी लगने के पश्चात घर में उसकी शादी की तैयारी शुरू हो गई. संजय भी शादी के लिए अपनी रजामंदी दे चुका था.
हम लोगों ने उससे उसके प्रेम संबंधों के बारे में जानना चाहा पर उसने इस बात से साफ इंकार कर दिया था उसमें लड़की खोजने की सारी जिम्मेदारी हम लोगों पर ही छोड़ दी थी. रिश्तेदारों में यह बात तेजी से फैल रही थी.
संजय की नौकरी अच्छी थी इसलिए आने वाले रिश्तो में कोई कमी न थी. कुछ ही महीनों में हमारे घर कई सारी लड़कियों के फोटो और बायोडाटा आना शुरू हो गए. हम सब शाम को अक्सर होने वाली हमारी बहू के बारे में बातें करते छाया और मेरी मां दोनों ही इस बात से उत्साहित रहती कि घर में एक नया मेहमान आने वाला है. घर में खुशियों का माहौल था.
हमने दो-तीन लड़कियां बेंगलुरु में ही देखी पर्व किसी न किसी वजह से हमें पसंद नहीं आई. अंततः एक खूबसूरत लड़की पर हम सभी को पसंद आ गयी. वह लड़की बहुत ही सुंदर थी. उसकी आंखों में चमक और कद काठी बेहद आकर्षक थी.
लड़की की फोटो साड़ी में ही हमारे पास आई थी उसे देखकर ऐसा महसूस हुआ जैसे वह निहायत ही संस्कारी थी. उसके बाल जरूर इस बात को नकारते थे क्योंकि बालों का डिजाइन साड़ी से पूरी तरह मैच नहीं खा रहा था.
छाया ने ही यह बात हम सबके सामने रखी पर उसकी सुंदर कद काठी के सामने हम सब ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया. संजय तो बाग बाग़ था. उसे स्वयं के बलबूते ऐसी सुंदर लड़की कभी नहीं मिलती. भला हो उसकि नौकरी का जिसके कारण उसका विवाह हो रहा था. लड़की का नाम उर्वशी था उसके माता-पिता नागपुर में रहते थे. छाया और मुझे लड़की पसंद करने का दायित्व सौंपा गया. मैं और छाया नागपुर के लिए निकल पड़े थे।
दोपहर तक हम उर्वशी के घर पहुंच गए थे.। हमारा स्वागत सत्कार किया गया. छाया घर की साज-सज्जा से प्रभावित थी. वह लोग ज्यादा पैसे वाले तो नहीं थे पर ऐसा प्रतीत होता था जैसे उनमें संस्कार कूट-कूट कर भरे गए हैं. उर्वशी के माता पिता बेहद शालीनता से पेश आ रहे थे. उनकी छोटी बेटी मेनका बड़ी बातूनी थी. उर्वशी के परिवार वाले छाया को कौतूहल भरी निगाहों से देख रहे थे इतनी सुंदर अप्सरा शायद उन्होंने पहली बार जीवंत देखी थी.
तभी हाथ में प्लेट लिए हुए उर्वशी ने कमरे में प्रवेश किया साड़ी में उर्वशी की कद काठी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. वह एक उभरती हुई नव यौवना थी. बायोडाटा में उसकी उम्र हमें 22 वर्ष बताई गई थी पर उसे देखकर लगता था जैसे वह अभी-अभी मतदान करने के लायक हुई थी (मेरा आशय 18 वर्ष से है....) छाया मुझे उर्वशी को इस तरह एकटक निहारते हुए देख रही थी उर्वशी हमारे आयी उसने मेरे पैर छुए और छाया के भी.
मैंने उर्वशी का चेहरा देख लिया था वह बेहद खूबसूरत थी ठीक उर्वशी अप्सरा जैसी. छाया के खूबसूरती के आगे तो कोई टिक नहीं सकता था पर उर्वशी कम खूबसूरत नहीं थी.
छाया के सौंदर्य को उर्वशी के माता-पिता अभी भी निहार रहे थे. उनकी माताजी से बर्दाश्त ना हुआ उन्होंने छाया से कहा "हमें आपके बारे में बताया गया था, पर आप उससे भी ज्यादा खूबसूरत हैं. हमारी उर्वशी भी खूबसूरत है पर आप के सानिध्य में रहकर वह मन और विचारों से भी खूबसूरत हो जाएगी ऐसा मेरा विश्वास है."
मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था छाया अद्भुत थी. उस जैसा होना हर नारी के बस का नहीं था वो अपने में सादगी तो ला सकती थी पर छाया जैसी कामुकता असंभव थीं. छाया की कामुकता अद्भुत और अद्वितीय थी.
उर्वशी को नापसंद करने का कोई कारण नहीं था. सुंदरता उसमें थी थी घर परिवार भी अच्छा लग रहा था. उर्वशी मुंबई में पढ़ाई कर रही थी अगले 6 महीनों में उर्वशी और संजय का विवाह किया जा सकता था. मैंने और छाया ने अपनी रजामंदी दे दी. छाया ने नववधू के लिए एक पेंडेंट सेट लाया हुआ था जिसे हम दोनों ने साथ मिलकर खरीदा था. उस पर चढ़ा हुआ लाल नग मुझे बहुत पसंद था मैंने छाया से उसे पहनने के लिए कहा वह बोली यह मेरी देवरानी के लिए है यह वही पहनेगी. वह पेंडेंट सेट मेरी आंखों में बस गया था।
(मै मानस)
मेरे साउथ अफ्रीका जाने के दिन करीब आ रहे थे. छाया का जाना अभी भी अधर में था.
एक दिन सुबह नाश्ते की टेबल पर हम चारों बैठे हुए थे सीमा आज कुछ थकी थकी लग रही थी। वह धीरे धीरे चल रही थी मुझे यह तो नहीं पता कि उसके साथ क्या हुआ पर वह पिछली रात मेरे पास नहीं थी पिछली रात मैं और छाया एक दूसरे के आगोश में थे और सीमा सोमिल के कमरे में।
छाया सीमा की तारीफ करते हुए नहीं थक रही थी कुछ राज ऐसा था जो सिर्फ छाया और सीमा ही जानती थी मैं सीमा को लेकर थोड़ा दुखी था ऐसा क्या हुआ जिससे मेरी सीमा आज थोड़ा सुस्त लग रही थी।
सीमा ने कहा
"आपको साउथ अफ्रीका कब जाना है मैंने कहा 25 दिनों बाद"
"क्यों न आप छाया को भी अपने साथ ले जाएं उसे साउथ अफ्रीका देखने की बहुत इच्छा है"
उसने सोमिल की तरफ देख कर कहा
"नंदोई जी मेरी ननद को 1 हफ्ते के लिए छोड़ दीजिए मैं आपकी सेवा करती रहूंगी इतना कहकर सीमा हस पड़ी"
सोमिल ने हंसते हुए कहा
"सलहज साहिबा आपके हुकुम को टाल पाने की मेरी हिम्मत नहीं है. भेज दीजिए अपनी ननद रानी को"
छाया के चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ गई. वह सिर झुकाए हुए मुस्कुरा रही थी. मुझे पता था उसे मेरे साथ साउथ अफ्रीका में वक्त बिताना अच्छा लगेगा.
मेरा और छाया का बहुप्रतीक्षित हनीमून शुरू होने वाला था. सीमा और छाया ने हम दोनों को खुश करने के लिए तरह-तरह की शॉपिंग की उन दोनों के लिए ही अपने अपने प्रेमियों के साथ वक्त बिताने का यह अनोखा और अनूठा समय मिला था. निर्धारित समय पर मैं और छाया साउथ अफ्रीका के लिए उड़ चले.
छाया ने मुझे रास्ते में बताया की सीमा भाभी ने उस दिन अपनी ननद के लिए अपनी दासी (योनि के अलावा दूसरा द्वार) सोमिल को समर्पित कर दी थी. अब मुझे सीमा की सुस्ती का कारण मालूम चल गया था वह सच में हमारा ख्याल रखती थी.
साउथ अफ्रीका में बीच पर पहला दिन
एयरपोर्ट से होटल जाते समय केपटाउन शहर का खूबसूरत नजारा देखकर छाया मंत्रमुग्ध हो गई थी. वह बार-बार मुझसे लिपटती मैं उसकी जांघों पर हाथ रखकर उसे सहलाता और उसे प्यार कर इस खूबसूरत लम्हे को यादगार बनाता। हम दोनों भगवान के प्रति कृतज्ञ थे कि हमारे जीवन में यह बहुप्रतीक्षित दिन आया था।
जब मैं और छाया विवाह पूर्व अपने ख्वाबों में खोये हुए अपने पहले हनीमून के बारे में सोचते तो छाया हमेशा से समुद्री बीचों की कल्पना करती।
मैं सीमा के साथ हनीमून मनाते समय गोवा गया था। जब जब मैं समुद्र की लहरों को देखता मुझे बार-बार छाया का ही ख्याल आता था पर मेरी प्यारी छाया मेरे साथ थी।
छाया अभी भी खूबसूरत शहर को निहार रही थी। थकावट की वजह से मेरी आंख लग गई। टायरों के चीखने की आवाज से मेरी नींद खुली मैंने देखा होटल आ चुका था।हम दोनों रिसेप्शन की तरफ बढ़ चले अटेंडेंट हमारा लगेज लेकर पीछे-पीछे आ रहा था।
यह होटल एक पांच सितारा होटल था जिसमें एक प्राइवेट बीच भी था। मैंने यह होटल खास इसी मकसद के लिए चुना था जिससे हम बीच का आनंद बिना किसी थकावट के उठा पाऐं। मेरा सेमिनार स्थल भी इस होटल के बहुत ही करीब था।
मैं और छाया दोपहर में आराम करने के पश्चात शाम को बीच पर जाने की तैयारी करने लगे। मेरी प्यारी पत्नी सीमा ने 2- 3 सुंदर बिकनी ( जो वह खासकर छाया के लिए लाई थी) मेरे ब्रीफकेस में डाल दी थी. मैंने वह बिकनी छाया को दिखाई। वो शर्मा गयी पर मन ही मन खुश थी।
"काश सीमा दीदी भी यहां पर होतीं" छाया ने मुस्कुराते हुए कहा.
मैंने उसे बिकनी पहनने और उसके ऊपर एक गाउन डालने के लिए कहा जिसे वह आवश्यकतानुसार बीच पर उतार सकती थी उसने शर्माते हुए थोड़ा प्रतिरोध किया पर मान गई। वह इतनी बार मुझसे चु*द चुकी थी पर कामुक परिस्थितियों में अभी भी उसके गाल लाल हो जाते।
कुछ ही देर में हम बीच पर थे. होटल का यह बीच बहुत ही खूबसूरत था। संगमरमर सी चमकती रेत और आकाश की नीलिमा लिए हुए समुंद्र का स्वच्छ जल और किनारों पर प्रकृति द्वारा सजाई गई हरियाली इस बीच को स्वर्गीय रूप दे रहे थे। स्वच्छ रेत पर कई सारे नवयुवक एवं सुंदर नवयुवतियां अर्धनग्न अवस्था में टहल रहे थे। अद्भुत कामुक माहौल था। वहां उपस्थित अधिकतर लड़कियां और युवतियां बिकनी में ही थे। कुछ ही औरतें विशेष प्रकार का स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहने हुई थी।
मैंने छाया को उत्साहित किया तो उसने अपना गाउन उतार दिया और बिकनी में समुद्र की तरफ बढ़ चली। छाया को आज मैं पहली बार बिकनी में देख रहा था। मैं ही क्या वहां पर उपस्थित सभी स्त्री पुरुष मेरी छाया की इस नग्नता का आनंद ले रहे थे। जिस किसी की भी नजर छाया के खूबसूरत बदन और उस लाल रंग की प्रिंटेड बिकनी पर पड़ती वह एक नजर उसे जी भर कर देखता और अपने मन में उपजी कामुकता को लेकर अपनी प्रियतमा के साथ आगे बढ़ जाता। मेरी छाया एक खूबसूरत पोर्न स्टार की तरह समुद्र की तरफ बढ़ रही थी। पीछे से उसके गोल नितंब और गोरी पीठ अत्यंत उसे और मादक बना रहे थे।
बीच पर टहलते हुए भारतीय मूल के किशोर लड़के आपस मे ...
"अबे देख क्या गच्च माल है"
"साली के चूतड़ कितने गोल हैं। जाने किसके हिस्से में आयी है"
मुझे सिर्फ साली सब्द पर क्रोध आया जो उनकी विकृत मानसिकता के कारण था बाकी हो उनके अंदर की आवाज थी जो सच ही था।
ऐसा लगता था छाया को भगवान ने एक अद्भुत और इकलौते सांचे में ढाला था। कुछ ही देर में मैं और छाया समुद्र की लहरों से अठखेलियां कर रहे थे। छाया को स्विमिंग आती थी पर उसने समुंद्र का इस तरह आनंद नहीं लिया था। वह बेहद उत्साहित होकर समंदर की लहरों से टकराकर बार-बार मेरे ऊपर गिरती और मैं उसे संभाल लेता। इस दौरान मैं भी अपने हिस्से की कामुकता का आनंद ले रहा था। जब वह मेरे आगोश में आती उसके नितंब और स्तन मेरे हाथों से बच नहीं पाते कभी-कभी उसकी रानी भी मेरी उंगलियों का स्पर्श पाती। हम दोनों अपनी उत्तेजना कायम रखते हुए समुद्र का आनंद ले रहे थे। मेरा राजकुमार भी इस दौरान लगातार तन कर छाया के हाथों की प्रतीक्षा कर रहा था। वह अपना धर्म बीच-बीच में निभा रही थी। उसे भी राजकुमार को प्यार करना अच्छा लगता था।
अचानक मेरी वाइन पीने की इच्छा हुई मैं छाया को लेकर बीच के किनारे एक रेस्टोरेंट में गया। रेस्टोरेंट्स बहुत खूबसूरत था इसमें 60 -70 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। छाया खूबसूरत लाल बिकनी में अपने अद्भुत यौवन को संजोए हुए मेरे साथ रेस्टोरेंट में आ चुकी थी। मैंने छाया की पसंद की रेड वाइन ऑर्डर की। मैंने यह बात नोटिस की कि इस होटल में काम करने वाले सभी युवक नीग्रो प्रजाति के थे और उनका शारीरिक सौष्ठव दर्शनीय था उनकी कद काठी भी आश्चर्यजनक थी वहां पर कुछ लड़कियां भी कार्यरत वह भी उसी प्रजाति की थी उनकी शारीरिक संरचना भी बेहद खूबसूरत थी।
रेस्टोरेंट अद्भुत था कई देशों से आए हुए खूबसूरत जोड़े इस रेस्टोरेंट की शोभा बढ़ा रहे थे। वेटर के रूप में उपस्थित नीग्रो प्रजाति के युवक और युवतियां अपनी शारीरिक संरचना से सभी का मन मोह रहे थे। होटल के इन सभी कर्मचारियों के पीठ पर एक नंबर पड़ा हुआ था मुझे लगता है इन नंबरों से इन्हें पहचाना जा सकता था।
छाया की रेड वाइन आ चुकी थी लाल बिकनी पहनी हुई छाया के हाथों में रेड वाइन बेहद खूबसूरत लग रही थी। वहां उपस्थित सभी महिलाओं और युवतियों में छाया सबसे सुंदर और सुडोल थी। वहां से गुजरने वाले सभी स्त्री और पुरुष हमें एक बार अवश्य देख रहे थे उन्हें लग रहा था जैसे बॉलीवुड से कोई हीरो हीरोइन यहां पर छुट्टियां मनाने आ गए थे।
रेस्टोरेंट के काउंटर पर बैठा हुआ 20- 22 वर्ष का नवयुवक छाया को लगातार घूरे जा रहा था। उसकी आंखों में छाया के प्रति एक अजीब किस्म की हवस दिखाई दे रही थी। छाया की पीठ उस आदमी की तरह थी निश्चय ही वह छाया के गोरे नितंबों को और गोरी पीठ को घूर रहा था। मैं उसे देख कर एक बार क्रोधित भी हुआ पर उसकी इस हरकत में उसकी गलती कम ही थी। छाया इतनी कामुक लग रही थी कि जो भी पुरुष उसे नहीं देखता मैं उसकी मर्दानगी पर अवश्य प्रश्नचिन्ह लगा देता। उस समय वह सभी समीपवर्ती राजकुमारों की प्रियतमा थी।
मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया परंतु उसने अपनी आंखें छाया से नहीं हटायीं। रेड वाइन खत्म हो चुकी थी मैंने बिल पे करने के लिए छाया को ही रिसेप्शन पर जाने के लिए कहा ऐसा कहकर मैं उस व्यक्ति की उत्तेजना को और चरम पर ले जाना चाहता था। वह निश्चय ही अपनी तरफ आती हुई छाया के स्तनों को भी देखता और छाया के कोमल मुख मंडल को भी। वह छाया की रानी को तो वह नहीं देख पाता पर जांघों के बीच से उसके आकार की कल्पना वह अवश्य कर सकता था। रानी के फूले हुए होंठ अपनी मादकता का एहसास बिकिनी के अंदर से भी करा रहे थे।
छाया अपनी पूर्ण मादकता के साथ उसकी तरफ बढ़ रही थी। छाया वहां पहुंची उसने बिल दिया और वह व्यक्ति उसके स्तनों पर लगातार अपनी निगाहें गड़ाए रखा।
मुझे लगता है यदि वेद व्यास को जो शक्तियां महाभारत के समय प्राप्त थी यह दिव्य शक्ति उस व्यक्ति के पास होती तो मेरी छाया इतनी देर में 2-3 पुत्रों की मां बन गई होती। उसकी निगाहों में इतनी वासना थी।
छाया ने भी उसकी कामुक दृष्टि अवश्य महसूस की होगी। छाया बहुत ही समझदार थी वह अपने आसपास पनप रही कामुकता को पहचानती थी तथा अपनी इच्छा अनुसार उसे बढ़ावा देती या रोक देती थी।
हम दोनों वापस बीच पर आ गए। कुछ ही देर में हम एक बार फिर समुंद्र के अंदर अठखेलियां कर रहे थे। रेड वाइन के नशे में हमारी कामुकता और बढ़ चली थी। हम बीच के उस हिस्से में आ गए जहां पर बहुत ही कम लोग थे। मैं छाया को अब उत्तेजक तरीके से छू रहा था। मैंने छाया की रानी को अपनी उंगलियों से छुआ। उसका प्रेम रस रिस रिस कर समुद्र में बह रहा था परंतु रानी का गीलापन मेरी उंगलियों ने पहचान लिया। मैंने अपने राजकुमार को वही रानी में प्रवेश कराने की कोशिश की। मुझे इसमें कुछ सफलता तो मिली पर पूरी तरह से नहीं समुंदर का साफ पानी हमारे संभोग दृश्य को छुपा पाने में नाकाम हो रहा था मैंने और प्रयास ना करते हुए उसे बाहर निकाल लिया और अपनी उंगलियों से ही उसकी रानी को स्खलित करने का प्रयास करने लगा। मैं और छाया कुछ ही देर के प्रयासों में स्खलित हो गए। मेरा वीर्य समंदर की विशाल लहरों में विलुप्त हो गया छाया मेरे होठों का चुंबन लेते हुए समंदर के नमकीन पानी का भी रस ले रही थी। शाम गहरा रही थी। हम धीरे-धीरे बीच की तरफ आ रहे थे। जैसे ही छाया की कमर पानी से बाहर आयी मैंने देखा उसकी बिकिनी का नीचे वाला भाग गायब था। मैंने छाया का ध्यान उस तरफ दिलाया तो वह वापस पानी में चली गई। मुझे लगता है हमारी आपस की छेड़खानी में उसके पैरों से फिसलते हुए वह समुद्र में विलीन हो गई थी।
छाया अब नीचे से पूरी तरह नग्न थी। इसी अवस्था में उसे बीच के किनारे तक जाना था। अभी भी बीच पर पर्याप्त रोशनी थी इस तरह सरेआम नग्न होकर बीच पर पहुंचना कठिन था। मैं उसे छोड़कर वापस बीच पर आया उसका गांउन लेकर वापस समुंद्र में आ गया। इस दौरान छाया नग्न होकर ही समुद्र के अंदर खड़ी थी। समुद्र के साफ पानी से उसकी नग्नता झलक रही थी। आसपास के युवक और युवतियां छाया को देख रहे थे छाया शर्म से पानी पानी हुए अपनी गर्दन झुकाए मेरी प्रतीक्षा कर रही थी।
उसने गाउन पहना और हम धीरे-धीरे होटल की तरफ पर चल पड़े। अपनी नग्नता का छाया ने भी उतना ही आनंद लिया था जितना उसके आस पड़ोस के युवक-युवतियों उसे देख कर लिया था। छाया अनचाहे में भी कामुकता की ऐसी मिसाल पेश करती थी जो उसके आस पास के पुरुषों में उत्तेजना स्वाभाविक रूप से फैला देती थी।