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CHAPTER 6-पांचवा दिन
तैयारी-
'परिधान'
Update-20
मिनी स्कर्ट पहन झुकना
मैंने सोचा इज़्ज़त ढकने के लिए तो (अगर कुछ बची हुई है तो) सभी पोज इम्पोर्टेन्ट हैं। इसमें ऐसा क्या ख़ास है।
गोपालजी--क्यूंकी इसमें आपको पता होना चाहिए की कैसे और कितना झुकना है।
मैं अनिश्चय से उसकी तरफ़ देख रही थी और वह अनुभवी आदमी समझ गया।
गोपालजी--मैडम देखो। एक उदाहरण देता हूँ।
उसने टेप को फ़र्श में गिरा दिया।
गोपालजी--मैडम अगर मैं बोलूँ की इस टेप को उठा दो तो आप इसे उठाने के लिए झुकोगी। लेकिन अभी आपने मिनी स्कर्ट पहनी है इसलिए आपको झुकने के तरीके में बदलाव करना होगा। कल्पना करो की आपने साड़ी पहनी है तो आप ऐसे उठाओगी।
ऐसा कहते हुए वह आगे झुका और हाथ आगे बढ़ाकर टेप को पकड़ा और फिर नजरें ऊपर करके मुझे देखा।
"हाँ, मैं ऐसे ही करूँगी।"
गोपालजी--मैडम यही तो बात है। अगर आप ऐसे करोगी तो ज़रा सोचो अगर कोई आपके पीछे बैठा होगा या खड़ा होगा तो उसको आपकी मिनी स्कर्ट में क्या नजारा दिखेगा।
मैं समझ गयी की वह कहना क्या चाहता है।
गोपालजी--मैडम, कोई भी औरत जानबूझकर ऐसा नहीं करेगी। आपको अपनी टाँगें चिपकाकर घुटने मोड़ने हैं और फिर ऐसे टेप उठाना है।
गोपालजी ने करके दिखाया।
"हाँ सही है।"
मैंने भी गोपालजी की तरह पोज़ बनाकर फ़र्श से टेप उठाकर दिखाया। सच कहूँ तो मैं अपने मन में उस टेलर को धन्यवाद दे रही थी क्यूंकी इस बारे में मैंने इतनी बारीकी से नहीं सोचा था।
गोपालजी--ठीक है मैडम। लेकिन आपको ये भी मालूम होना चाहिए की बिना कुछ दिखाए आप अपनी कमर को कितना झुका सकती हो। क्यूंकी यज्ञ के दौरान हो सकता है कि आपको ऐसे झुकना पड़े।
मैंने सोचा ये तो बुड्ढा सही कह रहा है। अब वह टेलर से ज़्यादा एक गाइड की भूमिका में था।
गोपालजी--दीपू, मैं यहाँ पर बैठता हूँ और तुम्हें गाइड करूँगा की क्या करना है। ठीक है?
दीपू--जी ठीक है।
ऐसा कहते हुए गोपालजी कुर्सी में बैठ गया।
गोपालजी--मैडम, आप मुझसे थोड़ी दूर दीवार की तरफ़ मुँह करके खड़ी हो जाओl 4-5 फीट, वहाँ पर।
उसने उस जगह के लिए इशारा किया और मैं टेलर से करीब 4-5 फीट की दूरी पर दीवार के करीब जाकर खड़ी हो गयी। दीपू भी मेरे पीछे आ गया और गोपालजी की तरफ़ मेरी पीठ थी।
गोपालजी--मैडम, अपनी टाँगें फैला लो। दोनों पैरों के बीच एक फीट से कुछ ज़्यादा गैप होना चाहिएl
मैंने टाँगें थोड़ी फैला लीं। दीपू नीचे झुका और उसने मेरी ऐड़ियों को पकड़कर थोड़ी और फैला दिया। मैं सोच रही थी की अब मेरे साथ और क्या-क्या होनेवाला है। ऐसे टाँगें अलग करने से मेरे निप्पल्स में एक अजीब-सी फीलिंग आ रही थी। मैं अपना दायाँ हाथ ब्लाउज पर ले गयी और मेरी चूचियों को ब्रा में एडजस्ट कर लिया। गोपालजी की तरफ़ मेरी पीठ थी और दीपू नीचे झुका हुआ था इसलिए वह दोनों ये देख नहीं पाएl
दीपू--जी अब ठीक है?
गोपालजी--हाँ बिल्कुल सही। मैडम, अब धीरे से कमर को आगे को झुकाओl
"कैसे?"
गोपालजी--मैडम, अपनी टाँगें सीधी रखो और आगे को झुको। मैं आपको बताऊँगा की कहाँ पर रुकना है। इससे आपको क्लियर आइडिया हो जाएगा की लोगों के सामने कितना झुकना है।
अब मुझे बात करने के लिए उस टेलर की तरफ़ मुड़ना पड़ा।
"लेकिन गोपालजी अगर मैं ऐसे झुकी तो ये बहुत भद्दा लगेगा।"
मैं बहुत कामुक लग रही हूँगी क्यूंकी मैंने देखा गोपालजी की आँखें मेरे जवान बदन पर टिकी हुई हैं। मैं उसकी तरफ़ गांड करके टाँगें फैला के खड़ी हुई थी और बातें करने के लिए मैंने सिर्फ़ अपना चेहरा पीछे को मोड़ा हुआ था।
गोपालजी--क्या भद्दा मैडम? यहाँ आपको कौन देख रहा है?
"नहीं, लेकिन!"
गोपालजी ऐसे बात कर रहा था जैसे दीपू और वह ख़ुद उस कमरें में हैं ही नहीं। लेकिन मैं उन दो मर्दों को नज़र अंदाज़ कैसे कर देती।
गोपालजी--मैडम, ये तो आपकी मदद के लिए हम कर रहे हैं वरना तो आप लोगों के सामने अपनी पैंटी दिखाती रहोगी।
मैं उस टेलर से बहस नहीं कर सकती थी। क्यूंकी सच तो ये था कि वह स्कर्ट बहुत छोटी थी और मुझे मालूम नहीं था कि उस छोटी स्कर्ट में मेरे बड़े नितंब चलते समय या झुकते समय कैसे दिख रहे हैं।
"ठीक है, जैसा आप कहो।"
मैं अनिच्छा से राज़ी हो गयी और अपना मुँह दीवार की तरफ़ कर लिया। दीपू मेरे पास खड़ा हो गया।
गोपालजी--तो फिर जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करो। धीरे से अपने बदन को आगे को झुकाओ. दीपू मैडम की टाँगें पकड़े रहना ताकि वह टाँगों को ना मोड़े।
दीपू ने तुरंत पीछे से मेरी टाँगें पकड़ ली और मुड़ने से रोकने के लिए घुटनों पर पकड़ने के बजाय उसने मेरी नंगी जांघों को पकड़ लिया। मुझे अंदाज़ा हो रहा था कि वह मेरी मांसल जांघों पर हाथ फिराने का मज़ा ले रहा है।
मैंने अपने बदन को आगे को झुकाना शुरू किया। खुशकिस्मती थी की मेरे आगे कोई नहीं था क्यूंकी ऐसे आगे को झुकने से मेरे ब्लाउज में गैप बनने लगा और मेरी बड़ी चूचियों का ऊपरी भाग दिखने लगा था।
गोपालजी--मैडम, धीरे से बदन को झुकाओ. जब तक की मैं रुकने को ना बोलूँ। ठीक है?
"ठीक हैl"
मैं धीरे से आगे को झुकती रही और मुझे अंदाज़ा हो रहा था कि स्कर्ट मेरी जांघों पर ऊपर उठ रही है। अब मेरा सर नीचे को झुक गया था तो मुझे पीछे बैठा दीपू दिखने लगा और जब मैंने देखा की वह बदमाश क्या कर रहा है तो मैं जड़वत हो गयी।
वो मेरे पीछे मेरे पैरों के पास बैठा हुआ था और उसका चेहरा मेरी जांघों के करीब था। मैं झुकी हुई पोजीशन में थी और वह बदमाश इसका फायदा उठाकर मेरी स्कर्ट के अंदर झाँकने की कोशिश कर रहा था। वह अंदर झाँकने को इतना उतावला हो रखा था कि सर ऊपर करके सीधे स्कर्ट में देख रहा था। उसकी आँखें मेरी पैंटी से कुछ ही दूर थी और वह बिना किसी रोक टोक के मेरी पूरी गांड का नज़ारा देख सकता था।
जैसे ही उसकी नजरें मुझसे मिली, जल्दी से उसने अपना मुँह नीचे को कर लिया और मेरी जांघों पर उसकी पकड़ टाइट हो गयी। मेरा मन हुआ की इस बदमाश छोकरे को एक कस के थप्पड़ लगा दूँ पर मैंने अपने को काबू में रखा। मुझे समझ आ रहा था कि इस पोज़ में मैं बहुत ही कामुक लग रही हूँगी। मैंने पीछे गोपालजी को देखा और वह अपने हाथ से अपने पैंट को वहाँ पर खुजा रहा था और उसकी नजरें मेरे पीछे को उभरे हुए नितंबों पर टिकी हुई थी।
गोपालजी--मैडम, बस रुक जाओ. इस एंगल से मुझे आपकी पैंटी दिखने लगी है।
अब मेरा दिमाग़ घूमने लगा था। अभी-अभी मैंने टेलर के साथी को अपनी स्कर्ट के अंदर झाँकते हुए रंगे हाथों पकड़ा था और अब टेलर कह रहा था कि उसे मेरी पैंटी दिख रही है।
गोपालजी--मैडम, इस पोज़ में आपकी गांड ऐसे लग रही है जैसे स्कर्ट के अंदर दो कद्दू रखे हों।
मैं उसके कमेंट पर ज़्यादा ध्यान ना दे सकी क्यूंकी दीपू के हाथ मेरी नंगी जांघों पर ऊपर को बढ़ने लगे थे और एक मर्द के मेरी नंगी जांघों को छूने से मुझपे नशा-सा चढ़ रहा था। वह मेरी जांघों के एक-एक इंच को महसूस कर रहा था और अब उसके हाथ मेरी स्कर्ट के पास पहुँच गये थे।
गोपालजी--मैडम, इसी पोज़ में रहो। दीपू मैडम की मदद करो ताकि मैडम और ज़्यादा ना झुकेl
मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। दीपू ने मुझे उस पोज़ में रोकने के बहाने अपने हाथ स्कर्ट के अंदर डाल दिए और उसकी अँगुलियाँ मेरे नितंबों के निचले भाग की छूने लगी।
गोपालजी कुर्सी से उठकर मेरे पास आने लगा। मैंने एक नज़र अपनी छाती पर डाली और ये देखकर शॉक्ड रह गयी की मेरी गोल चूचियों का ज़्यादातर हिस्सा ब्लाउज से बाहर लटक रहा है।
गोपालजी--ठीक है मैडम। अब आप सीधी हो जाओ. मैंने पोजीशन नोट कर ली है।
मैं उस समय तक उत्तेजना से काँपने लगी थी क्यूंकी दीपू की अँगुलियाँ मेरी स्कर्ट के अंदर मनमर्ज़ी से घूम रही थी और एक दो बार तो उसने पैंटी के ऊपर से मेरे भारी नितंबों को मसल भी दिया था। मेरी साँसें उखड़ने लगी थी तभी गोपालजी ने मुझे सीधे होने को कहा।
दीपू को अब अपनी हरकतें रोकनी पड़ी। उसने एक आख़िरी बार अपनी दोनों हथेलियों को मेरी स्कर्ट के अंदर फैलाया और मेरी गांड की पूरी गोलाई का अंदाज़ा किया। मैं सीधी खड़ी तो हो गयी पर मुझे असहज महसूस हो रहा था क्यूंकी दीपू ने मेरी काम भावनाओं को भड़का दिया था। मैंने अपने दाएँ हाथ से अपनी गांड के ऊपर स्कर्ट को सीधा किया और ब्लाउज के अंदर चूचियों को एडजस्ट कर लिया।
अब जो अनुभव मुझे अभी हुआ था उससे मेरे मन में एक डर था कि यज्ञ के दौरान पीछे से मेरी स्कर्ट के अंदर लोगों को दिख सकता है।
गोपालजी--मैडम, अगला पोज़ है ऐड़ियों पर बैठना (स्क्वाटिंग) । लेकिन इस स्कर्ट में आप ऐसे नहीं बैठ सकती हो। है ना?
कहानी जारी रहेगी