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Click hereपड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे
CHAPTER-6
विवाह, यज्ञ और शुद्धिकरन
PART 01-पैतृक स्थान
मेरे चहेरे भाई महाराज हरमोहिंदर जी का और हिमालय की रियासत के महाराज वीरसेन की सुपत्री का विवाह महाराज वीरसेन के महल में हिमालय नगरी में होना था और फिर गुरुदेव ने इसके लिए परिवार के कुछ लोगों को विवाह से दो दिन पहले उनके आश्रम में आने की आज्ञा दी थी ताकि यज्ञ और शुद्धिकरन की प्रक्रिया पूरी की जाए.
इस विवाह में शामिल होने के लिए भाई महाराज हरमोहिंदर जी के निमंत्रण पर मेरे पिताजी और माँ दिल्ली से सूरत आ गए थे और फिर मैं उनके साथ महाराज की गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश तीनो राज्यों के सीमान्त पर स्तिथ हमारी पुश्तैनी रियासत में हमारे पुश्तैनी निवास स्थान में चले गए।
तीन घंटो के सफ़र में रास्ते भर में मैं शनिवार और रविवार के बारे में सोचता रहा जिसमे ये रविवार सुपर संडे की तरह गुजरा जिसमे सुबह-सुबह मैंने और रुपाली भाभी ने सम्भोग किया फिर ईशा हे के साथ दोपहर में, मानवी भाभी के साथ शाम को पार्क में और रुपाली भाभी के साथ पूरी रात सेक्स किया।
दोपहर में तीन घंटे में सड़क के मार्ग से हम हमारे पैतृक निवास स्थान में पहुँचे जहाँ प्रवेश द्वार पर ही मेरे चचेरे भाई महाराज हरमोहिंदर जी अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ हम पर इत्र और फूल छिड़कते हुए हमारा शाही स्वागत किया।
मैं अपने चचेरे भाई महाराज हरमोहिंदर जी के साथ भव्य महल नुमा निवास स्थान देखने गया और पंजाब में हमारी हवेली, दिल्ली और लंदन में हमारे घर भी इसी तरह के डिजाइनों पर बनाए गए थे।
महाराज हरमोहिंदर जी ने मुझे सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित एक विशेष और भव्य कमरा रहने के लिए सौंपा।
कमरे में ईशा और रीती उपस्थित थी और हेमा ने बोला कुमार आप सफ़र करने के बाद थक गए होंगे अब रीती आपकी मालिश कर देगी तो मैंने अपने सब कपडे निकाल दिए और रीती ने हरे रंग के तेल की शीशी से तेल लेकर वह मेरे ऊपर झुककर अपने हाथों से मालिश करने लगी।
वह मेरे कंधों और बाजुओं पर अपने नर्म हाथों को फिराने लगी। मेरी छाती पर थोड़ा हाथ मसलने के बाद रीती मेरे पाँव की मसाज करने लगी। दादा गुरूजी द्वारा प्रदान किये गए जड़ी बूटियों वाले इस तेल की सुगंध से बहुत अच्छा महसूस हो रहा था और जल्द ही थकान मिट गयी।
फिर मैंने स्नान किया तो स्नान घर में बाल्टी में भी जड़ी बूटी वाला पानी था और उसमे से भी बड़ी मनमोहक ख़ुशबू आ रही थी। उससे स्नान करने के बाद मैं एकदम तरोताज हो गया और साड़ी थकान मिट गयी।
फिर थोड़ी देर में हमे बैठक में बुलाने हेमा आयी वहाँ पिताजी मेरी माँ, भाई महाराज और राजमाता के साथ हमारे कुलगुरु आये और उन्होंने बताया की महाराज के विवाह से पहले परिवार के रीती रिवाज़ के अनुसार छोटे से यज्ञ का अनुष्ठान किया जाएगा और इसमें मेरे पिताजी जो परिवार के अग्रज हैं उन्हें भाई महाराज के विवाह अनुष्ठान को पूरा कर्म का संकल्प लेना होगा। उसके बाद परिवार की महिलाये कुछ ज़रूरी रस्मो को करेंगी और इस संकल्प लेने के बाद सबसे पहले यही कार्य पूरा किया जाएगा।
फिर भाई महाराज ने पिताजी से मेरे बारे में बात करते हुए पुछा आपने राजकुमारी ज्योत्स्ना से मेरे विवाह के बारे में क्या सोचा है? महर्षि बोलै अब दीपक का विवाह भी शीघ्र करना होगा। तो पिताजी बोलै हम पहले एक बार राजकुमारी ज्योत्स्ना से मिलना चाहेंगे।
तो भाई महाराज ने हिमालय राज महाराज वीरसेन से पता किया तो मालूम चला कामरूप क्षेत्र के महाराज उमा नाथ परिवार सहित वापिस कामरूप चले गये हैं तो फिर कुछ देर बाद हिमालय राज महाराज वीरसेन ने ज्योत्स्ना के पिता महाराज उमा नाथ से बात कर हमे शीघ्र कामरूप आने के लिए आमत्रित किया।
तो भाई महाराज ने अगले ही दिन कामरूप जाने का कार्यक्रम बना दिया।
फिर रात के खाने के बाद नाच गाने का एक कार्यक्रम हुआ जिसमे कलाकारों और नर्तक मण्डली ने सुन्दर लोक नृत्य और लोक संगीत का कार्यक्रम पेश किया।
भोजन हुए नाच गाने के कार्यक्रम के बाद पिता जी आराम करने चले गए मैं और भाई महाराज के साथ महल में चहल कदमी करने लगे। घुमते-घुमते हम भवनों के पीछे एक बहुत बड़ा सुन्दर बगीचा तक चले गए जिसके बीचो बीच एक मंदिर था और भाई महाराज ने बताया ये हमारे कुल देवता नागराज का मंदिर है जिनके दर्शन हम कल प्रातः काल में करेंगे l जिसके पीछे कुछ खेत और चरागाह भूमि थी और उसके पीछे काफ़ी बड़ा जंगल है l मुझे महाराज ने वह सब कुछ दूर से दिखाया l
भाई महाराज लौटते हुए ने एक बार फिर मुझे महल दिखाया जिसमे मुख्यता तीन बड़े-बड़े भवन हैं l
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार