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CHAPTER 6-पांचवा दिन
तैयारी-
'परिधान'
Update-9
लेडीज टेलर की बदमाशी
गोपालजी--बस अब चोली की लास्ट नाप लेता हूँ, कंधे से छाती तक।
अब मैं गोपालजी की अंगुलियों का स्पर्श बर्दाश्त करने की हालत में नहीं थी। मैं उत्तेजना से कांप रही थी और शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कमज़ोर पड़ चुकी थी। अब गोपालजी मुझे छुएगा तो ना जाने मैं क्या कर बैठूँगी।
गोपालजी--दीपू, कॉपी यहाँ लाओ.
दीपू कॉपी लेकर मेरे पास आया। गोपालजी उसकी लिखी हुई नाप देख रहा था तभी दीपू ने कुछ ऐसा कहा की कमरे का माहौल ही बदल गया।
दीपू--मैडम, आप कांप क्यूँ रही हो? ठीक तो हो?
मेरे कुछ कहने से पहले ही टेलर बोल पड़ा।
गोपालजी--हाँ, मैडम, मुझे भी लगा की आप कांप रही हो। मैं देखता हूँ।
उसने मेरे माथे पर हाथ लगाया।
दीपू--मैडम, आपको तो बहुत पसीना भी आ रहा है।
मैं कुछ नहीं बोल पाई.
गोपालजी--मैडम, आपका माथा तो ठंडा लग रहा है। आपको क्या हो रहा है? मैडम, मैं आपको सहारा दूं क्या?
उसने मेरे जवाब का इंतज़ार किए बिना मेरी बाँह पकड़ ली।
"मैं ठीक! ।आउच!"
मैं कहना चाह रही थी की मैं ठीक हूँ पर मेरी बाँह में टेलर ने चिकोटी काट दी।
गोपालजी--क्या हुआ मैडम? दीपू, मैडम के लिए एक ग्लास पानी लाओ.
"लेकिन!"
दीपू कमरे के कोने में पानी लाने गया तो गोपालजी ने कस के मेरी बाँह पकड़ ली और मेरे कान के पास अपना मुँह लाया।
गोपालजी--अगर आपको और चाहिए तो जैसा मैं कहूँ वैसा बहाना बनाओ.
उसकी फुसफुसाहट पर मैंने गोपालजी को जिज्ञासु निगाहों से देखा। लेकिन उसकी बात पर सोचने का समय नहीं था क्यूंकी दीपू पानी ले आया था। दीपू को सच में यह लग रहा था कि मेरी हालत ठीक नहीं है।
गोपालजी--बताओ मैडम, कैसा लग रहा है? आपको चक्कर आ रहा है क्या?
गोपालजी ने मेरी बाँह ऐसे पकड़ी हुई थी की मेरी अँगुलियाँ उसकी लुंगी से ढकी हुई जांघों को छू रही थीं। दीपू ने मुझे पानी का ग्लास दिया और जब मैं पानी पी रही थी तो गोपालजी ने लुंगी के अंदर खड़े लंड से मेरा हाथ छुआ दिया।
मैंने पानी गटका और एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर ली और फिर झूठ बोल दिया।
"ओह्ह! मेरा सर।घूम रहा है ।"
मैंने ऐसा दिखाया की मुझे ठीक नहीं लग रहा है। दीपू को मेरी बात पर विश्वास हो गया था।
दीपू--मैडम को ठीक से पकड़ लीजिए. कुर्सी लाऊँ मैडम?
गोपालजी इसी अवसर का इंतज़ार कर रहा था और अब उसे मालूम था कि मैं बहाना बना रही हूँ और दीपू को भी भरोसा हो गया है, अब उसके लिए कोई रुकावट नहीं थी। गोपालजी ने अब मेरी दोनों बाँहें पकड़ लीं।
गोपालजी--मैडम, फिकर मत करो, कुछ देर में ठीक हो जाएगा। बस अपने बदन को ढीला छोड़ दो।
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने सर को थोड़ा हिलाया ताकि लगे की चक्कर आ रहा है।
दीपू--मैडम, ये आपको चक्कर अक्सर आते हैं क्या? कोई दवाई लेती हो?
गोपालजी ने मुझे इन सवालों का जवाब देने से बचा लिया।
गोपालजी--दीपू, लगता है ये बेहोश होने वाली है। क्या करें?
ऐसा कहते हुए उसने फिर से मेरी बाँह में चिकोटी काटी ताकि मैं बेहोश होने का नाटक करूँ।
मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं था और मैंने बेहोश होने का नाटक करते हुए अपना सर गोपालजी के बदन की तरफ़ झुकाया।
दीपू--अरे! अरे! कस के पकड़ लीजिए. मैं भी पकड़ता हूँ।
ऐसा कहते हुए दीपू ने पीछे से मेरी कमर पकड़ ली। गोपालजी ने मुझे गिरने से बचाने के बहाने अपने आलिंगन में ले लिया और एक मर्द के टाइट आलिंगन की मेरी काम इच्छा पूरी हुई. मेरी आँखें बंद थीं और मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। गोपालजी के टाइट आलिंगन से मेरी चूचियाँ उसकी छाती में दबी हुई थीं और उसकी बाँहें मेरी कमर में थी। सच बताऊँ तो गोपालजी से ज़्यादा मैं ख़ुद ही अपनी सुडौल चूचियों को उसकी छाती में दबा रही थी।
आआआहह! "
मैंने उत्तेजना में धीरे से सिसकी ली।
दीपू--मैडम को बेड में ले चलिए.
गोपालजी अपने बदन में मेरी कोमल चूचियों का दबाव महसूस कर रहा था इसलिए वह मुझे अपने आलिंगन से छोड़ने के लिए अनिच्छुक था।
गोपालजी--रूको अभी। कुछ पल देखता हूँ, क्या पता मैडम ऐसे ही होश में आ जाए. तब तक तुम बेड से कपड़े हटाओ और चादर ठीक से बिछा दो।
दीपू--जी अच्छा।
अभी तक दीपू ने मेरी पीठ को सहारा दिया हुआ था वैसे इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी गोपालजी मुझे ऑक्टोपस के जैसे जकड़े हुए था। 60 बरस की उमर में भी उस टेलर ने बड़ी मजबूती से मुझे पकड़ रखा था। अब दीपू बेड ठीक करने गया तो मुझे लगा की एक बार आँखें खोलकर देखने में कोई ख़तरा नहीं है। मैंने देखा की दीपू मेरे बेड से कपड़ों को हटा रहा है, लेकिन मैं एक पल के लिए ही उसे देख पाई क्यूंकी अब गोपालजी मुझे अपने आलिंगन में ऐसे दबा रहा था जैसे कि अपनी पत्नी को आलिंगन कर रहा हो। उसका मुँह मेरी गर्दन और कंधों पर था और दीपू का ध्यान दूसरी तरफ़ होने का फायदा उठाते हुए उसने अपने दाएँ हाथ से मेरी चूचियों को दबाना शुरू कर दिया। बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी सिसकारियाँ रोकी और चुपचाप चूची दबवाने का मज़ा लिया।
दीपू--जी हो गया। मैडम को होश आ गया?
उसकी आवाज़ सुनते ही मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और गोपालजी के कंधों में सर रख दिया। गोपालजी ने भी तुरंत मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए. मेरी साड़ी का पल्लू अभी भी फ़र्श में गिरा हुआ था।
गोपालजी--नहीं आया। चलो मैडम को बेड में ले जाते हैं।
मैंने देखा तो नहीं पर दीपू मेरे नज़दीक आ गया। मैं सोचने लगी ये दोनों मुझे बेड में कैसे ले जाएँगे? गोपालजी की उमर और उसके शरीर को देखते हुए वह मुझ जैसी गदराये बदन वाली जवान औरत को गोद में तो नहीं उठा सकता था। जो भी हो, लेकिन इस नाटकबाजी में मुझे बहुत रोमांच आ रहा था और मैं बेशरम बनकर सोच रही थी की ऐसे थोड़ा मज़ा लेने में हर्ज़ ही क्या है।
दीपू--हम मैडम को कैसे ले जाएँगे?
गोपालजी--ऐसा करो पहले तो मैडम की साड़ी उतार दो ये फ़र्श में मेरे पैरों में लिपट जा रही है।
कहानी जारी रहेगी