Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereCHAPTER 6-पांचवा दिन
तैयारी-
परिधान'
Update-10
बेहोशी का नाटक और इलाज़
उउऊऊह! मैं मन ही मन बुदबुदाईl
दीपू ने तुरंत मेरी कमर से साड़ी उतार दी। वैसे भी जल्दी ही उसकी शादी होने वाली थी तो उसे अपनी पत्नी की साड़ी उतारना तो आना ही चाहिए. जब दीपू मेरी साड़ी उतार रहा था तो मुझे बड़ा अजीब लग रहा था क्यूंकी आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि मेरी आँखें बंद करके किसी ने मेरी साड़ी उतारी हो। शादी के शुरू के दिनों में जब मेरे पति बेड में मेरी पैंटी उतारते थे तब मैं शरम से आँखें बंद कर लेती थी। लेकिन धीरे-धीरे आदत हो गयी और बाद में मुझे इतनी शरम नहीं महसूस होती थी। लेकिन ऐसा तो कभी नहीं हुआ था।
गोपालजी ने भी दीपू की तेज़ी पर ग़ौर किया और गंदा कमेंट कर डाला।
गोपालजी--दीपू बेटा, आराम से खोलो। इतनी तेज़ी क्यों दिखा रहे हो?
दीपू ने कोई जवाब नहीं दिया। शायद वह इसलिए जल्दबाज़ी दिखा रहा था क्यूंकी मुझे बेहोश देखकर जल्दी से बेड में लिटाना चाह रहा था।
गोपालजी--अरे! इतनी तेज़ी से साड़ी क्यूँ उतार रहे हो। ये तुम्हारी घरवाली थोड़े ही है जो तुम्हें पेटीकोट भी उठाने को मिलेगा । हा-हा हा!
दीपू--हा हा हा!
गोपालजी--मैडम की साड़ी कुर्सी में रख दो।
अब मैं गोपालजी की बाँहों में सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी और फिर गोपालजी ने पेटीकोट के ऊपर से मेरे सुडौल नितंबों पर हाथ रख दिए और उनकी गोलाई का एहसास करने लगा, मैं समझ गयी की अभी दीपू मेरी साड़ी कुर्सी में रख रहा होगा। हमेशा की तरह मेरी पैंटी मेरे नितंबों की दरार में सिकुड चुकी थी और गोपालजी को पेटीकोट के बाहर से मेरे मांसल नितंबों का पूरा मज़ा मिल रहा होगा। मुझे भी एक मर्द के हाथों से अपने नितंबों को सहलाने का मज़ा मिल रहा था।
मैंने फिर से एक पल के लिए आँखें खोली और देखा की दीपू वापस आ रहा है, गोपालजी ने तुरंत अपने हाथ मेरी कमर में रख लिए. मेरी पैंटी पूरी गीली हो चुकी थी और अब मैं बहुत कामोत्तेजित हो चुकी थी।
दीपू--अब ले चलें।
गोपालजी--हाँ। तुम इसकी टाँगें पकड़ो और मैं कंधे पकड़ता हूँ।
दीपू ने मेरी टाँगें पकड़ लीं और गोपालजी ने कंधे पकड़े और मुझे फ़र्श से उठा लिया। ऐसे पकड़े हुए वह मुझे बेड में ले जाने लगे। दीपू ने मेरी नंगी टाँगें पकड़ रखी थीं तो मेरा पेटीकोट थोड़ा ऊपर उठ गया और उसका निचला हिस्सा हवा में लटक गया। वह तो अच्छा था कि बेड पास में ही था वरना ऐसे पेटीकोट लटकने से तो नीचे से अंदर का सब दिख जाता। फिर उन्होंने मुझे बेड में लिटा दिया और मेरे सर के नीचे तकिया लगा दिया।
गोपालजी--दीपू, अब क्या करें? कुछ समझ नहीं आ रहा । गुरुजी को बुलाऊँ क्या?
दीपू--जी, मैंने अपने गाँव में बहुत बार मामी को बेहोश होते देखा है। मेरे ख़्याल से अगर मैडम के चेहरे पर पानी छिड़का जाए तो इसे होश आ सकता है।
गोपालजी--तो फिर पानी ले आओ. तुम्हारी मामी को बेहोशी के दौरे पड़ते हैं क्या?
दीपू--जी हाँ। बेहोश होकर गिरने से उसे कई बार चोट भी लग चुकी है। लेकिन वह तो बेहोश होकर गिर जाती है पर मैडम तो खड़ी रही, कुछ अलग बीमारी मालूम होती है।
मैं आँखें बंद किए हुए उनकी बातें सुन रही थी और अपने चेहरे पर पानी पड़ने का इंतज़ार कर रही थी। दीपू पानी ले आया और उन दोनों में से पता नहीं कौन मेरे चेहरे पर पानी छिड़क रहा था, पर मैंने पूरी कोशिश करी की ठंडा पानी पड़ने पर भी ना हिलूं।
दीपू--मैडम पर तो कोई असर नहीं पड़ रहा।
गोपालजी--हाँ। तुम्हारी मामी जब बेहोश होती है तो उसके घरवाले क्या करते हैं?
दीपू--सांस ठीक से ले रही है या नहीं? एक बार चेक कर लीजिए l
गोपालजी ने मेरी नाक के आगे हाथ लगाया।
गोपालजी--बहुत हल्की चल रही है।
ये सुनकर मैंने भी सांस रोक ली ताकि अगर दीपू भी चेक करना चाहे तो उसे भी यही लगे। इस नाटक में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था।
दीपू--ऐसा है, तब तो एक काम करना होगा जो की मैंने मामी के साथ देखा है।
गोपालजी--क्या करना होगा?
दीपू--जब मेरी मामी की हल्की सांस आती थी तो उसकी छाती ज़ोर से दबाकर पंप करते थे और तलवों की मालिश करते थे।
गोपालजी--हाँ ये अच्छा सुझाव है। चलो ऐसा ही करते हैं। तुम मैडम के तलवों की मालिश करो।
एक पल के लिए मेरे दिल ने धड़कना बंद कर दिया। ये अच्छा सुझाव नहीं बहुत बढ़िया सुझाव है। मुझे तो कामोत्तेजना से बड़ी बेताबी हो रखी थी की कोई मर्द मेरी कसी हुई चूचियों को अच्छे से दबाए. अब इस बेहोशी के बहाने गोपालजी मेरी छाती को पंप करेगा। इस ख़्याल से ही मेरे निप्पल ब्रा के अंदर कड़क हो गये।
गोपालजी ने बिल्कुल वक़्त बर्बाद नहीं किया और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियाँ पकड़ लीं और दबाने लगा। जल्दी ही उत्तेजना में भरकर वह बुड्ढा टेलर मेरी जवान चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोचकर मसलने लगा। मेरी साँसें उखड़ने लगीं और स्वाभाविक उत्तेजना से मेरी टाँगें अलग हो गयीं और मेरे नितंब भी कसमसाने लगे।
एक मर्द मेरी जवानी को आटे की तरह गूथ रहा था और मैं ज़्यादा हिल डुल भी नहीं सकती थी सिर्फ़ अपने होंठ काट रही थी। सच कहूँ तो मेरे नाटक करने से और गोपालजी की चतुर चालों से मेरे दिल को एक अजीब रोमांच और बदन को संतुष्टि और आनंद का एहसास हो रहा था।
दीपू--जी मुझे लगता है कि मैडम के बदन में हरकत होने लगी है। मुझे इसकी टाँगें हिलती हुई महसूस हो रही हैं।
ये सुनकर मैंने जैसे तैसे अपनी कामोत्तेजना पर काबू पाया और एक पत्थर की तरह से पड़ी रही। गोपालजी को भी समझ आया और उसने मेरी चूचियों पर पकड़ ढीली कर दी।
गोपालजी--ठीक है तो फिर एक बार और सांस चेक कर लेता हूँ।
फिर से गोपालजी ने मेरी नाक के आगे हाथ लगाया। जाहिर था कि अब मैं गहरी साँसें लेने लगी थी पर गोपालजी ने फिर से वही कहा।
गोपालजी--ना दीपू बेटा। सांस अभी भी वैसी ही है। इसके तलवे ठंडे हो रखे हैं क्या?
दीपू--जी, लग तो रहे हैं।
गोपालजी--तो फिर अब क्या करना है?
दीपू--जी, मैंने देखा था कि अगर ऐसे होश नहीं आता तो गाँव में मामी के मुँह में मुँह लगाकर सांस देते थे। आपसे हो पाएगा ऐसा?
मुँह में मुँह लगाकर सांस देगा। हे भगवान। मेरा टेलर मेरे साथ ऐसा करेगा? मेरे साथ तो ये होठों का होठों से चुंबन ही होगा। मैं इसे अपना चुंबन लेने दूँ या नहीं? एक गाँव का टेलर मेरा चुंबन लेगा और वह भी 60 बरस की उमर का। ऐसे बुड्ढे का चुंबन कैसा महसूस होगा?
ये सभी सवाल मेरे मन में आए. लेकिन इनका जवाब भी मेरे मन ने ही दिया।
क्यूँ नहीं ले सकता? इसमें हर्ज़ ही क्या है? इसने मुझे इतना मज़ा दिया है तो इसको अपने होठों का रस भी पीने देती हूँ। ये सिर्फ़ एक टेलर ही है पर पहले ही मुझे मेरे पति की तरह आलिंगन कर चुका है और वैसे भी सिर्फ़ एक चुंबन से मेरा क्या नुक़सान होने वाला है? जब नाटक कर ही रही हूँ तो क्यूँ ना इसका पूरा मज़ा लूँ।
इस तरह मैंने अपने को उस बुड्ढे टेलर के चुंबन के लिए तैयार कर लिया।
गोपालजी--हाँ क्यूँ नहीं? मैं कोशिश तो कर ही सकता हूँ और अगर ऐसा करने से मैडम को होश आ जाता है तो बहुत बढ़िया। वैसे तुमने देखा तो होगा कि ऐसा करते कैसे हैं?
मैंने महसूस किया की गोपालजी मेरे चेहरे के करीब आ गया।
दीपू--आप मैडम का मुँह खोलो और उसके मुँह से हवा खींचकर अपने मुँह से हवा भर दो।
गोपालजी--ठीक है। मैं कोशिश करता हूँ।
दीपू--लेकिन मुँह से सांस देते समय छाती को भी पंप करते रहना। मामी को भी ऐसा ही करते थे।
गोपालजी--अच्छा, ठीक है।
अब तो जैसे उस 60 बरस के आदमी के मन की मुराद पूरी हो गयी। कुछ ही पलों में उसके ठंडे होठों ने मेरे होठों को छुआ। वह उत्तेजना से कांप रहा था और उसके दिल की धड़कनें तेज हो गयी थीं। गोपालजी ने अपने हाथ से मेरे मुँह को खोला और मुँह में हवा देने के बहाने मेरे निचले होंठ को अपने होठों के बीच दबाकर महसूस किया। फिर उसने मेरा चुंबन लेना शुरू किया और उसकी गरम जीभ मैंने अपने मुँह के अंदर घूमती हुई महसूस की। उसकी लार मेरी लार से मिल गयी और मैंने भी चुंबन में उसका साथ दिया। कुछ पलों बाद गोपालजी ने मेरी चूचियाँ पकड़ लीं और उन्हें निचोड़ने लगा। जिस तरह से वह उन्हें मसल रहा था उससे मुझे लगा की इस बार तो मेरे ब्लाउज के हुक टूट ही जाएँगे। मेरे होठों को चूमने के साथ-साथ वह मेरी बड़ी चूचियों को मनमर्ज़ी से दबोच रहा था और उनके बीच तने हुए कड़क निपल्स को अपने अंगूठे से महसूस कर रहा था।
कहानी जारी रहेगी