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CHAPTER 6-पांचवा दिन
तैयारी-
परिधान'
Update-23
पैंटी की समस्या
दोनो मर्द मेरी साड़ी से ढकी हुई गांड की तरफ़ देखने लगे। लेकिन मेरा मुँह उनकी तरफ़ था इसलिए उन्हे ठीक से नहीं दिखा।
गोपालजी--मैडम, थोड़ा पीछे को घूम सकती हो? हमें देखना है कि आपकी पैंटी में कितना कपड़ा और लगाने की ज़रूरत है ताकि ये ठीक से ढके और बीच में ना सिकुड़े।
"लेकिन...मेरा मतलबl "
गोपालजी--मैडम, आप हिचकिचा क्यों रही हो? आपको कुछ नहीं करना है, बस पीछे मुड़ जाओ.
मैं कुछ कर पाती इसे पहले ही उस टेलर ने अपने सवाल से मुझे चित्त कर दिया।
गोपालजी--मैडम, अभी आपने पैंटी पहनी है?
"क्या?"
गोपालजी--मेरा मतलब, अभी आप टॉयलेट गयी थी तो हो सकता है कि आपने उतार दी हो।इसलिए मैं पूछ रहा हूँ।
जाहिर था कि ऐसे सवाल से मैं इरिटेट हो गयी थी। मैंने फ़र्श की तरफ़ देखा और हाँ में सर हिला दिया। मुझे एक मर्द के सामने ऐसे सवाल का जवाब देते हुए इतनी शरम आई की मन हुआ दौड़कर कमरे से बाहर चली जाऊँ।
"नही, लेकिन!"
गोपालजी--नहीं? आपने नीचे कुछ नहीं पहना है?
"ओह...नही नही। मैंने पहनी है।"
गोपालजी--आपने कहा नही। चलो बढ़िया।
वो बातें करते हुए मेरी जवानी को देख रहा था। मैंने आश्चर्य से गोपालजी को देखा। मैंने पैंटी पहनी है तो इसमें बढ़िया क्या है, मुझे समझ नहीं आया।
गोपालजी--मैडम मैं अभी चेक करता हूँ। आपको फिर कभी पैंटी की समस्या नहीं होगी। प्लीज़ एक बार पीछे को मुड़ो।
मैं उलझन में थी। अब ये क्या करनेवाला है? ये कैसे चेक करेगा? मेरी पैंटी मेरी बड़ी गांड को कितना ढकती है ये चर्चा का विषय था पर क्या गोपालजी मेरी साड़ी को कमर तक उठाकर ये चेक करेगा?
हे भगवान। ऐसा नहीं हो सकता ।
क्या वह मेरी साड़ी के अंदर हाथ डालकर ये चेक करेगा? मेरे होंठ सूखने लगे थे और मुझे बहुत फिकर होने लगी थी।
खुशकिस्मती से ऐसा कुछ नहीं हुआ पर मेरे पति से फ़ोन पर बात करने से जो ख़ुशी मुझे मिली थी वह अब गायब होने लगी थी क्यूंकी मुझे डर सताने लगा था कि टेलर फिर से मेरे साथ छेड़छाड़ करेगा।
गोपालजी--मैडम, जो समस्या आप बता रही हो, वह अभी इस समय भी हो रही है?
"नही नही, अभी तो बिल्कुल ठीक है।"
मैंने कमज़ोर-सी आवाज़ में जवाब दिया।
गोपालजी--हुह! आपके कहने का मतलब है कि आपकी पैंटी पूरी ढकी हुई है! आपकी गांड को?
मैं उन दोनों टेलर्स के मुँह से बार-बार गांड शब्द सुनकर अजीब महसूस कर रही थी लेकिन मुझे अंदाज़ा था कि ये लोवर क्लास के आदमी हैं और ऐसे शब्दों का प्रयोग बोलचाल में करते हैं।
"हाँ, मुझे ठीक लग रहा हैl"
गोपालजी--लेकिन मैडम, अभी तो आपने बताया था कि पहनने के कुछ समय बाद पैंटी नितंबों से खिसकने लगती है, है ना?
"हाँ लेकिन! "
मेरे अंतर्वस्त्र के बारे में ऐसे डाइरेक्ट सवालों से मैं हकलाने लगी थी ।
दीपू--गोपालजी, मेरे ख़्याल से मैडम के कहने का मतलब है कि पैंटी पहनने के कुछ समय बाद, अगर वह चलती है या कोई काम करती है तो उसे समस्या होने लगती है। सही कह रहा हूँ मैडम?
"हाँ, हाँ। बिल्कुल यही मेरे कहने का मतलब था।"
गोपालजी--अच्छा। चूँकि आप इस कमरे में ज़्यादा हिली डुली नहीं हो तो आपको अभी पैंटी की समस्या नहीं है। मैडम ये बताओ की क्या पैंटी आपकी दरार में पूरी घुस जाती है ।मेरा मतलब गांड की दरार में?
अब तो मुझे टोकना ही था। अब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
"क्या मतलब है आपका? ये कैसा सवाल है?"
गोपालजी--मैडम, मैडम, प्लीज़ बुरा ना मानो। मुझे मालूम है कि ये अंतरंग क़िस्म के सवाल हैं और आपको जवाब देने में शरम महसूस हो रही है। लेकिन अगर आप पूरी डिटेल नहीं बताओगी तो मैं समस्या को हल कैसे करूँगा?
दीपू--मैडम, गोपालजी आपके डॉक्टर की तरह हैं। आपके ड्रेस डॉक्टर।
कमरे में कुछ देर चुप्पी छाई रही। दीपू और गोपालजी मुझे देख रहे थे और मैं अपने सूखे हुए होठों को गीला करके उन दोनों मर्दों के सामने अपने कॉन्फिडेंस को वापस लाने की कोशिश कर रही थी।
गोपालजी--हाँ, हाँ। मैडम, आप अपने डॉक्टर को अंतरंग बातें बताती हो की नहीं?
मुझे जवाब में सर हिलाना पड़ा।
गोपालजी--ये भी उसी तरह है। मैडम हिचकिचाओ नही। मुझे बताओ की पैंटी पूरी तरह से नितंबों से फिसलकर आपकी गांड की दरार में घुस जाती है? मेरा मतलब दोनों तरफ़ से? क्या आप इसको चेक करती हो?
मेरा चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया था। मेरे कान गरम होने लगे थे और मेरी साँसे तेज हो गयी थी। मेरा वर्बल ह्युमिलिएशन हो रहा था और मुझे लग रहा था कि मैं फँस चुकी हूँ। मैं उनसे बहस कर सकती थी लेकिन इससे आश्रम के और लोग भी वहाँ आ सकते थे। सभी के सामने तमाशा होने से मैं बचना चाहती थी। इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा और अपने ह्युमिलिएशन को सहन कर लिया क्यूंकी जो भी हो रहा था वह इस बंद कमरे से बाहर नहीं जाएगा।
कहानी जारी रहेगी