Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereऔलाद की चाह
CHAPTER 5- चौथा दिन
ममिया ससुर
Update 1
उलझन भरे मन से मैं आश्रम के गेस्ट रूम की तरफ चल दी। मैंने अंदाज़ा लगाने की कोशिश की कौन हो सकता है? पर ऐसा कोई भी परिचित मुझे याद नहीं आया जो यहाँ आस पास रहता हो। मैं कमरे के अंदर गयी और वहाँ बैठे आदमी को देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। वो मेरी सास के छोटे भाई थे और इस नाते मेरे ममिया ससुरजी (पति के मामा) लगते थे।
"अरे आप? यहाँ?"
ममिया ससुरजी -- हाँ, बहू।
उनकी उम्र करीब 50 -52 की होगी और उन्होंने शादी नहीं की थी। मेरी शादी के दिनों में मैंने उन्हें देखा था। उसके बाद एक दो बार और मुलाकात हुई थी। लेकिन काफ़ी लंबे समय से वो हमारे घर नहीं आए थे। उन्हें कैसे मालूम पड़ा की मैं यहाँ हूँ?
ममिया ससुरजी -- असल में मेरा घर यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है, करीब 80 किमी पड़ता है, डेढ़ दो घंटे का रास्ता है। जब तुम्हारी सास ने मुझे फोन पे बताया तो मैंने कहा की मैं बहू से मिलने ज़रूर जाऊँगा।
अब मेरी समझ में पूरी बात आ गयी। मैंने उनके चरण छूकर प्रणाम किया। उन्होंने मेरे सर पे हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।
ममिया ससुरजी -- कैसा चल रहा है फिर यहाँ, बहू?
"ठीक ही चल रहा है, मैंने दीक्षा ले ली है।"
ममिया ससुरजी -- वाह। मैं आशा करता हूँ की गुरुजी के आशीर्वाद से तुम्हें ज़रूर संतान प्राप्त होगी।
वो मुस्कुराए और उनका चेहरा देखकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। मैं सोचने लगी ससुरजी आश्रम के बारे में कितना जानते हैं? क्या वो जानते हैं की यहाँ क्या होता है? क्या वो आश्रम के उपचार के तरीके के बारे में जानते हैं? गुरुजी के बारे में उन्हें क्या मालूम है?
मैं भी मुस्कुरा दी और नॉर्मल दिखने की कोशिश की। लेकिन मुझे बड़ी उत्सुकता हो रही थी की आख़िर वो आश्रम के बारे में कितना जानते हैं।
"आप यहाँ कैसे पहुँचे? आपको मालूम थी यहाँ की लोकेशन?"
मैं उनके सामने खड़ी थी। उनका जवाब सुनकर मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी।
ममिया ससुरजी -- हाँ, दो साल पहले मैं यहाँ आया था। गुरुजी के बारे में तो मैंने बहुत पहले से सुन रखा था पर मैं इन चीज़ों में विश्वास नहीं करता था। उस समय मेरी नौकरानी को कुछ समस्या थी और उसने मुझसे यहाँ ले चलने को कहा। शायद तीसरी या चौथी बार आज मैं यहाँ आया हूँ।
"अच्छा!"
मैंने नॉर्मल दिखने की कोशिश की पर उनकी बात सुनकर मेरे हाथ पैर ठंडे पड़ गये थे। मैंने थोड़ा और जानने की कोशिश की।
"क्या समस्या थी आपकी नौकरानी को?"
ममिया ससुरजी -- बहू, तुम तो जानती होगी इन लोवर क्लास लोगों को। इनके घरों में कोई ना कोई समस्या होते रहती है। मेरी नौकरानी के पति के किसी दूसरी औरत से शारीरिक संबंध थे। वो अपने पति का उस औरत से संबंध खत्म करवाना चाहती थी।
"क्या हुआ फिर? समस्या सुलझी की नहीं?"
ममिया ससुरजी -- हाँ बहू, सुलझ गयी पर वो एक लंबी कहानी है।
उसी समय वहाँ परिमल आ गया। वो संतरे का जूस लेकर आया था। अब हम सोफे में बैठ गये और ससुरजी जूस पीने लगे।
ममिया ससुरजी -- तुम्हारी सास ने कहा था की बहू से पूछ लेना उसको कुछ चाहिए तो नहीं? अगर तुम्हें कुछ चाहिए तो मैं बाजार से ले आता हूँ।
"नहीं। कुछ नहीं चाहिए।"
अब परिमल ट्रे और ग्लास लेकर चला गया।
ममिया ससुरजी -- बहू, जब मैं पुष्पा की शादी में तुम्हारे घर आया था तब तुम्हें देखा था, तब से आज देख रहा हूँ। है ना?
ससुरजी की घरेलू बातों से मैं नॉर्मल होने लगी। मैंने सोचा और उम्मीद की ससुरजी को शायद गुरुजी के उपचार के तरीके के बारे में पता ना हो।
"हाँ, दो साल हो गये। आपकी याददाश्त अच्छी है।"
ममिया ससुरजी -- दो साल से भी ज़्यादा हो गया। लेकिन देखकर अच्छा लगा की तुम्हारी सास अच्छे से तुम्हारा ख्याल रख रही है।
वो हंसते हुए बोले।
"आप ऐसा क्यों कह रहे हो?"
उन्हें हंसते देख मैं भी मुस्कुरायी।
ममिया ससुरजी -- बहू, शीशे में देखो तुम्हें खुद ही पता चल जाएगा। बदन भर गया है तुम्हारा।
वो फिर हंस पड़े और धीरे से अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख दिया। मैंने उसका बुरा नहीं माना और उनकी बात से शरमाकर मुस्कुराने लगी। अब मैं उनकी बातों से बिल्कुल नॉर्मल हो गयी थी और मेरे मन से ये डर निकल गया था की ना जाने वो इस आश्रम के बारे में कितना जानते हैं। अब मैं उनके साथ बातों में मशगूल हो गयी थी।
"मोटी दिख रही हूँ क्या मैं?"
ससुरजी ने मुझे देखा और उनके होठों पर मुस्कान आ गयी।
"बताइए ना प्लीज़। आपने मुझे लंबे समय से नहीं देखा है, आप सही सही बता सकते हो।"
ममिया ससुरजी -- नहीं नहीं। मोटी नहीं दिख रही हो लेकिन!
"लेकिन क्या? पूरी बात बताइए ना। आप सभी मर्द एक जैसे होते हो। अनिल से पूछती हूँ तो वो भी ऐसा ही करते हैं। आधी अधूरी बात।"
हे भगवान! शुक्र है मुझे अपने पति का नाम अभी तक याद है। पिछले तीन दिनों में इतने मर्दों के साथ क्या कुछ नहीं किया उसको देखते हुए तो ये भी किसी चमत्कार से कम नहीं की मुझे ये याद है की मेरा कोई पति भी है
ममिया ससुरजी -- बहू, एक बार खड़ी हो जाओ।
मैं सोफे से उठकर उनके सामने साइड से खड़ी हो गयी। उन्होंने मेरे दाएं नितंब पर हाथ रखा और बोले ।
ममिया ससुरजी -- बहूरानी, यहाँ पर तो तुमने माँस चढ़ा लिया है। पिछली बार जब मैंने तुम्हें देखा था तब ये इतने बड़े नहीं थे।
मुझे तुरंत ध्यान आया की मैंने पैंटी नहीं पहनी है। जब राजकमल ने मुझे बाथरूम में कपड़े लाकर दिए थे तो उनमें पैंटी नहीं थी पर उस समय मुझे ओर्गास्म की वजह से उतनी होश नहीं थी। ससुरजी का हाथ मेरे दाएं नितंब पर था और साड़ी और पेटीकोट के बाहर से मेरे सुडौल नितंबों की गोलाई का अंदाज़ा उन्हें हो रहा होगा।
"हाँ, मुझे मालूम है।"
ममिया ससुरजी -- और तुम्हारा पेट भी थोड़ा बढ़ गया है। ये अच्छी बात नहीं है।
मैंने ससुरजी की नज़रों को देखा, मुझे पता चला की मेरा पल्लू थोड़ा खिसक गया है और उनको मेरे ब्लाउज से ढकी चूचियों के निचले हिस्से और पेट का नज़ारा दिख रहा है। वो सोफे में बैठे हुए थे और मैं उनके सामने साइड से खड़ी थी। मैं एकदम से उनके सामने से नहीं हट सकती थी क्यूंकी उन्हें बुरा लग सकता था। इसलिए मैंने साड़ी के पल्लू को नीचे करके अपनी चूचियों और पेट को ढक दिया।
ममिया ससुरजी -- बहू, बच्चा होने के बाद तो तुम्हारा वजन बढ़ जाएगा। इसलिए तुम्हें ध्यान रखना चाहिए। अनिल क्या करता है? उसने तुम्हें एक्सरसाइज करवानी चाहिए .........।
वो एक पल को रुके और फिर धीरे से बोले -- "सिर्फ़ बेड पर ही नहीं!"
वो ज़ोर से हंस पड़े और मैं बहुत शरमा गयी। मुझे शरमाते देखकर उन्होंने हंसते हंसते मेरे नितंबों में धीरे से एक चपत लगा दी। उनका हाथ मेरी गांड की दरार के ऊपर पड़ा, मैंने पैंटी पहनी नहीं थी, वहाँ चपत लगने से एक पल के लिए मेरे दिल की धड़कनें बंद हो गयीं। वो ऐसे नॉर्मली हँसी मज़ाक कर रहे थे, मैं कुछ कह भी नहीं सकती थी।
"आप बड़े!"
मैं आगे बोल नहीं पाई। वो ज़ोर से हँसे और मेरी बाँह पकड़कर मुझे अपने साथ सोफे पर बिठा लिया। मेरी बाँह पकड़ने से उन्हें तेल महसूस हुआ। वैसे तो मैंने टॉवेल से पोंछ दिया था पर चिकनाहट तो थी ही।
ममिया ससुरजी -- तुम्हारी बाँह इतनी चिपचिपी क्यूँ हो रही है? कुछ लगाया है क्या?
"हाँ, तेल लगाया है।"
मैंने जानबूझकर उनको अपनी मालिश के बारे में नहीं बताया पर जो जवाब उन्होंने दिया उससे मैं सन्न रह गयी।
ममिया ससुरजी -- ओह। लगता है गुरुजी ने सालों से अपने उपचार का तरीका नहीं बदला है। मुझे याद है उन्होंने मेरी नौकरानी को भी कुछ मालिश वाले तेल दिए थे। तुमने भी मालिश करवाई?
मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा और मुझे समझ नहीं आया क्या बोलूँ? वो उम्रदराज आदमी थे तो उनके सामने अपनी मालिश की बात करने में मुझे शरम आ रही थी। वो मेरे पति की तरफ के रिश्तेदार थे तो और भी अजीब लग रहा था। मेरी ससुरालवाले तो सोच भी नहीं सकते थे की मेरे साथ यहाँ क्या क्या हो रहा है। और कौन औरत चाहेगी की ऐसी बातें उसके घरवालों को पता लगें।
"नहीं! मेरा मतलब मैं खुद तेल मालिश करती हूँ।"
ममिया ससुरजी -- अजीब बात है। मुझे अच्छी तरह याद है की जब मेरी नौकरानी यहाँ आई थी तो गुरुजी ने उसे बताया था की मालिश खुद नहीं करनी है। बल्कि एक दिन जब उसकी बहन कहीं गयी हुई थी तो मेरी नौकरानी ने मुझसे कहा था मालिश के लिए।
मैं उनकी बात सुनकर काँप गयी। मुझे बड़ी चिंता होने लगी की ससुरजी तो मालिश के बारे में इतना कुछ जानते हैं। पर औरत होने की वजह से मुझे ये जानने की भी उत्सुकता हो रही थी की ससुरजी ने नौकरानी के साथ क्या किया? क्या उन्होंने नौकरानी के पूरे बदन में तेल लगाया? कितनी उमर थी उसकी? वो शादीशुदा थी इसलिए 18 से तो ऊपर की होगी। मालिश के समय वो क्या पहने थी? क्या वो मालिश के लिये ससुरजी के सामने नंगी हुई, जैसे मैं राजकमल के सामने हुई थी? ससुरजी ने मालिश के बाद उसे चोदे बिना छोड़ दिया होगा? हे भगवान! इन सब बातों को सोचकर मेरी गर्मी बढ़ने लगी। ससुरजी ने शादी नहीं की थी लेकिन उनके किसी कांड के बारे में मैंने कभी नहीं सुना था।
थोड़ी देर के लिए ऐसी बातों पर मेरा ध्यान गया फिर मैंने अपने को मन ही मन फटकारा की मैं ऐसे उम्रदराज और सम्मानित आदमी के बारे में उल्टा सीधा सोच रही हूँ।
ममिया ससुरजी -- बहू, तुम्हारा बदन तेल से चिपचिपा हो रहा है, तुम्हें नहा लेना चाहिए।
"कोई बात नहीं। आप बैठिए ना। आपसे इतने लंबे समय बाद मुलाकात हो रही है।"
वो सोफे से उठ गये। मैं समझ गयी अब वो जाना चाहते हैं। मैं भी सोफे से उठ गयी।
ससुरजी सोफे से उठ गये। मैं समझ गयी अब वो जाना चाहते हैं। मैं भी सोफे से उठ गयी।
ममिया ससुरजी -- अभी तुम यहाँ कितने दिन और रहोगी? गुरुजी ने कुछ कहा इस बारे में?
"हाँ। यहाँ 6 दिन रहने का बताया है। सोमवार को आश्रम आई थी, आज चौथा दिन है।"
ममिया ससुरजी -- ठीक है फिर मैं शनिवार को दुबारा आऊँगा। ताकि तुम्हें आश्रम में अकेले बोरियत ना हो और तुम्हें अच्छा भी लगेगा।
मैंने मुस्कुराते हुए हामी भर दी।
ममिया ससुरजी -- ठीक है बहूरानी, मैं चलता हूँ।
मैंने रिवाज़ के अनुसार जाते समय उनके पैर छू लिए। जब आते समय मैंने झुककर ससुरजी के पैर छुए थे तो उन्होंने मुझे बाँह पकड़कर उठाया था पर इस बार उन्होंने मेरी कमर पर हाथ रख दिए। उनकी अँगुलियाँ मुझे अपने मुलायम नितंबों पर महसूस हुई, मैं जल्दी से उनके पैर छूकर सीधी खड़ी हो गयी।
ममिया ससुरजी -- खुश रहो बहू। मैं भगवान से प्रार्थना करूँगा की अनिल और तुम्हें जल्दी ही एक सुंदर सा बच्चा हो जाए।
ऐसा कहते हुए उन्होंने मुझे आलिंगन कर लिया। मैं भी थोड़ी भावुक हो गयी, उनके हाथ मेरी कमर में थे। ये कोई पहली बार नहीं था की किसी उम्रदराज रिश्तेदार ने मुझे आलिंगन किया हो, लेकिन मुझे अजीब लग रहा था। सभी औरतों के पास छठी चेतना होती है और हम औरतें किसी मर्द के स्नेह भरे आलिंगन और किसी दूसरे इरादे से किए आलिंगन में भेद कर लेती हैं।
ससुरजी ने पहले तो मुझे कमर से पकड़कर उठाया और फिर आलिंगन कर लिया और अब मैं उनकी छाती से लगी हुई थी। मुझे मालूम पड़ रहा था की उनकी अँगुलियाँ मेरी पीठ में धीरे धीरेऊपर को बढ़ रही हैं। मैंने अपनी चूचियों के आगे अपनी बाँह लगा रखी थी ताकि वो ससुरजी की छाती से ना छू जाए। अब उन्होंने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ा और मेरे माथे का चुंबन ले लिया।
अगर कोई ये सब देख रहा होता तो उसको लगता की ससुरजी बहू को स्नेह दे रहे हैं। लेकिन मुझे उनके स्नेह पर भरोसा नहीं हो रहा था। मेरे माथे को चूमकर अपना स्नेह दिखाने के बाद उन्होंने मुझे छोड़ देना चाहिए था क्यूंकी अब और कुछ करने को तो था नहीं। लेकिन वो मुस्कुराए और अपने हाथों को मेरे सर से कंधों पर ले आए। मुझे तो कुछ कहना ही नहीं आया, उनकी अँगुलियाँ मेरी गर्दन को सहलाती हुई मेरे कंधों पर आ गयीं।
ममिया ससुरजी -- अपने ऊपर भरोसा रखो बहू। सब ठीक होगा।
उनकी अँगुलियाँ मेरे कंधों पर ब्लाउज के ऊपर से ब्रा स्ट्रैप को टटोल रही थीं। अब वो मेरे कंधों को पकड़कर मुझसे बात कर रहे थे तो मुझे भी अपनी बाँहें नीचे करनी पड़ी। उससे पहले जब वो मुझे आलिंगन कर रहे थे तो मैंने अपनी छाती के ऊपर बाँह आड़ी करके रख ली थी। पर अब मेरी तनी हुई चूचियाँ ससुरजी की छाती से कुछ ही इंच दूर थीं।
ममिया ससुरजी -- बहूरानी फिकर मत करना। अगर तुम्हें कुछ चाहिए तो मुझसे कहो। मैं अपना फोन नंबर आश्रम के ऑफिस में दे जाऊँगा ताकि अगर तुम्हें किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो वो मुझे फोन कर देंगे।
ये सब बोलते वक़्त ससुरजी ने मेरे कंधों को धीरे से अपनी ओर खींचा और अब मेरी चूचियाँ उनकी छाती से छूने लगी थीं। ये मेरे लिए बड़ी अटपटी स्थिति थी, ससुरजी मेरे कंधों को छोड़ नहीं रहे थे बल्कि मुझे अपने नज़दीक़ खींच रहे थे, और अब मैं उनके सामने खड़ी थी और मेरी नुकीली चूचियाँ उनकी सपाट छाती को छूने लगी थीं। ससुरजी ने मुझे वैसे ही पकड़े रखा और बातें करते रहे।
ममिया ससुरजी -- मैंने तुम्हारी सास को कह दिया है की बिल्कुल चिंता मत करो और गुरुजी पर भरोसा रखो। तुम्हें तो मालूम ही होगा वो कितनी चिंतित रहती है।
ससुरजी की छाती से रगड़ खाने से मेरे निप्पल कड़े होने लगे। उस पोज़िशन में मेरी चूचियाँ उनकी छाती से दब नहीं रही थीं बल्कि छू जा रही थीं। मैंने थोड़ा पीछे हटने की कोशिश की पर मेरे कंधों पर ससुरजी की मजबूत पकड़ होने से मैं ऐसा ना कर सकी। मेरी 28 बरस की जवान चूचियाँ साड़ी ब्लाउज के अंदर सांस लेने से ऊपर नीचे हिल रही थीं और 50 बरस के ससुरजी की शर्ट से ढकी छाती से रगड़ खाते रहीं।
ममिया ससुरजी -- बहूरानी, आज मैं तुम्हारे घर फोन करूँगा और उन्हें तुम्हारी खबर दूँगा।
"ठीक है ससुरजी। आप भी अपना ध्यान रखना।"
मैंने जल्दी से बातचीत को खत्म करने की कोशिश की क्यूंकी उनके साथ उस पोज़िशन में खड़े खड़े मुझे बहुत अटपटा लग रहा था पर ससुरजी ने मुझे नहीं छोड़ा।
ममिया ससुरजी -- बहू तुम भी अपना ख्याल रखना..................।।
ऐसा कहते हुए उन्होंने अपना दायां हाथ मेरे कंधे से हटा लिया और मेरे मुलायम गाल पर चिकोटी काट ली। मैं उनसे ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं कर रही थी और एक मंदबुद्धि की तरह चुपचाप खड़ी रही। मेरे बाएं कंधे को पकड़कर उन्होंने अभी भी मुझे अपने नज़दीक़ खड़े रखा था। फिर उन्होंने मेरे बदन से अपने हाथ हटा लिए और मेरे सुडौल नितंबों में एक चपत लगा दी।
ममिया ससुरजी -- ............।ख़ासकर यहाँ पर।
ससुरजी की चपत हल्की नहीं थी और उनकी इस हरकत से मेरे नितंब साड़ी के अंदर हिल गये। मैंने महसूस किया था की चपत लगाकर उन्होंने अपने हाथ से मेरे बिना पैंटी के नितंबों को थोड़ा दबा दिया था। अब तक मेरी ब्रा के अंदर निप्पल उत्तेजना से पूरे तन चुके थे और ससुरजी की छाती में चुभ रहे थे। मुझे अब बहुत अनकंफर्टेबल फील हो रहा था, और कोई चारा ना देख मुझे उनके सामने ही अपनी ब्रा एडजस्ट करनी पड़ी। मैंने अपने दोनों हाथों से अपनी चूचियों को साइड से थोड़ा ऊपर को धक्का दिया और फिर जल्दी से अपना दायां हाथ पल्लू के अंदर डालकर ब्रा के कप को थोड़ा खींच दिया ताकि मेरी तनी हुई चूचियाँ ठीक से एडजस्ट हो जाएँ।
आख़िरकार ससुरजी ने मेरे कंधे से हाथ हटा लिया और दुबारा आऊँगा बोलकर चले गये। मैं भी ससुरजी के व्यवहार को लेकर उलझन भरे मन से अपने कमरे में वापस आ गयी। मुझे पूरा यकीन था की उनकी हरकतें जैसे की मेरे कंधों पर ब्रा स्ट्रैप को टटोलना, मेरे नितंबों में दो बार चपत लगाना और वहाँ पर दबाना, ये सब जानबूझकर ही किया गया था। लेकिन वो तो मुझे बहूरानी कह रहे थे और लगभग मुझसे दुगनी उमर के थे, फिर उन्हें मेरी जवानी की हवस कैसे हो सकती है? क्या पिछले कुछ दिनों की घटनाओ से मैं कुछ ज़्यादा ही सोचने लगी हूँ? लेकिन उनका वैसे छूना? कुछ तो गड़बड़ थी।
मैं बाथरूम चली गयी और देर तक नहाया क्यूंकी बदन से तेल हटाने में समय लग गया, ख़ासकर की मेरी पीठ और नितंबों पर से। फिर मैंने लंच किया और नींद लेने की सोच रही थी तभी समीर आ गया।
कहानी जारी रहेगी