औलाद की चाह 066

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टॉयलेट.
1.2k words
2.5
261
00

Part 67 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 6-पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update-14

टॉयलेट

दीपू--मैडम, मैडम, ये क्या कर रही हो?

"क्यूँ? क्या हुआ?"

उसके ऐसे बोलने से मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने उसकी तरफ़ देखा।

दीपू--मैडम, अभी तो आपको होश आया है। 15--20 मिनट तो आप बेहोश थीं।

मुझे ध्यान ही नहीं रहा की मैं बेहोश होने का नाटक कर रही थी और अब मैं तुरंत सीधे खड़े होकर चलना फिरना नहीं कर सकती थी।

दीपू--मेरी मामी ने भी एक बार होश में आते ही चलना फिरना शुरू कर दिया लेकिन कुछ ही देर में गिर पड़ी और उसे चोट लग गयी। मैडम, आप को भी ध्यान रखना होगा।

गोपालजी--मैडम, दीपू सही कह रहा है।

मैंने गुस्से से गोपालजी को देखा, क्यूंकी वह तो जानता था कि मैं नाटक कर रही हूँ। लेकिन दीपू के सामने मैं कुछ कह नहीं सकती थी।

दीपू--मैडम, मैं आपको सहारा देता हूँ और आप चलने की कोशिश कीजिए।

मुझे उसकी बात पर राज़ी होना पड़ा और उसने मेरी बाँह और कमर पकड़ ली। मुझे भी थोड़ा कमज़ोरी का नाटक करना पड़ा ताकि उसे असली लगे। मैं सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज में थी। वह मेरी कमर को पकड़कर सहारा दिए हुए था लेकिन मुझे अंदाज़ आ रहा था कि वह सिर्फ़ सहारा ही नहीं दे रहा बल्कि मेरे बदन को महसूस भी कर रहा है। मुझे गीली पैंटी और मेरे पेटीकोट के अंदर जांघों पर चूतरस के लगे होने से बहुत असहज महसूस हो रहा था इसलिए मैं छोटे-छोटे कदमों से बाथरूम की तरफ़ जा रही थी।

"रूको। मुझे अपनी पैंटी बदलनी है ।अर्ररर!.मेरा मतलब । मुझे टॉवेल ले जाना है।"

मुझे मालूम था कि कपड़ों की अलमारी में एक नया टॉवेल है इसलिए मैंने सोचा की उसके अंदर एक नयी पैंटी डाल कर बाथरूम ले जाऊँगी ताकि दीपू के सामने हाथ में पैंटी लेकर ना जाना पड़े। दीपू मेरी बाँह और कमर पकड़े हुआ था और अब मुझे लगा की उसने मुझे और कसके पकड़ लिया है। मैंने सोचा की इस जवान लड़के का कोई दोष नहीं क्यूंकी गोपालजी की वज़ह से इसने अभी अपनी आँखों के सामने इतना कामुक दृश्य देखा है तो कुछ असर तो पड़ेगा ही।

जब मैं अलमारी से टॉवेल और पैंटी निकालने के लिए झुकी तो दीपू ने मेरी बाँह छोड़ दी पर उस हाथ को भी मेरी कमर पर रख दिया। अब वह दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़े हुए था। मैं इस लड़के को ऐसे मनमर्ज़ी से मुझे छूने देना नहीं चाहती थी। लेकिन सिचुयेशन ऐसी थी की मैं सहारे के लिए मना नहीं कर सकती थी और अब गोपालजी के बाद मेरे बदन को छूने की बारी इस जवान लड़के की थी। मैंने जल्दी से कपड़े निकाले और बाथरूम को चल दी ताकि जितना जल्दी हो सके इस लड़के से मेरा पीछा छूटे।

"दीपू, अब मुझे ठीक लग रहा है। तुम रहने दो।"

दीपू--ना मैडम। मुझे याद है मेरी मामी गिर पड़ी थी और उसके माथे से खून निकलने लगा था। उस दिन वह भी ज़िद कर रही थी की मैं ठीक हूँ, ख़ुद कर सकती हूँ, नतीजा क्या हुआ? चोट लग गयी ना।

अब इस बेवकूफ़ को कौन समझाए की मैं इसकी मामी की तरह बीमार नहीं हूँ जिसे अक्सर चक्कर आते रहते हैं। लेकिन मुझे उसकी बात माननी पड़ी क्यूंकी मेरे लिए उसका डर वास्तविक था जैसा की उसने अपनी मामी को गिरते हुए देखा था, वह डर रहा था कि कहीं मैडम भी ना गिर जाए.

"ठीक है। तुम क्या चाहते हो?"

दीपू--मैडम, ख़ुद से रिस्क मत लीजिए. मैं आपको फ़र्श में बैठा दूँगा और दरवाज़ा बंद कर दूँगा। जब आपका हो जाएगा तो मुझे आवाज़ दे देना।

और, उसकी बात से शरम से मेरी आँखें झुक गयीं पर मेरे पास और कोई चारा नहीं था। मैंने हाँ में सर हिला दिया। दीपू ने मेरी बाँह पकड़कर मुझे टॉयलेट के फ़र्श में बिठा दिया। एक मर्द के सामने उस पोज़ में बैठना बड़ा अजीब लग रहा था और ऊपर से देखने वाले के लिए मेरी रसीली चूचियों के बीच की घाटी का नज़ारा कुछ ज़्यादा ही खुला था। मैंने ऐसे बैठे हुए पोज़ से नजरें ऊपर उठाकर दीपू को देखा, उसकी नजरें मेरे ब्लाउज में ही थी। स्वाभाविक था, कौन मर्द ऐसे मौके को छोड़ता है, एक बैठी हुई औरत की चूचियाँ और क्लीवेज ज़्यादा ही गहराई तक दिखती हैं।

"शुक्रिया। अब तुम दरवाज़ा बंद कर दो।"

दीपू--मैडम, ख़ुद से उठने की कोशिश मत करना। मुझे बुला लेना।

मैं एक मर्द के सामने टॉयलेट में उस पोज़ में बैठी हुई बहुत बेचारी लग रही हूँगी और मेरे बदन में साड़ी भी नहीं थी।

"ठीक है, अब जाओ।"

मेरा धैर्य ख़त्म होने लगा था और पेशाब भी आने वाली थी। दीपू टॉयलेट से बाहर चला गया और दरवाज़ा बंद कर दिया। मैंने पीछे मुड़कर देखा की उसने दरवाज़ा ठीक से बंद किया है या नहीं।

हे भगवान। दरवाज़ा आधा खुला था। लेकिन मैंने तो दरवाज़ा बंद करने की आवाज़ सुनी थी।

दीपू--मैडम, दरवाज़े में कुछ दिक्कत है। ये बिना कुण्डी चढ़ाये बंद नहीं हो रहा। क्या करूँ? ऐसे ही रहने दूँ?

"क्या? ऐसे कैसे होगा?"

दीपू--मैडम, घबराओ नहीं। जब तक आप बुलाओगी नहीं मैं अंदर नहीं आऊँगा।

वो आधा दरवाज़ा खोलकर मुझसे पेशाब करने को कह रहा था।

"ना ना। मैं दरवाज़ा बंद करती हूँ।"

दीपू दरवाज़ा खोलकर फिर से टॉयलेट के अंदर आ गया।

दीपू--मैडम, ज़्यादा जोश में आकर ख़ुद से उठने की कोशिश मत करो।

उसने मेरे कंधे दबा दिए ताकि मैं बैठी रहूँ। मैंने उसकी तरफ़ ऊपर देखा तो उसकी नजरें मेरे ब्लाउज पर थीं और मुझे एहसास हुआ की उस एंगल से मेरी ब्रा का कप भी दिख रहा था। ऐसा लगा की वह अपनी आँखों से ही मुझसे छेड़छाड़ कर रहा है।

दीपू--ठीक है मैडम, एक काम करता हूँ। मैं दरवाज़ा बंद करके हाथ से पकड़े रहता हूँ, जब आपका हो जाएगा तो मुझे बुला लेना।

"हम्म्म! ठीक है, लेकिन।"

दीपू--मैडम, आप दरवाज़े पर नज़र रखना, बस?

मैं बेचारगी से मुस्कुरा दी और दीपू फिर से टॉयलेट से बाहर चला गया। इस बार दरवाज़ा बंद करके उसने दरवाज़े का हैंडल पकड़ लिया।

दीपू--मैडम, आप करो। मैंने दरवाज़े का हैंडल पकड़ लिया है और ये अब नहीं खुलेगा।

"ठीक है।"

ये मेरी ज़िन्दगी की सबसे अजीब सिचुयेशन्स में से एक थी। मेरे टॉयलेट के दरवाज़े पर एक मर्द दरवाज़ा पकड़े खड़ा था और मुझे अपने कपड़े ऊपर उठाकर पेशाब करनी थी। मैं जल्दी से उठ खड़ी हुई और चुपचाप दरवाज़े के पास जाकर देख आई की दरवाज़ा ठीक से बंद भी है या नहीं। दरवाज़ा ठीक से बंद पाकर मैंने सुरक्षित महसूस किया। मैं फिर से टॉयलेट में गयी और पेटीकोट ऊपर उठाकर पैंटी उतारने लगी। पैंटी पूरी गीली हो रखी थी और मेरी गोल चिकनी जांघों पर चिपक जा रही थी। जैसे तैसे मैंने पैंटी उतारी और तुरंत पेशाब करने के लिए बैठ गयी। सुर्र्र्र्र्ररर...की आवाज़ शुरू हो गयी और मुझे बहुत राहत हुई. अंतिम बूँद टपकने के बाद मैं उठ खड़ी हुई. मैं कमर तक पेटीकोट ऊपर उठाकर पकड़े हुए थी इसलिए मेरे नितंब और चूत नंगे थे।

"आआहह!"

एक पल के लिए मैंने आँखें बंद कर ली। बहुत राहत महसूस हो रही थी। तभी मुझे ध्यान आया की दरवाज़े पर तो दीपू खड़ा है और मैं जल्दी से नयी पैंटी पहनने लगी। मैं चुपचाप पैंटी पहन रही थी ताकि दीपू को शक़ ना हो। बल्कि मैंने तो टॉयलेट में पानी भी नहीं डाला ताकि कहीं मैं उठ खड़ी हुई हूँ सोचकर दीपू अंदर ना आ जाए।

दीपू--हो गया मैडम?

कहानी जारी रहेगी

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