औलाद की चाह 015

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टेलर की दूकान में सामने आया सांपो का जोड़ा.
1.7k words
4.88
459
00

Part 16 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 3 दूसरा दिन

दरजी (टेलर) की दूकान

Update 2

सामने आया सांपो का जोड़ा

तभी मंगल ज़ोर से चीखा और मेरी तरफ़ कूद गया, मुझसे टकराते-टकराते बचा। गोपालजी दो तीन क़दम पीछे हो गया और मेरा हाथ खींचकर मुझे भी दो तीन क़दम खींच लिया। मैंने पीछे मुड़कर देखा की क्या हुआ । दरवाजे पर दो साँप खड़े थे।

मंगल--ये तो साँपों का जोड़ा है।

गोपालजी--हाँ, मैंने देख लिया है। कोई भी अपनी जगह से मत हिलना।

साँप दरवाज़े पर थे और अगर वह हमारी तरफ़ बढ़ते तो बचने के लिए कोई जगह नहीं थी क्यूंकी कमरा छोटा था। साँप हमारी तरफ़ देख रहे थे पर कमरे के अंदर को नहीं आ रहे थे। अपने इतने नज़दीक़ साँप देखकर मैं बहुत डर गयी थी। मंगल भी डरा हुआ लग रहा था लेकिन गोपालजी शांत था। गोपालजी ने बताया की साँप तो पहले भी आस पास खेतों में दिखते रहते थे पर ऐसे दरवाज़े पर कभी नहीं आए।

कुछ देर तक गोपालजी ने साँपों को भगाने की कोशिश की। उनकी तरफ़ कोई चीज़ फेंकी, फिर कपड़ा हिलाकर उन्हें भगाने की कोशिश की, पर वह साँप दरवाज़े से नहीं हिले।

साँपों को दरवाज़े से ना हिलते देख डर से मेरा पसीना बहने लगा।

गोपालजी--अब तो एक ही रास्ता बचा है। साँपों को दूध देना पड़ेगा। क्या पता दूध पीकर चले जाएँ, नहीं तो किसी भी समय अंदर की तरफ़ आकर हमें काट सकते हैं।

मुझे भी ये उपाय सही लगा ।

मंगल--लेकिन दूध लेने के लिए मैं बाहर कैसे जाऊँ? दरवाज़े पर तो साँप हैं।

"हाँ गोपालजी, बाहर तो कोई नहीं जा सकता। अब क्या करें?"

गोपालजी ने कुछ देर सोचा, फिर बोला, "मैडम, अब तो सिर्फ़ आप ही इस मुसीबत से बचा सकती हो।"

" मैं? ।मैं क्या कर सकती हूँ?

गोपालजी--मैडम, आपके पास तो नेचुरल दूध है। प्लीज़ थोड़ा-सा दूध निकालकर साँपों को दे दो, क्या पता साँप चले जाएँ।

मैं तो अवाक रह गयी। इस हरामी बुड्ढे की बात का क्या मतलब है? मैं अपनी चूचियों से दूध निकालकर साँपों को पिलाऊँ?

गोपालजी--मैडम, ज़रा ठंडे दिमाग़ से सोचो। दूध पीकर ही ये साँप जाएँगे। आपको चूचियों से दूध निकालने में 2 मिनट ही तो लगेंगे।

मंगल--मैडम, ये छोटा-सा कटोरा है। इसमें दूध निकाल दो।

मैं तो निसंतान थी इसलिए मेरी चूचियों में दूध ही नहीं था। ये बात उन दोनों मर्दों को मालूम नहीं थी। मेरे पास और कोई चारा नहीं था, मुझे बताना ही पड़ा।

"गोपालजी, मैं तो ......मेरा मतलब ......अभी तक मेरा कोई बच्चा नहीं हुआ है। इसलिए वो...। शायद आप समझ जाओगे...।"

गोपालजी समझ गया की मेरी चूचियों में दूध नहीं है।

गोपालजी--ओह, मैं समझ गया मैडम। अब तो आख़िरी उम्मीद भी गयी।

गोपालजी मेरी बात समझ गया, पर कमीना मंगल मेरे पीछे पड़ा रहा।

मंगल--मैडम, मैंने सुना है कि अगर अच्छे से चूचियों को चूसा जाए तो कुँवारी लड़कियों का भी दूध निकल जाता है।

"बकवास बंद करो। गोपालजी प्लीज़!"

गोपालजी--मंगल, बकवास मत करो। क्या मतलब है तुम्हारा? तुम मैडम की चूचियों को चूसोगे और दूध निकल आएगा? मैडम की चूचियों में दूध तभी बनेगा जब मैडम गर्भवती होगी। तुमने सुना नहीं मैडम अभी तक गर्भवती नहीं हुई है।

मैं बहुत एंबरेस्ड फील कर रही थी। मंगल ने एक जनरल सेंस में बात कही थी पर गोपालजी ने सीधे मेरे बारे में ऐसे बोल दिया। शरम से मैं गोपालजी से आँखें नहीं मिला पा रही थी। लेकिन उनके शब्दों से मेरी चूचियाँ कड़क हो गयी।

घबराहट और गर्मी से मुझे इतना पसीना आ रहा था कि ब्लाउज गीला हो गया था और अंदर से सफेद ब्रा दिखने लगी थी। कमर से नीचे भी मैं अश्लील दिखने लगी थी क्यूंकी मेरी जांघों पर पसीने से पेटीकोट चिपक गया था। जिससे मेरी जांघों का शेप दिखने लगा था। मैंने हाथ से पेटीकोट को खींचा और जांघों से अलग कर दिया।

एक बात मुझे हैरान कर रही थी की साँप कमरे के अंदर को नहीं आ रहे थे, वहीं दरवाज़े पर ही कुंडली मारे बैठे थे।

मंगल--अब क्या करें?

कुछ देर तक चुप्पी रही। फिर गोपालजी को एक उपाय सूझा, जिससे अजीब और बेतुकी बात मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी।

गोपालजी--हाँ, मिल गया । एक उपाय मिल गया।

गोपालजी ज़ोर से ताली बजाते हुए बोला। मंगल और मैं हैरान होकर गोपालजी को देखने लगे।

गोपालजी--ध्यान से सुनो मंगल। तुम हमें बचा सकते हो।

मेरी ही तरह मंगल की भी कुछ समझ में नहीं आया।

गोपालजी--मेरी बात ध्यान से सुनो। एक ही उपाय है जिससे इन साँपों से छुटकारा मिल सकता है। मैडम की चूचियों में दूध नहीं है इसलिए मैंने ये तरीक़ा सोचा है।

गोपालजी कुछ पल चुप रहा। मैं सोचने लगी अब कौन-सा उपाय बोलेगा ये।

गोपालजी--मैडम, हमारे पास दूध नहीं है लेकिन हम दूध जैसे ही किसी सफेद पानी से साँपों को बेवक़ूफ़ बना सकते हैं। साँप उसमे अंतर नहीं कर पाएँगे। मंगल तुम मुठ मारकर अपना वीर्य इस कटोरे में निकालो और फिर हम इस कटोरे को साँपों के आगे रख देंगे।

कमरे में एकदम चुप्पी छा गयी। गोपालजी का उपाय था तो ठीक, लेकिन उस छोटे से कमरे में एक अनजान आदमी मेरे सामने मुठ मारेगा, ये तो बड़ी शरम वाली बात थी।

मुझे बहुत अनकंफर्टेबल फील हो रहा था लेकिन मेरे पास कोई और उपाय भी नहीं था। कैसे भी साँपों से छुटकारा पाना था । गोपालजी की बात का मैं विरोध भी नहीं कर सकती थी।

मंगल--ये उपाय काम करेगा क्या?

गोपालजी--काम कर भी सकता है और नहीं भी। मैडम, मैं जानता हूँ की आपको थोड़ा अजीब लगेगा पर आपकी चूचियों में दूध नहीं है तो हमारे पास कोई और चारा भी नहीं है।

"मैं समझ सकती हूँ गोपालजी।"

मैं और क्या बोलती। एक तो वैसे ही मैं बहुत देर से सिर्फ़ ब्लाउज पेटीकोट में थी, अब ये ऐसा बेतुका उपाय। मुझे तो इसके बारे में सोचकर ही बदन में झुरजुरी होने लगी थी।

गोपालजी--मंगल। जल्दी करो। साँप किसी भी समय हमारी तरफ़ आ सकते हैं।

मंगल--कैसे जल्दी करूँ। मुझे समय तो लगेगा। कुछ सोचना तो पड़ेगा ना।

उसकी बात पर मुझे हँसी आ गयी। मेरी हँसी देखकर मंगल की हिम्मत बढ़ गयी।

मंगल--मैडम, इस बुड्ढे आदमी को ये भी याद नहीं होगा की कितने साल मुठ मारे हो गये और मुझसे जल्दी करो कह रहा है।

मुझे फिर से उसकी बात पर हँसी आ गयी । माहौल ही कुछ ऐसा था। एक तरफ़ साँपों का डर और दूसरी तरफ़ ऐसी बेहूदा बातें हो रही थी। पर इन सब बातों से मुझे कुछ उत्तेजना भी आ रही थी। उस समय मुझे पता नहीं था कि आश्रम से आते वक़्त जो मैंने दवाई ली है, ये उसका असर हो रहा है।

गोपालजी--ऐसी बात नहीं है। अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं तुम्हें दिखाऊँगा की इस उमर में भी मैं क्या कर सकता हूँ।

मंगल--अगर तुम ये करोगे तो तुम्हें हार्ट अटैक आ जाएगा । ग़लत बोल रहा हूँ मैडम?

इस बेहूदे वार्तालाप को सुनकर मुझे मुस्कुराकर सर हिलाना पड़ रहा था।

मंगल अब मुठ मारना शुरू करने वाला था। मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा और मेरे निप्पल तनकर कड़क हो गये। मंगल ने दीवार की तरफ़ मुँह कर लिया और अपनी लुंगी उतार दी। अब वह सिर्फ़ अंडरवियर और बनियान (वेस्ट) में था। मैंने देखा उसने अपने दोनों हाथ आगे किए और मुठ मारना शुरू किया। बीच-बीच में पीछे मुड़कर वह दरवाज़े पर साँपों को भी देख रहा था।

कुछ देर बाद मंगल की आवाज़ आई।

मंगल--मैं कुछ सोच ही नहीं पा रहा हूँ। मेरे मन में साँपों का डर हो रहा है। मेरा लंड खड़ा ही नहीं हो पा रहा है।

कमरे में चुप्पी छा गयी। अब मंगल ने हमारी तरफ़ मुँह कर लिया। अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर उसने अपने लंड को पकड़ा हुआ था। अंडरवियर पतले कपड़े का था जिससे उसके लटके हुए बड़े लंड की शेप दिख रही थी।

गोपालजी--हम्म्म!.अब क्या करें? मैडम?

मेरे पास बोलने को कुछ नहीं था।

गोपालजी--देखो मंगल, एक काम करो। तुम मैडम की तरफ़ देखो और मुठ मारने की कोशिश करो। औरत को देखने से तुम्हारा काम बनेगा।

"क्या?" ।मैं ज़ोर से चिल्ला पड़ी।

गोपालजी--मैडम, आपको देखने से उसका काम बनता है तो देखने दो ना। हमको सफेद पानी चाहिए बस और कुछ थोड़ी करना है।

"लेकिन गोपालजी, ये तो बिल्कुल ग़लत.....!! "

मुझे इतनी शरम आ रही थी की मेरी आवाज़ ही बंद हो गयी। मेरे विरोध से वह दोनों आदमी रुकने वाले नहीं थे।

गोपालजी--मैडम, प्लीज़ आप सहयोग करो। अगर आपको बहुत शरम आ रही है तो दीवार की तरफ़ मुँह कर लो। मंगल आपको पीछे से देखकर मुठ मारने की कोशिश करेगा।

मंगल--हाँ मैडम, मैं ऐसे कोशिश करूँगा।

मंगल कमीना बेशर्मी से मुस्कुरा रहा था और कोई चारा ना देख मैं राज़ी हो गयी और दीवार की तरफ़ मुँह कर लिया।

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्यूंकी पहले कभी ऐसे परिस्थिति में नहीं फँसी थी। रास्ते में चलते हुए मर्दों की निगाहें मेरी चूचियों और हिलते हुए नितंबों पर मैंने महसूस की थी पर ऐसे जानबूझकर कोई मर्द मेरे बदन को देखे ऐसा तो कभी नहीं हुआ था।

मंगल पेटीकोट में मेरे उभरे हुए नितंबों को देख रहा होगा। मुझे याद है एक बार मैं अपने बेडरूम में बालों में कंघी कर रही थी तो मेरे पति ने पेटीकोट में मेरे नितंबों को देख कर कहा था, 'डार्लिंग तुम्हारे नितंब तो बड़े कद्दू की तरह लग रहे हैं' । शायद मंगल भी वही सोच रहा होगा। मेरे उभरे हुए सुडौल नितंब उन दोनों मर्दों को बड़े मनोहारी लग रहे होंगे।

और कम्बख्त पैंटी भी सिकुड़कर नितंबों के बीच की दरार में आ गयी थी। मेरे लिए वह बड़ी शर्मनाक स्थिति थी की एक अनजान गँवार आदमी मेरे बदन को देखकर मुठ मार रहा था और वह भी मेरी सहमति से।

मंगल--मैडम, आप पीछे से बहुत सुंदर लग रही हो। भगवान का शुक्र है, आपने साड़ी नहीं पहनी है, वरना ये सब ढक जाता।

गोपालजी--मैडम, मंगल सही बोल रहा है। पीछे से आप बहुत आकर्षक लग रही हो।

अब गोपालजी भी मंगल के साथ मेरे बदन की तारीफ कर रहा था।

मैं क्या बोलती । 'प्लीज़ जल्दी करो' इतना ही बोल पाई।

मंगल--मैडम, आप पीछे से बहुत सुंदर लग रही हो। भगवान का शुक्र है, आपने साड़ी नहीं पहनी है, वरना ये सब ढक जाता।

गोपालजी--मैडम, मंगल सही बोल रहा है। पीछे से आप बहुत आकर्षक लग रही हो।

अब गोपालजी भी मंगल के साथ मेरे बदन की तारीफ कर रहा था।

मैं क्या बोलती । 'प्लीज़ जल्दी करो' इतना ही बोल पाई।

कुछ देर बाद फिर से उस लफंगे मंगल की आवाज़ आई ।

मंगल--मैडम, मैं अभी भी नहीं कर पा रहा हूँ। ये साँप अपनी मुंडी हिला रहे हैं, मेरी नज़र बार-बार उन पर चली जा रही है।

"अब उसके लिए मैं क्या कर सकती हूँ?"

मुझे इरिटेशन होने लगी थी।

गोपालजी--मंगल, तुम मैडम के नज़दीक़ आ जाओ. मैं साँपों पर नज़र रखूँगा, डरो मत। मैडम, आप भी इसको जल्दी मुठ मारने में मदद करो।

कहानी जारी रहेगी

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