औलाद की चाह 075

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अंतर्वस्त्र-पैंटी​.
1.4k words
3.5
176
00

Part 76 of the 281 part series

Updated 04/26/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 6-पांचवा दिन

तैयारी-

परिधान'

Update-22

अंतर्वस्त्र-पैंटी​

कमरे में आते समय मैं ख्यालों में खोई हुई थी और मुझे ध्यान ही नहीं रहा की मेरा पल्लू ब्लाउज के ऊपर से खिसक गया है। जैसे ही मेरी नज़रें दीपू से मिली तो मैंने उसे अपनी चूचियों को ताकते पाया। तुरंत मैंने अपने पल्लू को ठीक किया और अपने ख़ज़ाने को ढक लिया। मेरी साँसे अभी भी तेज चल रही थी और इससे चूचियाँ तेज़ी से ऊपर नीचे गिर रही थी।

दीपू--मैडम, वह तो आपको बहुत मिस कर रहे होंगे।

दीपू शरारत से मुस्कुराया। मैं उसका इशारा समझ रही थी।

गोपाल टेलर--तब तो उनसे बात करके आपको ताज़गी महसूस हो रही होगी।

"बिल्कुल। ऐसा लग रहा था कि ना जाने कितने लंबे समय से मैंने अनिल से बात नहीं की है।"

गोपाल टेलर--मैडम, काम शुरू करें फिर?

"हाँ ज़रूर। अब क्या बचा है?"

मैं अभी भी अनिल के ख्यालों में खोई हुई थी और टेलर की बातों में ध्यान नहीं दे रही थी। मेरे पति की प्यार भरी अंतरंग बातों से मुझमें मस्ती छाई हुई थी। गोपालजी अनुभवी आदमी था और शायद उसने मेरी भावनाओ को समझ लिया।

गोपाल टेलर--मैडम, मुझे आपके अंतर्वस्त्र भी तो सिलने हैं क्यूंकी महायज्ञ में आप अपने अंतर्वस्त्र नहीं पहन सकती।

"ओह! हाँ ।"

तभी मुझे कुछ याद आया।

"गोपालजी आपको मैंने अपनी एक पुरानी समस्या बताई थी, उसे भी ज़रूर ठीक कर देना। आपको याद है?"

गोपालजी--हाँ मैडम, आपकी पैंटी की समस्या। मैं उसको भी ज़रूर ठीक कर दूँगा। मैं आपके लिए कुछ और पैंटीज भी सिल दूँगा जिनको आप अपने घर वापस जाकर यूज कर सकती हो।

मैं मुस्कुरायी और हाँ में सर हिला दिया।

"गोपालजी आपका शुक्रिया। मैं काफ़ी समय से इस समस्या से परेशान हूँ।"

गोपालजी--मैडम, अपने कस्टमर्स की परेशानियों को हल करना ही मेरा काम है, है कि नहीं?

हम दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए. अपने पति से बात करके मैं बहुत हल्का महसूस कर रही थी।

गोपालजी--मैडम, आपकी समस्या ये है कि कुछ समय बाद आपकी पैंटी बीच की तरफ़ सिकुड़ने लगती है। यही है ना?

"हाँ, यही है।"

उस समय मेरा मन ऐसा हल्का हो रखा था कि अपने टेलर से पैंटी की बात करते हुए मुझे बिल्कुल भी शरम नहीं आ रही थी।

गोपालजी--मैडम, जैसा की मैंने आपको बताया था कि आपको नॉर्मल की बजाय मेगा साइज़ की पैंटी पहननी है। इसलिए अब जब भी आप शॉपिंग करने जाओगी तो डेसी मेगा ही लेना।

मैंने बेशर्मी से उसके इस सुझाव पर सर हिलाया।

"हाँ, अब मैं वही लूँगी।"

गोपालजी--मैडम, अगर एक मुझे मिल जाती तो ।

मुझे समझ नहीं आया की गोपालजी क्या मांग रहा है और मैं एक बेवकूफी भरा सवाल कर बैठी।

"क्या मिल जाती?"

गोपालजी--मैडम, कोई एक्सट्रा पैंटी हो तो ।

"अरे...अच्छा। एक मिनट ।"

मैं जल्दी से अलमारी की तरफ़ गयी और एक पैंटी निकालकर टेलर को दे दी।

गोपालजी--शुक्रिया मैडम।

दीपू अब नज़दीक़ आ गया शायद मेरी पैंटी देखने के लिए.

गोपालजी--मैडम देखो, आपकी समस्या का मुख्य कारण।

ऐसा कहते हुए गोपालजी ने पैंटी के एलास्टिक को खींचा और पैंटी के पीछे का हिस्सा मुझे दिखाया। अब मुझे असहज महसूस होने लगा।

गोपालजी--देखो मैडम, यहाँ पर कपड़ा इतना छोटा है कि ये आपके नितंबों को ठीक से नहीं ढक रहा है और एलास्टिक भी बेकार है। ग्रिप ढीली होने से ये आपके नितंबों पर फिसलकर सिकुड जा रही है।

"अच्छा!"

गोपालजी मेरी पैंटी पकड़कर दिखा रहा था और दीपू ग़ौर से उसे देख रहा था। अब मैं अनकंफर्टेबल फील करने लगी थी।

गोपालजी--देखो मैडम, एलास्टिक इतना ढीला है।

"लेकिन गोपालजी जब मैंने ये खरीदी थी तब ठीक था, कई बार धुलने के बाद एलास्टिक ढीला हो ही जाता है।"

गोपालजी--लेकिन अगर कमर पर ठीक से ग्रिप नहीं बनेगी तो पैंटी अपनी जगह से खिसक जाएगी और आपको समस्या होगी।

"वो तो ठीक है पर धुलने के बाद तो कोई भी पैंटी ढीली हो ही जाएगी।"

गोपालजी--लेकिन मैडम, तब उस पैंटी को फेंक दो और नयी पैंटी यूज करो।

"अगर बार-बार मुझे ऐसे ख़रीदनी पड़ेंगी तब तो मुझे किसी अंडरगार्मेंट वाले से शादी करनी पड़ेगी।"

मेरी बात पर सभी हंस पड़े। कमरे का माहौल हल्का हो जाने से मेरी असहजता भी थोड़ी कम हुई.

दीपू--गोपालजी जो पैंटी आप सिलते हो उसको भी तो कस्टमर्स मैडम के जैसे धोते होंगे। वह कितना चलती हैं?

गोपालजी--दीपू, मैं अच्छी क्वालिटी का एलास्टिक लगाता हूँ और अगर गुनगुने पानी में धोया जाए तो 6 महीने चल जाएँगी।

दीपू--मैं शर्त लगा सकता हूँ की मैडम ठंडे पानी से पैंटी धोती होगी।

मैंने हाँ में सर हिला दिया।

गोपालजी--मैडम, ये भी आपकी समस्या का एक कारण है। आपको अपनी ब्रा भी ठंडे पानी से नहीं धोनी चाहिए.

"ठीक है मैं कोशिश करूँगी पर हर बार गुनगुने पानी से धोना मुश्किल है।"

गोपालजी--मैडम, आप फिकर मत करो। मैं आपकी समस्या ठीक कर दूँगा।

"ठीक है।"

गोपालजी--दीपू क्या तुम बता सकते हो की किसी औरत के लिए पैंटी में बैक कवरेज कितनी होनी चाहिए?

दीपू--मेरे ख़्याल से 50%।

गोपालजी--बिल्कुल सही और मैडम के जैसी बड़े साइज़ वाली के लिए और भी ज़्यादा होना चाहिए. इसके बारे में तुम्हारा क्या ख़्याल है?

गोपालजी ने अपने हाथ में पकड़ी हुई पैंटी की तरफ़ इशारा किया।

दीपू--ये तो पूरी खींचकर भी 25% से ज़्यादा नहीं कवर करेगी। मैडम के तो इतने बड़े हैं ।

गोपालजी--सिर्फ़ 25%?

दीपू--जी मुझे तो यही लगता है।

गोपालजी--दीपू ऐसा कैसे हो सकता है?

दीपू--कपड़ा तो देखिए, ये ज़्यादा खिंचेगा नही।

गोपालजी--हाँ बहुत अच्छी क्वालिटी का नहीं है। फिर भी सिर्फ़ 25%? ये कोई थोंग थोड़े ही है।

थोंग? ये क्या होता है। जो भी हो लेकिन कोई कम कपड़े वाली चीज़ है, मैं सोच रही थी।

दीपू--गोपालजी, मैडम कोई इतनी मॉडर्न थोड़े ही है जो थोंग पहनेगी। ये तो पहली बार इसका नाम सुन रही होगी। हा! हा! हा!

दीपू की हँसी इतनी इरिटेटिंग थी की मैंने अपने दाँत निचले होंठ में गड़ा दिए. लेकिन उसकी बात सही थी की मैं पहली बार थोंग का नाम सुन रही थी।

गोपालजी--हाँ ये तो है। मैडम मेट्रो सिटी में तो रहती नहीं, तो वह कैसे जानेगी।

वो दोनों मुस्कुरा रहे थे।

गोपालजी--मैडम, दीपू ने कहा की आपकी पैंटी नितंबों को सिर्फ़ 25% ढकेगी, इसलिए मैंने थोंग का नाम लिया। मेरा अंदाज़ा है कि आपको नहीं मालूम की थोंग क्या होता है?

मैंने ना में सर हिला दिया।

गोपालजी--मैडम, थोंग पैंटी के जैसा ही होता है पर छोटा होता है। इसमें आगे V शेप में कपड़ा होता है और पीछे से डोरी या थोड़ा-सा कपड़ा होता है। आजकल बड़े शहरों में मॉडर्न लड़कियाँ इसे पहनती हैं।

वो थोड़ा रुका और सीधे मेरी आँखों में देखा।

गोपालजी--मैडम अगर आप साड़ी या सलवार कमीज़ के अंदर थोंग पहनोगी तो कपड़ों के अंदर आपकी पूरी गांड खुली रहेगी। मुझे लगता है पैंटी सिकुड़ने से आपको सेम वही फीलिंग आती होगी।

उस टेलर की विस्तार से कही बातों से मेरा चेहरा लाल होने लगा था और अब मैं इस बात को समाप्त करना चाहती थी।

"हम्म्म!"

गोपालजी--मैडम, सही कहा ना मैंने?

"हाँ!"

मेरे पास उसकी बात सुनने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

दीपू--गोपालजी अगर मैडम थोंग पहने तो क्या नज़ारा होगा।

गोपालजी--क्यूँ?

दीपू--मैडम की गांड देखो। कितनी बड़ी है, बिल्कुल गोल और बहुत मांसल है।

गोपालजी--हे...हे।ये तो सही है। मैडम, दीपू ग़लत नहीं कह रहा है।

"गोपालजी, काम पर लौटें?"

गोपालजी--जी जी मैडम। फालतू की बातें हो गयी।

दीपू--गोपालजी एक काम करो।

गोपालजी--क्या?

दीपू--मैडम की पैंटी ऐसे पकड़ो फिर मेरी बात समझ में आ जाएगी।

गोपालजी--देखते हैं।

गोपालजी ने मेरी पैंटी को एलास्टिक से पकड़कर अपने चेहरे के आगे पकड़ा और दीपू ने उसके कपड़े को दोनों हाथों से खींचा और दिखाया की मेरी बड़ी गांड को ये कितना ढकेगी।

मैं हैरान थी की ये दोनों कर क्या रहे हैं। इतने आराम से मेरी पैंटी के बारे में बातें कर रहे हैं और वह भी मेरे सामने। चीज़ें मेरे काबू से बाहर होते जा रही थी पर मैं कुछ नहीं कर सकती थी।

दीपू--देखो गोपालजी. सिर्फ़ इतना खिंच रहा है और मैडम की गांड देखो ।

दोनो मर्द मेरी साड़ी से ढकी हुई गांड की तरफ़ देखने लगे। लेकिन मेरा मुँह उनकी तरफ़ था इसलिए उन्हे ठीक से नहीं दिखा।

गोपालजी--मैडम, थोड़ा पीछे को घूम सकती हो? हमें देखना है कि आपकी पैंटी में कितना कपड़ा और लगाने की ज़रूरत है ताकि ये ठीक से ढके और बीच में ना सिकुड़े।

"लेकिन...मेरा मतलब।"

गोपालजी--मैडम, आप हिचकिचा क्यों रही हो? आपको कुछ नहीं करना है, बस पीछे मुड़ जाओ.

मैं कुछ कर पाती इसे पहले ही उस टेलर ने अपने सवाल से मुझे चित्त कर दिया।

गोपालजी--मैडम, अभी आपने पैंटी पहनी है?

"क्या?"

गोपालजी--मेरा मतलब, अभी आप टॉयलेट गयी थी तो हो सकता है कि आपने उतार दी हो । इसलिए मैं पूछ रहा हूँ।

जाहिर था कि ऐसे सवाल से मैं इरिटेट हो गयी थी। मैंने फ़र्श की तरफ़ देखा और हाँ में सर हिला दिया। मुझे एक मर्द के सामने ऐसे सवाल का जवाब देते हुए इतनी शरम आई की मन हुआ दौड़कर कमरे से बाहर चली जाऊँ।

"नही, लेकिन।"

कहानी जारी रहेगी

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