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CHAPTER 2 पहला दिन
दीक्षा
Update 2
गुरुजी--रश्मि, अब तुम्हारे दीक्षा लेने का समय आ गया है। यहाँ हम सब लिंगा महाराज के भक्त हैं और थोड़ी देर में दीक्षा लेने के बाद तुम भी उनकी भक्त बन जाओगी। लेकिन तुम्हारी दीक्षा हमसे भिन्न होगी क्यूंकी तुम्हारा लक्ष्य माँ बनना है। जय लिंगा महाराज। रश्मि, लिंगा महाराज बहुत शक्तिशाली देवता हैं।
अगर तुम अपने को पूरी तरह से उनके चरणों में समर्पित कर दोगी तो वह तुम्हारे लिए चमत्कार कर सकते हैं। लेकिन अगर तुमने पूरी तरह से अपने को समर्पित नहीं किया तो अनुकूल परिणाम नहीं मिलेंगे। जय लिंगा महाराज।
फिर समीर ने भी जय लिंगा महाराज बोला और मुझसे भी यही बोलने को कहा।
मैंने भी जय लिंगा महाराज बोल दिया लेकिन मुझे इसका मतलब पता नहीं था।
गुरुजी--रश्मि, लिंगा महाराज की दीक्षा लेने से तुम्हारे शरीर और आत्मा की शुद्धि होगी। इसके लिए पहले तुम्हें अपने शरीर को नहाकर शुद्ध करना होगा। तुम यहाँ बने हुए बाथरूम में जाओ. वहाँ बाल्टी में जो पानी है उसमें ख़ास क़िस्म की जड़ी बूटी मिली हुई हैं । तुम उस पानी से नहाओ और अपने पूरे बदन में लिंगा को घुमाओ l
ऐसा कहकर गुरुजी ने मुझे वह लिंगा दे दिया, जो एक काला पत्थर था। लगभग 6--7 इंच लंबा और 1 इंच चौड़ा था और एक सिरे पर ज़्यादा चौड़ा था। फास्ट फ़ूड सेंटर में जैसा एग रोल मिलता है देखने में वैसा ही था, मतलब एक छोटे बेस पर एग रोल रखा हो वैसा।
लेकिन मेरे मन में ये बात नहीं आई की ये जो आकृति है, गुरुजी इसके माध्यम से पुरुष के लिंग को दर्शा रहे हैं।
गुरुजी--रश्मि, जड़ी बूटी वाले पानी से अपने बदन को गीला करना । उसके बाद वहीं पर मग में साबुन का घोल बना हुआ है, उस साबुन को लगाना। फिर अपने पूरे बदन में लिंगा को घुमाना।
"ठीक है गुरुजीl "
गुरुजी--रश्मि तुम गर्भवती होने के लिए दीक्षा ले रही हो, इसलिए लिंगा को अपने 'यौन अंगों' पर छुआकर, तीन बार जय लिंगा महाराज का जाप करना।
मैने हाँ में सर हिला दिया। लेकिन गुरुजी के मुँह से 'यौन अंगों' का ज़िक्र सुनकर मुझे बहुत शरम आई और मेरा चेहरा सुर्ख लाल हो गया।
गुरुजी--रश्मि, औरतें सोचती हैं कि उनके 'यौन अंगों' का मतलब है योनि। लेकिन ऐसा नहीं है। पहले तुम मुझे बताओ की तुम्हारे अनुसार 'यौन अंग' क्या हैं? शरमाओ मत, क्यूंकी शरमाने से यहाँ काम नहीं चलेगा।
गुरुजी का ऐसा प्रश्न सुनकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। मैं हकलाने लगी और जवाब देने के लिए मुझे शब्द ही नहीं मिल रहे थे।
"जी वो.........'यौन अंग' मतलब .........जिनसे संभोग किया जाता है।"
दो मर्दों के सामने मेरा शरम से बुरा हाल था।
गुरुजी--रश्मि, तुम्हें यहाँ खुलना पड़ेगा। अपना दिमाग़ खुला रखो। खुलकर बोलो। शरमाओ मत। ठीक है, अपने उन 'यौन अंगों' का नाम बताओ जहाँ पर लिंगा को छुआकर तुम्हें मंत्र का जाप करना है।
अब मुझे जवाब देना मुश्किल हो गया। गुरुजी मुझसे अपने अंगों का नाम लेने को कह रहे थे।
"जी वह ......वो ।मेरा मतलब............ चूची और चूत।" हकलाते हुए काँपती आवाज़ में मैंने जवाब दिया।
गुरुजी--ठीक है रश्मि। मैं समझता हूँ की एक औरत होने के नाते तुम शरमा रही हो। तुमने सिर्फ़ दो बड़े अंगों के नाम लिए. तुमने कहा की तुम अपनी चूची पर लिंगा को घुमाकर मंत्र का जाप करोगी। लेकिन तुम अपने निपल्स को भूल गयी? जब तुम अपने पति के साथ संभोग करती हो तो उसमे तुम्हारे निपल्स की भी कुछ भूमिका होती है कि नहीं?
मैने शरमाते हुए हाँ में सर हिला दिया। अब घबराहट से मेरा गला सूखने लगा था। कुछ ही मिनट पहले मैं परिमल को टीज़ कर रही थी पर शायद अब मेरा वास्ता बहुत अनुभवी लोगों से पड़ रहा था, जिनके सामने मेरे गले से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी।
गुरुजी--रश्मि तुम अपने नितंबों का नाम लेना भी भूल गयी। क्या तुम्हें लगता है कि नितंब भी 'यौन अंग' हैं? अगर कोई तुम्हें वहाँ पर छुए तो तुम्हें उत्तेजना आती है कि नहीं?
हे ईश्वर! मेरी कैसी परीक्षा ले रहे हो। मैं क्या जवाब दूं।
मैं सर झुकाए गुरुजी के सामने बैठी थी। ज़ोर-ज़ोर से मेरा दिल धड़क रहा था। मेरे पास बोलने को कुछ नहीं था। मैंने फिर से हाँ में सर हिला दिया।
गुरुजी की आवाज़ बहुत शांत थी और एक बार भी उन्होने मेरी बिना ब्रा की चूचियों की तरफ़ नहीं देखा था। उनकी आँखें मेरे चेहरे पर टिकी हुई थी और उनकी आँखों में देखने का साहस मुझमे नहीं था।
गुरुजी--रश्मि देखा तुमने। हम कई चीज़ों को भूल जाते हैं। तुम्हारे शरीर का हर वह अंग, जिसमे संभोग के समय तुम्हें उत्तेजना आती है, हर उस अंग पर लिंगा को छुआकर तुम्हें तीन बार मंत्र का जाप करना है। तुम्हारी चूचियाँ, निपल्स, नितंब, चूत, जांघें और तुम्हारे होंठ। तुम्हें पूरे मन से मेरी आज्ञा का पालन करना होगा तभी तुम्हें लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
समीर--मैडम, ये कपड़े आप नहाने के बाद पहनोगी।
फिर समीर ने मुझे भगवा रंग की साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट दिए. मेरे पास पहनने को कोई अंडरगार्मेंट नहीं था।
मैं कपड़े लेकर बाथरूम को जाने लगी। तभी मुझे ख़्याल आया गुरुजी फ़र्श में बैठे हुए हैं तो उनकी नज़र पीछे से मेरे हिलते हुए नितंबों पर पड़ रही होगी। मेरे पति अनिल ने एक बार मुझसे कहा था कि जब तुम पैंटी नहीं पहनती हो तब तुम्हारे नितंब कुछ ज़्यादा ही हिलते हैं।
लेकिन फिर मैंने सोचा की मैं गुरुजी के बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हूँ की वह पीछे से मेरे हिलते हुए नितंबों को देख रहे होंगे। गुरुजी तो इन चीज़ों से ऊपर उठ चुके होंगे।
कहानी जारी रहेगी...