औलाद की चाह 019

Story Info
मेले में लाइव शो.
1k words
4.5
236
00

Part 20 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 3 दूसरा दिन

मेला

Update 3

लाइव शो

"अरे, कोई आ जाएगा।"

"यहाँ कोई नहीं है। फिकर मत करो।"

वहाँ थोड़ा अँधेरा था इसलिए मेरी आँखों को एडजस्ट होने में कुछ समय लगा । पर अब मुझे सब साफ़ दिख रहा था। मुझसे कुछ ही दूरी पर एक पेड़ के पीछे एक लड़की और एक आदमी खड़े थे। वह आपस में ही मस्त थे इसलिए उन्होने मुझे नहीं देखा था। आदमी करीब 30-35 का होगा लेकिन लड़की 18--19 की थी। लड़की ने घाघरा चोली पहना हुआ था।

आदमी ने लड़की को अपनी बाँहों के घेरे में पकड़ा हुआ था और उसके होठों का चुंबन लेने की कोशिश कर रहा था। लड़की अपना चेहरा इधर उधर घुमाकर उसको चुंबन लेने नहीं दे रही थी।

फिर उस आदमी ने चोली के बाहर से लड़की की चूची को पकड़ लिया और उसे दबाने लगा। अब लड़की का विरोध धीमा पड़ने लगा। कुछ ही देर में लड़की की अंगुलियाँ आदमी के बालों को सहलाने लगीं और उस आदमी ने अपने होंठ लड़की के होठों से चिपका दिए. फिर चुंबन लेते हुए ही आदमी ने एक हाथ लड़की के घाघरे के बाहर से ही उसकी गांड पर रख दिया और उसे मसलने लगा।

उनकी कामुक हरकतों से मेरे निप्पल तन गये। उन्हें छुपकर देखने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। लड़की की छोटी चूचियों को वह आदमी अपने हाथ से मसल रहा था, मेरा दायाँ हाथ अपने आप ही मेरी चूची पर चला गया।

फिर उस आदमी ने चुंबन लेना बंद कर दिया और लड़की की चूचियों को चोली के बाहर से ही दांतो से काटने लगा। उसने लड़की के घाघरे के अंदर हाथ डालकर घाघरे को उसकी जांघों तक ऊपर उठा दिया और लड़की की चिकनी जांघों पर हाथ फिराने लगा। इस लाइव शो को देखकर मैं अपने हाथ से अपनी चूची दबाने लगी और मेरी चूत गीली हो गयी।

"पारो, पारो, तुम कहाँ हो?"

अचानक उस आवाज़ को सुनकर वह दोनों और मैं चौंक पड़े। एक बुड्ढा आदमी जो शायद उस लड़की का पिता या कोई रिश्तेदार था, आवाज़ देकर उसे ढूँढने की कोशिश कर रहा था। वह दोनों एकदम बुत बनकर चुपचाप रहे। आवाज़ देते हुए वह बुड्ढा आगे बढ़ गया। उसके कुछ दूर जाने के बाद लड़की ने अपने कपड़े ठीक किए और बुड्ढे के पीछे दौड़ गयी और वह आदमी भी वहाँ से चला गया।

मैं उस बुड्ढे को कोसने लगी, इतना मज़ा आ रहा था, ना जाने आगे वह दोनों और क्या-क्या करने वाले थे, पर अब तो लाइव शो ख़त्म हो गया था। मैं भी वहाँ से निकल आई और झुमके की दुकान के सामने खड़ी होकर विकास का इंतज़ार करने लगी।

विकास--मैडम, आपकी क़िस्मत अच्छी है, बैलगाड़ी में नहीं जाना पड़ेगा।

मैं बड़ी खुश हुई लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि आगे मेरे साथ क्या होनेवाला है।

"शुक्रिया विकास। क्या जुगाड़ किया तुमने?"

विकास--मैडम, ऑटो मिल गया।

"भगवान का शुक्र है।"

विकास--लेकिन मैडम यहाँ लोग ऑटो से सफ़र नहीं करते हैं। यहाँ ऑटो सामान ले जाने के काम आता है। उसमें सामान भरा होने से आपको थोड़ी दिक्कत हो सकती है।

"फिर भी उस बैलगाड़ी से तो दस गुना अच्छा ही होगा और जल्दी भी पहुँचा देगा।"

विकास--हाँ मैडम, ये तो है। बैलगाड़ी में एक घंटा लग गया था, ऑटो में 15 मिनट लगेंगे।

फिर हम मेले से बाहर आ गये । ऑटो कुछ दूरी पर खड़ा था। मैंने देखा ऑटो की छत और साइड्स पर रस्सियों से सामान बँधा हुआ था।

ऑटो के पास एक मोटा, गंजा आदमी खड़ा था जो 50 से तो ऊपर का होगा। वह धोती और हाफ कमीज़ पहने हुआ था।

विकास--मैडम, ये शर्माजी हैं। ये ऑटो इन्हीं का है। हमारी क़िस्मत अच्छी है कि ये भी आश्रम की तरफ़ ही जा रहे हैं।

शर्माजी--बेटी, तुम्हें थोड़ी दिक्कत होगी क्यूंकी सामान भरा होने से ऑटो में जगह कम है। लेकिन 15 मिनट की परेशानी है फिर तो आश्रम पहुँच ही जाओगी।

मैं उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुरा दी। वह मुझसे बेटी कहकर बात कर रहा था तो मुझे राहत हुई की अच्छा आदमी है और बुज़ुर्ग भी है।

ऑटो में आगे की सीट पर भी सामान भरा हुआ था। इसलिए मैं, विकास और शर्माजी पीछे की सीट पर बैठा गये।

ऑटो में बैठने के बाद मुझे एक छोटा कुत्ता दिखा जो शर्माजी के पैरों में बैठा हुआ था।

शर्माजी--ये मोती है, मेरे साथ ही रहता है। बहुत शांत कुत्ता है, कुछ नहीं करेगा।

मैं शर्माजी के बगल में बैठी थी और मोती मुझे ही देख रहा था । अंजान लोगों को देख कर भी नहीं भौंका, शांत स्वभाव का ही लग रहा था।

शर्माजी--बेटी, मेरे शरीर को तो देख ही रही हो। इस छोटी-सी जगह में आधी जगह तो मैंने ही घेर ली है, तुम्हें परेशानी तो होगी इसलिए मुझे ख़ूब कोसना। क्या पता तुम्हारे कोसने से मैं थोड़ा पतला हो जाऊँ।

उसकी बात पर हम सब हंस पड़े। वास्तव में उस ऑटो में बहुत कम जगह थी। शर्माजी के बगल में मैं बैठी थी और विकास के लिए जगह ही नहीं थी। मैं थोड़ा शर्माजी की तरफ़ खिसकी और जैसे तैसे विकास भी बैठ गया। थोड़ी जगह बनाने के लिए शर्माजी ने अपनी बाई बाँह मेरे पीछे सीट के ऊपर रख दी। मेरा चेहरा उसकी कांख के इतना पास था कि उसके पसीने की बदबू मेरी नाक में आ रही थी।

शर्माजी--बेटी, अब जगह हो रही है?

मैंने हाँ बोल दिया। विकास के लिए सबसे कम जगह थी। उसकी दायीं कोहनी मेरी बायीं चूची को छू रही थी। शर्माजी के सामने मैं विकास की कोई ग़लत हरकत नहीं चाहती थी इसलिए मैंने अपने हाथ से उसकी कोहनी को धकेल दिया।

शर्माजी--हम तीनो को कार पार्क करने के लिए बड़े गेराज की ज़रूरत है।

उसकी बात पर विकास हंस पड़ा पर मुझे समझ नहीं आया।

"शर्माजी, मैं समझी नही।"

शर्माजी--बेटी, मेरा मतलब था कि हम तीनो के पिछवाड़े बड़े-बड़े हैं तो इनको पार्क करने के लिए जगह भी बड़ी चाहिए ना।"

अबकी बार हम सब हंस पड़े। मैंने सोचा शर्माजी तो बड़े मजाकिया मालूम होते हैं। तभी मैंने देखा, ऑटो में अंधेरे का फायदा उठाकर विकास अपनी कोहनी मुझसे छुआ रहा है। इस बार मैंने उसकी कोहनी नहीं हटाई. मुझे विरोध ना करते देखकर विकास अपनी कोहनी से मेरी मुलायम चूची को दबाने लगा।

शर्माजी--अरे...अरे ।मेरा सर!

ऑटो ने किसी गड्ढे में तेज झटका खाया और शर्माजी का सर टकरा गया। ड्राइवर ने तुरंत स्पीड कम कर दी। मैंने शिष्टाचार के नाते शर्माजी से पूछा ज़्यादा तो नहीं लगी।

शर्माजी--ये रॉड से लग गयी बेटी.

शर्माजी ने अपने माथे की तरफ़ इशारा किया। मैं उसकी तरफ़ मुड़ी और उसके माथे को देखने लगी।

कहानी जारी रहेगी

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