औलाद की चाह 008

Story Info
दीक्षा भाग 3.
631 words
4.5
217
00

Part 9 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 2 पहला दिन

दीक्षा

Update 3

फिर मैं बाथरूम के अंदर चली गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया। वहाँ इतनी तेज़ रोशनी थी की मेरी आँखे चौधियाने लगी। मुझे बड़ी हैरानी हुई की बाथरूम में इतनी तेज लाइट लगाने की क्या ज़रूरत है?

बाथरूम के दरवाज़े में कपड़े टाँगने के लिए हुक लगे हुए थे और ये मेरे कमरे की तरह ऊपर से खुला हुआ नहीं था।

मैंने साड़ी उतार दी लेकिन उस तेज रोशनी में बड़ा अजीब लग रहा था। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं सूरज की तेज रोशनी में नहा रही हूँ। मैंने अपने ब्लाउज के बटन खोले और मेरी चूचियाँ ब्रा ना होने से झट से बाहर आ गयीं। फिर मैंने पेटीकोट भी उतारकर हुक पर टाँग दिया। अब मैं पूरी नंगी हो गयी थी।

मैंने बाल्टी में हाथ डालकर अपनी हथेली में जड़ी बूटी वाला पानी लिया। उसमे कुछ मदहोश कर देने वाली ख़ुशबू आ रही थी । पता नहीं क्या मिला रखा था।

फिर मैंने पानी से नहाना शुरू किया और मग में रखे हुए साबुन के घोल को अपने बदन में मला।

उसके बाद मैंने लिंगा को पकड़ा, जो पत्थर का था लेकिन फिर भी भारी नहीं था। लिंगा को मैंने अपनी बायीं चूची पर लगाया और जय लिंगा महाराज का जाप किया और फिर ऐसा ही मैंने अपनी दायीं चूची पर किया। उस पत्थर के मेरी नग्न चूचियों पर छूने से मुझे अजीब-सी सनसनी हुई और कुछ पल के लिए मेरे बदन में कंपकंपी हुई l

इस तरह से अपने पूरे नंगे बदन में मैंने लिंगा को घुमाया और अपनी चूत, नितंबों, जांघों और होठों पर लिंगा को छुआकर मंत्र का जाप किया।

ऐसा करने से मेरा बदन गरम हो गया और मैंने उत्तेजना महसूस की। फिर मैंने टॉवेल से गीले बदन को पोछा और आश्रम के कपड़े पहनने लगी।

[ये तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि अपने नंगे बदन पर जो मैं ये लिंगा को घुमा रही हूँ, ये सब टेप हो रहा है और इसीलिए वहाँ इतनी तेज लाइट का इंतज़ाम किया गया था।]

आश्रम के कपड़ों में पेटीकोट तो जैसे तैसे फिट हो गया पर ब्लाउज बहुत टाइट था। मुझे पहले ही इस बात की शंका थी की कहीं इनके दिए हुए कपड़े मिसफिट ना हो। मेरी चूचियों के ऊपर ब्लाउज आ ही नहीं रहा था और ब्लाउज के बटन लग ही नहीं रहे थे । अभी ब्रा नहीं थी अगर ब्रा पहनी होती तो बटन लगने असंभव थे।

जैसे तैसे तीन हुक लगाए लेकिन ऊपर के दो हुक ना लग पाने से चूचियाँ दिख रही थीं। मैंने साड़ी के पल्लू से ब्लाउज को पूरा ढक लिया और बाथरूम से बाहर आ गयी।

गुरुजी--रश्मि, जैसे मैंने बताया, वैसे ही नहाया तुमने?

"जी गुरुजी!"

गुरुजी--ठीक है। अब यहाँ पर बैठो और लिंगा महाराज की पूजा करो।

गुरुजी ने पूजा शुरू की, वह मंत्र पढ़ने लगे और बीच-बीच में मेरा नाम और मेरे गोत्र का नाम भी ले रहे थे। मैं हाथ जोड़ के बैठी हुई थी। लिंगा महाराज से मैंने अपने उपचार के सफल होने की प्रार्थना की।

समीर भी पूजा में गुरुजी की मदद कर रहा था। करीब आधे घंटे तक पूजा हुई. अंत में गुरुजी ने मेरे माथे पर लाल तिलक लगाया और मैंने झुककर गुरुजी के चरण स्पर्श किएl

जब मैं गुरुजी के पाँव छूने झुकी तो हुक ना लगे होने से मेरी चूचियाँ ब्लाउज से बाहर आने लगी। मैं जल्दी से सीधी हो गयी वरना मेरे लिए बहुत ही असहज स्थिति हो जाती।

गुरुजी--रश्मि, अब तुम्हारी दीक्षा पूरी हो चुकी है। अब तुम मेरी शिष्या हो और लिंगा महाराज की भक्त हो। जय लिंगा महाराज।

"जय लिंगा महाराज" , मैंने भी कहा।

गुरुजी--अब मैं कल सुबह 6: 30 पर तुमसे मिलूँगा और आश्रम में तुम्हें क्या करना है ये बताऊँगा। अब तुम जा सकती हो रश्मि।

कहानी जारी रहेगी

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