कनाडा में कांड, रूप बनी रांड 02

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रूप विक्रम की ऑफिस अस्सिस्टेंट बन गई...
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Part 2 of the 3 part series

Updated 06/10/2023
Created 06/05/2021
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शाम के 7 बजे रूप फाइल्स अरेंज कर मेरे केबिन में आ गई, मैं भी अपना काम निपटा ही चुका था तो मैं और रूप बातों में मशगूल हो गए। उसने मुझे बताया के उसका सपना हमेशा से मॉडल बनने का था लेकिन परिवार के डर से कभी भी ट्राई नहीं किया। वैसे उसका मख्खन मलाई जैसा शरीर इसके लिए परफेक्ट था मैने मन ही मन सोचा।

बातों बातों में मैंने रूप से पूछा: "रूप क्या तुम्हें यह फॉर्मल सूट बहोत पसंद है? कल भी तुमने यही पहना था।"

रूप परेशान होते हुए बोली: "नही विक्रम दरअसल मेरे पास यह एक ही फॉर्मल सूट है बाकी सब कैजुअल कपड़े हैं जो मैं कॉलेज में पहनती थी। रेस्टोरेंट में काम करने के लिए यूनिफॉर्म मिलती थी इसलिए कभी फॉर्मल्स की जरूरत ही नहीं पड़ी।"

विक्रम: "तो तुम ऑफिस में क्या पहनोगी रूप?"

रूप: "इसी बात से मैं भी परेशान हूँ विक्रम, क्या करूँ?"

विक्रम: "रूप तुम ऑनलाइन शॉपिंग कर कुछ फार्मल कपड़े खरीद सकती हो, ऑफिस के माहौल के लिए फार्मल कपड़े जरूरी हैं।"

रूप को ऑनलाइन शॉपिंग का सुझाव अच्छा लगा। घड़ी ने 8 बजने की घंटी बजाई ओर वे दोनों घर आ गए। रूप ने घर पर देर रात फॉर्मल्स कपड़ो के लिए ऑनलाइन शॉपिंग शुरू कर दी।उसे अपनी पुरानी जॉब से पिछले महीने सैलरी मिली थी जिसमें से बहोत कम पैसे बचे थे ओर अपनी नई जॉब की सैलरी मिलने में अभी 3 हफ्ते बाकी थे, वह कपडों की शॉपिंग में ज्यादा पैसे बर्बाद नहीं कर सकती थी। काफी ढूंढने के बाद उसे कुछ फॉर्मल्स मिले। एक ब्लैक फॉर्मल शर्ट और एक एक ब्लैक फॉर्मल स्कर्ट। हालांकि वो अपने मोटे चौड़े चूतड़ों की वजह से स्कर्ट पहनने से बचती थी लेकिन अपने कम बजट की वजह से उसे स्कर्ट खरीदनी पड़ी। एक और समस्या थी, जो ब्लैक शर्ट उसे पसंद थी वह उसके साइज में अवेलेबल नही थी इसलिए उसने एक साइज छोटा ही ऑर्डर करना पड़ रहा था। बाकी कपड़े या तो उसे पसंद नहीं थे या उसके बजट से बाहर थे इसलिए उसने ज्यादा ना सोचते हुए वह शर्ट ओर स्कर्ट आर्डर कर दी। साथ ही उसने ब्लैक फॉर्मल सैंडल भी ऑर्डर किये। बजट कम था तो उसने सिर्फ यही सामान आर्डर किया। अपनी शॉपिंग से संतुष्ट होकर वह सोने चली गई।

अगले दिन रविवार था तो हम सारा परिवार ओर रूप घर के कामों में व्यस्त रहे, शाम को रूप का ऑर्डर आने वाला था जिसके लिए हम दोंनो इंतज़ार कर रहे थे लेकिन शाम को डिलीवरी सर्विसेज से फ़ोन आया कि ऑर्डर किन्हीं कारणों से लेट है ओर कल सुबह मिलेगा। रूप कपड़ो को पहले ट्राई करना चाहती थी लेकिन अब लेट ऑर्डर के कारण ऐसा नहीं हो सकता था। इसी तरह रविवार का दिन भी निकल गया। रूप को नए कपड़ों में देखने को मैं बेताब था ओर मुझे अगली सुबह का इंतजार था।

अगली सुबह डिलीवरी बॉय ने फ़ोन कर 9:30 बजे तक आने की सूचना दी। मैंने रूप को इन्तेज़ार करने को कहा ओर ऑफिस चला आया।

करीब 11 बजे जब रूप ऑफिस में आई। उसे देखते ही मेरा लौडा तोप की तरह तन गया, मेरा कमर से नीचे का हिस्सा टेबल के नीचे था इसलिए रूप का ध्यान नहीं गया। उसे देखकर मेरी ठरक अपनी सीमा पार कर रही थी, मेरे साथ ही ऑफिस के अन्य सभी मर्दों की नजरें भी उसी पर गड़ी थीं। सब अपनी सोच में रूप को अपने अपने तरीके से बजा रहे थे। उसकी ड्रेस इतनी तंग थी जैसे उसी के शरीर का हिस्सा हो, उसके जिस्म का एक एक उभार नजर आ रहा था। उसकी शर्ट के बटन इतने तनाव में थे मानों लग रहा था के अभी टूटकर अलग हो जाएंगे ओर उसके मुम्मों को आजाद कर देंगे। उसकी हर हरकत पर उसके मम्मे उस तंग कमीज से बाहर आने की कोशिश कर रहे थे। टॉप इतना टाइट था के उसकी चुचियाँ नजर आ रही थी जो बिल्कुल तनी हुई थी मानो शर्ट के कपड़े में छेद करने का प्रयास कर रही हो, हो भी क्यों ना अगर वो ब्रा पहनती तो शायद ये शर्ट वो पहन ही न पाती।

पीछे का नज़ारा तो ओर जानलेवा था। मैं जानता था के उसकी गांड बड़ी है लेकिन इतनी बड़ी होगी इसकी कल्पना भी नहीं की होगी। उसके हर एक कदम पर उसका पिछवाड़ा अपनी लय में मटकता। उसकी स्कर्ट इतनी तंग थी के शायद उसके झुकने पर ही तनाव के कारण फट जाती। मैं सोचने लगा की उसने अपनी बड़ी गांड को इस चुस्त स्कर्ट में कैसे कैद किया होगा। उसके सैंडल की आवाज ने मुझे कामुकता के नशे से बाहर निकाला। रूप मेरे बिल्कुल सामने झड़ी थी, मन कर रहा था के उसे यहीं पटक कर पेल दूँ।

तभी आवाज आई: "विक्रम क्या ये ड्रेस ठीक है?"

"हाँ रूप इस ड्रेस में तुम अच्छी दिख रही हो।" विक्रम अपने ऊपर काबू करते हुए कहा।

रूप: "ज्यादा टाइट नहीं है क्या? दरअसल ये मेरे साइज़ से एक साइज़ छोटा है।"

विक्रम: "नहीं मुझे तो नहीं लगा। तुम पर बहोत जच रहा है ये सब। गुड चॉइस।"

रूप पीछे मुड़ी ओर अपनी स्कर्ट पर हाथ फेरते हुए बोली: "और ये स्कर्ट?"

क्या नजारा था, उसकी भारी गाँड़ मुझसे बस कुछ दूर थी। मैं मन ही मन हैरान था, मैंने इतनी बड़ी और भारी गाँड़ आज तक नहीं देखी थी।

विक्रम: "स्कर्ट भी अच्छी है, बढ़िया कॉम्बिनेशन है।"

रूप जानती थी कि उसकी कपड़े बहोत तंग ओर भड़काऊ हैं लेकिन मेरे जवाबों से उसे लगा के शायद सब ठीक है।

रूप: "ओके विक्रम तो आज क्या करना है?"

विक्रम: "हम्म, आज तुम्हें कुछ क्लाइंट्स को फोन कर अगले हफ्ते तक की मीटिंग अरेंज करनी है। ये रही उन क्लाइंट्स की लिस्ट । अब जाओ अपने डेस्क पर ओर लंच टाइम से पहले ये काम पूरा कर दो।"

रूप: "विक्रम मेरा डेस्क कहाँ है?"

मैं अपनी बेवकूफी पर हंसा, रूप के रूप ने मुझे पिछले 2 दिन से इतना पागल कर दिया था कि मैं रूप के लिए डेस्क और चेयर लगाना भूल ही गया था।

मैं रूप के साथ अपने कैबिन से बाहर हॉल में आया जहां आफिस के ओर एम्प्लाइज काम करते थे।

विक्रम: "रूप तुम किचन में जाकर सबके लिए कॉफी बनाओ तबतक मैं तुम्हारे डेस्क चेयर का इंतेज़ाम करता हूँ।"

रूप के किचन में जाते ही मैंने हॉल में बैठे सभी एम्प्लाइज को अपने डेस्क और चेयर एक गोल घेरे में लगाने को कहा जिसमे उनका चेहरा घेरे के अंदर की तरफ रहे। ऐसा होने पर मैं किचन से एक स्टूल लाया ओर इसे एक डेस्क के साथ एम्प्लाइज के डेस्कस के घेरे के बीचोबीच रख दिया। इसका फायदा यह था के सभी एम्प्लाइज कभी भी नज़र उठाकर रूप को देख सकते थे वो सबकी नजरों के बीच उस डेस्क पर रहती, दूसरा फायदा ये था के रूप भी सबको देख सकती थी ताकि वो उनके बुलाने पर उनका मदद कर सके। कुछ समय बाद रूप कॉफी ट्रे लेकर आई और सबको कॉफी सर्व करने लगी।

कॉफी देने के बाद रूप ने पूछा: "ये सब डेस्क पोजीशन बदल क्यों दी?"

इमरान: "ये तुम्हारा डेस्क होगा रूप, इसे सबके बीच इसलिए रखा गया है ताकि किसी को भी तुम्हें कोई काम कहना हो तो आसानी से कह सके ओर तुम भी उन्हें देख सको।"

इमरान ने बहोत चतुराई से जवाब दिया। रूप को ये बिल्कुल एहसास नहीं होने दिया के सबके बीच उसका डेस्क इसलिए लगाया गया है ताकी सब उसे जी भर कर ताड़ सके।

रूप अपने डेस्क पर पहुंची ओर स्टूल पर बैठ गई। स्टूल ऊंचा था इसलिए स्टूल के निचले हिस्से में लगे फूटरेस्ट पर उसने अपना एक पाँव टिकाया ओर अपनी एक जांघ को दूसरी के ऊपर रख लेग क्रॉस कर बैठ गई। सबकी निगाहें उसी पर गड़ी थी। उस छोटे स्टूल पर उसके बड़े चूतड़ पूरे फैल गए थे ओर साइड से बाहर लटक कर थे। लेग क्रॉस करने के कारण उसकी स्कर्ट थोड़ी ऊंची हो गई थी जिसके कारण उसकी गोरी चिकनी जाँघे ऊपर तक नजर आ रहीं थी। क्या नज़ारा था। रूप को भी थोड़ा एहसास होने लगा था के सब उसपर अपनी नजर सेक रहें हैं लेकिन उसने ज्यादा ध्यान न देते हुए अपना काम शुरू कर दिया। 1 बजे लंच टाइम हुआ लेकिन रूप अभी भी अपने काम में व्यस्त थी। मैंने रूप को अपने केबिन में बुलाया

विक्रम: "रूप क्या सारी मीटिंग्स फिक्स हो गई?"

रूप': "नही विक्रम अभी कुछ क्लाइंट्स बाकी हैं, शायद पूरा दिन लग जाए।"

विक्रम: "रूप मैंने तुम्हें लंच टाइम तक ये करने को कहा था लेकिन तुम तो बिल्कुल लापरवाह निकली। क्या तुम इस काम को सीरियसली नहीं लेती?"

मेरी बात सुन रूप थोड़ा सकपका गई:

"पर विक्रम मैं तो...।"

विक्रम: "मुझे कुछ नहीं सुनना रूप ये काम शाम तक हो जाना चाहिए।"

रूप रुआँसी होकर अपने डेस्क पर वापस चली गई ओर क्लाइंट्स को फ़ोन मिलाने लगी। सभी एम्प्लाइज लंच करने मे व्यस्त थे इसलिए किसी ने उसे नोटिस नहीं किया। मै, इमरान, मार्क ओर अमित कॉन्फ्रेंस रूम में लंच के लिए चले गए।

इमरान: "विक्रम जो प्लान किया था क्या वो तुमने उस से कहा?"

विक्रम: "हां इमरान उसे डाँट दिया, मुझे काफी बुरा लगा लेकिन उसे जाल में फ़साने के लिए ये जरूरी है।"

अमित: "विक्रम उसे लगना चाहिए की हमने उसे नौकरी देकर कितना बड़ा एहसान किया है ताकि वो इस नौकरी के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए।"

मार्क: "एक्सएक्टली, हमें उसे अपने काबू में करने के लिए ये सब करना होगा। हमने उसकी ठुकाई के लिए ही तो उसे ये जॉब दी है। अब धीरे धीरे हम उसे ये सब करने के लिए तैयार कर लेंगे।"

हमने लंच करते हुए ओर प्लानिंग की ओर कुछ समय बाद सब अपने अपने केबिन में आकर काम पर लग गए। शाम 4 बजे रूप को मैंने अपने कैबिन में बुलाया

विक्रम: "रूप काम हुआ या नहीं?"

रूप: "बस 2 क्लाइंट्स बाकी है विक्रम।" रूप ने हिचकिचाहट में जवाब दिया।

विक्रम: "कोई बात नही तुमने लंच नहीं किया पहले लंच कर लो। 2 क्लाइंट्स तो हो जाएंगे।"

मेरी ये बात सुन रूप की सांस में सांस आई। उसकी रुआँसी आवाज अब खिलखिलाहट में बदल गई।

विक्रम: "यहीं मेरे ऑफिस मै बैठ कर लंच कर लो।"

रूप ने मेरा शुक्रिया किया जैसे मैंने उस पर बहोत बड़ा एहसान किया हो (उसे यही सोचने पर मजबूर करना ही हमारा प्लान था।) ओर मेरे केबिन में अपना लंच लाकर लंच करने लगी लंच करने के बाद वो मेरे पास आई कुछ कहने ही वाली थी के उसे एक जोरदार छींक आई। छींकते हुए झटके से उसकी तंग शर्ट के ऊपरी बटन ने हार मान ली ओर वह बटन शर्ट से अलग होकर गोली की रफ्तार से उड़ गया।

रूप के मुम्मों की घाटी नजर आने लगी। मेरी चेहरे के भाव देख उसे भी एहसास हुआ के उसकी शर्ट का ऊपरी बटन गायब है। उसने अपने छोटे हाथों से अपने भारी मुम्मों को छुपाने का नाकाम प्रयास किया। तभी मैंने सिचुएशन सम्भालते हुए बोला।

विक्रम: "तुम्हारी छींक में तो बहोत दम है, हा हा हा।"

रूप भी यह सुन हँस दी।

विक्रम: "अब काम करना है या बटन ढूंढे, हा हा हा।"

विक्रम के मजाकिया अंदाज ने रूप को इस असहज स्थिति में सहज किया ओर वह केबिन से बाहर जाने लगी । रूप कैबिन के दरवाजे पर थी तभी...।

विक्रम: "सुनो रूप...।"

रूप: "हां विक्रम, कुछ कहा तुमने?"

विक्रम: "बस यही कहना था के अब तुम ओर भी सुंदर दिख रही हो।"

रूप शर्मा कर कैबिन से बाहर चली आई ओर अपने डेस्क पर काम करने लगी। 2 क्लाइंट्स की मींटिंग फिक्स करने में रूप को बस 20 मिनट लगे। 5 बज चुके थे। रूप काम पूरा होने की जानकारी देने के लिए डेस्क से विक्रम के ऑफिस तक पहुंची लेकिन फिर खिड़की से विक्रम को देख वापस आ गई। उसे विक्रम की वह बात बार बार याद आ रही थी।

अब तुम ओर भी सुंदर दिख रही हो।यह लाइन रूप के दिमाग में बार बार घूमने लगी। आखिर विक्रम क्या कहना चाहता था? क्या वो उसे पसंद करता है या ये सिर्फ आकर्षण है? क्या वह इन कपड़ो में बहोत सेक्सी दिख रही है या फिर वह उसके स्तनों की घाटी को देख कर उतेजित हो गया था?

यह सब सवाल रूप के मन में घूमने लगे। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी वह विक्रम के बारे में सोचने लगी। देखते ही देखते उसकी चुचियाँ तन गयी। वह विक्रम के बारे में सोचने पर उसका बदन अजीब तरीके से प्रतिक्रिया दे रहा था। रूप ने अपने मन को समझाया, उसे समझ नहीं आ रहा था के वह विक्रम के बारे में इतना क्यों सोच रही है। तभी अचानक विक्रम ने डेस्क खटखटाया, वह उसके बिल्कुल सामने खड़ा था।

विक्रम: "कहाँ खोई हो मैडम? 6 बज चुके हैं। मेरा काम खत्म हो चुका है। तुमने वो लिस्ट पूरी कर ली है तो घर चले?"

रूप विक्रम के सवालों को सुन अपनी सोच से बाहर निकली। सच में 6 बज चुके थे, क्या वह पिछले 1 घंटे से विक्रम के बारे मे सोच रही थी? रूप हैरान थी।

रूप: "हां विक्रम काम पूरा हो गया है, अब क्या करना है?"

विक्रम: "घर चलो, आज काम कम था तो जल्दी निपटा लिया। अब चले?"

विक्रम ने रूप की तरफ हाथ बढ़ा दिया। रूप ने बिना सोचे अपना हाथ उसके हाथ में थमा दिया ओर दोनों ऑफिस बिल्डिंग से बाहर आ गए। विक्रम ने अब तक उसका हाथ पकड़ा था ओर रूप किसी छोटे बच्चे की तरह उसका हाथ पकड़ उसके पीछे चल रही थी। उसे विक्रम का उसे यूँ हाथ पकड़ ऑफिस से बाहर लाना बड़ा अच्छा लगा। दोनों गाड़ी में बैठ घर की ओर चल दिये। रास्ते मे विक्रम ने रूप को आइसक्रीम खिलाई, विक्रम की ये छोटी छोटी बातें रूप को बहोत अच्छी लग रही थी।

दोनों घर पहुंचे ओर अपने अपने कमरे में आराम करने चले गए । रूप आज हुए सारे वाकये को याद कर रही थी, उसने सबसे पहले शीशे के सामने अपने आपको देखा। बिना ऊपर के बटन की उस शर्ट में उसके मम्मे उभरकर बाहर आने की कोशिश में थे। सचमुच वह बहोत ज्यादा सेक्सी लग रही थी। उसने लगभग अगले आधे घंटे तक अपने आप को शीशे में निहारा। उसे पहली बार इस तरह का एहसास हो रहा था ओर वह विक्रम के बारे में सोच कर खुश हो रही थी।

9 बजे खाना खाने के बाद रूप ओर विक्रम थोड़ा टहलकर अपने अपने कमरे में चले गए। रात के 10 बजे रूप विक्रम के कमरे में आई।

विक्रम: "रूप, क्या हुआ? "

रूप: "विक्रम एक प्रॉब्लम है।"

विक्रम: "हाँ तो बताओ, क्या बात है रूप?"

रूप: "दरअसल मेरे पास कल ऑफिस में पहनने के लिए कोई ड्रेस नहीं है विक्रम।"

विक्रम: "पर तुमने तो शनिवार को ही नए कपड़ो की शॉपिंग की है रूप?"

रूप: "मेरे पास ज्यादा पैसे नही थे विक्रम इसलिए सिर्फ एक ही ड्रेस मंगवाई थी। तुम्हें बताकर परेशान नही करना चाहती थी लेकिन अब कोई ऑप्शन नहीं है। क्या करूँ?"

विक्रम यही सुनना चाहता था। वो जानता था के रूप के पास ज्यादा कपड़े खरीदने के पैसे नहीं है ओर उसे कुछ दिन में मजबूरन उसकी मदद लेनी होगी। अब प्लान के मुताबिक दूसरा दांव खेलने की बारी थी।

विक्रम: "हम्म रूप में तुम्हे वक़्त से पहले सैलरी तो नही दे सकता कपड़े खरीदने के लिए लेकिन एक ओर तरीका है।"

रूप: "क्या विक्रम?" रूप ने चहकते हुए पूछा।

रूप: "जैसे तुम्हें रेस्टोरेंट जॉब में यूनिफॉर्म मिलती थी वैसे ही हम तुम्हें ऑफिस की तरफ से यूनिफॉर्म दे सकते हैं जिसका सारा खर्च ऑफिस उठाएगा।"

रूप: "सच विक्रम? ये तो बहोत अच्छी खबर है।" रूप बहोत खुश थी।

विक्रम: "लेकिन यूनिफॉर्म के लिए कुछ रूल्स होंगे ओर जो भी यूनिफॉर्म ऑफिस की तरफ़ से तुम्हे मिलेगी, तुम्हें पहननी होगी।"

रूप: "हा हा हा, यूनिफॉर्म ही तो है उसमें क्या है। मुझे मंजूर है।"

विक्रम ने अपनी अलमारी से कुछ डॉक्यूमेंट निकाले।

विक्रम: "ठीक है तो रूप तुम यहां साइन कर दो।"

रूप: "यह क्या है विक्रम?"

विक्रम: "ये तुम्हारा जॉब कॉन्ट्रैक्ट है। इसमें तुम्हारे ऑफिस रूल्स, यूनिफॉर्म रूल्स, सैलरी डिटेल सब लिखा है।"

रूप ने कॉन्ट्रैक्ट झट से साइन कर दिया

विक्रम: "अरे पढ़ तो लो क्या लिखा है उसमें।"

रूप: "तुम वकील हो विक्रम, कॉन्ट्रैक्ट तो ठीक ही बनाया होगा, हा हा हा।"

रूप ये नहीं जानती थी कि इस कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कर उसने अपनी जिंदगी विक्रम के हाथ में दे दी थी।

विक्रम: "ठीक है रूप कल यूनिफॉर्म लेने जाना है अब सो जाओ।"

रूप ने मुड़कर दरवाजे को खोला ही था के विक्रम ने आवाज लगाई।

विक्रम: "रूप...।"

रूप: "हाँ विक्रम!" रूप ठहर गई।

विक्रम रूप की ओर बढ़ा ओर उसे कस के गले लगा लिया। रूप के स्तन विक्रम की छाती से जा मिले।

विक्रम: "कोंग्रेचुलेशन रूप, नाउ यु आर अ परमानेंट एम्प्लोयी ऑफ आवर कंपनी।"

ये कहकर विक्रम रूप को गुडनाइट बोल अपने बिस्तर की ओर चल दिया। रूप भी अपने कमरे की ओर चल दी। अचानक विक्रम का उसे गले लगाना उसे बहोत अच्छा लगा।

दोनों अपने अपने कमरे में थे। रूप विक्रम के बारे में सोच अपनी चूत में ऊँगली कर रही थी वहीँ विक्रम अपने कमरे में रूप के बारे मे सोच हिला रहा था। झड़कर दोनों अपने बिस्तर में गहरी नींद सो गए।

कल सुबह रूप की ज़िंदगी बदलने वाली थी।

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