औलाद की चाह 046

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फ्लैशबैक–कमीना नौकर.
4.9k words
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Part 47 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 5-चौथा दिन-कुंवारी लड़की

Update-5

फ्लैशबैक--कमीना नौकर

उन दिनों मैं स्कूल पढ़ती थी और मेरी उमर तब 18 की होगी। मम्मी को लगता था कि कोई उनकी लड़की से छेड़छाड़ ना कर दे इसलिए वह हमारे नौकर को मुझे लाने भेजती थी। उसका नाम नटवर था और वह तब 36--37 बरस का रहा होगा। पहले तो हम पैदल चलकर घर वापिस आते थे बाद में मम्मी ने रिक्शा करवा दिया। लेकिन मम्मी को क्या पता था कि रास्ते के लफंगे तो सिर्फ़ भद्दे कमेंट्स ही करते थे लेकिन जिसे वह मेरी सेफ्टी के लिए भेज रही हैं उससे अपने को बचाना ही मेरे लिए मुश्किल हो जाएगा।

पहले पहल सब ठीक ठाक रहा पर जब बारिश का मौसम आया तो मेरे लिए मुसीबत हो गयी। हमारे इलाक़े में बारिश के मौसम में रिक्शा में एक पॉलिथीन कवर लगा होता था जो पैसेंजर के सर से आगे तक ढका रहता था और साइड्स में खुला रहता था। जब बारिश का मौसम शुरू हुआ तो रिक्शा में नटवर मुझसे सटकर बैठने लगा क्यूंकी साइड्स से बारिश की बूंदे आती थीं। मैंने बुरा नहीं माना क्यूंकी बारिश से बचने के लिए उसका ऐसा करना स्वाभाविक था।

मैं रिक्शा में बैठकर स्कूल बैग अपनी गोद में रख लेती थी। लेकिन अब नटवर बहाने-बहाने से मुझसे बैग लेने की कोशिश करता और कभी कहता तुम आराम से बैठो या कभी कहता, बैग तुम्हारे लिए भारी हो रहा है, लाओ मैं पकड़ता हूँ। मैं उसे बैग नहीं देती थी और उसका भी एक कारण था।

हम लड़कियों का एक स्वाभाव होता है कि जब हमने ऐसी ड्रेस पहनी होती है जो हमारी टाँगों को पूरा नहीं ढकती, जैसे कि स्कर्ट, तो हम बैग को अपनी गोद में रख लेती हैं, जिससे हमारे सबसे नाज़ुक भाग में एक दोहरा सेफ्टी कवर हो जाता है वरना हमें स्कर्ट के ऊपर जांघों में हाथ रखना पड़ता है जो की थोड़ा अजीब-सा लगता है। लेकिन अब नटवर बैग लेने के लिए कुछ ज़्यादा ही ज़ोर देने लगा था ख़ासकर की शुक्रवार (फ्राइडे) के दिनों में।

तब मुझे उसके गंदे इरादों के बारे में अंदाज़ा नहीं था। असल में शुक्रवार के दिन हमारी पीटी क्लास होती थी और मैं पीटी ड्रेस पहनकर स्कूल जाती थी। पीटी ड्रेस और दिनों की तरह ही थी, स्कर्ट और टॉप, पर एक अंतर ये था कि स्कूल स्कर्ट घुटनों से नीचे तक थी पर पीटी स्कर्ट छोटी होती थी और घुटनों तक ही थी। चूँकि मैं गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी इसलिए स्कूल में कोई परेशानी नहीं थी लेकिन आते जाते समय रास्ते में ध्यान रखना पड़ता था।

क्यूंकी पीटी स्कर्ट का कपड़ा भी थोड़ा हल्का था, कभी तेज हवा चल रही होती थी तो स्कर्ट उठ जाने से पैंटी दिख जाती थी। मेरी मम्मी शुक्रवार को हमेशा मुझे कहा करती थी की रश्मि, अपनी ड्रेस का ध्यान रखना। मेरी कुछ फ्रेंड्स को-एड स्कूल में पढ़ती थीं लेकिन उनकी पीटी ड्रेस छोटी नहीं थी । शायद हमारा गर्ल्स स्कूल होने की वज़ह से मैनेजमेंट ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।

इसीलिए मैं नटवर को स्कूल बैग नहीं देती थी क्यूंकी रिक्शा में बैठने के बाद स्कर्ट मेरी जांघों तक ऊपर उठ जाती थी।

असल में शुक्रवार के दिन हमारी पीटी क्लास होती थी और मैं पीटी ड्रेस पहनकर स्कूल जाती थी। पीटी ड्रेस और दिनों की तरह ही थी, स्कर्ट और टॉप, पर एक अंतर ये था कि स्कूल स्कर्ट घुटनों से नीचे तक थी पर पीटी स्कर्ट छोटी होती थी और घुटनों तक ही थी। चूँकि मैं गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी इसलिए स्कूल में कोई परेशानी नहीं थी लेकिन आते जाते समय रास्ते में ध्यान रखना पड़ता था।

क्यूंकी पीटी स्कर्ट का कपड़ा भी थोड़ा हल्का था, कभी तेज हवा चल रही होती थी तो स्कर्ट उठ जाने से पैंटी दिख जाती थी। मेरी मम्मी शुक्रवार को हमेशा मुझे कहा करती थी की रश्मि, अपनी ड्रेस का ध्यान रखना। मेरी कुछ फ्रेंड्स को-एड स्कूल में पढ़ती थीं लेकिन उनकी पीटी ड्रेस छोटी नहीं थी । शायद हमारा गर्ल्स स्कूल होने की वज़ह से मैनेजमेंट ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।

इसीलिए मैं नटवर को स्कूल बैग नहीं देती थी क्यूंकी रिक्शा में बैठने के बाद स्कर्ट मेरी जांघों तक ऊपर उठ जाती थी। लेकिन बारिश के मौसम में एक दिन मैं उसको बैग के लिए मना नहीं कर पायी। उस दिन तक तो उसको बारिश की वज़ह से रिक्शा में मुझसे सटकर बैठने का अवसर ही मिल पाता था लेकिन उस दिन पहली बार उसे छेड़छाड़ का मौका मिल गया।

वो फ्राइडे का दिन था और जब मैं स्कूल से बाहर निकली तो बहुत तेज बारिश हो रही थी। मैं छाता लेकर रिक्शा के पास आई. रिक्शा की सीट पर नटवर पहले से ही बैठा हुआ था। मुझे रिक्शा में चढ़ते समय छाता पकड़े होने की वज़ह से अपना बैग उसको देना पड़ा। उसने मेरा बैग पकड़ा और हाथ देकर मुझे रिक्शा में चढ़ा लिया। मेरे बैठते ही रिक्शा वाले ने पॉलिथीन कवर को फैला दिया। आज तेज बारिश हो रही थी तो नटवर ने उससे कहा की साइड्स से भी कवर कर दे। अब मैं हमारे नौकर के साथ उस चारो तरफ़ से बंद रिक्शा में बैठी थी और बारिश की बूंदे पॉलिथीन कवर में पड़ने से तेज आवाज़ हो रही थी और बाहर का कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था।

"नटवर भैया, मैं बैग रख लेती हूँ। तुम तकलीफ मत करो।"

नटवर--नहीं नहीं बेबी. आज मैं ही रख लेता हूँ। ये भीग गया है तो थोड़ा भारी भी हो गया है।

नटवर मुझे बेबी कह कर बुलाता था। मैंने सोचा सच ही कह रहा होगा क्यूंकी मेरा बैग वास्तव में भीग गया था।

"ठीक है नटवर भैय्या, आज तुम ही रख लो।"

मैं मुस्कुरायी और मैंने देखा की उसने अजीब ढंग से मेरा बैग पकड़ा हुआ है। उसने अपनी गोद में बैग जांघों पर ना लिटाकर खड़ा करके रखा हुआ था और बैग के बाहर से छाती पर हाथ फोल्ड किए हुए थे। मुझे मन ही मन हँसी आई की इसने ऐसे बैग पकड़ा हुआ है। थोड़ी देर बाद पॉलिथीन कवर की दोनों तरफ़ की साइड्स से बारिश की बूंदे आने लगीं तो मुझे सीट पर नटवर की तरफ़ खिसकना पड़ा और वह भी थोड़ा मेरी तरफ़ खिसक गया। नतीजा ये हुआ की अब उसकी फोल्ड की हुई बायीं बाँह की अँगुलियाँ मेरी चूची को छूने लगी। रिक्शा को लगते हर झटके के साथ उसके बाएँ हाथ की अँगुलियाँ मेरी बायीं चूची को छूने लगी । वह मेरी बायीं तरफ़ बैठा था और मुझे लगा सटकर बैठने की वज़ह से ऐसा हो रहा है।

फिर रिक्शा मेन रोड को छोड़कर गली में आ गया और रास्ता अच्छा ना होने से झटके ज़्यादा लगने लगे और बारिश की वज़ह से गली में पानी भर गया था तो स्पीड भी हल्की हो गयी थी। मैंने दाएँ हाथ से रिक्शा को पकड़ा हुआ था और बाएँ हाथ को पीटी स्कर्ट के ऊपर जाँघ पर रखा हुआ था। रास्ते भर नटवर की अँगुलियाँ मेरी बायीं चूची को छूते रहीं। जब मैं घर पहुँची तो मुझे कुछ अजीब-सा महसूस हो रहा था। मम्मी को चिंता हो रही थी की कहीं इतनी तेज बारिश से मैं भीग तो नहीं गयी लेकिन मेरा ध्यान अपनी चूचियों पर था क्यूंकी ब्रा के अंदर निप्पल एकदम कड़क होकर तन गये थे।

वो तो बस शुरुवात थी और बारिश के दिनों में नटवर का यही रुटीन हो गया। धूप के दिन वह ऐसे नॉर्मल तरीके से व्यवहार करता था कि मैं उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोच पाती थी। फिर एक बारिश के दिन वह मेरी बायीं तरफ़ बैठा था। रिक्शा की साइड्स से बारिश की बूंदे आने लगीं तो मुझे उसकी तरफ़ खिसकना पड़ा। उस दिन स्कूल बैग मेरी गोद में ही रखा हुआ था। अब उसने अपना दायाँ हाथ मेरे पीछे सीट के ऊपर रख दिया। थोड़ी देर तक कुछ नहीं हुआ फिर रिक्शा को एक झटका लगा तो मैं उसकी तरफ़ झुक गयी, उसने अपने दाएँ हाथ से मेरे कंधे को पकड़ लिया। फिर मैं सीधी हो गयी पर उसने अपना हाथ नहीं हटाया।

बारिश की वज़ह से मुझे उससे सटकर बैठना पड़ रहा था और उसका हाथ मेरे दाएँ कंधे पर था। फिर एक झटका लगा तो उसका हाथ मेरे कंधे से खिसकर मेरी बाँह पर आ गया और अगले झटके में और नीचे खिसककर मेरी कमर पर आ गया। उस दिन जब मैं रिक्शा से उतरने लगी तो उसने मेरे नितंबों को अपनी हथेली से पकड़ा जैसे मुझे नीचे उतरने में मदद कर रहा हो। तब तक तो मैं सहन ही करती थी और उसके छूने को इग्नोर कर देती थीl

और कभी-कभी जब उसका हाथ मुझे ज़्यादा ही महसूस होता था तब मुझे थोड़ा एंबरेसमेंट हो जाती थी । लेकिन जैसे-जैसे दिन गुज़रते गये मुझे समझ आने लगा की ये नौकर बारिश की वज़ह से मेरी सटकर बैठने की मजबूरी का फायदा उठा रहा है और जानबूझकर मेरे बदन को छूने की कोशिश करता है।

फिर लगातार दो दिनों तक कुछ ऐसा हुआ की मैं बहुत ही परेशान हो गयी और फिर मैंने रिक्शा में बैठना ही छोड़ दिया।

मुझे याद है कि उस दिन थर्सडे था और मानसून की तेज बारिश हो रही थीl

मुझे याद है कि उस दिन थर्सडे था और मानसून की तेज बारिश हो रही थी। मैं छाता लेकर रिक्शा के पास आई तो नटवर रिक्शा में चढ़ गया और मुझसे स्कूल बैग देने को कहा। मैंने उसे अपना बैग पकड़ा दिया।

नटवर--ओह!सीट तो गीली हो रखी है।

"नटवर भैया, ये रुमाल ले लो और सीट पोंछ दो।"

बारिश से सीट गीली हो गयी थी और नटवर ने रुमाल से उसे पोंछ दिया और सीट में बैठ गया। मैं रिक्शा में चढ़ गयी और जैसे ही सीट में बैठने को हुई उसने बड़ी अजीब-सी बात कही।

नटवर--बेबी, सीट अभी भी गीली ही है। अपनी स्कर्ट में मत बैठो, गीली हो जाएगी।

मैंने उसकी तरफ़ उलझन भरी निगाहों से देखा क्यूंकी मुझे उसकी बात समझ नहीं आईl

नटवर--बेबी, जैसे फ़र्श में बैठती हो ना वैसे बैठो। उससे तुम्हारी स्कर्ट गीली नहीं होगी।

असल में हम लड़कियाँ जब फ़र्श या खुले में घास में बैठती हैं तो स्कर्ट को गोल फैलाकर बैठती हैं क्यूंकी उससे टाँगें अच्छे से ढकी रहती हैं। लेकिन यहाँ रिक्शा में एक आदमी के साथ ऐसे बैठना कुछ अजीब लग रहा था। मैं रिक्शा की सीट में बैठने को आधी झुकी हुई खड़ी थी और नटवर सीट में बैठा हुआ था। मैंने दोनों हाथों से स्कर्ट के कोनों को पकड़कर थोड़ा ऊपर उठाया और सीट में बैठ गयी। मेरी पीठ सीट की तरफ़ थी और नटवर सीट में बैठा हुआ था तो पीछे से मेरा स्कर्ट उठाकर सीट में बैठने का वह दृश्य देखना उसके लिए रोमांचित कर देने वाला रहा होगा।

अब मैंने स्कर्ट को गोल फैलाकर अपनी टाँगों के ऊपर कर दिया। लेकिन सीट गीली होने से मेरी जाँघों के निचले हिस्से में गीलापन महसूस होने लगा और कुछ ही देर में मेरी पैंटी भी नीचे से गीली हो गयी। लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकती थी इसलिए चुप बैठी रही। पर नटवर के दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था।

नटवर--सीट तो अभी भी गीली लग रही है। मेरी पैंट गीली होने लगी है।

"हाँ, सीट थोड़ी गीली है पर क्या कर सकते हैं। चलेगा।"

मैंने बात को टालने की कोशिश की पर।

नटवर--बेबी, कैसे चलेगा? मेरे पैंट के अंदर कच्छा भी गीला होने लगा है और तुम कह रही हो की थोड़ी-सी गीली है।

रिक्शा चलते जा रहा था और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि नटवर की बात का क्या जवाब दूँ।

नटवर--बेबी अपना रुमाल दे दो। मैं फिर से पोंछ देता हूँ।

"लेकिन तुम सीट को पोछोगे कैसे? हम तो बैठे हैं।"

मेरे मुँह से अपनेआप ये सवाल निकल गया और वह नौकर इसी बात को पूछने का इंतज़ार कर रहा था।

नटवर--मैं थोड़ा-सा कमर ऊपर उठाऊँगा फिर तुम मेरे नीचे पोंछ देना और ऐसे ही मैं तुम्हारे नीचे पोंछ दूँगा।

ऐसा कहते हुए उसने अपने नितंबों को सीट से थोड़ा ऊपर उठा दिया, मेरा स्कूल बैग उसने अपनी छाती से चिपकाकर पकड़ा हुआ था। मैं थोड़ा उसकी तरफ़ मुड़कर उसके नीचे सीट पोछने लगी। रिक्शा को झटके लगने से मेरा हाथ उसके नितंबों पर छू जा रहा था और उसकी तरफ़ मुड़ने से मेरे चेहरे पर उसके छाती पर फोल्ड किये हुए हाथ की अँगुलियाँ छू जा रही थीं । झटकों की वज़ह से कभी मेरे कानों पर तो कभी मेरे गालों पर उसकी अँगुलियाँ छू रही थीं। लेकिन जब वह मेरे होठों को भी छूने लगीं तो मुझे असहज महसूस होने लगा और मैंने जल्दी से सीट पोछना ख़त्म किया और सीधी हो गयी। उसकी अंगुलियों के मेरे होठों को छूने से मेरा चेहरा लाल हो गया।

"नटवर भैय्या, हो गया । अब तुम बैठ जाओ! "

वो बैठ गया और मैंने उसको रुमाल दे दिया और उसने मुझे स्कूल बैग पकड़ा दिया। अब उठने की बारी मेरी थी। मैं थोड़ा-सा ऊपर को उठी और सपोर्ट के लिए मैंने एक हाथ से रिक्शा के फ्रेम को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से मैंने बैग पकड़ा हुआ था । थोड़ा ऊपर उठने से पीछे से मेरी स्कर्ट नीचे हो गयी और सीट को ढक दिया।

अब नटवर ने सीट पोछने के लिए पीछे से मेरी स्कर्ट ऊपर उठा दी । असल में थोड़ी-सी स्कर्ट ऊपर करके सीट पोछने की बजाय उसने पीछे से मेरी स्कर्ट मेरे नितंबों तक पूरी ऊपर उठा दी । शरम से मुझे कुछ कहना ही नहीं आया। रिक्शा चलता जा रहा था और चारो तरफ़ से पॉलिथीन कवर लगा हुआ था। रास्ते में किसी को पता नहीं चल रहा होगा की रिक्शा के अंदर एक लड़की झुकी हुई खड़ी है और उसकी स्कर्ट पीछे से उसके गोल नितंबों तक उठी हुई है।

वो नौकर सीट पोछने में इतना वक़्त ले रहा था कि मुझे टोकना पड़ा।

"हो गया क्या?"

नटवर ने अंदर झाँकने के लिए एक हाथ से मेरी स्कर्ट ऊपर उठा रखी थी और दूसरे हाथ से सीट पोछने का बहाना कर रहा था।

नटवर--नहीं बेबी. अभी भी गीला है। असल में रुमाल ही गीला हो गया है।

"कोई बात नहीं। मैं ऐसे ही बैठ जाती हूँ।"

और ऐसा कहते हुए मैं बैठने को हुई तो उसके हाथ मेरे नितंबों पर लग गये।

नटवर--बेबी तुम्हारी तो पैंटी भी गीली लग रही है। एक काम करो। मैं बीच में बैठ जाता हूँ, तुम मेरी गोद में बैठ जाओ और बैग साइड में रख दो। देखो बारिश तेज हो गयी है तुम साइड्स से भी भीग जाओगी।

ऐसा कहकर वह मेरी तरफ़ बीच में खिसक गया। उसकी बात से मैं हैरान हुई और शरमा गयी। मुझे तो बारिश बहुत तेज नहीं लग रही थी लेकिन पॉलिथीन कवर से साइड्स में पानी अंदर ज़रूर आ रहा था। मैंने सोचा मना कर दूँ पर वह मुझसे उमर में बहुत बड़ा था और सीट गीली भी थी और रिक्शा में कवर लगने से किसी के अंदर देखने की गुंजाइश नहीं थी तो मैं बाक़ी बचे रास्ते के लिए उसकी गोद में बैठने को राज़ी हो गयी। मैंने स्कूल बैग सीट में रखा और अपनी स्कर्ट नीचे को खींची और अनमने मन से उसकी जांघों में बैठ गयी।

उस नौकर की जांघों में बैठकर मेरे जवान बदन में कंपकपी-सी हो रही थी और मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था। मैंने अपने दाएँ हाथ से सपोर्ट के लिए रिक्शा फ्रेम को पकड़ा हुआ था। इसलिए मेरे बदन का दायाँ हिस्सा चूची से लेकर कमर तक अनप्रोटेक्टेड था। कुछ ही देर में उसने अपना दायाँ हाथ मेरी दायीं जाँघ में स्कर्ट के ऊपर रख दिया और मुझे सपोर्ट देने के बहाने अपना बायाँ हाथ मेरी कमर पर रख दिया। जल्दी ही मुझे समझ आ गया की इसका कहना मानकर मैंने ग़लती कर दी है। उसके हाथ एक जगह पर स्थिर नहीं थे, रिक्शा को झटके लग रहे थे और उसके हाथ मेरी जाँघ, मेरी कमर और मेरे पेट को छू रहे थे।

एक बार तो उसने हद ही कर दी । एक मोड़ पर जब रिक्शा ने टर्न लिया तो संतुलन बिगड़ने से मैं उसकी जांघों में फिसल गयी । उसने मेरी कमर से पकड़कर मुझे वापस गोद में खींच लिया। उसके बाद मुझे फिर से फिसलने से रोकने के बहाने उसने चालाकी से मेरी स्कर्ट को जांघों तक ऊपर करके मेरी नंगी जांघों को कस कर पकड़ लिया। मैं कुछ बोल नहीं पाई क्यूंकी उसने बड़ी चालाकी से ऐसा दिखाया जैसे वह मुझे फिर से फिसलने से रोकने के लिए ऐसा कर रहा है।

नटवर--बेबी, अब नहीं फिसलोगी।

मैं चुप रही लेकिन मुझे इतना असहज महसूस हो रहा था कि मैंने अपनी स्कर्ट को अपनी जांघों पर उसके हाथों के ऊपर से ही नीचे खींच दिया। मैंने तो ऐसा अपनी जांघों को ढकने के लिए किया था लेकिन इससे उसको और भी अवसर मिल गया। कुछ ही देर में उसकी अँगुलियाँ मेरी स्कर्ट के अंदर नंगी जांघों पर ऊपर को बढ़ने लगी । मुझे इतना अजीब महसूस हो रहा था कि बयान नहीं कर सकती। जब उसकी अँगुलियाँ मेरी पैंटी तक पहुँच गयी तो मुझसे अब और सहन नहीं किया गया। मैंने उसके ऊपर को बढ़ते हाथ को पकड़ लिया और उसने अपनी अश्लील हरकत रोक दी।

घर पहुँचकर ही मुझे उसकी हरकतों से छुटकारा मिला । मेरे मन में उसके लिए इतनी नफ़रत हो रही थी की उससे बात करने का भी मेरा मन नहीं हो रहा था। लेकिन जो कुछ भी आज हुआ उससे नटवर की हिम्मत बहुत बढ़ गयी। दूसरे दिन फ्राइडे था और बदक़िस्मती से दोपहर बाद फिर से तेज बारिश शुरू हो गयी।

लेकिन जो कुछ भी आज हुआ उससे नटवर की हिम्मत बहुत बढ़ गयी। दूसरे दिन फ्राइडे था और बदक़िस्मती से दोपहर बाद फिर से तेज बारिश शुरू हो गयी। आज फ्राइडे था तो मैंने छोटी पीटी स्कर्ट पहनी हुई थी और हर फ्राइडे की तरह सुबह मम्मी ने मुझसे कहा था कि अपनी स्कर्ट का ध्यान रखना और यूँ ही इधर उधर मत घूमना। हमारा गर्ल्स स्कूल होने से स्कूल में तो कोई दिक्कत नहीं थी पर मेरा बदन उन दिनों डेवलप हो रहा था और उस छोटी स्कर्ट में मैं सेक्सी लगती थी, इसलिए मम्मी रोड पर यूँ ही इधर उधर घूमने को मना करती थी।

स्कूल से घर लौटते वक़्त आज नटवर मुझसे पहले रिक्शा में नहीं चढ़ा और मैं सीट में बैठ गयी। तभी मैंने ख़्याल किया की नटवर के हाथ में एक झोला (बैग) है जिसे वह रिक्शा में मेरे पैरों के पास रख रहा था। रिक्शा वाला बारिश की वज़ह से जल्दी बैठने को कह रहा था पर नटवर झोले को एडजस्ट करने में वक़्त लगा रहा था और एक हाथ से उसने अपने सर के ऊपर छाता लगा रखी थी। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया, फिर अचानक मुझे लगा की वह मेरी स्कर्ट के अंदर झाँकने की कोशिश कर रहा है। वह छाता लिए रोड में झुक कर खड़ा था और मैं ऊपर सीट पर बैठी थी। उसने रिक्शा के फ़र्श में मेरे दोनों पैरों के बीच झोला रख दिया था।

असल में उसके छाता की वज़ह से मुझे उसका चेहरा नहीं दिख रहा था पर एक पल को छाता थोड़ी हटी तो मैं ये देख के सन्न रह गयी की वह झुककर मेरी स्कर्ट के अंदर झाँक रहा था और इसीलिए झोला एडजस्ट करने में इतना वक़्त लगा रहा था। मैंने जल्दी से अपनी टाँगें चिपकाने की कोशिश की पर उसने बीच में झोला रख दिया था इसलिए पूरी नहीं चिपका सकी। मुझे एहसास हुआ की इसने मेरी पिंक कलर की पैंटी देख ली होगी और शरम से मेरा मुँह लाल हो गया। क्लास में भी कभी मेरी पेन फ़र्श पर गिर जाती थी और मैं उसे उठाने को अपनी चेयर पर झुकती थी तो मुझे पीछे की सीट पर बैठी लड़कियों की पीटी स्कर्ट के अंदर पैंटी दिख जाती थी। वैसा ही दृश्य नटवर को दिखा होगा।

मैंने अपने स्कूल बैग को गोद से नीचे खिसकाकर अपनी इज़्ज़त ढकने की कोशिश की पर तब तक नटवर का काम हो चुका था। उसने अपनी छाता बंद की और फटाफट मेरे बगल में बैठ गया। अब बारिश बढ़ने लगी थी और घने बादलों की वज़ह से रोशनी भी कम हो गयी थी।

नटवर--बेबी, मैं तुम्हारी तरफ़ साइड से छाता लगा देता हूँ, इससे तुम भीगोगी नहीं।

मुझे उसकी बात ठीक लगी क्यूंकी रिक्शा में ठीक से कवर ना लगा होने से मेरी दायीं तरफ़ से बारिश का पानी अंदर आ जा रहा था और मेरे टॉप की दायीं बाँह भी गीली हो गयी थी। नटवर ने छाता को थोड़ा-सा खोला और मेरे पीछे से हाथ ले जाकर मेरी दायीं तरफ़ लगा दिया। उसने आधी खुली छाता का एक कोना मुझसे पकड़ने को कहा ताकि मेरी पूरी दायीं साइड छाता से ढकी रहे।

"नटवर भैया, तुम मेरा बैग पकड़ लो।"

छाता को पकड़ने के लिए मुझे अपना स्कूल बैग उसको देना पड़ा। पीटी स्कर्ट में मेरी जांघों का आधा हिस्सा दिख रहा था जो मैंने अब तक बैग से ढक रखा था। उसने मेरे पैरों के बीच झोला रख दिया था इससे टाँगें थोड़ी फैली होने से स्कर्ट भी थोड़ी ऊपर हो गयी थी। अपना स्कूल बैग नटवर को देने के बाद मुझे एहसास हुआ की मेरी तो आधी जाँघें नंगी दिख रही हैं।

मैं चुपचाप छाता के कोनों को पकड़े हुए बैठी रही क्यूंकी मैं नहीं चाहती थी की नटवर को पता चले की मुझे अपनी स्कर्ट के ऊपर उठने से अनकंफर्टेबल फील हो रहा है। लेकिन मन ही मन मुझे इस बात की फिकर थी की तेज हवा आ गयी तो कही मेरी पैंटी ना दिख जाए । मैंने आँखों के कोनों से देखा की नटवर की नज़रें भी मेरी जांघों पर ही हैं। मेरी मम्मी मुझे एक मर्द के साथ ऐसे बैठे हुए देख लेती तो उसे हार्ट अटैक आ जाता। मेरी साँसें भारी हो गयीं। लेकिन मुझे इस बात का सुकून था कि नटवर आज मेरे साथ कुछ हरकत नहीं कर रहा था। पर ये राहत थोड़ी देर तक ही रही और फिर उसने अपनी गंदी चालें चलनी शुरू कर दी।

नटवर--ओह!अब मेरी साइड से भी पानी आ रहा है ।

"ये लोग ठीक से कवर क्यूँ नहीं लगाते हैं?"

नटवर--बेबी, ये रिक्शा वाले ऐसे ही होते हैं। मेरे पास एक पॉलिथीन है, उसे निकालता हूँ।

मुझे आशंका थी की नटवर आज भी मुझसे अपनी गोद में बैठने को कहेगा ताकि सीट के बीच में बैठकर साइड से आने वाली बारिश से बचाव हो सके. लेकिन शुक्र था कि उसने ऐसा नहीं कहा पर वैसे भी आज मैंने पक्का ठान रखी थी की इसकी गोद में नहीं बैठूँगी।

अब नटवर ने अपने पैंट की जेब से एक थैली निकाली और उसे खोलने लगा। तभी सड़क में किसी गड्ढे की वज़ह से रिक्शा को झटका लगा और उसके हाथ से थैली फिसल गयी। थैली में कुछ सिक्के थे जो बिखर गये। नटवर ने थैली पकड़ने की कोशिश की पर फिर भी कुछ सिक्के बाहर गिर गये। झटका ऐसे लगा की वह सिक्के मेरे ऊपर गिर गये।

नटवर--अरे!.अरे!

"नटवर भैया, घबराओ नहीं, रिक्शा के बाहर कोई नहीं गिरा है।"

नटवर--हाँ यही गनीमत रही। बेबी तुम थैली पकड़ लो, मैं सिक्के ढूँढता हूँ।

अब मैंने बाएँ हाथ से उसकी थैली पकड़ ली क्यूंकी दाएँ हाथ से छाता का कोना पकड़ा हुआ था। मैंने देखा फ़र्श में मेरे पैरों में, मेरी सीट में और इधर उधर सिक्के गिरे हुए थे।

नटवर--बेबी तुम हिलो नहीं। मैं सिक्के उठाता हूँ।

उसने मेरी स्कर्ट और टॉप में गिरे हुए सिक्कों को उठाना शुरू किया। उसने मेरी जांघों को पकड़ा और वहाँ गिरे हुए सिक्के उठाने लगा। मैं कांप-सी गयी और अपनी दायीं तरफ़ छाता की ओर नज़रें घुमा लीं। फिर उसका हाथ मुझे अपने पेट पर महसूस हुआ वह मेरे टॉप में गिरे हुए सिक्के उठा रहा था। उसकी अँगुलियाँ मेरी बायीं चूची को भी छू गयीं। उसके बाद वह सीट में झुक गया और मेरे पैरों के पास गिरे सिक्के उठाने लगा। मैंने तिरछी नज़रों से देखा की ऐसे झुकने से उसे मेरी स्कर्ट के अंदर दिख रहा था। मैंने अपनी टाँगें चिपकाने की कोशिश की पर बीच में झोला रखा होने की वज़ह से ऐसा नहीं कर पाई.

नटवर--बेबी, अपनी टाँगें थोड़ी-सी ऊपर उठाओ. नीचे सिक्के गिरे हैं।

मैंने नटवर की तरफ़ देखा। मैं जानती थी की झुके हुए नटवर के सामने इस छोटी स्कर्ट में टाँगें ऊपर उठाऊँगी तो बहुत भद्दा लगेगा लेकिन मेरे पास कोई चारा नहीं था। मैंने शरम से थोड़ी-सी ही टाँगें ऊपर की पर मुझे मालूम था कि वह इतने से नहीं मानेगा।

नटवर--बेबी, थोड़ा और ऊपर करो। ठीक से दिख नहीं रहा।

अनमने मन से मुझे अपनी टाँगें थोड़ी और ऊपर उठानी पड़ीं। मुझे मालूम था कि ये लो क्लास आदमी बहाने से मुझसे बदमाशी कर रहा है, पर उसके पास सिक्के ढूँढने का बहाना था। टाँगें उठाने से मेरी गोरी-गोरी चिकनी जांघों का निचला हिस्सा भी नटवर को दिखने लगा। मैं उस समय बहुत अश्लील लग रही हूँगी। एक लड़की छोटी स्कर्ट में टाँगें उठाए बैठी है और एक मर्द उसकी टाँगों के बराबर में झुका हुआ देख रहा है।

नटवर--ठीक है बेबी. लगता है अब नीचे फ़र्श पर कोई सिक्का नहीं बचा है।

अब वह सीट में सीधा बैठकर अपने सिक्के गिनने लगा और मैंने राहत की सांस ली। पर जल्दी ही उसकी बेहूदी हरकतें फिर शुरू हो गयीं।

नटवर--इसमें तो पूरे नहीं हैं, ज़रूर सीट में ही होंगे।

उसने मेरी स्कर्ट की तरफ़ देखा और फिर मेरी पीठ की तरफ़ देखने लगा।

"लेकिन मुझे तो लगा की सिक्के मेरे आगे ही गिरे हैं।"

नटवर--नहीं बेबी. ये देखो एक यहाँ है।

ऐसा कहकर उसने अपने लंड पर हाथ फेरते हुए, पैंट की ज़िप के पास नीचे से एक सिक्का निकाला। मेरी नज़र उसके पैंट के उभार पर पड़ी। शायद जानबूझकर उसने मुझे वहाँ देखने को कहा। थोड़ी देर तक सिक्के ढूँढने के बहाने वह अपने लंड पर हाथ फेरता रहा और फिर अपनी पैंट घुटनों तक उठाकर सिक्के ढूँढने का बहाना करने लगा। बालों से भरी हुई उसकी काली-काली टाँगें मुझे दिखीं । मैंने उसके पैंट के उभार से नज़रें फेर लीं और नॉर्मल रहने की कोशिश करने लगी।

नटवर--बेबी, एक बार थोड़ी खड़ी हो जाओ ताकि मैं सीट पर देख लूँ।

"नटवर भैया, रिक्शा चल रहा है और मैंने छाता पकड़ा हुआ है। मैं खड़ी कैसे हो जाऊँ?"

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