अम्मी बनी सास 014

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नीलोफर की चुदाई
5.1k words
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Part 14 of the 92 part series

Updated 06/10/2023
Created 05/04/2021
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कुछ देर ज़ाहिद ने ऊपर से कोई हरकत ना की मगर नीचे से जमशेद हल्के-हल्के झटके मारता हुआ अपनी बेहन की चूत को चोदने में मसरूफ़ रहा।

नीलोफर ने अब अपनी गान्ड को थोड़ा ढीला छोड़ दिया। जिस की वज़ह उस की गान्ड में दर्द की शिद्दत कम होने लगी और अब उसे अपनी गान्ड में फँसा हुआ ज़ाहिद का लंड अच्छा लगने लगा।

जब ज़ाहिद ने महसूस किया कि नीलोफर की गान्ड की दीवारे उस के लंड के इर्द गिर्द थोड़ी ढीली पड़ने लगी हैं। तो वह भी समझ गया कि अब नीलोफर की गान्ड ने उस के लंड को अपनी आगोश में "काबूलियत" का "शरफ" बख्स दिया है।

इस बात को जानते ही ज़ाहिद ने आहिस्ता-आहिस्ता अपने लंड को आगे पीछे कर के नीलोफर की गान्ड की चुदाई दुबारा से शुरू कर दी।

ज़ाहिद ने अपना पूरा दबाव नीलोफर की पुष्ट पर डाला हुआ था। जिस की वज़ह से नीलोफर बुरी तरहा अपनी भाई के सीने से चिपटी हुई थी और ज़ाहिद के झटकों की वज़ह से नीलोफर के बड़े-बड़े मम्मे के निपल्स उस के भाई की सख़्त छाती से रगड़ खा रहे थे। इस वज़ह से नीलोफर को अपनी चुदाई का और भी मज़ा आ आने लगा।

नीलोफर की चूत और गान्ड के दरमियानी हिस्से में जो उस के बदन का पतला-सा गोश्त था।उस गोश्त के अंदर से जमशेद को नीलोफर की गान्ड में जाता हुआ ज़ाहिद का लंड अपने लंड से टकराता हुआ महसूस हो रहा था।

जब कि नीचे से ज़ाहिद के लटकते हुए टटटे जमशेद के टट्टो के साथ टकरा रहे थे।

अब नीलोफर अपने भाई और एएसआइ ज़ाहिद के दरमियाँ में एक स्वन्डविच बनी हुई थी और वह दोनों नीलोफर की चूत और गान्ड को मज़े ले-ले कर चोद रहे थे।

नीलोफर ने इस से पहले कभी दो मर्दो से एक साथ नहीं चुदवाया था। इस लिए चुदाई के इस अंदाज़ ने उस को जिन्सी लज़्ज़त की उन मंज़िलो तक पहुँचा दिया कि जिस का उस ने कभी तसव्वुर भी नहीं किया था।

वो अब तक कितनी बार झड चुकी थी। इस का ख़ुद उसे भी नहीं पता था।झड झड कर नीलोफर की चूत पूरी सूख चुकी थी।

नीलोफर को अपनी इस तरह की चुदवाइ का बहुत मज़ा आ रहा था और वह मज़े के आलम में चीखने लगी।

जमशेद और ज़ाहिद को नीलोफर की चूत और गान्ड की चुदाई करते हुए 10 मिनिट्स से ज़्यादा का टाइम हो गाया था।और इस ज़ोरदार चुदाई की वज़ह से वह तीनो पसीने-पसीने हो गये थे।

कुछ लम्हे बाद जमशेद बोला: ओह्ह्ह्ह नीलोफर मेरी जान में अब छूटने वाला हूँ।

ज़ाहिद ने ज्यों ही यह सुना तो वह नीलोफर के पीछे से फॉरन बोला: यार थोड़ा सबर कर में भी छूटने लगा हूँ दोनों साथ छूटेंगे।

फिर दोनों ने एक साथ पूरे जोश में आ कर नीलोफर की चूत और गान्ड में झटके मारे।

दोनो के लंड ने एक साथ झटका खाया और दोनों के लंड से एक साथ वीर्य की पिचकारी निकली। जो नीलोफर की चूत और गान्ड को एक साथ भरती चली गई.

दो लंड के गरमा गरम वीर्य को एक साथ अपनी चूत और गान्ड के अंदर छूटता हुआ महसूस कर के नीलोफर को जो मज़ा मिला वह उस के लिए ना क़ाबले बयान था।

मज़े की शिद्दत से महज़ूज़ होते हुए नीलोफर के जिस्म ने एक झटका खाया और उस की अपनी चूत ने भी एक बार फिर अपना पानी छोड़ दिया।

अपनी चूत का पानी छूटा हुआ महसूस करते ही नीलोफर को ऐसा स्वाद आया कि उस ने मज़े में आते हुए अपनी आँखे बंद कर लीं।

नीलोफर की ऐसी चुदाई आज तक किसी ने नहीं की थी।वो अपने हाल से बे हाल हो गई थी और वह इस भरपूर चुदाई के हाथो बिल्कुल मदहोश हो चुकी थी।

अब वह तीनो बिस्तर पर एक दूसरे के ऊपर उसी तरह पड़े लंबी-लंबी साँसे ले रहे थे।

जमशेद और ज़ाहिद के लंड अभी तक नीलोफर की गान्ड और चूत में धन्से हुए थे और उन के लंड का रस आहिस्ता-आहिस्ता बहता हुआ नीलोफर की चूत और गान्ड से बाहर निकल कर बिस्तर की चादर में जज़्ब हो रहा था।

कुछ देर बाद जब अपने जिस्म के ऊपर बेसूध पड़े एएसआइ ज़ाहिद के जिस्म का बोझ नीलोफर के लिए ना क़ाबले बर्दास्त हो गया तो उस ने ज़ाहिद को अपने जिस्म से अलग होने को कहा।

ज्यों ही ज़ाहिद नीलोफर से अलहदा हो कर बिस्तर पर ढेर हुआ। तो नीलोफर की जान में जान आईl

थोड़ी देर अपनी बिखरी सांसो को बहाल करने के बाद नीलोफर अपनी भाई के लंड से उठी और अपने कपड़े ले कर बाथरूम की तरफ़ चल पड़ी।

आज दो मर्दो के हाथो अपनी चुदाई और ख़ास्स तौर पर पहली दफ़ा गान्ड मरवाई के बाद नीलोफर के लिए इस वक़्त बाथरूम तक चल कर जाना भी मुश्किल हो रहा था।

उस की चूत और गान्ड चुदाई की शिद्दत की वज़ह से सूज कर फूल गईं थीं और उस की चूत और गान्ड में बुरी तरह से एक जलन-सी हो रही थी।जिस की वज़ह से उस के लिए चलना भी मुहाल हो रहा था।

जैसे तैसे कर के वह बाथरूम पहुँची और अपने मुँह और जिस्म को सॉफ कर के उस ने बड़ी मुश्किल से अपने कपड़े पहने और फिर बाथरूम से बाहर निकल आईl

नीलोफर के बाथरूम से बाहर आने तक जमशेद और ज़ाहिद भी अपने-अपने कपड़े पहन चुके थे।

ज्यों ही नीलोफर बाथरूम से वापिस लॉटी तो एएसआइ ज़ाहिद ने दोनों बेहन भाई को अपनी क़ैद से रिहाई की सज़ा सुनाईl

जमशेद और नीलोफर को यक़ीन ना हुआ कि ज़ाहिद उन को यूँ पैसे लिए बगैर जाने दे गा।

मगर फिर ज्यों ही उन्हो ने ज़ाहिद के मुँह से चले जाने के इलफ़ाज़ सुने। तो जमशेद और नीलोफर ने फॉरन कमरे से बाहर निकल जाने में ही अपनी ख़ैरियत समझी।

वो दोनों बेहन भाई जैसे ही कमरे से बाहर निकलने लगे तो ज़ाहिद ने उन को पीछे से आ कर फिर रोक लिया।

ज़ाहिद: में तुम दोनों को एक शर्त पर जाने की इजाज़त दे रहा हूँ।

जमशेद: वह क्या?

ज़ाहिद: बात यह है कि आज नीलोफर को चोद कर मुझे बहुत मज़ा आया है और में चाहता हूँ कि तुम कभी कभार उसे मुझ से चुदवाने के लिए इधर ले आया करो।

यह कह कर ज़ाहिद ने जमशेद को अपने मकान की चाभी देते हुए कहा" इसे अपने पास रख लो और जब दिल चाहे तुम लोग बिना किसी खोफ़ के इधर आ कर एक दूसरे के साथ चुदाई कर सकते हो।

जमशेद दिली तौर पर ज़ाहिद की किसी शर्त या ऑफर को कबूल करने पर तैयार ना हुआ। मगर मोके की नज़ाकत को समझते हुए उस ने खामोशी इक्तियार कर के ज़ाहिद से चाभी ले कर अपनी पॉकेट में रख ली और अपनी बेहन को ले कर तेज़ी से बाहर निकल गया।

उस शाम जब ज़ाहिद अपने घर वापिस आया तो उस की नज़र घर के सहन में काम करती अपनी बेहन शाज़िया पर पड़ी। जो उस वक़्त एक टब में पानी ले कर सब घर वालो कपड़े धोने में मसरूफ़ थी।

ज़ाहिद को घर के अंदर आते देख कर शाज़िया ने अपने भाई को सलाम किया और भाई का हाल चाल पूछ कर दुबारा अपने काम में मसरूफ़ हो गई.

शाज़िया को देखते ही ज़ाहिद को दिन में नीलोफर की कही हुई बात याद आ गई। कि जवान जिस्म की आग बहुत ज़ालिम होती है और जवानी की यह आग रात की तन्हाई में एक अकेली औरत को उस के बिस्तर पर बहुत तंग करती है।

ज़ाहिद यह बात याद कर के सोच में पड़ गया। कि अगर शादी शुदा होने के बावजूद नीलोफर को उस की जिस्म की आग इतना तंग कर सकती है।के वह अपने शोहर के होते हुए भी अपने ही सगे भाई से चुदवाने पर मजबोर हो जाय।

जब कि उस की बेहन शाज़िया तो एक तलाक़ याफ़्ता औरत है। वह अभी जवान है और नीलोफर की तरह यक़ीनन शाज़िया की जवानी के भी जज़्बात होंगे । तो वह कैसे अपने इन जज़्बात को ठंडा करती होगी।

आज दिन को पेश आने वाले वाकये का खुमार अभी तक ज़ाहिद के होशो-हवास पर छाया हुआ था। जिस ने ज़ाहिद को अपनी बेहन के बड़े में पहली बार ऐसा कुछ सोचने पर मजबूर ज़रूर कर दिया था। जब के आम हालत में ज़ाहिद के दिमाग़ में इस क़िस्म की सोच आना एक नामुमकिन-सी बात होती।

लेकिन इस के साथ-साथ हर भाई की तरह ज़ाहिद के लिए भी उस की बेहन एक शरीफ़ और पाक बाज़ औरत थी।और अपनी बेहन के मुतलक ज़ाहिद ज़ेहनी तौर पर यह बात कबूल करने को तैयार नहीं हो पा रहा था। कि नीलोफर की तरह उस की बेहन शाज़िया भी गरम होती होगी।

इस लिए वह अपने दिमाग़ में आने वाले इन ख्यालात को झटकता हुआ अपनी अम्मी के पास टीवी लाउन्ज में जा बैठा।

ज़ाहिद की अम्मी ने अपने बेटे के लिए खाना लगा दिया। ज़ाहिद खाना खाते ही अम्मी को खुदा हाफ़िज़ कह कर अपने कमरे में चला आया और एक फिर की स्टडी करने लगा।

ज़ाहिद को दूसरे दिन सुबह जल्दी उठा कर पिंडी जाना था। इस लिए वह जल्द ही बिस्तर पर सोने के लिए लेट गया और दिन भर की थकावट की बदोलत वह फ़ॉरन ही नींद में चला गया।

उधर भाई की नज़रो में शरीफ़ और नेक परवीन नज़र आने वाली शाज़िया की हालत भी नीलोफर से मुक्तिलफ नहीं थी।

शाज़िया के जिस्म में भी जवानी की आग तो बहुत थी। मगर अपनी इस आग को किसी गैर मर्द से बुझवाने के लिए वह कोई ख़तरा मोल नहीं ले सकती थी।

क्योंकि वह नहीं चाहती थी।कि इस के किसी भी ग़लत क़दम से उस के ख़ानदान की इज़्ज़त पर कोई उंगली उठाएl

मगर इस के बावजूद सच्ची बात तो यह थी। कि नीलोफर की तरह शाज़िया को भी तलाक़ के बाद उस के अपने जिस्म की आग ने बहुत परेशान कर रखा था।

लेकिन शाज़िया अपने जिस्म की आग को अभी तक अपने अंदर ही रख ने में कामयाब रही थी।

क्योंकि इस आग को संभालने का हल उस ने यह निकाला था। कि वह बाथरूम में नहाते वक़्त अक्सर अपनी जवानी की आग को अपनी उंगली से ठंडा कर के पूर सकून हो जाती थी।

उस रात भी शाज़िया किचन में सारे काम निपटा कर थकि हारी अपने कमरे में आइए तो देखा कि उस की अम्मी उस के आने से पहले ही सो चुकी हैं।

शाज़िया ने भी खामोशी से अपना बिस्तर सीधा किया और अपना दुपट्टा उतार कर अपने सिरहाने रखा और अपने बिस्तर पर लेट गईl

कमरे में उस की अम्मी के ख़र्राटों की आवाज़ पूरी तरह से गूँज रही थी। इस लिए इस शोर में शाज़िया का सोना मुहाल हो रहा था।

वैसे भी आज नींद शाज़िया की आँखों से कोसो दूर थी। वह करवट ले कर कभी इधर तो कभी उधर, कभी सीधा तो कभी उल्टा हो रही थी।

इस की वज़ह यह थी। कि हर शादी शुदा लड़की की तरह शाज़िया को तलाक़ के बाद भी अपनी सुहाग रात कभी नहीं भूली थी और आज फिर शाजिया को अपनी सुहाग रात शिद्दत से याद आ रही थी।

उस रात शाज़िया को उस के सबका शोहर ने 3 बार चोदा था और उन की चुदाई सुबह होने तक चली थी।

अपनी सुहाग रात को याद कर के शाज़िया की हालत बिगड़ने लगी और उस का पूरा जिस्म पसीने से भीगने लगा।जब कि प्यास कर मारे उस का गला भी खुश्क हो चुका था।

शाज़िया ने अपनी कमीज़ के कोने को उठा कर अपना चहरा सॉफ किया। फिर और दूसरे बिस्तर पर सोई हुई अपनी अम्मी की तरफ़ देख कर वह यह इतमीनान करने लगी कि वाकई ही उस की अम्मी सो चुकी हैं या नही।

कमरे में हल्की-हल्की रोशनी की वज़ह से उस को नज़र आया कि उस की अम्मी वाकई ही दूसरी तरफ़ करवट बदल कर सो रहीं हैं। तो शाज़िया ने पहले तो अपने दोनों हाथो से अपनी बड़ी-बड़ी छातियों को अपने हाथो में ले कर उन को हल्का-हल्का दबाना शुरू किया।

फिर थोड़ी देर अपने मम्मों से खेलने के बाद शाजिया ने अपना एक हाथ आहिस्ता-आहिस्ता अपने पेट से नीचे ले जा कर उसे अपनी शलवार के अंदर डाला और अपने हाथ को अपनी चूत के ऊपर रख दिया।

अपने चूचों से ख़ुद की छेड़ खानी करने ही से शाज़िया की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी। अपने चूचों को अपने हाथों से प्रेस करने की बदोलत ना सिर्फ़ शाज़िया की चूत बिल्कुल गीली हो गई थी। बल्कि उस की सारी शलवार भी चूत का पानी छूटने की वज़ह से गीली हो गई थी।

शाज़िया ने अपने हाथ को अपनी चूत के ऊपर रखते ही अपनी गीली चूत में दो उंगलियाँ डाल दीं और बहुत तेज़ी के साथ अपनी उंगलियों को चूत में अंदर बाहर करने लगी।

शाज़िया के दिमाग़ में शादी के दिनो के वह सारे मंज़र घूमने लगे। जब उस का शोहर उसे तरह-तरह के पोज़ में चोदता था।

अपने पुराने शोहर का लंबा, मोटा और सख़्त लंड शाज़िया को इस वक़्त बहुत याद आ रहा था।और वह गरम होते हुए अपनी चूत को ख़ुद ही अपनी उंगलियों से चोद रही थी।

इस तरह अपनी चूत से खेलते वक़्त शिद्दती जज़्बात से बेबस हो कर शाज़िया अपने होश गँवा बैठी।

उसे यह याद ही ना रहा कि उस के साथ कमरे में उस की अम्मी भी सो रही हैं।

अपनी चूत को रगड़ते-रगड़ते शाज़िया के मुँह से "सीयी सीयी-सी उम्मह उम्मह" की आवाज़ें आने लगीं।जिन को सुन कर कमरे के दूसरी तरफ़ सोती हुई शाज़िया की अम्मी रज़िया बीबी की आँखे अचानक खुल गई.

पहले तो रज़िया बीबी को समझ नहीं आई कि यह किस क़िस्म की आवाज़ें उस के कानो में सुनाई दे रही हैं। फिर जब उस की आँखें कमरे की हल्की रोशनी में देखने के काबिल हुईं। तो उस ने अपनी बेटी शाज़िया के जिस्म के निचले हिस्से पर पड़ी चादर को तेज़ी से ऊपर नीचे होते देखा तो वह हैरत जदा रह गईl

रज़िया बीबी ख़ुद बेवा की ज़िंदगी गुज़ार रही थी। इस लिए वह अपनी बेटी की तरफ़ देखते और कमरे में आती आवाज़ों को सुन कर फॉरन समझ गई। कि इस वक़्त उस की बेटी शाज़िया किस किसम का "खेल" खेलने में मसरूफ़ है।

फिर रज़िया के देखते ही देखते शाज़िया के जिस्म ने एक ज़ोर का झटका लिया और फिर वह पुरसकून हो गईl

शाज़िया की अम्मी ने अपनी बेटी को अपनी चूत में उंगली मारते देख तो लिया था। मगर वह यह बात सोच कर चुप हो गई कि आख़िर जवान बेटी के भी जज़्बात हैं।

और अपने शोहर से तलाक़ के बाद अपने जवानी के मचलते जज़्बात को बुझाने के लिए अब शाज़िया कर भी क्या सकती थी।

यही बात सोच कर रज़िया बीबी ने करवट बदली और फिर से सोने के जतन करने लगी।

उधर अपनी अम्मी के जाग जाने से बे ख़बर शाज़िया ने भी अपनी चूत के पानी को निकाल कर सकून की साँस ली और अपने हाथ को अपनी शलवार के अंदर ही छोड़ कर नींद में चली गईl

दूसरे दिन ज़ाहिद को एक केस के सिलसिले में रावलपिंडी की हाइ कोर्ट में अपना बयान रेकॉर्ड करवाना था। इस लिए वह अपनी अम्मी और बेहन शाज़िया के उठने से पहले ही घर से निकल कर पिंडी चला गया।

शाज़िया सुबह उठ कर स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगी। जब कि उस की अम्मी ने हाथ मुँह धो कर अपने और शाज़िया के लिए नाश्ता तैयार करना शुरू कर दिया।

नाश्ते से फारिग होते ही शाज़िया के कानों में अपनी स्कूल वॅन के हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी। तो वह जल्दी से अम्मी को खुदा हाफ़िज़ कह कर स्कूल के लिए निकल पड़ी।

स्कूल पहुँच कर ज्यों ही शाज़िया स्टाफ रूम में दाखिल हुई। तो उस का सामना चेयर पर बैठी हुई एक खूबसूरत और जवान टीचर से हुआ।

शाज़िया यह ज़रूर जानती थी कि यह टीचर अभी नई-नई (न्यू) उस के स्कूल में आई है। मगर इस टीचर से अभी तक शाज़िया का तार्रुफ नहीं हुआ था।

जब उस टीचर ने शाज़िया को स्टाफ रूम में दाखिल होते देखा तो वह अपनी चेयर से उठ खड़ी हुई और शाज़िया की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाते हुए बोली" अस्लाम-वालेकुम मेरा नाम नीलोफर है और में आप के स्कूल में अभी नई आई हूँ।

(जी हाँ रीडर्स यह टीचर वह ही नीलोफर थी। जिस को एक दिन पहले एएसआइ ज़ाहिद ने अपने ही भाई के साथ चुदाई करते रंगे हाथों पकड़ा था।

चूँकि नीलोफर ने उसी सुबह ज़ाहिद को उस की बेहन शाज़िया के साथ स्कूल के गेट पर देखा हुआ था। इसी लिए वह अल कौसेर होटेल के रूम में ज़ाहिद को देख कर चोन्कि थी।)

शाज़िया: वाले-कूम-सलाम, आप से मिल कर ख़ुसी हुईl

यह कह कर शाज़िया ने भी उसे अपना तारूफ़ करवाया और फिर वह दोनों अपनी-अपनी क्लास को अटेंड करने निकल गईं।

नीलोफर ने अपनी क्लास के स्टूडेंट्स को पढ़ने के लिए सबक दिया और ख़ुद सीट पर बैठ कर कुछ सोचने लगी।

इस के बावजूद नीलोफर ने कल दो मर्दो से एक साथ चुदवा कर जिन्सी ज़िन्दगी का एक नया मज़ा लूटा था। मगर फिर भी नीलोफर को एएसआइ ज़ाहिद के पोलीस रेड की वज़ह से इस तरह रंगे हाथों पकड़े जाने और फिर यूँ अपनी गान्ड की सील तुड़वाने का बहुत रंज हुआ था।

अब जब कि एक बार की चुदाई के बाद एएसआइ ज़ाहिद ने उस को दुबारा अपने पास आ कर चुदवाने का कह दिया था। तो अब नीलोफर को यह डर लग गया था कि वह नज़ाने कब तक एएसआइ ज़ाहिद के हाथों ब्लॅक मैल होती रहे गी।

इस लिए वह अब यह सोचने पर मजबूर हो गई। कि किस तरह जल्द आज़ जल्द वह कोई ऐसी राह निकाल ले जिस की वज़ह से एएसआइ ज़ाहिद उन दोनों बेहन भाई की जान छोड़ दे।

सोचते सोचते नीलोफर को एक प्लान ज़हन में आया और इस को सोच कर वह खुद-ब-खुद ही मुस्कराने लगी।

फिर उसी दिन घर जा कर नीलोफर ने अपने भाई जमशेद को बुलाया और उस को अपना सारा प्लान बता दिया।

जमशेद भी यह जानता था। कि अगर वह चुप रहे तो एएसआइ ज़ाहिद उन को हमेशा किसी ना किसी तरीके से ब्लॅक मैल करता रहेगा।

इस लिए अपनी बेहन का प्लान सुन कर उसे भी यक़ीन हो गया कि अगर उन की क़िस्मत ने साथ दिया तो वह एएसआइ ज़ाहिद से छुटकारा हाँसिल कर सकते हैं।

उधर पिंडी में कोर्ट से फारिग हो कर ज़ाहिद सदर बाज़ार चला आया।

कल उस का मोबाइल फ़ोन उस के हाथ से गिर कर टूट जाने की वज़ह से उस के पास अब कोई फ़ोन नहीं था। इस लिए ज़ाहिद ने एक नया फ़ोन मोबाइल खरीदने का इरादा किया।

आज कल स्मार्ट फोन्स मार्केट में आ जाने की वज़ह से हर दूसरा आदमी इस क़िस्म के फोन्स का दीवाना बना नज़र आता है।

और जो लोग आइफ़ोन या सॅमसंग गॅलक्सी अफोर्ड नहीं कर सकते, उन के लिए कई तरह के दूसरे ब्रांड के स्मार्ट फोन्स मार्केट में दस्तियाब हैं।

इस लिए एक मोबाइल शॉप पर नये फ़ोन चेक करते हुए ज़ाहिद ने "क्यू मोबाइल" के नये मॉडेल के ड्युयल सिम वाले दो स्मार्ट फ़ोन खरीद लिएl

एक फ़ोन ज़ाहिद ने अपने लिए खरीदा और दूसरा उस ने अपनी बेहन शाज़िया को तोहफे में देने के इरादे से खदीद लिया।फिर ज़ाहिद ने अपनी अम्मी के लिए भी कुछ शलवार कमीज़ सूट्स खरीदे और झेलम वापिस आने के लिए फ्लाइयिंग कोच (वॅन) में बैठ गया।

झेलम वापसी के सफ़र के दौरान ज़ाहिद फिर से नीलोफर और उस के भाई के ताल्लुक़ात के बड़े में सोचने लगा।

ज़ाहिद के दिल में ख्यान आया कि यह कैसे मुमकिन है कि एक सगा भाई अपने जिन्सी जज़्बात के हाथो मजबूर हो कर अपनी ही सग़ी बेहन से जिस्मानी ताल्लुक़ात क़ायम कर बैठे।

यह ही बात सोचते-सोचते कल शाम की तरह ज़ाहिद का ध्यान दुबारा अपनी बेहन शाज़िया की तरफ़ चला गया।

"मेरी बेहन को तलाक़ हुए काफ़ी टाइम हो चुका है। तो वह अब अपनी जवानी के उभरते हुए जज़्बात को कैसे ठंडा करती हो गी" ज़ाहिद के ज़हन में कल वाला सवाल दुबारा फिर से गूंजा।

नीलोफर की उस के भाई के साथ चुदाई देखने के बाद ज़ाहिद का लंड भी अब आहिस्ता-आहिस्ता ज़ाहिद को उस की अपनी ही सग़ी बेहन की जानिब "मायाल" करने की कोशिस कर रहा था। मगर ज़ाहिद के दिल और दिमाग़ उसे इस क़िस्म की ग़लत सोचों से बाज़ रहने की तालकीन कर रहे थे।

इस कशमकश में गिरफ्तार ज़ाहिद कभी अपने लंड की बात मान लेता और कभी अपने दिल-ओ-दिमाग़ की सुन लेता।

"उफ़फ्फ़ में यह किस सोच में पड़ गया हूँ। मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए अपनी बेहन के बारे में" अपनी बेहन का ख़्याल ज़हन में आते ही ज़ाहिद को एक धक्का-सा लगा।

और ज़ाहिद ने अपने दिमाग़ से अपनी बेहन के ख़्याल निकालने की कॉसिश करते हुए अपनी नज़रों को रोड की तरफ़ लगा दिया। ता कि चलती वॅन में से बाहर का नज़ारा देखते हुए उस की सोच उस के काबू में आ जाएl

मगर सयाने कहते हैं कि इंसान कभी अपनी सोचो पर काबू नहीं पा सका है। इस लिए ज़ाहिद की सोच भी रह-रह कर उस के दिमाग़ को उस की बेहन की तरफ़ मुत्वज्जो करने पर तुली हुई थी।

"नीलोफर की तरह मेरी बेहन का बदन भी तो प्यास हो गा तो क्यों ना में भी अपन ही बेहन को फासने की कोशिश करूँ" ज़ाहिद के ज़हन में पहली बार अपनी बेहन के बारे में यह गंदा ख़याल उमड़ा।

"मुझे शरम आनी चाहिए अपनी इस घटिया सोच पर, जमशेद ने जो कुछ अपनी बेहन के साथ किया उस का हिसाब वह ख़ुद दे गा, जो भी हो आख़िर शाज़िया मेरी सग़ी बेहन है और अपनी बेहन के बारे में मेरा इस तरह सोचना भी एक गुनाह है" ज़ाहिद यह बात सोच कर ही काँप गया और फॉरन ही उस के ज़मीर ने उस की सोच पर मालमत करते हुए ज़ाहिद को समझाया।

आख़िर कार ज़ाहिद ने अपने दिमाग़ की बात मानते हुए अपने ज़हन को सकून पहुँचाने के इरादे से वॅन की विंडो के साथ टेक लगा कर अपनी आँखे बंद कर लीं।

शाम को घर पहुँच कर ज़ाहिद ने अपनी अम्मी को उन के लिए लाए हुए कपड़े दिए कर पूछा"अम्मी शाज़िया कहाँ है?"

"वो अपने कमरे में लेटी हुई है बेटा" ज़ाहिद के हाथों से अपने कपड़ो का बॅग लेते हुए रज़िया बीबी ने कहा।

"अच्छा में जा कर शाज़िया को उस का मोबाइल देता हूँ आप इतनी देर में मेरे लिए खाना गरम करें" कहता हुए ज़ाहिद अपनी बेहन के कमरे की तरफ़ गया।

शाज़िया के कमरे का दरवाज़ा खुला ही था। इस लिए ज़ाहिद सीधा अपनी बेहन के कमरे में दाखिल हो गया।

कमरे में शाज़िया ओन्धे मुँह बिस्तर पर इस हालत में सोई हुई थी। कि पीछे से उस की भारी गान्ड से उस की कमीज़ का कपड़ा, कमरे में चलते हुए फॅन की तेज हवा की वज़ह से उठ गया था।

गान्ड पर से कमीज़ उठ जाने की वज़ह से शाज़िया की पतली सलवार उस को भारी, मोटी और गुदाज गान्ड की पहाड़ियों को ढांपने से नाकाम हो रही थी।

लेकिन शाज़िया इस बात से बे नियाज़ और बे ख़बर हो कर सकून की नींद सो रही थी।

शाज़िया के इस अंदाज़ में लेटने की वज़ह से ज़ाहिद को अपनी बेहन शाज़िया की मोटी और भारी गान्ड का नज़रा पहली बार देखने को मिल गया।

अपनी बेहन को इस हालत में सोता देख कर ज़ाहिद को थोड़ी शरम महसूस हुई.मगर चाहने के बावजूद ज़ाहिद अपनी बेहन की भारी और उठी हुई मस्त गान्ड से अपनी नज़रें नहीं हटा पाया।

अपनी बेहन की भारी गान्ड की मोटी और उभरी हुई पहाड़ियों को देख कर ज़ाहिद के मुँह से बे इख्तियार निकल गया। "उफ!"

चन्द घंटे पहले वॅन में आने वाले वह गंदे ख्यालात जिन को ज़ाहिद ने बड़ी मुस्किल से अपने दिमाग़ से बाहर निकला था।अपनी बेहन को इस अंदाज़ में सोता देख कर वह ख्यालात फिर एक दम से ज़ाहिद के सर पर सवार होने लगे।

"मेरा मज़ीद इधर रुकना सही नही, मुझे यहाँ से चले जाने चाहिए" ज़ाहिद को अपने दिल के अंदर से एक आवाज़ आईl

ज़ाहिद उधर से हटाना चाहता था। मगर ऐसे लग रहा था जैसी उस के क़दम नीचे से ज़मीन ने जकड लिए हैं और कॉसिश के बावजूद ज़ाहिद अपनी जगह से हिल नहीं पाया।

अभी ज़ाहिद अपनी बेहन की क़यामत खेज गान्ड की गहरी वादियों में ही डूबा हुआ था। कि शाज़िया के जिस्म ने हल्की-सी हरकत की।तो उस की गान्ड से उस की शलवार एक दम से थोड़ी नीचे को सरक गईl

शाज़िया की शलवार का यूँ अचानक सरकना ही ज़ाहिद के लिए एक जान लेवा लम्हा साबित हुआ।

क्योंकि इस तरह शाज़िया की शलवार नीचे होने से शाज़िया की मोटी और भारी गान्ड की पहाड़ियाँ और उस की गान्ड की दरार उस के सगे भाई के सामने एक लम्हे के लिए पूरी आबो ताब से नंगी हो गईl

अपनी बेहन की साँवली गान्ड को यूँ अपने सामने खुलता हुआ देख कर ऊपर से ज़ाहिद का मुँह पूरा का पूरा खुल गया। जब कि नीचे से अंडरवेअर में कसा ज़ाहिद का लंड पागलों की तरह झटके पर झटके मारने लगा।

ज़ाहिद यूँ ही खड़ा अपनी बेहन की भरपूर जवानी का नज़ारा करने में मसगूल था कि इतने में शाज़िया ने अपनी करवट बदली तो उस की आँख खुल गईl

शाज़िया ने जब अपने भाई को अपने बिस्तर के पास खड़ा देखा तो वह एक दम बिस्तर से उठ कर अपने बिखरे कपड़े दरुस्त करने लगी और पास पड़े दुपट्टे से अपनी भारी चुचियों को ढँकते हुए बोली "भाई आप और इस वक़्त मेरे कमरे में ख़ैरियत?"

"हाँ देखो तुम्हारे लिए पिंडी से एक स्मार्ट फ़ोन लिया हूँ, वह तुम को देने इधर चला आया" कहते हुए ज़ाहिद ने शाज़िया के लिए खरीदा हुआ मोबाइल फ़ोन उस के हाथ में थाम दिया।

ज़ाहिद ने अपनी बेहन की एक दम नींद से उठे देखा तो ऐसे घबरा गया जैसे उस की बेहन ने उस के दिल की सारी बातें पढ़ कर उस की चोरी पकड़ ली होl

शाज़िया को भी कुछ दिन से स्मार्ट फ़ोन लेने का शौक चढ़ा हुआ था। चूँकि स्मार्ट फ़ोन प्राइस में काफ़ी मेह्न्गे थे। इस लिए वह चाहने का बावजूद अपनी अम्मी या भाई से नया स्मार्ट फ़ोन लेना का नहीं कह पाईl

आज जब बिन कहे उस के भाई ने उसे एक बिल्कुल नये मॉडेल का स्मार्ट फ़ोन खरीद दिया। तो शाज़िया बे इंतिहा खुश हुई और उसी ख़ुसी के आलम में बिना सोचे समझे वह अपने भाई के गले में अपनी बाहें डाल कर ज़ाहिद के सीने से चिपट गईl

इस तरह अचानक और बे इख्तियरि में ज़ाहिद से भूरपूर तरीके से चिपटने से शाज़िया की भारी छातियाँ उस के भाई की छाती से टकराई। तो ज़ाहिद के जिस्म में सर से ले कर पैर तक एक अजीब-सी मस्ती की लहर दौड़ गईl

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