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CHAPTER 3 दूसरा दिन
दरजी (टेलर) की दूकान
Update 1
अब मेरे दिमाग़ में घूम रहा प्रश्न मुझे पूछना ही था।
"गोपालजी, आप नाप लेने के लिए टेप क्यूँ नहीं यूज करते?"
गोपालजी--मैडम, टेप से ज़्यादा भरोसा मुझे अपने हाथों पर है। मैं 30-35 साल से सिलाई कर रहा हूँ और शायद ही कभी ऐसा हुआ हो की मेरे ग्राहक ने कोई शिकायत की हो।
मैडम, आप ये मत समझना की मैं सिर्फ़ गाँव वालों के कपड़े सिलता हूँ। मेरे सिले हुए कपड़े शहर में भी जाते हैं। पिछले 10 साल से मैं अंडरगार्मेंट भी सिल रहा हूँ और वह भी शहर भेजे जाते हैं। उसमे भी कोई शिकायत नहीं आई है और ये सब मेरे हाथ की नाप से ही बनते हैं।
गोपालजी मुझे कन्विंस करने लगे की हाथ से नाप लेने की उनकी स्टाइल सही है।
गोपालजी--मैडम, उस कपड़ों के ढेर को देखो। ये सब ब्रा, पैंटी शहर भेजी जानी हैं और शहर की दुकानों से आप जैसे लोग इन्हें अच्छी क़ीमत में ख़रीदेंगे। अगर मेरे नाप लेने का तरीक़ा ग़लत होता, तो क्या मैं इतने लंबे समय से इस धंधे को चला पाता?
मैंने कपड़ों के ढेर को देखा। वह सब अलग-अलग रंग की ब्रा, पैंटीज थीं। कमरे के अंदर आते समय भी मैंने इस कपड़ों के ढेर को देखा था पर उस समय मैंने ठीक से ध्यान नहीं दिया था। मुझे मालूम नहीं था कि ब्रा, पैंटी भी ब्लाउज के जैसे सिली जा सकती हैं।
"गोपालजी मैं तो सोचती थी की अंडरगार्मेंट्स फैक्ट्रीज में मशीन से बनाए जाते हैं।"
गोपालजी--नहीं मैडम, सब मशीन से नहीं बनते हैं। कुछ हाथ से भी बनते हैं और ये अलग-अलग नाप की ब्रा, पैंटीज मैंने विभिन्न औरतों की हाथ से नाप लेकर बनाए हैं।
मैडम, आप शहर से आई हो, इसलिए मुझे ऐसे नाप लेते देखकर शरम महसूस कर रही हो। लेकिन आप मेरा विश्वास करो, इस तरीके से ब्लाउज में ज़्यादा अच्छी फिटिंग आती है।
आपको समझाने के लिए मैं एक उदाहरण देता हूँ। बाज़ार में कई तरह के टूथब्रश मिलते हैं। किसी का मुँह आगे से पतला होता है, किसी का बीच में चौड़ा होता है, होता है कि नहीं? लेकिन मैडम, एक बात सोचो की ये इतनी तरह के टूथब्रश होते क्यूँ हैं? उसका कारण ये है कि टूथब्रश उतना फ्लेक्सिबल नहीं होता है जितनी हमारी अँगुलियाँ। आप अपनी अंगुलियों को दाँतों में कैसे भी घुमा सकते हो ना, लेकिन टूथब्रश को नहीं।
मैं गोपालजी की बातों को उत्सुकता से सुन रही थी। वह गाँव का आदमी था लेकिन बड़ी अच्छी तरह से अपनी बात समझा रहा था।
गोपालजी--ठीक उसी तरह, औरत के बदन की नाप लेने के लिए टेप सबसे बढ़िया तरीक़ा नहीं है। अंगुलियों और हाथ से ज़्यादा अच्छी तरह से और सही नाप ली जा सकती है। ये मेरा पिछले 30 साल का अनुभव है।
गोपालजी ने अपनी बातों से मुझे थोड़ा बहुत कन्विंस कर दिया था। शुरू में जितना अजीब मुझे लगा था अब उतना नहीं लग रहा था। मैं अब नाप लेने के उनके तरीके को लेकर ज़्यादा परेशान नहीं होना चाहती थी, वैसे भी नाप लेने में 5 मिनट की ही तो बात थी।
गोपालजी--ठीक है मैडम। अब आप अपनी समस्या बताओ. ब्लाउज में आपको क्या परेशानी हो रही है? ये ब्लाउज भी मेरा ही सिला हुआ है।
हमारी इस बातचीत के दौरान मंगल सिलाई मशीन में किसी कपड़े की सिलाई कर रहा था।
"गोपालजी, आश्रम वालों ने इस ब्लाउज का साइज़ 34 बताया है पर ब्लाउज के कप छोटे हो रहे हैं।"
गोपालजी--मंगल, ट्राइ करने के लिए मैडम को 36 साइज़ का ब्लाउज दो।
मुझे हैरानी हुई की गोपालजी ने मेरे ब्लाउज को देखा भी नहीं की कैसे अनफिट है।
"लेकिन गोपालजी मैं तो 34 साइज़ पहनती हूँ।"
गोपालजी--मैडम, आपने बताया ना की ब्लाउज के कप फिट नहीं आ रहे। तो पहले मुझे उसे ठीक करने दीजिए, बाक़ी चीज़ें तो मशीन में 5 मिनट में सिली जा सकती हैं ना ।
मंगल ने अलमारी में से एक लाल ब्लाउज निकाला। फिर ब्लाउज को फैलाकर उसने ब्लाउज के कप देखे और मेरी चूचियों को घूरा। फिर वह ब्लाउज मुझे दे दिया। उस लफंगे की नज़रें इतनी गंदी थीं की क्या बताऊँ। बिलकुल तमीज नहीं थी उसको। गंवार था पूरा।
मंगल--मैडम, उस साड़ी के पीछे जाओ और ब्लाउज चेंज कर लो।
"लेकिन मैं यहाँ चेंज नहीं कर सकती!"
पर्दे के लिए वह साड़ी तिरछी लटकायी हुई थी। उस साड़ी से सिर्फ़ मेरी छाती तक का भाग ढक पा रहा था। वह कमरा भी छोटा था, इसलिए मर्दों के सामने मैं कैसे ब्लाउज बदल सकती थी?
गोपालजी--मैडम, आपने मेरा चश्मा देखा? इतने मोटे चश्मे से मैं कुछ ही फीट की दूरी पर भी साफ़ नहीं देख सकता। मैडम, आप निसंकोच होकर कपड़े बदलो, मेरी आँखें बहुत कमजोर हैं।
"नहीं, नहीं, मैं ऐसा नहीं कह रही हूँ!"
गोपालजी--मंगल, हमारे लिए चाय लेकर आओ l
गोपालजी ने मंगल को चाय लेने बाहर भेजकर मुझे निरुत्तर कर दिया। अब मेरे पास कहने को कुछ नहीं था। मैं कोने में लगी हुई साड़ी के पीछे चली गयी। मैंने दीवार की तरफ़ मुँह कर लिया क्यूंकी साड़ी से ज़्यादा कुछ नहीं ढक रहा था और वह जगह भी काफ़ी छोटी थी तो गोपालजी मुझसे ज़्यादा दूर नहीं थे।
गोपालजी--मैडम, फ़र्श में धूल बहुत है, ये आस पास के खेतों से उड़कर अंदर आ जाती है। आप अपनी साड़ी का पल्लू नीचे मत गिराना नहीं तो साड़ी खराब हो जाएगी।
"ठीक है, गोपालजी."
साड़ी का पल्लू मैं हाथ में तो पकड़े नहीं रह सकती थी क्यूंकी ब्लाउज उतारने के लिए तो दोनों हाथ यूज करने पड़ते। तो मैंने पल्लू को कमर में खोस दिया और ब्लाउज उतारने लगी। पुराना ब्लाउज उतारने के बाद अब मैं सिर्फ़ ब्रा में थी।
मंगल के बाहर जाने से मैंने राहत की सांस ली क्यूंकी उस गंवार के सामने तो मैं ब्लाउज नहीं बदल सकती थी। फिर मैंने नया ब्लाउज पहन लिया। 36 साइज़ का ब्लाउज मेरे लिए हर जगह कुछ ढीला हो रहा था, मेरे कप्स पर, कंधों पर और चूचियों की जड़ में ।
अपना पल्लू ठीक करके मैं गोपालजी को ब्लाउज दिखाने उनके पास आ गयी। पल्लू तो मुझे उनके सामने हटाना ही पड़ता फिर भी मैंने ब्लाउज के ऊपर कर लिया।
गोपालजी--मैडम, मेरे ख़्याल से आप साड़ी उतार कर रख दो। क्यूंकी एग्ज़ॅक्ट फिटिंग के लिए बार-बार ब्लाउज बदलने पड़ेंगे तो साड़ी फ़र्श में गिरकर खराब हो सकती है।
"ठीक है गोपालजीl "
मंगल वहाँ पर नहीं था तो मैंने साड़ी उतार दी। गोपालजी ने एक कोने से साड़ी पकड़ ली ताकि वह फ़र्श पर ना गिरे। आश्चर्य की बात थी की एक अंजाने मर्द के सामने बिना साड़ी के भी मुझे अजीब नहीं लग रहा था, शायद गोपालजी की उमर और उनकी कमज़ोर नज़र की वज़ह से।
अब ब्लाउज और पेटीकोट में मैं भी उसी हालत में थी जिसमे वह घाघरा चोली वाली लड़की थी, फरक सिर्फ़ इतना था कि उसने अंडरगार्मेंट्स नहीं पहने हुए थे।
तभी मंगल चाय लेकर आ गया।
मंगल--मैडम, ये चाय लो, इसमे खास ...
मुझे उस अवस्था में देखकर मंगल ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी और मुझे घूरने लगा। मेरी ब्लाउज में तनी हुई चूचियाँ और पेटीकोट में मांसल जांघें और सुडौल नितंब देखकर वह गँवार पलकें झपकाना भूल गया। मैंने उसकी तरफ़ ध्यान ना देना ही उचित समझा।
मंगल--......... अदरक मिला है।
अब उसने अपना वाक्य पूरा किया।
मेरे रोक पाने से पहले ही उस गँवार ने चाय की ट्रे गंदे फ़र्श पर रख दी। फ़र्श ना सिर्फ़ धूल से भरा था बल्कि छोटे मोटे कीड़े मकोडे भी वहाँ थे।
"गोपालजी, आप इस कमरे को साफ़ क्यूँ नहीं रखते?"
गोपालजी--मैडम, माफ़ कीजिए कमरा वास्तव में गंदा है पर क्या करें। पहले मैंने इन कीड़े मकोड़ो को मारने की कोशिश की थी पर आस पास गाँव के खेत होने की वज़ह से ये फिर से आ जाते हैं, अब मुझे इनकी आदत हो गयी है।
गोपालजी मुस्कुराए, पर मुझे तो उस कमरे में गंदगी और कीड़े मकोडे देखकर अच्छा नहीं लग रहा था।
गोपालजी--चाय लीजिए मैडम, फिर मैं ब्लाउज की फिटिंग देखूँगा।
गोपालजी ने झुककर ट्रे से चाय का कप उठाया और चाय पीने लगे। मंगल भी सिलाई मशीन के पास अपनी जगह में बैठकर चाय पी रहा था। मैं भी एक दो क़दम चलकर ट्रे के पास गयी और झुककर चाय का कप उठाने लगी। जैसे ही मैं झुकी तो मुझे एहसास हुआ की उस ढीले ब्लाउज की वज़ह से मेरे गले और ब्लाउज के बीच बड़ा गैप हो गया हैl
जिससे ब्रा में क़ैद मेरी गोरी चूचियाँ दिख रही है। मैंने बाएँ हाथ से ब्लाउज को गले में दबाया और दाएँ हाथ से चाय का कप उठाया। खड़े होने के बाद मेरी नज़र मंगल पर पड़ी, वह कमीना मुझे ऐसा करते देख मुस्कुरा रहा था। गँवार कहीं का!
फिर मैं चाय पीने लगी।
गोपालजी--ठीक है मैडम, अब मैं आपका ब्लाउज देखता हूँ।
ऐसा कहकर गोपालजी मेरे पास आ गये। गोपालजी की लंबाई मेरे से थोड़ी ज़्यादा थी, इसलिए मेरे ढीले ब्लाउज में ऊपर से उनको चूचियों का ऊपरी हिस्सा दिख रहा था।
गोपालजी--मैडम ये ब्लाउज तो आपको फिट नहीं आ रहा है। मैं देखता हूँ की कितना ढीला हो रहा है।
दरजी ने मेरा माप लिया l
गोपालजी मेरे नज़दीक़ खड़े थे। उनकी पसीने की गंध मुझे आ रही थी। सबसे पहले उन्होने ब्लाउज की बाँहें देखी। मेरी बायीं बाँह में ब्लाउज के स्लीव के अंदर उन्होने एक उंगली डाली और देखा की कितना ढीला हो रहा है। ब्लाउज के कपड़े को छूते हुए वह मेरी बाँह पर धीरे से अपनी अंगुली को रगड़ रहे थे।
गोपालजी--मंगल, बाँहें एक अंगुली ढीली है। अब मैं पीठ पर चेक करता हूँ। मैडम आप पीछे घूम जाओ और मुँह मंगल की तरफ़ कर लो।
गोपालजी--मंगल, बाँहें एक अंगुल ढीली हैं। अब मैं पीठ पर चेक करता हूँ। मैडम आप पीछे घूम जाओ और मुँह मंगल की तरफ़ कर लो।
मंगल एक कॉपी में नोट कर रहा था। अब मैं पीछे को मुड़ी और मंगल की तरफ़ मुँह कर लिया। मंगल खुलेआम मेरी तनी हुई चूचियों को घूरने लगा। मुझे बहुत इरिटेशन हुई लेकिन क्या करती। उस छोटे से कमरे में गर्मी से मुझे पसीना आने लगा था। मैंने देखा ब्लाउज में कांख पर पसीने से गीले धब्बे लग गये हैं। फिर मैंने सोचा पीछे मुड़ने के बावजूद गोपालजी मेरी पीठ पर ब्लाउज क्यूँ नहीं चेक कर रहा है?
गोपालजी--मैडम, बुरा मत मानो, लेकिन आपकी पैंटी इस ब्लाउज से भी ज़्यादा अनफिट है।
"क्या...?"
गोपालजी--मैडम, प्लीज़ मेरी बात पर नाराज़ मत होइए. जब आप पीछे मुड़ी तो रोशनी आप पर ऐसे पड़ी की मुझे पेटीकोट के अंदर दिख गया। अगर आपको मेरी बात का विश्वास ना हो तो, मंगल से कहिए की वह इस तरफ़ आकर चेक कर ले।
"नही नहीं, कुछ चेक करने की ज़रूरत नही। मुझे आपकी बात पर विश्वास है।"
मुझे यक़ीन था कि टेलर ने मेरे पेटीकोट के अंदर पैंटी देख ली होगी। तभी मैंने जल्दी से मंगल को चेक करने को मना कर दिया। वरना वह गँवार भी मेरे पीछे जाकर उस नज़ारे का मज़ा लेता। शरम से मेरे हाथ अपने आप ही पीछे चले गये और मैंने अपनी हथेलियों से नितंबों को ढकने की कोशिश की।
"लेकिन आप को कैसे पता चला की ...? "
अच्छा ही हुआ की गोपालजी ने मेरी बात काट दी क्यूंकी मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे बोलूँ । मेरी बात पूरी होने से पहले ही वह बीच में बोल पड़ा।
गोपालजी--मैडम, आप ऐसी पैंटी कहाँ से ख़रीदती हो, ये तो पीछे से एक डोरी के जैसे सिकुड गयी है।
मैं थोड़ी देर चुप रही । फिर मैंने सोचा की इस बुड्ढे आदमी को अपनी पैंटी की समस्या बताने में कोई बुराई नहीं है। क्या पता ये मेरी इस समस्या का हल निकाल दे। तब मैंने सारी शरम छोड़कर गोपालजी को बताया की चलते समय पैंटी सिकुड़कर बीच में आ जाती है और मैंने कई अलग-अलग ब्रांड की पैंटीज को ट्राइ किया पर सब में मुझे यही प्राब्लम है।
गोपालजी--मैडम, आपकी समस्या दूर हो गयी समझो। उस कपड़ों के ढेर को देखो। कम से कम 50--60 पैंटीज होंगी उस ढेर में। मेरी बनाई हुई कोई भी पैंटी ऐसे सिकुड़कर बीच में नहीं आती। मंगल, एक पैंटी लाओ, मैं मैडम को दिखाकर समझाता हूँ।
उन दोनों मर्दों के सामने अपनी पैंटी के बारे में बात करने से मुझे शरम आ रही थी तो मैंने बात बदल दी।
"गोपालजी, पहले ब्लाउज ठीक कर दीजिए ना। मैं ऐसे ही कब तक खड़ी रहूंगी?"
गोपालजी--ठीक है मैडम । पहले आपका ब्लाउज ठीक कर देता हूँ।
गोपालजी ने पीछे से गर्दन के नीचे मेरे ब्लाउज को अंगुली डालकर खींचा, कितना ढीला हो रहा है ये देखने के लिए. गोपालजी की अंगुलियों का स्पर्श मेरी पीठ पर हुआ, उसकी गरम साँसें मुझे अपनी गर्दन पर महसूस हुई, मेरे निप्पल ब्रा के अंदर तनकर कड़क हो गये।
मुझे थोड़ा अजीब लगा तो मैंने अपनी पोज़िशन थोड़ी शिफ्ट की। ऐसा करके मैं बुरा फँसी क्यूंकी इससे मेरे नितंब गोपालजी की लुंगी में तने हुए लंड से टकरा गये। गोपालजी ने भी मेरे सुडौल नितंबों की गोलाई को ज़रूर महसूस किया होगा।
उसका सख़्त लंड अपने नितंबों पर महसूस होते ही शरमाकर मैं जल्दी से थोड़ा आगे को हो गयी। मुझे आश्चर्य हुआ, हे भगवान! इस उमर में भी गोपालजी का लंड इतना सख़्त महसूस हो रहा है। ये सोचकर मुझे मन ही मन हँसी आ गयी।
गोपालजी--मैडम, ब्लाउज पीठ पर भी बहुत ढीला है। मंगल पीठ में दो अंगुल ढीला है।
फिर गोपालजी मेरे सामने आ गया और ब्लाउज को देखने लगा। उसके इतना नज़दीक़ होने से मेरी साँसें कुछ तेज हो गयी। सांसो के साथ ऊपर नीचे होती चूचियाँ गोपालजी को दिख रही होंगी। ब्लाउज की फिटिंग देखने के लिए वह मेरे ब्लाउज के बहुत नज़दीक़ अपना चेहरा लाया। मुझे अपनी चूचियों पर उसकी गरम साँसें महसूस हुई. लेकिन मैंने बुरा नहीं माना क्यूंकी उसकी नज़र बहुत कमज़ोर थी।
गोपालजी--मैडम, ब्लाउज आगे से भी बहुत ढीला है।
मेरे ब्लाउज को अंगुली डालकर खींचते हुए गोपालजी बोला ।
गोपालजी ने मेरे ब्लाउज को खींचा तो मंगल की आँखे फैल गयी, वह कमीना कल्पना कर रहा होगा की काश गोपालजी की जगह मैं होता तो ऐसे ब्लाउज खींचकर अंदर का नज़ारा देख लेता।
गोपालजी--मैडम, अब आप अपने हाथ ऊपर कर लो। मैं नाप लेता हूँ।
मैंने अपने हाथ ऊपर को उठाए तो मेरी चूचियाँ आगे को तन गयी। ब्लाउज में मेरी पसीने से भीगी हुई कांखें भी एक्सपोज़ हो गयी। उन दो मर्दों के लिए तो वह नज़ारा काफ़ी सेक्सी रहा होगा, जो की मंगल का चेहरा बता ही रहा था।
अब गोपालजी ने अपनी बड़ी अंगुली मेरी बायीं चूची की साइड में लगाई और अंगूठा मेरे निप्पल के ऊपर। उनके ऐसे नाप लेने से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी। ये आदमी नाप लेने के नाम पर मेरी चूची को दबा रहा है और मैं कुछ नहीं कर सकती। उसके बाद गोपालजी ने निप्पल की जगह अंगुली रखी और हुक की जगह अंगूठा रखा।
गोपालजी--मंगल, कप वन फुल एच(H) l
मंगल ने नोट किया और गोपालजी की फैली हुई अंगुलियों को एक डोरी से नापा।
गोपालजी--मैडम, अब मैं ये जानना चाहता हूँ की आपका ब्लाउज कितना टाइट रखना है, ठीक है?
मैंने हाँ में सर हिला दिया, पर मुझे मालूम नहीं था कि ये बात वह कैसे पता करेगा।
गोपालजी--मैडम, आपको थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन मेरा तरीक़ा यही है। आप ये समझ लो की मेरी हथेली आपका ब्लाउज कवर है। मैं आपकी छाती अपनी हथेली से धीरे से अंदर को दबाऊँगा और जहाँ पर आपको सबसे ठीक लगे वहाँ पर रोक देना, वहीं पर ब्लाउज के कप सबसे अच्छी तरह फिट आएँगे।
हे भगवान! ये हरामी बुड्ढा क्या बोला। एक 28 साल की शादीशुदा औरत की चूचियों को खुलेआम दबाना चाहता है और कहता है आपको थोड़ा अजीब लगेगा। थोड़ा अजीब? कोई मर्द मेरे साथ ऐसा करे तो मैं तो एक थप्पड़ मार दूँगी ।
"लेकिन गोपालजी ऐसा कैसे .........कोई और तरीक़ा भी तो होगा।"
गोपालजी--मैडम, आश्रम से जो 34 साइज़ का ब्लाउज आपको मिला है, उसको मैंने जिस औरत की नाप लेकर बनाया था वह आपसे कुछ पतली थी। अगर आप एग्ज़ॅक्ट साइज़ नापने नहीं दोगी तो ब्लाउज आपको कप में कुछ ढीला या टाइट रहेगा।
"गोपालजी, अगर टेप से नाप लेते तो मुझे कंफर्टेबल रहता। प्लीज़।"
मैं विनती करने के अंदाज़ में बोली। गोपालजी ने ना जाने क्या सोचा पर वह मान गया।
गोपालजी--ठीक है मैडम, अगर आपको अच्छा नहीं लग रहा तो मैं ऐसे नाप नहीं लूँगा। मैं ब्लाउज को आपके कप साइज़ के हिसाब से सिल दूँगा। लेकिन ये आपको थोड़ा ढीला या टाइट रहेगा, आप एडजस्ट कर लेना।
उसकी बात सुनकर मैंने राहत की सांस ली। चलो अब ये ऐसे खुलेआम मेरी चूचियों को तो नहीं दबाएगा। ऐसे नाप लेने के बहाने ना जाने कितनी औरतों की चूचियाँ इसने दबाई होंगी।
कहानी जारी रहेगी