औलाद की चाह 038

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बिमारी के निदान.
1.1k words
4.29
194
00

Part 39 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 5-चौथा दिन

बिमारी के निदान

Update 1

समीर--मैडम, अभी आपको डिस्टर्ब करने के लिए सॉरी। लेकिन गुरुजी आपसे तुरंत मिलना चाहते हैं।

मुझे समीर की बात सुनकर हैरानी हुई क्यूंकी गुरुजी ने मेरे चेकअप के बाद कहा था कि वह मुझसे शाम को मिलेंगे।

"लेकिन गुरुजी ने तो कहा था कि वह चेकअप के नतीजे शाम को बताएँगे।"

समीर--हाँ मैडम, लेकिन शाम को गुरुजी को शहर में गुप्ताजी के घर जाना है। असल में उनकी श्रीमतीजी अपनी बेटी के लिए आज ही यज्ञ करवाना चाहती हैं।

"अच्छा। गुरुजी दूसरों के घरों में भी यज्ञ करवाने जाते हैं क्या?"

समीर--ना ना। वैसे तो नहीं जाते लेकिन गुप्ताजी गुरुजी के पुराने भक्त हैं और दुर्भाग्यवश वह विकलांग हैं इसलिए!

"ओह अच्छा, मैं समझ गयी।"

ये सुनकर गुरुजी के लिए मेरी रेस्पेक्ट बढ़ गयी।

"गुरुजी ये यज्ञ क्यूँ कर रहे हैं?"

समीर--असल में गुप्ताजी की लड़की पिछले साल 12वीं के बोर्ड एग्जाम्स में फेल हो गयी थी। इस बार भी क्लास टेस्ट में बड़ी मुश्किल से पास हुई है । इसलिए श्रीमती गुप्ता उसके बोर्ड एग्जाम्स से पहले यज्ञ करवाना चाहती हैं।

"अच्छा, लेकिन उनको इतनी जल्दी क्यूँ है? मतलब यज्ञ आज ही क्यूँ करवाना है?"

समीर--मैडम, गुप्ताजी को चेकअप के लिए दो हफ्ते के लिए मुंबई जाना है। इसलिए उनको यज्ञ की जल्दी है।

"अच्छा!."

फिर मैंने ज़्यादा समय बर्बाद नहीं किया क्यूंकी मुझे भी चेकअप के नतीजे जानने की उत्सुकता हो रही थी और मैं समीर के पीछे-पीछे गुरुजी के कमरे की ओर चल दी। गुरुजी अपने भगवा वस्त्रों में लिंगा महाराज की मूर्ति के सामने बैठे हुए थे।

गुरुजी--आओ रश्मि।

मैंने गुरुजी को प्रणाम किया और नीचे बैठ गयी । समीर मेरे पास खड़ा रहा।

गुरुजी--रश्मि, मुझे शाम को शहर जाना है।

"हाँ गुरुजी, समीर ने मुझे बताया था।"

गुरुजी--असल में मैं आज गुप्ताजी के घर ही ठहरूँगा, वहाँ यज्ञ करवाना है। समीर और मंजू भी मेरे साथ जाएँगे।

वो थोड़ा रुके और फिर बोले;

गुरुजी--इसलिए मैं तुम्हें चेकअप के नतीजे अभी बता देता हूँ और आगे क्या करना है वह भी।

चेकअप के नतीजों की बात से मुझे चिंता होने लगी।

"गुरुजी क्या पता चला आपको?"

गुरुजी--समीर मेरी नोटबुक ले आओ. रश्मि, नतीजे बहुत उत्साहवर्धक नहीं हैं लेकिन बहुत खराब भी नहीं हैं।

मेरा दिल डर से ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। गुरुजी को मुझमें ना जाने क्या खराबी मिली है।

"गुरुजी!"

मैं आगे नहीं बोल पाई और मेरी आँख से आँसू की एक बूँद टपक गयी।

गुरुजी--रश्मि, तुम औरतों की यही समस्या है। तुम पूरी बात सुनती नहीं हो और सीधे निष्कर्ष निकाल लेती हो।

उनके शब्द कड़े थे। मैंने अपनेआप को सम्हाला। समीर ने उन्हें नोटबुक लाकर दी और गुरुजी ने उसमें एक पन्ना खोलकर देखा और फिर मेरी ओर देखा।

गुरुजी--देखो रश्मि, तुम्हारे योनिमार्ग में कुछ रुकावट है और गुदाद्वार के अंत में जो शिराएँ होती हैं उनमें सूजन है ।

मुझे मेडिकल की नालेज नहीं थी इसलिए मैंने कन्फ्यूज़्ड-सा मुँह बनाकर गुरुजी को देखा।

गुरुजी--देखो रश्मि, तुम्हें ऐसी कोई बड़ी शारीरिक समस्या नहीं है जिससे तुम गर्भ धारण ना कर सको। पर कभी-कभी छोटी बाधायें बड़ी समस्या पैदा कर देती हैं। महायज्ञ से तुम्हारे शरीर की सभी बाधायें दूर हो जाएँगी जैसा की मैंने तुम्हें पहले भी बताया है। वास्तव में महायज्ञ तुम्हें शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से, गर्भधारण के लिए तैयार होने में मदद करेगा और तुम्हारे योनिमार्ग को सभी बाधाओं से मुक्त कर देगा।

एक यज्ञ मेरे योनिमार्ग को बाधारहित बना देगा? पर कैसे? मुझे उनकी इस बात से उलझन हुईl

" लेकिन गुरुजी एक यज्ञ मुझे कैसे ठीक कर सकता है?

गुरुजी--रश्मि, तुम क्या सोच रही हो की महायज्ञ में अग्नि के सामने बैठकर सिर्फ़ मंत्र पढ़े जाएँगे और पूजा करनी होगी? इसमें और भी बहुत कुछ होता है और तुमको पूरी तरह समर्पण से ये करना होगा। तुम सिर्फ़ मुझ पर भरोसा रखो और बाक़ी लिंगा महाराज पर छोड़ दो।

ये सुनकर मुझे बहुत राहत हुईl

"जय लिंगा महाराज।"

गुरुजी--जय लिंगा महाराज।

"लेकिन गुरुजी आप कुछ शिराओं के बारे में भी बता रहे थे?"

गुरुजी--हाँ, गुदाद्वार के अंत में जो शिराएँ होती है उनमें सूजन आ जाने को बवासीर कहते हैं। मैं उसमें आयुर्वेदिक लेप लगा दूँगा। तुम उसकी चिंता मत करो रश्मि।

गुदाद्वार में लेप लगाने की बात सुनकर मैं शरमा गयी और मुझे अपनी नज़रें झुकानी पड़ी।

गुरुजी--रश्मि अब तुम अपने कमरे में जाओ और आराम करो। कल और परसों तुम्हारे लिए महायज्ञ होगा। तब तक तुम जो दवाइयाँ दी हैं उन्हें लेती रहो।

"ठीक है गुरुजीl"

गुरुजी--रश्मि अब तुम अपने कमरे में जाओ और आराम करो। कल और परसों तुम्हारे लिए महायज्ञ होगा। तब तक तुम जो दवाइयाँ दी हैं उन्हें लेती रहो।

"ठीक है गुरुजीl"

मैं उठकर कमरे से बाहर जाने लगी तभी उन्होंने मुझसे पूछा।

गुरुजी--रश्मि तुम्हें राजकमल की मालिश पसंद आई?

समीर और गुरुजी दोनों मुझे ही देख रहे थे और उनके इस प्रश्न का उत्तर देना मेरे लिए शर्मिंदगी वाली बात थी लेकिन मुझे जवाब तो देना ही था।

"हाँ, अच्छी थी।"

गुरुजी--उसके हाथों में जादू है। एक बात का ध्यान रखना, अगर तुम उससे मालिश करवाओगी तो उसको अपनी गांड पर मालिश मत करने देना क्यूंकी वहाँ पर मुझे चेकअप के दौरान सूजन मिली थी।

मुझे उनकी बात से इतनी शरम आई की मैं सर हिलाकर हामी भी नहीं भर सकी।

समीर--गुरुजी क्षमा करें पर मेरी राय अलग है। मेरे ख़्याल से मैडम राजकमल से अपनी गांड पर मालिश करवा सकती हैं लेकिन इन्हें राजकमल को सिर्फ़ ये बताना पड़ेगा की गांड के छेद पर तेल ना लगाए बस।

गुरुजी--हाँ रश्मि । समीर सही कह रहा है। तुम गांड की मालिश करवा सकती हो लेकिन उसे छेद को मत छूने देना।

गुरुजी ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा। मैं उन दोनों मर्दों की मेरी गांड की मालिश के बारे में बातचीत से शरम से मरी जा रही थी। मेरा मुँह शरम से लाल हो गया था। मुझे कुछ कहना ही नहीं आ रहा था।

समीर--गुरुजी मेरे ख़्याल से मालिश के समय मैडम को अपनी पैंटी नहीं उतारनी चाहिए, उससे छेद सेफ रहेगा।

गुरुजी और समीर दोनों मेरा मुँह देख रहे थे और मैं किसी भी तरह वहाँ से चले जाना चाहती थी। मैं उनकी नज़रों से नज़रें नहीं मिला पा रही थी। मुझे उनकी बातों से पता चल गया था कि ये दोनों जानते हैं कि राजकमल के सामने मैंने अपने अंडरगार्मेंट्स उतार दिए थे। मैं उनके सामने बहुत लज़्ज़ित महसूस कर रही थी।

गुरुजी--सही कहा समीर। पैंटी से बचाव हो जाएगा। रश्मि ये ठीक रहेगा। तुम पैंटी के बाहर से ही मालिश करवा लेना!

अब मुझसे और नहीं सुना गया। मैंने गुरुजी की बात को बीच में ही काट दिया।

"गुरुजी, मैं समझ गयी।"

शायद गुरुजी मेरी हालत समझ गये। भगवान का शुक्र है।

गुरुजी--ठीक है रश्मि। अब तुम अपने कमरे में जाओ. मुझे समीर और मंजू से गुप्ताजी के यज्ञ के बारे में बात करनी है।

कहानी जारी रहेगी

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