औलाद की चाह 060

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लेडीज टेलर-नाप​.
1k words
3.67
328
00

Part 61 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 6-पांचवा दिन

तैयारी-

'परिधान'

Update 7

लेडीज टेलर-नाप​

मैं अपनी चूचियों के बारे में खुलेआम ऐसे कमेंट्स सुनकर हैरान थी। ऐसा नहीं था कि मैं अपने लिए मर्दों के कमेंट्स पहली बार सुन रही थी। कॉलेज को आते जाते वक़्त आवारा लड़के कमेंट्स करते रहते थे जिन्हें मैं नजरअंदाज कर देती थी। मेरी मटकती हुई गांड और बड़ी चूचियों के बारे में उनके भद्दे कमेंट्स मुझे अभी भी याद हैं। शादी के बाद मेरे पति भी मेरे बदन और मेरी चूचियों के ऊपर कमेंट्स करते रहते थे, ख़ासकर संभोग के समय या फिर जब मैं ड्रेसिंग टेबल के आगे अपने बाल बनाया करती थी। वैसे तो वह भी अश्लील कमेंट्स होते थे पर मैं उनका मज़ा लेती थी क्यूंकी उनसे मेरे पति मेरी तारीफ किया करते थे। लेकिन जो आज हो रहा था वह बिल्कुल अलग था। लड़के को सिखाने के बहाने वह बुड्ढा टेलर खुलेआम मेरे सामने ही मेरे बारे में ऐसी अश्लील बातें कर रहा था। ना तो मैं इन बातों का मज़ा ले सकती थी ना ही नजरअंदाज कर सकती थी। मेरे लिए बड़ी अजीब स्थिति थी।

गोपाल टेलर--चलो बातें बहुत हुई अब काम करते हैं।

ऐसा कहते हुए गोपालजी ने मेरे पीछे हाथ ले जाकर मेरी छाती पर टेप लगाया। ऐसा करते हुए एक पल के लिए उसकी छाती मेरी चूचियों पर दब गयी। ऐसा होने से मेरे बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गयी। असल में अनजाने में उसकी छाती ने ब्लाउज और ब्रा के अंदर ठीक मेरे निप्पल्स को दबाया था। तुरंत ब्रा के अंदर निप्पल कड़क हो गये और मेरी पैंटी में कुछ बूँद रस निकल गया।

मैंने अपना ध्यान बदलकर दूसरी तरफ़ लगाने की कोशिश की और सोचा की कैसे इस बुड्ढे ने मेरी तरफ़ देखकर गंदी स्माइल दी थी जब उसने कहा था 'हर औरत की चूचियाँ मैडम की जैसी बड़ी और कसी हुई नहीं होती हैं, है कि नहीं? हा, हा! । मैंने उस टेलर के बारे में नकारात्मक सोचना चाहा। लेकिन ऐसा ना हो सका। गोपालजी मेरी छाती नापने लगा और मैं अपने ऊपर काबू खोने लगी क्यूंकी मेरा बदन मेरे दिमाग़ की नहीं सुन रहा था।

मैंने अपना ध्यान बदलकर दूसरी तरफ़ लगाने की कोशिश की और सोचा की कैसे इस बुड्ढे ने मेरी तरफ़ देखकर गंदी स्माइल दी थी जब उसने कहा था 'हर औरत की चूचियाँ मैडम की जैसी बड़ी और कसी हुई नहीं होती हैं, है कि नहीं? हा, हा, हा!

मैंने उस टेलर के बारे में नकारात्मक सोचना चाहा। लेकिन ऐसा ना हो सका। गोपालजी मेरी छाती नापने लगा और मैं अपने ऊपर काबू खोने लगी क्यूंकी मेरा बदन मेरे दिमाग़ की नहीं सुन रहा था।

गोपालजी--मैडम, आप सीधी खड़ी रहो और अपना बदन हिलाना मत। मैं नाप ले रहा हूँ।

मैंने सर हिला दिया और टेलर ने अब मेरे ब्लाउज में टेप लगाया। टेप सीधा करने के बहाने गोपालजी ने ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को छुआ और मेरी सुडौल चूचियों की गोलाई और कोमलता का एहसास किया। मैं सब समझ रही थी पर इससे मुझे भी एक सेक्सी फीलिंग आ रही थी।

गोपालजी--मैडम, मैं अब टेप को टाइट करूँगा, अगर बहुत टाइट लगे तो बता देना।

"ठीक हैl"

मैंने हकलाते हुए बोल दिया क्यूंकी गोपालजी के हाथ अभी भी मेरी रसीली चूचियों को छू रहे थे और एक मर्द का हाथ लगने से मेरे निपल्स खड़े होने लगे थे। मैं गहरी साँसें लेने लगी थी और मेरी मज़े लेने की इच्छा मेरे दिमाग़ को सुन्न करती जा रही थी। मन से मैं अपने को समझा रही थी की मुझे ऐसे व्यवहार नहीं करना चाहिए क्यूंकी अगर गोपालजी को मेरी मनोदशा का पता चल गया तो मेरे लिए बहुत शर्मिंदगी वाली बात होगी।

अब गोपालजी ने टेप को टाइट करना शुरू किया और टेप के दोनों सिरे मेरी बायीं चूची पर लगा दिए. उसकी अँगुलियाँ मेरे निप्पल को छू रही थीं और टेप को उसने मेरे ऐरोला पर दबाया हुआ था।

"आआहह!" मैंने मन ही मन सिसकारी ली।

अब नाप लेने के लिए उसने टेप को अंगूठे से मेरे निप्पल पर दबा दिया।

गोपालजी--मैडम, ये ठीक है? ज़्यादा टाइट तो नहीं है?

"आह। ठीक है..."

जैसे तैसे मैंने बोल दिया । अब मुझे अपनी पैंटी में गीलापन महसूस हो रहा था।

गोपालजी--33.6"!

दीपू--जी!

गोपालजी--मैडम अब अपने हाथ मेरे कंधों पर रख लीजिए।

मैं अभी तक बाँहें ऊपर उठाए खड़ी थी और ये सुनकर मुझे राहत हुई. मैंने उसके कंधों पर हाथ रख लिए. अब उसने टेप के दोनों सिरे मेरी बायीं चूची पर दाएँ हाथ से पकड़ लिए और अपना बायाँ हाथ मेरी पीठ पर ले गया ये देखने के लिए की टेप सीधा है या नहीं। वह मेरी दायीं चूची को छूते हुए अपना हाथ पीछे ले गया और पीछे टेप चेक करने के बाद फिर से दायीं चूची से अपना हाथ टकराते हुए वापस आगे लाया।

मैंने अपने हाथ उसके कंधों में रखे हुए थे इसलिए मेरी तनी हुई चूचियों साइड्स से भी खुली हुई थीं। अब इसी तरह उसने मेरी दायीं चूची पर नापा और मेरी जवानी को इंच दर इंच महसूस किया।

"आअहह!"

किसी तरह मैंने अपनी सिसकी को रोका। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा था और खड़े-खड़े मेरी टाँगें अलग होने लगीं। फिर से गोपालजी ने नाप लेने के बहाने मेरी दायीं चूची के निप्पल को अंगूठे से दबाया। मुझे साफ़ महसूस हो रहा था कि गोपालजी की साँसें भी तेज हो गयी हैं और उसके हाथ भी हल्के-हल्के कंपकपा रहे थे। बुड्ढा यही नहीं रुका और टेप पकड़ने के बहाने उसने मेरे पूरी तरह तन चुके निप्पल को दो अंगुलियों के बीच पकड़ लिया।

अब ये मेरे लिए असहनीय था और मैंने अपने ऊपर नियंत्रण खो दिया। मैंने गोपालजी के कंधों को कस के पकड़ लिया और उत्तेजना से नाखून गड़ा दिए. मैं जानती थी की ये मेरी बड़ी ग़लती थी। मैंने उसको जतला दिया था कि उसकी हरकतों से मैं उत्तेजित हो रही हूँ और इससे मेरी मुसीबत और भी बढ़ने वाली थी। सच कहूँ तो मैं अपनी काम भावनाओं पर काबू ना पा सकी। मैं जानती थी की जब तक मैंने अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखा है तब तक चीज़ें एक हद से आगे नहीं बढ़ेंगी। लेकिन जब एक बार मैंने अपनी कमज़ोरी उजागर कर दी तो फिर मुसीबत आ जाएगी।

कहानी जारी रहेगी

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