औलाद की चाह 018

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मेले में टॉयलेट.
1.4k words
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Part 19 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 3 दूसरा दिन

मेला

Update 2

मेले में टॉयलेट

"विकास मुझे टॉयलेट जाना है। उस समय मैं नहीं जा पाई थीl "

विकास ने मेरी चूची पर से हाथ हटा लिया और मुझे एक गली से होते हुए दुकानों के पीछे ले गया। मेले में बल्ब जले हुए थे लेकिन दुकानों के पीछे थोड़ा अँधेरा था । दूर खड़े लोगों के लिए साफ़ देख पाना मुश्किल था। पर मैं अभी भी हिचक रही थी क्यूंकी वहाँ कोई झाड़ी नहीं थी जिसके पीछे मैं बैठ सकूँ।

विकास--मैडम, अब क्या दिक्कत है?

"देख नहीं रहे, यहाँ कोई झाड़ी नहीं है। कैसे करूँ?"

विकास--लेकिन मैडम, यहाँ अंधेरे में कौन देख रहा है। उस कोने में जाओ और कर लो।

"इतना अँधेरा भी नहीं है। मैं तो तुम्हें साफ़ देख सकती हूँ।"

विकास--मैडम, आप भी! ठीक है, मैं आपकी तरफ़ नहीं देखूँगा।

वो शरारत से मुस्कुराया लेकिन मैंने उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दिया। मुझे तो यही फिकर थी की कैसे करूँ।

"कोई आ गया तो ।?"

विकास--मैडम, इसमें टाइम ही कितना लगना है। कुछ ही सेकेंड्स में तो हो जाएगा।

मुझे तो ज़्यादा समय लगना था, क्यूंकी ऐसा तो था नहीं की साड़ी कमर तक उठाओ, फिर बैठ जाओ और कर लो। मुझे तो पैंटी भी नीचे करनी थी और उसमे लगे पैड को भी सम्हालना था।

विकास--मैडम, अगर आप ऐसे ही देर करोगी तो कोई ना कोई आ जाएगा। इसलिए उस कोने में जाओ और कर लो, मैं यहाँ खड़े होकर ख़्याल रखूँगा, कोई आएगा तो बता दूँगा।

विकास ऐसे बोल रहा था जैसे उसकी मौजूदगी से मुझे कोई फरक नहीं पड़ता। अरे कोई आए ना आए वह ख़ुद भी तो एक मर्द ही है ना।

मैंने फिर से एक नज़र हर तरफ़ दौड़ाई. वहाँ थोड़ा अँधेरा ज़रूर था पर वह जगह तीन तरफ़ से खुली थी क्यूंकी एक तरफ़ दुकानों का पिछला हिस्सा था और अगर कोई वहाँ आ जाता तो मुझे साफ़ देख सकता था। लेकिन मेरे पास कोई चारा नहीं था । मुझे बहुत शरम आ रही थी पर मुझे उस खुली जगह में ही करना पड़ रहा था।

"विकास, प्लीज़ इस तरफ़ पीठ कर लो और कोई आए तो मुझे बता देना।"

विकास--मैडम, अगर मैं इस तरफ़ पीठ करूँगा तो मुझे कैसे पता चलेगा, कोई उस तरफ़ से आ रहा है या नहीं?

मैं सब समझ रही थी की विकास मुझे देखने का मौका हाथ से जाने नहीं देगा। मगर मजबूरी थी की उसका यहाँ खड़ा रहना भी ज़रूरी था क्यूंकी कोई आएगा तो कम से कम बता तो देगा।

कोई और चारा ना देख मैं राज़ी हो गयी। मैंने देखा मुझे कोने में जाते देख विकास की आँखों में चमक आ गयी है। मैं विकास से 10--12 फीट की दूरी पर दुकानों के पीछे चली गयी। उससे आगे जाने जैसा नहीं था क्यूंकी वहाँ पर दुकानों से लाइट पड़ रही थी।

मैंने विकास की तरफ़ पीठ कर ली पर मुझे वहाँ बैठने में शरम आ रही थी। पता नहीं विकास को कितना दिख रहा होगा। मैं थोड़ा-सा झुकी और दोनों हाथों से साड़ी और पेटीकोट को अपने नितंबों तक ऊपर उठाया। मेरी नंगी जांघों पर ठंडी हवा का झोंका लगते ही बदन में कंपकपी दौड़ गयी। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने एक नज़र पीछे मुड़कर विकास को देखा।

विकास--मैडम, पीछे मत देखो। जल्दी करो।

विकास मेरी नंगी जांघों को देख रहा था और मुझसे ही कह रहा था कि पीछे मत देखो। एक झलक मुझे दिखी की उसका हाथ अपने पैंट पर है। शायद एक औरत को ऐसी हालत में देखकर वह अपने लंड को सहला रहा होगा। मैंने और समय बर्बाद नहीं किया। जल्दी से पैंटी घुटनों तक नीचे की और पैड एक हाथ में पकड़ लिया।

पैंटी उतरने से विकास को मेरी नंगी गांड का नज़ारा दिख रहा होगा, वैसे मैंने जितना हो सके, साड़ी से उसे ढकने की कोशिश की थी। फिर जब मैं बैठ गयी तो विकास को मेरी बड़ी गांड पूरी तरह से नंगी दिख रही होगी।

मेरे पेशाब करते वक़्त निकलती ...।श्ईईई......।की आवाज़ मेरी शरम को और बढ़ा रही थी। मैंने एक बार और पीछे मुड़कर देखा की कहीं कोई आ तो नहीं रहा है और विकास क्या कर रहा है। लेकिन मुझे हैरानी हुई विकास तो वहाँ था ही नही। उस बैठी हुई पोजीशन में मैं अपने सर को ज़्यादा नहीं मोड़ पा रही थी।

मेरी पेशाब पूरी होने ही वाली थी और मुझे राहत हुई क्यूंकी वह ...... श्ईईई ............की निकलती आवाज़ से मुझे ज़्यादा शरम आ रही थी। मैं सोच रही थी की विकास कहाँ गया होगा तभी।

विकास--मैडम, बच के!

मैं शॉक्ड रह गयी, विकास की आवाज़ बिल्कुल मेरे नज़दीक से आई थी। अभी-अभी पीछे मुड़कर वह मुझे नहीं दिखा था क्यूंकी वह तो मेरे आगे आ गया था। मैं उसको अपने सामने खड़ा देखकर सन्न रह गयी क्यूंकी आगे से मेरी चूत, मेरी टाँगें और जांघें नंगी थी और अभी भी थोड़ी पेशाब निकल रही थी। विकास मेरी चूत और उसके ऊपर के काले बाल साफ़ देख सकता था।

हे भगवान! ऐसा ह्युमिलिएशन, ऐसी बेइज़्ज़ती तो मेरी कभी नहीं हुई थी। विकास खुलेआम मेरी नंगी चूत को देख रहा था, मेरा चेहरा बता रहा था कि मुझे किस क़दर शॉक लगा है और मुझे कितनी शरम आ रही है।

विकास--मैडम, मैडम घबराओ नही। असल में आप चींटियों की बांबी पर बैठ गयी हो इसलिए मैं आपको सावधान करने आ गया।

"तुम जाओ यहाँ से।"

विकास--मैडम, आपने उनकी बांबी गीली कर दी है, अब चींटियाँ बाहर आ जाएँगी। संभाल कर!.

विकास एक क़दम भी नहीं हिला और उसकी नज़र एक औरत को पेशाब करते हुए सामने से देखने के नज़ारे का मज़ा ले रही थी, शायद ज़िन्दगी में पहली बार उसे ये मौका मिला होगा।

मैं अब उसके सामने ऐसे नहीं बैठ सकती थी और उठ खड़ी हुई जबकि मेरे छेद से पेशाब की बूंदे अभी भी निकल रही थीं। अपने बाएँ हाथ से मैंने जल्दी से साड़ी और पेटीकोट नीचे कर ली क्यूंकी दाएँ हाथ में तो पैड पकड़ा हुआ था।

विकास ने मुझे उस चींटियों की बांबी से धक्का देते हुए हटा दिया। मैंने देखा वह सही कह रहा था क्यूंकी बहुत सारी लाल चींटियाँ बांबी से निकल आई थीं। मेरी पेशाब से उनमें खलबली मच गयी थी।

मैं ठीक से नहीं चल पा रही थी क्यूंकी पैंटी अभी भी घुटने में फंसी थी। मुझे पैंटी ऊपर करने से पहले पैड भी लगाना था।

मैं शरम से विकास से आँखें नहीं मिला पा रही थी। मुझे अभी भी यक़ीन नहीं हो रहा था कि विकास ने मुझे ऐसे पेशाब करते हुए देख लिया था। मुझे नहीं पता की उसके दिमाग़ में क्या चल रहा था पर वह नार्मल लग रहा था।

विकास--मैडम, अब हम लेट हो रहे हैं। हमें वापस जाना चाहिएl

"हाँ, मैं भी यहाँ अब और नहीं रहना चाहती हूँ।"

मैं सोच रही थी की विकास से कैसे कहूँ की मुझे अपने कपड़े ठीक करने हैं, पैड लगाना है।

विकास--ठीक है मैडम, आप यही इंतज़ार करो या दुकानों के आगे। मैं बैलगाड़ीवाले को लेकर आता हूँ।

"नही नहीं विकास। बैलगाड़ी में नही। मेरे घुटनों और कमर में और दर्द नहीं चाहिए."

विकास--लेकिन मैडम!

मैंने उसकी बात काट दी।

"कुछ और आने जाने का साधन भी तो होगा।"

विकास--मैडम, मैंने बताया ना इस रास्ते में ज़्यादा चोइस नहीं है।

मेरे ज़िद करने पर विकास बैलगाड़ी के सिवा कुछ और साधन ढूँढने चला गया और मुझसे उस झुमके वाली दुकान के आगे इंतज़ार करने को कहा। मैं सोचने लगी अगर कुछ और नहीं मिला तो उस बैलगाड़ी में ही जाना पड़ेगा, बड़ी मुश्किल हो जाएगी। एक तो बहुत धीरे-धीरे चलती है और कमर दर्द अलग से।

अब विकास चला गया तो मैं पैंटी में पैड लगाकर ऊपर करने की सोचने लगी। तभी मैंने देखा वहाँ पर कुछ लोग आ गये हैं तो मुझे उस जगह से जाना पड़ा।

मैं छोटे-छोटे क़दम से चल रही थी क्यूंकी पैंटी घुटनों में फंसी होने से ठीक से नहीं चल पा रही थी। मैंने सोचा कोई और जगह देखती हूँ। जल्दी ही मुझे एक दुकान के पीछे कुछ जगह मिल गयी, वहाँ थोड़ा अँधेरा भी था और कोई आदमी भी नहीं था। मुझे वह जगह सेफ लगी। मैं एक कोने में गयी और जल्दी से साड़ी और पेटीकोट को कमर तक ऊपर उठा लिया।

उसके बाद्र पैंटी को भी घुटनों से थोड़ा ऊपर खींच लिया। फिर से मैंने अपनी नंगी जांघों पर ठंडी हवा का झोंका महसूस किया। जैसे ही पैड को पैंटी में चूत के छेद के ऊपर फिट करने लगी, तभी मुझे किसी की आवाज़ सुनाई दी। मैं एकदम से घबरा गयी क्यूंकी मेरी जवानी बिल्कुल नंगी थी। मैंने इधर उधर देखा पर मुझे कोई नहीं दिखा।

कोई आवाज़ तो मैंने पक्का सुनी थी पर थोड़ा अँधेरा था तो कुछ पता नहीं चल रहा था। कुछ पल ऐसे ही ठिठकने के बाद मैंने पैड लगाकर पैंटी ऊपर कर ली और साड़ी पेटीकोट नीचे कर ली। फिर मैं अपनी चूचियों के ऊपर पल्लू ठीक से कर रही थी तो मुझे फिर से किसी की आवाज़ सुनाई दी।

फिर मैं अपनी चूचियों के ऊपर पल्लू ठीक से कर रही थी तो मुझे फिर से किसी की आवाज़ सुनाई दी।

कहानी जारी रहेगी

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