एक नौजवान के कारनामे 031

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गर्भदान.
1.4k words
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225
00

Part 31 of the 278 part series

Updated 04/23/2024
Created 04/20/2021
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पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

CHAPTER-3

एक युवा के अपने पड़ोसियों और अन्य महिलाओ के साथ कारनामे

रुसी युवती ऐना

PART-9

गर्भदान

कुछ देर बाद दरवाजे की घंटों बजी तो हम उठे ... मैंने टॉवल गाउन पहन कर गेट खोला तो सामने जूही थी और रात का खाना ले कर आयी थी जूही हमे इस हालत में देख कर मुस्कुरायी और ऐना बिस्तर में नंगी लेटी हुई थी उसने ख़ुद को ढकने का कोई प्रयास नहीं किया ... जूही बोली बहुत मेहनत की है तुम दोनों ने भूख लग गयी होगी चलो कुछ खा लो l

हम तीनो ने मिल कर खाना खाया तो उसके बाद जूही बोली :-

प्राचीन प्रथा के अनुसार, अगर कोई विवाहित स्त्री किसी कारणवश संतानोत्पत्ति करने और वंश को आगे बढ़ाने में अक्षम होती थी तो उसके पति को दूसरे विवाह की अनुमति मिल जाती थी। यह अनुमति उसे सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक तीनों ही क्षेत्रों में उपलब्ध करवाई जाती थी। हालांकि वर्तमान समय में कानूनों की सख्ती के बाद ऐसा करना अब इतना आसान नहीं रह गया है लेकिन एक दौर वह भी था जब स्त्री को या तो केवल भोग्या माना जाता था या फिर वंश को आगे बढ़ाने का मात्र एक साधन माना जाता था।

लेकिन इसके विपरीत अगर कोई पुरुष वीर्यहीन या नपुंसक है तो उसकी पत्नी को संतान के जन्म के लिए एक अन्य विवाह करने की अनुमति तो नहीं मिलती थी, लेकिन गर्भाधान करने के लिए एक समगोत्रीय या उच्च वंश के पुरुष के साथ शारीरिक सम्बंध स्थापित करने की सुविधा ज़रूर उपलब्ध करवाई जाती थी।

इस सुविधा को 'गर्भदान' के नाम से जाना जाता है। जिसका आशय किसी भी प्रकार के यौन आनंद से ना होकर सिर्फ़ और सिर्फ़ संतान को जन्म देने से है। गर्भदान के लिए किस पुरुष को चुना जाएगा, इसका निर्णय भी उसका पति ही करता था।

गर्भदान पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। उस में स्त्री की मर्जी होनी ज़रूरी हैं यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत आचरण प्रायश्चित् के भागी होते हैं। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए l

'गर्भदान' भारतीय समाज में व्याप्त एक बेहद प्राचीन परंपरा है। आज भी बहुत से भारतीय समुदायों में 'गर्भदान' द्वारा संतानोत्पत्ति की प्रक्रिया को पूरी परंपरा के अनुसार अपनाया जा रहा है।

सर्वप्रथम गर्भदान एक ऐसी प्रक्रिया है जब पति की अकाल मृत्यु या उसके संतान को जन्म देने में अक्षम होने की अवस्था में स्त्री अपने देवर या फिर किसी समगोत्रीय, उच्चकुल के पुरुष के द्वारा गर्भ धारण करती है।

स्त्री अपने पति की इच्छा और अनुमति मिलने के बाद ही ऐसा कर सकती है। सामान्य हालातों में वह बस एक ही संतान को जन्म दे सकती है लेकिन अगर कोई विशेष मसला है तो वह गर्भदान के द्वारा दो संतानों को जन्म दे सकती है।

गर्भदान के द्वारा जन्म लेने वाली संतान, नाजायज होने के बावजूद भी जायज कहलाती है। उस पर उसके जैविक पिता का कोई अधिकार ना होकर उस पुरुष का अधिकार कहलाया जाएगा, जिसकी पत्नी ने उसे जन्म दिया है।

गर्भदान की प्रक्रिया तमाम शर्तों के बीच बंधी है। जैसे कि कोई भी महिला गर्भदान का प्रयोग केवल संतान को जन्म देने के लिए ही कर सकती है ना कि यौन आनंद के लिए, गर्भदान नियोग के लिए नियुक्त किया गया पुरुष धर्म पालन के लिए ही इसे अपनाएगा, उसका धर्म स्त्री को केवल संतानोत्पत्ति के लिए सहायता करना होगा, संतान के उत्पन्न होने के बाद नियुक्त पुरुष उससे किसी भी प्रकार का कोई सम्बंध नहीं रखेगा।

गर्भदान से एक महिला जिसका पति मर चुका है और जो अपने भाई-बंधुओं को संतान की इच्छा रखती है (पुत्र को सहन कर सकती है) । (एक बहनोई की विफलता पर वह संतान प्राप्त कर सकता है) (एक सहपिन्दा के साथ) , एक सपोटरा, एक समनपावार, या एक ही जाति से सम्बंध रखने वाला।

एक विधवा एक वर्ष (शहद) , मांसाहारी शराब और नमक के उपयोग से बचेंगी और ज़मीन पर सोयेंगी। छह महीने के दौरान मौदगल्या (घोषित करती है कि वह ऐसा करेगी) । उसके (समय) की समाप्ति के बाद (वह) वह अपने गुरुओं की अनुमति के साथ, अपने जीजा के लिए एक पुत्र को सहन कर सकती है, यदि उसके कोई पुत्र नहीं है।

गर्भदान का उल्लेख और हैl

एक पति का छोटा भाई, अपने बड़ों की अनुमति से अपने व्यक्ति पर संतान को पाने के उद्देश्य से अपने बड़े भाई की निःसंतान पत्नी के पास जा सकता है, पहले उसकी ओर से और उसके साथ और उसकी प्राप्ति हुई थी।

परिवार में एक पुत्र और एक उत्तराधिकारी पैदा करने के लिए बहनोई या एक चचेरे भाई या एक ही गोत्र के व्यक्ति गर्भ धारण करने तक विधवा-विधवा के साथ संभोग कर सकते हैं। यदि वह उसके बाद उसे छूता है तो वह अपमानित हो जाता है। इस प्रकार पैदा हुआ पुत्र, मृत पति का वैध पुत्र है। "

गर्भदान संस्कार से उत्पन्न पुत्र को अपने पूर्वजन्म के साथ-साथ अपनी माता के मृत पति का भी श्राद्ध करना चाहिए। तब वह सच्चा वारिस होगा।

भारतीय समाज में संतान को जन्म देना, पुरुष के मान-सम्मान और उसके पुरुषत्व से जुड़ा है। इसलिए गर्भदान के लिए नियुक्त किया गया पुरुष पूरी तरह विश्वसनीय होता था ताकि इस बात का खुलासा किसी भी रूप में ना हो सके, क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो उनके पुरुषत्व को ठेस पहुँचेगी। गर्भदान के द्वारा उत्पन्न संतान ने उनके अपने जैविक पिता के नहीं बल्कि अपनी जैविक माँ के पति के वंश को आगे बढ़ाया।

गर्भदान प्रथा के नियम निम्न हैं:-

1. कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए।

2. नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है।

3. इस गर्भदान से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा, नियुक्त व्यक्ति का नहीं।

4. नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।

5. इस कर्म को करते समय नियुक्त पुरुष और पत्नी के मन में केवल धर्म ही होना चाहिए, वासना और भोग-विलास नहीं। पत्नी इसका पालन केवल अपने और अपने पति के लिए संतान पाने के लिए करेगी।

उसे बाद जूही ने पूरी विधि और नियम और गर्भदान की कहानिया विस्तार से समझायी l

तो मैंने पुछा जूही तुम ये \ मुझे क्यों सुना रही हो? मैं इन में क़ाफी कहानिया जानता हूँ या सुन चूका हूँ l

तो जूही बोली आपके सवालों के जवाब जल्द ही मिल जाएंगे l

अगर स्त्री अथवा पुरुष में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है और उनके कोई संतान भी नहीं है तब अगर पुनर्विवाह न हो तो उनका कुल नष्ट हो जाएगा। पुनर्विवाह न होने की स्थिति में व्यभिचार और गर्भपात आदि बहुत से दुष्ट कर्म होंगे। इसलिए पुनर्विवाह होना अच्छा है।

ऐसी स्थिति में स्त्री और पुरुष ब्रह्मचर्य में स्थित रहे और वंश परंपरा के लिए स्वजाति का लड़का गोद ले लें। इससे कुल भी चलेगा और व्यभिचार भी न होगा और अगर ब्रह्मचारी न रह सके तो नियोग से संतानोत्पत्ति कर ले। पुनर्विवाह कभी न करें। आइए अब देखते हैं कि 'नियोग' क्या है?

अगर किसी पुरुष की स्त्री मर गई है और उसके कोई संतान नहीं है तो वह पुरुष किसी नियुक्त विधवा स्त्री से यौन सम्बंध स्थापित कर संतान उत्पन्न कर सकता है। गर्भ स्थिति के निश्चय हो जाने पर नियुक्त स्त्री और पुरुष के सम्बंध ख़त्म हो जाएंगे और नियुक्ता स्त्री दो-तीन वर्ष तक लड़के का पालन करके नियुक्त पुरुष को दे देगी। ऐसे एक विधवा स्त्री दो अपने लिए और दो-दो चार अन्य पुरुषों के लिए अर्थात कुल 10 पुत्र उत्पन्न कर सकती है। (यहाँ यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि यदि कन्या उत्पन्न होती है तो नियोग की क्या ' शर्ते रहेगी?) इसी प्रकार एक विधुर दो अपने लिए और दो-दो चार अन्य विधवाओं के लिए पुत्र उत्पन्न कर सकता है। ऐसे मिलकर 10-10 संतानोत्पत्ति की आज्ञा है।

इसी प्रकार संतानोत्पत्ति में असमर्थ स्त्री भी अपने पति महाशय को आज्ञा दे कि हे स्वामी! आप संतानोत्पत्ति की इच्छा मुझ से छोड़कर किसी दूसरी विधवा स्त्री से गर्भदान करके संतानोत्पत्ति कीजिए।

अगर किसी स्त्री का पति व्यापार आदि के लिए परदेश गया हो तो तीन वर्ष, विद्या के लिए गया हो तो छह वर्ष और अगर धर्म के लिए गया हो तो आठ वर्ष इंतज़ार कर वह स्त्री भी नियोग द्वारा संतान उत्पन्न कर सकती है। ऐसे ही कुछ नियम पुरुषों के लिए हैं कि अगर संतान न हो तो आठवें, संतान होकर मर जाए तो दसवें और कन्या ही हो तो ग्यारहवें वर्ष अन्य स्त्री से गर्भदान द्वारा संतान उत्पन्न कर सकता है। पुरुष अप्रिय बोलने वाली पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से गर्भदान का लाभ ले सकता है। ऐसा ही नियम स्त्री के लिए है।

कहानी जारी रहेगी

दीपक कुमार

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