अम्मी बनी सास 025

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सग़ी बहन को अपनी महबूबा बनाने का इरादा.
2.5k words
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Part 25 of the 92 part series

Updated 06/10/2023
Created 05/04/2021
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ज़ाहिद अभी इतनी ही बात कह पाया कि उस के टेबल पर रखे फ़ोन की घेंटी बज उठी।

ज़ाहिद ने नीलोफर से अलहदा होते हुए अपना फ़ोन चेक किया। तो स्क्रीन पर उस के पोलीस स्टेशन का नंबर शो हो रहा था।

ज़ाहिद ने फ़ोन का जवाब दिया तो उस को ख़बर मिली कि उस के एरिया में एक क़तल हो गया है।

पोलीस स्टेशन का इंचार्ज होने की वज़ह से ज़ाहिद का मोका ए-वारदात पर जाना लाज़मी था। इसीलिए ज़ाहिद को ना चाहते हुए भी नीलोफर के घर से जाना पड़ गया।

ज़ाहिद के घर से जाने के बाद जमशेद नीलोफर को ले कर उस के कमरे में चला आया और अपने और अपनी बहन के कपड़े उतार कर नीलोफर को उस के सुहाग के बेड पर ज़ोरदार तरीके से चोदने लगा।

शाज़िया बोझल कदमो के साथ अपने घर लोटी. वह आज पेश आनी वाले सुरते हाल से बहुत ही परेशान और रंजीदा थी।

शाज़िया की खुश किस्मती थी। कि उस की अम्मी उस वक़्त अपने कमरे में बैठी फ़ोन पर किसी से बातों में मसरूफ़ थी।

वरना उस की अम्मी रज़िया बीबी के लिए अपनी बेटी के चेहरे पर मजूद गुस्से, गम और परेशानी का असर पड़ना कोई मुश्किल काम ना होता।और उस के बाद फिर शाज़िया के लिए अपनी अम्मी के सवालों का जवाब देना या उन को टालना भी कोई आसान बात ना होती।

शाज़िया खामोशी से चलती हुई अपने कमरे में घुसी और बिस्तर पर गिरते ही फूट-फूट कर अपने साथ होने वाले वाकये पर ज़रो कतर रोने लगी।

आज का पेश आने वाला वाकीया उस के लिए ना काबले बर्दाश्त था। उस को समझ में नहीं आ रहा था। कि वह आज के बाद अपने सगे भाई का सामना कैसे करे गी।

जो उस का पूरा नंगा जिस्म ना सिर्फ़ देख चुका था। बल्कि वह अपनी चॅट के दौरान उस के बदन की तारीफ के पुल बाँधते हुए अंजाने में अपनी ही सग़ी बहन को अपनी महबूबा बनाने का इरादा ज़ाहिर कर चुका था।

जब कि शाज़िया को इस के साथ-साथ अपने आप से भी घिन आने लगी थी। कि कैसे वह नीलोफर की बातों में आ कर अंजाने में अपने ही सगे बड़े भाई के लंड की दीवानी हो कर उस से चुदवाने पर तूल गई.और फिर उसे मिलने और प्यार करने नीलोफर के घर भी जा पहुँची थी।

दिन भर के सारे वाकीयत को सोच-सोच कर शाज़िया पागल हुई जा रही थी।

सोचते सोचते उस का दिल चाहा कि वह कमरे में लगे पंखे के साथ लटक कर ख़ुद ख़ुशी कर ले।

मगर शाज़िया एक निहायत डरपोक लड़की थी।इसीलिए चाहते हुए भी अपने इस ख़्याल को अमली जामा पहनाने की उस में हिम्मत नहीं हुईl

फिर कब वह रोते-रोते सो गई ये उस को ख़ुद भी पता ना चला।

रात के तकरीबन 8 बजे उस की अम्मी ने आ कर उसे उठाया। तो वह अम्मी से अपनी तबीयत का बहाना बना कर बिस्तर पर ही पड़ी रही।

रज़िया बीबी समझी कि उस की बेटी शायद स्कूल में मसरूफ़ियत की वज़ह से थक गई है। इसीलिए शाज़िया की अम्मी ने भी उसे ज़्यादा तंग ना किया और उस का खाना कमरे में ही रख कर ख़ुद बाहर टीवी लाउन्ज में चली गईं।

शाज़िया के दिल की तरह उस की भूक भी आज जैसे उड़ चुकी थी। इसीलिए उस ने पास रखे खाने को नज़र उठा कर भी ना देखा और गुम सूम पड़ी कमरे की छत (रूफ) को घूरती रही।

फिर जब उस का ज़हन सोच-सोच कर थक गया। तो वह दुबारा से नींद की वादी में डूब गईl

उस रात हस्बे मामूल ज़ाहिद अपनी ड्यूटी से लेट वापिस आया। तो उस वक़्त तक उस की अम्मी और शाज़िया दोनों अपने कमरे में सो चुकी थी।

ज़ाहिद ने दिल ही दिल में सुख का सांस लिया।क्यों कि आज दिन में पेश आने वाले वाकिये के बाद अभी उस में भी अपनी बहन का सामना करने का होसला नहीं पैदा हुआ था।

फिर ज़ाहिद भी अपने कमरे में चला आया और बिस्तर पर लेट कर अपनी बहन शाज़िया के बारे में सोचने लगा।

शाज़िया के बारे में सोचते-सोचते ज़ाहिद के ज़हन में वह मंज़र याद आने लगा। जब उसने पिंडी से वापिसी पर पहली बार अपनी बहन को उस के कमरे में सोता देखा था और अपनी बहन शाज़िया की मोटी भारी गान्ड को देख कर उस का दीवाना हो गया था।

फिर एक-एक कर के वह सारे मंज़र ज़ाहिद के दिमाग़ में एक फ़िल्म की तरह चलने लगे।

जब उस ने पिछले चन्द दिनो में किसी ना किसी सेक्सी पोज़ में अपनी सग़ी बहन के गरम बदन का नज़ारा किया था।

इस के साथ-साथ जब ज़ाहिद नीलोफर की दिखाई हुई शाज़िया की नंगी तस्वीरो और अपनी बहन की चूत के नमकीन पानी के जायके को ज़हन में लाया। तो अपनी बहन के नंगे वजूद को याद करते हुए ज़ाहिद तो जैसे पागल हो गया।

शाज़िया के मुतलक सोचते-सोचते ज़ाहिद को यक़ीन हो गया कि।उस की अपनी सग़ी बहन ही वह औरत है। जिस औरत की तलाश में उस का लंड मारा-मारा फिरता हुआ कई औरतों की फुद्दियो की सैर करता रहा है।

जिस औरत को वह आज तक बाहर की दुनिया में तलाश करता रहा।वो औरत तो उस की बहन के रूप में उस के अपने घर में छुपी हुई है।

और उस ने अपने दिल में ये फ़ैसला कर लिया कि अब कुछ भी हो। वह भी जमशेद की तरह अब अपनी सब शर्मो हया को एक तरफ़ रखते हुए.जल्द आज़ जल्द अपनी बहन को अपने बिस्तर की ज़ीनत बना कर उस की चूत का मज़ा ज़रूर लेगा।

क्यों कि बकॉल एक पंजाबी के शायर के,

" अन पग इशक दी भादी नईl

जीने बहन बना के याडी नई" ।

(उस शक्स का इश्क़ उस वक़्त तक मुकम्मल नहीं होता। जब तक वह किसी लड़की को अपनी बहन कह कर ना चोद ले)

फिर शाजिया के बारे में ही सोचते और अपने लंड से खेलते खेलती ज़ाहिद भी आख़िर कार सो गया।

दूसरे दिन सुबह सवेरे ज़ाहिद तैयार हो कर पोलीस स्टेशन जाने के लिए अपने कमरे से निकला। तो उस ने अपनी बहन शाज़िया को किचन में अम्मी के साथ नाश्ते बनाते देखा।

शाज़िया से कल नीलोफर के घर की मुलाकात के बाद दोनों बहन भाई के अपने घर में ये पहला आमना सामना हुआ था।

अपनी बहन को किचन में अपनी अम्मी के साथ क़ायम करते देख कर ज़ाहिद के दिल के साथ-साथ उस के लंड की धड़कन भी तेज हो गईl

जब कि ज़ाहिद ज्यों ही किचन में दाखिल हुआ। तो अपने भाई ज़ाहिद को आता देख कर शाज़िया के भी पसीने छूटने लगे।

कल के वाकई के बाद उस में अभी भी अपने भाई से नज़रें मिलाने की हिम्मत ना हुईl

ज्यों ही ज़ाहिद शाज़िया और अपनी अम्मी के नज़दीक पहुँचा तो शाज़िया ने एक दम से अम्मी की तरफ़ ध्यान देते हुए कहा "अम्मी भाई आ गये हैं आप इन के साथ बैठ कर नाश्ता कर लो"।

ये कहते हुए अपनी नज़रें झुका कर शाज़िया किचन में रखे हुए टेबल पर चाइ और नाश्ता रखने लगी।

रज़िया बीबी: शाज़िया बेटी आओ तुम भी हमारे साथ बैठ कर नाश्ता कर लो ना।

"नही अम्मी में चाइ के साथ रस खा चुकी हूँ, आप नाश्ता करें में थोड़ी देर में आती हूँ" शाज़िया अपने भाई के सामने मज़ीद रुकना नहीं चाहती थी। इसीलिए वह बहाना बना कर अपने कमरे में चली गईl

ज़ाहिद कुर्सी पर बैठ कर गान्ड मटकाती हुई अपनी बहन शाज़िया को किचन से बाहर जाता देख कर उस के भारी कुल्हों की पहाड़ियों में खो गया।

शाज़िया के जाने के बाद ज़ाहिद ने अपनी अम्मी के साथ मिल कर नाश्ता किया और फिर अपनी ड्यूटी पर चला गया।

कमरे में पहुँच कर शाज़िया ने अपनी बिखरी सांसो को संभाला और अपना फ़ोन उठा कर अपने स्कूल के प्रिन्सिपल से फ़ोन पर तीन दिन की छुट्टी की रिक्वेस्ट की। जिस को प्रिन्सिपल ने मंज़ूर कर लिया।

उस रोज़ वाले वाकिये की वज़ह से आज शाज़िया का अपने स्कूल जाने और अपनी सहेली नीलोफर से मिलने को दिल नहीं कर रहा था। इसीलिए उस ने स्कूल से तीन दिन की ऑफ ले कर घर रहना ही मुनासिब समझा।

उस दिन जब नीलोफर ने अपनी सुजकी वॅन में शाज़िया को ना देखा। तो वह समझ गई कि आज शाज़िया ने आज स्कूल से छुट्टी मारी है।

नीलोफर ने स्कूल पहुँच कर शाज़िया को फ़ोन मिलाया। तो अपने कमरे में बैठी शाज़िया ने नीलोफर का नंबर देख कर नफ़रत से फ़ोन पर थुका, मगर फ़ोन का जवाब नहीं दिया।

फोन की बजती बेल की आवाज़ सुन कर नीलोफर को अंदाज़ा हो गया कि शाज़िया जान बूझ उस का फ़ोन अटेंड नहीं कर रही। नीलोफर समझ गई कि शाज़िया अभी तक उस की हरकत पर उस से नाराज़ है।

"कोई बात नहीं मुझे शाज़िया को एक दो दिन का वक़्त देना चाहिए, ता कि उसे आराम और सकून से इस सारे मामले पर ग़ौर करने का वक़्त मिल सके" नीलोफर ने अपने आप से कहते हुए फ़ोन की लाइन काट दी।

अगले दो दिन शाज़िया ने अपने घर में और ज़्यादा तर अपने कमरे में ही रह कर गुज़ारे और अपने और अपने भाई ज़ाहिद के दरमियाँ होने वाले सारे किससे के मुतलक सोचती और दिल ही दिल में कुढती और रंजीदा होती रही।

घर में रहने के दौरान उस ने पूरी कोशिस रही। कि उस का अपने भाई ज़ाहिद से आमना सामना नहीं हो पाएl

इसीलिए जब भी ज़ाहिद घर आता। तो शाज़िया अपने आप को अपने कमरे तक सीमित कर लेती।

जब कि इन दो दिनो में ज़ाहिद की ये कोशिस रही। कि वह किसी तरह मोका देख कर शाज़िया से एक दफ़ा बात तो कर के देखे।

मगर शोमी क़िस्मत कि जब भी वह नोकरी से घर आया उस ने अपनी अम्मी को घर में ही मौजूद पाया। जिस वज़ह से ज़ाहिद को अपनी बहन शाज़िया से कोई बात करने का मोका ना मिला पाया।

इस दौरान उस ने नीलोफर से भी पूछा कि उस का रब्ता शाज़िया से हुआ ही कि नही। तो नीलोफर का जवाब भी नहीं में था।

ज़ाहिद ने अपने पोलीस स्टेशन और रात को अपने कमरे से ख़ुद भी शाज़िया के दोनों नंबर्स पर कॉल करने की ट्राइ की। मगर उसे अपनी बहन शाज़िया के दोनों नंबर्स हमेशा बंद ही मिले।

पोलीस वालों की नोकरी भी अजीब होती है। कभी-कभी किसी बेगुनाह आदमी को पोलीस इनकाउंटर में मार दो तो भी कुछ नहीं होता और कभी सही काम करने पर भी सस्पेंड हो जाते हैं।

अपने बाक़ी जाती भाइयो (पोलीस कॉलीग्स) की मुक़ाबले ज़ाहिद इस मामले में खुशकिस्मत था।कि अपनी नोकरी के दौरान वह अभी तक किसी केस में सस्पेंड नहीं हुआ था।

उस की वज़ह ये थी कि वह अपने हर बड़े ऑफीसर से हमेशा बना कर रखता था।

मगर कहते हैं ना कि बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी। बिल्कुल इसी तरह शाज़िया वाले वाकये के तीसरे दिन जब ज़ाहिद दोपहर को अपने पोलीस स्टेशन गया। तो उस को पता चला कि एक केस की ग़लत इंक्वाइरी करने की वज़ह से एसपी साब ने उस को चार दिन के लिए सस्पेंड कर दिया है।

ज़ाहिद ये सज़ा पा कर बहुत खुश हुआ। कि चलो इस बहाने उस को अपने घर में आराम करने और अपनी बहन के नज़दीक आने का टाइम और मोका तो मिल पाए गा।

वरना 24 घंटे और 7 दिन की पोलीस ड्यूटी के दौरान ज़ाहिद को अपने घर में रहने का टाइम कम ही मिल पाता था।

उस दिन दोपहर में खलफ़े मामूल ज़ाहिद दिन के तकरीबन 4 बजे अपने घर चला आया। उस वक़्त ज़ाहिद ने अपनी पोलीस यूनिफॉर्म की बजाय शलवार कमीज़ पहनी हुई थी।

जब ज़ाहिद घर में दाखिल होने लगा। तो उस ने अपनी अम्मी को घर से बाहर निकलते देखा।

"बेटा आज जल्दी घर चले आए, ख़ैरियत तो है ना" रज़िया बीबी ने घर से बाहर आते हुए अपने बेटे ज़ाहिद को देखा तो पूछने लगी।

"हाँ अम्मी जी ख़ैरियत ही है, आप किधर जा रही हैं?" ज़ाहिद ने अपनी अम्मी के सवाल का जवाब देते हुए, उन से सवाल पूछा।

"बेटा में इधर मोहल्ले में ही किसी के घर जा रही हूँ, तुम चलो में अभी थोड़ी देर में आई" कहते हुए रज़िया बीबी चली गई.

जब ज़ाहिद घर में एंटर हुआ। तो उस ने अपनी बहन शाज़िया को ड्राइंग रूम के सोफे पर बैठे हुए पाया।

शाज़िया सोफे पर अपनी राइट टाँग को अपनी लेफ्ट टाँग पर रख कर इस अदा से बैठी हुई थी। कि ड्राइंग रूम में दाखिल होते ज़ाहिद को राइट साइड अपनी बहन की मोटी रान और उस की भारी और बड़ी गान्ड का भरपूर नज़ारा देखने को मिल गया।

शाज़िया ताज़ा-ताज़ा नहा कर बाथरूम से निकली थी। जिस वज़ह से उस के सारे बाल अभी तक गीले थे।

शाज़िया का खिला-खिला और धुला-धुला चेहरा और गीला महकता जिस्म। जिस की मदहोश करने वाली महेक किसी भी मर्द के होश उड़ा कर रख दे।

दुपट्टे के बगैर उस की कमीज़ में कसे हुए शाज़िया के मोटे और भारी मम्मे दूर से सॉफ नज़र आ रहे थे।और फिर ऊपर से शाज़िया की गान्ड का "फेलाव" उफफफफफफ्फ़ क्या ही उम्दा जिस्म था शाज़िया का।

ताज़ा ताज़ा नहा कर निकलने से शाज़िया की कमीज़ उस के जिस्म से चिपक रही थी और उस के गीले बाल उस वक़्त शाज़िया के हुश्न में इज़ाफ़ा कर रहे थे।

ज़ाहिद दरवाज़े पर ही खड़ा हो कर अपनी बहन के जवान प्यासे जिस्म का जायज़ा लेने लगा था।

बहन के गरम और प्यासे बदन को देख-देख कर उस का लंड उस की शलवार में तन कर खड़ा हो गया।

अम्मी की गैर मौजूदगी में ज़ाहिद के लिए आज एक बहुत ही अच्छा मोका था। कि वह अपनी बहन से अब अपने दिल की बात कह सकेl

इसीलिए ज़ाहिद आहिस्ता से चलता हुआ आ कर अपनी बहन के साथ सोफे पर बैठ गया।

अपने भाई के यूँ पास बैठने से शाज़िया तो जैसे शर्म से अपने ही अंदर सिमट कर रह गईl

ज़ाहिद ज्यों ही सोफे पर बैठा तो शाज़िया एक दम से उठी और अपने कमरे में जाने लगी।

ज़ाहिद अपना शिकार हाथ से निकलता देख कर एक दम शाजिया के पीछे भागा और शाज़िया को पीछे से पकड़ कर उसे ड्राइंग रूम की दीवार से लगा दिया।

ज़ाहिद: शाज़िया में तुम से कुछ कहना चाहता हूँ।

"छोड़ो भाई अब हमारे दरमियाँ कहने को कुछ बाक़ी नहीं रहा" शाज़िया ने ज़ाहिद को अपने आप से अल्हेदा करने की कोशिस की।

"हमारी कहानी तो अभी शुरू हुई है मेरी बहन" ज़ाहिद ने शाज़िया के दोनों कंधो को मज़बूती से अपने हाथों में जकड़ते हुए कहा।

"किया मतलब आप का" शाज़िया ने अपने भाई के इस जवाब पर हेरत से उस की आँखों में देखते हुए पूछा?

"मातब ये कि शाजिया इस से पहले हमारे दरमियाँ जो कुछ हुआ वह सब अंजाने में हुआ। नीलोफर ने बे शक गुस्से में आ कर मुझ से बदला लेने के लिए हम दोनों बहन भाई से ये सब ड्रामा रचाया। मगर सच पूछो तो इस सारे खेल में, अंजाने में तुम को मिले बिना ही, में अपना दिल तुम को दे बैठा था, मुझे पता है कि मेरी ये बात तुम को बुरी लगेगी।मगर ये हक़ीकत है कि जब से मुझे पता चला है कि मेरे सपनो की रानी कोई आम औरत नही। बल्कि मेरी अपनी सग़ी बहन है। तो यक़ीन मानो मेरा ये इश्क़ तुम से कम होने की बजाय पहले से भी बढ़ गया है।" आइ लव यू शाज़िया, नोट ऐज बहन, बट ऐज आ मॅन लव्स आ विमन" ।

अपनी बहन से पहली बार अपने दिल की बात कहते हुए अगले ही लम्हे ज़ाहिद के होन्ट सीधे शाज़िया के होंटो की तरफ़ बढ़ाएl

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