औलाद की चाह 055

Story Info
परिधान​
1k words
4.5
214
00

Part 56 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

औलाद की चाह

CHAPTER 6-पांचवा दिन

तैयारी

Update 3

परिधान​

मैं अपने कमरे में चली आई. लेकिन मेरी उत्सुकता बढ़ते जा रही थी की आख़िर ये परिधान होता कैसा है? गुरुजी ने मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया था। मैंने अपने मन में याद करने की कोशिश की गुरुजी ने क्या कहा था? मुझे याद आया की उन्होंने कहा था कि ये परिधान एक औरत के लिए पर्याप्त नहीं है। इसका क्या मतलब हुआ? ये कोई साड़ी या सलवार कमीज जैसी पूरे बदन को ढकने वाली ड्रेस तो नहीं होगी लेकिन कुछ छोटी होगी।

तभी मेरे दिमाग़ में ख़्याल आया की मुझे कौन बता सकता है। वह थी मंजू। मैं आश्रम के किसी मर्द से ये बात पूछने में बहुत असहज महसूस करती पर मंजू ज़रूर मुझे इसके बारे में बता सकती थी।

"मंजू।"

मंजू अपने कमरे में थी और मुझे अंदर आने को कहा। वह अपने बेड में बैठी हुई कुछ सिल रही थी। मैं भी उसके साथ बेड में बैठ गयी।

मंजू--गुप्ताजी के घर की सैर कैसी रही?

"ठीक रही। असल में मैं तुमसे कुछ पूछने आई थी।"

वो मुस्कुरायी और प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखा।

"तुम्हें मालूम ही होगा की गुरुजी मेरे लिए महायज्ञ करने वाले हैं और ।"

मंजू--हाँ, मुझे मालूम है।

"उन्होंने अभी मुझे इसके बारे में बताया।"

मंजू--कोई समस्या?

" मेरा मतलब वह. असल में गुरुजी कुछ 'महायज्ञ परिधान' की बात कर रहे थे।

मंजू--तो?

"असल में मैं जाना चाहती थी की ये कैसी ड्रेस होती है?"

मंजू--ओह!.तुम इसके लिए बहुत चिंतित लग रही हो।

"हाँ, तुम्हें मालूम होगा की यज्ञ के दौरान मुझे उसी ड्रेस में रहना होगा, इसलिए..."

मंजू--सच बात है रश्मि। ये हम औरतों के लिए समस्या है। मर्द तो दिन भर एक कच्छा पहनकर घूम सकते हैं लेकिन हम औरतें नहीं।

मुझे लगा आख़िर कोई तो मिला जो औरत होने के नाते मेरी शरम को समझता हो।

मंजू--रश्मि, मैं तुम्हें कोई दिलासा नहीं दे सकती क्यूंकी महायज्ञ में पूर्ण भक्ति और शरीर की शुद्धि की ज़रूरत होती है।

"हाँ, गुरुजी भी कुछ ऐसा ही कह रहे थे।"

मंजू--फिर भी मैं तुम्हें ये भरोसा दिला सकती हूँ की ये दो हिस्से ढके रहेंगे।

ऐसा कहते हुए उसने अपने हाथ से अपनी चूचियों और चूत की तरफ़ इशारा किया और शरारत से मुस्कुराने लगी। ये सुनकर सचमुच मुझे राहत मिली और मैं भी मुस्कुरा दी लेकिन मैं अभी भी चिंतित थी। ये देखकर उसने अपना सिलाई का कपड़ा एक तरफ़ रख दिया और मेरी तरफ़ झुककर अपनी अंगुलियों से मेरा दायाँ गाल पकड़कर हिलाया।

मंजू--चिंता मत करो रश्मि। परिधान के बारे में रहस्य को बने रहने दो।

वो ज़ोर से हंस पड़ी और उसके व्यवहार को देखकर मैं भी मुस्कुरा रही थी।

-मंजू जी एक बात और कल से मुझे कुछ हल्का-हल्का लग रहा है।

तो मंजू ने अपने बिस्तर के नीचे से भर तोलने की मशीन बाहर सरका दी और मैंने बजन तोला तो मेरा बजन आया 54. किलो जबकि पहले मेरे बजन रहता था 60-62. किलो और बहुत कोशिश करने पर भी घट नहीं रहा था ।

मंजू-आपका बजन 7 किलो घट गया है क्योंकि आप काफ़ी व्यायाम कर रही है और कुछ असर आश्रम के सात्विक भोजन और गुरूजी द्वारा दी गयी जड़ी बूटियों और दवाओं का भी है।

-लेकिन मैं तो कोई व्यायाम नहीं किये!

मंजू हसी और बोली और जो स्खलन है--आप शायद जानती नहीं है शोधो से पता चला है कि युवा स्वस्थ पुरुषों और महिलाओं में मध्यम तीव्रता (5.8 METS) की गयी यौन क्रिया के दौरान ऊर्जा व्यय लगभग 85 kCal या 3.6 kCal प्रति मिनट होता है और ऐसा लगता है और इसे अच्छा व्यायाम माना जाता है और आपकी कुछ क्रियाये तो काफ़ी लम्बी ।

मंजू--ये बताओ, तुम्हारी शादी को कितने साल हो गये?

"चार साल!"

मंजू--हे भगवान । तब तो तुम्हारे पति ने तुमसे 400 बार मज़े लिए होंगे, है ना?

वो हँसे जा रही थी और उसके चिढ़ाने से मेरा चेहरा लाल होने लगा था।

मंजू--तुममें अब भी शरम बाक़ी है? कहाँ रखती हो उसे?

उसकी बात पर हम दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े और बेड पर लोटपोट हो गये।

मंजू--मैं सोच रही हूँ की गुरुजी से कहूँ की तंत्र के नियमों के अनुसार महायज्ञ के लिए शादीशुदा औरतों को कोई वस्त्र पहनने की अनुमति ना दें।

हम अभी भी हंस रहे थे और मंजू की इस बात पर मैंने उसे चिकोटी काट दी और सच कहूँ तो अब मेरी चिंता काफ़ी कम हो चुकी थी।

मंजू--रश्मि, मज़ाक अलग है लेकिन तुम बिल्कुल फ़िक्र मत करो।

वो थोड़ा रुकी और हम फिर से बेड पर ठीक से बैठ गये। ब्लाउज के ऊपर से उसका पल्लू गिर गया था और उसकी बड़ी क्लीवेज दिख रही थी ख़ासकर इसलिए क्यूंकी उसके ब्लाउज का ऊपरी हुक खुला हुआ था। उसके साथ ही मैंने भी अपना पल्लू ठीक कर लिया।

मंजू--रश्मि, इन छोटी मोटी बातों पर ध्यान मत दो और बस लिंगा महाराज की पूजा करो ताकि तुम्हें इच्छित फल की प्राप्ति हो।

"तुम ठीक कह रही हो मंजू। मुझे सिर्फ़ उस पर ही ध्यान लगाना चाहिए. सिर्फ़ मैं ही जानती हूँ की कितनी रातों को मैं अकेले में चुपचाप रोई हूँ।"

हम दोनों कुछ पल के लिए चुप रहे फिर कुछ इधर उधर की बातें करके मैं वापस अपने कमरे मैं चली आई. अब 2 बजने में आधा घंटा ही बचा था और गोपाल टेलर को मेरे कमरे में आना था।

मंगल से फिर से सामना होने को लेकर मैं थोड़ी असहज थी। जिस तरह से उसने मेरे साथ लफंगों जैसा व्यवहार किया था वह मुझे पसंद नहीं आया था। मुझे अभी भी उसके भद्दे और अश्लील कमेंट्स याद हैं जैसे कि ' मैडम, मैंने सुना है कि अगर अच्छे से चूचियों को चूसा जाए तो कुँवारी लड़कियों का भी दूध निकल जाता है"।

मैडम, क्या मस्त गांड है आपकी। बहुत ही चिकनी और मुलायम है।'

और मूठ मारते समय मंगल का तना हुआ काला लंड मैं कैसे भूल सकती हूँ। इन सब बातों को याद करके मेरी चूचियाँ ब्लाउज में टाइट होने लगीं और मैंने अपना ध्यान दूसरी बातों की तरफ़ लगाने की कोशिश की। तभी दरवाज़े में खट-खट हुई।

"आ गये" मैंने सोचा और दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़े में मुस्कुराते हुए गोपाल टेलर खड़ा था।

कहानी जारी रहेगी

Please rate this story
The author would appreciate your feedback.
  • COMMENTS
Anonymous
Our Comments Policy is available in the Lit FAQ
Post as:
Anonymous
Share this Story

story TAGS