छाया - भाग 19

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मेरी सहपाठी राधिका से मुलाकात

(मैं मानस)

शाम को होटल में गाला डिनर का आयोजन था सभी प्रेमी युगल वहां पर एक साथ खाने और नृत्य का आनंद ले रहे थे। मैं और छाया भी अपने कमरे से निकलकर गाला डिनर की तरफ चल पड़े। रास्ते में कई युवतियां धीरे धीरे चलती हुई दिखाई दे रही थी ऐसा प्रतीत होता था जैसे उनकी कमर में लचक आ गई हो। छाया ने मुझसे पूछा

"यह कुछ औरतें ऐसे क्यों चल रही हैं?

मैंने मजाक किया

"हो सकता है इन्होंने संभोग सुख का ज्यादा आनंद ले लिया हो या फिर अपनी दासी अपने पुरुष मित्रों को समर्पित की हो".

छाया मुस्कुराते हुए बोली..

"आप भी ना..."

नीचे पहुंचते ही मेरी तरफ एक जाना पहचाना चेहरा आता हुआ दिखाई पड़ा. पास आने पर मैं आश्चर्यचकित था

"राधिका तुम यहां?"

"क्यों मैं यहां नहीं आ सकती"

"मेरा यह मतलब नहीं था"

"तुम भी उसी सेमिनार में आए हो क्या?

"हां सही पहचाना"

राधिका ने इशारे से छाया के बारे में जानना चाहा मेरी समझदार छाया ने तुरंत ही जवाब दिया

"जी मैं इनकी जूनियर हूँ"

राधिका छाया के इस जवाब से संतुष्ट ना हुई। छाया की वेशभूषा एक जूनियर की ना होकर एक प्रेमिका की थी। वह यह बात समझ रही थी राधिका ने इस बारे में और बात ना करते हुए मुझसे कहा

"कल सेमिनार में मिलते हैं तब तक अपनी इस खूबसूरत जूनियर का साथ दीजिए"

छाया मुस्कुरा रही थी. छाया ने अपनी सुंदरता से अपना एक और मुरीद बना लिया था.

मैं राधिका को इस तरह अचानक देखकर आश्चर्यचकित था वह अब पूर्ण युवती बन चुकी थी। मुझे लगता था उसका विवाह हो चुका था। यद्यपि मैंने उसके माथे पर सिंदूर नहीं देखा था परंतु उसके दोनों स्तन चीख चीख कर यह कह रहे थे कि उन्हें पुरुष हथेलियों का मसाज मिल चुका है।

राधिका आज भी उतनी ही सुंदर लग रही थी। यह वही राधिका थी जिसने कॉलेज के शुरुआती दिनों में मेरे हस्तमैथुन की मुख्य नायिका का किरदार निभाया था। अपने कालेज के प्रथम वर्ष में मैंने इसी सुकुमारी को याद कर अक्सर अपना वीर्य प्रवाह कराया था। मैं और राधिका अपना कई सारा वक्त साथ गुजारते पर वह सिर्फ पढ़ाई में ही ध्यान केंद्रित की रहती। पुरुष संबंधों और कामेच्छा से जैसे उसका कोई वास्ता न था। मुझे कभी-कभी लगता जैसे उसकी राजकुमारी संवेदनहीन थी। उसे कभी भी उत्तेजना नहीं होती परंतु उसकी स्त्री सुलभ कोमलता और उभरता यौवन मेरी उत्तेजना के लिए पर्याप्त थे।

मैंने उसके साथ बिताए पलों में उसे न जाने मन ही मन मे कितनी बार नग्न किया था और बिना उसकी योनि की स्पस्ट परिकल्पना के कई बार संभोग भी। उस समय उसके शरीर की अस्पष्ट बनावट भी मुझे उतना ही उत्तेजित करती थी जितना आज साक्षात छाया की कामुकता का दर्शन करने के बाद मेरा राजकुमार उत्तेजित होता है।

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