औलाद की चाह 028

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पुरानी यादें-Flashback.
1.6k words
3.83
265
00

Part 29 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 4 तीसरा दिन

पुरानी यादें-Flashback

Update 1

विकास--मैडम, तुम्हें याद है उस दिन तुम्हारी मनस्थिति कैसी थी? तब तुम मेरी मनस्थिति समझ पाओगी।

"हम्म्म ...।विकास मेरे जीवन में भी एक ऐसी घटना हुई है, पर तब मैं छोटी थी।"

विकास--उम्र से कोई फरक नहीं पड़ता मैडम, बात भावनाओं की है। मुझे बताओ क्या हुआ था तुम्हारे साथ?

मैंने गहरी सांस ली, विकास ने मेरे पुराने दिनों की घटना को याद करने पर मजबूर कर दिया था।

"लेकिन विकास, ये कोई ऐसी घटना नहीं है जिसे मैं गर्व से सुनाऊँ। वह तो मेरे ह्युमिलिएशन की कहानी है पर उस उम्र में मैं नासमझ थी और इस बात को नहीं समझ पाई थी।"

विकास--देखो मैडम, कुछ हो जाने के बाद ही समझ आती है। तुम्हारी घटना में, उस दिन हो सकता है तुम्हारी कुछ विवशता रही होगी। वही मेरे साथ भी हुआ। आज सुबह अगर तुमने मुझ पर ज़ोर नहीं डाला होता तो शायद मैं गुरुजी के निर्देशों की अवहेलना करने की हिम्मत नहीं कर पाता।

"हम्म्म ......ठीक है अगर तुम इतने ही उत्सुक हो तो मैं तुम्हें सब कुछ बताने की कोशिश करती हूँ की उस दिन क्या हुआ था।"

फ्लॅशबॅक (Flashback) :-

मुझे आज भी अच्छी तरह से वह दिन याद है, तब मैं 18 बरस की थी और स्कूल में पढ़ती थी। वह शनिवार का दिन था। सीतापुर में हमारा संयुक्त परिवार था। मेरे पिताजी और चाचजी का परिवार एक ही साथ रहता था। मेरी दादीजी भी तब ज़िंदा थी। इतने लोग होने से घर में हर समय कोई ना कोई रहता था। पर उस दिन कुछ अलग था। मेरी मा के एक रिस्त्ेदार की मृत्यु हो गयी थी तो मेरी मा, पिताजी, चाचिजी और मेरी दीदी नेहा सब उस रिस्त्ेदार के घर चले गये। मेरी दादीजी भी उनके साथ चली गयी। मैं घर में अकेली रह गयी। मेरे चाचू नाइट ड्यूटी पर थे, जब वह ड्यूटी से वापस आए तक-तक सब लोग जा चुके थे।

चाचू अपनी नाइट ड्यूटी से सुबह 8 बजे वापस आते थे और फिर नाश्ता करके अपने कमरे में सोने चले जाते थे फिर दोपहर में उठते थे। हमारे घर में रोज़ सुबह 6 बजे आया आती थी, वह खाना बनती थी, कपड़े धोती थी और झाड़ू पोछा करके चली जाती थी। उस दिन मेरी छुट्टी थी, चाचू सोने चले गये तो मैं अकेली बोर होने लगी। फिर मैंने सोचा नेहा दीदी की अलमारी में से कहानियाँ या फ़िल्मी कितबे निकालकर पड़ती हूँ। वह मुझे कभी अपनी किताबों में हाथ नहीं लगाने देती थी। 'तेरे मतलब की नहीं हैं' कहती थी इसलिए मुझे बड़ी इक्चा होती थी की उन किताबों में क्या है । आज मेरे पास अक्चा मौका था। हमारे घर में रदिवादी माहौल था और मुझे लड़कियों के स्कूल में पदाया गया, मैं उस समय मासूम थी, उत्सुकता होती थी पर जानती कुछ नहीं थी।

मैंने चाचू के कमरे में झाँका, सो रहे हैं या नही। चाचू लापरवाही से सो रहे थे। उनकी लुंगी कमर तक उठी हुई थी। उनकी बालों से भारी टाँगे नंगी थी। उनका नीले रंग का कच्छा भी दिख रहा था। कच्छे में कुछ उभार-सा दिख रहा था। मुझे कुछ समझ नहीं आया वह क्या था, मैंने धीरे से उनका दरवाज़ा बंद किया और चली आई. फिर दीदी की अलमारी खोलकर उसमें किताबें ढोँढने लगी। नेहा दीदी उन दीनो कॉलेज में पड़ती थी। मैंने देखा वह फ़िल्मी किताबें नहीं थी पर हिन्दी कहानियों की किताबें थी। उन कहानियों के नाम बड़े अजीब से थे, जैसे 'नौकरानी बनी बीवी, रुक्मिणी पहुची मीना बेज़ार, डॉक्टर या शैतान, भाभी मेरी जान' वगेरेह वगेरेह।

हर कहानी के साथ पिक्चर्स भी थी और उनमें कुछ पिक्चर्स बहुत कम कपड़े पहने हुए लड़कियों और औरतों की भी थी। उन पिक्चर्स को देखकर मेरे कान गरम होने लगे और मेरे बदन में कुछ होने लगा। एक कहानी में बहुत सारी पिक्चर्स थी, एक आदमी एक लड़की को होठों पर चुंबन ले रहा था, दूसरी फोटो में दोनों हाथों से उसकी चुचियाँ दबा रहा था वह लड़की सिर्फ़ ब्रा पहने थी। अगली फोटो में वह आदमी उसकी नंगी टॅंगो को चूम रहा था और लड़की से सिर्फ़ पैंटी पहनी हुई थी। लास्ट फोटो में लड़की ने ब्रा भी नहीं पहनी हुई थी और वह आदमी उसके निपल्स को चूस रहा था। वह फोटोस देखकर मेरी साँसे भारी हो गयी और मैंने जल्दी से किताब बंद कर दी।

"रश्मि, रश्मि।"

चाचू मुझे आवाज़ दे रहे थे।

"आ रही हूँ चाचू, एक मिनट l"

मैंने जल्दी से वह किताबें दीदी की अलमारी में रखी और चाचू के पास चली गयी। जब मैं चाचू के कमरे में पहुँची तो अभी भी मेरी साँसे भारी थी। मैंने नॉर्मल दिखने की कोशिश की पर...

चाचू--रश्मि, दो क़दम चलने में तू हाँफ रही है? क्या बात है?

"कुछ नहीं चाचू, ऐसे ही।"

चाचू मेरी चुचियों की तरफ़ देख रहे थे। मेरे टॉप और ब्रा के अंदर चुचियाँ मेरी गहरी सांसो के साथ उपर नीचे हो रही थी। मैंने बात बदलनी चाही।

"चाचू आप मुझे बुला रहे थे, कोई काम है क्या?"

खुसकिस्मती से चाचू ने उस बात पर ज़ोर नहीं दिया की मैं क्यूँ हाँफ रही थी। पर मेरे दोनों संतरों को घूरते हुए उन्होने मुझसे फल काटने वाला चाकू लाने को कहा। मैं उनके कमरे से चली आई और सबसे पहले अपने को शीशे में देखा। मैं तोड़ा हाँफ रही थी और उससे मेरा टॉप तोड़ा उठ रहा था। उस समय मेरी चुचियाँ छोटी पर कसी हुई थी एकद्ूम नुकीली। तब मैं पतली थी पर मेरे नितंब बाक़ी बदन के मुक़ाबले कुछ भारी थे। उन दीनो मैं घर में टॉप और स्कर्ट पहनती थी।

उन दीनो मेरी लंबाई बाद रही थी और मेरी स्कर्ट जल्दी-जल्दी छोटी हो जाती थी। मेरी मम्मी बाहर के लिए लंबी और घर के लिए छोटी स्कर्ट पहेन्ने को देती थी। वह पुरानी स्कर्ट को फेंकती नहीं थी। घर में छोटी स्कर्ट पहनने पर मम्मी कुछ नहीं कहती थी पर बाहर के लिए वह ध्यान रखती थी की घुटनो से नीचे तक लंबी स्कर्ट ही पहनु। मैं दीदी के साथ सोती थी और सोते समय मैं पुरानी स्कर्ट पहन लेती थी जो बहुत छोटी हो गयी थी।

पिछले दो साल से मैं घर पर भी हमेशा ब्रा पहने रखती थी। क्यूंकी मेरी मम्मी कहती थी, "तेरी दूध अब बड़ी हो गयी है रश्मि। हमेशा ब्रा पहना कर।"

मैंने चाकू लिया और चाचू के कमरे में चली गयी। जब मैं अंदर घुसी तो वह कपड़े बदल रहे थे। अगर चाची घर में होती तो वह निसचीत ही टॉवेल यूज करते या दीवार की तरफ़ मुँह करते, लेकिन आज वह खुले में क्पडे बदल रहे थे। मुझे ऐसा लगा जैसे वह मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे। जैसे ही मैं अंदर आई वह अपनी लुंगी उतरने लगे। बनियान उन्होने पहले ही उतार दी थी। अब वह सिर्फ़ कच्छे में थे। मैंने शरम से नज़रें झुका ली और चाकू टेबल पर रखकर जाने लगी।

चाचू--रश्मि, अलमारी से मेरी एक लुंगी देना।

"जी चाचू.l"

ने अलमारी खोली और एक लुंगी निकाली। जब मैं मूडी तो देखा चाचू मुझसे सिर्फ़ दो फीट पीछे खड़े हैं। वह बड़े अजीब लग रहे थे, पुर नंगे सिर्फ़ एक कच्छे में और उस कच्छे में बड़ा-सा उभार सॉफ दिख रहा था। मुझे बहुत अनकंफर्टबल महसूस हो रहा था और बार-बार मेरी निगाहें उनके कच्छे पर चली जा रही थी। मैंने चाचू को लूँगी दी और जल्दी से कमरे से बाहर आ गयी। मैं अपने कमरे में आकर सोचने लगी आज चाचू अजीब-सा व्यवहार क्यूँ कर रहे हैं। ऐसे मेरे सामने तो उन्होने कभी अपने कपड़े नहीं उतारे थे।

दीदी की किताबें देखकर मुझे पहले ही कुछ अजीब हो रहा था और अब चाचू के व्यवहार से मैं और कन्फ्यूज़ हो गयी। दिमाग़ को शांत करने के लिए मैंने हेडफोन लगाया और म्यूज़िक सुनने लगी।आधे घंटे बाद मैं नहाने चली गयी। हमारा घर पुराना था इसलिए उसमेंसबके लिए एक ही बाथरूम था। मैंने दूसरे कपड़े लिए, फिर ब्रा पैंटी और टॉवेल लेकर नहाने के लिए बाथरूम चली गयी।

हमारा घर पुराना था इसलिए उसमें सबके लिए एक ही बाथरूम था। मैंने दूसरे कपड़े लिए, फिर ब्रा, पैंटी और टॉवेल लेकर नहाने के लिए बाथरूम चली गयी।

मैंने नहा लिया था तभी चाचू की आवाज़ आई।

चाचू--रश्मि, एक बार दरवाज़ा खोल जल्दी, मेरी अंगुली कट गयी है।

धप, धप......चाचू बाथरूम के दरवाज़े को खटखटा रहे थे। पर मैं उलझन में थी। क्यूंकी मैंने नहा तो लिया था पर मैं नंगी थी और मेरा बदन पानी से गीला था।

"चाचू मैं तो नहा रही हूँ।"

चाचू--रश्मि, मेरा बहुत खून निकल रहा है, जल्दी से दरवाज़ा खोल।

चाचू दरवाज़ा खोलने पर ज़ोर दे रहे थे इसलिए मैं जल्दी-जल्दी अपने गीले बदन को टॉवेल से पोछने लगी।

"चाचू, एक मिनट प्लीज़। कपड़े तो पहनने दो।"

चाचू अब कठोर आवाज़ में हुक्म देने लगे।

चाचू--इतना खून निकल रहा है इधर, तुझे कपड़े की पड़ी है। तू नंगी ही निकल आ।

चाचू की बेहूदी बात सुनकर मुझे झटका लगा पर मैंने सोचा शायद उनका बहुत खून निकल रहा है इसलिए वह चाह रहे हैं कि मैं बाथरूम से तुरंत बाहर आ जाऊँ। मैं जल्दी-जल्दी टॉवेल से बदन पोछने लगी पर चाचू अधीर हो रहे थे।

चाचू--रश्मि, क्या हुआ? अरे नंगी आने में शरम आती है तो टॉवेल लपेट ले। लेकिन भगवान के लिए जल्दी निकल।

"जी चाचू।"

मैंने जल्दी से अपने बदन पर टॉवेल लपेट लिया लेकिन मुझे लग रहा था कि मेरे जवान बदन को टॉवेल अच्छे से नहीं ढक पा रहा है। लेकिन इस बारे में सोचने का वक़्त नहीं था क्यूंकी चाचू दरवाज़े को पीटने लगे थे और मुझे दरवाज़ा खोलना पड़ा। दरवाज़ा खोलते ही चाचू तुरंत अंदर घुस आए और नल के निचे हाथ दे दिए l

खून इतना भी नहीं निकला था जितना हल्ला वह मचा रहे थे और ज़बरदस्ती मुझसे दरवाज़ा खुलवा लिया था, उसे देखकर तो मुझे लगा था शायद ज़्यादा कट गया होगा।

चाचू--कितना खून निकल रहा है, देख रश्मि।

"हाँ चाचू।"

कहानी जारी रहेगी

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