औलाद की चाह 067

Story Info
स्कर्ट की नाप.
1.9k words
2
199
00
Story does not have any tags

Part 68 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

औलाद की चाह

CHAPTER 6-पांचवा दिन

तैयारी-

'परिधान'

Update-15

स्कर्ट की नाप​

मैं जल्दी से बैठ गयी जैसे कि पेशाब कर रही हूँ और उसे हाँ में जवाब दे दिया। दीपू ने दरवाज़ा खोला और अंदर आ गया।

दीपू--ठीक है मैडम। मैं आपको सहारा देता हूँ और आप उठने की कोशिश करो।

मैं कमज़ोरी का बहाना करते हुए उठ खड़ी हुई. मुझे खड़ा करते हुए दीपू ने चतुराई से मेरी चूचियों को साइड्स से छू लिया। मैं उसे रोक तो नहीं सकती थी पर उससे ज़्यादा कुछ करने का उसे मौका नहीं दिया। मैंने अपना चेहरा और हाथ धोए और दीपू अभी भी मेरी कमर पकड़े हुए खड़ा था। वैसे तो मैं सावधान थी पर जब मैं मुँह धो रही थी तो उसकी अँगुलियाँ मेरी कमर में फिसलती हुई महसूस हुई. मैंने जल्दी से मुँह धोया और बाथरूम से बाहर आ गयी। मैं सोच रही थी की इतनी देर तक गोपालजी क्या कर रहा होगा।

दीपू--मैडम, ये बीमारी तो बहुत खराब है ख़ासकर औरतों के लिए.

मैं छोटे-छोटे कदमों से बाथरूम से बाहर आ रही थी ताकि दीपू को वास्तविक लगे।

" ऐसा क्यूँ कह रहे हो?

दीपू--मैडम, आज आप खुशकिस्मत थी की हमारे सामने बेहोश हुई. ज़रा सोचो अगर अंजान आदमियों के सामने बेहोश होती तो? आप कभी लोगों के सामने भी बेहोश हुई हो?

मैं खुशकिस्मत थी? वाह जी वाह। मेरे टेलर ने मेरे मुँह में अपना लंड दिया और मेरी चूचियों को इतना मसला की अभी भी दर्द कर रही हैं और ये लड़का कहता है कि मैं खुशकिस्मत हूँ? मैं मन ही मन मुस्कुरायी और एक गहरी सांस ली।

"मैं ऐसे बेहोश नहीं होती। आज ही हुई हूँ।"

गोपालजी--मैडम, देर हो रही है। अभी आपकी और भी नाप लेनी हैं।

दीपू--जी मेरे ख़्याल से मैडम को थोड़ा आराम की ज़रूरत है। उसके बाद हम फिर शुरू करेंगे।

फिर शुरू करेंगे? इस बेवकूफ़ का मतलब क्या है? लेकिन मुझे दीपू का आराम का सुझाव पसंद आया क्यूंकी वास्तव में मुझे इसकी ज़रूरत थी।

गोपालजी--ठीक है फिर। आप बेड में आराम करो। तब तक मैं आपकी चोली का कपड़ा काटता हूँ।

"शुक्रिया गोपालजी."

दीपू अभी भी मुझे सहारा दिए हुए था और उसने मुझे बेड में बिठा दिया। मैं एक बेशरम औरत की तरह इन दोनों मर्दों के सामने सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में घूम रही थी । सच कहूँ तो मुझे इसकी आदत पड़ने लगी थी।

दीपू--मैडम, आप की क़िस्मत अच्छी है जो आपको ये बीमारी नहीं है। जिन औरतों को ये बीमारी होती है उन्हें बहुत भुगतना पड़ता है।

"दीपू सिर्फ़ औरतें ही नहीं, जिस किसी को भी बेहोशी के दौरे पड़ते हैं, उन्हें भुगतना ही पड़ता है।"

दीपू--सही बात है मैडम। लेकिन मेरी मामी को देखने के बाद मुझे विश्वास है कि औरतों को ज़्यादा भुगतना पड़ता है।

"क्यों? तुम्हारी मामी को ऐसा क्या हुआ?"

दीपू अपनी मामी का किस्सा सुनाने लगा की किस तरह उसके पड़ोसी ने एक दिन उसकी बेहोशी का फायदा उठा लिया।

गोपालजी--बहुत बातें हो गयी। मैडम अब काम शुरू करें?

"जी गोपालजी. मैं तैयार हूँ।"

तब तक गोपालजी ने चोली का कपड़ा काट दिया था और अब टेप लिए तैयार था। दीपू भी नाप लिखने के लिए कॉपी पेन्सिल लेकर खड़ा हो गया। मैं बेड से उठी और पहले की तरह लाइट के पास जाकर खड़ी हो गयी।

गोपालजी--ठीक है मैडम, अब महायज्ञ के लिए स्कर्ट की नाप लेता हूँ।

गोपालजी की बात सुनकर एक पल के लिए मेरी धड़कनें रुक गयीं क्यूंकी मुझे मालूम था कि अब ये टेलर मेरी जांघों और टाँगों पर हाथ फिराएगा। लेकिन उसकी उमर को देखते हुए मुझे उससे ज़्यादा डर नहीं लग रहा था।

गोपालजी--मैडम, गुरुजी के निर्देशानुसार आपकी स्कर्ट चुन्नटदार होगी। मुझे उम्मीद है कि आपको चुन्नटदार स्कर्ट और प्लेन स्कर्ट के बीच अंतर मालूम होगा।

"हाँ मुझे मालूम है। प्लेन स्कर्ट की बजाय इसमें चुन्नट होंगे फोल्ड जैसे।"

गोपालजी--हाँ ऐसा ही। मुझे स्कर्ट के कपड़े में चुन्नट सिलने होंगे। मैडम ये बहुत मेहनत का काम है।

वो मुस्कुराया और मैं भी मुस्कुरा दी।

गोपालजी--लेकिन मैडम, हो सकता है कि आपको असहज महसूस हो ।मेरा मतलब!

टेलर को हकलाते हुए देखकर मुझे थोड़ी हैरानी हुई और मुझे समझ नहीं आया की वह क्या कहना चाह रहा है? मुझे असहज क्यूँ महसूस होगा? मैंने उलझन भरी निगाहों से उसे देखा।

गोपालजी--मैडम बात ये है कि स्कर्ट पूरी लंबाई की नहीं होगी। ये थोड़ी छोटी होगी।

मैंने गले में थूक गटका। मैं सोचने लगी, छोटी? कितनी छोटी? घुटनों तक?

"गोपालजी कितनी छोटी?"

गोपालजी--मैडम, ये मिनी स्कर्ट जैसी होगी।

"क्या?"

गोपालजी--मुझे मालूम था कि आपको असहज महसूस होगा। इसीलिए मैं ये बात बोलने से हिचकिचा रहा था।

"अब इस उमर में मैं मिनी स्कर्ट पहनूँगी? हो ही नहीं सकता।"

मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था। मैं 28 बरस की गदराये बदन वाली शादीशुदा औरत अगर मिनी स्कर्ट पहनूँगी तो बहुत उत्तेजक और अश्लील लगूंगी।

गोपालजी--मैडम घबराओ नहीं। ये उतनी छोटी नहीं होगी जितनी आप सोच रही हो।

"यही तो मैं आपसे पूछ रही हूँ। कितनी छोटी?"

गोपालजी--मैं ऐसे नहीं बता सकता। वैसे तो मिनी स्कर्ट 12 इंच की होती है पर आप समझ सकती हैं कि सही नाप औरत की लंबाई और उसके बदन पर निर्भर करती है।

"हम्म्म! मैं समझ रही हूँ पर 12 इंच तो कुछ भी नहीं है।"

मैं तेज आवाज़ में बोली लगभग चिल्ला कर।

गोपालजी--मैडम, मैडम! मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता। गुरुजी के निर्देशों की अवहेलना कोई नहीं कर सकता।

"हाँ वह मुझे भी मालूम है लेकिन,"

मैं हक्की बक्की खड़ी थी। ये बुड्ढा क्या कह रहा है? मैं 12 इंच लंबी स्कर्ट पहनूँगी? मेरे 36 " के नितंबों पर इतनी छोटी स्कर्ट । मैं अचंभित थी।

गोपालजी--मैडम, इस बात पर समय बर्बाद करने के बजाय नाप ले लेते हैं। मैं आपको भरोसा दे सकता हूँ की मेरी कोशिश रहेगी की आपकी स्कर्ट की फिटिंग जितनी शालीन हो सकती है उतनी रखूं।

"मुझे मालूम है कि आप कोशिश करोगे पर गोपालजी प्लीज़ समझो, मैं एक हाउसवाइफ हूँ और मेरी ज़िन्दगी में मैंने कभी इतनी छोटी स्कर्ट नहीं पहनी।"

गोपालजी--मैं समझ सकता हूँ मैडम। मुझ पर भरोसा रखो और मैं कोशिश करूँगा की आपको थोड़ा सहज महसूस हो।

"वो कैसे गोपालजी?"

गोपालजी--मैडम, देखो, ये स्कर्ट सिर्फ़ आपके गुप्तांगों को ही ढकेगी। लेकिन अगर आप कुछ बातों का ध्यान करो तो आपको उतना असहज नहीं महसूस होगा।

"मतलब?"

गोपालजी--मैडम, मिनी स्कर्ट में दिक्कत क्या है? यही की इसमें पूरी टाँगें दिखती हैं। लेकिन अगर कोई औरत इसे लगातार पहने रखे तो उसको उतनी शरम नहीं महसूस होगी। है कि नहीं?

"हाँ ये तो है।"

गोपालजी--मैडम ये बात बिल्कुल सही है। देखो जैसे अभी। आप अपने घर में बिना साड़ी पहने ऐसे तो नहीं घूमती हो ना? लेकिन अभी आप बहुत देर से ऐसे ही हो और अब आपको उतनी शरम नहीं लग रही है जितनी साड़ी उतारते समय लगी होगी, है ना?

उसकी बात सुनकर मैंने शरम से आँखें झुका लीं और हाँ में सर हिला दिया। क्यूंकी उस टेलर ने मुझे याद दिला दिया की मैं दो मदों के सामने सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी हूँ।

गोपालजी--मैडम, ऐसा ही स्कर्ट के लिए भी है। लेकिन आपको ध्यान रखना होगा की आस पास के लोग आपकी स्कर्ट के अंदर झाँक ना पाएँ।

"हम्म्म!"

मैंने बेशरम औरत की तरह जवाब दिया।

गोपालजी--मैडम, अगर आप लोगों के सामने ध्यान से ना बैठो तो मिनी स्कर्ट के अंदर भी दिख सकता है। जैसे सीढ़ियाँ चढ़ते समय आपको अपना बदन सीधा रखना पड़ेगा ताकि आपके पीछे चलने वाले आदमी को आपके नितंबों का नज़ारा ना दिखे। लेकिन अगर आप झुक के सीढ़ियाँ चढ़ोगी तो उसे सब कुछ दिख जाएगा।

मैं टेलर के चेहरे पर नज़रें गड़ाए उसकी बात सुन रही थी पर उसके अंतिम वाक्य को सुनकर मुझे अपनी आँखें फेरनी पड़ी।

"गोपालजी, मैं आपकी बात समझ गयी।"

मैं इस बुड्ढे के ऐसे समझाने से असहज महसूस कर रही थी और अब इन बातों को ख़त्म करना चाहती थी। मैंने देखा की दीपू हल्के से मुस्कुरा रहा है और इससे मुझे और भी शर्मिंदगी महसूस हुई.

गोपालजी--ठीक है मैडम, काम शुरू करूँ फिर?

"हाँ।"

गोपालजी मेरे नज़दीक आया और मेरी कमर और जांघों को देखने लगा। वैसे तो कुछ ही समय पहले मुझे ओर्गास्म आया था पर ये टेलर मेरी कमर से नीचे हाथ फिराएगा सोचकर मेरी चूत में खुजली होने लगी। मुझे भरोसा नहीं था कि मैं उसके हाथों का फिराना सहन भी कर पाऊँगी या नहीं ख़ासकर की मेरी कमर, जांघों और टाँगों में।

अब वह मेरे सामने झुका और टेप के एक सिरे को मेरी कमर में पेटीकोट के थोड़ा ऊपर लगाया और मेरी मांसल और चिकनी जांघों पर अँगुलियाँ फिराते हुए अपना दूसरा हाथ नीचे ले गया और 12 " नापा।

गोपालजी--मैडम, स्कर्ट इतनी लंबी होगी।

गोपालजी की अँगुलियाँ मेरी ऊपरी जांघों पर थीं।

"बस इतनी?"

मेरे मुँह से अपनेआप ये शब्द निकल गये क्यूंकी इतनी छोटी लंबाई देखकर मैं शॉक्ड रह गयी।

"लेकिन गोपालजी ये तो, मैं ऐसी ड्रेस कैसे पहन सकती हूँ?"

गोपालजी--लेकिन मैडम, मैंने आपको बताया था कि ये मिनी स्कर्ट है। आप इससे ये अपेक्षा नहीं रख सकती हो की ये आपकी पूरी जांघों को ढक देगी, है ना?

"हाँ वह तो ठीक है पर इतनी छोटी? ये तो मेरी आधी जांघों को भी नहीं ढक रही। इससे बढ़िया तो कुछ भी नहीं पहनूं।"

गोपालजी--लेकिन मैडम, मैं कर ही क्या सकता हूँ। जैसा बताया है मुझे तो वैसा ही करना होगा।

दीपू--मेरे ख़्याल से मैडम की चिंता जायज है। अगर इसकी स्कर्ट जांघों में इतनी ऊपर है जहाँ पर आपकी अंगुली है तो सोचो अगर मैडम बैठेगी तो क्या होगा?

गोपालजी--दीपू तुम अच्छी तरह जानते हो की मैं स्कर्ट की लंबाई नहीं बदल सकता।

मैंने बहुत असहाय महसूस किया और असहायता से दीपू की तरफ़ देखा।

दीपू--एक तरीक़ा है मैडम।

उसकी बात सुनकर जैसे मुझमें जान आ गयी।

"कौन-सा तरीक़ा? जल्दी बताओ?"

दीपू मेरे पास आया। गोपालजी मेरे आगे बैठकर मेरी जांघों और कमर पर हाथ रखे हुए था। दीपू ने सीधे मेरी नाभि को छू दिया जहाँ पर मेरा पेटीकोट बँधा हुआ था।

दीपू--मैडम, आप हमेशा यहीं पर पेटीकोट बाँधती हो?

"हाँ, अक्सर...मेरा मतलब हमेशा नहीं पर ज़्यादातर। पर क्यूँ?"

दीपू--मैडम, गोपालजी ने यहाँ से नापा है। पर अगर आप कमर से नीचे स्कर्ट पहनोगी तो मेरे ख़्याल से आपकी जांघें थोड़ी ज़्यादा ढक जाएँगी।

गोपालजी--हाँ मैडम, अगर आप राज़ी हो तो ऐसा हो सकता है।

वास्तव में और कोई चारा नहीं था, अगर मुझे थोड़ी इज़्ज़त बचानी है तो इस लड़के की बात माननी ही पड़ेगी। मैंने सोचा अगर मैं अपनी नाभि से कुछ इंच नीचे स्कर्ट पहनूं तो इससे मेरी गोरी मांसल जांघों का कुछ हिस्सा ढक जाएगा, वरना तो मर्दों के सामने अपनी गोरी सुडौल जांघों के नंगी रहने से मुझे बड़ा अनकंफर्टेबल फील होगा।

गोपालजी--मैडम, मेरे ख़्याल से आपको अभी एक ट्रायल कर लेना चाहिए ताकि आपको पक्का हो जाए की कहाँ पर स्कर्ट बाँधनी है और ये आपको कितना ढकेगी।

दीपू--हाँ, ट्रायल से मैडम को अंदाज़ा हो जाएगा और चुन्नट में किसी एडजस्टमेंट की ज़रूरत होगी तो मैडम बता सकती है।

गोपालजी--हाँ सही है। मैडम चुन्नट भी एडजस्ट किए जा सकते हैं ताकि आपकी स्कर्ट ज़्यादा फड़फड़ ना करे।

इस बार मैं टेलर और उसके सहायक से वास्तव में इंप्रेस हुई क्यूंकी ऐसा लग रहा था कि ये दोनों इस एंबरेसिंग सिचुयेशन में मेरी मदद करना चाहते हैं।

"हाँ ट्राइ कर सकती हूँ।"

गोपालजी--दीपू मेरे बैग में देखो। मैं ट्रायल के लिए एक चोली और स्कर्ट लाया हूँ।"

दीपू गोपालजी के बैग में देखने लगा।

गोपालजी--मैडम, मैंने आपसे चोली के ट्रायल के लिए नहीं कहा क्यूंकी इसका साइज़ 30" है जो की आपको फिट नहीं आएगी। असल में ये महायज्ञ परिधान मैंने गुरुजी को दिखाने के लिए दो साल पहले सिला था।

"अच्छा!"

दीपू बैग से स्कर्ट निकालकर ले आया। ये वास्तव में मिनी स्कर्ट थी ख़ासकर की मेरी भारी जांघों और बड़े गोल नितंबों के लिए।

कहानी जारी रहेगी

Please rate this story
The author would appreciate your feedback.
  • COMMENTS
Anonymous
Our Comments Policy is available in the Lit FAQ
Post as:
Anonymous
Share this Story