औलाद की चाह 020

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मेले से वापसी में छेड़छाड़.
1.5k words
4.5
303
00

Part 21 of the 281 part series

Updated 04/26/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 3 दूसरा दिन

मेले से वापसी

Update 1

"आप अपना हाथ हटाइए, मैं देखती हूँ कोई कट तो नहीं लगा है।"

उसने अपना हाथ हटा लिया और मैं दाएँ हाथ से उसके माथे को देखने लगी। उसकी कोहनी से मेरी दायीं चूची दबने लगी लेकिन मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया क्यूंकी वह बुज़ुर्ग आदमी था और मुझे बेटी भी कह रहा था। वह मुझसे लंबे कद का था इसलिए उसके माथे पर देखने के लिए मुझे अपनी बाँह उठानी पड़ रही थी। मेरी खड़ी बाँह के नीचे दायीं चूची पर शर्माजी की कोहनी का बढ़ता दबाव मैंने महसूस किया। मैंने सोचा जगह की कमी से ऐसा हो रहा होगा।

शर्माजी--कटा तो नहीं है ना?

"साफ तो नहीं देख पा रही हूँ, लेकिन कटा तो नहीं दिख रहा है।"

शर्माजी--प्लीज़ थोड़ा ठीक से देख लो बेटीl

मैं अपनी अंगुलियों से उसके माथे पर देखने लगी की कहीं सूजन तो नहीं आ गयी है, उसकी कोहनी मेरी चूची को दबा रही थी। विकास भी मौके का फायदा उठाने में पीछे नहीं रहा। वह भी अपनी कोहनी से मेरी बायीं चूची को ज़ोर से दबाने लगा। अपनी कोहनी को वह मेरी चूची पर गोल-गोल घुमाकर दबा रहा था। हालत ऐसी थी की ऑटो चल रहा था और दो आदमी मेरी दोनों चूचियों को अपनी कोहनी से दबा रहे थे। विकास का तो मुझे पता था कि वह जानबूझकर ऐसा कर रहा है पर शर्माजी के बारे में मैं पक्का नहीं कह सकती।

शर्माजी का माथा देख लेने के बाद मैं अपना हाथ नीचे लाने को हुई तो उसकी कोहनी से मेरी चूची ज़ोर से दब गयी। अब मुझे अपनी दायीं बाँह शर्माजी के पीछे सीट पर रखनी पड़ी क्यूंकी शर्माजी ने मेरे पीछे से अपनी बाँह हटा ली थी तो जगह कम हो रही थी। पर ऐसा करने से मेरी दायीं चूची को मेरी बाँह का प्रोटेक्शन मिलना बंद हो गया।

विकास--मैडम, हाँ ये सही तरीक़ा है। इससे थोड़ी जगह हो जाएगी। जैसे आपने शर्माजी के पीछे अपनी बाँह रखी हुई है वैसे ही मैं भी अपनी बाँह आपके पीछे रख देता हूँ, इससे आपके लिए भी थोड़ी और जगह बन जाएगी।

शर्माजी--विकास भी समझदार होते जा रहा है। है ना बेटी?

फिर से सब हंस पड़े। तभी आगे से एक साइकिल वाला आया और हाथ हिलाकर रुकने का इशारा करने लगा। ड्राइवर ने ऑटो रोका तो उस आदमी ने बताया की आगे एक्सीडेंट हुआ है इसलिए रोड बंद है। यहाँ से बायीं रोड से जाना होगा।

विकास--मैडम, ये तो गड़बड़ हो गयी। वह तो बहुत लंबा रास्ता है।

"उस रास्ते से कितना समय लगेगा?"

विकास--कम से कम 45 मिनट तो लगेंगे।

शर्माजी--और क्या कर सकते हैं। आगे रोड बंद है तो लंबे रास्ते से ही जाना होगा। आधा घंटा ही तो एक्सट्रा लगेगा।

ड्राइवर ने ऑटो मोड़ा और हम दूसरे रास्ते पर आ गये।

शर्माजी--और क्या कर सकते हैं। आगे रोड बंद है तो लंबे रास्ते से ही जाना होगा। आधा घंटा ही तो एक्सट्रा लगेगा।

ड्राइवर ने ऑटो मोड़ा और हम दूसरे रास्ते पर आ गये।

इस दूसरी वाली रोड की हालत खराब थी, बार-बार ऑटो में झटके लग रहे थे। इन झटकों से मेरी बड़ी-बड़ी चूचियाँ ब्रा में ऊपर नीचे उछलने लगी। विकास ने ये बात नोटिस की। मेरा दायाँ हाथ शर्माजी के पीछे सीट पर था और विकास का दायाँ हाथ मेरे पीछे सीट पर था। धीरे-धीरे वह अपना हाथ नीचे को सरकाने लगा और मेरी उठी हुई बाँह के नीचे ले आया।

मैंने तिरछी नज़रों से शर्माजी को देखा, अब विकास मेरी साड़ी के पल्लू के अंदर दायीं चूची को दबाने लगा। मेरी बाँह ऊपर होने से विकास को पूरी आज़ादी मिल गयी थी। ऑटो को लगते हर झटके के साथ विकास ज़ोर से मेरी चूची दबा देता। मुझे भी मज़ा आ रहा था, मैंने पल्लू को थोड़ा दाहिनी तरफ़ कर दिया ताकि विकास का हाथ ढक जाए और शर्माजी देख ना सकेl

तभी ड्राइवर ने ऑटो में अचानक से ब्रेक लगाया, शायद आगे कोई गड्ढा था। लेकिन उससे मुझे शर्मिंदगी हो गयी। विकास का हाथ मेरी चूची पर था। शर्माजी की अंगुलियाँ मेरी दायीं चूची से कुछ ही इंच दूर थी। जब अचानक से ब्रेक लगा तो उसका हाथ मेरी चूची से टकरा गया । इससे मेरी चूची विकास और शर्माजी दोनों के हाथों से एक साथ दब गयी, एक की हथेली के ऊपर दूसरे की हथेली।

शर्माजी--ये क्या तरीक़ा है? ठीक से चलाओ और आगे रास्ते पर नज़र रखो। जल्दबाज़ी करने की ज़रूरत नहीं है।

शर्माजी ने ड्राइवर को डाँट दिया और उसने माफी माँग ली। लेकिन उस झटके में मेरी चूची दबाने के लिए किसी आदमी ने मुझसे माफी नहीं माँगी। शर्माजी के हाथ से टकराने के बाद विकास ने अपना हाथ मेरी चूची से हटाकर मेरे पीछे कंधे पर रख दिया था। शर्माजी की अंगुलियाँ कभी-कभी मेरी चूची से छू जा रही थी।

शर्माजी--बेटी, तुम ठीक हो? कहीं लगी तो नहीं?

मैं थोड़ी कन्फ्यूज़ हुई. ये बुड्ढा मेरा हाल चाल पूछ रहा है और इसकी अंगुलियाँ मेरी चूची को छू रही हैं । फिर मैंने सोचा मैं इस बुज़ुर्ग आदमी के बारे में ग़लत सोच रही हूँ, इसे तो मेरी फिकर हो रही है।

"नही, नही। मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"

शर्माजी के डाँटने के बाद अब ड्राइवर ऑटो धीमा चला रहा था।

विकास के अपना हाथ मेरी चूची से हटा लेने के बाद मैंने राहत की सांस ली, चलो अब ठीक से बैठेगा। लेकिन उसको चैन कहाँ। वह अपना हाथ मेरे कंधे पर ब्लाउज के ऊपर फिराने लगा। उसकी अंगुलियाँ मेरे कंधे पर ब्रा के स्ट्रैप को छूती हुई नीचे को जाने लगी और पीछे ब्लाउज के हुक पर आ गयी, मेरे बदन में कंपकपी-सी दौड़ गयी। उधर विकास अपनी अंगुलियों से पकड़कर मेरी ब्रा के स्ट्रैप को पीछे खींच रहा था। स्ट्रैप को पीछे की ओर खींचता फिर झटके से छोड़ देता। उसका यही खेल हो रहा था। अगर किसी औरत की ब्रा से कोई ऐसे करे तो वह आराम से कैसे बैठ सकती है? फिर भी मैं चुपचाप से बैठने की पूरी कोशिश कर रही थी। विकास की इस छेड़छाड़ से मैं उत्तेजित होने लगी थी।

कुछ समय बाद विकास बोर हो गया और उसने मेरी ब्रा के स्ट्रैप से खेलना बंद कर दिया। अब उसका हाथ मेरी पीठ पर ब्लाउज से नीचे को जाने लगा। मेरी स्पाइन को छूते हुए उसका हाथ ब्लाउज और साड़ी के बीच मेरी कमर पर आ गया।

ऑटो को लगते झटको से शर्माजी की अंगुलियाँ मेरी चूची से छू जा रही थी। बुज़ुर्ग होने की वज़ह से मैं ध्यान नहीं दे रही थी पर एक बार उसका अंगूठा मैंने अपने निप्पल के ऊपर महसूस किया। मुझे लगा ऐसा अंजाने में हो गया होगा लेकिन ऐसे छूने से मेरे निप्पल तन गये।

मैं शरमा गयी। मुझे शरमाते देख शर्माजी हंस पड़ा, शायद मुझे हंसाने के लिएl

शर्माजी--बेटी, मेरे मज़ाक से तुम बुरा तो नहीं मान रही हो ना?

"ना ना। ऐसी कोई बात नही।"

लेकिन मैं अभी भी उसकी बात पर शरमा रही थी। मैंने शर्माजी के पीछे से अपना हाथ हटाया, विकास का हाथ मेरी कमर में था और वह मेरी पेटीकोट के अंदर अपनी अंगुली घुसाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन शर्माजी को मेरी तरफ़ मुड़ा हुआ देखकर विकास ने अपनी हरकत रोक दी।

पर अब दूसरी मुसीबत सामने से थी। शर्माजी के हाथों से मेरी चूचियाँ दब जा रही थी। हालाँकि वह बुज़ुर्ग आदमी था और मुझे लगा की ये अंजाने में हो रहा है पर ऐसे छूने से मुझे उत्तेजना आ रही थी।

शर्माजी की अंगुलियों से कई बार मेरी चूचियाँ दब चुकी थी। विकास ने देखा अब मोती शांत बैठ गया है। उसने फिर से अपनी अंगुली मेरी पेटीकोट में घुसानी शुरू कर दी और मेरी पैंटी छूने की कोशिश करने लगा। वह तो अच्छा था कि मैंने पेटीकोट कस के बाँधा हुआ था तो विकास ज़्यादा अंदर तक अंगुली नहीं डाल पा रहा था।

शर्माजी मुझसे और भी सट गया, शर्माजी की अंगुलियाँ मेरी चूची पर रगड़ रही थी।

उसके बेटी कहने से मुझे अपने ऊपर ग्लानि हो रही थी की मैं इसके बारे में ग़लत ख़्याल कर रही हूँ। मैंने उसकी अंगुलियों के छूने को नज़रअंदाज़ कर दिया। विकास ने मेरी पेटीकोट में अंगुली घुसाने का खेल भी बंद कर दिया था। अब वह हाथ और नीचे ले जाकर साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को छू रहा था। मेरे मक्खन जैसे मुलायम बड़े नितम्बों में बहुत रस था, उन्हें दबाने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा। उसका पूरा हाथ नहीं जा पा रहा था इसलिए मैं थोड़ा आगे खिसक गयी।

मेरे आगे खिसकने से उसके हाथ के लिए जगह हो गयी और मज़े लेते हुए मेरे नितंबों पर हाथ फिराने लगा। उसके ऐसे हाथ फिराने से मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा था। एक ही दिन में आज ये दूसरा मर्द था जो मेरी गांड दबा रहा था।

अब अँधेरा बढ़ने लगा था। शर्माजी की हथेली खिसक गयी थी। उसकी हथेली ब्लाउज और पल्लू के बाहर से मेरी चूची के ऊपर। एक आदमी पीछे से मेरे बड़े नितंबों से मज़े ले रहा था और दूसरा आगे से चूची पर हाथ फिरा रहा था। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। गुरुजी की जड़ी बूटी के असर से उन दोनों के बीच मेरी हालत एक रंडी की जैसी हो गयी थी।

रास्ता थोड़ा ख़राब था और झटके लगने पर शर्माजी मेरी चूचियों की मालिश कर दे रहा था।

शर्माजी--लगता है (तुम्हारी) गर्मी सहन नहीं हो रही।

उसकी बात पर विकास ज़ोर से हंस पड़ा और शर्माजी के कमेंट की दाद देने के लिए मेरे नितंबों पर ज़ोर से चिकोटी काट ली। मैं भी बेशर्मी से हंस दी।

विकास ने मेरे नितंबों को दबाना बंद कर दिया।

कहानी जारी रहेगी

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