ससुर को अपने जाल में फ़साया

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ससुर को अपने जाल में फ़साया.
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ससुर को अपने जाल में फ़साया

नमस्कार दोस्तों, मैं आपका दोस्त मानस और एक नए कहानी के साथ पेश हूँ पर इस बार ये कहानी होगी किसी औरत के जुबानी. नाम पूजा है पर इसके बड़े बड़े कारनामे सुनके आप ख़ुद इसकी पूजा करने लगोगे. तो सुनिए पूजा की कहानी, उसके ज़ुबानी...

हाय फ्रेंड्स, मैं पूजा ३८ साल की शादीशुदा औरत हूँ और पति मनोज, दो बेटे और मेरे ससुरजी के साथ मध्यप्रदेश के एक नामचीन शहर में रहती हूँ. पिताजी के तंग हालातों के कारन मेरा विवाह जल्दी हुवा था पर मैं मनोज से हुए शादी से पूरी तरह से खुश थी. प्यार करनेवाला पति, खुद के बेटी की तरह लगाव से संभालनेवाले सास-ससुर पाकर मेरी जिंदगी धन्य हो चुकी थी और इसी के चलते एक के बाद एक मेरे दोनों संतानों ने हमारी जिंदगी और खुशियों से भर दी. शादी के बाद मनोज ने भी मेरे जवान और गदराये हुए बदन का भरपूर मज़ा लिया, मेरे कौमार्य को उनको सौंप के मैंने भी उनको ख़ुश कर दिया.

पति मनोज तो रोज मेरे ऊपर किसी सांड की तरह चढ़ जाते, मुझे पूरी नंगी करके अपना मुसल लौड़ा मेरे चुत में घुसाके के लंबे समय तक मेरी चुदाई करते. ऐसे प्यार से एक के बाद एक मैं दो बच्चों की माँ कब बन गयी ये पता ही नहीं चला और मैं भी उनकी परवरिश में पति से दूर होती चली गयी. अचानक चार साल पहले मेरे सास का देहांत हो गया और तबसे पता नहीं क्यों जैसे मेरे खुशियों को किसी की नजर लग गयी. पति मनोज को अचानक से दारु की ऐसे लत लगी की उनका धंदा भी मुश्किल से चलने लगा, ज़्यादा शराब के सेवन से उनकी तबियत भी नरम नरम रहने लगी.

पहले तो मुझे लगा की ये सब कुछ दिनों के दिमाखि तनाव के कारन हुवा है पर जैसे जैसे हमारे हालात सुधरने लगे तो पतिदेव का पीना और बढ़ गया. अब तो रोज रात को कोई न कोई उनको घर छोड़के जाता क्यूंकि शराब के नशे में इनको घर आने का भी होश नहीं रहता. कभी ना कभी हालत सुधर जायेंगे ये सोचकर मैंने अपने दिल को तस्सली दी और दोनों बच्चों की परवरिश पर ध्यान देने लगी. जो बंदा रोज रात मुझे नंगी करके मेरे जवानी को खुले सांड की तरह नोच देता, मेरे चुत के रास निचोड़ निचोड़ के पि जाता आज वही आदमी मेरे जिंदगी से कही दूर चला गया था. देखते देखते समय गुजरता चला गया, ८ साल का बेटा और ५ साल की दोनों ही पाठशाला जाने लगे थे.

मनोज के पिताजी हरिया ने भी उसको बहोत समझाने की कोशिश की पर शराब के आगे उसको ना अपने बाप की पड़ी थी और ना मेरी. जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हाय वैसे वैसे मुझे समय भी ज़्यादा मिलने लगा, घर के सारे काम निबटाने के बाद मैं पूरा दिन यूँही ख़ाली बैठी रहती. एक दिन ऐसे ही पड़ोसी औरतों के साथ गप्पे लड़ा रही थी तो पड़ोसी मिश्रा जी की बीवी कुछ लंगड़ाके चल के आती हुई दिखी. मुझे अचंबा हुवा की ये हस क्यों रही जबकि बेचारी दर्द से लंगड़ाके चल रही है, तभी कमला के बोलने से पता चला की मिश्रा जी ने उनके लुगाई की कल रात बहोत जमके ली है.

कमला(जोर जोर से हसते हुए): हाय दैया, क्या हुवा मिश्राइन? लगता है भैयाजी ने कल जमके कब्बड़ी खेली है मेरे बन्नो के साथ?

मिश्राइन भी कहा कम थी, उसने भी बिना किसी लाज शर्म के बोल दिया, "हां हस ले कुत्तिया, तेरा भैयाजी तो एक बार चढ़ गया तो उतरने का नाम नहीं लेता, फाड़ के रख दी कमीने ने कल रात, उफ्फ्फ्फ़ अम्मा अब तक सुजी है कलमुँही"

सबके जोर देने से मिश्राइन ने भी बड़े मज़े ले ले कर अपनी चुदाई का किश सुनाया, उसकी बात सुनके मुझे तो बड़ा दुख हुवा पर मेरी निगोड़ी चुत गरमाने लगी थी. बाकी बची औरतें भी बिच बिच में अपने पतिओं के चुदाई के किस्से कारनामें सुनाती रही. उनकी बातों से मुझे बुरा लगा और मेरे पुराने दिन याद आने लगे की कैसे मनोज मुझे भी किसी बाजारू रंडी की तरह रोज रात को जमके चोद देते थे. उन बेशर्मों से चुदाई के क़िस्से सुन सुन कर मेरी निगोड़ी चुत भी कुलबुलाने लगी, अगर मैं कुछ देर और वह रूकती तो निश्चित मेरा पानी वही निकल जाता.

काम का बहाना बना कर जैसे तैसे मैं वह से निकल गयी और झट से कमरे में आकर अपने कमरे में आकर दरवाजा-खिड़कियां बंद कर के मेरी सारि उतार के फेंक दी. सामने लगे आईने में मेरा गदराया हुवा बदन देख मुझे अपने आप पर गर्व सा महसूस होने लगा, किसी भी मर्द के लौड़े में आग लगाने की ताकत थी मेरे हुस्न में. सीने पे उभरे मेरे ३६ इंच के चूंचे थोड़ी चर्बी से गदराया हुवा पेट और उसके निचे मांसल जाँघे देख मैं अपना सीना सहालने लगी. पुराणी यादों को याद करते करते कब मेरा हाथ मेरा बदन मसलने लगा मुझे भी पता ना चला.

बिस्तर पे अपना बदन डालते ही मेरी आँखे बंद हुई, जिस्म की चुदाई की माँग को बुझाने के लिए मेरी उँगलियाँ ना जाने कब मेरे पेटीकोट का बंधन पार करते हुए मेरे चुत को छूने लगी. एक हाथ से ब्लाउस के ऊपर से ही चूँचियाँ मसलते हुए मैंने मेरी दो उँगलियाँ मेरे भोसड़े में घुसा दी और पुराने दिन याद करते हुए मज़ा लेने लगी. इतने दिनों से जो आग दबा कर रखी थी आज वही आग चुदाई के किस्से सुन सुन कर फ़िरसे भड़क उठी थी. मेरे पति का वो मोटा तगड़ा लौड़ा और उनके चुदाई का मीठा दर्द याद करते हुए मेरी उँगलियाँ मेरे निगोड़ी चुत से जोर जोर से अंदर बाहर होने लगी.

आअह्ह्ह्ह उफ्फफ्फ्फ़ मनोजजज्जजज माँआआआआ जैसे किलकरियाँ मेरे मुँह से निकलने लगी और बड़े दिनों से फड़फड़ाती मेरे चुत का पानी कुछ ही मिनिटों में बाहर फ़वारे की तरह उमड़ने लगा. कई सालो बाद मेरे भोसड़ी का पानी निकलने के कारन मेरा हाथ और मेरा पेटीकोट पूरा गिला हो चूका था. गीली चुत को प्यार से सहलाते हुए मेरी उखड़ी हुई सांसों को काबू करते हुए मैं ऐसे ही छत की तरफ देखते हुए लेती रही.

आँखे बंद करके मैं लेटी हुई थी की तभी मुझे किसी के दरवाज़े के पास आने की आहट हुई, मैंने डरते हुए साड़ी पहन ली और बाल सवांरते हुए कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. पर बाहर तो कोई नहीं था, मुझे लगा शायद मेरा ही भास् होगा और निश्चिंत होकर मैं बाथरूम की तरफ़ बढ़ी. घर पुराना होने के कारण दो मंजिला था, निचे सिर्फ रसोई, डायनिंग टेबल, मेरा और मनोज का कमरा और हॉल बना हुवा था और बाथरूम की व्यवस्था ऊपरी मंजिल पर थी. मेरे कदम जैसे जैसे ऊपर की तरफ़ बढ़ने लगे तो मुझे भी किसी की मादक सिसकियाँ सुनाई देने लगी, चौकन्ना होकर मैं उस आवाज़ की तरफ़ धीरे धीरे चलने लगी.

ससुरजी को आसानी रहे इस लिए बाथरूम उनके कमरे के बिलकुल बग़ल में बनाया गया था, बाथरूम निकलती उन सिसकियों को सुनके मैं चौंक गयी. पहले तो मुझे लगा की शायद ससुरजी बाथरूम में फिसलकर गिर पड़े है इसीलिए उनकी करहाने की आवाजें आ रही है. पर जैसे ही मैंने दरवाज़ा हलके से खोलते हुए अंदर झाँका तो मेरे कदम लड़खड़ाने लगे, डर के मारे पसीने छूटने लगे. मेरे ससुर हरदयाल शर्मा जिनको मैं मेरे पिताजी की तरह मानती थी वो आज पुरे नंगे खड़े होकर अपना लंड हाथ में लेकर जोर जोर से मसल रहे थे, उस लंड का भयंकर रूप देख कर तो मेरी गांड चौड़ी हो गयी.

जैसे तैसे मैंने अपने आपको संभाला और छुपके से उनके उस लिंग को देखने लगी, पर जैसे ही मैं संभली मेरे कानों पर पड़ी उस आवाज़ ने मेरे अंदर एक अजीब सा डर और गुदगुदी होने लगी. हरदयाल शर्मा, मेरे ससुर आज अपने बहु का नाम लेकर, उसको अपने यादों में लिए अपना लंड मसल रहे थे, मेरे बारे में ससुरजी की ये वासना सोचकर ही मुझे मदहोशी होने लगी. आआह्ह्ह्हह्ह पूजाआआ उफ्फफ्फ्फ़ मेरी जानननननन ले मेरा लौड़ा मेरी रंदडीई क्या मस्त चुत है तेरी छिनाल चुद साली कुत्तिया फाड़ दूंगा तेरी चुत बेहेंछोड़ड़ड़ड़ जैसी गन्दी गालियां देकर वो अपने लौड़े को जोर जोर से सड़का मार रहे थे.

मेरे ससुरजी का लौड़ा मनोज से ज्यादा लम्बा और मोटा था, काले रंग में लिपटा वो मांस का टुकड़ा देख के मेरी चुदी-चुदाई चुत भी पिघलने लगी. कुछ ही देर में बाबूजी का समय समाप्तः हुवा और ढेर सारा गाढ़ी मलाई रूपी वीर्य फ़र्श पर उछल उछल कर गिरने लगा. इस उम्र में भारी मात्रा में निकलता हुवा वीर्य देखकर मेरे दिल में उनके लंड ने घर बना लिया, लग रहा की अभी जाऊं और सारा वीर्य चाट लूँ. ससुरजी के माथे पर पसीना छा रहा था, उसकी साँसे भी जोर जोर से चल रही थी वीर्य की एखाद बूंद अब भी सूपड़े से निकल रही थी. उनका फुला हुवा लौड़ा एक इंच भी कमज़ोर नहीं हुवा ये देख के मुझे अंदाजा हो चूका था की आदमी पूरा मर्द है.

मैं चुपचाप वहां से निकल पड़ी और फिर से कमरे में आकर ससुरजी के लौड़े को याद करते हुए साड़ी के ऊपर से ही अपनी चुत मसलने लगी. कुछ देर पहले मैं मेरे पतिदेव मनोज को याद कर रही थी पर अब मेरे सपनों में मेरे ससुरजी का नंगा लौड़ा नाच रहा था. ससुरजी का मर्दाना लौड़ा यद् करके मैं सोच रही ही की मैं खुद उनके लौड़े से चुद रही हूँ और इसी कामुकता के चलते मेरा पानी अबकी बार कुछ ही पलों में निकल कर बहने लगा. मेरा परकर और हाथ फिर से मेरे ही चुतरस से चिपचिपा हो गया पर इस बार मैंने वासनांध होकर मेरे चुतरस से भीगी उंगलिओं को चाटना चालू किया.

मेरा झड़ना और दरवाज़े पर थाप पड़ना एक ही समय हुवा, मैंने घबरा कर जल्दबाज़ी में मेरे कपड़े ठीक किये और बिखरे बालों के साथ दरवाज़ा खोल दी. मेरी हालत देख ससुरजी के चतुर नज़रों ने भांप लिया की मैं कमरे में क्या गुल ख़िला रही थी. मेरी हालत ऐसे क्यों हुई है. ऊपर से निचे तक मुझे घूरते हुए ससुरजी कुटिलता से मुस्कुराने लगे, उनकी नजर मेरे बदन को आँखों से ही चोद रही थी.

हम दोनों की नज़ारे मिली तो उन्होंने ने भी ख़ुलके कहा, "क्या बात है बेटी? ऐसे कमज़ोर क्यों दिखाई दे रही हो, कुछ ज़्यादा ही मेहनत कर ली क्या आज?

ससुर जी की द्विअर्थी बातें सुनकर मैं भी थोड़ी बेशरम हो रही थी, उनकी आँखों में देख कर मैंने भी अपना पल्लू पल्लू जानबूझके सीधा करने के बहाने से अपने चुन्चिओंसे से हटा दिया. ससुरजी की आँखे मेरे उभरे हुए चूँचियों को खा जाने वाली नज़रों से देख रही थी, मेरे गुब्बारें देख उनकी आँखे चमक उठी.

मेरे ३६ इंच के फुले हुए मम्मे दिखाते हुए मैं बोली, "हाँ बाबूजी, आजकल सारा काम मुझे ही करना पड़ता है, आपका बेटा तो अब कुछ करने की हालत में है नहीं तो सबकुछ मुझे ही करना पड़ता है"

मेरे द्विअर्थी बातें सुनकर उन्होंने बिना कोई रोकटोक और शरम के मेरा सीना घूरने लगे, उनके पैजामे का वो भाग सहलाते हुए वो मुस्कुराने लगे. मेरा पसीने से भीगा बदन महकाते हुए, मैंने अपनी सारी को कमर पर बाँध लिया ताकि उनको मेरे अधूरी नंगी कमर और पेट के दर्शन दे सकूँ. मैं किसी बदचलन आवारा रंडी की तरह उनको देख के मुस्कुरा रही थी और हम दोनों बिना कोई बात किये एक दूसरे समझ रहे थे.

मुझे उनके पैजामेको घूरता हुवा देख ससुरजी बोले, "अगर मुझसे कुछ काम बनता हो तो बोल दे बेटी, मैं तो हमेशा तैयार हु तेरी सेवा करने के लिए, अब बेटा नहीं तो ना सही, ससुर तो तेरा अभी जिंदा है."

ससुरजी की बातों से साफ़ पता चल रहा था की वो मुझे अपने लौड़े के निचे लिटाने के लिए व्याकुल हो रहे थे. उन्हें पता चल चुका था की उनके निक्कमे बेटे की पत्नी की जवानी अब उफ़ान पर है और किसी भी लौड़े से चुदवाने के लिए तड़प रही है. शायद ससुरजी ने मुझे चुत मसलते हुए भी देख लिया था और इसीलिए बाथरूम का दरवाज़ा ख़ुला छोड़कर वो जान बुझके जोर जोर से मेरा नाम लेकर सड़का मार रहे थे.ससुरजी की चलाखी देख मैं अंदर से ख़ुश हुई और मैंने भी तय कर लिया की एक ना एक दिन मैं जरूर मेरे ससुर जी लौड़े की शोभा बनूँगी.

उनकी इस चलाखी से मैं भी ख़ुश होकर बोली, "बाबूजी, अब बस आपसे ही उम्मीद है मुझे. आप ही हो, जो मेरा काम कर सकते हो पर जब कोई काम होगा आपके लायक तो जरूर बता दूंगी"

हमारी द्विअर्थी बातें चल ही रही थी की तभी दरवाज़े की घंटी बजी, मैंने घडी की तरफ नजर डाली तो मुझे पता चला की जरूर बच्चे पाठशाला से वापिस आ गए है. मैंने भी ससुरजी को वही अकेला छोड़के दरवाजा खोलने चल पड़ी, मुझे जरूर पता था की बाबूजी मेरे मटकती गांड का नजारा देख कर अपना लंड मसल रहे होंगे. मैने भी जान-बूझकर पलट कर देखा तो सचमुच मेरे ससुर मेरी मटकते गांड को देख के अपना लौड़ा मसल रहे थे, मैं भी मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोलने चली गयी. बच्चों के आने के बाद तो मैं उनके साथ व्यस्त हो गयी, पर मेरे दिमाख में ससुरजी का सुरूर छाया हुवा था.

ससुरजी मुझे और मैं उनको देख के मंद मंद मुस्कुरा देते, साड़ी का पल्लू जान बूझकर गिरा कर मैं उनको मेरे जवान बदन की और खिंच रही थी. बच्चों के साथ ससुरजी भी वही हॉल में बैठे थे, मेरे पल्लू के सरकने से मेरे उन्नत चूँचियों के दर्शन करते हुए वो भी अपना लंड उनके पैजामे के ऊपर से सहला देते. मैंने आज जल्दी ही खाना आज बना दिया, बच्चों को भी जल्दी खाना खिलाकर मैंने और ससुरजी दूसरे को देखते हुए खाना ख़तम किया. रात में नहाने की आदत के कारन मैं नहाने की तैयारी करने लगी, मेरे हाथ में मेरे अंतर्वस्त्र देख कर ससुरजी का मूड बनते दिखाई दे रहा था. उनको भी पता चल चूका था की आज रात उनकी बहु उनके बदन के निचे दबने को तैयार है, जैसे ही मैं ऊपर नहाने जाने लगी तो उन्होंने मुझे घर के देखा और मेरा हाथ पकड़ कर अपने पास खिंच लिया.

ससुरजी ने मुझे दबोच कर कहा, "सब साफ कर लेना बहु, मुझे बाल अच्छे नहीं लगते, मैं तो हमेशा साफ़ रखता हूँ तुमने तो देख ही लिया ना?"

ससुरजी ने पहल करते हुए रात को होनेवाली चुदाई का आगाज़ कर दिया, उनकी बातों से साफ़ पता चला की वो जानबूझके बाथरूम का दरवाज़ा ख़ुला छोड़के सड़का मार रहे थे. मेरी दुधारू चूँचियाँ ससुरजी के चौड़े छाती पर पूरी तरह दब चुकी थी, मेरे दिल में अब एक अजीब सी गुदगुदी हो रही थी पर थोड़ा डर भी था.दूसरे हाथ से उनके चौड़े सीने पर मुक्का मारते हुए मैंने "धत्त" कहा और अपने कपडे समेटते हुए नहाने चली गयी.

दीमाख में में चलते नैतिकता-अनैतिकता, समाज, नारी-लज्ज़ा ससुर-बहु का नाता जैसे लाखों सवाल घर कर रहे थे,पर बदन की प्यास और हवस ने पूरी तरह से मुझे घेर लिया था. इतने सालों से शरीरसूख़ के लिए तरसती नारी का मन आज नैतिकता को मानने के लिए तैयार नहीं था. यही सब सोचते सोचते मैंने ससुरजी के दाढ़ी बनाने के सामान से अपने ऊपर-निचे के सारे बाल सांफ कर दिए. नहाने के बाद मैं ऐसे ही तौलिया लपेटकर बाहर आ गयी, ससुरजी वही हॉल में बैठे बैठ मेरा इन्तजार कर रहे थे. ससुरजी को जवानी का जलवा दिखाते हुए मैं भाग कर मेरे कमरे में आ गयी और आज वही नाइटी पहन ली जिसे मनोज ने मुझे कभी तोफे में दी थी.

कमरे में आकर मैंने मेरा तौलिया निकाल दिया और आईने के सामने खड़ी होकर मैं मेरा नंगा बदन निहारने लगी. मेरे भरे हुए ३६ इंच के चूँचे आज भी किसी मर्द को पागल बना देते थे, ३२ की पतली सी कमर और पीछे से फूली हुई ३८ इंच के नितंब मेरे बदन को और निख़ार रहे थे. बच्चे अपने कमरे में सो चुके थे, मनोज आज भी किसी शराब के अड्डे पर ही सोया ये सोच के मैंने नाइटी पहनी. अपने आपको दुल्हन की तरफ तैयार करते हुए मैं आज व्यभिचार करने मेरे ससुर के कमरे की तरफ चल पड़ी. नहाने के बाद मेरा बदन चमक रहा था, इत्तर की खुशबु से मैं महक रही थी और मेरा साजो-श्रृंगार ऐसे था की कोई भी मर्द पागल हो जाता.

मैं ससुरजी के कमरे की तरफ बढ़ने लगी वैसे मेरी धड़कन भी तेज होने लगी, जिंगदी में पहली बार मैं किसी पराये मर्द से रत होने जा रही थी मैं. जैसे ही मैं ससुरजी के कमरे में आयी तो मेरा भरा हुवा जवान आधा नंगा बदन देख के उनकी आँखों में चमक जाग उठी, ऊपर से निचे घूरने लगे मुझे मेरे ससुरजी. आँखों से टपकती वासना की लार देख के मैं समझ गयी की आज ससुरजी मुझ पर फ़िदा हो चुके है और सारी रात मुझ पर टूट पड़ेंगे.

मैंने अपना चेहरा अपनी हाथों से छुपाते हुए उनसे कहा, "बाबूजी, ऐसे मत देखिये न मुझे शरम आती है"

ससुरजी बिस्तर से उठाते हुए मेरे पास आकर उन्होंने मुझे अपनी तरफ़ खींच लिया, अपनी बलशाली भुजाओं में दबाते हुए मेरे बदन को सहलाने लगे. पहली बार किसी गैर मर्द के कामुक स्पर्श से मैं पिघलने लगी, बिना किसी लाज-शरम के मैंने भी उनसे चिपक गयी. मेरी चूँचियाँ मेरे ससुर के सीने में बुरी तरह से पीस चुकी थी और मेरे पेट पर उनके लंड की दस्तक मुझे महसूस हो रही थी. मेरे ठुड्डी को पकड़ते हुए उन्होंने मेरा चेहरा ऊपर किया तो मारे शरम के मैंने अपनी आँखे बंद कर ली, उनकी गरम साँसों की हवा मुझे मेरे ओंठों के आसपास महसूस हो रही थी.

दूसरे हाथ से उन्होंने मेरी कमर को और दबाते हुए कहा, "अब हमसे क्या शरमाना बेटी, आज तो हमारे सारे सपनें पुरे होंगे और आज तेरी सेवा में तेरा ये सेवक हमेशा हाजिर रहेगा"

अपनी आँखे खोलते हुए उनकी तरफ देखा तो उन्होंने झट से अपने ओंठ मेरे ओंठों से चिपका दिए, और बड़े ही प्यार से मेरी जीभ को मुँह में लेकर चूसने लगे. इतने सालों के बाद उस कामुक चुम्बन से मेरी हवस बढ़ने लगी, मैंने भी उनका सर सहलाते हुए मेरी जीभ उनके मुँह में सरका दी. हमारे गाढ़े चुंबन से पुचछहहह समुछ्छः जैसी आवाजें निकल रही थी, मेरे भरे बदन को सहलाते हुए उनके हाथ मेरी नाइटी को ऊपर सरकाने लगा मुझे नंगी करने का प्रयास करते उनके हाथ नाइटी के निचे से सरकते हुए मेरी मांसल जाँघे मसल रहा था.

उनके सहलाने से मैं बहोत ज़्यादा बहकने लगी, मैंने भी मेरा हाथ उनके सर से हटाते हुए धोती की तरफ बढ़ाया और ऊपर से का लौड़ा पकड़ लिया. लौड़े पर मेरे नामर्द हाथों के स्पर्श से ससृजी ने आअह्हह्ह्ह्ह की हुंकार भरी और मुझे धकेलते हुए बिस्तर की तरफ़ ले गए. हमारे चुम्बन को रोकते हुए उन्होंने मेरे सीने पर हाथ रखते हुए मेरी नाइटी पकड़ ली और एक ही झटकें में फाड़ दी. टर्रर्रर्र की आवाज़ करती हुई मेरी नाइटी मेरे बदन से अलग हुई और मेरे पिता सामान ससुरजी के सामने में आधी नंगी हालत में खड़ी थी.

उनका उतावलापन देखते हुए मैंने भी उनकी धोती की गाँठ खिंच दी, शरणागति लेते हुए ससुरजी की धोती उनके पैरों में जमा हो गयी और मेरे सामने उनका लौड़ा हिलौरें मारने लगा. आठ इंच का वो काला दण्डा देख मैं तो बाजारू रंडी बन गयी और ससुरजी को देखते हुए मैंने उनका लंड पकड़ लिया. मेरे गुदाज़ मख़मली नारी शरीर को देख ससुरजी ख़ुद पर क़ाबू ना रख सके, मुझे बाहों में दबोचते हुए उन्होंने पीछे से मेरी ब्रा का हुक भी खोल दिया. मुझे बिस्तर पर लिटाते हुए वो मुझ पर आ गए और मेरी गर्दन को चूमते हुए उन्होंने मेरी ब्रा की पट्टियाँ निचे सरका दी.

ब्रा को खिंच कर मेरे बदन से अलग करके ससुरजी मेरे ऊपर सो गए और मैं किसी बच्ची की तरह उनके भारी-भरकम बदन के निचे दब गयी. हमारे नंगे बदन एक दूसरे से ऐसे टकराने लगे, जैसे जनम जनम के बिछड़े प्रेमी बड़े समय के बाद मिल रहे है. मेरे उभारों को अपने मुट्ठी में भरते हुए ससुरजी ने फिर से मुझे चूमना चालू किया, मेरे ओंठ गर्दन और कान की लौ चूमते हुए और चूसते हुए वो धीरे धीरे मेरे बोबों की तरफ अपना मुँह ले गए. दोनों निप्पलों को एक दूसरे से चिपका कर ससुरजी ने दोनों को अपने मुँह में भर लिया और किसी छोटे बच्चे की तरह मेरा दूध पिने लगे.

एक साथ दोनों निप्पलों को चुसवाने का मजा मिलने से मेरे मुँह से हवस की सिसकियाँ निकलने लगी. मैं किसी बाजारू रंडी की तरह अपने ससुर को अपना दूध पीला कर उनके सर को मेरे दुग्ध कलशों पर दबाने लगी. नागिन की तरह बिस्तर पर डोल रही थी, आह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ ह्म्म्मम्म बाबुजीईई बोलते हुए मेरे पितासमान ससुर को अपने यौवन का रस पीला रही थी. ससुरजी का गुर्राता हुवा लंड मुझे मेरे जांघों के बिच महसूस हो रहा था, उसमें से निकलती पानी की बुँदे मेरी जांघ को चिपचिपा करने लगी थी.

मुझे चूमते हुए ससुरजी बोले, "वाह्ह्हह्ह पूजाआ क्या मख़मली तन है तेरा, आज तो ऐसे चुदाई होगी की जन्मों की प्यास बुझेगी, तेरे इन दूध के थैलों को आज जी भर के चसुंगा मेरी जान"

इतना कहकर ससुरजी ने फिर से मेरे बोबे चूसने चालू किये, मैंने भी अपना एक हाथ निचे ले जाते हुए उनके गरम लौड़े को मुट्ठी में भर लिया. ससुरजी का लौड़ा सहलाते हुए मैं उनका मुँह मेरे चुत की तरफ दबाने लगी, उन्होंने ने भी झट से पहचान लिया की उनकी बहु उनसे क्या काम करवाना चाहती है. मनोज तो रोज रात को मेरी चुत काट-काट कर खा जाते थे पर कई सालों मेरी चुत को किसीने ने ठीक से देखा भी नहीं था. मेरे मन की बात सुनकर ससुरजी मेरा पेट चूमते हुए निचे गए, मेरी नंगी भोसड़ी पर हलकेसे चुम्मी दे दी.

ससुरजी के कहने पर मैं आज ही मेरी मुनिया को चमकाया था, बिना बालोंवाली चुत देख कर ससुरजी मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुराये. अपनी खुरदरी जीभ से वो मेरे मदनदाने को सहलाने लगे तो पुरे बदन में ऐसी बिजली चमकी की मेरे दोनों निप्पल कठोर होने लगे. ससुरजी का सर मेरे चुत पर दबाते हुए मैंने अपनी टाँगे खोल दी ताकि उनका मुँह अच्छेसे मेरे चुत के अंदर घुस सके. उँगलियों से मेरे फ़टे हुए चुत का उन्होंने परिक्षण किया, ऊँगली से मेरे चुत के अंदर सहलाते हुए उन्होंने अचानक से अपनी जीभ अंदर घुसा दी.

मेरे सबर का बाँध टूट चूका था, किसी धन्देवाली औरत की तरह मैं बोली, "आआह्ह्ह्हह बाबजुजीईई ससससस धीरे सनम ईशह्ह्ह्हह्ह पूरा निचोड़ लो ससुरजी खा जाओ इस मादरचोड़द्द भोसड़े को बाबुजीईईईई"

मेरे मुँह से निकली गालियां सुनकर उन्होंने चुत को चूसना रोकते और बोले, "वाह्ह्ह्ह मेरी लाड्डो, ऐसे ही गालियाँ देनेवाली रंडियां मुझे पसंद है कुत्तिया, आज पूरी निचोड़ता हूँ तुझे बहनचोद"

जितना संभव था उतना अंदर अपनी जीभ को घुसाते हुए ससुरजी मेरे चुत को खाने लगे, दाँतों से मेरे दाने को काटते हुए उन्होंने दो उँगलियाँ भी मेरे भोसड़े में घुसा दी. ससुरजी के बालों से अपने हाथ हटाकर अब मैंने ख़ुद अपनी चूँचियाँ दबोच ली और आटे की तरह उन्हें गूंथने लगी, चुचुक उँगलियों से मरोड़ने लगी. ससुरजी को अच्छेसे पता था की औरत को चुदाई के खेल के लिया कैसे तैयार करना है, मेरे दाने को अपने ओंठों में पकड़ते वो बाहर की तरफ खींचने लगे.ऐसे भयानक चुसाई की आदत मुझे नहीं थी, तो आअह्ह्ह्हह मम्मीईईई बाबुजीईई उफ्फफ्फ्फ़ जैसी आवाजें जोर-जोर से निकलने लगी.

ससुरजी का लौड़ा याद आते ही मैंने उनको मेरे ऊपर आने का इशारा किया, उसके लौड़े को हाथ में लेकर मैं बेशर्मी से लौड़ा मेरे तरफ खींचने लगी. ससुरजी ने भांप लिया की मुझे भी लंड चूसने का मज़ा लेना है तो वो खुद मेरे सामने लेट गए और मुझे ऊपर आने को कहा. मैं वासनांध होकर उनका हर आदेश मान रही थी, मेरी चौड़ी गांड उनके मुँह पर दबाते हुए मैंने झट से उनका काला लौड़ा मुँह में भर लिया. लंड की मादक खुशबु जैसे ही मेरी नाक में घुसी तो मैं मदहोश होकर लंड का सूपड़ा जीभ से चाटने लगी, ८ इंच का लौड़ा अपने मुँह में समाते हुए मैं उसे चूसने लगी.

ससुरजी ने फिर से मेरे चुत पर हल्ला बोल दिया और अपनी जीभ की नोंक अंदर तक घुसकर मेरे चुतरस को पिने लगे. एक हाथ से लौड़ा तो दूसरे हाथ से उनके काले जामुन सहलाते हुए मैं आज मेरे ससुर का लौड़ा चूस रही थी. जिस बिस्तर पर कभी मेरी सास चुदवाया करती थी आज उसी बिस्तर पर मैं नंगी पड़ी थी, हवस की आग में अंधी होकर बाप के उम्र के आदमी का लौड़ा चूस रही थी. ६० साल का आदमी आज भी किसी जवान लड़के की तरह मेरे चुत से खेल रहा था और कमर ऊपर करके मेरे मुँह में धक्के लगा रहा था.

उनके चुसाई से खुश होकर मैंने अपनी गांड उनके मुँह पर रगड़ना चालू किया तो उन्होंने ने भी मेरे चुत्तड़ फ़ैलाते हुए अपनी जीभ मेरे गांड के छेद पर घुमा दी. मनोज ने कई बार मेरी गांड चोदी थी पर आजतक उसने गांड को कभी नहीं चाटा, और ससुरजी से मिलते इस आनंद से मैं सिसकने लगी. मेरे मुँह में लौड़ा घुसाते हुए उन्होंने ने भी आहें भरनी चालु की, मानों मेरे लंड चूसने की कला से खुश होकर मुझे शाबाशी दे रहे थे. ससुरजी ने अब तक मेरी चड्डी नहीं उतारी थी पर जब मेरी चड्डी उनके खेल में बाधा बनने लगी तो उन्होंने दोनों हाथों से पकड़ कर उसे फाड़ दिया. मेरी चुत और गांड अब उनके सामने नंगी हो चुकी थी और खा जाने वाली नजरों से उन दो छेदों को घूर रहे थे.

गांड पर जोर से थप्पड़ मारते हुए वो बोले, "वाह्ह्ह्हह्ह मेरी जानननननन क्या मदमस्त गांड है तेरी कुत्तिया, आज तो तेरी गांड का गुड़गांव बना ही देता हु रंडी"

मैंने भी उनके लौड़े को मुँह से बाहर निकालते हुए कहा, "उफ्फफ्फ्फ़ धीरे मेरे राजाआजीईई चोदो जैसे मर्जी रगड़ो इस रंडी को आजजज जीभ घुसा दो बाबुजीईईई"

ससुरजी ने भी बड़ी देर तक मेरा फटा हुवा भोसड़ा और मेरी चुदी हुई गांड को अच्छेसे चाट लिया, उनके थूक से मेरे दोनों छेद गीले होकर चमक रहे थे. मैंने भी एक बहु का कर्त्तव्य निभाते हुए ससुरजी का लौड़ा और उनके काले जामुन चूस चूस कर थूक से गिला कर दिया. मेरे गांड में ससुरजी बड़ी देर से अपनी जीभ घुसाकर मुझे मज़े दे रहे थे तो मैंने भी उनको धन्यवाद देने के हेतु से उनके टट्टे ऊपर किये और मेरा मुँह उनकी गांड में दबा दिया. जैसे ही मेरी जीभ ससुरजी के गांड पर लगी तो उनका बदन थरथराया, तभी उन्होंने अपना एक हाथ मेरे सर पर रखते हुए मेरा मुँह और अंदर गांड के छेद तक दबा दिया. मैंने भी मजे से मेरे ससुरजी की गांड में जीभ चलाने लगी, गांड से आती पसीने की खुशबु से मैं पागल हो रही थी, वासना का बिंदु सर्वोच्च शिखर पार कर चूका था.

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