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CHAPTER 6-पांचवा दिन
तैयारी-
'परिधान'
Update-20
मिनी स्कर्ट-ऐड़ियों पर बैठना
गोपालजी--ठीक है मैडम। अब आप सीधी हो जाओ. मैंने पोजीशन नोट कर ली है।
मैं उस समय तक उत्तेजना से काँपने लगी थी क्यूंकी दीपू की अँगुलियाँ मेरी स्कर्ट के अंदर मनमर्ज़ी से घूम रही थी और एक दो बार तो उसने पैंटी के ऊपर से मेरे भारी नितंबों को मसल भी दिया था। मेरी साँसें उखड़ने लगी थी तभी गोपालजी ने मुझे सीधे होने को कहा।
दीपू को अब अपनी हरकतें रोकनी पड़ी। उसने एक आख़िरी बार अपनी दोनों हथेलियों को मेरी स्कर्ट के अंदर फैलाया और मेरी गांड की पूरी गोलाई का अंदाज़ा किया। मैं सीधी खड़ी तो हो गयी पर मुझे असहज महसूस हो रहा था क्यूंकी दीपू ने मेरी काम भावनाओं को भड़का दिया था। मैंने अपने दाएँ हाथ से अपनी गांड के ऊपर स्कर्ट को सीधा किया और ब्लाउज के अंदर चूचियों को एडजस्ट कर लिया।
अब जो अनुभव मुझे अभी हुआ था उससे मेरे मन में एक डर था कि यज्ञ के दौरान पीछे से मेरी स्कर्ट के अंदर लोगों को दिख सकता है।
गोपालजी--मैडम, अगला पोज़ है ऐड़ियों पर बैठना (स्क्वाटिंग) । लेकिन इस स्कर्ट में आप ऐसे नहीं बैठ सकती हो। है ना?
गोपालजी शरारत से मुस्कुरा रहा था। मैंने सिर्फ़ सर हिला दिया।
दीपू--मैडम, अगर आपको ऐसे बैठना ही पड़े तो बेहतर है कि आप अपनी स्कर्ट खोल दो और फिर अपनी ऐड़ियों पर बैठ जाओl
उसकी इस बेहूदी बात पर वह दोनों ठहाका लगाकर हंसने लगे। मैं गूंगी गुड़िया की तरह खड़ी रही और बेशर्मी से व्यवहार करती रही जैसे कि उस कमरे में फँस गयी हूँ।
गोपालजी--मैडम, सीढ़ियों पर चढ़ते समय भी ध्यान रखना होगा। क्यूंकी इस स्कर्ट को पहनकर अगर आप सीढ़ियाँ चढ़ोगी तो पीछे आ रहे आदमी को फ्री शो दिखेगा l
"हाँ गोपालजी मुझे मालूम है। आशा करती हूँ की ऐसी सिचुयेशन नहीं आएगी।"
दीपू--हाँ मैडम। पता है क्यों?
मैंने उलझन भरी निगाहों से दीपू को देखा।
दीपू--क्यूंकी आश्रम में सीढ़ियाँ हैं ही नहीं lहा हा हा!
इस बार हम सभी हंस पड़े। मेरी साँसें भी अब नॉर्मल होने लगी थी।
गोपालजी--मैडम, आख़िरी पोज़ है लेटना। अब आपको बहुत कुछ मालूम हो गया है, मैं चाहता हूँ की आप अपनेआप बेड में लेटो।
"ठीक हैl"
गोपालजी--मैडम, हम इस तरफ़ खड़े हो जाते हैं।
वो दोनों उस तरफ़ खड़े हो गये जहाँ पर लेटने के बाद मेरी टाँगें आती। मैं बेड में बैठ गयी और तुरंत मुझे अंदाज़ा हुआ की ठंडी चादर मेरी नंगी गांड के उस हिस्से को छू रही है जो की पैंटी के बाहर है, वह स्कर्ट इतनी छोटी थी। मैंने अपनी टाँगें सीधी रखी और चिपका ली और उन्हें उठाकर बेड में रख दिया। गोपालजी और दीपू की नजरें मेरी कमर पर थी और मैं जितना हो सके अपनी इज़्ज़त को बचाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन मुझे समझ आ गया की पैंटी को ढकना असंभव है। मेरी स्कर्ट चिकनी जांघों पर ऊपर उठने लगी और मैंने जल्दी से उसे नीचे को खींचा। लेकिन जैसे ही मैं बेड में लेटी तो मुझे थोड़ी-सी अपनी टाँगें मोडनी पड़ी और उन दोनों मर्दों को मेरी स्कर्ट के अंदर पैंटी का मस्त नज़ारा दिख गया होगा।
कितनी शरम की बात थी।
मैं एक हाउसवाइफ हूँ।मैं कर क्या रही हूँ। बार-बार अपनी पैंटी इन टेलर्स को दिखा रही हूँ। मेरे पति को ज़रूर हार्ट अटैक आ जाएगा अगर वह ये देख लेगा की मैं बिस्तर पर इतनी छोटी स्कर्ट पहन कर लेटी हुई हूँ और दो मर्द मेरी पैंटी में झाँकने की कोशिश कर रहे हैं।
गोपालजी--बहुत बढ़िया मैडम। अब तो महायज्ञ में इस ड्रेस को पहनकर जाने के लिए आप पूरी तरह से तैयार हो।
मैं बेड से उठी और सोच रही थी की जल्दी से इस स्कर्ट को उतारकर अपनी साड़ी पहन लूँ क्यूंकी मैंने सोचा टेलर की नाप जोख और ये एक्सट्रा गाइडिंग सेशन ख़त्म हो गया है।
लेकिन मैं कुछ भूल गयी थी। जो की बहुत महत्त्वपूर्ण चीज थी।
गोपालजी--मैडम, अब आपकी नाप का ज़्यादातर काम पूरा हो गया है। बस थोड़ा-सा काम बचा है फिर हम चले जाएँगे।
"अब क्या बचा है?"
खट खट!
दरवाजे पर खट-खट हुई और हमारी बात अधूरी रह गयी क्यूंकी मैं जल्दी से अपनी स्कर्ट के ऊपर साड़ी लपेटकर अपने नंगे बदन को ढकने की कोशिश करने लगी।
गोपालजी--मैडम, फिकर मत करो। मैं देखता हूँ।
वो दरवाजे पर गया और थोड़ा-सा दरवाज़ा खोलकर बाहर झाँका। मैंने परिमल की आवाज़ सुनी की मैडम के लिए फ़ोन आया है।
गोपालजी--ठीक है, मैं अभी मैडम को भेजता हूँ।
परिमल 'ठीक है' कहकर चला गया और मैं अपनी साड़ी और पेटीकोट लेकर बाथरूम चली गयी। मैं सोच रही थी की किसका फ़ोन आया होगा और कहाँ से? मेरे घर से? कहीं अनिल के मामाजी का तो नहीं जो मुझसे मिलने आश्रम आए थे? । यही सोचते हुए मैंने स्कर्ट उतार दी और पेटीकोट बाँधकर साड़ी पहन ली।
कहानी जारी रहेगी