औलाद की चाह 029

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पुरानी यादें-Flashback 2.
2.4k words
4.6
304
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Part 30 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 4 तीसरा दिन

पुरानी यादें-Flashback

Update 2

मुझे चाचू के खून से ज़्यादा अपने बिना कपड़ों के बदन की फ़िक्र हो रही थी। मैंने टॉवेल से अपनी हिलती डुलती चूचियों को ढक रखा था पर मेरी गोरी जाँघें और टाँगें पूरी नंगी थीं। मैंने अपनी चूचियों के ऊपर टॉवेल में गाँठ लगा रखी थी पर मुझे हिलने डुलने में डर लग रहा था, कहीं टॉवेल खुल ना जाए और मैं नंगी हो जाऊँ। चाचू अपनी अंगुली धोते हुए बीच-बीच में मुझे देख रहे थे।

चाचू--रश्मि, तू तो अब सचमुच बड़ी हो गयी है।

मैं हँसी और मासूमियत से जवाब दिया।

"चाचू, आज मालूम पड़ा आपको?"

चाचू--नहीं रश्मि वह बात नही। टॉवेल में तो तुझे आज पहली बार देख रहा हूँ ना, इसलिए.

मैं शरमा गयी और खी-खी कर हँसने लगी। मुझे समझ ही नहीं आया क्या जवाब दूँ।

चाचू--आज तक टॉवेल में तो मैंने सिर्फ़ तेरी चाची को देखा है।

हम दोनों हंस पड़े।

चाचू--गुड, अब खून बहना लगभग रुक गया है । अब किसी चीज़ को लपेट लेता हूँ।

ऐसा कहते हुए चाचू इधर उधर देखने लगे। मैंने अपने कपड़े उतार कर धोने के लिए बाल्टी में रखे हुए थे और पहनने वाले कपड़े, मेरी नीली स्कर्ट और सफेद टॉप हुक में लटका रखे थे। मेरी ब्रा और पैंटी नल के ऊपर रखी हुई थी क्यूंकी टॉवेल से बदन पोछकर उनको मैं पहनने ही वाली थी पर चाचू ने जल्दबाज़ी मचा कर दरवाज़ा खुलवा दिया। चाचू ने नल के ऊपर से मेरी पैंटी उठा ली, मैं तो हैरान रह गयी।

चाचू--फिलहाल इसी से काम चला लेता हूँ। बाद में पट्टी बाँध लूँगा।

"पर चाचू वह तो मेरी ......"

चाचू ने मेरी गुलाबी पैंटी उठा ली थी, मैंने ऐतराज किया।

चाचू--'वो तो मेरी' क्या? तू भी ना। जा कमरे में जा और दूसरी पैंटी पहन ले।

ऐसा कहते हुए चाचू ने मेरी पैंटी को फैलाया और देखने लगे। मुझे बहुत शरम आई क्यूंकी वह अपने चेहरे के नज़दीक़ लाकर ध्यान से मेरी पैंटी को देख रहे थे। मैंने वहाँ पर खड़े रहना ठीक नहीं समझा और अपने कमरे में जाने लगी।

"चाचू मैं कमरे में जाकर कपड़े पहन लेती हूँ। फिर आकर आपकी पट्टी बाँध दूँगी।"

चाचू--ठीक है जा, पर जल्दी आना।

अपने कमरे में आकर मैंने राहत की सांस ली और जल्दी से दरवाज़ा बंद कर दिया। इतनी देर तक चाचू के पास नंगे बदन पर सिर्फ़ टॉवेल लपेट कर खड़े रहने से अब मेरी साँसें भारी हो गयी थीं। मैंने कपड़ों की अलमारी खोली और एक सफेद ब्रा और सफेद पैंटी निकाली। उसके ऊपर नीला टॉप और मैचिंग नीली स्कर्ट पहन ली। लेकिन जब मैंने अपने को शीशे में देखा तो उस नीली स्कर्ट में मेरी टाँगें दिख रही थी। वह स्कर्ट पुरानी थी और छोटी हो गयी थी। मैं हिचकिचायी की पहनूं या उतार दूं, फिर मैंने सोचा घर में ही तो हूँ। वह स्कर्ट मेरे घुटनों से ऊपर आ रही थी और मेरी आधी जाँघें दिख रही थीं।

फिर मैं चाचू की अंगुली में पट्टी बाँधने उनके कमरे में चली गयी। चाचू बेड में बैठे हुए थे । जैसे ही मैं अंदर गयी उन्होंने मुझसे बड़ा अजीब सवाल पूछा।

चाचू--रश्मि, तू मुझसे झूठ क्यूँ बोली?

मैं चाचू के पास आई. मैंने देखा उन्होंने अपनी अंगुली में मेरी गुलाबी पैंटी को लपेट रखा है। ये देखकर मुझे बहुत शरम महसूस हुई l

"झूठ? कौन-सा झूठ चाचू?"

चाचू--तू बोली की ये तेरी पैंटी है।

"हाँ चाचू, ये मेरी ही तो है।"

चाचू--एक बात बता रश्मि। तू तेरी चाची से बड़ी है या छोटी?

मुझे समझ नहीं आ रहा था, चाचू कहना क्या चाहते हैं।

"छोटी हूँ। चाचू ये भी कोई पूछने वाली बात है?"

चाचू--वही तो। अब बोल की ये कैसे हो सकता है कि तेरी चाची तुझसे छोटी पैंटी पहनती है?

"क्या...?"

मुझे आश्चर्य हुआ और चाचू के ऐसे भद्दे कमेंट पर झुंझुलाहट भी हुई. पर चाचू बात को लंबा खींचते रहे।

चाचू--तू जब चली गयी तो मैंने देखा की ये पैंटी तो तेरी चाची जो पहनती है उससे बड़ी है। ये कैसे हो सकता है?

मैं मासूमियत से बहस करते रही पर इससे सिचुयेशन मेरे लिए और भी ज़्यादा ह्युमिलियेटिंग हो गयी।

"चाचू, आप को कैसे पता होगा चाची के अंडरगार्मेंट्स के बारे में? आप तो खरीदते नहीं हो उनके लिए ।"

चाचू--सिर्फ़ खरीदने से ही पता चलता है? रश्मि तू भी ना।

"चाचू, आप हवा में बात करोगे तो मैं मान लूँगी क्या?"

चाचू--रश्मि, मैं तेरी चाची को रोज़ देखता हूँ । सुबह नहाकर मेरे सामने पैंटी पहनती है और तू बोल रही है मैं हवा में बात फेंक रहा हूँ?

अपनी चाची के बारे में ऐसा कमेंट सुनकर मैं स्तब्ध रह गयी। मेरी चाची का मेरी मम्मी के मुक़ाबले भारी बदन था। उसकी बड़ी चूचियाँ और बड़े नितंब थे। मैं अपने मन में उस दृश्य की कल्पना करने लगी, जैसा की चाचू ने बताया था, चाची नहाकर बाथरूम से बाहर आ रही है और चाचू के सामने पैंटी पहन रही है।

मैं सोचने लगी, चाची क्या नंगी बाहर आती है बाथरूम से? या फिर आज जैसे मैं निकली चाचू के सामने वैसे?

अपने चाचू के सामने ऐसी बातें सोचकर मेरा गला सूखने लगा।

चाचू--ठीक है, तू यक़ीन नहीं कर रही है ना। मेरे साथ आ इधर।

चाचू खड़े हो गये और अपनी अलमारी के पास गये। मैं भी उनके पीछे गयी। उन्होंने अलमारी खोली और कुछ पल कपड़े उलटने पुलटने के बाद चाची की दो पैंटीज निकाली। चाचू ने चाची की पैंटी मुझे दिखाई, मेरे बदन में गर्मी बढ़ने लगी। वह पैंटी इतनी छोटी थी की शरम से मेरा सर झुक गया।

चाचू--अब बोल रश्मि, क्या मैं ग़लत बोल रहा था?

चाचू ने अपनी अंगुली से मेरी पैंटी खोल दी और चाची की पैंटी से नापने लगे।

चाचू--तू 18 साल की है और तेरी चाची 35 साल की है। दोनों की पैंटी देखकर मुझे तो उल्टा लग रहा है।

चाचू अपनी बात पर ख़ुद ही हंस पड़े। मुझे कुछ जवाब देना था, पर जो मैंने कहा उससे मैं और भी फँस गयी।

"जी चाचू मुझे तो इसकी साइज देखकर शरम आ रही है।"

चाचू--तू शरम की बात कर रही है, लेकिन तेरी चाची तो बोलती है आजकल ये सब फैशन है। ये देख । ये सब मैगजीन्स देखके तो वह ये सब ख़रीदती है।

चाचू ने दो तीन इंग्लिश मैगजीन्स मेरे आगे रख दी। मैंने एक मैगजीन उठाकर देखी, उसका नाम 'कॉस्मोपॉलिटन' था। मैंने उसके पन्ने पलटे तो उसमें सिर्फ़ ब्रा और पैंटी पहनी हुई लड़कियों की बहुत सारी फोटोज थीं। कुछ लड़कियाँ टॉपलेस भी थीं, इतनी सारी अधनंगी फोटोज देखकर मेरा सर चकराने लगा। मुझे बहुत हैरानी हुई की चाची ऐसी मैगजीन्स देखती है। मेरी मम्मी तो हमें फ़िल्मी मैगजीन्स भी नहीं देखने देती थी क्यूंकी उनमें हीरोइन्स की बदन दिखाऊ फोटोज होती थीं।

मैं चाचू के सामने ऐसी अधनंगी फोटोज देखकर बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, कैसे इस सिचुयेशन से बाहर निकलूं? लेकिन चाचू ने मुझे और भी ज़्यादा ह्युमिलियेटिंग बातों और सिचुयेशन में घसीट लिया।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, कैसे इस सिचुयेशन से बाहर निकलूं? लेकिन चाचू ने मुझे और भी ज़्यादा ह्युमिलियेटिंग बातों और सिचुयेशन में घसीट लिया।

चाचू--तो रश्मि मैंने साबित कर दिया ना की ये पैंटी तेरी नहीं हो सकती। मुझे लगता है कि ये ज़रूर तेरी मम्मी की होगी।

मेरी पैंटी की तरफ़ इशारा करते हुए चाचू बोले। मैं अभी भी मासूमियत से अपनी बात रख रही थी।

"नहीं नहीं ये मम्मी की नहीं है। मम्मी तो ..."

मेरी ज़ुबान से मेरी मम्मी का राज चाचू के सामने खुल ही गया था कि मैं चुप हो गयी। मेरी मम्मी तो अक्सर पैंटी पहनती ही नहीं थी सिर्फ़ पीरियड्स के दिनों को छोड़कर। लेकिन ये बात मैं चाचू से कैसे बोल सकती थी? मैंने जल्दी से बात बदलनी चाही।

"चाचू एक काम करते हैं। चलिए मैं आपको अपनी अलमारी दिखाती हूँ, अगर उसमें इसी साइज की और भी पैंटी मिल जाएँ तब तो आपको यक़ीन हो जाएगा ना?"

चाचू--ये ठीक रहेगा चल।

मैंने मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया की ठीक समय पर मैंने अपनी ज़बान को लगाम लगाई और मम्मी का राज खुलने से बच गया पर मुझे क्या पता था कि कुछ ही देर में मुझे बहुत से राज खोलने पड़ेंगे। चाचू और मैं मम्मी के कमरे में आ गये। चाचू मेरे मम्मी पापा के बेडरूम में शायद ही कभी आते थे।

मैंने चाचू के सामने कपड़ों की अलमारी खोली। इसमें सिर्फ़ औरतों के कपड़े थे। मेरी मम्मी, नेहा दीदी और मेरे। उसमें तीन खाने थे। सबसे ऊपर के खाने में मम्मी के कपड़े थे, बीच वाले खाने में मेरे और सबसे नीचे वाले खाने में नेहा दीदी के कपड़े थे। मैंने अपने वाले खाने में कपड़े उल्टे पुल्टे और एक पैंटी निकालकर चाचू को दिखाईl

"ये देखिए चाचू, सेम साइज की है कि नहीं?"

चाचू ने पैंटी को पकड़ा और दोनों हाथों से फैलाकर देखने लगे। ऐसा लग रहा था कि पैंटी फैलाकर वह देखना चाह रहे हैं कि वह पैंटी मेरे नितंबों को कितना ढकती है। उनके खुलेआम ऐसा करने से मुझे बड़ी शरम आई. तभी उनकी नज़र एक पैंटी पर पड़ी जो सबसे नीचे वाले खाने में थोड़ी बाहर को निकली थी।

चाचू--ये किसकी है? भाभी की?

"नहीं चाचू। ये तो नेहा दीदी की है।"

मैंने मासूमियत से जवाब दिया। चाचू ने उस पैंटी को भी निकाल लिया और दोनों पैंटी को कंपेयर करने लगे। नेहा दीदी की पैंटी भी मेरी पैंटी से थोड़ी छोटी थी। इसकी वज़ह ये थी की मेरी पैंटी मम्मी ख़रीदती थी और वह बड़ी पैंटी लाती थी जिससे स्कर्ट के अंदर मेरे नितंबों का अधिकतर हिस्सा ढका रहे। लेकिन नेहा दीदी अपनी पैंटी ख़ुद ही ख़रीदती थी।

कई बार मैंने देखा था कि नेहा दीदी की पैंटी उसके बड़े नितंबों को ढकती कम है और दिखाती ज़्यादा है। जब मैंने उससे पूछा, "दीदी इस पैंटी में तो तुम्हारा आधा पिछवाड़ा भी नहीं ढक रहा" । तो नेहा दीदी ने जवाब दिया, "जब तू बड़ी हो जाएगी ना तब समझेगी ऐसी पैंटी पहनने का मज़ा।"

चाचू--रश्मि ये देख। ये पैंटी भी तेरी वाली से छोटी है।

"चाचू इसमें मैं क्या कर सकती हूँ। मम्मी मेरे लिए इसी टाइप की ख़रीदती है।"

चाचू--अरे तो ऐसा बोल ना। इसीलिए मुझे समझ में नहीं आ रहा था।

भगवान का शुक्र है। चाचू को समझ में तो आया।

चाचू अभी भी नेहा दीदी की पैंटी को ग़ौर से देख रहे थे।

चाचू--रश्मि एक बात बता। तू बोली की भाभी तेरे लिए ख़रीदती है। तो नेहा के लिए भी ख़रीदती है क्या?

"नहीं चाचू। दीदी अपनी इनर ख़ुद ख़रीदती है। एक दिन तो मम्मी और दीदी की इस बारे में लड़ाई भी हुई थी। मम्मी को तो इस टाइप की अंडरगार्मेंट्स बिल्कुल नापसंद है।"

चाचू--देख रश्मि, मैं तो भाभी को इतने सालों से देख रहा हूँ। वह बड़ी कन्सर्वेटिव क़िस्म की औरत है।

अब मैं अपने को रोक ना सकी और मासूमियत से मम्मी के निजी राज खोल दिए. उस उमर में मैं नासमझ थी और नहीं समझ पाई की चाचू बातों में फँसाकर मुझसे अंदरूनी राज उगलवा रहे हैं और उनका मज़ा ले रहे हैं।

"चाचू आप नहीं जानते, मम्मी सिर्फ़ मेरे और दीदी के बारे में ही कन्सर्वेटिव है।"

चाचू--नहीं नहीं, ये मैं नहीं मान सकता। भाभी जिस स्टाइल से साड़ी पहनकर बाहर जाती है। घर में जिस क़िस्म की नाइटी पहनती है l

मैंने अलमारी के सबसे ऊपरी खाने से कपड़ों के नीचे दबी हुई एक नाइटी निकाली और चाचू की बात काट दी।

"ये देखिए चाचू। ये क्या कन्सर्वेटिव ड्रेस है?"

वो गुलाबी रंग की नाइटी थी और साधारण कद की औरत के लिए बहुत ही छोटी थी।

चाचू--वाउ।

"मम्मी ये कभी कभार सोने के वक़्त पहनती है।"

चाचू--ये तो कोई फ़िल्मी ड्रेस से कम नहीं।

"हाँ चाचू।"

चाचू अब मम्मी की नाइटी को बड़े ग़ौर से देख रहे थे, ख़ासकर कमर से नीचे के हिस्से को और फैलाकर उसकी चौड़ाई देख रहे थे।

चाचू--इसकी जो लंबाई है और भाभी की जो हाइट है, ये पहनने के बाद भाभी तो आधी नंगी रहेगी। तूने तो देखा होगा तेरी मम्मी को ये पहने हुए, मैं क्या ग़लत बोल रहा हूँ रश्मि?

चाचू की बात सुनकर मैं शरमा गयी और सिर्फ़ सर हिलाकर हामी भर दी। मैंने ज़्यादा बार मम्मी को इस नाइटी में नहीं देखा था।

चाचू--लेकिन इस नाइटी के साथ तो भाभी की कन्सर्वेटिव पैंटी नहीं जमेगी। इसके साथ तो तेरी चाची जैसी पहनती है, वह वाली पैंटी चाहिएl

वो कुछ पल के लिए चुप रहे फिर मुस्कुराते हुए गोला दाग दिया।

चाचू--क्या रे रश्मि, भाभी इस नाइटी के नीचे पैंटी पहनती भी है या नहीं?

" आप बड़े बेशरम हो। क्या सब पूछ रहे हो चाचू।लेकिन मुझे याद था कि एक बार मम्मी को जब मैंने ये वाली नाइटी पहने हुए देखा था तो उन्होंने इसके अंदर कुछ भी नहीं पहना था। रात को मम्मी बेड में लेटी हुई थी और पापा उस समय नहा रहे थे। मुझे मम्मी की चूत भी साफ़ दिख गयी थी। मुझे देखकर मम्मी ने जल्दी से अपने पैरों में चादर डाल ली थी।

चाचू नाइटी को ऐसे देख रहे थे जैसे मम्मी को उसे पहने हुए कल्पना कर रहे हों। मुझे उनकी लुंगी में उभार दिखने लगा था। वह ऐसा लग रहा था जैसे उनकी लुंगी में कोई छोटा-सा पोल खड़ा हो। उसको देखते ही मैं असहज महसूस करने लगी। पर जल्दी ही चाचू की रिक्वेस्ट ने मेरी असहजता की सभी सीमाओं को लाँघ दिया।

चाचू--रश्मि तू थोड़ी हेल्प करेगी? मैं एक चीज देखना चाहता हूँ।

"क्या चीज चाचू?"

मैंने मासूमियत से पूछा। चाचू मेरी आँखों में बड़े अजीब तरीके से देख रहे थे। उन्होंने मम्मी की सेक्सी नाइटी अपने हाथों में पकड़ी हुई थी।

चाचू--रश्मि मैं तेरी चाची के लिए एक ऐसी नाइटड्रेस खरीदना चाहता हूँ।

"तो खरीद लीजिए ना, किसने रोका है? लेकिन आप क्या चीज देखने की बात कर रहे हो?"

चाचू--देख रश्मि, भाभी को तो मैं देख नहीं सकता इस ड्रेस में। लेकिन खरीदने से पहले किसी को तो देख लूँ इस ड्रेस में। तू क्यू ना एक बार पहन इसको? कम से कम मुझे आइडिया तो हो जाएगा।

"क्या?"

चाचू--रश्मि इसमें सोचने वाली तो कोई बात है नहीं। तेरी मम्मी जब पहन सकती है, तो तू क्यू नहीं? और आज तो घर में कोई नहीं है।

मैं ऐसा तो नहीं कहूँगी की मेरी कभी इच्छा नहीं हुई उस ड्रेस को पहनने की। पर मुझे कभी उसको पहनने का मौका ही नहीं मिला। पर ये तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी की उसको किसी मर्द के सामने पहनूं। लेकिन अब मैं चाचू को सीधे-सीधे मना भी तो नहीं कर सकती थी।

"पर चाचू।"

अब चाचू की टोन भी रिक्वेस्ट से हुकुम देने की हो गयी।

चाचू--रश्मि अभी तो तू मेरे सामने सिर्फ़ टॉवेल में खड़ी थी। तो इसे पहनने में शरम कैसी?

"लेकिन चाचू।"

चाचू--बकवास बंद। ये स्कर्ट और टॉप उतार और ये ड्रेस पहन ले।

कहानी जारी रहेगी

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