Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereऔलाद की चाह
CHAPTER 3 दूसरा दिन
मेले से वापसी
Update 2
औटो ने दो मर्दो ने की छेड़छाड़
तभी ऑटो में एक झटका लगा और मैं बोली "आउच।"
शर्माजी--क्या हुआ बेटी?
मुझे कुछ जवाब देने की ज़रूरत नहीं थी, झटका लगने से शर्मा के हाथो मेरी चूची बाहर जोर से दब गयी थी, मुझे गुदगुदी और अजीब-सी सनसनी हो रही थी।
"ऊऊहह! आआहह!.प्लीज़ इसे हटाओ ।"
शर्माजी--बेटी, घबराओ नही। तुम गिर न जाओ इसी;लिए मैंने तुम्हे पकड़ा था। अपनी स्तनों की त्वचा पर दबाब पड़ने से मेरे बदन में कंपकपी हो रही थी और उत्तेजना आ रही थी। मेरी चूत से रस बहने लगा था और मुझे अजीब गुदगुदी हो रही थी।
शर्माजी--ठीक है। अब तुम ठीक से बैठ जाओ और उनहेमे मुझे पीछे कर बिठा दिया और ड्राइवर को फिरसे डांटा पर मेरी चूची नहीं छोड़ी।
अब उन दोनों मर्दों के सामने मेरी हालत खराब हो गयी थी। मेरा सीट पर बैठना मुश्किल हो गया था। विकास और शर्माजी की हरकतों से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ जा रही थी।
ऊऊहह...आअहह...करते हुए मैं अपना बदन इधर से उधर हिला रही थी और मैं सिसकारियाँ ले रही थी। बड़ी अजीब हालत थी मेरी।
शर्मा जी बोले तुम्हारी साडी अड़ गयी है कही फट न जाए मैं इसे ठीक कर देता हूँ और फिर शर्माजी थोड़ा झुका और साड़ी के साथ पेटीकोट को ऊपर उठाने लगा। मेरी हालत देखकर विकास ने अपने बाएँ हाथ से मेरा बायाँ हाथ पकड़ लिया और दाएँ हाथ को पीछे से ले जाकर मेरा दायाँ कंधा पकड़ लिया। उसकी बाँहों का सहारा मिलने से मैं पीछे को उसके बदन पर ढल गयी । इस बात का उसने पूरा फायदा उठाया और मेरी दायीं चूची पर हथेली रख दी। शर्माजी ना देख पाए इसलिए उसने साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डाला और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूची सहलाने लगा।
शर्माजी ने मेरी गोरी टाँगों को नंगा करने में ज़रा भी देर नहीं की और साड़ी को पेटीकोट के साथ घुटनों तक उठा दिया। शर्माजी भी अब अपनी उमर का लिहाज भूलकर मौके का फायदा उठाने में लगा था। मेरी साड़ी उठाने के बहाने वह मेरी टाँगों पर हाथ फिराने लगा। अब वह मेरी नंगी जांघों को देखने के लिए जबरदस्ती मेरी साड़ी को घुटनों से ऊपर उठाने लगा।
मेरी टाँगें उसने फैला दी । अब साड़ी को और ऊपर करना शर्माजी के लिए मुश्किल हो रहा था। लेकिन बुड्ढे को जोश चढ़ा हुआ था। उसने मेरे नितंबों के नीचे हाथ डाला और दायीं जाँघ को थोड़ा ऊपर उठाकर साड़ी ऊपर करने के लिए पूरी जान लगा दी।
"आउच...प्लीज़ मत करो।"
अब उस हरामी बुड्ढे की वज़ह से मेरी दायीं जाँघ बिल्कुल नंगी हो गयी थी। शर्माजी ने मुझे कोई मौका नहीं दिया और विकास की तरफ़ से भी साड़ी ऊपर उठा दी। अब मेरी साड़ी और पेटीकोट पूरी ऊपर हो चुकी थी। वह तो मैंने पैंटी पहनी हुई थी वरना उस चलते हुए ऑटो में मेरी नंगी चूत दिख गयी होती।
मैं मत करो कहती रही, लेकिन ना विकास रुका और ना शर्माजी।
मेरा बायाँ हाथ विकास ने पकड़ा हुआ था। शर्माजी ने मुझे एक बेशरम औरत की तरह कमर तक नंगा कर दिया था। मैं औरत होने की वज़ह से स्वाभाविक रूप से मत करो कह रही थी पर उन दोनों की हरकतों से मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मेरी चूत से रस बह रहा था।
विकास पहले साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डालकर धीरे से मेरी चूची सहला रहा था। पर अब मुझे उस हालत में देखकर वह भी पूरा फायदा उठाने लगा। उसने अपने दाएँ हाथ से मेरी दायीं चूची को अंगुलियों में पकड़ लिया और ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा। मैं उसके बदन पर सहारे के लिए ढली हुई थी। उसके ज़ोर-ज़ोर से चूची दबाने से मेरे लिए सांस लेना मुश्किल हो गया। मेरा बायाँ हाथ उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ था, मैं उस हालत में उत्तेजना से तड़प रही थी।
शर्माजी उस चलते हुए ऑटो में मुझे नंगा करने पर तुला हुआ था। सब शरम लिहाज छोड़कर वह बुड्ढा अब मेरी नंगी मांसल जांघों को अपने हाथों से मसल रहा था , मैंने पानी साडी ठीक करने की कोशिश की तो शर्माजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने दूसरे हाथ से मेरी जांघों पर फेरने लगा। उसके खुरदुरे हाथों का मेरी मुलायम और चिकनी जांघों पर स्पर्श मुझे पागल कर दे रहा था। वह अपने हाथ को मेरे घुटनों से पैंटी तक फिरा रहा था।
उसकी अंगुलियाँ मेरी पैंटी को छू रही थीं। मोती की ठंडी नाक भी मुझे अपनी पैंटी के ऊपर महसूस हो रही थी। वह तो गुरुजी का पैड चूत के ऊपर लगा हुआ था वरना शर्माजी की अंगुलियाँ मेरी चूत को छू देती।
ऑटो धीमे चल रहा था और अंदर दोनों ने मेरा बुरा हाल कर रखा था। अब मैं कोई विरोध भी नहीं कर सकती थी क्यूंकी एक-एक हाथ दोनों ने पकड़ रखा था।
शर्माजी मेरी जांघों पर हाथ फिराने के बाद फिर से मेरी साड़ी के पीछे पड़ गया। उसने मेरे नितंबों को सीट से थोड़ा ऊपर उठाकर साड़ी और पेटीकोट को मेरे नीचे से ऊपर खींच लिया। अब कमर से नीचे मैं पूरी नंगी थी सिवाय एक छोटी-सी पैंटी के. पैंटी भी पीछे से सिकुड़कर नितंबो की दरार में आ गयी थी। जब साड़ी और पेटीकोट मेरे नीचे से निकल गये तो मुझे अपने नितंबों पर ऑटो की ठंडी सीट महसूस हुई. मेरे बदन में कंपकपी की लहर-सी दौड़ गयी और चूत से रस बहाते हुए मैं झड़ गयी।
"ऊऊओ। आह...।प्लीज़...ये क्या कर रहे हो?"
अब बहुत हो गया था। सिचुयेशन आउट ऑफ कंट्रोल होती जा रही थी। मुझे विरोध करना ही था। पर मुझे सुनने वाला कौन था।
शर्माजी और विकास की वज़ह से मुझे ओर्गास्म आ गया। विकास ने मुझे सहारा देते हुए पकड़े रखा था लेकिन मेरी दायीं चूची पूरी निचोड़ डाली थी। मेरी साड़ी का पल्लू ब्लाउज के ऊपर दायीं तरफ़ को खिसक गया था। विकास ने अपना हाथ छिपाने के लिए पल्लू को दायीं चूची के ऊपर रखा था।
शर्माजी ने अब मेरा हाथ छोड़ दिया और अपना बायाँ हाथ मेरे पीछे ले गया। मैंने सोचा पीछे सीट पर हाथ रख रहा है पर वह तो नीचे मेरी पैंटी की तरफ़ हाथ ले गया। फिर अपने दाएँ हाथ से उसने मुझे थोड़ा खिसकाया और अपनी बायीं हथेली मेरे नितंबों के नीचे डाल दी।
"आउच।"
अब मैं शर्माजी की हथेली के ऊपर बैठी थी और ऑटो को लगते हर झटके के साथ मेरे नितंबों और सीट के बीच में उसकी हथेली दब जा रही थी। ऐसा अनुभव तो मुझे कभी नहीं हुआ था। पर सच बताऊँ तो मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। मेरी पैंटी बीच में सिकुड़ी हुई थी, एक तरह से पूरे नंगे नितंबों के नीचे उसकी हथेली का स्पर्श मुझे पागल कर दे रहा था। मेरी चूत से रस निकल कर पैंटी पूरी गीली हो गयी थी। शर्मा मेरे पीछे पड़ा था।
मुझे बहुत मस्ती चढ़ी हुई थी। इन दोनों की हरकतों से मैं कामोन्माद में थी। शर्माजी की हथेली का मेरे नंगे नितंबों पर स्पर्श मुझे रोमांचित कर दे रहा था।
शर्माजी--बेटी, फिकर मत करो। मैं तुम्हें फिरने नहीं दूंगा पकड़ कर रखूंगा और झटका लगने पर बचा लूँगा।
अब मेरे ब्लाउज के बीच शर्मा जी की हथेली थी। उसने अपनी हाथ से मेरी चूची को पकड़ा और ज़ोर से दबाना शुरू कर दिया। अब दोनों चूचियों को दो मर्द दबा रहे थे ।
"ऊऊऊहह! आआआहह। मत करो प्लीज़ईईई!"
मुझे एक और ओर्गास्म आ गया।
शर्माजी और विकास दोनों ने मेरी एक-एक चूची पकड़ी हुई थी और शर्माजी दूसरे हाथ से मेरे नितंबों को मसल रहा था। विकास ने अब मेरा हाथ छोड़ दिया और अपना बायाँ हाथ आगे ले जाकर मेरी पैंटी को छूने लगा। दोनों मर्द मेरी हालत का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। शर्माजी की भारी साँसें मुझे अपने कंधे के पास महसूस हो रही थी, अपनी उमर के लिहाज से उसके लिए भी शायद ये बहुत ज़्यादा हो गया था।
गुरुजी के दिए पैड को मैंने चूतरस से पूरी तरह भिगो दिया था और अब मैं निढाल पड़ गयी थी। विकास ने अपना हाथ मेरी दायीं चूची से हटा लिया। पर शर्माजी का मन अभी नहीं भरा था। वह अभी भी मेरी बायीं चूची को दबा रहा था। मेरे नितंबों की गोलाई नापता हुआ हाथ भी उसने नहीं हटाया था। आज तक किसी ने भी ऐसे मेरे नंगे नितंबों को नहीं मसला था।
तभी ड्राइवर ने बताया की अब हम मेन रोड पर आ गये हैं। खुशकिस्मती से वह हमें नहीं देख सकता था क्यूंकी उसकी सीट के पीछे भी समान भरा हुआ था।
शर्माजी--बेटी, अपनी साड़ी ठीक कर लो, नहीं तो सामने से आते ऑटोवालों का एक्सीडेंट हो जाएगा।
उसकी बात पर विकास हंस पड़ा। मैं भी मुस्कुरा दी, पूरी बेशरम जो बन गयी थी। मैंने अपने कपड़ों की हालत को देखकर एक लंबी सांस ली। मुझे हैरानी हो रही थी की इतनी उत्तेजना आने के बाद भी मुझे चुदाई की बहुत इच्छा नहीं हुई. मैंने सोचा शायद गुरुजी की जड़ी बूटी का असर हो । क्यूंकी नॉर्मल सिचुयेशन में कोई भी औरत अगर इतनी ज़्यादा एक्साइटेड होती तो बिना चुदाई किए नहीं रह पाती।
उत्तेजना ख़त्म होने के बाद मैं अब होश में आई और कपड़े ठीक करने लगी, पर साड़ी अटकी हुई थी क्यूंकी बुड्ढे का हाथ अभी भी मेरे नितंबों के नीचे था। मैं एक जवान शादीशुदा औरत, एक अंजाने आदमी की हथेली में बैठी हूँ, क्या किया मैंने ये, अब मुझे बहुत शरम आई. मैंने अपने नितंबों को थोड़ा-सा ऊपर उठाया और बुड्ढे ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया।
मैंने जल्दी से साड़ी नीचे की और अपनी नंगी जांघों और टाँगों को ढक दिया, जो इतनी देर से खुली पड़ी थीं। फिर मैंने ब्लाउज के ऊपर साड़ी के पल्लू को ठीक किया और इन दोनों मर्दों के हाथों से बुरी तरह निचोड़ी गयी चूचियों को ढक दिया। उसी समय मैंने देखा शर्माजी अपनी धोती में लंड को एडजस्ट कर रहा है। शायद मुझे चोद ना पाने के लिए उसे सांत्वना दे रहा होगा।
शर्माजी--बेटी, आप गुरूजी के पास किसलिए आये हो?
विकास--मैडम को अभी बच्चा नहीं हुआ है। उसी के इलाज़ के लिए तो गुरुजी की शरण में आई है।
शर्माजी--ओह सॉरी बेटी. लेकिन गुरुजी की कृपा से तुम ज़रूर माँ बन जाओगी।
मैंने मन ही मन सोचा, माँ तो पता नहीं लेकिन अगर अंजाने मर्दों को ऐसे ही मैंने अपने बदन से छेड़छाड़ करने दी तो मैं जल्दी ही रंडी ज़रूर बन जाऊँगी।
फिर हम आश्रम पहुँच गये। शर्माजी से मेरा पीछा छूटा। लेकिन ऑटो से उतरते समय मुझे उतरने में मदद के बहाने उसने एक आखिरी बार अपने हाथ से, साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को दबा दिया।
कहानी जारी रहेगी ...