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CHAPTER 6-पांचवा दिन
तैयारी-
'परिधान'
Update-13
होश आया
वो हल्के से हंसा लेकिन मेरी आँखें बंद होने से मैं अंदाज़ा नहीं लगा पाई की क्यूँ हंसा। फिर मुझे दीपू के भी हँसने की आवाज़ आई. अब मुझे बड़ी उत्सुकता होने लगी की ये ठरकी बुड्ढा करने क्या वाला है?
दीपू--हाँ, ये तो मैडम को होश में ला देगा।
मुझे कुछ अजीब गंध-सी आई पर क्या था पता नहीं चला लेकिन गंध कुछ पहचानी-सी भी लग रही थी।
गोपालजी--दीपू बेटा, हर शादीशुदा औरत इसकी गंध पहचानती है।
दीपू--वह कैसे?
गोपालजी--बेटा, जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तुम्हें पता चल जाएगा। एक बार अपनी घरवाली को चुसाओगे तो याद रखेगी।
हे भगवान। ये दोनों क्या बातें कर रहे हैं। अब मेरी नाक में कुछ सख़्त चीज़ महसूस हुई और हो ना हो ये गोपालजी का लंड था। गोपालजी के लंड की गंध अपनी नाक में महसूस करके पहले तो मैंने गिल्टी फील किया लेकिन उस समय तक मेरा बदन पूरी तरह उत्तेजित हो रखा था इसलिए जल्दी ही उस गिल्टी फीलिंग को भूलकर मैं उसके लंड की गंध को सूंघने लगी।
मैं अब अपनी आँखें खोल सकती थी लेकिन एक मर्द के लंड को अपने इतने नज़दीक पाकर मंत्रमुग्ध हो गयी। उसके सुपाड़े से निकलते प्री-कम का गीलापन मेरी नाक में महसूस हो रहा था।
उम्म्म्मम......उसके लंड की गंध और उसकी छुअन से मैं और भी ज़्यादा कामोत्तेजित हो गयी। ये बात सही है कि मुझे अपनी पति का लंड चूसना पसंद नहीं था पर अभी गोपालजी ने मुझे कामोत्तेजित करके इतना तड़पा दिया था कि कैसा भी लंड मेरे लिए स्वागतयोग्य था। गोपालजी शायद मेरी मनोदशा समझ गया और अपने तने हुए लंड को मेरी नाक और गालों में दबाने लगा। मैं भी अपना चेहरा हिला रही थी पर अभी भी आँखें बंद ही थी।
दीपू--अरे......आपने बिल्कुल सही कहा था। मैडम रेस्पॉन्स दे रही है।
शायद गोपालजी भी अपने ऊपर नियंत्रण खो रहा था और उसकी उमर को देखते हुए इतना ज़्यादा फोरप्ले करने के बाद उसके लिए अपना पानी रोकना मुश्किल हो गया होगा। गोपालजी ने अपनी अंगुलियों से मेरे होंठ खोल दिए और अपना खड़ा लंड मेरे मुँह में घुसा दिया। मुझे एहसास था कि ये तो ज़्यादा ही हो गया और मैं बेशर्मी की सभी हदें आज पार कर चुकी हूँ लेकिन एक मर्द के लंड को चूसने का अवसर मैं गवाना नहीं चाहती थी और वैसे भी इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थी तो सच ये था कि मुझे ज़्यादा शरम भी महसूस नहीं हो रही थी।
गोपालजी--आह।आह! आअहह! चूस,चूस, और चूस साली।
गोपालजी मेरे मुँह में अपना लंड वैसे ही अंदर बाहर कर रहा था जैसा मेरे पति चुदाई करते समय मेरी चूत में करते थे। मैंने उसका पूरा लंड अपने मुँह में ले लिया और पूरे जोश से चूस रही थी। उसका लंड मेरे पति से पतला और छोटा था। लेकिन मुझे ओर्गास्म दिलाने के लिए काफ़ी था। मुझे एहसास हुआ की उत्तेजना से मैं अपनी बड़ी गांड हवा में ऐसे उठा रही हूँ जैसे कि चुद रही हूँ। लेकिन सच कहूँ तो उस समय मुझे शालीनता की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी और मेरा पूरा ध्यान मज़े लेने पर था।
मैं सिसकियाँ ले रही थी और मेरी पैंटी चूतरस से पूरी गीली हो चुकी थी और ऐसा लग रहा था कि मेरी चिकनी जांघों में भी रस बहने लगा था। मुझे ओर्गास्म आ गया और मैं काम संतुष्ट हो गयी। दीपू के सामने कुछ देर तक मेरा मुख चोदन चलता रहा और फिर गोपालजी ने मेरा मुँह अपने वीर्य से भर दिया। असल में मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और वीर्य को मुँह से बाहर उगल दिया पर इसके बावजूद उसका थोड़ा-सा गरम वीर्य मुझे निगलना भी पड़ा।
अब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर पायी और अब मुझे विरोध करना ही था। मैंने अपनी जीभ से गोपालजी के लंड को मुँह से बाहर धकेला और आँखें खोल दी। जैसे ही मैंने आँखें खोली तो मुझे वास्तविकता का एहसास हुआ। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, कैसे रियेक्ट करूँ। गोपालजी मेरे मुँह के पास अपना लंड हाथ में लिए खड़ा था और उसकी लुँगी फ़र्श में पड़ी थी। मैं तुरंत बेड में बैठ गयी।
दीपू--ओह मैडम, आपको होश आ गया। बहुत बढ़िया।
मैं उन दोनों मर्दों के सामने हक्की बक्की बैठी थी। मैंने अपने ब्लाउज को देखा उसमें मेरी गोल चूचियाँ आधी बाहर निकली हुई थीं । मैंने अपनी ब्रा और ब्लाउज को एडजस्ट करके अपनी जवानी को छुपाने की कोशिश की और वह दोनों मर्द बेशर्मी से मुझे ऐसा करते देखते रहे। मेरे चेहरे में टेलर का वीर्य लगा हुआ था।
दीपू--मैडम, जब आप अचानक बेहोश हो गयी तो हम डर ही गये थे। बड़ी मुश्किल से आपको होश में लाए हैं।
"हम्म्म।"
गोपालजी--दीपू बेटा, मैडम को मुँह पोछने के लिए कोई कपड़ा दो। मैं भी अपने को बाथरूम जाकर साफ़ करता हूँ।
मुझे भी तुरंत बाथरूम जाकर अपने को धोना था, मेरे चेहरे को, मेरी चूत को और मेरी गीली पैंटी को भी बदलना था।
"गोपालजी, पहले मैं जाऊँ?"
गोपालजी--मैडम, आपको तो समय लगेगा। मैं बस पेशाब करूँगा और एक मिनट में आ जाऊँगा।
मैं अनिच्छा से राज़ी हो गयी पर मुझे भी ज़ोर की पेशाब लगी थी।
दीपू--मैं भी पेशाब करूँगा।
गोपालजी--हम साथ चले जाते हैं। मैडम, आप एक मिनट रुकिए!
वो दोनों बाथरूम चले गये और दरवाज़ा बंद करने की ज़हमत भी नहीं उठाई. उनके पेशाब करने की आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी। मुझे एहसास हुआ की हालात मेरे काबू से बाहर जा चुके हैं और अब शालीन दिखने का कोई मतलब नहीं। थोड़ी देर में वह दोनों बाथरूम से वापस आ गये।
गोपालजी--मैडम, अब आप जाओ।
जब तक वह दोनों बाथरूम में थे तब तक मैंने अपने चेहरे और मुँह से वीर्य को पोंछ दिया था और नॉर्मल दिखने की कोशिश की। लेकिन अभी भी मेरे दिल की धड़कनें तेज हो रखी थी। जैसे ही मैंने बेड से उठने की कोशिश की।
कहानी जारी रहेगी