एक नौजवान के कारनामे 069

Story Info
राज ​.
1.3k words
0
217
00

Part 69 of the 278 part series

Updated 04/23/2024
Created 04/20/2021
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पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

CHAPTER-6

विवाह, यज्ञ और शुद्धिकरन

PART 02-गुप्त राज ​

भोजन के बाद हुए नाच गाने के कार्यक्रम के बाद पिता जी आराम करने चले गए मैं और भाई महाराज के साथ महल में चहल कदमी करने लगे। घुमते-घुमते हम भवनों के पीछे एक बहुत बड़ा सुन्दर बगीचा तक चले गए जिसके बीचो बीच एक मंदिर था और भाई महाराज ने बताया ये हमारे कुल देवता नागराज का मंदिर है जिनके दर्शन हम कल प्रातः काल में करेंगे l जिसके पीछे कुछ खेत और चरागाह भूमि थी और उसके पीछे काफ़ी बड़ा जंगल है l मुझे महाराज ने वह सब कुछ दूर से दिखाया l

भाई महाराज लौटते हुए ने एक बार फिर मुझे महल दिखाया जिसमे मुख्यता तीन बड़े-बड़े भवन हैं l

एक हिस्से में रानिवास था l ये हिस्सा घर मुख्या हिस्से से थोड़ा अलग है l राज माता जी (मेरी ताई जी) और भाई महाराज की रानिया सभी इस हिस्से में रहती थी l ये हिस्सा मुख्य भवन से थोड़ा-सा बड़ा हैl जिसमे एक बहुत बड़ा हाल और काफ़ी सारे कमरे हैं l इसी में एक तरणताल भी था और महारानी और अन्य रानियों के सभी सेविकाएँ इसी भाग में रहती थी घर के इस हिस्से की प्रमुख राजमाता थी और इसके इलावा इसमें कुछ अन्य स्त्रिया भी रहती थी (हमारे यहाँ पुरुषो के द्वारा एक से अधिक स्त्रियाँ रखने की प्रथा रही है) l

और फिर इसके इलावा तीसरे हिस्से में कुछ सेवक सेविकाओं के कमरे थे जिनमे सेवक सेविकाएँ और उनके परिवार रहते थे l

सबसे आगे का एक भवन जिसमे बैठक वहाँ रियासत की जनता उनसे मिलने आती थी... चुकी अब वे विधायक भी चुने गए थे तो वहाँ दिन में काफ़ी भोड़ लगी ही रहती थी और महाराज का दफ्तर था जो काफ़ी बड़ा और भव्य था जिसे काफ़ी अच्छे से मेन्टेन किया गया था और उसके पिछले एक हिस्से में भाई महाराज का निवास कक्ष था l इसी में महमानो का भी कक्ष था और मेरे लिए भी कक्ष इसी भवन में था। महाराज और राजकुमार इसी पहले मुख्य भवन में रहते हैंl इसमें काफ़ी सारे कमरे थे।

फिर महाराज मुझे अपने कक्ष में ले गए और वहाँ मुझे कमरे में दाहिने हिस्से में रखे एक मूर्ति नज़र आयी हमारी दिल्ली और पंजाब के घर में भी बिलकुल ऐसी ही मूर्ति थी मैंने मूर्ति को घुमाया तो मूर्ति घूम गयी और महाराज के बिस्तर के साथ साइड में एक गुप्त दरवाज़ा खुल गया बिलकुल वैसे ही जैसे गुप्त दरवाजे का ज़िक्र मेरे दादाजी की डायरी में था और ऐसा ही दरवाज़ा हमारे घर में भी था।

मैंने भाई महाराज से पुछा क्या आपको ये राज मालूम था, भाई महाराज तो हैंरानी से मुँह खोले हुए देख रहे थे और उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। उन्हें देख मैं समझ गया उन्हें इसके बारे में कुछ मालूम नहीं है।

अब इसमें आगे क्या था l ये जानने के लिए हमारा उसके अंदर जाना ज़रूरी था पर दरवाजे के अंदर अँधेरा था तो मैंने कहा महाराज आप रुकिए यहाँ पर ज़रूर रौशनी की व्यवस्था होगी मैंने मोबाइल में टोर्च चालु की और हमने मूर्ति को वापिस घुमाया तो दरवाज़ा बंद हो गया और फिर उसे दूसरी दिशा में घुमाया तो दरवाज़ा फिर खुल गया l पर मुझे यहाँ दोनों का एक साथ अंदर जाना ठीक नहीं लगा तो मैं बोला महाराज ऐसी ही मूर्ति और दरवाज़ा हमारे पंजाब, दिल्ली और लंदन वाले घर में भी है और उनका भी नक़्शा इसी निवास स्थान जैसा ही है आप रुकिए मैं अंदर जाता हूँ अगर मुझे अंदर से अंदर दरवाज़ा खोलने का रास्ता नहीं मिला तो आप 5 मिनट बाद दुबारा मूर्ति हिला कर दरवाज़ा खोल देना l

अंदर जा कर मैंने मोबाइल से टोर्च जला कर अंदर देखा तो वहाँ लाइट के स्विच नज़र आये उन्हें दबाया तो वहाँ रौशनी हो गयी और नीचे उतरने की सीढिया नज़र आयी मैं नीचे उतर गया आगे दीवार थी।

वहाँ एक हैंडल भी था मैंने उसे घुमाया तो कमरे वाला दरवाज़ा बंद हो गया और सीढ़ियों के अंत में एक दरवाज़ा खुल गया मैंने उस हैंडल को उल्टा घुमाया तो कमरे का दरवाज़ा खुल गया और सीढ़ियों के अंत में खुला दरवाज़ा बंद हो गया। वहीँ मूर्ति के पास एक डायरी और एक चाबी रखी हुई थी ।

मैंने देखा आगे सब सुरक्षित है तो महाराज को बुला लिया उस डायरी में जो राइटिंग थी उसे भाई महाराज ने पहचान लिया वह लिपि मेरी समझ में नहीं आयी ये डायरी भाई महाराज के दादाजी के दादा जी की थी जिसे भाई महाराज में पढ़ लिया और उसमे सबसे पहले हम दोनों भाइयो का स्वागत किया था और लिखा था यहाँ तक तब पहुँचा जाएगा जब उनके भाई जो उनसे अलग हो विदेश चले गए हैं उनका वंशज इस द्वार को खोल कर अंदर आएगा।

उससे पहले उसके अतिरिक्त इस द्वार को कोई नहीं खोल पायेगा जिसके लिए हमारे कुल गुरु महर्षि बड़े अमर मुनि जी दो दादा गुरु महारिषि अमर मुनि जी की पिताजी और गुरु थे उन्होंने इसे मंत्रो द्वारा अभिरक्षित कर दिया है और उन्होंने भविष्यवाणी की थी मैं जब मैं आऊँगा तो परिवार को मिला हुआ शाप समाप्त हो जाएगा और फिर मैं हिमालय में महर्षि से मिलने के बाद यहाँ आऊंगा तो बड़े ही आराम से इस स्थान पर आ जाऊँगा।

उसमे लिखा था इस कमरे में ऊपर के कमरे जैसी तीन मूतिया रखी हैं जिनको घूमाने से तीन अलग-अलग रास्ते खुलेंगे l उनमे से एक से वह दरवाज़ा खुलेगा जिससे हम कमरे से इस तहखाने वाले हाल में आये थे l दुसरे से रास्ता पहले मुख्या भवन के हाल में खुलता है तीसरे से रास्ता से तीसरे भवन के पास खुलता है और उसी से आगे एक रास्ता मैदान के पास बड़े बरगद का पास पेड़ो के झुण्ड में खुलता है और चाबी ऊपर रखी अलमारी की थी।

मेरे पास मेरे फ़ोन में जो डायरी मुझे अपने दिल्ली वाले घर में मिली थी उसके उस पन्नो की फोटो थी जो मैं लिपि नहीं जानने के कारण से नहीं पढ़ पाया था मैंने वह भी महाराज को पढ़वाई और जो लिपि इस डायरी और मेरे दादा की डायरी में थी दोनों बिलकुल एक थी और दोनों में यही बात लिखी हुई थी।

मुझे लगा चुकी ये एक गुप्त रास्ता है और इसका ज़िक्र दादाजी की डायरी में है तो सुरक्षित ही होगा मैंने हैंडल घुमा कर कमरे का दरवाज़ा बंद किया और आगे का दरवाज़ा खुल गया l हम उस दरवाजे के अंदर गए तो वहाँ एक शानदार हाल था l जिसमे बहुत सुन्दर-सुन्दर लड़कियों की बहुत कामुक मुर्तिया और कामुक अंतरंग चित्र कलाकृतिया लगी हुई थी l और कमरे के अंदर एक शानदार बिस्तर जिसपर आठ से दस लोग आराम से सो सकते थे।

किनारो पर शानदार आरामदायक सोफे लगे हुए थे l और हाल में एक बड़ा शानदार बाथरूम भी था।

मेरे मुँह से अनायास निकला? बहुत शानदार" हमारे पूर्वज पूरे रसिक थे।

पूरा हॉल साउंड प्रूफ था और सुविधाओं से लैस था l उस डायरी में ये भी लिखा था के किस प्रकार से सब दरवाजो को लॉक किया जा सकता था, जिससे कोई भी दरवाज़ा खोल न सके और साथ ही ये हिदायत भी थी के सुरक्षा की दृष्टि से ये राज गुप्त ही रखा जाए।

हम दोनों हाल की सब लाइट इत्यादि बंद करते हुए और डायरी में बताये गए तरीके से दरवाजे लॉक करके वापिस मेरे कमरे में आ गए।

हमने वापिस आ कर महाराज के कक्ष में देखा तो वहाँ ऐसी ही दो मूर्तिया और थी l एक मुख्या भवन की और एक बायीं और थी जो की एक गुप्त रास्ता था जो घर के बाहर ले जाता था मैंने दोनों को घुमाया तो जैसा डायरी में बताया था वैसे दो दरवाजे खुले।

फिर महराज बोले अब तुम आराम करो बाक़ी खोज बीन कल करेंगे।

मैं अपने कक्ष में आ गया और मुझे एक संदूक दिखा मैंने संदूक को हाथ लगाया तो संदूक ख़ुद ही खुल गया और उसमे एक दूसरी डायरी और एक चाबी रखी हुई थी उसमे ऐसी ही दो मूर्तिया की पेंटिंग बनी हुई थी और एक तीसरे पेज पर चाबी बनी हुई थी चौथे पेज पर नागदेवता का चित्र था जिसमे उनके आगे दूध का कटोरा रखा था और अन्य पूजा सामग्री रखी हुई थी।

चाबी उसकी के साथ रखी अलमारी की थी।

ये VOLUME 1 यही समाप्त कर रहा हूँ ।

इसके आगे क्या हुआ अलमारी खोलने के बाद क्या मैंने देखा और आगे क्या हुआ ये पढ़िए VOLUME 2 में...

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